Hindi Subjective Question Paper Class 10th | BSEB 10th प्रेम अयनि श्री राधिके’ Subjective

Hindi Subjective Question Paper Class 10th :-  दोस्तों यदि आप इस बार Matric Exam देने वाले हैं तो यहां पर आपको Class 10th Hindi Ka Subjective Question दिया गया है जो आने वाले Bihar Board Class 10th Hindi Subjective 2022 के लिए काफी महत्वपूर्ण है | Matric Exam 2022 Subjective Question | Class 10th Sanskrit Objective 


1. रसखान किस भक्ति-धारा के कवि थे?

उत्तर रसखान श्री कृष्ण-भक्ति धारा के कवि थे।


2. रसखान ने किस भाषा में काव्य-रचना की है?

उत्तर रसखान ने ब्रजभाषा में अपनी काव्य-रचना की है।


3. गुरु की कृपा से किस युक्ति की पहचान हो पाती है?

उत्तर जिस मनुष्य पर गुरु की कृपा होती है, उसे ईश्वर तक पहुँचने का उपाय मालूम हो जाता है। गुरु की कृपा होते ही मनुष्य काम-क्रोध, लोभ-मोह, सुख-दुख, मान-अपमान, प्रशंसा और निंदा की भावना से परे हो जाता है और सांसारिकता छूट जाती है, ईश्वर-प्राप्ति का मार्ग खुल जाता है।


⇒ दीर्घ उत्तरीय प्रश्न ⇐


1. करील के …….. सवैये में कवि की कैसी आकांक्षा प्रकट होती है? भावार्थ बताते हुए स्पष्ट करें।

उत्तर ⇒  रसखान पुष्टि मार्ग में दीक्षित कृष्ण-भक्त कवि हैं। कृष्ण पर वे फिदा हैं। कृष्ण के साथ-साथ उनकी एक-एक वस्तु कवि को सर्वाधिक प्यारी है। वे केवल कृष्ण ही नहीं, उनकी हर वस्तु की महिमा और उससे जुड़ी अपनी आकांक्षा का वर्णन करते हुए नहीं थकते। वे प्रस्तुत सवैये में अपनी ऐसी ही आकांक्षाएँ व्यक्त करते हुए कहते हैं-मुझे अगर कृष्ण की लकुटी और कंबली मिल जाए तो तीनों लोक उन पर न्योछावर कर दूँ। अगर केवल नंद बाबा की वे गौएँ चराने को मिल जाएँ, जिन्हें कृष्ण चराते थे, तो आठों सिद्धियों और नौ निधियों को उनके लिए भुला दूँ, और तो और, अगर इन आँखों से कृष्ण के लीला-केन्द्र ब्रजभूमि के बनबाग और तालाबों के घाट देखने को मिल जाएँ तो सैकड़ों इन्द्रलोक उन पर कुर्बान कर दूँ।


2. ‘करील के कुंजन ऊपर वारौं’ सवैये का भावार्थ प्रस्तुत कीजिए। या, करील के कुंजन ऊपर वारौं’ सवैये में कवि ने कैसी आकांक्षा व्यक्त की है?

उत्तर ‘करील के कुंजन ऊपर वारौं’ सवैया में कवि रसखान की श्रीकृष्ण पर मुग्धता और उनकी एक-एक वस्तु, अपना सर्वस्व क्या तीनों लोक न्योछावर करने की भावमयी विदग्धता के दर्शन होते हैं। रसखान कहते हैं-श्रीकृष्ण जिस लकुटी से गाय चराने जाते हैं और जो कम्बल ले जाते हैं, अगर मुझे मिल जाए तो मैं तीनों लोक का राज्य छोड़ कर उन्हें ही लेकर रम जाऊँ। अगर ये हासिल न हों, केवल नंद बाबा की गौएँ ही चराने को मिल जाएँ, तो आठों सिद्धियाँ और नौ निधियाँ छोड़ दूँ। कवि को श्री कृष्ण और उनकी त्यागी वस्तुएँ ही प्यारी नहीं हैं, वे उनकी क्रीड़ाभूमि व्रज पर भी मुग्ध हैं। कहते हैं, और तो और, संयोगवश मुझे ब्रज के जंगल और बाग और वहाँ के घाट तथा करील के वे कुंज जहाँ वे लीला करते थे, उनके ही दर्शन हो जाएँ तो सैकड़ों स्वर्णिम इन्द्रलोक उन पर न्योछावर कर दूँ।

