12th Bhautik Vigyaan Subjective Question 2025 :- दोस्तों यदि आप Class 12 Physics Board Question Paper की तैयारी कर रहे हैं तो यहां पर आपको important questions for class 12 physics with answers दिया गया है जो आपके 12th board physics question answer के लिए काफी महत्वपूर्ण है | Class 12th Hindi
12th Bhautik Vigyaan Subjective Question 2025
1. चलकुंडली धारामापी (Moving Coil Galvanometer M.C.G.) की बनावट एवं क्रियाविधि को समझावें ।
उत्तर ⇒ जब किसी धारावाही चालक को किसी चुम्बकीय क्षेत्र में रखा जाता है तो यह एक बल का अनुभव करता है इसी सिद्धान्त पर चलकुंडली धारामापी (M.C.G.) की सरंचना की जाती है।
इस यंत्र में एक आयताकार कुंडली है जो किसी अचुम्बकीय धात्विक क्रम पर लिपटी रहती है। इसे दो NS स्थायी शक्तिशाली चुम्बकीय ध्रुवों के बीच इस प्रकार लटकाया जाता है कि यह स्वतंत्रतापूर्वक घूम सके। फ्रेम यानि कुंडली के केन्द्र पर नर्म लोहे का एक बेलन ‘L’ इस प्रकार रखा जाता है कि यह कुंडली के फ्रेम को स्पर्श न कर पाये। शक्तिशाली चुम्बकीय ध्रुवों के सिरे लम्बवत होते हैं ताकि इनके बीच का चुम्बकीय क्षेत्र वैज्य हो । चित्र में abcd कुंडली दृढ़ आधार S से फॉसफर ब्रॉज के तार से घिरी हुई है जिसमें एक छोटा सा समतल दर्पण M लगा रहता है।
जो कुंडली के कोण को मापने में प्रयुक्त होता है। माना कि कुंडली की लम्बाई ab = cd = l तथा चौड़ाई ab = dc = b है तथा इससे धारा । दक्षिणावर्त्त होती है। धारा प्रवाहित होने पर कुंडली θ कोण से विक्षेपित हो जाती है जिसे चित्र द्वारा दिखाया गया है।
चुम्बकीय क्षेत्र के वैज्य होने के कारण यह कुंडली के समान्तर होगी तथा ad और cb भाग के लम्बवत् कार्य करेगी।
cb भाग पर लगने वाला बल ilB होगा B चुम्बकीय क्षेत्र है। अतः प्रत्येक लपेट (turn) का विक्षेपित बलयुग्म ( deflecting )
ilB x b = ilBb. ……………………(1)
यदि लपेटों की संख्या N हो तो कुंडली पर लगने वाला कुल विक्षेपित
बलयुग्म = NIlbB = NIAB
A = l × b = कुंडली के सतह का (face area) क्षेत्रफल इसी बलयुग्म के कारण कुंडली θ कोण से विक्षेपित होती है। माना कि C लटकाए गए तार के इकाई मरोड़ का बलयुग्म है । .
∴ प्रत्यानयन बलयुग्म = Cθ साम्यावस्था की स्थति में INAB
= Cθ.
I = C/NAB …………..(2)
C/NAB = k चलकुंडली धारामापी का धारा परिवर्तन गुणांक है।
∴ I = kθ
यानि I ∝ θ
लैप तथा स्केल के द्वारा चलकुंडली के विचलन कोण θ का मान ज्ञात किया जाता है।
धारासूक्ष्म ग्राहिता :
∴ I = C/NABθ ⇒ θ = NAB/C ……… (3)
किसी धारामापी से प्रवाहित सूक्ष्म धारा के कारण भी यदि विचलन कोण θ अधिक प्राप्त होता है तो ऐसे धारा को सूक्ष्मग्राही धारामापी कहते हैं।
अतः समीकरण (3) से स्पष्ट है कि का मान सूक्ष्म ग्राहिता का θ/I मान होता है। इसके लिए स्पष्ट है कि N का मान अधिक होना चाहिए। कुंडलीय का क्षेत्रफल A तथा चुम्बकीय क्षेत्र का भी मान अधिक होना चाहिए परन्तु C का मान कम होना चाहिए।
