12th Board Home Science Question BSEB | Home Science Class 12 Question Paper 2024

12th Board Home Science Question BSEB 2024 :- दोस्तों यदि आप home science class 12 question paper की तैयारी कर रहे हैं तो यहां पर आपको Class12th home science question exercise दिया गया है जो आपके home science 12th Exam question answers 2024 के लिए काफी महत्वपूर्ण है


12वीं बोर्ड गृह विज्ञान प्रश्न

1. हार्मोन्स के क्या कार्य है? (What are the functions of Hormones ? )

उत्तर ⇒ प्रत्येक अंत: स्रावी ग्रंथियों से विभिन्न प्रकार के हार्मोन निकलते हैं जिनका काम शरीर में भिन्न-भिन्न होता है जो इस प्रकार हैं

(i) थाइराइड ग्रंथि का स्त्राव — थाइरॉक्सिन नामक स्राव थाइरॉइड ग्रंथि से निकलता है। इसमें आयोडीन की पर्याप्त मात्रा होती है। यह कोशिकाओं की वृद्धि तथा उनमें होने वाली क्रियाओं को नियंत्रित करता है। इसकी कमी से शारीरिक वृद्धि रुकना, नाटा, मानसिक विकास रुक जाता है।

(ii) उपचुल्लिका ग्रंथि का स्त्राव —  यह हार्मोन परावटु ग्रंथि (Parathyroid gland) से निकलता है यह हार्मोन कैल्सियम तथा फॉस्फोरस के चयापचय को नियंत्रित करता है। इस हार्मोन के कम स्रावित होने पर रक्त में कैल्सियम की मात्रा कम हो जाती है जिससे शरीर की अस्थियों की वृद्धि रुक जाती है।

(iii) पीयूष ग्रंथि का स्राव इस स्राव में पिट्रेसिन एवं पिपटोसिन नामक स्त्राव मिला रहता है। पिट्रोसिन रक्त के दाब की शरीर में नियंत्रित रखता है एवं मूत्र में जल की मात्रा बढ़ने नहीं देता। यह गर्भाशय के पेशियों के संकुचन एवं नियमन के कार्य को नियंत्रित रखता है।

(iv) अधिवृक्क ग्रंथियों का स्त्राव इसका प्रभाव स्वायत्त नाड़ी संस्थान पर पड़ता है। यह शरीर में उत्तेजना एवं साहस भरता है।

(v) थाइमस ग्रंथि का स्त्राव यह स्राव प्रजनन संस्थान के विकास एवं यौवनारंभ के लिए आवश्यक है। यह शरीर में रोग प्रतिरोधक क्षमता भी बढ़ाता है।


2. लिंग ग्रंथियाँ क्या है? इनके कार्यों को लिखें। (What are sex glands? Write their functions.)

उत्तर ⇒  लिंग ग्रंथि एक जीव के सेक्स कोशिकाओं और सेक्स हार्मोन का उत्पाद करती है। पुरुष के वृषण (Testes) और स्त्री में डिम्ब ग्रंथि (overies) “लिंग ग्रंथियाँ” या यौन ग्रंथियाँ कहलाती है। डिम्ब ग्रंथि से दो तथा वृषण से एक अंत: स्राव निकलता है।

लिंग ग्रंथि के कार्य

लिंग ग्रोथ के कार्य निम्न हैं—

(1) वृषण (Testis)—इसकी संख्या दो होती हैं। यह शरीर के बाहर शिशन के नीचे अंडकोष या वृषण कोष नामक थैली में अवस्थित रहता है। इसके दो भाग होते हैं एक भाग शुक्राणु उत्पन्न करता है जो शुक्रवाहिनी नलिका द्वारा शुक्राशय में पहुँचकर एक होते हैं तथा मैथुन 1/9 समय बाहर निकलते हैं। ग्रंथि का दूसरा भाग एक प्रकार का पुरुष हार्मोन अंतःस्राव उत्पन्न करता है जिसे ऍड्रोजन (Androgen) कहते हैं जो सीधे रक्त में अवशोषित हो जाता है। इसी अंतःस्राव से पुरुष की जननेन्द्रियों में वृद्धि होती है।

