Biology Subjective Question Answer 12th | 12th Biology Question Answer in Hindi

Biology Subjective Question Answer 12th :- दोस्तों यदि आप 12th Biology Question Answer in Hindi की तैयारी कर रहे हैं तो यहां पर आपको Biology Chapter 8 ( मानव स्वास्थ्य एवं रोग ) Subjective Question दिया गया है जो आपके 12th biology Subjective questions and answers in hindi के लिए काफी महत्वपूर्ण है | 12th biology Subjective questions and answers 2024


Biology Subjective Question Answer 12th

1 एंटीबॉडी (प्रतिपिंड) के कार्यों का वर्णन करें।

उत्तर ⇒ प्रतिपिंड के कार्य

(i) अपसोनाइजेशन बाहरी पदार्थ, जैसे बैक्टीरिया को एंटीबॉडी इस तरह से आवृत बँक देता है जिससे फैगोसाइट उसे पहचान सकता है। फैगोसाइट उसे नष्ट कर देता है। इस प्रक्रिया को अपसोनाइजेशन कहते है।

(ii) उदासीनता एंटीबॉडी बैक्टीरिया द्वारा स्त्रावित विषाक्त पदार्थ को उदासीन बना देता है।

 (iii) एग्लूटिनेशन एंटीबॉडीज एंटीजेन से संयुक्त होकर वृहत आकार अघुलनशील जटिल पदार्थ तैयार करता है, जो एंजीजेन के विशेष जैव कार्य में बाधा पहुँचाता है।


2. टायफॉयड (मियादी बुखार) बीमारी का रोगजनक, लक्षण, संक्रमण की विधा तथा उपचार के बारे में बताएँ

उत्तर ⇒ टायफॉयडटायफॉयड एक संक्रामक रोग है, जो सलमोनेला टाइफी नामक जीवाणु से कारण होता है। लक्षण इसमें सिरदर्द, आमाशय-दर्द के साथ-साथ मानसिक तनाव होता है। संक्रमण की विधा सलमोनेला टाइफी नामक जीवाणु रोगी के मलमूत्र एवं रोगी के रक्त में पाया जाता है। घरेलू मक्खी रोगी के मलमूल, भोज्य पदार्थों एवं पेय पदार्थों पर बैठकर उन्हें दूषित कर देती है और बीमारी फैलाती रहती है।

उपचार— इसका नियंत्रण प्रतिजैविक के द्वारा किया जा सकता है। दो सप्ताह में प्रतिजैविक बुखार को कम करता है। रोगी को तरल भोजन देना चाहिए।


3. जल वर्हित रोगों की रोकथाम के लिए आप क्या उपाय अपनायेंगे ?

उत्तर ⇒ पानी के द्वारा संचारित होने वाले कुछ मुख्य रोग हैं— टाइफॉइड, अमीबता, ऐस्केरिसता आदि। इन रोगों की रोकथाम के लिए निम्न उपाय हैं

(i) पानी को उबाल कर या फिल्टर करके पीना चाहिए। पीने के पानी को साफ बर्तन में ढककर रखें। (ii) जलाशयों, कुंडों और की समय-समय पर सफाई करनी चाहिए ।

(iii) मलेरिया और फाइलेरिया जैसे रोगों के रोगवाहकों और उनके प्रजनन की जगहों का नियंत्रण खत्म कर देना चाहिए। इसके लिए आवासीय क्षेत्रों में और उसके आस-पास पानी को जमा नहीं होने देना चाहिए। शीतलयंत्रों (कूलर) की नियमित सफाई, मच्छरदानी का प्रयोग, मच्छर के डिंबकों को खाने वाली गंबुजिया जैसी मछलियाँ डालनी चाहिए। खाइयों, जलनिकास क्षेत्रों और अनूपों (दलदलो) (स्वप्स) आदि में कीटनाशकों के छिड़काव किए जाने चाहिए। इसके अतिरिक्त दरवाजों और खिड़कियों में जाली लगानी चाहिए ताकि मच्छर अन्दर न घुस सके।


4. प्रतिरक्षी (प्रतिपिंड) अणु का अच्छी तरह नामांकित चित्र बनाइए

उत्तर ⇒


5. डीएनए वैक्सीन के संदर्भ में ‘उपयुक्त जीन’ के अर्थ के बारे में अपने अध्याय से चर्चा कीजिए।

उत्तर ⇒ पुनर्योगज डीएनए (रिकम्बिनेंट डीएन) प्रौद्योगिकी से जीवाणु या खमीर (यीस्ट) में रोगजनक की प्रतिजनी पॉलीपेप्टाइड का उत्पादन होने लगा है। इस विधि से टीकों का बड़े पैमाने पर उत्पादन होने लगा है और इसलिए प्रतिरक्षीकरण हेतु उन टीकों की उपलब्धता खूब बढ़ी है, जैसे—खमीर से बनने वाला यकृतशोथ। बी टीका।


6. प्रसामान्य कोशिका से कैंसर कोशिका किस प्रकार भिन्न है ?

उत्तर ⇒ हमारे शरीर में कोशिका वृद्धि और विभेदन अत्यधिक नियंत्रित और नियमित है। कैंसर कोशिकाओं में, ये नियामक क्रियाविधियाँ टूट जाती हैं। प्रसामान्य कोशिकाएँ ऐसा गुण दर्शाती हैं जिसे संस्पर्श संदमन (कांटेक्ट इनहिबिसन) कहते हैं और इसी गुण के कारण दूसरी कोशिकाओं से उनका संस्पर्श उनकी अनियंत्रित वृद्धि को संदमित करता है। ऐसा लगता है कि कैंसर कोशिकाओं में यह गुण खत्म हो गया है। इसके फलस्वरूप कैंसर कोशिकाएँ विभाजित होना जारी रख कोशिकाओं का भंडार खड़ा कर देती है जिसे अर्बुद (ट्यूमर) कहते हैं। अर्बुद दो प्रकार के होते हैं— सुदम (बिनाइन ) और दुर्दम (मैलिग्र्नेट) । सुदम अर्बुद सामान्यतया अपने मूल स्थान तक सीमित रहते हैं, शरीर के दूसरे भागों में नहीं फैलते तथा इनसे मामूली क्षति होती है। दूसरी ओर दुर्दम अर्बुद प्रचुरोद्भवी कोशिकाओं का पुंज है जो नवद्रव्यीय नियोप्लास्टिक कोशिकाएँ कहलाती हैं। ये बहुत तेजी से बढ़ती है और आस पास के सामान्य ऊतकों पर हमला करके उन्हें क्षति पहुँचाती हैं।

12th biology Subjective questions and answers in hindi 2024


7. मैटास्टेसिस का क्या मतलब है ? व्याख्या कीजिए।

उत्तर ⇒ अर्बुद कोशिकाएँ सक्रियता से विभाजित और वर्धित होती हैं जिससे वे अत्यावश्यक पोषकों के लिए सामान्य कोशिकाओं से स्पर्धा करती है। और उन्हें भूखा मारती है। ऐसे अर्बुदों से उतरी हुई कोशिकाएँ रक्त द्वारा स्थलों पर पहुँच जाती हैं और जहाँ भी ये जाती हैं नये अर्बुद बनाना प्रारंभ कर देती हैं। मैटास्टेसिस कहलाने वाला यह गुण दुर्दम अर्बुदों का सबसे डरावना गुण है।


 8. स्वास्थ्य और स्वास्थ्य विज्ञान किसे कहते हैं ?