2. ट्रांसफॉर्मर क्या है ? इसके बनावट एवं क्रियाविधि को समझाएँ ।
उत्तर ⇒ ट्रान्सफॉर्मर — ट्रान्सफॉर्मर प्रत्यावर्ती धारा का विद्युतीय उपकरण है जिससे उच्च धारा पर निम्न प्रत्यावर्ती वोल्टता को निम्न धारा पर उच्च वोल्टता में तथा निम्न धारा पर उच्च प्रत्यावर्ती वोल्टता को अधिक धारा पर निम्न वोल्टता में परिवर्तित किया जाता है । इस प्रकार पहले स्थिति के ट्रान्सफॉर्मर को उच्चायी ट्रान्सफॉर्मर तथा बाद की स्थिति के ट्रान्सफॉर्मर को अपचायी ट्रान्सफॉर्मर कहते हैं । यह अन्योन्य प्रेरण के सिद्धान्त पर कार्य करता है। धारा या चुम्बकीय फ्लक्स में एक कुण्डली में परिवर्तन होता है तो दूसरे कुण्डली में प्रेरित वि. वा. बल उत्पन्न होता है।
बनावट – चित्रानुसार ट्रान्सफॉर्मर में दो अलग कुण्डली परतदार लोहे के क्रोड पर लिपटी होती है। एक कुण्डली प्राथमिक कुण्डली (P) तथा दूसरी कुण्डली द्वितीयक कुण्डली (S) कहलाती है। प्राथमिक कुण्डली (P) में प्रत्यावर्ती धारा निर्विष्ट की जाती है और द्वितीयक कुण्डली (S) से परिवर्तित धारा बहिर्गत होती है।
परतदार लोहे का क्रोड वार्निश की हुई समान लोहे की पत्तियों को एक साथ मिलाकर बनाया जाता है। इस प्रकार के कोड भँवर धाराओ के उत्पादन के कारण ऊर्जा या शक्ति ह्रास को कम करता है।
उच्चायी ट्रान्सफॉर्मर चित्रानुसार उच्चायी ट्रान्सफॉर्मर के द्वितीयक कुण्डली में लपेटों की संख्या Ns प्राथमिक कुण्डली में लपेटों की संख्या Np से अधिक होती है अर्थात Ns > Np । प्राथमिक कुण्डली मोटे विद्युतरोधी ताँबे के तार की बनी होती है जबकि द्वितीयक कुण्डली पतले विद्युतरोधी तार की बनी होती है। यह उच्च धारा पर कम वोल्टता को कम धारा पर उच्च वोल्टता में बदलता है।
अपचायी ट्रान्सफॉर्मर चित्रानुसार अपचायी ट्रान्सफॉर्मर के – द्वितीयक कुण्डली में लपेटों की संख्या (Ns), प्राथमिक कुण्डली में लपेटों की संख्या (Np) से कम होती है, अर्थात् Ns < Np यह कम P. धारा पर उच्च वोल्टता में तथा उच्च धारा पर कम वोल्टता में बदलता है ।
सिद्धान्त एवं कार्यविधि – जब प्रत्यावर्ती स्रोत के विद्युत वाहक बल प्राथमिक कुण्डली से जोड़े जाते हैं तो निवेश (इनपुट) चक्रों में प्राथमिक कुण्डली के चुम्बकीय फ्लक्स में परिवर्तन होता है, जो परतदार क्रोड द्वारा द्वितीयक कुण्डली से संबद्ध हो जाता है तथा उसमें प्रत्यावर्ती वि. वा. बल उत्पन्न करता है। नरम लोहे का क्रोड प्राथमिक कुण्डली के साथ द्वितीयक कुण्डली में उत्पन्न सभी चुम्बकीय फ्लक्स को व्यावहारिक रूप से युग्मित करने की क्षमता रखती है। दोनों कुण्डलियों से संबद्ध चुम्बकीय फ्लक्स लपेटों की संख्याओं के सरल समानुपाती होते हैं ।
माना कि प्राथमिक तथा द्वितीयक कुण्डलियों में लपेटों की संख्याएँ Np तथा Ns हैं और उससे संबद्ध चुम्बकीय फ्लक्स क्रमशः Φp तथा Φs
है, तो
Φs/Φp = Ns/Np ⇒ Φs = Ns/Np·Φp
∴ dΦs/dt = Ns/Np⋅dΦp/dt …………..(1)
फैराडे के विद्युत चुम्बकीय प्रेरण के नियम से हम जानते हैं कि उत्पन्न प्रेरित विद्युत वाहक बल
E = – dΦ/dt है ।
