Geography Subjective Question 12th Class | 12th Class Geography Question Answer 2024 in Hindi

Geography Subjective Question 12th Class :-  दोस्तों यदि आप Class 12th Exam Geography Subjective की तैयारी कर रहे हैं तो यहां पर आपको Geography Ka Subjective Question दिया गया है जो आपके Geography 12th Subjective Question pdf के लिए काफी महत्वपूर्ण है | Inter Bhugol Question 2024


Geography Subjective Question 12th Class

1. भारत में लौह एवं इस्पात उद्योग के विकास का वर्णन करें। (Describe the growth of iron and steel industry in India.)

उत्तर ⇒भारत में हजारों वर्ष पूर्व उत्तम कोटि का इस्पात बनाया जाता था। दिल्ली का लौह-स्तंभ तथा कोणार्क मंदिर की लोहे की कड़ियाँ इसके प्रमाण है। प्राचीन काल में लोहा-इस्पात का उत्पादन घरेलू उद्योगों में होता था । भारत में लोहा-इस्पात का सबसे पहला कारखाना 1830 में तमिलनाडु में पोर्टोनोवो (Portonovo) नामक स्थान पर स्थापित किया गया, परंतु प्रतिकूल परिस्थितियों के कारण इसे बंद कर दिया गया। आधुनिक युग का पहला कारखाना 1874 ई० में पश्चिम बंगाल में कुल्टी नामक स्थान पर खुला, जिसे बाद में “बराकर आयरन वर्क्स” के नाम से जाना गया। आधुनिक ढंग का बड़ा कारखाना 1907 ई० में झारखंड में स्वर्णरेखा घाटी के साकची नामक स्थान पर खुला। इसका नाम “टाटा आयरन एण्ड स्टील कंपनी” (TISCO) रखा गया। इसके संस्थापक उद्योगपति जमशेदजी नौसेरवान जी टाटा थे, जिनके नाम पर इस स्थान का नाम जमशेदपुर या टाटा पड़ा। इसी के निकट बर्नपुर में 1919 ई० में एक कारखाना खोला गया, जो आज “इंडियन आयरन एण्ड स्टील कंपनी” (IISCO) के नाम से प्रसिद्ध है। इसी में 1936 ई० में कुल्टी के ” बराकर आयरन वर्क्स” को मिला दिया गया। दक्षिण भारत में 1923 ई० में कर्नाटक के भद्रावती नामक स्थान पर भद्रा नदी के किनारे एक कारखाना खोला गया, जो आज विश्वेश्वरैया आयरन एण्ड स्टील लिमिटेड (VISL) के नाम से जाना जाता है। इस प्रकार स्वतंत्रता के पूर्व भारत में जमशेदपुर, कुल्टी- बर्नपुर तथा भद्रावती में लोहा-इस्पात के कारखाने स्थित थे। ये सभी कारखाने निजी क्षेत्र में थे, किंतु भद्रावती के कारखाना को 1963 ई० में सरकारी नियंत्रण में ले लिया गया। स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद लोहा-इस्पात उद्योग का विकास तेजी से हुआ। भिलाई (छत्तीसगढ़), राउरकेला (उड़ीसा) और दुर्गापुर (पश्चिम बंगाल ) के अतिरिक्त बोकारो (झारखंड), सलेम (तमिलनाडु), विशाखापटनम (आंध्र प्रदेश) और विजयनगर (कर्नाटक) में कारखाने खोले गए। ये सभी कारखाने सार्वजनिक क्षेत्र में स्थापित किए गए हैं तथा “स्टील ऑथरिटी ऑफ इंडिया लिमिटेड (SAIL) के नियंत्रण में हैं, जिसे 1974 ई० में कायम किया गया।


2. भारत के लौह एवं इस्पात उद्योग के विकास के लिए उपलब्ध भौगोलिक दशाओं का वर्णन करें। (Describe the available geographical conditions for the growth of iron and steel industry in India.)

