Psychology Subjective QuestionAnswer 2024 | Class 12 Psychology Subjective Question 2024

Psychology Subjective Question Answer 2024 :-  दोस्तों यदि आप लोग 12th Psychology Subjective Questions Paper 2024 की तैयारी कर रहे हैं तो यहां पर आपको  Psychology important Subjective Question 2024 का महत्वपूर्ण प्रश्न दिया गया है| 12th Exam Psychology Question Answer 2024, c


Psychology Subjective Question Answer 2024

1. आत्म के संज्ञानात्मक एवं व्यवहारात्मक पक्ष का वर्णन करें। (Describe the cognitive and behavioural aspects of self.)

उत्तर   आत्म की अभिव्यक्ति के दो पक्ष होते हैं जिन्हें संज्ञानात्मक पक्ष (cognitive aspect ) तथा व्यवहारात्मक पक्ष (behavioural aspects) कहा जाता है। संज्ञानात्मक पक्ष का अर्थ यह है कि व्यक्ति अपनी आत्म के अनुकूल ही किसी उद्यीपन के संबंध में धारणा बनाता है। अतः आत्म के संज्ञानात्मक तथा व्यवहारात्मक पक्षों को निम्नलिखित भागों में विभाजित किया जा सकता है…

(i) आत्म-सम्मान (Self-esteem) ⇒ आत्म का एक संज्ञानात्मक पक्ष है आत्म सम्मान जिसके कारण व्यक्ति अपने आपको सम्मानित समझता है। इसलिए वह ऐसा व्यवहार करता है। जिससे उसे सम्मान मिलता है और ऐसा व्यवहार नहीं करता है, जिससे उसको सम्मान मिलने की संभावना नहीं होती है। उच्च व्यवहारों पर इस आत्मा पक्ष का गहरा प्रभाव देखा जाता है।

(ii) आत्म-सक्षमता (Self-efficiency) — आत्म का एक महत्त्वपूर्ण संज्ञानात्मक तथा व्यवहारात्मक पक्ष आत्म-सक्षमता है। आत्म सक्षमता का सुंदर उदाहरण बैण्डुरा (Bandura) के प्रेक्षणात्मक अधिगम (observational learning) में मिलता है। उन्होंने आक्रमणात्मक व्यवहार (aggressive behaviour) के अधिगम में देखा कि समान आक्रामक व्यवहारों का निरीक्षण करने • के बाद कुछ बच्चों ने उसी तरह का आक्रामक व्यवहार करना सीख लिया। कुछ बच्चों ने नहीं सीखा।

(iii) आत्म-नियमन (Self-regulation)— आत्म-नियमन का तात्पर्य व्यक्ति के अपने व्यवहार को संगठित करने की योग्यता से है। कारण, ऐसे लोगों में वातावरण के अनुसार अपने व्यवहार में परिवर्तन लाने की योग्यता पाई जाती है।


2. व्यक्तित्व के शीलगुण या विशेषक उपागम का वर्णन करें। (Describe trait approach to personality.)

उत्तर ⇒   विशेषक उपागम या सिद्धांत के अनुसार व्यक्तित्व की रचना भिन्न-भिन्न शीलगुण से हुई है। अतः व्यक्तित्व के निर्माण में सहायक मौलिक तत्त्वों (basic components) को विशेषक या शीलगुण कहते हैं। ये मौलिक तत्त्व या शीलगुण अपेक्षाकृत स्थिर (relatively stable) होते हैं और विभिन्न परिस्थितियों में व्यक्ति के व्यवहार द्वारा प्रकट होते हैं।