माना कि E तथा E किसी क्षण प्राथमिक तथा द्वितीयक कुण्डलियों में उत्पन्न प्रेरित वि. वा. बल है तो हम पाते हैं कि
Ep = dΦp/dt तथा Es = dΦs/dt
तब समीकरण (1) से,
Es = Ns/Np⋅Ep
अनुपात Ns/Np = K को ट्रान्सफॉर्मर अनुपात कहा जाता है। उच्चाय ट्रान्सफॉर्मर के लिए ट्रान्सफॉर्मर अनुपात एक से अधिक है जबकि अपचायी ट्रान्सफॉर्मर के लिए ट्रान्सफॉर्मर अनुपात का मान एक से कम होता है। शक्ति (ऊर्जा) की हानि नहीं होने पर तात्कालिक बहिर्गत शक्ति तात्कालिक निविष्ट शक्ति होती है। ट्रान्सफॉर्मर की दक्षता ट्रान्सफॉर्मर की दक्षता बहिर्गत तथा निविष्ट शक्तियों का अनुपात होती है, जिसे द्वारा निरूपित किया जाता है।
अर्थात् η बहिर्गत शक्ति/निविष्ट शक्ति = EsIs/EpIp
= निविष्ट शक्ति – शक्ति क्षय / निविष्ट शक्ति
= 1– शक्ति क्षय / बहिर्गत शक्ति + शक्ति क्षय
अच्छे ट्रान्सफॉर्मरों की दक्षता 99% है।
ट्रान्सफॉर्मर को तेल में डुबाकर रखने से ऊष्मा के रूप में उत्पन्न क्षय शोषित होकर परिवेश में जाता है।
Class 12 Physics Board Question Paper
3. स्वप्रेरण एवं अन्योन्य प्रेरण को परिभाषित करें। दो लम्बी समाक्षीय परिनलिकाओं का अन्योन्य प्रेरण (प्रेरकत्व) का व्यंजक प्राप्त करें।
उत्तर ⇒ स्वप्रेरण—किसी कुंडली से प्रवाहित धारा को परिवर्तित करने पर स्वयं उसी कुंडली में प्रेरित विद्युत वाहक बल तथा प्रेरित विद्युत धारा को उत्पन्न होने की घटना को स्वप्रेरण कहा जाता है।
अन्योन्य प्रेरण- किसी एक कुंडली में धारा के परिवर्तन के कारण दूसरी कुंडली में प्रेरित विद्युत वाहक बल उत्पन्न होने की घटना को अन्योन्य प्रेरण कहा जाता है।
दो लंबी समाक्षीया परिभाषाओं के अन्योन्य प्रेरकत्व का व्यंजक :
माना कि
np = प्राथमिक कुंडली के एकांक लम्बाई में फेरों की संख्या
Np = प्राथमिक कुंडली में कुल फेरों की संख्या
Ns = द्वितीयक कुंडली में कुल फेरों की संख्या
A= परिनालिक के अनुप्रस्थ काट का क्षेत्रफल
यदि परिनालिका से प्रवाहित धारा I हो, तो प्राथमिक परिनालिका के प्रत्येक फेरे से सम्बद्ध चुम्बकीय फ्लक्स
Φ = B. A= μ0npIA …(i)
चूँकि द्वितीयक कुंडली को प्राथमिक कुंडली के मध्य भाग पर लपेटा गया है। अतः द्वितीय कुंडली के प्रत्येक फेरे से चुम्बकीय फ्लक्स का वही मान सम्बद्ध होगा ।
अतः द्वितीयक कुंडली से सम्बन्द्ध कुल चुम्बकीय फ्लक्स = NsΦ …(ii)
Φ1 = B. A= μ0npIA · Ns
यदि दोनों परिनालिकाओं के बीच अन्योन्य प्रेरकत्व M हो तो
M = Φ1/I = μ0npIA · Ns/I
or, M = μ0npA · Ns
M =μ0 Np·Ns⋅A/l ………(iii) जहाँ np = Np/l
समी. (iii) दो परिनालिकाओं का अन्योन्य प्रेरकत्व का व्यंजक है।
4. दो समानांतर धारावाही चालकों के बीच बल का व्यंजक प्राप्त करें। इसके आधार पर एम्पियर की परिभाषा दें।
