Class 10th Hindi Subjective Question

Class 10th Hindi Subjective Question | कक्षा 10वीं हिंदी ‘जित-जित में निरखत हूँ’ सब्जेक्टिव

BSEB Class 10th

Class 10th Hindi subjective Question 2022 :- दोस्तों यदि आप लोग इस बार Bihar Board Matric Exam 2022 Hindi Subjective की तैयारी कर रहे हैं तो यहां पर आपको Class 10th Hindi Chapter 8 Ka Subjective  दिया गया है जो आने वाले Class 10th Hindi Subjective Question के लिए काफी महत्वपूर्ण है | BSEB 10th & 12th Study App


1. बिरजू महाराज के गुरु कौन थे? संक्षिप्त परिचय दें।

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उत्तर ⇒ बिरजू महाराज के गुरु उनके पिताजी थे। उन्होंने स्वयं अपने पिता का शिष्य होने की बात स्वीकार की है। वे कहते हैं- ‘शार्गिद तो बाबूजी का हूँ।’ ऐसा इसलिए कहा क्योंकि उनके बाबूजी जहाँ भी जाते उन्हें साथ ले जाते। जहाँ आयोजनों में उन्हें नृत्य करना होता वहाँ पहले बेटे बिरजू महाराज को नृत्य करने का अवसर प्रदान करते तथा खुद तबला वादन करते। बिरजू महाराज के पिता एक प्रख्यात नर्त्तक थे। उन्होंने 22 वर्षों तक रामपुर की नवाब के यहाँ अपनी कला का प्रदर्शन किया। 54 वर्ष की अवस्था में लू लगने से उनकी मृत्यु हो गई।


2. बिरजू महाराज का अपने शागिर्दों के बारे में क्या राय है?

उत्तर ⇒ अपने शागिदों के बारे में बिरजू महाराज की राय है कि विदेशी शिष्यों में वैज्ञानिक उन्नति कर रही है। तीरथ प्रताप और प्रदीप ने अच्छा काम किया हैं, शाश्वती तरक्की की राह पर है और दुर्गा भी। कृष्ण मोहन और राममोहन उतना ध्यान नहीं दे रहे हैं, जितना देना चाहिए। बेटे भी ध्यान नहीं दे रहे हैं। इन लोगों में अपेक्षित उत्साह, त्याग, समर्पण की भावना नहीं है। ये नाच को इन्ज्वायमेंट समझते हैं, साधना नहीं ।


3. किनके साथ नाचते हुए बिरजू महाराज को पहली बार प्रथम पुरस्कार मिला?

उत्तर ⇒ अपने पिता और चाचा शंभु महाराज के साथ नाचते हुए बिरजू महाराज को पहली बार प्रथम पुरस्कार मिला।


4. कोलकाता के दर्शकों की प्रशंसा का बिरजू महाराज के नर्तक-जीवन पर क्या प्रभाव पड़ा?

उत्तर ⇒ कोलकाता के दर्शकों की प्रशंसा का बिरजू महाराज के जीवन में प्रभूत प्रभाव पड़ा। उन्हें लगा कि वे कुछ हैं और कुछ कर सकते हैं।


5. बिरजू महाराज अपना सबसे बड़ा जज अपनी माँ को क्यों मानते थे?

उत्तर ⇒ बिरजू महाराज अपना सबसे बड़ा जज अपनी अम्माँ को इसलिए मानते क्योंकि उनकी अम्माँ अपनी कुल परंपरा से आती हुई कथक नर्तकों की महान विरासत अपनी स्मृतियों में सहेजकर रखती थीं और बच्चे के पिता के निधन के बाद उसकी देख-भाल के अलावा रियाज पर नजर रखती थीं। गड़बड़ी होने पर बाबूजी की तस्वीर दिखाकर हौसला बढ़ाती थीं।


6. बिरजू महाराज कौन-कौन से वाद्य बजाते हैं?

उत्तर ⇒ बिरजू महाराज महान नर्त्तक थे। उनके कार्यक्रम देश के भिन्न-भिन्न कोने में हुए, विदेशों में नाम कमाया। लेकिन नर्त्तन के अलावा, वाद्यवादन का भी काफी शौक था। वे सितार, तबला, हारमोनियम, गिटार, सरोद, बाँसुरी आदि बजाया करते थे।


7. नृत्य की शिक्षा के लिए पहले-पहल बिरजू महाराज किस संस्था से जुड़े और वहाँ किनके सम्पर्क में आए?

उत्तर ⇒ बिरजू महाराज ने नृत्य की शिक्षा अपने पिता से ही पाई किन्तु जहाँ तक संस्थाओं का प्रश्न है, वे दिल्ली की हिन्दुस्तानी डॉन्स म्युजिक और बाद में हिन्दुस्तानी डॉन्स अकादमी से जुड़े हिन्दुस्तानी डॉन्स म्यूजिक में निर्मला जोशी थीं और अकादमी में कपिला जी और लीला कृपलानी आदि।