(2) डिम्बग्रंथि—यह नारी यौन ग्रंथि है। इसकी संख्या दो होती है। यह बादाम के आकार की तथा उदर के नीचले भाग (श्रोणी) गुहा में रहती है। यह गर्भाशय की दाहिनी और बायीं ओर स्थित रहती है। डिम्ब ग्रंथि के अंतःस्राव को आस्ट्रोजन (Oestrogen) तथा “प्रीजेस्ट्रान “(Progestrone) कहते हैं। ऑस्ट्रोजन स्त्री अंगों को गर्भधारण योग्य बनाता है। गर्भाधान से गर्भाशय तथा योनि प्रणाली में जो परिवर्तन होता है इसी अंत: स्राव के कारण होता है। किशोरियों को युवती बनाने में यह सहायक होता है


3. भोजन संरक्षण की कौन-कौन-सी विधियाँ है? (What are the various methods of food preservation ?)

उत्तर ⇒  भोज्य पदार्थ के खराब होने का मुख्य कारण जीवाणु है। ये जीवाणु भोज्य पदार्थों में रासायनिक परिवर्तन करते हैं जिससे भोजन सड़ता है। भोज्य पदार्थ को संरक्षण करने वाली विधियों का प्रमुख उद्देश्य उन कीटाणुओं के द्वारा किये गये रासायनिक परिवर्तन को रोकना है। भोज्य पदार्थों के संरक्षण की विधियाँ इस प्रकार हैं :

(i) हिमीकरण विधि (Freezing method) — इस विधि में भोज्य पदार्थ के तापक्रम को बहुत ही कम कर दिया जाता है जिससे सूक्ष्म जीवों की वृद्धि रुक जाती है। इस विधि से मछली, माँस, दूध, आइसक्रीम, दही, सूप तथा सब्जियाँ संग्रहित की जाती है।

(ii) शुष्कीकरण द्वारा — हर भोज्य पदार्थ में कुछ न कुछ नमी अवश्य ही पायी जाती है। उसमें उपस्थित नमी को हटा देने से भोज्य पदार्थ अधिक दिनों तक संरक्षित रहता है। इस विधि से अनाज, मेवे, दाल, हरी सब्जी, फल, पापड़, बड़ियाँ, चिप्स आदि घर में सुखाकर संरक्षित किया जाता है। उपकरणों जैसे स्प्रे ड्रायर, रोटरी ड्रायर आदि से दूध पाउडर तथा मछली सुखाये जाते हैं।

(iii) वायु को निकालकर संरक्षण — इसके अंतर्गत कैनिंग तथा बॉटलिंग की विधि आती है। इन विधि में भोज्य पदार्थ को पहले भाप में पका लिया जाता है। फिर डब्बों में भर दिया जाता है। इन डब्बों को एक बड़े बर्तन में रखे पानी में रखकर गर्म करते हैं। ताप के प्रभाव से वायु उड़ जाती हैं उसी समय डिब्बा को बंद कर दिया जाता है।

(iv) रासायनिक पदार्थों के द्वारा संरक्षण- सोडियम बेन्जोएट, पोटैशियम मेटाबाइसल्फाइड आदि डालकर शर्बत, केचप आदि को संरक्षण किया जाता है।

(v) कीटाणुनाशक वस्तुओं के द्वारा संरक्षण विभिन्न प्रकार के सब्जियों तथा फलों, मुरब्बा, जैम, जेली, अचार आदि को नमक, चीनी, सिरका, राई आदि से संरक्षित किया जाता है।


12th Board Home Science Question BSEB

4. एकीकृत (समेकित बाल विकास योजना की सेवाएँ और लाभ क्या है? (What are the services and advantages of Integrated Child Development Scheme (ICDS).)