उत्तर ⇒ अच्छे स्वास्थ्य का अर्थ है कि हमारे शरीर के सभी अंग सुचारु रूप से कार्य कर रहे हैं। शरीर तथा मस्तिष्क, दोनों की संतोषजनक स्थिति इसमें शामिल है। अच्छे स्वास्थ्य वाले व्यक्ति खुशमिजाज और तनावमुक्त रहते हैं तथा जीवन का भरपूर आनंद लेते हैं। यदि आपका स्वास्थ्य अच्छा है, केवल तभी आप दूसरों की व समुदाय की मदद कर पायेंगे। उपर्युक्त परिभाषा के अनुसार क्या आप अपने स्वास्थ्य को अच्छा मानते हैं, स्वयं को रोगमुक्त रखने तथा अच्छा स्वास्थ्य पाने के लिए हमें स्वास्थ्य विज्ञान के प्रति जागरुक होना चाहिए। विभिन्न रीतियाँ, जो हमें अच्छा स्वास्थ्य बनाए रखने में मदद करती हैं, स्वास्थ्य विज्ञान कहलाती है। अंग्रेजी का शब्द ‘हाइजीन’ (Hygiene) एक ग्रीक शब्द ‘हाइजिया’ से बना है जिसका अर्थ है— ‘स्वास्थ्य की देवी’ । स्वास्थ्य विज्ञान का संबंध व्यक्तिगत तथा सामुदायिक दोनों ही स्वास्थ्य से हैं। अतः स्वास्थ्य और स्वास्थ्य विज्ञान एक-दूसरे से जुड़े हुए हैं। उत्तम स्वास्थ्य बनाए रखने के लिए समुचित पोषण, शारीरिक व्यायाम, आराम एवं निद्रा, स्वच्छता और चिकित्सीय देख-रेख आवश्यक हैं। स्वास्थ्य में व्यक्तिगत तथा सामुदायिक दोनों स्वास्थ्य शामिल हैं।


9. सक्रिय तथा निष्क्रिय प्रतिरक्षा क्या है ? उदाहरण के साथ समझाइए

उत्तर ⇒ जब परपोषी प्रतिजनों (एंटीजेंस) का सामना करता है तो उसके शरीर में प्रतिरक्षी पैदा होते हैं। प्रतिजन, जीवित या मृत रोगाणु या अन्य प्रोटीनों के रूप में हो सकते हैं। इस प्रकार की प्रतिरक्षा सक्रिय प्रतिरक्षा (ऐक्टिव इम्युनिटी) कहलाती है। सक्रिय प्रतिरक्षा धीमी होती है और अपनी पूरी प्रभावशाली अनुक्रिया प्रदर्शित करने में समय लेती है। प्रतिरक्षीकरण (इम्यूनाइजेशन) के दौरान जानबूझकर रोगाणुओं का टीका देना अथवा प्राकृतिक संक्रमण के दौरान संक्रामक जीवों का शरीर में पहुँचना सक्रिय प्रतिरक्षा को प्रेरित करता है। जब शरीर की रक्षा के लिए बने बनाए प्रतिरक्षी सीधे ही शरीर को दिए जाते हैं तो यह निष्क्रिय प्रतिरक्षा (पैसिव इम्युनिटी) कहलाती है। क्या आप जानते हैं कि हाल ही में जन्मे शिशु के लिए माँ का दूध क्यों बहुत ही आवश्यक माना जाता है ? दुग्धस्रवण (लैक्टेशन) के प्रारंभिक दिनों के दौरान माँ द्वारा स्रावित पीले से तरल ‘पीयूष’ (कोलोस्ट्रम) में प्रतिरक्षियों (IgA) की प्रचुरता होती है जो शिशु की रक्षा करता है। सगर्भता (प्रेग्नेंसी) के दौरान भ्रूण को भी अपरा (प्लेसेंटा) द्वारा माँ से कुछ प्रतिरक्षी मिलते हैं। ये निष्क्रि प्रतिरक्षा के कुछ उदाहरण हैं।


10. प्रतिरक्षीकरण या टीकाकरण का सिद्धांत किस पर आधारित है ? यह कैसे कार्य करता है ? अथवा, टीकाकरण एवं प्रतिरक्षीकरण पर टिप्पणी करें

उत्तर ⇒ प्रतिरक्षीकरण या टीकाकरण का सिद्धांत प्रतिरक्षा तंत्र की स्मृति के गुण पर आधारित है। टीकाकरण में या रोगजनक (टीका) की प्रतिजनी प्रोटीनों को निर्मित शरीर में प्रवेश कराई जाती है। इन प्रतिजनों के विरुद्ध शरीर में उत्पन्न प्रतिरक्षियाँ वास्तविक संक्रमण के दौरान रोगजनी कारकों को निष्प्रभावी बना देती है। टीका स्मृति-बी और टी-कोशिकाएँ भी बनाते हैं जो परिवर्ती प्रभावन (सब्सीक्वेंट एक्सपोजर) होने पर रोगजनक को जल्दी से पहचान लेती हैं और प्रतिरक्षियों के भारी उत्पादन से हमलावर को हरा देती हैं। अगर व्यक्ति किन्हीं ऐसे घातक रोगाणुओं से संक्रमित होता है जिसके लिए फौरन प्रतिरक्षियों की आवश्यकता है, जैसा कि टिटनेस में, तो प्रभावकारी निष्पादित प्रतिरक्षियों या प्रतिआविष (एंटीटॉक्सिन एक ऐसी निर्मित जिसमें आविष के लिए प्रतिरक्षियाँ होती है) को टीके के रूप में सीधे ही दिए जाने की जरूरत है। साँप के काटे जाने के मामलों में भी रोगी को जो सुई लगाई जाती है उसमें सर्प जीविष (वेनम) के विरुद्ध निष्पादित प्रतिरक्षी होते है। इस प्रकार का प्रतिरक्षीकरण निष्क्रिय प्रतिरक्षीकरण कहलाता है ।


