Home Science Dirgh Uttariya Prashn Class 12th | Class 12 Home Science ( दीर्घ उत्तरीय प्रश्न उत्तर )

Home Science Dirgh Uttariya Prashn Class 12th :- दोस्तों यदि आप बिहार बोर्ड Class 12 Home Science ( दीर्घ उत्तरीय प्रश्न की तैयारी कर रहे हैं तो यहां पर आपको 12th home science Long Subjective Question 2024 दिया गया है जो आपके Home Science Question 2024 class 12th के लिए काफी महत्वपूर्ण है


1. भोजन पकाने, परोसने और खाने में किन-किन नियमों का पालन करना चाहिए? (What are the rules that should be followed while cooking, serving and eating food ?)

उत्तर ⇒ भोजन पकाने के नियम — भोजन पकाने के निम्नलिखित चार नियम हैं

(i) जल द्वारा — पाक क्रिया आर्द्रता के माध्यम से उबालकर की जाती है।

(ii) वाष्प द्वारा — स्वास्थ्य की दृष्टि से यह उत्तम है क्योंकि खाद्य पदार्थ जल की वाष्प द्वारा पकाया जाता है।

(iii) चिकनाई द्वारा — उसके लिए तेल, घी आदि का प्रयोग किया जाता है। इसे निम्नलिखित विधि द्वारा पकाए जाते हैं

(a) तलने की अथली विधि

(b) तलने की गहरी विधि तथा

(c) तलने की शुष्क विधि ।

तलने की अथली विधि द्वारा चीला, डोंसा और मछली पकाये जाते हैं। तलने की गहरी विधि द्वारा पूड़ी, कचौड़ी, समोसे पकाये जाते हैं। तलने की शुष्क विधि द्वारा सॉसेज तथा बेलन बनाए जाते हैं।

(iv) वायु द्वारा — वायु का प्रयोग भुँजने तथा सेकने में किया जाता है। सब्जियों को पकाते समय धीमी आँच का प्रयोग करना चाहिए। ढंककर भोज्य पदार्थों को पकाने से, वाष्प के दबाव से शीघ्र पकते हैं तथा उसकी सुगंध भी बनी रहती है। दूध को उबलनांक पर लाकर आँच धीमी कर देना चाहिए और उसे कुछ देर उबलने देना चाहिए।

भोजन परोसने तथा खाने के नियम — इसके चार नियम हैं

(A) विशुद्ध भारतीय शैली — इसमें फर्श पर आसनी, दरी या लकड़ी के पटरे पर बैठकर भोजन किया जाता है।

(B) भारतीय-विदेशी मिली जुली शैली — इस शैली में मेज और कुर्सी पर बैठकर भोजन ग्रहण किया जाता है।

(C) पाश्चात्य शैली —इसमें मेज पर रखे काँटे, चम्मच तथा छुरी के प्रयोग से भोजन किया जाता है। भोजन परोसने का कार्य वेटर करते हैं।

(D) स्वाहार (बुफे) शैली— स्थान की कमी तथा अतिथि के अधिक होने की स्थिति में इसका प्रयोग किया जाता है। इसमें एक बड़ी मेज पर खाने की सभी सामग्रियों को डोंगों में रख दिया जाता है। इसमें स्वयं ही खाना निकालकर लोग खड़े होकर या घुमकर खाते हैं।


2. स्तनपान क्या है? यह शिशु के लिए आवश्यक क्यों है? (What is breast feeding ? Why it is necessary for the child ?)

उत्तर ⇒ संसार में आने के बाद शिशु के पोषण के लिए आहार के रूप में माँ का दूध सर्वोत्तम माना जाता है। जन्म के बाद दूध ही शिशु का आहार होता है। शिशु के इस आहार का प्रबंध माता के स्तन द्वारा होता है। यह प्राकृतिक आहार है जो शिशु के लिए अमृत समान होता है। माता द्वारा अपने शिशु को स्तनों से दूध पिलाने की क्रिया स्तनपान कहलाती है।

स्तनपान शिशु को कई कारणों से आवश्यक है— 

(1) माता के स्तनों से निकला पहला पीला गाढ़ा दूध जिसे कोलेस्ट्रम कहते हैं, शिशुओं को रोगों से लड़ने की क्षमता प्रदान करता है।

(ii) शिशु के लिए सर्वाधिक पौष्टिक और संतुलित आहार है।

(iii) शिशु के लिए सर्वाधिक पाचन तंत्र के अनुकूल है।

(iv) दूषणरहित है।

(v) उचित तापक्रम पर उपलब्ध है।

(vi) मिलावट रहित है।

(vii) सुरक्षित और आसानी से उपलब्ध है।

(viii) आर्थिक दृष्टि से लाभप्रद है।

(ix) माँ एवं बच्चे के सुदृढ़ भावनात्मक सम्बंध को विकसित करने में सहायक है।

(x) दूध को बनाना नहीं पड़ा या गर्म ठंडा नहीं करना पड़ता, यह स्वतः ही माँ के स्तनों से प्राप्त हो जाता है। जिससे समय की बचत होती है।


3. बच्चों को क्रेच में रखने से क्या लाभ है? (Whate the benefits of keeping children in creche ?)