(क) आलपोर्ट का दृष्टिकोण – आलपोर्ट ने शीलगुणों को तीन वर्गों में विभाजित किया— (i) मूल – शीलगुण (cardinal traits), (ii) केंद्रीय शीलगुण (central traits) तथा (iii) अनुषंगी शीलगुण (secondary traits)। मूल शीलगुण का तात्पर्य ऐसे विशेषकों से है, जिनका प्रभाव व्यक्ति के व्यवहार पर व्यापक रूप से पड़ता है। केंद्रीय शीलगुणों का तात्पर्य ऐसे विशेषकों से है, जो मूल शीलगुणों की तरह व्यापक नहीं भी होने पर व्यक्ति के विशिष्ट व्यवहार (characteristic behaviour) को निर्धारित करने में महत्त्वपूर्ण स्थान रखते हैं ।

(ख) कैटेल का दृष्टिकोण  कैटेल ने व्यक्तित्व-शीलगुणों को दो भागों में विभाजित किया–(i) सतही शीलगुण ( surface traits) तथा (ii) मूल-शीलगुण (source traits ) । उनके अनुसार शीलगुण का अर्थ मानसिक संरचना (mental structure) है, एक मानिकस अनुमान (inference) है, जो व्यवहार के निरीक्षण से प्रकट होता है और जो व्यवहार में स्थिरता या संगति (consistency) उत्पन्न करता है।

(ग) आइजिंक ने व्यक्ति की व्याख्या तीन द्विध्रुवीय (bipolar dimension) के रूप में किया है और प्रत्येक विमा में कई तरह के विशिष्ट शीलगुण होते हैं, जो व्यवहार का निर्धारण करते हैं। वे तीन विमाएँ हैं

(i) बर्हिमुखता — अंतर्मुखता (ii) स्नायुविकृति बनाम सांवेगिक स्थिरता तथा (iii) मनोविक्षिप्तता बनाम मैत्रीपूर्णता ।


3. व्यक्तित्व मापन के एक उपकरण के रूप में साक्षात्कार विधि के गुणों एवं दोषों का वर्णन करें।

उत्तर ⇒ साक्षात्कार एक ऐसा व्यवहारात्मक विश्लेषण विधि है जिसमें व्यक्तित्व मापन आमने-सामने की परिस्थिति में कुछ प्रश्नों को पूछकर उत्तरदाता द्वारा दी गयी प्रतिक्रियाओं का विश्लेषण के आधार पर व्यक्तित्व आकलन किया जाता है। साक्षात्कार मूलतः दो तरह के होते हैं संरचित साक्षात्कार तथा असंरचित साक्षात्कार ।

साक्षात्कार विधि के निम्नांकित गुण

1. साक्षात्कार वधि द्वारा व्यक्तित्व के व्यक्तित्व का केवल अवलोकन ही नहीं होता है, बल्कि इसके द्वारा व्यक्तित्व का गहन अध्ययन भी संभव होता है।

2. साक्षात्कार विधि का दूसरा प्रमुख गुण है कि इस विधि द्वारा व्यक्ति के व्यक्तित्व का केवल अवलोकन ही नहीं होता है, बल्कि इसके द्वारा व्यक्तित्व का गहन अध्ययन भी संभव होता है।

3. इस विधि द्वारा बालकों तथा अशिक्षित व्यक्तियों का भी अध्ययन संभव है क्योंकि इससे उसके विचारों, अनुभवों तथा मनोवृत्तियों का भलीभाँति अध्ययन किया जा सकता है।

4: इस विधि द्वारा अतीत की घटनाओं का भी अध्ययन संभव है।

इस विधि की कुछ दोष भी जो निम्नांकित है

1. साक्षात्कार विधि एक जटिल विधि है। इस विधि की सफलता के लिए आवश्यक तैयारी तथा सौहार्दपूर्ण संबंध स्थापित करना एक जटिल कार्य है।

2. इस विधि में साक्षात्कारकर्ता पूर्णतः तटस्थ न होकर अपनी निजी भावनाओं और अभिवृत्तियों से प्रभावित होते हैं। अतः व्यक्तित्व मूल्यांकन में वस्तुनिष्ठता का अभाव हो जाता है।