उत्तर ⇒  एकीकृत (समेकित बाल विकास योजना में छोटे बच्चों, गर्भवती माता की स्वास्थ्य संबंधी देख-रेख की जाती है।

⇒ इस संगठन द्वारा बच्चों, गर्भवती एवं धात्री को पूरक पोषक तत्त्व प्रदान किया जाता है।

⇒ बच्चों एवं गर्भवती को संक्रामक रोगों से बचाव के लिए टीके उपलब्ध करवाता है। इसके माध्यम से निम्न सेवाएँ उपलब्ध हैं

(i) पूरक आहार

(ii) टीकाकरण

(iii) स्वास्थ्य सेवाएँ

(iv) स्वास्थ्य एवं आहार शिक्षा

(v) अनौपचारिक शिक्षा

(vi) रोधक्षमतात्मकता (रोग प्रतिकारक)

⇒ इस संस्था में बच्चों को अपराहन भोजन दिए जाते हैं जिसके माध्यम से उन्हें पोषक तत्त्व उपलब्ध कराया जाता है।

⇒ बच्चों को टीके लगाकर टिटनेस, डिप्थेरिया, कुकुर खाँसी, पोलियो, मिजिल्स, क्षयरोग से दूर रखा जाता है।

⇒ बच्चों एवं गर्भवती स्त्रियों को स्वास्थ्य चिकित्सा उपलब्ध कराई जाती है।

⇒ स्वास्थ्य एवं पोषण की शिक्षा सामुहिक रूप से कभी-कभी व्यक्तिगत रूप से दी जाती है।

⇒ भावी माता को टिटनेस का टीका, आयरन और फौलिक एसिड टेबलेट तथा प्रोटीन की गोली दी जाती है।

⇒ 6-8 सप्ताह तक प्रसवोपरांत माता की जाँच की जाती हैं। साथ ही महिलाओं को जनसंख्या संबंधी शिक्षा भी दी जाती है।


5. उपभोक्ताओं की समस्याओं का उल्लेख करें। (Explain the problems faced by Consumers.)

उत्तर ⇒  उपभोक्ताओं की निम्नलिखित समस्याएँ हैं

(i) कीमतों में अस्थिरता — कुछ दुकानों पर सामान की कीमतें बहुत अधिक होती हैं, जिससे दुकानदार अधिक लाभ कमाता है। दुकान की देख-रेख, बिलपत्र और खरीद की कीमत को पूरा करता है, वातानुकुलित एवं कम्प्यूटरयुक्त होने से उसकी सुविधाओं की कीमत वसूलता है। घर पर निःशुल्क सामान पहुँचाने की सेवा अधिक कीमत लेकर उपलब्ध कराता है। समृद्ध रिहायशी क्षेत्रों में नए आकार-प्रकार की बाजारों में भी सामान की कीमत अधिक होती है।

(ii) मिलावट—यह वांछित तथा प्रासंगिक दोनों हो सकते हैं। दुर्घटनावश जब दो अलग-अलग वस्तुएँ मिल जाती हैं तो उसे प्रासंगिक मिलावट तथा जान-बूझ कर जब उपभोक्ता को उगने और अधिक लाभ कमाने हेतु अपमिश्रित वस्तुएँ को वांछित मिलावट कहते हैं।

(iii) अपूर्ण एवं धोखा देने वाले लेवल—उस प्रकार के लेबल से उपभोक्ता असली तथा नकली लेबल की पहचान करने में असमर्थ होता है। निम्न गुणवत्ता वाले सामान का प्रतिष्ठित सामान के आकार और रंग के लेबल लगाकर उपभोक्ताओं को गुमराह कर देते हैं। सजग उपभोक्ता ही उसे पहचान पाता है।

(iv) दुकानदारों द्वारा उपभोक्ता को प्रेरित करना-अधिक कमीशन जिस ब्राण्ड वाले सामान में मिलता है उसे खरीदने के लिए दुकानदार उपभोक्ता को प्रेरित करते हैं।