     रसखान की यह अन्यतम समर्पण-भावना और विदग्धता भक्ति-काव्य की अमुल्य निधियों में है।

Hindi Subjective Question Model Paper 


3. रसखान रचित सवैये का भावार्थ अपने शब्दों में लिखें।

उत्तर रसखान पुष्टि मार्ग में दीक्षित कृष्ण भक्त कवि हैं। कृष्ण पर वे फिदा हैं। कृष्ण के साथ-साथ उनकी एक-एक वस्तु कवि को सर्वाधि क प्यारी हैं वे केवल कृष्ण ही नहीं, उनकी हर वस्तु की महिमा और उससे जुड़ी अपनी आकांक्षा का वर्णन करते हुए नहीं थकते। वे प्रस्तुत सवैये में अपनी ऐसी ही आकांक्षाएँ व्यक्त करते हुए कहते हैं-मुझे अगर कृष्ण की लकुटी और कंबली मिल जाए तो तीनों लोक उन पर न्योछावर कर दूँ। अगर केवल नंद बाबा की गौएँ चराने को मिल जाएँ, जिन्हें कृष्ण चराते थे, तो आठों सिद्धियों और नौ निधियों को उनके लिए भुला दूँ, और तो और, अगर इन आँखों से कृष्ण के लीला केन्द्र ब्रजभूमि के बनवाग और तालाबों के घाट देखने को मिल जाएँ तो सैकड़ों इन्द्रलोक उन पर कुर्बान कर दूँ।


4. रसखान ने माली मालिन किन्हें और क्यों कहा है?

उत्तर ⇒  कवि रसखान ने श्रीकृष्ण और राधा को प्रेम बाटिका का माली-मालिन कहा है। माली और मालिन वाटिका की धुरी होते हैं। वे वाटिका की भूमि फल-फूलों के लिए तैयार करते, फिर फूलों के बीज या पौधे जमीन में लगाते, उन्हें खुद सिंचते और फूल खिलाते एवं उन्हें हरा-भरा रखते हैं। श्री कृष्ण और राधा ने भी, कवि की दृष्टि में, प्रेम-वाटिका तैयार की है, दोनों ने मिलकर प्रेम के अनगिनत फूल खिलाएँ हैं और सदा अपने प्रेम-नीर से प्रेम-वाटिका को हरा-भरा रखा है। अर्थात् श्री कृष्ण और राधा प्रेम-वाटिका के मूर्तिमान रूप हैं। श्री कृष्ण और राधा के प्रेम प्रसंग आज भी लोक-मानस में स्फुरण पैदा करते हैं। यही कारण है कि कवि रसखान ने श्रीकृष्ण और राधा को माली मालिन कहा है।


5. ‘प्रेम-अयनि श्री राधिका पाठ का भाव या सारांश अपने शब्दों में लिखिए।

उत्तर ⇒  ‘प्रेम-अयनि श्री राधिका’ में कृष्ण और राधा के प्रेममय रूप पर मुग्ध रसखान कहते हैं कि राधा प्रेम का खजाना है और श्री कृष्ण अर्थात् नंदनंद साक्षात् प्रेम-स्वरूप। ये दोनों ही प्रेम-वाटिका के माली और मालिन हैं जिनसे प्रेम वाटिका खिली-खिली है। मोहन की छवि ऐसी है कि उसे देखकर कवि की दशा धनुष से छूटे तीर की तरह हो गई है। जैसे धनुष से छूटा हुआ तीर वापस नहीं होता, वैसे ही कवि-मन एक बार कृष्ण की ओर जाकर पुनः अन्यत्र जाने की इच्छा नहीं करता। कवि का मन-माणिक, चितचोर श्री कृष्ण चुरा कर गए, अब बिना मन के वह फंदे में फंस गया है। वस्तुत: जिस दिन से प्रिय नन्दकिशोर की छवि देख ली है, यह चोर मन बराबर उनकी ओर ही लगा हुआ है।

