Class 10th Ka Hindi Subjective Question Answer | Hindi परंपरा का मूल्यांकन Subjective

Class 10th Ka Hindi Subjective Question 2022 :-  दोस्तों यदि आप लोग इस बार Matric Pariksha 2022 Hindi Subjective की तैयारी कर रहे हैं तो यहां पर आपको Class 10th Hindi Godhuli Bhag 2 Ka Subjective  दिया गया है जो आने वाले Matric Exam 2022 Hindi Subjective Question के लिए काफी महत्वपूर्ण है | Class 10th Science Objective 


1. लेखक के अनुसार सफलता और चरितार्थता क्या है?

उत्तर लेखक के अनुसार सफलता और चरितार्थता में अंतर है। मनुष्य मारणास्त्रों के संचयन से, उपकरणों के बाहुल्य से उस वस्तु को पा सकता है जिससे उसने बड़े आडम्बर के साथ सफलता नाम दे रखा है। परंतु मनुष्य की चरितार्थता प्रेम में है, मैत्री में है, त्याग में है, अपने को सबके मंगल के लिए नि:शेष भाव से दे देने में है।


2. लेखक ने नया सिकन्दर किसे कहा है और क्यों?

उत्तरजो व्यक्ति भारत के साहित्यिक, धार्मिक, सांस्कृतिक, प्राकृतिक एवं राजनैतिक गौरवपूर्ण इतिहास से अनजान है। उसे नया सिकन्दर कहा है।


3. साहित्य के निर्माण में प्रतिभा की भूमिका को स्वीकार करते हुए लेखक किन खतरों से आगाह करता है? 

उत्तर यह निर्विवाद है कि विशेष सामाजिक परिस्थितियों में कला या साहित्य का विकास होता है किन्तु समान सामाजिक परिस्थितियाँ होने पर भी कला का विकास हो, यह जरूरी नहीं है। यहाँ असाधारण प्रतिभाशाली लोगों की भूमिका होती है। वे ही मानव-मन की अतल गहराइयों में डूबकर साहित्य के मोती निकालते हैं। शेष लकीर के फकीर होते हैं। किन्तु इन विशिष्ट लोगों की कृतियाँ भी पूर्णतः हित नहीं होतीं। इसलिए कुछ नया करने की गुंजाइश रहती है। लेकिन व्यक्ति पूजा से सावधान रहना चाहिए, तभी साहित्य स्थायी महत्त्व का होगा।


4. राजनीतिक मूल्यों से साहित्य के मूल्य अधिक स्थायी कैसे होते हैं?

उत्तर ⇒  राजनीतिक मूल्य तात्कालिक या अस्थायी होते हैं क्योंकि राजनीति का ताल्लुक भौतिक जगत् से होता है। परिस्थितियों के साथ इसके मूल्य में बदलाव आता है जबकि साहित्य का संबंध मनुष्य की भावनाओं से होता है और भावनाएँ सदा तरोताजा होती हैं। यही कारण है कि राजनीतिक मूल्यों से साहित्यिक मूल्य अधिक स्थायी होते हैं। आज ब्रिटिश साम्राज्य का कोई नामलेवा नहीं है किन्तु शेक्सपियर, मिल्टन और शेली संसार के जगमगाते सितारे हैं।

Class 10th Ka Hindi Subjective 


5. परम्परा ज्ञान किनके लिए आवश्यक है और क्यों?

उत्तरजो लोग साहित्य में युग परिवर्तन चाहते हैं, जो लकीर के फकीर नहीं हैं और जो रूढ़ियाँ तोड़कर क्रांतिकारी साहित्य की रचना करना चाहते हैं, उनके लिए साहित्य की परम्परा का ज्ञान जरूरी है। ऐसा इसलिए कि साहित्य की परम्परा के ज्ञान से ही प्रगतिवादी दृष्टिकोण विकसित होता है और परिवर्तन-मूलक साहित्य का जन्म होता है।


6. साहित्य का कौन-सा पक्ष अपेक्षाकृत स्थायों होता है? इस संबंध में लेखक की राय स्पष्ट करें।

उत्तर साहित्य का संबंध मनुष्य से है। किन्तु मनुष्य आर्थिक जीवन के अतिरिक्त भी प्राणी के रूप में अपना जीवन जीता है। बहुत-सी आदिम भावनाएँ साहित्य में प्रतिफलित होती और इस प्रकार इसे मनुष्य से जोड़ती हैं। वस्तुत: साहित्य मात्र विचारधारा नहीं है। इसमें मनुष्य का इन्द्रिय-बोध, उसकी भावनाएँ भी व्यॉजत होती हैं। साहित्य का यही पक्ष अपेक्षाकृत स्थायी होता है।


7. मनुष्य और परिस्थितियों का संबंध कैसा है?