(v) भ्रामक विज्ञापन– उपभोक्ता को आकर्षित करने के लिए दुकानदार विज्ञापन की सहायता से उपभोक्ता को प्रेरित कर देते हैं।

(vi) विलम्बित / अपूर्ण उपभोक्ता सेवाएँ—स्वास्थ्य, पानी, विद्युत, डाक और तार की दोषपूर्ण सेवाएँ भी उपभोक्ताओं को परेशान करती हैं।


6. उपभोक्ता के क्या अधिकार हैं? खरीददारी करते समय उपभोक्ता को किन-किन समस्याओं का सामना करना पड़ता है? (What are the rights of consumer? What major problems does a consumer face during purchasing ?)

उत्तर ⇒  “किसी भी उत्पादित वस्तु को खरीदने वाला उपभोक्ता कहलाता है।” उपभोक्ता द्वारा खरीदी जाने वाली वस्तु उनके लिए किसी प्रकार से हानिकारक नहीं होनी चाहिए तथा उसे खरीददारी करते समय किसी प्रकार का धोखाधड़ी का सामना न करना पड़े, इसके लिए उपभोक्ताओं के कुछ अधिकार दिये गये हैं जो निम्नलिखित हैं

(i) सुरक्षा का अधिकार —  उपभोक्ता स्वास्थ्य के लिए हानिकारक खाद्य पदार्थों, नकली दवाइयाँ आदि के बिक्री पर रोक की माँग कर सकते हैं।

(ii) जानकारी का अधिकार उपभोक्ता किसी भी वस्तु की गुणवत्ता, शुद्धता, कीमत, तौल आदि की जानकारी की माँग कर सकते हैं।

(iii) ‘चयन का अधिकार — उपभोक्ता को अधिकार है कि विक्रेता उसे सभी निर्माताओं की बनी हुई वस्तु दिखाएँ ताकि वह उनका तुलनात्मक अध्ययन करके उचित कीमत पर गुणवत्ता वाली वस्तु खरीद सके।

(iv) सुनवाई का अधिकार — खरीदी हुई वस्तु में कोई कमी होने पर उपभोक्ता को यह अधि कार है कि वे वस्तु निर्माता विक्रेता तथा संबंधित अधिकारी से शिकायत कर सकते हैं।

(v) क्षतिपूर्ति का अधिकार — वस्तुओं तथा सेवाओं से होने वाले नुकसान की क्षतिपूर्ति की माँग कर सकते हैं।

(vi) उपभोक्ता शिक्षा का अधिकार —उपभोक्ता सही जानकारी तथा सही चुनाव करने के ज्ञान की माँग कर सके।

उपभोक्ताओं की समस्याएँ—

(i) वस्तुओं में मिलावट — प्रतिदिन की खरीददारी में उपभोक्ता को वस्तुओं में मिलावट का सामना करना पड़ता है। मिलावट के कारण मुनाफाखोरी वस्तुओं की कम उपलब्धता, बढ़ती महँगाई आदि है।

(ii) दोषपूर्ण माप-तौल के साधन — बाजार में प्रायः मानक माप-तौल के साधनों का प्रयोग नहीं किया जाता हैं बल्कि नकली, कम वजन के बाट की जगह ईंट-पत्थर का प्रयोग होता है।

(iii) वस्तुओं का अपूर्ण लेबल  —  प्रायः उत्पादक वस्तुओं पर अपूर्ण लेबल लगाकर उपभोक्ताओं को धोखा देने का प्रयास करते हैं, जिससे उपभोक्ता भ्रम में गलत वस्तु खरीद लेता है।

(iv) बाजार में घटिया किस्म की वस्तुओं की उपलब्धि — आजकल उपभोक्ताओं को घटिया किस्म की वस्तुएँ खरीदना पड़ रहा है जिसके लिए अधिक कीमत भी देना पड़ता हैं। जैसे— घटिया लकड़ी से बने फर्नीचर रंग करके बेचना, घटिया लोहे के चादरों की अलमारी आदि ।