 11. पश्चविषाणु (रेट्रोवायरस) की प्रतिकृति आरेख द्वारा बनाकर समझाइए

उत्तर ⇒

 


12. स्व-प्रतिरक्षा क्या है ? टिप्पणी कीजिए।

उत्तर ⇒ उच्चतर कशेरुकियों में विकसित स्मृति आधारित उपार्जित प्रतिरक्षा अपनी कोशिकाओं और विजातीय जीवों (जैसे—रोगाणु) के बीच भेद कर सकने की क्षमता पर आधारित है। भेद कर सकने की इस क्षमता का आधार क्या है, यह हमें अभी भी पता नहीं चला है। फिर भी इस बारे में दो उपसिद्धांतों को समझना होगा। पहला, उच्चतर कशेरुकी विजातीय अणुओं और विजातीय जीवों को भी पहचान सकते हैं। प्रयोगात्मक प्रतिरक्षा विज्ञान इस संबंध में जानकारी देता है। दूसरा, कभी-कभी आनुवंशिक और अज्ञात कारणों से शरीर अपनी ही कोशिकाओं पर हमला कर देता है। इसके फलस्वरूप शरीर को क्षति पहुँचती है और यह स्वप्रतिरक्षा रोग कहलाता है। हमारे समाज में बहुत से लोग आमवाती संधिशोथ (श्रमेटोयाट आथाईटिस) से प्रभावित है जो एक स्व-प्रतिरक्षा रोग है।


 13. ऐलर्जी किसे कहते हैं ? इस रोग की पहचान कैसे की जाती है ? इस रोग के लक्षण तथा इस रोग को नियंत्रित करने वाली औषधियों के विषय में जानकारी दीजिए

उत्तर ⇒ पर्यावरण में मौजूद कुछ प्रतिजनों के प्रति प्रतिरक्षा तंत्र की अतिरंजित अनुक्रिया ऐलर्जी कहलाती है। ऐसे पदार्थ, जिनके प्रति ऐसी प्रतिरक्षित अनुक्रिया होती है ऐलर्जन कहलाते हैं। इनके प्रति बनने वाली प्रतिरक्षियाँ IgE प्रकार की होती है। एलर्जन के सामान्य उदाहरण हैं-धूल में चिचड़ी, पराग, प्राणी लघुशल्क (डेडर) आदि। ऐलर्जीय अनुक्रियाओं के लक्षणों में छीकना, पनीली आँखें, बहती नाक और साँस लेने में कठिनाई शामिल हैं। ऐलर्जी मास्ट कोशिकाओं से हिस्टैमिन और सीरोटोनिन जैसे रसायनों के निकलने के कारण होती है। ऐलर्जी का कारण जानने के लिए रोगी को संभावित एलर्जनों की बहुत ही थोड़ी सी मात्रा टीके द्वारा दी जाती है और प्रतिक्रिया का अध्ययन किया जाता है। प्रतिहिस्टैमिन, एड्रीनेलिन और स्टीराइडो जैसी औषधियों के प्रयोग से ऐलर्जी के लक्षण जल्दी पट जाते है। लेकिन, आधुनिक जीवन शैली के फलस्वरूप लोगों में प्रतिरक्षा घटी है और एलर्जनों के प्रति संवेदनशीलता बढ़ी है। भारतवर्ष के महानगरों के अधिकाधिक बच्चे पर्यावरण के प्रति संवेदनशीलता के कारण ऐलर्जियों और दमा (अस्थमा) से पीड़ित रहते हैं। इसका कारण बच्चों के प्रारंभिक जीवनकाल में उन्हें सुरक्षित पर्यावरण में रखना हो सकता है।

Class 12th Biology Question 2024


14. एड्स की रोकथाम पर एक संक्षिप्त लेख लिखिए।

उत्तर ⇒ एड्स की रोकथाम एड्स को ठीक नहीं किया जा सकता, इसलिए इसकी रोकथाम ही सबसे उत्तम उपाय है। इसके अलावा, एचआईवी संक्रमण सचेतन व्यवहार पैटर्न के कारण फैलता है न कि न्यूमोनिया या टाइफॉइड की तरह अनजाने में यह ठीक है कि रक्त आधान रोगियों में, नवजातो (माँ से) आदि में यह संक्रमण सही निगरानी (मॉनिटरिंग) न होने के कारण हो सकता है। एकमात्र बहाना अनिभज्ञता हो सकती है लेकिन कहावत बिल्कुल सही है कि ‘अज्ञानता के कारण मत करो’। हमारे देश में राष्ट्रीय एड्स नियंत्रण संगठन (एन ए सी ओ नेशनल एड्स कंट्रोल आर्गेनाइजेशन) और अन्य गैर-सरकारी संगठन (एन जी ओ लोगों को एड्स के बारे में शिक्षित करने के लिए बहुत काम कर रहे है। एचआईवी संक्रमण को फैलने से रोकने के लिए विश्व स्वास्थ्य संगठन ने अनेक कार्यक्रम आरंभ किए हैं। रक्त बैंकों के रक्त को एचआईवी से मुक्त करना, सार्वजनिक और निजी अस्पतालों और क्लिनिकों में केवल प्रयोज्य (डिस्पोजेबल) सुइयाँ और सिरिंज ही काम में लाई जाए, इसकी व्यवस्था करना, कंडोम का मुफ्त वितरण, डुग के कुप्रयोग को नियंत्रित करना, सुरक्षित यौन संबंधों की सिफारिश करना और सुग्राही समष्टि (ससेप्टेबुल पॉपुलेशन) में एचआईवी के लिए नियमित जाँच को बढ़ावा देना, इन कार्यक्रमों में से कुछ एक है।

एचआईवी से संक्रमण या एड्स से ग्रस्त होना कोई ऐसी बात नहीं है जिसे छुपाया जाए, क्योंकि छुपाने से यह संक्रमण और भी ज्यादा लोगों में फैल सकता है। समाज में एचआईवी / एड्स संक्रमित लोगों को सहायता और सहानुभूति की जरूरत होती है एवं उन्हें हेय दृष्टि से नहीं देखा जाना चाहिए। जब तक समाज इसे एक ऐसी समस्या के रूप में नहीं देखेगा जिसका समाधान सामूहिक तौर पर किया जाना चाहिए, तब तक रोग के व्यापक रूप से फैलने की गुंजाइश कई गुना ज्यादा बढ़ेगी। यह एक ऐसी व्याधि है जिसके फैलाव को समाज और चिकित्सक वर्ग के सम्मिलित प्रयास से ही रोका जा सकता है।


15. कैंसर से आपका क्या तात्पर्य है ?