3. साक्षात्कार विधि का एक दोष यह भी है कि इसमें बहुत अधिक समय एवं महँगी विधि है।

इस प्रकार उपर्युक्त सीमाओं के बावजूद आज भी साक्षात्कार विधि व्यक्तित्व के संबंध में विश्वसनीय एवं स्वाभाविक जानकारी देने में सक्षम है।


4. मनोवृत्ति का निर्माण किस तरह से होता है? –

उत्तर ⇒ मनोवृति संज्ञानात्मक, भावनात्मक तथा व्यवहारपरक तत्त्वों का एक संगठन होता है। “जिसके निर्माण में निम्नलिखित कारकों की भूमिका होती है—

(i) परिवार एवं स्कूली वातावरण (Family and school environment)

(ii) व्यक्तिगत अनुभूतियाँ (Personal experiences) (iii) संदर्भ समूह (Refrence group)

(iv) संचार माध्यम (Channel of communcation)

(v) रूढियुक्तियाँ (Sterotype)


5. मन स्नायुविकृति तथा मनोविकृति में अंतर स्पष्ट करें।

उत्तर ⇒  (i) मनःस्नायु विकृति एक साधारण मानसिक रोग है। इसमें रोगी के व्यवहार में कोई खास अंतर नहीं होता। परंतु मनोविकृति एक जटिल तथा असाध्य मानसिक रोग है। इसमें व्यक्ति का व्यक्तित्व विच्छिन्न हो जाता है।

(ii) मनः स्नायु विकृति के रोगी में भाषा तथा चिन्तन दोषपूर्ण नहीं होता। परंतु मनोविकृति के रोगी में भाषा तथा चिंतन की प्रक्रिया असंगत, अतार्किक तथा निरर्थक होते हैं।

(iii) मनःस्नायु विकृति के रोगी में आत्मनियंत्रण एवं आत्मसंयम पाया जाता है। परंतु मनोविकृति के रोगी का संबंध वास्तविकता से नहीं रहता।

(iv) मनःस्नायु विकृति के रोगियों का संबंध वास्तविकता से बना रहता है। परंतु मनोविकृति के रोगियों को समाज की चिन्ता नहीं रहती। 

(v) मनःस्नायु विकृति के लक्षण अस्थायी होते हैं। परंतु मनोविकृति के लक्षण स्थायी होते हैं।

(vi) मनःस्नायु विकृति के रोगियों की चिकित्सा सम्मोहन, संकेत, मनोविश्लेषण आदि प्रविधियों से सरलतापूर्वक किया जा सकता है। परंतु Psychosis के रोगियों की चिकित्सा में उपरोक्त पद्धतियों का कोई प्रभाव नहीं पड़ता है।

(vii) मनःस्नायु विकृति के रोगी को अपने हालत का ज्ञान रहता है। परंतु मनोविकृति के रोगी को अपने हालत का ज्ञान नहीं रहता।

इस प्रकार स्पष्ट है कि मनःस्नायु विकृति और मनोविकृति में बहुत अंतर है। यह अंतर मात्रा का होता है। इसके स्वरूप, लक्षण, निदान एवं उपचार, आदि में भेद है।

Psychology Subjective Question Answer


6. दुश्चिता विकार के अर्थ एवं प्रकारों का वर्णन करें।

उत्तर ⇒  चिन्ता विकृति का तात्पर्य बाधात्मक, संवेगात्मक तथा क्रियात्मक प्रक्रियाओं की साधारण असामान्यताएँ हैं और जिसके मौलिक लक्ष्यों का संबंध चिन्ता से होती है। इसके निम्नलिखित प्रमुख प्रकार है

(i) दुर्भाति–  एक भय है जो अविवेकी होता है और उसका संबंध ऐसी वस्तु या परिस्थिति से होता है जो वस्तुतः हानिप्रद या खतरनाक नहीं होती है। इसीलिए इसे असामान्य भय कहते हैं।