(v) नकली वस्तुओं की बिक्री —  आज बाजार में नकली वस्तुओं की भरमार हैं। असली पैकिंग में नकली सामान, दवाई, सौन्दर्य प्रसाधन, तेल, घी, आदि भर कर बेचा जाता है।

(vi) भ्रामक और असत्य विज्ञापन — प्रत्येक उत्पादनकर्ता अपने उत्पादन की बिक्री बढ़ाने के लिए भ्रामक और असत्य विज्ञापनों का सहारा लेते हैं। वस्तुओं की गुणवत्ता को बढ़ा-चढ़ाकर बतलाते हैं।

(vii) निर्माता या विक्रेता द्वारा गलत हथकण्डे अपनाना — मुफ्त उपहार, दामों में भारी छूट जैसी भ्रामक घोषणाएँ द्वारा उपभोक्ता धोखा खा जाते हैं और अच्छे ब्राण्ड के धोखे में गलत वस्तु खरीद लेते हैं।


7. बचत क्या है? इससे होने वाले लाभों का वर्णन करें। (What is Saving ? Describe the benefits of Saving.)

उत्तर ⇒ बचत-किन्स के अनुसार, “वर्तमान आय का वर्तमान उपभोग व्यय पर आधिक्य को बचत कहा जाता है।” उसे नियमित रूप से जमा करें। छोटी बचत की रकम ही इकट्ठी होकर बड़ी रकम बनकर हमारा कार्य पूरा करती है। अतः बचत वह धन है, जो उत्पादक कार्यों में विनियोजित किया जाए और निश्चित समयोपरांत बढ़ी हुई धनराशि के रूप में प्राप्त हो ।

बचत के लक्ष्य या महत्त्व — बचत के लक्ष्य या महत्त्व निम्नलिखित हैं

(i) मितव्ययिता की आदत एक प्रसिद्ध उक्ति है “महत्त्वपूर्ण यह नहीं है कि हम कितना कमाते हैं। महत्त्वपूर्ण यह है कि हम कितना बचा लेते हैं।” व्यय करने की कोई सीमा नहीं होती है। बचत से परिवार के सदस्यों में मितव्ययिता की आदत पड़ जाती है। मितव्ययी नहीं होने से मनुष्य सदैव अपनी आमदनी से अधिक खर्च कर डालता है

(ii) आकस्मिक आवश्यकताओं की पूर्ति — प्रत्येक परिवार में आकस्मिक दुर्घटना तथा शारीरिक असमर्थता, चाहे वह गंभीर रोग से हो या बुढ़ापे से आदमी को आर्थिक कष्ट में डाल देती है जो परिवार नियमित रूप से बचत करता है वह अपने भविष्य के प्रति निश्चित रहता है।

(iii) भविष्य में अपरिहार्य कारणों से आय बंद होने की स्थिति में बचत का महत्त्व समझ में आने लगता है।

(iv) आकस्मिक खर्च की पूर्ति घर में आग लग जाने, चोरी हो जाने, महँगाई बढ़ जाने, परिवार के मुखिया की मृत्यु हो जाने आदि पर संचयित राशि ही परिवार को आर्थिक संकट से उबारती है।

(v) अनावश्यक खर्चों पर प्रतिबंध बचत करने के लिए व्यय की रूपरेखा बनाकर ही परिवार के सदस्य व्यय करते हैं। बचत की आदत पड़ जाने से अनावश्यक खर्च कम किया जा सकता है।

(vi) बचत की राशि के उचित विनियोग से लाभांश की रकम काफी बढ़ जाती है।

(vii) स्थायी संपत्ति की खरीद— इस राशि का उपयोग कर मकान या जमीन जैसी अचल संपत्ति क्रय की जा सकती है जो आय के साधन के साथ ही सामाजिक प्रतिष्ठा प्रदान करती है।