उत्तर ⇒ लौह-इस्पात उद्योग आधारभूत उद्योग है। इससे विभिन्न कल-कारखानों के लिए मशीन तथा संयंत्र, कृषि के उपकरण तथा परिवहन के साधन बनाए जाते हैं। वास्तव में यह उद्योग आधुनिक सभ्यता की रीढ़ है। भारत में लोहा-इस्पात उद्योग की स्थापना के लिए उपयुक्त भौगोलिक दशाएँ मिलती है। यहाँ उच्च कोटि का हेमाटाइट लौह-अयस्क, बिटुमिनस कोयला, चूना पत्थर, मैंगनीज इत्यादि पर्याप्त मात्रा में छत्तीसगढ़, उत्तरी उड़ीसा, झारखंड और पश्चिम बंगाल के अर्द्धचंद्रकार क्षेत्र में उपलब्ध है। ये सभी कच्चे माल स्थूल (भार ह्रास वाले) होते हैं। अतः इस उद्योग की स्थापना कच्चे माल के इन स्रोतों के निकट हुई है। इनके अतिरिक्त जल विद्युत, सस्ते श्रमिक, रेलमार्ग तथा जलमार्ग एवं देशी तथा विदेशी बाजारों की भी सुविधा उपलबध है। इसके परिणामस्वरूप इस प्रदेश में लौह-इस्पात उद्योग प्रारंभ में ही स्थापित कर दिया गया था।


3. ग्रामीण अधिवास के प्रतिरूप का वर्णन करें। (Describe the pattern of rural settlement.)

उत्तर ⇒ बस्तियों के प्रारूप (Pattern of settlement) से तात्पर्य है बस्तियों का आकार (shape ) । इस आधार पर बस्तियों के कई प्रारूप होते हैं, यथा (i) रैखिक (linear ), वृत्ताकार
(circular), आयताकार ( rectangular), तारक (starlike), पंखाकार (fanlike), सीढ़ीनुमा ( terraced), त्रिभुजाकार (triangular) इत्यादि। इन्हें विभिन्न भौतिक, सांस्कृतिक नृजातीय सुरक्षा और प्रौद्योगिकी कारक प्रभावित करते हैं। भौतिक कारकों में उच्चावच, जलस्रोत (तालाब, नदी इत्यादि), जलवायु इत्यादि मुख्य हैं। समतल मैदानी क्षेत्र में आयताकार और पर्वतीय ढालों पर सीढ़ीनुमा प्रतिरूप पाया जाता है। मरुस्थलीय क्षेत्र में बालू से भरी आँधी से बचने के लिए चौकोर बस्ती बनायी जाती है और मकानों के दरवाजे बीच में खुले रहते हैं। नदी के किनारे रैखिक और दो नदियों के संगम पर त्रिभुजाकार बस्ती विकसित होती है। तालाब के चारों ओर वृत्ताकार अधिवास बनता है । पर्वतपदीय क्षेत्र में पंखाकार बस्ती बनती है। प्रायद्वीप के छोर पर तारक बस्ती का निर्माण होता है।


4. ग्रामीण अधिवासों का वर्गीकरण प्रस्तुत करें। (Classify rural settlement.)

उत्तर ⇒विरल रूप से अवस्थित छोटी बस्तियाँ, जो कृषि अथवा अन्य प्राथमिक क्रियाकलापों में विशिष्टता प्राप्त कर लेती हैं, ग्रामीण बस्ती कहलाती हैं। निर्मित क्षेत्र के विस्तार, मकानों की संख्या और उनके बीच की पारस्परिक दूरी के आधार पर ग्रामीण बस्तियाँ चार प्रकार की होती हैं, यथा(i) गुच्छित बस्तियाँ,(ii) अर्द्ध-गुच्छित बस्तियाँ,(iii) पल्ली बस्तियाँ और(iv) परिक्षिप्त बस्तियाँ।

(i) गुच्छित बस्तियाँ (Clustered settelements )—–— ऐसी बस्तियों को संकेन्द्रित (concentrated), पुंजित ( clustered ), अवकेन्द्रित ( nucleated) और संकुलित (Agglomerated) बस्ती भी कहा जाता है। इस प्रकार की बस्तियों घरों के संहत खंड पाये जाते हैं और घरों को सँकरी तथा टेढ़ी-मेढ़ी गलियाँ पृथक करती हैं।

(ii) अर्द्ध-गुच्छित बस्तियाँ (Semi-clustered settelements) — इसे विखंडित बस्ती (Frag mented settlement) भी कहा जाता है। इसमें मकान एक दूसरे से अलग, लेकिन एक ही बस्ती में होते हैं। बस्ती कई खंडों में विभाजित रहती है। किन्तु उनका नाम एक ही होता है।