उत्तर ⇒ कैंसर (Cancer) — कैंसर एक प्रकार से विभेदन तथा विवर्धन की ही समस्या है। जीनों की क्रियाशीलता नियंत्रित होती है। सम्पर्क संदमन (contact inhibition) एक नियंत्रणकारी प्रक्रिया है जब कोशिकाओं में गुणन होता है, तो उनके ज्यादा एकत्रित होने पर वे एक-दूसरे के संपर्क में आ जाती है। सम्पर्क में आते ही उनका विभाजन का संदमन हो जाता है, कोशिका विभाजन की प्रक्रिया के लिए उत्तरदायी जीन संदमित हो जाते हैं। परन्तु कैसर से ग्रस्त कोशिका में सम्पर्क संदमन की प्रक्रिया का कोई प्रभाव नहीं होता। कोशिकाएँ निरन्तर विभाजन करती रहती है और कोशिकाओं के अव्यवस्थित समूह को जन्म देती है, जिसे अर्बुद (tumour) कहते हैं।

                                               वास्तव में, सामान्य कोशिकाओं में कुछ जीन होते हैं, जिन्हें प्रोटोओन्कोजीन (potooncogenes) कहते हैं। ये कोशिकाओं के सामान्य विकास में सहायक होते हैं। परन्तु कैंसर-प्रस्त कोशिका में से टूट जाते हैं और दूसरे गुणसूत्रों पर जा लगते हैं। यहाँ पर इन्हें विभिन्न प्रकार का वातावरण मिलता है। अब इन्हें ओन्कोजीन (oncogenes) कहते हैं। भिन्न वातावरण में ये बिल्कुल नई प्रकार की प्रोटीन बनाते हैं, जिनसे कोशिका विभाजन अनियंत्रित हो जाता है।


16. कैंसर रोग का उपचार कैसे किया जाता है ?

उत्तर ⇒ कैंसर का उपचार — आमतौर पर कैंसरों के उपचार के लिए शल्यक्रिया, विकिरण चिकित्सा और प्रतिरक्षा चिकित्सा का सहारा लिया जाता है। विकिरण चिकित्सा में, अर्बुद कोशिकाओं को घातकरूप से किरणित (इरेटेड) किया जाता है, लेकिन अर्बुद के ढेर के पास वाले प्रसामान्य उत्तकों का पूरा ध्यान रखा जाता है। कैंसर कोशिकाओं को मारने के लिए अनेक रसोचिकित्सीय (कीमोथेरा प्यूटिक) औषध काम में लाए जाते हैं। इनमें से कुछ औषध विशेष अर्बुदो के लिए विशिष्ट है। अधिकांश औषधों के अनुषंगी प्रभाव या दुष्प्रभाव (साइड इफेक्ट) होते है जैसे कि बालों का झड़ना, अरक्तता आदि अधिकांश कैंसर का उपचार शल्यकर्म, विकिरण चिकित्सा और रसोचिकित्सा के संयोजन से किया जाता है। अर्बुद कोशिकाएँ प्रतिरक्षा तंत्र द्वारा पता लगाए जाने और नष्ट किए जाने से बचती है। इसलिए ऐसे पदार्थ दिए जाते हैं जिन्हें जैविक अनुक्रिया रूपांतरण कहते हैं, जैसे कि Y इंटरफेरॉन, जो उनके प्रतिरक्षा तंत्र को सक्रियित करता है और अर्बुद को नष्ट करने में सहायता करता है।


17. प्रतिजैविक प्रतिरोधकता से आप क्या समझते हैं ?

उत्तर ⇒ औषधि (प्रतिजैविक) प्रतिरोधकता (Resistance to medicines/antibiotics) संक्रामक रोगों के उपचार के लिए ऐसी औषधियों का प्रयोग किया जाता है जो कि रोगजनक सूक्ष्मजीवों की वृद्धि को रोक दे अथवा उन्हें मार डालें। इन औषधियों में प्रतिजैविक (antibiotics) का काफी प्रयोग किया जाता है। पेनिसिलीन, स्ट्रेप्टोमाइसिन, ऑरिओमाइसिन आदि कुछ प्रमुख प्रतिजैविकों के उदाहरण हैं प्रतिजैविकों का सामान्य उपयोग लगभग 50 वर्ष पूर्व प्रारंभ हुआ था । काफी समय तक यह समझा जाता रहा कि प्रतिजैविको के प्रयोग से रोगजनक बैक्टीरिया इत्यादि पर पूर्णतः नियंत्रण संभव हो गया है। परंतु धीरे-धीरे पता चला कि जो प्रतिजैविक कुछ समय पूर्व किसी रोगजनक पर नियंत्रण कर सकते थे, वे अब निरर्थक हो गये। उन प्रतिजैविकों का रोगजनक बैक्टीरिया पर कोई विशेष प्रभाव नहीं पड़ता। दूसरे शब्दो में, ये बैक्टीरिया औषधि के लिए प्रतिरोधी (reistant) हो गये है। प्रयोगशालाओं में किये गये अनेक प्रयोगों से यह स्पष्ट हो गया कि बैक्टीरिया में औषधि प्रतिरोधकता उत्परिवर्तनों द्वारा उत्पन्न होती है।


18. वह कौन-सी क्रियाविधि है जिससे एड्स विषाणु संक्रमित व्यक्ति के प्रतिरक्षा तंत्र का ह्रास करता है ?