उत्तर ⇒ मान लिया कि PQ तथा RS कागज के तल में स्थित दो समांतर धारावाही चालक है, जिसमें क्रमशः I1 और I2, विद्युतधाराएँ प्रवाहित हो रही है। चालकों के बीच की लांबिक दूरी r है। यदि इन धारावाही चालकों की लंबाई को अनंत मान लिया जाए तो PQ चालक के कारण RS चालक के गिर्द चुंबकीय क्षेत्र का परिमाण B1 = μ0I/2πr तथा इसकी दिशा कागज के तल के लम्बवत् अंदर की ओर होगी। जिसे एक वृत्त के अंदर बने क्रॉस चिह्न 8 से दिखाया है । गया है। अब धारावाही चालक RS, PQ द्वारा उत्पन्न चुंबकीय क्षेत्र में स्थित है। अतः RS चालक की एकांक लंबाई पर लगने वाले बल का परिमाण
F/l = B1l2 ….. (1)
B1 का मान रखने पर,
F/l = μ0I/2πr × l2
F/l = μ0I1l2 × 2/2πr × 2
F/l = μ0/4π⋅2I1l2/r
इस बल की दिशा कागज के तल में धारावाही चालक PQ की ओर होगी। ठीक उसी प्रकार धारावाही चालक RS के कारण उत्पन्न क्षेत्र B2 = μ0I2/2πr में पहले धारावाही चालक PQ की प्रति मीटर लंबाई पर क्रियाशील बल का परिमाण भी उतनी ही होगी।
F/l = B2l1 or, F/l = μ0l2/2πr × l2
F/l = μ0/4π⋅2I1l2/r ….. (3)
इस बल की दिशा कागज के तल में RS की ओर होगी। इस प्रकार समांतर धारावाही चालकों के बीच आकर्षण बल लगता है।
एम्पियर की परिभाषा ( Definition of Ampere)- किन्हीं दो समांतर और सीधे धारावाही चालकों के बीच क्रियाशील बल के आधार पर ऐम्पियर की परिभाषा दी जा सकती है। इस समीकरण से,
F/l = μ0/2π⋅2I1l2/r
चूँकि, μ0 = 4×10-7 Hm-1 और यदि l1 = l2 = lA और r = 1m
मान लिया तो
F = 2 x 10-7 Nm-1 होगा।
अतः एक एम्पियर प्रबलता की विद्युत धारा वह स्थायीधारा है जो वायु अथवा निर्वात में एक-दूसरे से एक मीटर की दूरी पर स्थित दो लंबे, सीधे व समांतर चालकों से प्रवाहित होने पर उनके बीच 2 x 10-7 Nm का बल उत्पन्न कर देती है।
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5. LR परिपथ में प्रवाहित प्रत्यावर्ती धारा के तत्कालिक मान का व्यंजक प्राप्त करें।
उत्तर ⇒ LR परिपथ में प्रवाहित तात्कालिक धारा का व्यंजक – चित्रानुसार माना कि प्रतिरोध R तथा प्रेरकत्व L श्रेणीक्रम में जुड़े है जिनमें सिरों के बीच प्रत्यावर्ती वि. वा. बल Es लगाया गया है। किसी क्षण प्रत्यावर्ती धारा का मान
I = I0 sin ωt . ……. (1)
प्रत्यावर्ती धारा के कारण प्रेरकत्व में प्रेरित वि. वा. बल उत्पन्न होता है जो आरोपित वि. वा. बल का विरोध करते हैं।
∴ प्रेरित वि. वा. बल = L.dl/dt
इसलिए प्रभावी वि वा बल = E – L.dl/dt
अब ओम के नियमानुसार, I =I0 sin ωt ……(2)
समय के सापेक्ष समीकरण (1) को अवकलित करने पर हम पाते हैं कि
dl/dt = I0 ωcos ωt
I तथा dl/dt का मान समीकरण (2) में देने पर
I0 sin ωt = E – LI0 ωcos ωt/R
∴ E – LI0 ω cos ωt = I0Rsin ωt
⇒ E = I0R sin ωt = LI0 ω cos ωt = I0√R2 + ω2L2
[ R/√R2 + ω2L2 sin ωt + Lω/√R2 + ω2L2cos ωt ]
अब माना कि
R/√R2 + ω2L2 = cosΦ तथा Lω/√R2 + ω2L2 = cos ωt
तब,
E = I0√R2 + ω2L2 ( sin ωt . cosΦ + cos ωt . sinΦ )
= I0√R2 + ω2L2 sin (ωt + Φ)
E के महत्तम होने पर
sin (ωt + Φ) = 1
∴ E के महत्तम होने पर,
eo = √R2 + ω2L2 ……….(3)
तथा, E = E0 sin (ωt + Φ) ……….(4)
समीकरण (1) तथा (4) की तुलना करने पर यह स्पष्ट है कि विद्युत वाहक बल E. कोण Φ द्वारा धारा से ऊपर है, जहाँ
tan Φ = ωL/R