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6. या लकुटी अरु कामरिया पर राज तिहूँ पुर की तजि डारौं। आठहुँ सिद्धि नवोनिधि को सुख नन्द की गाइ चराई बिसारौं ॥ रसखानि कबौं इन आँखिन सौं ब्रज के बनबाग तड़ाग निहारौँ। कोटिक रौ कलधौत के धाम करील के कुंजन ऊपर वारौं । सप्रसंग व्याख्या करें।

उत्तर ⇒  प्रस्तुत पंक्तियाँ प्रेम-अयनि श्री राधिका पाठ से ली गई है। इसके कवि रसखान है। प्रस्तुत पाठ सवैया छंद में है।

    यहाँ कवि रसखान श्रीकृष्ण पर मुग्ध हैं। न सिर्फ श्रीकृष्ण उनके प्रेय हैं, अपितु उनकी हर वस्तु कवि को प्राणों से प्यारी है। वे कहते हैं कन्हैया तो कन्हैया, उनकी लकुटी और कम्बली भी मुझे मिल जाए तो मैं तीनों लोक इन पर न्योछावर कर दूँ। अगर नन्द बाबा की गौएँ चराने का काम मुझे मिल जाए तो आठों सिद्धियाँ और नौ निधियाँ त्याग, वहीं गोचारण करूँ। कवि यहीं पर नहीं रुकते, वे आगे कहते हैं कि सब कुछ छोड़ अगर मुझे ब्रज के बन-बाग और तड़ाग के भी दर्शन का सौभाग्य मिल जाए तो करोड़ों स्वर्णिम इन्द्रधाम भी न्योछावर कर दूँ।

     भक्ति मार्ग में न सिर्फ आराध्य भक्त के केन्द्र होते हैं, अपितु उनकी छोटी-छोटी चीजें भी भक्त को अभिभूत करती हैं। यही भाव रसखान के इस सवैये में व्यक्त है। प्रस्तुत सवैये में ‘ब्रज के वन बाग’ और ‘करील के कुंजन में अनुप्रास अलंकार है।’


7. कृष्ण को चोर क्यों कहा गया है? कवि का अभिप्राय स्पष्ट करें।

उत्तर चोर उसे कहते हैं, जो किसी की कोई कीमती वस्तु, उसकी असावधानता में या धोखे से लेकर चला जाता है। और, उस वस्तु का स्वामी केवल मक्खन उसके लिए छटपटाता है। हिन्दी की प्रच्छन्न काव्य-धारा में नंद-नंदन कृष्ण को प्रायः सभी श्रीकृष्ण-भक्त कवियों ने चोर कहा है। रसखान भी इनमें एक हैं, उनका श्रीकृष्ण पर चोरी का आरोप है। वस्तुतः श्री कृष्ण ही नहीं चुराते थे, वे अपने सौंदर्य से, शालीनता से, प्रेम से, स्नेह से, अदभुत बाँसुरीवादन से, लीलाओं से और भक्त वत्सलता से जन-जन के मन चुरा लेते थे। वे अपना यह काम इतनी खूबी से करते थे कि व्यक्ति को पता भी नहीं चलता था। व्यक्ति कृष्ण की विरल भंगिमा इधर देखता और उधर मन गायब व्यक्ति अपना मन खोजता है लेकिन वह तो कृष्ण ले गए। अब मन और कृष्ण ऐसे एक रूप हैं कि मन को कृष्ण के बिना चैन नहीं। रसखान की भी यही स्थिति है, उनका मन या चित्त कृष्ण में समा गया है, चित्त गायब है। इसीलिए कृष्ण को चितचोर कहा गया है।


8. मोहन छबि रसखानि लखि अब दृग अपने नाहिं। 

अंचे आवत धनुस से छूटे सर से जाहिं— सप्रसंग व्याख्या कीजिए।

उत्तर (क) रसखान रचित प्रस्तुत दोहा काव्य-गुणों से परिपूर्ण है।

(ख) इसमें अनुप्रास, उपमा और लोकोक्ति अलंकार का विरल संयोग है। यहाँ जैसे ‘धनुष से तीर छूटना’ में उपमा अलंकार है तो ‘धनुष से छूटा हुआ तीर’ लोकोक्ति अंलकार की श्रेणी में आता है। ‘अँचे आवत’ में अनुप्रास अलंकार भी है।