उत्तर ⇒ संक्रमित व्यक्ति के शरीर में आ जाने के बाद विषाणु वृहत् भक्षकाणु (मेक्रोफेज) में प्रवेश करता है जहाँ उसका आरएनए जीनोम विलोम ट्रांसकिप्टेज प्रक्रिणव (रिवर्स ट्रांसप्टेज एंजाइम) की सहायता से प्रतिकृतीयन (रेप्लीकेसन) द्वारा विषावीय डीएनए बनाता है। यह विषाणवीय डीएनए परपोषी की कोशिका के डीएनए में समाविष्ट होकर संक्रमित कोशिकाओं को विषाणु कण पैदा करने का निर्देश देता है। वृहत् भक्षकाणु विषाणु उत्पन्न करना जारी रखते हैं और इस तरह एक एच आई वी फैक्टर की तरह काम करते हैं। इसके साथ ही एच आई वी सहायक टी लसीकाणुओं (टीएच) में घुसकर प्रतिकृति बनाता है और संतति विषाणु पैदा करता है। रुधिर में छोड़े गए संतति विषाणु दूसरी सहायक टी-लसीकाणुओं पर हमला करते हैं। यह क्रम बार-बार दोहराया जाता है जिसकी वजह से संक्रमित व्यक्ति के शरीर में सहायक टी- लसीकाणुओं की संख्या में उत्तरोत्तर कमी होती है। इस अवधि के दौरान बार-बार बुखार और दस्त आते है तथा वजन घटता है। सहायक टी-लसीकाणुओं की संख्या में गिरावट के कारण व्यक्ति जीवाणुओं, विशेष रूप से माइकोबैक्टीरियम, विषाणुओं, कवकों यहाँ तक कि टॉक्सोप्लेज्मा जैसे परजीवियों के संक्रमण का शिकार हो जाता है। रोगी में प्रतिरक्षा इतनी न्यूनता हो जाती है कि वह इन संक्रमणों से अपनी रक्षा करने में असमर्थ हो जाता है। एड्स के लिए व्यापक रूप से काम में लाया जाने वाला नैदानिक परीक्षण एंजाइम्स संलग्न प्रतिरक्षा रोधी आमापन (एलीसा- एंजाइम लिक्विड इम्यूनोजारवेट एस्से) है। प्रति पश्चविषाणवीय (एंटी रिट्रोवायरल औषधियों से एड्स का उपचार आंशिक रूप से ही प्रभावी है। ये औषधियाँ रोगी की आवश्यंभावी मृत्यु को आगे सरका सकती है, रोक नहीं सकती।


19. कैंसर रोग के कारण क्या हैं? वर्णन कीजिए।

उत्तर ⇒ कैंसर के कारण— प्रसामान्य कोशिकाओं का कैंसर की नवद्रव्यीय कोशिकाओं में रूपांतरण को प्रेरित करने वाले कारक भौतिक, रासायनिक अथवा जैविक हो सकते हैं। ये कारक कैंसरजन कहलाते हैं। एक्स किरण और गामा किरणों जैसे आयनकारी विकिरण और पराबैगनी जैसे अनायनकारी विकिरण डीएनए को क्षति पहुँचाते हैं, जिससे नवद्रव्ययी रूपांतरण होता है। तम्बाकू के धुएँ में मौजूद रासायनिक कैंसरजन फेंफड़े के कैंसर के मुख्य कारण हैं। कैसर उत्पन्न करने वाले विषाणु अर्बुदीय विषाणु (आंकोजेनिक वायरस) कहलाते हैं। इनमें जो जीन होते हैं उन्हें विषाणुवीय अर्बुदजीन (वायरल आंकोजिन) कहते है। इसके अलावा प्रसामान्य कोशिकाओं में कई जीनों का पता चला है जिन्हें कुछ विशेष परिस्थितियों में सक्रियित किए जाने पर वे कोशिकाओं का कैंसरजनी रूपांतरण कर देते हैं। ये जीन कोशिकीय अर्बुदजीन (सेल्यूलर आंकोजिन-सी आंक) या आदिअर्बुद जीन (प्रोटो-आकोजिन) कहलाते हैं।


20. प्राथमिक और द्वितीयक लसीकाओं के अंगों के नाम बताइए।

उत्तर ⇒ लसीकाम अंग— ये ही वे अंग हैं जिनमें लसीकाणुओं की उत्पत्ति या परिपक्वन (मैचुरेसन) और प्रचुरोद्भवन (प्रोलिफरेसन) होता है। अस्थि मज्जा (बोन मैरो) और थाइमस ऐसे प्राथमिक लसीकाभ अंग है जहाँ अपरिपक्व लसीकाणु, प्रतिजन संवेदनशील लसीकाणुओं में विभेदित होते हैं। परिपक्वन के बाद लसीकाणु प्लीहा (स्पलीन), लसीका ग्रंथियों, टांसिलों, क्षुदांत्र के पेयर पैचों और परिशेषिका (अपेंडिक्स) जैसे द्वितीयक अंगों में चले जाते हैं। द्वितीयक लसीकाम अंग ऐसे स्थान है जहाँ लसीकाणुओं की प्रतिजन के साथ पारस्परिक क्रिया होती है जो बाद में प्रचुर संख्या में उत्पन्न होकर प्रभावी कोशिकाएँ बन जाती है।


21. जैव प्रवलीकरण का क्या अर्थ है ? व्याख्या कीजिए।

उत्तर ⇒ जैव प्रबलीकरण (biofortification) उन्नत खाद्य गुणवत्ता रखने – वाली पादप प्रजनन फसलें हैं। जैवपुष्टि-कारण- विटामिन तथा खनिज के उच्च स्तर वाली अथवा उच्च प्रोटीन तथा स्वास्थ्यवर्द्धक वसा वाली प्रजनित फसलें जन स्वास्थ्य को सुधारने के अत्यंत महत्वपूर्ण प्रायोगिक माध्यम हैं। उन्नत पोषण/ पोषक गुणवत्ता के लिए निम्न को सुधारने के उद्देश्य से प्रजनन किया गया है

(i) प्रोटीन अंश तथा गुणवत्ता

(ii) तेल अंश तथा गुणवत्ता  

(iii) विटामिन अंश

(iv) सूक्ष्मपोषक तथा खनिज अंश

पहले से विद्यमान संकर मक्का की तुलना में 2000 में विमुक्त संकर मक्का में अमीनो एसिड, लायसीन तथा ट्रिप्टोफैन की दुगुनी मात्रा विकसित की गई। गेहूं की किस्म जिसमें उच्च प्रोटीन अंश हो, एटलस 66 कृष्य गेहूँ की ऐसी उन्नतशील किस्म तैयार करने के लिए दाता की तरह से प्रयोग किया गया है। लौह तत्व बहुल धान की किस्म को विकसित करना अब संभव हो गया है, इसमें सामान्यतः प्रयोग में लाई गई किस्मों की तुलना में लौह तत्व की मात्रा पाँच गुणा अधिक होती है।

          भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान, नयी दिल्ली ने बहुत-सी सब्जियों की ने फसलों का मोचन किया है जिसमें विटामिन तथा खनिज प्रचुर मात्रा में होते है जैसे गाजर, पालक, कदद्र में विटामिन-ए, करेला, बहुआ, सरसों, टमाटर में विटामिन-सी, पालक तथा बथुआ जिनमें आयरन तथा कैल्सियम प्रचुर मात्रा में तथा ब्रॉड बीस, लबलब, फ्रेंच तथा गार्डन मटर में प्रोटीन प्रचुर मात्रा में पाई जाती है।


22. रोग का प्रसार कैसे होता है ?