समीकरण (3) से हम पाते हैं कि I0 = E0/√R2 + ω2L2
इस समीकरण की तुलना समीकरण (2) से करने पर यह स्पष्ट होता है कि परिषद का प्रभावी प्रतिरोध = √R2 + ω2L2 जिसे प्रतिबाधा
कहा जाता है और z द्वारा व्यक्त किया जाता है। Z = √R2 + ω2L2
प्रतिबाधा के व्युत्क्रम को प्रवेश्यता कहते हैं, जिसे Y द्वारा व्यक्त किया जाता है।
∴ Y =1/Z = 1/√R2 + ω2L2 प्रवेश्यता का मात्रक (p) है। प्रतिबाधा का मात्रक ओम है तथा
cos Φ = R/√R2 + ω2L2
R NR + L को परिपथ का शक्ति गुणांक कहते हैं।
6. L-C-R श्रेणीक्रम Circuit की कार्य विधि को समझावें एवं इससे प्रवाहित A. C. का तात्कालिक मान ज्ञात करें।
उत्तर ⇒ चित्र में L-C.R श्रेणीक्रम परिपथ को दिखाया गया है। माना कि परिपथ में एक प्रत्यावर्ती विद्युत् वाहक बल ε =ε0 sin ωt or suiut कार्य कर रहा होता है। माना कि परिपथ में Iv धारा का वगमूल मध्य (R.M.S.) मान है तथा IR , VL एवं VC क्रमशः R. L तथा C के सिरों पर विभव का वर्गमूल मध्य मान है। श्रेणीक्रम में होने से धारा Iv का मान R1 तथा C में समान होगा। प्रत्यावर्ती विद्युत् वाहक बल का विभव का वर्गमूल मध्यमान VR VL तथा VC के सदिश योग के बराबर है। विभव तथा धारा के बीच कला आरेख खींचते हैं। VR तथा IR एक ही कला में हैं अतः VR तथा IR को एक ही दिशा OX में दिखाया गया है। इसी प्रकार VL ,तथा Iv से 90° अग्रगामी है, इस कारण VL , Iv को Y-अक्ष पर दिखाया गया है। इसी प्रकार VL , Iv से 90° पश्यगामी (Logging behind) है, इस कारण उसे Y’ दिशा में दिखाया गया है।
माना कि VL > VC है। अतः VR = IvR.
जहाँ Xc तथा XL Capacitor तथा inductor का प्रतिरोध है।
Xc = 1/ωC तथा XL = ω.L. जहाँ ω प्रत्यावर्ती धारा स्रोत की कोणीय आवृत्ति है।
∴ Ev = √(VL-VC)2 +V2R
= √(IVXL–IVXC)2 + I2VR2
= √I2V(XL–XC)2 + I2VR2
= IV √R2 + ( ωL – 1/ωC)2
∴ IV = ∑V/√R2 + ( ωL – 1/ωC)2
कला आरेख से स्पष्ट है कि श्रेणी L-C-R परिषद में Ep 1 की अपेक्षा • कोण अग्रगामी है। जहाँ
tan Φ = OD/OA = VL–VC/VR
= IVXL – IvXC/IvR = XL – XCR
IV = ∑V/Z जहाँ Z = √R2 + ( ωL – 1/ωC)2
को परिपथ का प्रतिबाधा (Impedance ) कहा जाता है।
(i) जब ωL > 1/ωC से आगे होगा। हो तब tan) धनात्मक होगा एवं विभव धारा
(ii) जब ωL < 1/ωC से पीछे होगा। हो तब tan) ऋणात्मक होगा एवं विभव धारा
(iii) जब ωL = 1/ωC हो तब tan Φ = 0 होगा एवं परिपथ में विभव एवं धारा एक ही दिशा में होगा। इस अवस्था में परिपथ में प्रतिरोध का मान न्यूनतम हो जायेगा एवं धारा का मान सबसे अधिक होगा।
परिपथ में अनुनाद (Resonance) की स्थिति,
श्रेणीक्रम में अनुनाद तब होता है जब परिपथ की प्रतिबाधा न्यूनतम होती है अथवा परिपथ में धारा अधिकतम होती है। माना कि ω = ω0 होने पर प्रतिबाधा का मान न्यूनतम हो जाता है।
ω0L = 1/ω0C
ω02 = 1/LC
ω0 = 1/√LC
2πƒ0 = 1/√LC
∴ ƒ0 = 1/2π√LC
ƒ0 को परिपथ का अनुनाद आवृत्ति कहा जाता है।
12th Bhautik Vigyaan Subjective
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