(iii) पल्ली बस्तियाँ (Hamleted settlements) – यह मध्यम आकार की बस्तियाँ हैं, जिनमें एक बड़े गाँव से थोड़ी दूरी पर बसी छोटी-सी एक या अधिक बस्ती होती है। इन छोटी बस्तियों को पुरवा, पान्ना, पाड़ा, पल्ली, नगला इत्यादि कहा जाता है।

(iv) परिक्षिप्त बस्तियाँ (Dispersed settlements) — इन्हें बिखरी हुई (scattered, sprinkled) या एकाकी (Isolated) बस्ती भी कहते हैं। भारत में ऐसी बस्ती सुदूर जंगलों में एकाकी झोपड़ियों अथवा कुछ झोपड़ियों की पल्ली अथवा छोटी पहाड़ियों की ढालों पर खेतों और चारागाहों के रूप में पायी जाती है।

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5. आंतरिक प्रवास से आप क्या समझते हैं? (What do you mean by internal migration?)

उत्तर ⇒अपने ही देश में एक गाँव से दूसरे गाँव या शहर या महानगरों में जाना आंतरिक प्रवास कहलाता है। गाँव से मजदूरी के लिए शहरों में तथा कृषि समुन्नत क्षेत्रों में मजदूरों और किसानों का जाना इसके उदाहरण है। कभी-कभी विषम परिस्थितियों में कुछ समय के लिए समीपवर्ती क्षेत्र में प्रवास भी इसके अंतर्गत आते हैं। जाड़े के दिनों में हिमालय क्षेत्र के लोग कुछ महीनों के लिए निचले भागों में चले जाते हैं। गर्मी में पुन: अपने गाँव आकर जीवन यापन करते हैं। यो तो आंतरिक प्रवास मूलतः आजीविका की खोज तथा जीवन के बेहतर अवसर के कारण होता है। किंतु, गाँव में कृषि भूमि की कमी, बेरोजगारी या अर्द्ध बेरोजगारी तथा सुविधाओं की कमी और नगरों में सुविधाओं और सेवाओं की अधिकता, रोजगार के अवसर, उच्च शिक्षा तथा उच्च जीवन स्तर के कारण गाँवों से नगरों की ओर प्रवास होता है।  आंतरिक प्रवास के अंतर्गत चार धाराओं की पहचान की गई है— (i) ग्रामीण से ग्रामीण, (ii) ग्रामीण से नगरीय, (iii) नगरीय से नगरीय और (iv) नगरीय से ग्रामीण | आंतरिक प्रवास दो रूपों में होता है— अन्तः राज्यीय और अन्तरराज्यीय । अन्तः राज्यी प्रवास एक राज्य या प्रांत के भीतर ही होता है, जबकि अंतरराज्यीय प्रवास एक राज्य से दूसरे राज्य की ओर होता है। यह उल्लेखनीय है कि अन्तः राज्यीय और अन्तर राज्यीय दोनों प्रवास में गाँव से गाँव की ओर अधिकतर महिलाओं का प्रवास शादी के कारण होता है। गाँव से नगरों की ओर रोजगार के कारण पुरुष प्रवास अधिक होता है।


6. भारत में अन्तर्राष्ट्रीय प्रवास के कारणों की विवेचना कीजिए। (Discuss the causes of international migration in India.)

उत्तर ⇒भारत में अंतर्राष्ट्रीय प्रवास दो प्रकार के हुए हैं— (i) उत्प्रवास (Emigration), जिसके अंतर्गत भारत के अनेक लोग विदेशों में जाकर बस गये हैं, और (ii) आप्रवास ( Immigration), जिसके अंतर्गत विदेशों से अनेक लोग भारत में आकर बस गये हैं। 2001 की जनगणना के अनुसार भारत में अन्य देशों से 50 लाख व्यक्तियों का आप्रवास हुआ है, जिनमें 59.8% बांग्लादेश से, 19.3% पाकिस्तान से और 11.6% नेपाल से आये हैं। जहाँ तक भारत से उत्प्रवास का प्रश्न है, ऐसा अनुमान है कि भारतीय प्रसार ( Indian Diaspora ) के लगभग 2 करोड़ लोग हैं, जो 110 देशों में फैले हुए हैं।