लक्षण बिल्ली से डरना, अकेले घर से बाहर जाने में डर आदि।

(ii) आंतरिक विकृति (Panic) — इस विकृति का अर्थ है एक प्रकार का चिन्ता विकृति जिस कारण व्यक्ति आंतरिक आत्मय का अनुभव करता है। लक्षण तीव्र तथा स्वतः प्रवर्तित चिन्ता, अव्यक्तित्व का अभाव।

(iii) मनोवृत्ति बाध्यता विकृति⇒  मनोग्रसित एक मानसिक क्रिया या विचार है जो रोगी के इच्छा के विरुद्ध होता है तथा रोगी का इस पर कोई नियंत्रण नहीं होता है। लक्षण अनावश्यक विचारों की पुनरावृत्ति, संदेह, अतार्किक कार्यों की पुनरावृत्ति ।

(iv) सामान्यीकृत चिन्ता विकृति ⇒ इस विकृति में व्यक्ति उत्तेजना परिस्थिति के बिना प्रभावित हुए ही चिन्ता से ग्रसित रहता है। लक्षण व्यक्ति उत्तेजित तथा बेचैन रहता है तथा विश्राम करने में सक्षम नहीं होता है, रोगी में कई शारीरिक लक्षण विकसित होते हैं जैसे पसीना आना, हृदय गति बढ़ना, श्वास गति में तेजी इत्यादि।

(v) उत्तरआघातीय प्रतिबल विकृति  यह चिन्ता विकृति का एक प्रकार है जिसके कारण व्यक्ति पूर्व घटित विशिष्ट प्राकृतिक या मानव घटना से संबद्ध संवेगात्मक तथा मनोवैज्ञानिक समस्याओं से उसका समायोजन बिगड़ जाता है। लक्षण-विषाद, गंभीर तनाव, सांवेगिक शुन्यता आदि।


7. मनोदशा विकृति के प्रकारों एवं लक्षणों का वर्णन करें।

उत्तर ⇒  मनोदशा विकार (mood disorder) से तात्पर्य एक ऐसी मानसिक विकृति (mental disorder) से है जिसमें व्यक्ति के भाव (feeling), संवेग ( emotion) एवं संबंधित मानसिक दशाओं में इतना उतार-चढ़ाव होता है कि वह अपने दिन-प्रतिदिन के जीवन में समायोजन (adujstment), का सामान्य स्तर बनाकर नहीं रख पाता है और उसकी सामाजिक एवं पेशेवर जिंदगी में तरह-तरह की समस्याएँ उत्पन्न हो जाती है। मनोदशा विकृति के मुख्य तीन प्रकार हैं

(i) उन्माद विकार- उन्माद विकार एक बहुत ही कम होने वाला मनोदशा या भाव दशा विकार है। परंतु फिर भी जिन व्यक्तियों में यह विकार हो जाता है, वे अत्यधिक उत्तेजित रहते हैं, वे बातें अधिक करते हैं।

(ii) विषाद विकार – इस विकृति में व्यक्ति में उदासी एवं विषाद (depression) होता है। इसके अतिरिक्त इसमें भूख, नींद एवं शारीरिक वजन में कमी होते पाई जाती है।

(iii) द्विध्रुवीय विकार-  द्विध्रुवीय विकार से तात्पर्य वैसी विकृति से होती है जिसमें व्यक्ति या रोगी में बारी-बारी से विषाद (depression) तथा उन्माद (mania) दोनों ही तरह की अवस्थाएँ उत्पन्न होती हैं। यही कारण है कि इसे उन्मादी-विषादी विकार (manic depressive disorder) भी कहा जाता है।


8 प्रतिबल के स्रोतों का वर्णन करें। अथवा, प्रतिबल के मुख्य कारणों का उल्लेख करें।

उत्तर ⇒  व्यक्ति में विभिन्न तरह की घटनाओं एवं परिस्थितियों से प्रतिबल उत्पन्न होती है, जिसे प्रतिबल का स्रोत कहा जाता है। प्रतिबल के प्रमुख स्रोते निम्नांकित हैं.