⇒ दीर्घ उत्तरीय प्रश्न ⇐


1. बिरजू महाराज के गुरु कौन थे? संक्षिप्त परिचय दें।

उत्तर ⇒  बिरजू महाराज के गुरु उनके पिताजी थे। उन्होंने स्वयं अपने पिता का शिष्य होने की बात स्वीकार की है। वे कहते हैं—’शागिंद तो बाबूजी का हूँ।’ ऐसा इसलिए कहा क्योंकि उनके बाबूजी जहाँ भी जाते उन्हें साथ ले जाते। जहाँ आयोजनों में उन्हें नृत्य करना होता वहाँ पहले बेटे बिरजू महाराज को नृत्य करने का अवसर प्रदान करते तथा खुद तबला वादन करते। बिरजू महाराज के पिता एक प्रख्यात नर्तक थे। उन्होंने 22 वर्षों तक रामपुर की नवाब के यहाँ अपनी कला का प्रदर्शन किया। 54 वर्ष की अवस्था में लू लगने से उनकी मृत्यु हो गई।


2. मैं तो बेचारा उसका असिस्टेंट हूँ। उस नाचने वाले का-सप्रसंग व्याख्या करें।

उत्तर ⇒  प्रस्तुत पंक्तियाँ हमारी पाठ्य पुस्तक ‘गोधूलि’ भाग-2 में संकलित नर्तक श्री बिरजू महाराज के साक्षात्कार ‘जित जित मैं निरखत हूँ’ शीर्षक पाठ से उद्धृत है। बिरजू महाराज कहते हैं कि असली नर्तक तो ईश्वर है, उसका नृत्य ही सृष्टि है। मैं तो उसका सहायक हूँ, नृत्य सिखाने में उसका मददगार हूँ। बिरजू महाराज की इस स्वीकारोक्ति में ईश्वर के प्रति उनका समर्पण भाव और कृतज्ञता एवं विनम्रता प्रकट होती है।


3. रश्मि वायपेयी द्वारा प्रदत्त वर्णन के आधार पर बिरजू महाराज का रेखाचित्र प्रस्तुत कीजिए। अथवा, बिरजू महाराज की कला के बारे में आप क्या जानते हैं, समझाकर लिखें।

उत्तर ⇒ बिरजू महाराज लखनऊ घराने की सातवीं पीढ़ी के कथक नर्तक हैं। जन्म- वसंत पंचमी, 4 फरवरी, 1938 ई०। दोहरा बदन, मँझोला कद, मुँह पर चेचक के हल्के दाग और बड़ी-बड़ी आँखें। होठों पर मनमोहिनी मुस्कुराहट! सौम्य और मिलनसार ऐसे कि पूछिए मत। सबसे बढ़कर चेहरे पर निष्कपट बच्चे-सा भोलापन।

बातें करते-करते अचानक कहीं खो जाना, उँगलियों पर निरन्तर गिनती में उलझे रहना और चेहरे पर नितांत शून्य भाव बेचैन कर देता है।

यही बिरजू महाराज जब तैयार होकर मंच पर आते हैं तो गजब ढाते हैं-लोच, फुर्ती और हल्कापन देखने लायक होती है। धीरे-धीरे कथक नृत्य का सौंदर्य मूर्तिमान हो उठता है।

कथक के व्याकरण और कौशल को बिरजू महाराज अपने नृत्य द्वारा सौंदर्य-बोध देते और उसे काव्यमय करते हैं। अथक साधना, एकांत-निष्ठा एवं कल्पनाशील सृजन, जीवंत उदाहरण हैं।

सच्चे गुरु को देखना हो, तो कोई बिरजू महाराज को देखे। सब-कुछ सबके लिए। न कही दुराव, न छुपाव। बेटा-बेटी और शिष्य में कोई भेद नहीं। वस्तुतः कथक और बिरजू महाराज एक-दूसरे के पर्याय हैं-बिरजू महाराज ही कथक हैं और कथक बिरजू महाराज हैं।


4. बिरजू महाराज के जीवन में सबसे दुखद समय कब आया? इससे संबंधित प्रसंग का वर्णन कीजिए।

उत्तर ⇒ बिरजू महाराज के जीवन का सबसे दुखद प्रसंग था उनके पिता की मृत्यु। तब बिरजू महाराज साढ़े नौ साल के थे। घर की हालत खास्ता थी। इतने भी पैसे नहीं थे कि उनका दसवाँ हो सके। इसके लिए बिरजू महाराज ने दो कार्यक्रम करके 500 रु० इकट्ठे किए तब तेरहवीं हुई। पिता की मृत्यु और वैसी हालत में नाचना बिरजू महाराज के लिए बड़ा दुखद था।


5. पुराने और आज के नर्तकों के बीच बिरजू महाराज क्या फर्क पाते हैं?

उत्तर – पुराने जमाने में नर्तक को नाचने के लिए इतना बढ़िया मंच नहीं मिलता था। लोगों को पीछे खिसका कर जगह बनाई जाती थी नीचे …….. गलीचा …… गलीचे पर चाँदनी और चाँदनी गलीचे के नीचे जमीन पर कहीं गड्ढे, कही खाँच ….. कहीं कुछ। आज की तरह एयर कंडीशन न था, हाथ के पंखे थे। आज तो चिकना मंच, एयर कंडीशन आदि सब कुछ है। पहले के नर्तक अच्छे नाचने वाले की तारीफ करते थे। आज तो दूसरे की सराहना नहीं करते, बस निंदा करते हैं कि यह नहीं आता, वह नहीं …… बस नाचता है केवल ।

Class 10th Hindi VVI Subjective Question 2022


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Abhi Kumar

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