भारत में अंतर्राष्ट्रीय प्रवास के मुख्यतः निम्नलिखित कारण हैं

(i) आर्थिक कारण (Economic Factors) — आर्थिक अवसरों की तलाश में एक ओर भारत से व्यवसायी, शिल्पी, फैक्ट्री मजदूर थाइलैंड, मलेशिया, सिंगापुर, इंडोनेशिया इत्यादि देशों में, अर्द्धकुशल और कुशल श्रमिक प० एशिया के पेट्रोल उत्पादक देशों में तथा डॉक्टर, अभियंता, प्रबंध परामर्शदाता इत्यादि संयुक्त राज्य अमेरिका, कनाडा, यूनाइटेड किंगडम इत्यादि देशों में गये तो दूसरी ओर नेपाल, तिब्बत इत्यादि देशों से लोग रोजगार के लिए भारत आये ।

(ii) सामाजिक-राजनैतिक कारण (Socio-political Factors)— उपनिवेश काल में अंग्रेजों, फ्रांसीसियों, जर्मनों, डच और पुर्तगालियों द्वारा उत्तरप्रदेश और बिहार से लाखों श्रमिकों को रोपण कृषि के लिए अनेक अफ्रीकी और लैटिन अमेरिकी देशों में भेजा गया। इन मजदूरों की दशाएँ दासों से बेहतर नहीं थी। आज भी उदारीकरण के पश्चात 90 के दशक में शिक्षा और ज्ञान आधारित भारतीय उत्प्रवासियों ने भारतीय प्रसार को विश्व के सर्वाधिक शक्तिशाली प्रसार में से एक बना दिया है। इसके विपरीत, प्राचीन नालन्दा, विक्रमशिला इत्यादि में शिक्षा प्राप्त करने के लिए लाखों दक्षिण-पूर्वी एशियाई देश के लोग भारत आये। भारत-पाक विभाजन, बांग्लादेश का स्वतंत्रता संग्राम, तिब्बत विवाद इत्यादि ने भी लाखों शरणार्थियों को भारत आने को मजबूर कर दिया। इस प्रकार सामाजिक-राजनैतिक कारणों से भारत में अंतर्राष्ट्रीय आप्रवास और उत्प्रवास दोनों हुआ है।


7. भारतीय कृषि की समस्याओं की विवेचना कीजिए।(Discuss the problems of Indian agriculture.)

उत्तर ⇒ भारत एक कृषि प्रधान देश है, जिसके 2/3 लोगों की जीविका कृषि पर आधारित है। कृषि देश की विशाल जनसंख्या के लिए भोजन प्रदान करती है तथा अनेक उद्योगों के लिए कच्चा माल का स्रोत है। देश की 24% आय कृषि से प्राप्त होती है। फिर भी भारतीय कृषि अनेक प्राकृतिक, आर्थिक, सामाजिक एवं संरचनात्मक समस्याओं से ग्रस्त हैं। भारतीय कृषि की मुख्य समस्याएँ एवं उनके समाधान निम्नलिखित हैं

1. प्राकृतिक समस्याएँ- प्राकृतिक आपदा, जल जमाव, परती तथा कृषियोग्य बंजर भूमि, मिट्टी अपरदन, मिट्टी का अत्यधिक उपयोग |
2. आर्थिक समस्याएँ – भारत के अधिकांश किसानों की आर्थिक दशा दयनीय है, क्योंकि भूमि पर आधिपत्य में असमानता है, किसान निर्धन हैं, उत्पादन लागत अधिक है, तथा फसल उत्पादन का मूल्य कम मिलता है। इन समस्याओं का समाधान कृषि भूमि का उचित बँटवारा करके तथा किसानों को खेती करने के लिए उचित अर्थ एवं आदान उपलब्ध कराकर किया जा सकता है।

3. समाजिक समस्याएँ भारतीय कृषि अनेक सामाजिक समस्याओं से भी ग्रसित हैं। इनमें कृषि भूमि पर जनसंख्या का बढ़ता बोझ, भूमि सुधार कार्यक्रमों का अप्रभावशाली कार्यान्वयन, किसानों को तिरष्कार की दृष्टि से देखना तथा शिक्षा की कमी उल्लेखनीय है।