उत्तर ⇒ रोगो में संक्रामक रोगों का ही प्रसार होता है। यह निम्नांकित तरीके से पूर्ण होता है

(a) संक्रमिक रोगी से सीधे सम्पर्क द्वारा जैसे दाद।

(b) रोगाणुवाहक जैसे मच्छर, मक्खी आदि द्वारा जैसे—मलेरिया ।

(c) संक्रमिक पेय एवं खाद्य पदार्थों के ग्रहण द्वारा जैसे- हैजा

(d) संक्रमित साधनो जैसे सूई, शरीर द्रव, रक्त, रक्त सीरम आदि के स्वस्थ मनुष्य शरीर द्रव से सम्बन्ध होने से जैसे – AIDS आदि

 


23. रेविज बीमारी के कारण, लक्षण तथा नियंत्रण के बारे में लिखें।

उत्तर ⇒ रेविज बीमारी के कारण— रेबिज जन्तुओं जैसे बिल्ली, कुत्ता आदि जिसमे इस रोग के विषाणु उपस्थित रहते हैं, के काटने से होता है।

लक्षण— हाइड्रोफोबिया, निगलने में कठिनाई

रोकथाम—- रेबिज जन्तुओं का रैबिज विषाणु के विरुद्ध टीकाकरण।

12th Biology Chapter 8 Subjective Question 2024


24 . निम्नांकित रोगों के रोगजनक, संक्रमण के कारण, लक्षण एवं उपचारों को लिखें ।

 (i) मलेरिया

(ii) निमोनिया

(iii) अमीवता (अमीवियासिस )

(iv) एस्केरिस्ता

(v) हाथी पाँव (फाइलेरिया)

(vi) दाद (एक्जिमा)

उत्तर ⇒ (i) मलेरिया – मलेरिया शीतोष्ण तथा समशीतोष्ण महाद्वीपों जैसे अफ्रीका एवं एशिया की सामान्य बीमारी है। रोगजनक प्लाज्मोडियम परजीवी की चार प्रजातियाँ चार विभिन्न प्रकार के मलेरिया रोग उत्पन्न करती है—

(क) प्लाज्मोडियम वाइवेक्स बेनाइन टर्शियन मलेरिया

 (ख) प्लाज्मोडियम ओवेल माइल्ड टर्शियन मलेरिया

(ग) प्लाज्मोडियम मैलेरी—क्वार्टन मलेरिया

(घ) प्लाज्मोडियम फेल्सिपेरम — सेरेबल मलेरिया 

संक्रमण के कारण-  मादा एनोफिलीज द्वारा स्वस्थ मनुष्य को काटने पर स्पोरोज्वाइटस मनुष्य के रक्त में प्रविष्ट हो जाता है तथा यकृत एवं लाल रक्त कणों में विभाजित होकर पुनः दूसरे मादा एनोफिलीज के आमाशय में पहुँच जाते है तथा वहाँ विभाजन द्वारा जीवन चक्र पूरा करते हैं। इनकी उद्भवन अवधि 12 दिनों की होती है।

लक्षण- 6-10 घण्टों के अंतराल पर ठण्ड एवं शारीरिक कंपन के साथ तीव्र ज्वर (104-106°F) का आना जिसमें सिरदर्द, बदन दर्द, उल्टी आदि के साथ श्वसन एवं हृदय की गति का तीव्र होना। तत्पश्चात् अत्यधिक पसीना के साथ ही ज्वर उतर जाना, अत्यधिक लाल रक्त कणों के टूटने से एनीमिया के लक्षणों का दृष्टिगोचर होना, यकृत तथा प्लीहा के आकार में वृद्धि एवं हीमोग्लोबिन के हीमोजोइन नामक जहरीला लवण में टूटने के कारण बार बार बुखार का आना।

उपचार- कुनैन की दवाइयाँ जैसे क्लोरोक्वीन, पैलुङ्गीन, मेफ्लोक्वीन डिसोनिन आदि।

रोकथाम एवं बचाव के उपाय- मच्छरों का घर में प्रवेश रोकना, शरीर के खुले भागों में सरसों का तेल अथवा मच्छर निरोधक क्रीम का उपयोग करना, सोते वक्त मच्छरदानी का प्रयोग करना, जल जमाव वाले इलाके में किरासन तेल,डी.डी.टी. तथा अन्य कीटनाशक रसायनों का छिड़काव, अभियांत्रिक जलीय बैक्टीरिया एक्टीकैकुलीस एक्स सेटीकस का मच्छरों के उन्मूलन में प्रयोग मलेरिया उन्मूलन कार्यक्रम का प्रभावशाली ढंग से पालन करना आदि।

(ii) निमोनिया :

रोगजनक- डिप्लोकास नामक बैक्टीरिया

संक्रमण के कारण- वायु द्वारा संचारित रोग, संक्रमिक व्यक्ति द्वारा छोड़े गए बिन्दुकों द्वारा संक्रमित ग्लास या वर्तन के प्रयोग से

लक्षण- संक्रमण के द्वारा वायुकोष्ठों में तरल पदार्थ का भर जाना जिससे श्वास लेने में तकलीफ का होना, पंजरी चलन, छाती दर्द, सिर दर्द, ठिठुरन, होठ एवं हाथ के नाखून का रंग नीला हो जाना।

उपचार- पेसीलिन, फ्लुक्लोक्सासिलीन। रोकथाम एवं बचाव के उपाय मरीज को अन्य परीजनों से अलग रखना, स्वच्छता बनाये रखना आदि।

(iii) अमीवता (अमीबीय डिसेन्ट्री) अमीबियासिस :

रोगजनक- एटमीबा हिस्टोलिटिका पुटी (सिस्ट)

संक्रमण के कारण- संक्रमित भोजन जल एवं अन्य पदार्थ

लक्षण- परजीवी शरीर में साइटोलाइसिन नामक एन्जाइम का प्राव करता है जिससे रोगी के छोटी आँत के श्लेष्मा परत में छेद हो जाता है जिससे पतला दस्त के साथ रक्त का भी स्वाद होता है।

उपचार- टेरामाइसिन, मेट्रोनिडेजोल, ओरिओमाइसिन, एटीप्रोमाइसिन आदि।

रोकथाम एवं बचाव के उपाय- स्वच्छता, संक्रमित भोजन तथा पेय पदार्थों का सेवन वर्जित

(iv) एस्केरिस्ता :

रोग जनक- एस्केरिस लुम्बरी क्याइएइस (गोल कृमि)