(vii) बचत किया हुआ धन अपने पास रहने पर व्यक्ति अधिक संतुष्टि का अनुभव करता है। वह किसी भी स्थिति से निपटने का हौसला रखता है जिससे उसकी हीन भावना दूर होकर उसमें मनोवैज्ञानिक निश्चतता आती है।

(ix) राष्ट्रीय योजनाओं के संचालन में मदद — बैंकों में संचयित राशि राष्ट्रीय योजनाओं को पूर्ण करने में या उनके संचालन में विनियोग कर दी जाती है। अतः राष्ट्र के विकास एवं रक्षा के आवश्यक साधनों पर भी बचत का उपयोग होता है।

(x) बचत करने से मुद्रास्फीति पर भी नियंत्रण किया जा सकता है।

बचत का सदुपयोग के क्रम में भारत सरकार ने दो प्रकार की प्रणाली का निर्माण किया पहली बैंकिंग प्रणाली तथा दूसरी नॉनबैंकिंग प्रणाली कहलाती है। दोनों संस्थाएँ भारतीय रिजर्व बैंक के मानदंडों के अनुसार ही चलती हैं, किंतु दोनों संस्थाओं के कार्य करने के तरीके अलग-अलग है

      इसके अलावा भारतीय डाक एवं तार विभाग के द्वारा संचालित पोस्ट ऑफिस का बचत विभाग है। यह पूर्णरूप से सरकार की ही संस्था है। इस पर भारतीय रिजर्व बैंक का विधान लागू नहीं होता है। सरकारी या अर्द्ध-सरकारी निकायों में कार्यरत व्यक्तियों के लिए अनिवार्य भविष्य निधि योजना एवं कन्ट्रीब्यूटरी प्रोविडेंड फंड एवं सामूहिक बीमा योजना आदि द्वारा बचत एवं उनपर मिलने वाले ब्याज दर पर सीधे राज्य या केंद्र सरकार का नियंत्रण होता है। पोस्ट ऑफिस में भी सामान्य बैंकों की तरह साधारण बचत खाता, आवर्ती जमा योजना, सावधि बचत योजना, किसान विकास-पत्र, राष्ट्रीय बचत पत्र आदि हैं तथा नॉनबैंकिंग प्रणाली की तरह डाक जीवन बीमा (पोस्टल लाइफ इंश्योरेन्स) स्कीम आदि हैं।

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8. बैंक खातों के विभिन्न प्रकार कौन-कौन से हैं? (What are the different types of Bank Accounts ?)

उत्तर ⇒  बैंक वह संस्थान है जहाँ रुपये का लेन-देन होता है। कोई भी व्यक्ति अपने रुपये को बैंक में जमा कर सकता है और आवश्यकता पड़ने पर निकाल भी सकता है। बैंक इस धन राशि पर कुछ व्याज भी देती है।

बैंक में खातों के प्रकार  — बैंक में निम्न प्रकार के खाते खोले जा सकते हैं—

(1) बचत खाता — अधिकांश बैंकों में यह खाता 500 रु० से खोला जा सकता है। इसमें कभी धन जमा करवा सकते हैं। बैंक इस धन पर कुछ राशि ब्याज के रूप में दे देता है। ये खाता एक, दो या अधिक व्यक्तियों के साथ संयुक्त रूप से खोला जा सकता है।

(ii) चालू खाता —चालू खाता व्यापारी वर्ग के लिए होता है। आवश्यकता पड़ने पर इस खाते से जितनी बार चाहे धन निकाला जा सकता है। इस खाते में जमा राशि पर ब्याज नहीं मिलता।

(iii) निश्चित अवधि जमा योजना (F.D.) – इस खाते में धन राशि एक निश्चित अवधि के लिए जमा की जाती है। यह अवधि तिमाही, छमाही या वार्षिक या अवधि समाप्त होने पर ब्याज के साथ धन राशि ले सकता है आवश्यकता पड़ने पर कुछ धन राशि कटौती के साथ निकाली जा सकती है।