4. संरचनात्मक समस्याएँ भारत में कृषि संबंधी अधिसंरचना की कमी है। देश के मात्र एक तिहाई कृषि क्षेत्रों को सिंचाई की सुविधा प्राप्त है। रासायनिक खाद, उन्नत बीज, ऋण सुविधा इत्यादि का अभाव है। यातायात के साधन, भंडारण तथा व्यवस्थित बाजार के अभाव में बिचौलिये उनका शोषण करते हैं। खेती का ढंग पुराना है, खेती में दुर्बल पशु का प्रयोग होता है और उनके लिए चारा की कमी है। परिणामस्वरूप यहाँ प्रति हेक्टेयर उत्पादन कम है। प्रति हेक्टेयर उत्पादन बढ़ाने के लिए निम्नलिखित उपाय किए जा सकते हैं

(i) सिंचाई की व्यवस्था, बाढ़ और सूखा से सुरक्षा, (ii) उर्वरक का प्रयोग, (iii) कीट एवं रोग नाशक दवाएँ और पौधा संरक्षण, (iv) उन्नत संकर बीज का प्रयोग, (v) मिट्टी सर्वेक्षण, उर्वरीकरण एवं संरक्षण, (vi) गहन जुताई, कटाई और परिष्करण के लिए कृषि यंत्रों की व्यवस्था, (vii) विद्युत, यातायात, भंडारण, क्रय-विक्रय (विपणन) की व्यवस्था, (viii) लागत के अनुसार उपज का मूल्य निर्धारण, (ix) जोतों का एकीकरण और (x) कृषि – मंडियों की स्थापना ।


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8.गहन निर्वाह कृषि की विशेषताओं का वर्णन कीजिए। (Describe the characteristics of intensive subsistence agriculture.)

उत्तर ⇒ यह कृषि पद्धति संसार के घने बसे क्षेत्रों में प्रचलित है। यहाँ भूमि पर जनसंख्या का दबाव बहुत अधिक है, अतः प्रति व्यक्ति कृषि भूमि की उपलब्धता निम्न है। खेत बिखरे और छोटे होते हैं, किसान साधारण तथा निर्धन होते हैं, पुराने औजार और मानव तथा पशु श्रम का अधिक प्रयोग होता है, नये मशीनों का प्रयोग कम होता है तथा पूंजी निवेश भी कम होता है। रासायनिक खादों और सिंचाई के साधनों का इस्तेमाल कम होता है। मानसूनी वर्षा पर निर्भरता अधिक रहती है। इसके बावजूद इस क्षेत्र में प्रति हेक्टर उत्पादन अधिक होता है। इसका कारण यह है कि यह खेती एक जीवन शैली बन गई है। खेत किसानों का एक प्रकार का बगीचा होता है, जिसमें दिन-रात परिश्रम करके अधिकाधिक उत्पादन करते हैं और एक-एक इंच भूमि पर फसल उपजाते हैं। यहाँ वर्ष में दो-तीन फसलें और एक फसल मौसम में कई फसलें उपजायी जाती हैं। फसलों में खाद्यान्न की प्रधानता रहती है; अन्य फसलें आवश्यकतानुसार उपजाई जाती हैं। गहन निर्वाहन कृषि मानसून जलवायु वाले दक्षिणी एवं दक्षिणी पूर्वी एशिया में प्रचलित है। इस क्षेत्र में अत्यधिक घनी जनसंख्या के कारण उत्पादन निर्वाहस्तर पर ही रहता है और बिक्री के लिए अवशेष बहुत कम बचता है। इसी कारण इसे निर्वाहन कृषि कहा जाता है। जलवायु में प्रादेशिक भिन्नता के कारण गहन निर्वाहन कृषि मुख्यतः दो प्रकार की होती हैं-

(i) चावल प्रधान गहन निर्वाहन कृषि, (ii) चावल विहीन गहन निर्वाहन कृषि |


9. स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद भारत में हुए कृषि विकास की व्याख्या करें। (Discuss the development of agriculture in India after independence.)