संक्रमण के कारण- द्वितीय संक्रमित अवस्था रेवती ही फार्म लार्वा से संक्रमित भोजन तथा पेय द्वारा स्वस्थ मनुष्य के शरीर मे प्रवेश।

 लक्षण- पेट में मरोड़ के साथ दर्द, कमजोरी, एनीमिया, डायरिया, उल्टी होना, निमोनिया, हेपेटाइटिस, स्पेन्डेसाइटिस, छोटी आत में अवरोध, कोमा, मिर्गी का दौरा इत्यादि ।

 उपचार- जेलेटिन कैप्सूल में हेक्सीकिसासिनॉल का रवा अथवा कोनोपोडियम तथा टेट्राक्लोरो इथिलीन के तेल का मित्रण।

रोकधाम एवं बचाव- शौचालय में शौच का निष्कासन, भोजन का ढँककर रखना, खाने से पूर्व हाथ धोना, कच्चे फलों एवं सब्जियों को अच्छी तरह धोकर उपयोग में लाना आदि।

(v) हाथी पाँव / श्लीपद (फाइलेरिया) :

रोगजनक- युचेरेरिया बेनक्रॉफ्टी।

संक्रमण के कारण—— मादा क्यूलेक्स तथा एडिस मादा के द्वारा माइक्रोफाइलेरिया का संक्रमण।

लक्षण – पैर, हाथ, अण्डकोष एवं स्तन में शोध, रात्रि में अत्यधिक तीव्र दर्द के साथ ज्वर, बेचैनी, चलने-फिरने में कष्ट।

उपचार –टेट्रोजन एवं डाइक्यूथाइल का मिजीन

रोकथाम एवं बचाव के उपाय- मच्छर के प्रजनन स्थान को नष्ट करना, मच्छरों के अंडों लार्वा एवं वयस्कों के मारने के उपाय, मच्छरदानी का प्रयोग

(vi) दाद (एक्जिमा) :

रोगजनक- माइक्रोस्पोरम, सपीडर्मोफाइरन, ट्राइकोफाइरान ।

संक्रमण के कारण— संदूषित मृदा, संक्रमित तौलिया, कपड़ा, दाढ़ी बनाने की मशीन तथा अन्दरूनी वस्त्रों का उपयोग।

लक्षण— शरीर के विभिन्न भागों जैसे— त्वचा, नाखून एवं शिरो बतक पर सूखी शल्की विक्षतियों की उत्पत्ति । इन विक्षतियों में तीव्र खुजली तथा जलन होती है तथा इनसे लाल पदार्थ निकलता है। नम एवं वलय वाली त्वचा में ये बड़े तीव्र गति से फैलते हैं।

 उपचार- सल्फर जेल, एटाकोना जॉल, फ्यूकोनाजॉल, रिंग गार्ड आदि ।

रोकथाम तथा बचाव के उपाय – पूर्ण साफ सफाई, व्यक्तिगत एवं सामुदायिक स्वच्छता का पालन, संक्रमित तौलिया, कपड़ा, दाढ़ी बनाने की मशीन, अंदरूनी वस्त्र तथा शृंगार प्रसाधनों के उपयोग से बचना


25. निम्नांकित में विभेद करें तथा एक उदाहरण दें।

(i) सहज (जन्मजात) एवं उपार्जित प्रतिरक्षा

(ii) एलर्जी एवं स्वप्रतिरक्षा

(iii) ओपीओड्स एवं कैनाविनोइड्सी ।

उत्तर ⇒ (i) सहज प्रतिरक्षा यह जन्मजात एवं प्राकृतिक होता है तथा सभी प्रकार की बीमारियों के प्रति बाह्य सुरक्षात्मक स्तर बनाता है। जैसे- त्वचा, श्लेष्मा झिल्ली आदि । उपार्जित प्रतिरक्षा यह विशिष्ट रोगों को पहचान कर उनके जीवाणु या विषाणुओं के प्रतिजन को नष्ट करती है। जैसे—लसिको तंत्र ।

(ii) एलर्जी यह प्रतिरक्षण का पार्श्व प्रभाव है जिसमें प्रतिजन के प्रति अतिसंवेदनशीलता के कारण असाधारण प्रतिक्रिया, आदि होती है। स्वप्रतिरक्षण कभी-कभी अपने ही शरीर में बनने वाले किसी पदार्थ का अपने ही शरीर के प्रतिरक्षण तंत्र के प्रति अतिसंवेदनशील होकर एलर्जी उत्पन्न कर देता है। जैसे—उल्टी, दस्त आदि ।

 (iii) ओपीओड्स—यह अफीम के पौधे से प्राप्त लेटेक्स है। रासायनिक रूप से डाइएसिटिल मार्फीन होता है। यह अवसादक है। कैनाविनोइड्सी—यह भाँग के पौधों के पुष्प और पत्तियों से प्राप्त रेजिन है तथा रुधिर एवं हृदय को प्रभावित करता है।


26. हीमोफिलिया में क्या होता है?

उत्तर ⇒ हीमोफिलिया से ग्रस्त रोगियों में या तो केवल एक ही दोषी जीन होता है जो X गुणसूत्र पर होता है (नर में) या उनमें दोनों ही दोषी जीन होते हैं जो XXX गुणसूत्रों पर विद्यमान होते हैं (मादा में)। सामान्य जीन से वे पदार्थ बनते हैं जिनके द्वारा रक्त का स्कंदन नहीं होता है। परिणामतः एक बार रक्त का बहना शुरू हो जाने के बाद वह रूकता नहीं है।


27. निम्नांकित का विस्तारित रूप लिखें:

(i) MALT, (ii) CMI, (iii) AIDS, (iv) NACO, (v) HIV (vi) IVF, (vii) MTP

उत्तर ⇒

(i) MALT— Mucon Association Lymphoid Tissue

(ii) CMI Cell Mediated Immunity

(iii) AIDS— Acquired Immuno Deficiency Syndrome

(iv) NACO—National AIDS Control Organization

(v) HIV-Human Immuno Deficiency Virus

(vi) IVF-In vitro fertilization

(vii) MTP— Medical Termination of Pregnancy


28. जैविकी के अध्ययन ने संक्रामक रोगों को नियंत्रित करने में किस प्रकार हमारी मदद की है?