(iv) आवर्ती जमा खाता (R.D.) इस योजना के अंतर्गत एक निश्चित धनराशि एक निश्चित समय तक निरन्तर प्रतिमाह जमा करने पर ब्याज के रूप में मोटी रकम प्राप्त कर सकते हैं। इस खाते में 12, 24, 36, 48, 60 माह तक एक निश्चित धनराशि जमा करनी होती है।

(v) संचयी सावधि जमा-संचयी सावधि जमा वह है जहाँ जमा की अवधि केवल अंत में कि मध्य में आप बकाया ब्याज प्राप्ति के लिए चुनते हैं। प्राप्त होने वाली ब्याज आपकी जमा राशि में जुड़कर प्राप्त होती है।


9. चेक कितने प्रकार के होते हैं? चेक द्वारा भुगतान करने के लाभों का उल्लेख करें। (How many types of cheques? Points out the advantages of paying by cheques.)

उत्तर ⇒  चेक तीन प्रकार के होते हैं

(1) वाहक चेक — इसमें प्राप्तकर्ता के सामने वाहक लिखा होता है। इसकी राशि कोई भी व्यक्ति प्राप्त कर सकता है, इसे खो जाने का खतरा रहता है।

(ii) आदेशक चेक — इसमें वाहक शब्द काटकर आदेशक लिखा होता है, जिस व्यक्ति के नाम से चेक लिखा होता है। भुगतान उसी को दिया जाता है अथवा वाहक जिसका नाम चेक के दूसरे तरफ लिखा होता हैं बैंक वाहक का हस्ताक्षर लेकर ही भुगतान करता  हैं

(iii) रेखांकित चेक — इस चेक की बायीं ओर के ऊपरी सिरे पर दो तिरक्षी समानान्तर रेखाएँ खींची होती है। इसकी राशि का भुगतान नहीं किया जाता है। व्यक्ति के नाम के खाते में राशि जमा कर दी जाती है। इस प्रकार के चेक खोने पर दूसरे व्यक्ति को राशि मिलने की संभावना कतई नहीं होती।

चेकों द्वारा भुगतान करने के लाभ निम्न हैं

(i) सुरक्षित — केवल नामित प्राप्तकर्ता ही बैंक या अन्य वित्तीय संस्थान में चेक भूना सकता है। इसलिए यह सुरक्षित है।

(ii) विश्वसनीय — चेक द्वारा भुगतान का यह विश्वसनीय तरीका हैं जो पीढ़ी दर पीढ़ी चलता आ रहा है।

(iii) संसाधित किया गया बैच इससे कॉल्टयूमर्स को पोस्ट डेटेड चेक बताने की अनुमति मिलती है जो उन्हें अपने खातों में फंड डालने के लिए समय देता है।


10. घन का विनियोग (Investment) करते समय किन-किन बातों को ध्यान में रखना चाहिए? (What should be considered before investing money?)

उत्तर ⇒ धन का विनियोग करते समय निम्न बातों को ध्यान में रखना चाहिए—

(i) बचत कर्त्ता की बचत विनियोग की क्षमता धन को जमा करना जमाकर्ता के सामर्थ्य पर निर्भर करता है। कई योजनाओं में जैसे यूनिट्स में जमा करने की न्यूनतम राशि निर्धरित की जाती है। यदि वह न्यूनतम राशि जमाकर्त्ता के सामर्थ्य से बाहर है तो उसके लिए यह योजना उचित नहीं है। ऐसी स्थिति में उसे दूसरी बचत योजनाएँ देखनी चाहिए।

(ii) विनियोग की सुरक्षा — परिवार के लिए विनियोग का साधन चुनते समय इस बात का अवश्य ही ध्यान रखना चाहिए कि धन राशि हर तरह से सुरक्षित है। जैसे— आग, चोरी, बचत की हानि आदि।

(iii) विनियोग राशि पर उच्च व्याज दर — विनियोग का वही साधन अच्छा होता है, जिसमें हमें अपनी विनियोग की गयी धनराशि पर ब्याज अधिक मिलता हो ।