(i) तनावपूर्ण घटनाएँ-  व्यक्ति की जिन्दगी में तरह-तरह की घटनाएँ घटती रहती है। जब व्यक्ति इन घटनाओं के प्रति ठीक ढंग से समायोजन नहीं कर पाता है तो वे तनाव उत्पन्न करती है। जीवन की ऐसी घटनाओं में प्रियजनों की मृत्यु, अप्रत्याशित दुर्घटना, परिवार के सदस्य में गंभीर बीमारी, तलाक, नौकरी का छूटना, पदावनति, घर के सदस्य का गुम जाना आदि प्रमुख है।

(ii) दैनिक उलझने ⇒ दिन प्रतिदिन की छोटी-छोटी उलझनों से भी प्रतिबल उत्पन्न होता है। ऐसे उलझनों तथा घटनाओं में अवाज, शोरगुल, अपराध, पास-पड़ोस में होने वाले झगड़ा, सामान को खरीदना, समयाभाव से उत्पन्न उलझन, आर्थिक उत्तरदायित्व का उलझन, कार्य से असंतुष्टि, भविष्य में नौकरी से हटाए जाने की संभावना आदि प्रमुख हैं।

(iii) अभिघातज़ अनुभूतियाँ  व्यक्ति की जिन्दगी में कुछ अभिघातज अनुभूतियाँ होती है जिनसे भी प्रतिबल उत्पन्न होता है। जैसे-अचानक मकान में आग लग जाना, सड़क दुर्घटना, भूकंप आना, सुनामी, बलात्कार का शिकार होना, आदि। इस तरह की परिस्थिति या घटना समाप्त होने के बहुत बाद भी इसके मात्र याद से ही व्यक्ति में प्रतिबल उत्पन्न होने लगता है।

(iv) अभिप्रेरकों का द्वन्द्व  जब दो या दो से अधिक अभिप्रेरक एक ही समय में अपने-अपने लक्ष्य की ओर व्यक्ति को खींचने लगते हैं, तो इससे व्यक्ति में द्वन्द्व उत्पन्न होता है, जिसके चलते व्यक्ति प्रतिबल का शिकार हो जाता है। जैसे यदि कोई छात्र न तो गणित पढ़ना चाहता है और न ही भौतिकी परंतु माता-पिता के दबाव के कारण उसे किसी एक को पढ़ना पड़ता है। इस द्वन्द्वात्मक परिस्थिति से प्रतिबल उत्पन्न होगा।

निष्कर्षत: यह कहा जा सकता है कि व्यक्ति में प्रतिबल के उत्पन्न करने के कई स्रोत है।

Psychology important Subjective Question 2024


9. सामान्य अनुकूलन संलक्षण क्या है? इसकी विभिन्न अवस्थाओं का वर्णन करें।

उत्तर ⇒  जब व्यक्ति दबाव में होता है, तो उसके शरीर पर जो प्रभाव पड़ते हैं, उसका एक विशेष पैटर्न होता है, जिसे सामान्य अनुकूलन संलक्षण कहा जाता है। इस संलक्षण का प्रतिपादन हंस सेल्ये (Hans Selye, 1974) द्वारा किया गया। इस संलक्षण के माध्यम से सेली दबाव के दौरान शरीर द्वारा किए जानेवाले प्रतिक्रियाओं के एक पैटर्न को बतलाने की कोशिश किया है। इस प्रक्रिया में निम्नलिखित तीन अवस्थाएँ होती हैं—

(A) सचेत प्रतिक्रिया की अवस्था (Phase of alarm reactions)- जब व्यक्ति के सामने कोई दबाव कारक आता है, । उसका अनुकम्पी तंत्रिकातंत्र उत्तेजित होकर एड्रीनल पीयूस कॉर्टेक्स तंत्र को उत्तेजित कर देता है जिसके फलस्वरूप रक्त में कुछ विशेष हॉरमोन्स की अधिकता हो जाती है और हृदय गति, रक्तचाप तथा रक्त में चीनी का स्तर बढ़ जाता है। इससे शरीर उस विशेष परिस्थिति से निबटने के लिए तैयार हो जाता है।