उत्तरमनुष्य और परिस्थितियों का संबंध द्वन्द्वात्मक है।


8. भारतीय संस्कृति के निर्माण में किसका सर्वाधिक योगदान है?

उत्तरभारतीय संस्कृति के निर्माण में भारत के कवियों का सर्वाधिक योगदान है।


9. साहित्य में युग परिवर्तन चाहनेवालों के लिए क्या जरूरी है?

उत्तरसाहित्य में युग परिवर्तन चाहने वालों के लिए साहित्य की परम्परा का ज्ञान आवश्यक है।


10. साहित्य का कौन-सा पक्ष अपेक्षाकृत स्थायी होता है?

उत्तरसाहित्य के जिस भाग में मनुष्य का इन्द्रिय-बोध, उसकी भावनाएँ व्यजित होती हैं, वह पक्ष अपेक्षाकृत स्थायी होता है।


⇒ दीर्घ उत्तरीय प्रश्न ⇐


1. ‘परम्परा का मूल्यांकन’ पाठ का सारांश लिखिए। ‘या. साहित्य और समाज में युग परिवर्तन के लिए साहित्य की परम्परा का ज्ञान और विवेक दृष्टि आवश्यक है। कैसे? स्पष्ट कीजिए।

उत्तरजो लोग साहित्य में युग परिवर्तन चाहते हैं, रूढ़ियाँ तोड़कर साहित्य-रचना करना चाहते हैं, उनके लिए साहित्य की परम्परा का जान जरूरी है। साहित्य की परम्परा का मूल्यांकन करते हुए सबसे पहले उस साहित्य का मूल्य निर्धारित किया जाता है जो जनहित को प्रतिबिम्बित करता है। नकल करके लिखा जानेवाला साहित्य अधम कोटि का होता है। महान् रचनाकार किसी का अनुसरण नहीं करते, पूर्ववर्ती कवियों की रचनाओं का मनन कर, स्वयं सीखते और नयी परम्पराओं को जन्म देते हैं। उनकी आवृत्ति नहीं होती। शेक्सपियर के नाटक दुबारा नहीं लिखे गए।

साहित्य के निर्माण में प्रतिभाशाली मनुष्यों की भूमिका निर्णायक होती है। किन्तु सब श्रेष्ठतम हो यह जरूरी नहीं है। पूर्णतः निर्दोष होना भी कला का दोष है। यही कारण है कि अद्वितीय उपलब्धियों के बाद भी कुछ नये की संभावना बनी रहती है। यही कारण है कि राजनीतिक मूल्यों की अपेक्षा साहित्यिक मूल्य अधिक स्थायी हैं।

साहित्य के विकास में जन समुदायों और जातियों की विशेष भूमिका होती है। यूरोप के सांस्कृतिक विकास में यूनानियों की भूमिका कौन नहीं जानता? दरअसल, इतिहास का प्रवाह विच्छिन्न है और अविच्छिन्न भी। मानव समाज बदलता और अपनी पुरानी अस्मिता कायम रखता है। इस अस्मिता का ज्ञान अत्यन्त महत्त्वपूर्ण है। जिस समय राष्ट्र पर मुसीबत आती है, यह अस्मिता प्रकट हो जाती है। यह प्रेरक शक्ति का काम करती है। हिटलर के आक्रमण के समय रूस में इसी अस्मिता ने काम किया। इसी प्रकार, भारत में राष्ट्रीयता राजनीति की नहीं, इसके इतिहास और संस्कृति की देन है और इसका श्रेय व्यास और वाल्मीकि को है। कोई भी देश बहुजातीय राष्ट्र के रूप में भारत का मुकाबला नहीं कर सकता।