(ग) ‘अब दृग अपने नाहिं’ द्वारा कवि ने ‘छवि’ को अत्यंत प्रभावशाली बनाया है।

(घ) दोहा भाव-भाषा की दृष्टि से भी सटीक है।

Hindi Subjective VVI Question Paper Class 10th


9. मन पावन चितचोर, पलक ओट नहिं करि सकौं— सप्रसंग व्याख्या कीजिए।

उत्तर ⇒  प्रेम अयनि श्री राधिका’ शीर्षक पाठ की प्रस्तुत पंक्ति में कृष्ण-भक्त, रसिक कवि, रसखान ने कृष्ण की मोहक छवि देखने के बाद हुई अपनी दशा का जीवंत चित्र प्रस्तुत किया है। कवि कहता है कि जब से उसने कृष्ण की छवि देखी है, उसका मन उन्होंने चुरा लिया है। अब हालत ऐसी है कि उस कृष्ण को निरंतर निहारने की इच्छा हो रही है। एक लिए भी आँखों से उन्हें ओझल होने देने का मन नहीं करता। प्रेम की चरमावस्था और वाणी की विदग्धता का अनोखा संयोग यहाँ दर्शनीय है।


10. पाठ्य-पुस्तक में संकलित रसखान की रचनाओं के आधार पर उनकी भक्ति भावना का परिचय दीजिए।

उत्तर रसखान भक्त कवि हैं। उनके आराध्य हैं नटवर नागर श्रीकृष्ण। उनकी लीलाएँ, उनकी मोहक छवि रसखान की भक्ति के केन्द्र हैं। उनकी रचनाओं में ये ही भाव व्यक्त हैं। उनके श्रीकृष्ण और राधा प्रेमागार हैं, वे प्रेम बाटिका के माली-मालिन हैं

प्रेम अयनि श्री राधिका, प्रेम-बरन नँदनंद।

प्रेम बाटिका के दोऊ, माली-मालिन द्वन्द्व||

  रसखान श्रीकृष्ण की छवि पर मुग्ध है, उनकी आँखें श्रीकृष्ण को निरखना नहीं छोड़ना चाहती, ‘मोहन छवि रसखानि लखि, अब दूंग अपने नाहिं।’ उनके श्रीकृष्ण ‘चितचोर’ हैं और रसखान अपने चित की चोरी के कारण फंदे में फंसे हैं-‘अब बेमन मैं का करू परी फेर के फंद।”

   रसखान की भक्ति अचला भक्ति है। वे श्रीकृष्ण के लिए ही फकीर बने हैं। उनकी हर चीज के वे दीवाने हैं। वे उनकी लकुटी और कामरी पर हुए त्रिलोक का राज्य न्योछावर करने को तत्पर हैं, उनके साथ नंद बाबा की गाएँ चराने के लिए आठ सिद्धियों और नौ निधियों को छोड़ने के लिए तैयार हैं और वृन्दावन के करील के कुंजों के दर्शन मात्र के लिए करोड़ों इन्द्रलोकों का अर्पण करने को प्रस्तुत हैं—

     या, लकुटी अरु कामरिया पर राज तिहूँ पुर की तजि डारौं। आठहुँ सिद्धि नवोनिधि को सुख नंद की गाइ चराई बिसारौं || रसखानि कबौं इन आँखिन सौं ब्रज के बनबाग तड़ाग निहारौँ । कोटिक रौ कलधौत के धाम करील के कुंजन ऊपर वारौं ।।

  वस्तुत: रसखान का सब कुछ कृष्णार्पित है। मन, वचन और कर्म से वे श्रीकृष्ण से मिलने को व्याकुल हैं। ऐसी भक्ति और तन्मयता विरले ही देखने को मिलती है।

Hindi Subjective Question Paper BSEB 10th


           वर्णिका , भाग – 2 [ Objective  ]
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