(iv) पूँजी की तरलता (Liquidity)— पूँजी की तरलता का अर्थ है कि आपातकालीन स्थिति में अपनी राशि को भुना सकते हैं। इस प्रकार बचत का विनियोग करना चाहिए जिससे आपातकाल में बिना ब्याज खोए धन राशि शीघ्र प्राप्त हो सके।

(v) विनियोग का सरल व उपयुक्त स्थान — विनियोग का स्थान दूर नहीं होना चाहिए अन्यथा धन के भुगतान व अन्य तकनीकी कठिनाइयों के कारण काफी समय नष्ट हो जाता है।

(vi) क्रय क्षमता— बढ़ती कीमतों से विनियोग की राशि की क्रय क्षमता भी सुरक्षित होना चाहिए। शेयर, जमीन, यूनिट्स आदि का लाभांश बढ़ती महँगाई को देखते हुए अधिक होता है।


11. घरेलू बजट का क्या महत्त्व है? परिवार के लिए बजट बनाते समय किन-किन बातों को ध्यान में रखना चाहिए? (What is the importance of domestic budget? What are the elements to be considered at the time of preparation of domestic budget?)

उत्तर ⇒ प्रत्येक परिवार अपनी आय का व्यय बहुत सोच समझकर कर सकता है क्योंकि धन एक सीमित साधन है तथा यह प्रयास करता है कि अपनी सीमित आय द्वारा अपने परिवार की समस्त आवश्यकताओं को पूर्ण करके भविष्य के लिए कुछ-न-कुछ बचत कर सके। यही कारण है कि गृह स्वामी तथा गृहस्वामिनी मिलकर सोच समझ करके अपने परिवार की आय का उचित व्यय करने के लिए लिखित एवं मौखिक योजना बनाते हैं और उस योजना को क्रियान्वित करने के लिए उन्हें अपने व्यय का पूरा हिसाब-किताब रखना पड़ता है। कोई भी परिवार घरेलू बजट बनाकर ही व्यय को नियंत्रित कर सकता है।

घरेलू बजट बनाने के निम्नलिखित लाभ है—

(i) घरेलू हिसाब-किताब प्रतिदिन लिखने से हमें यह ज्ञात रहता है कि हमारे पास कितना पैसा शेष बचा है जो परिवार की आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए अत्यंत आवश्यक है जिससे पारिवारिक लक्ष्य की प्राप्ति हो सके।

(ii) घरेलू हिसाब-किताब रखने से अधिक व्यय पर अंकुश रहता है।

(iii) विभिन्न आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए एक सामान्य दिशा निर्देश का आभास होता है।

(iv) असीमित आवश्यकताओं और सीमित आय के बीच संतुलन बनाने में मदद मिलती है।

(v) सही ढंग से व्यय करने के फलस्वरूप बचत व निवेश में प्रोत्साहन मिलती है।

(vi) इससे परिवार का भविष्य सुरक्षित रहता है।

परिवार के लिए बजट बनाते समय निम्नलिखित बातों पर ध्यान रखना चाहिए—

(i) आय और व्यय के बीच ज्यादा फासला न हो अर्थात् आय की तुलना में व्यय बहुत अधिक नहीं हो।

(i) बजट से जीवन लक्ष्यों की पूर्ति हो यानी परिवार को उच्च जीवन स्तर की ओर प्रेरित कर सके।

(iii) बजट बनाते समय अनिवार्य आवश्यकताओं को ध्यान में रखना चाहिए।

(iv) सुरक्षित भविष्य को ध्यान में रखकर बजट बनानी चाहिए ताकि आकस्मिक खर्चा जैसे—बीमारी, दुर्घटना तथा विवाह आदि के लिए धन की आवश्यकता की पूर्ति समय पर हो सके।

(v) व्यय को आय के साथ समायोजित होना चाहिए ताकि ऋण का सहारा न लेना पड़े।

(vi) बजट बनाते समय महँगाई को भी ध्यान में रखना चाहिए।

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