साहित्य की परम्परा का पूर्ण ज्ञान समाजवादी व्यवस्था में ही संभव है। समाजवादी संस्कृति पुरानी संस्कृति को आत्मसात कर आगे बढ़ती है। हमारे देश की जनता जब साक्षर हो जाएगी तो व्यास और वाल्मीकि के करोड़ों पाठक होंगे। सुब्रह्मण्यम भारती और रवीन्द्रनाथ ठाकुर को सारी जनता पढ़ेगी। तब मानव संस्कृति में भारतीय साहित्य का गौरवशाली नवीन योगदान होगा।


2. बहुजातीय राष्ट्र की हैसियत से कोई भी देश भारत का मुकाबला क्यों नहीं कर सकता ?

उत्तर ⇒  भारत एक ऐसा राष्ट्र है जहाँ बहुत सारी जातियाँ बसती हैं। 17 A सबकी अपनी भाषा है, रीति-रिवाज हैं लेकिन सबका इतिहास एक है और संस्कृति एक है। राष्ट्र के गठन में इतिहास और संस्कृति की बड़ी भूमिका होती है। यहाँ की राष्ट्रीयता किसी एक जाति की दूसरी पर विजय से निर्मित नहीं है। इसके पीछे इतिहास और संस्कृति की अविच्छिन्न धारा है। संस्कृति के निर्माण में यहाँ के कवियों का अमूल्य योगदान है। रामायण और महाभारत की कथाएँ सम्पूर्ण देश में पढ़ी-सुनी जाती हैं, मन्दिर, मस्जिद, गुरुद्वारा और गिरजाघर सब गाँव-शहर में मिलते हैं। इस प्रकार, बहुजातीय राष्ट्र की ईसियत से कोई भी देश भारत का मुकाबला नहीं कर सकता है।

Class 10th Ka Hindi VVI Subjective Question 2022


3. विभाजित बंगाल में विभाजित पंजाब की तुलना कीजिए, तो ज्ञात हो जाएगा कि साहित्य की परम्परा का ज्ञान कहाँ ज्यादा है, कहाँ कम है और इस न्यूनाधिक ज्ञान के सामाजिक परिणाम क्या होते हैं—सप्रसंग व्याख्या करें।

उत्तरप्रस्तुत पंक्तियाँ हमारी पाठ्य पुस्तक ‘गोधूलि’ भाग-2 में संकलित आलोचक रामविलास शर्मा के निबंध ‘परम्परा का मूल्यांकन’ से उद्धृत है। साहित्य की परम्परा के मूल्यांकन और महत्व को इस पंक्ति के माध्यम से बताया गया है।

लेखक कहता है कि जहाँ के लोगों में साहित्य की परम्परा का ज्ञान होता है, वहाँ के लोग जुदा होकर भी भावनात्मक दृष्टि से एक होते हैं। इस संदर्भ  में वह बंगाल के लोगों का उदाहरण देता है। अविभाजित बंगाल में साहित्य परम्परा का ज्ञान था। विभाजित होने पर भी बंगाल और बंगला देश भाषायी और सांस्कृतिक दृष्टि से एक हैं जबकि अविभाजित पंजाब में ऐसा कुछ नहीं है। पाकिस्तान के पंजाब और हिन्दुस्तान के पंजाब में पर्याप्त अन्तर है।


4. किस तरह समाजवाद हमारी राष्ट्रीय आवश्यकता है? इस प्रसंग में लेखक के विचारों पर प्रकाश डालें। 

उत्तरलेखक का विचार है कि पूँजीवादी व्यवस्था में शक्ति का बेहिसाब अपव्यय होता है और मजदूर वर्ग का शोषण भी देश की पूँजी कुछ ही व्यक्तियों के हाथों में सिमट जाती है। समाजवाद में सम्पत्ति सार्वजनिक होती है। अतएव देश के साधनों का अच्छा उपयोग समाजवादी व्यवस्था में ही संभव है। लेखक दृष्टान्त देता है कि अनेक छोटे-बड़े राष्ट्र जो भारत से पिछड़े थे, समाजवादी व्यवस्था अपनाकर समृद्ध और शक्तिशाली हो गए हैं। अतएव, लेखक का विचार है कि समाजवाद हमारी राष्ट्रीय आवश्यकता है सुख और समृद्धि के लिए।