(B) तिरोध की अवस्था (Phase of resistance) — जब व्यक्ति के सामने दबावकारक स्थिति अभी भी मौजूद होता है, तो दूसरी अवस्था आरंभ होती है जिसे प्रतिरोध की अवस्था कहा जाता है। इससे व्यक्ति का शरीर अनुकम्पी तंत्रिका तंत्र की क्रियाओं के साथ समायोजन करते हुए प्रतिबल हारमोन्स का स्राव जारी रखता है ताकि दबावकारक के प्रभाव को शरीर कुछ रोक सके।

(C) परिश्रांति की अवस्था (Phase of exhausion) — जब व्यक्ति का सामना उसी दबाव कारक से या कोई अन्य नया दबाव कारक के साथ अभी भी बना रहता है, तो व्यक्ति के पास इससे निबटने के लिए जो संसाधन होते हैं, वे समाप्त हो जाते हैं। फलतः व्यक्ति का प्रतिरोध स्तर तेजी से नीचे गिरने लगता है तथा उसमें दबाव संबद्ध बीमारियाँ उत्पन्न होने की संभावना तीव्र हो जाती है।

निष्कर्ष स्वरूप हम कह सकते हैं कि तनाव का प्रभाव व्यक्ति में न केवल मनोवैज्ञानिक बल्कि शारीरिक दोनों प्रकार की प्रतिक्रियाएँ पैदा करता है।


10. असामान्य व्यवहार के कारणों का वर्णन करें।

उत्तर ⇒  असामान्य व्यवहार के निम्नलिखित कारण है

(A) जैविकीय कारण (Biological Causes) — असामान्य व्यवहार की उत्पत्ति में जैविक कारकों की अहं भूमिका होती है। ऐसे कारक जन्म या उससे पहले से ही व्यक्ति में प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से मौजूद रहते हैं और असामान्य व्यवहार की उत्पत्ति करते हैं। ऐसे कारकों में गुणसूत्रीय असामान्यता, दोषपूर्ण जीन्स, अंतस्रावी असंतुलन, जैवरसायन- असंतुलन आदि मुख्य है।

(B) मनोवैज्ञानिक कारण (Psychological Causes) — असामान्य व्यवहार की उत्पत्ति का कारण मनोवैज्ञानिक भी होता है। बहुत सारे मनोवैज्ञानिक एवं अंतरवैयक्तिक कारक हैं जो असामान्य व्यवहार की उत्पत्ति में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। इन कारकों में आरंभिक वंचन, अपर्याप्त जनकता तथा रोगात्मक पारिवारिक संरचना आदि प्रधान हैं।

  असामान्य व्यवहार की उत्पत्ति की व्याख्या करने के लिए मनोवैज्ञानिकों द्वारा कुछ विशेष मॉडल का भी वर्णन किया गया है। इन मॉडलों में मनोगतिकी मॉडल, व्यवहारवादी मॉडल, संज्ञानात्मक मॉडल तथा मानवतावादी – अस्तित्वपरक मॉडल प्रमुख है।

(C) सामाजिक-सांस्कृतिक कारण असामान्य व्यवहार की उत्पत्ति में सामाजिक सांस्कृतिक कारकों का भी अहं भूमिका होती है। इन कारकों में निम्न सामाजिक-आर्थिक स्तर, आर्थिक कठिनाइयाँ एवं बेरोजगारी, घटिया सामाजिक संबंध की समस्याएँ आदि प्रमुख है। विभिन्न अध्ययनों से स्पष्ट हुआ है कि घटिया सामाजिक संबंध से विषाद, वैवाहिक समस्याओं से मद्यपानता तथा मनोविदालिता, निम्न सामाजिक-आर्थिक स्तर से दुश्चिंता विकृति आदि होने की संभावना अधिक होती है।

  उपर्युक्त वर्णन से यह स्पष्ट होता है कि असामान्यताओं के अनेक कारण है।

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