उत्तर ⇒ कृषि भारतीय अर्थव्यवस्था का आधार है, जो देश के 57% भू-भाग पर की जाती है और जिस पर देश की 53% जनसंख्या आश्रित है। स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद भारत ने कृषि में पर्याप्त प्रगति की है। बीसवीं शताब्दी के मध्य तक इसकी दशा दयनीय थी। अकाल, सूखा और देश विभाजन के बाद एक तिहाई सिंचित क्षेत्र का पाकिस्तान में चला जाना ऐसी समस्याएँ थीं,  जिससे निपटने के लिए स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद खाद्यान्न का उत्पादन बढ़ाना आवश्यक हो गया। इसके लिए कृषि विकास की रणनीति के अंतर्गत कई उपाय अपनाए गए, जिनमें (i) व्यापारिक फसलों की जगह खाद्यान्नों का उपजाना, (ii) कृषि गहनता को बढ़ाना तथा (iii) कृषि योग्य बंजर तथा परती भूमि को कृषि भूमि में परिवर्तित करना शामिल है। प्रारंभ में इस नीति से खाद्यान्नों का उत्पादन बढ़ा, किन्तु बाद में यह स्थिर हो गया। इस समस्या से उभारने के लिए 1961 में गहन कृषि जिला कार्यक्रम (IADP) और गहन कृषि क्षेत्र कार्यक्रम (IAAP) प्रारंभ किये गये । लेकिन 1960 के दशक के अकाल और खाद्यान्न के आयात की बाध्यता ने सरकार को विभिन्न कार्यक्रमों को कार्यान्वित करने पर बाध्य कर दिया। सरकार ने अधिक उपज देने वाले गेहूँ के बीज मेक्सिको से तथा चावल के बीज फिलिपींस से आयात किए। इसके अतिरिक्त सिंचित क्षेत्र का विस्तार किया गया, रासायनिक खाद, कीटनाशक और कृषि यंत्र के प्रयोग पर जोर दिया गया। इन प्रयासों के फलस्वरूप खाद्यान्नों के उत्पादन में बहुत वृद्धि हुई और इसे ” हरितक्रान्ति” के नाम से जाना गया। देश खाद्यान्न में आत्मनिर्भर हो गया। किन्तु हरित क्रांति का लाभ पंजाब, हरियाणा, उत्तरप्रदेश, आंध्रप्रदेश और गुजरात के सिंचित क्षेत्र तक ही सीमित रहा और देश में कृषि विकास में प्रादेशिक असमानता बढ़ गई। 1980 ई० के बाद यह प्रौद्योगिकी देश के मध्य और पूर्वी भाग में पहुँची। 1980 के दशक में योजना आयोग ने वर्षा आधारित क्षेत्र की कृषि पर ध्यान दिया और 1988 में कृषि विकास में प्रादेशिक संतुलन लाने के लिए कृषि, पशुपालन तथा जलकृषि के विकास के लिए संसाधनों के विकास पर बल दिया। 1990 के दशक की उदारीकरण नीति तथा उन्मुक्त बाजार अर्थव्यवस्था ने भी भारतीय कृषि विकास को प्रभावित किया है।


10. भारत में गेहूँ की खेती के लिए उपयुक्त भौगोलिक दशाओं का वर्णन कीजिए। (Describe the suitable geographical conditions for the production of wheat in India.)

उत्तर ⇒ गेहूँ उत्पादन की उपयुक्त भौगोलिक दशाएँ— गेहूँ शीतोष्ण कटिबंधीय फसल है। अतः इसकी खेती मुख्यतः कर्करेखा के उत्तर पश्चिमोत्तर भारत में होती है। गेहूँ को बोते समय 10° से 15° से०ग्रेड तथा पकते समय 20° से 30° से०ग्रेड तापमान उपयुक्त होता है। इसके लिए 50 से 75 सेमी० वर्षा उपयुक्त होती है। वर्षा के अभाव में सिंचाई का समुचित प्रबंध अनिवार्य हो जाता है। फसल पकते समय तेज धूप एवं शुष्क ताप आवश्यक है। गेहूँ की खेती किसी भी मिट्टी में हो सकती है, किन्तु हल्की दोमट मिट्टी तथा काली मिट्टी गेहूँ के लिए उपयुक्त मानी जाती है। गेहूँ की खेती में भी कुशल श्रमिकों की आवश्यकता पड़ती है, किन्तु अब पंजाब, हरियाणा तथा उत्तर प्रदेश में ट्रैक्टर से जुताई तथा थ्रैसर से दमाही होने लगी है। अब बिहार में भी इसका प्रयोग होने लगा है। भारत में गेहूँ रब्बी की फसल है। इसकी बुआई नवम्बर-दिसम्बर में होती है तथा मार्च-अप्रैल में काट ली जाती है। इस अवधि में ही भारत में गेहूँ उत्पादन की उपयुक्त दशा मिलती है। इसकी खेती में अधिक वर्षा और अधिक तापमान नुकसानदेह है। इसी कारण बंगाल – असम के महत्त्वपूर्ण धान क्षेत्र गेहूँ के प्रमुख क्षेत्र नहीं बन पाये हैं।