5. साहित्य में विकास प्रक्रिया उसी तरह संपन्न नहीं होती, जैसे समाज में सप्रसंग व्याख्या करें।

उत्तर ⇒  ‘परम्परा का मूल्यांकन’ शीर्षक निबंध की प्रस्तुत पंक्ति द्वारा रामविलास शर्मा यह बताना चाहते हैं कि साहित्य और समाज का अभिन्न जाता है, किन्तु समाज और साहित्य का विकास समान रूप से नहीं होता। समाज के विकास में अर्थ की भूमिका अधिक होती है, कल-कारखानों के विकास से समाज विकसित होता है, परन्तु साहित्य के लिए हृदय की समृद्धि जरूरी होती है-प्राणिमात्र के लिए सद्भावना प्रेम और सहानुभूति।


6. परंपरा का मूल्यांकन’ निबंध का समापन करते हुए लेखक कैसा स्वप्न देखता है? उसे साकार करने में परंपरा की क्या भूमिका हो सकती है? विचार करें।

उत्तरपरंपरा का मूल्यांकन’ शीर्षक निबंध में लेखक यह बताता है कि जब इस देश में समाजवादी व्यवस्था कायम हो जाएगी, तब हमारी जनता को अपने साहित्य की परंपरा का पूर्ण ज्ञान हो सकेगा। अभी हम निर्धन और निरक्षर हैं। हमारी जनता साहित्य की महान उपलब्धियों के ज्ञान से वंचित है। वाल्मीकि और व्यास के करोड़ों पाठक बन जाएँगे। भारत में सांस्कृतिक आदान-प्रदान होने लगेगा। विभिन्न भाषाओं में लिखा हुआ साहित्य जातीय सीमाएँ लांघकर सम्पूर्ण देश की संपत्ति बनेगा।

अंग्रेजी ज्ञानार्जन की भाषा बन जायेगी। मानव संस्कृति की विशद् धारा भारतीय साहित्य की गौरवशाली परंपरा का नवीन योगदान होगा। इस स्वप्न को साकार करने में हमारी राष्ट्रीय साहित्य परंपरा की बड़ी भूमिका होगी। सम्पूर्ण भारतीय साहित्य पठन-पाठन के लिए सबके आगे अनुवाद और मूल, दोनों ही रूपों में सुलभ रहेगा।


7. साहित्य मनुष्य के सम्पूर्ण जीवन से संबद्ध है। आर्थिक जीवन के अलावा मनुष्य एक प्राणी के रूप में भी जीवन बिताता है। साहित्य में उसकी बहुत-सी आदिम भावनाएँ प्रतिफलित होती हैं जो उसे प्राणिमात्र से जोड़ती हैं। इस बात को बार-बार कहने में कोई हानि नहीं है कि साहित्य विचारधारा मात्र नहीं है। उसमें मनुष्य का इन्द्रिय-बोध, उसकी भावनाएँ भी व्यजित होती है। साहित्य का यह पक्ष अपेक्षाकृत ज्यादा स्थायी होता है-गद्यांश का आशय क्या है?

उत्तर ⇒  प्रस्तुत पाठ परम्परा का मूल्यांकन शीर्षक से लिया गया है। इसके लेखक रामविलास शर्मा है।

साहित्य मनुष्य के सम्पूर्ण जीवन से संबद्ध है। उसकी बहुत-सी भावनाएँ इसमें प्रतिफलित होती हैं जो उसे प्राणिमात्र से जोड़ती हैं। साहित्य में मनुष्य का इन्द्रिय ध, उसकी भावनाएँ व्यजित होती हैं। साहित्य का यह पक्ष अपेक्षाकृत स्थायी होता है।

लेखक का आशय यह है कि साहित्य और जीवन में घनिष्ठ संबंध है। मनुष्य की बहुत सी आदिम भावनाएँ, उसकी भावनाएँ साहित्य में व्यजित होती हैं जो उसे प्राणिमात्र से जोड़ती हैं।

Class 10th Hindi Ka Subjective Question 2022


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