उत्तर ⇒ जीव विज्ञान के अध्ययन द्वारा संक्रामक रोगों के मूल कारकों की जानकारी प्राप्त होती है। इसकी मदद से कई रासायनिक तत्त्वों और औषधियों का निर्माण सम्भव हो सका जो इन संक्रामक रोगों को नियंत्रित कर सके। रोगों से बचाव हेतु प्रतिजैविकी (एण्टीबायोटिक्स), टीका (वैक्सीन) के साथ-साथ व्यक्ति की अपने स्वास्थ्य के प्रति सुरक्षा और साफ-सफाई की जागरूकता भी संक्रामक रोगों के नियंत्रण में मददगार है।


29. एड्स के दो लक्षणों की विवेचना करें।

उत्तर ⇒ एड्स के दो लक्षण – पीड़ित व्यक्ति में निम्न में से एक या अधिक लक्षण होते दिखाई देते हैं— \

(i) एक प्रकार का फेफड़ों का रोग हो जाता है।

(ii) त्वचा का कैंसर हो जाता है।


30. जन्मजात रोग की परिभाषा दें।

उत्तर ⇒ वैसा रोग जो जन्म से ही हो, जन्मजात रोग कहलाता है।

जैसे अंधापन, बहरापन आदि।


31. कैंसर के दो लक्षण बताइए

उत्तर ⇒ कैसर के दो लक्षण है—

 (क) भार में कमी

 (ख) शरीर के किसी भाग की अत्यधिक वृद्धि


32. हैजा के क्या कारण है ?

उत्तर ⇒ हैजा के कारण हैजा का कारण कॉलेरी नामक जीवाणु है। इस जीवाणु से संदूषित पेय या खाद्य पदार्थ ग्रहण किया जाता है तो यह रोग उत्पन्न होता है।


33. हैजा के लक्षण तथा नियंत्रण के बारे में बताइए

उत्तर ⇒ लक्षण – इससे रोगी को लगातार मल त्यागना पड़ता है। मल का रंग चावल के माड़ की तरह सफेद होता है। इसमें फैटा भी होता है। नियंत्रण मल एवं फैट को तुरंत साफ कर मिट्टी के नीचे दबा देना चाहिए। व्यक्तिगत साफ-सफाई पर ध्यान रखना चाहिए। जल उबालकर पीना चाहिए।


34. वर्णान्यता क्या है ? इसके लक्षण लिखें। यह किस प्रकार का रोग है ?

उत्तर ⇒ वर्णान्यता- यह आँखो की एक बीमारी है। इस रोग से प्रसित रोगी लाल एवं हरा की पहचान नहीं कर पाते हैं। इस रोग से संबंधित जीन X क्रोमोसोम पर पाया जाता है एवं सामान्य दृष्टिवाले ऐलील के समक्ष यह अप्रभावी होता है। यह एक मेडलीय विकार है।


35. एड्स फैलने के क्या-क्या कारण है ?

उत्तर ⇒ एड्स फैलने के निम्न कारण हैं।

 (i) प्रभावित व्यक्ति के साथ यौन संबंध से।

(ii) संक्रमित व्यक्ति में प्रयोग किये गए इंजेक्शन के सूई के व्यवहार से ।

(iii) एड्स से संक्रमित व्यक्ति का रक्त स्वस्थ व्यक्ति में रूधिर आधान में उपयोग करने से ।

(iv) संक्रमित गर्भवती महिला से भ्रूण में जाकर गर्भस्थ शिशु को संक्रमित कर देता है।

12th Biology VVI Question Answer 2024


36. मद्यनिषेध से उत्पन्न होने वाले लक्षणों का उल्लेख करें।

उत्तर ⇒ मद्य निषेद्य से उत्पन्न होने वाले लक्षण इस प्रकार से है

(i) प्रजनन क्षमता में कमी होना।

(ii) आँख के आंतरिक भाग के झिल्ली का संक्रमण ।

(iii) हृदय की धड़कन में तेजी।

(iv) सीने में दर्द इत्यादि ।


37. शराब / अल्कोहल के दुष्परिणाम का वर्णन करें।

उत्तर ⇒ शराव / अल्कोहल के दुष्परिणाम – शराब के अत्यधिक सेवन से कुछ महत्वपूर्ण हानिकारक प्रभाव इस प्रकार है :

(i) कार्यक्षमता का अपेक्षाकृत काफी घट जाना\

(ii) मानसिक विकार का उत्पन्न होना ।

(iii) यकृत का खराब हो जाना।

(iv) रक्तचाप का काफी बढ़ जाना।

 (v) हृदय संबंधी रोग हो जाना।

(vi) होश व हवास का खो जाना।

(vii) अचानक हृदय गति का रूक जाना

(viii) कैंसर रोग का हो जाना, आदि


38. अन्तर्जात प्रतिरक्षा / सहज प्रतिरक्षा (Innate Immunity) पर प्रकाश डालें

उत्तर ⇒ सहज प्रतिरक्षा (इनेट इम्यूनिटी) एक प्रकार की अविशिष्ट रक्षा है जो जन्म के समय मौजूद होती है। यह प्रतिरक्षा हमारे शरीर में बाह्य कारकों के प्रवेश के सामने विभिन्न प्रकार के रोध खड़ा करने से हासिल होती है। सहज प्रतिरक्षा में चार प्रकार के रोध होते हैं :

 (i) शारीरिक रोध (फीजिकल वैरियर ) – हमारे शरीर पर त्वचा मुख रोध है जो सूक्ष्मजीवों के प्रवेश को रोकता है।

(ii) कायिकीय रोध (फीजियोलॉजिकल बैरियर) – आमाशय में अम्ल, मुँह में लार, आँखों के आँसू, ये सभी रोगणीय वृद्धि को रोकते हैं।

(iii) कोशिकीय रोध (सेल्यूलर वैरियर) – हमारे शरीर के रक्त में बहुरूप केन्द्रक श्वेताणु उदासीनरंजी (PMNL- न्यूट्रोफिल्स) जैसे कुछ प्रकार के श्वेताणु और एककेंद्रकाणु (मोनोसाइट्स) तथा प्राकृतिक, मारक लिफोसाइट्स के प्रकार एवं उत्तकों में बृहत् भक्षकाणु (मैक्रोफेजेज) रोगाणुओं का भक्षण करते और करते हैं।

(iv) साइटोकाइन रोध- विषाणु संक्रमित कोशिकाएँ इंटरफेरॉन नामक प्रोटीनों का स्रवण करती हैं जो असंक्रमित कोशिकाओं को और आगे विषाणु संक्रमण से बचाती है।

12th Biology Subjective Question Answer  2024


 BSEB Intermediate Exam 2024
 1Hindi 100 MarksClick Here
 2English 100 MarksClick Here
 3Physics Click Here
 4ChemistryClick Here
 5BiologyClick Here
 6MathClick Here

Leave a Comment