11. भारत में गेहूँ के उत्पादन क्षेत्र (वितरण) का वर्णन कीजिए। (Describe the distribution of wheat in India.)

उत्तर ⇒ भारत में गेहूँ की खेती मुख्यतः सतलज के मैदान, ऊपरी और मध्य गंगा के मैदान तथा मध्यवर्ती भारत में होती है। इसके प्रमुख उत्पादक राज्य निम्नलिखित हैं

1. उत्तर प्रदेश – इस राज्य में कुल कृषि भूमि के 23% क्षेत्र पर गेहूँ बोया जाता है। यह प्रदेश देश का 30% गेहूँ उत्पादित करता है। गंगा-यमुना दोआब तथा गंगा- घाघरा क्षेत्र गेहूँ की ऊपज के लिए प्रसिद्ध है। वैसे पठारी भागों को छोड़कर समस्त भू-भाग में गेहूँ की खेती की जाती है। मेरठ, बुलंदशहर, मुजफ्फरनगर, सहारनपुर, इटावा, कानपुर, आगरा, अलीगढ़ प्रमुख उत्पादक जिले हैं।
2. है। पंजाब – इस राज्य में कुल कृषि भूमि के 12.5% भाग पर गेहूँ की खेती की जाती । यह कुल राष्ट्रीय उत्पादन का 24% गेहूँ उत्पन्न करता है। यहाँ नहरों द्वारा सिंचाई की सुविधा है। अमृतसर, लुधियाना, पटियाला, जालंधर, फिरोजपुर इत्यादि मुख्य उत्पादक जिले हैं।

3. हरियाणा – इस राज्य की कुल कृषि भूमि के 6.17% भाग पर गेहूँ की खेती की जाती है। मुख्य उत्पादक जिले रोहतक, हिसार, गुड़गाँव, करनाल व ज़िन्द हैं। दक्षिणी-पूर्वी जिलों की जलवायु शुष्क है, लेकिन नहरों के विकास के कारण गेहूँ का उत्पादन बढ़ गया है।

4. मध्यप्रदेश – राज्य की कृषि भूमि के 17.7% क्षेत्र पर गेहूँ उगाया जाता है तथा यह पूरे देश का 12% गेहूँ प्रदान करता है। देश में इसका चौथा स्थान है। होशंगाबाद, ग्वालियर,सागर, नीमाढ़, उज्जैन, देवास, भोपाल और जबलपुर मुख्य उत्पादक जिले हैं।

उपर्युक्त राज्यों के अलावा पूर्वी राजस्थान व बिहार में गेहूँ का महत्त्व बढ़ता जा रहा है। दक्षिण भारत में महाराष्ट्र व गुजरात के लावा मिट्टी प्रदेश व तमिलनाडु के मदुराई क्षेत्र में गेहूँ का उत्पादन उल्लेखनीय है।

Geography Subjective Question 12th Class


PART – A ⇒ मानव भूगोल के मूल सिद्धांत
 UNIT – Iमानव भूगोल : प्रकृति एवं विषय क्षेत्र
 UNIT – IIविश्व जनसंख्या : वितरण घनत्व और वृद्धि
 UNIT – IIIजनसंख्या संघटन
 UNIT – IVमानव विकास
 UNIT – Vप्राथमिक क्रियाएँ
 UNIT – VIद्वितीयक क्रियाएँ
 UNIT – VIIतृतीयक और चतुर्थ क्रियाकलाप
 UNIT – VIIIपरिवहन एवं संचार
 UNIT – IXअंतरराष्ट्रीय व्यापार
 UNIT – Xमानव बस्ती
 Class 12th Arts Question  Paper
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