उत्तर ⇒  बच्चे को उचित देखभाल जिस संस्थान में की जाती है वह क्रेच (शिशु सदन) कहलाती है। शिशु सदन द्वारा उपलब्ध सुविधाएँ निम्नलिखित हैं

(1) यह बच्चे को निश्चित समय तथा तापमान पर दूध तथा आहार प्रदान करता है।

(ii) इसमें बच्चों को खिलौने प्रदान किये जाते हैं जो बच्चों को प्रसन्न वातावरण में सामाजिक बनाने में सहायता करते हैं।

(iii) यह बच्चे को साफ और सुरक्षित वातावरण प्रदान करता है।

(iv) यह बच्चों को औषधि तथा प्राथमिक चिकित्सा प्रदान करता है।

(v) छोटे बच्चे को इसके स्टाफ द्वारा खाना खिलाया जाता है।

(vi) यह प्रत्येक छोटे बच्चे को चारपाई प्रदान करता है।

(vii) इसमें छोटे बच्चे खिलौने होने से खेलने का आनंद उठाते हैं।

(viii)  यह बच्चों को मेज पर बैठकर खाने का ढंग सिखाता है।


4. बच्चों में असमर्थता के क्या कारण होते हैं? (What are the reasons of disability in children ?)

उत्तर ⇒ लगभग प्रत्येक व्यक्ति में कुछ न कुछ शारीरिक, मानसिक या सामाजिक असमर्थता पायी जाती है। उसे समूह का हिस्सा बनने से रोकती है। कुछ ऐसे व्यक्ति भी होते हैं जो अधिक गंभीर असमर्थता से ग्रसित होते हैं, ऐसा व्यक्ति हो सकता है व्हील चेयर का उपयोग करते हों या कान में सुनने वाली मशीन पहनते हों या लम्बे समय से अपनी मानसिक विकलांगता का इलाज करा रहे हों, यह सभी स्थितियाँ किसी व्यक्ति की असमर्थता का प्रतीक मानी जाती हैं।

बच्चों में असमर्थता के निम्नलिखित कारण हैं

(i) जन्म से पूर्व — गर्भ के समय माँ को किसी पौष्टिक तत्त्व की कमी से शिशु को शारीरिक तथा मानसिक असमर्थता हो सकती है। माँ के गर्भ में चोट लगने तथा गर्भ के समय किसी प्रकार की बीमारी या संक्रमण का भी गर्भस्थ शिशु पर बुरा प्रभाव पड़ता है।

(ii) जन्म के समय — जन्म के समय प्रसव में देर होने पर कई बार शिशु के मस्तिष्क को ऑक्सीजन नहीं मिलती है जिससे उसके स्नायुतंत्र तथा मस्तिष्क की कोशिकाओं को चोट पहुँचती है और वह मानसिक न्यूनता से ग्रस्त हो सकता है। कई बार वह शारीरिक रूप से भी अक्षम हो जाता है।

(iii) जन्म के पश्चात्ज — न्म के बाद शिशु की उचित देखभाल बहुत आवश्यक है। यदि शिशु की देखभाल सही ढंग से नहीं हो तो वह शारीरिक और मानसिक रूप से असमर्थ हो सकता है।

(iv) कुपोषण — शिशु में संतुलित आहार की कमी के कारण भी असमर्थता हो जाता हैं। जब शिशु विकास की अवस्था में होता है तो उसे संतुलित आहार मिलना चाहिए। उदाहरण के लिए कैल्सियम की कमी से हड्डियों का विकास नहीं होता, प्रोटीन की कमी से शारीरिक विकास और वृद्धि ठीक नहीं होती, विटामिन ‘A’ की कमी से अंधापन होता हैं आदि।

(v) दुर्घटना —किसी दुर्घटना के कारण बालक शारीरिक रूप से अक्षम हो जाता है।

(vi) आनुवंशिकता —आनुवंशिकता के कारण असमर्थता के जीन्स माता-पिता द्वारा प्राप्त होते हैं और जन्म से ही बच्चा अंधा, बहरा या गुंगा होता है।

(vii) संक्रमण रोग —बच्चे को संक्रमण रोग हो जाता है वैसी स्थिति में बच्चा असमर्थ हो जाता है। जैसे— पोलियो होने पर वह टाँगों से लाचार हो जाता है।

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5. बच्चों की देखरेख की क्या-क्या वैकल्पिक व्यवस्था की जा सकती है? (What are the substitute arrangement for caring of children?)

उत्तर ⇒  बच्चों की वृद्धि एवं विकास के लिए उसकी उचित देख-भाल होना आवश्यक होता है। बच्चे की देख-भाल करने का पूर्ण दायित्व उसके माता-पिता पर होता है परंतु आवश्यकता पड़ने पर वे किसी-न-किसी प्रकार के वैकल्पिक व्यवस्था का चुनाव कर सकते हैं जो निम्नलिखित से प्राप्त की जा सकती है—

(i) परिवार में भाई बहन —— माता-पिता की अनुपस्थिति में बड़े भाई-बहन अपने छोटे भाई बहन की देख-भाल कर सकते हैं। बड़े भाई-बहन बच्चे के साथ खेल सकते हैं, उसे घुमा सकते हैं उसे दूध पिला सकते हैं, कहानी सुना सकते हैं आदि।

(ii) परिवार में दादा-दादी या नाना-नानी—— संयुक्त परिवार में जहाँ दादा-दादी, चाचा-चाची, बुआ, ताई आदि एक ही घर में एक साथ रहते हैं, वहाँ माता-पिता की अनुपस्थिति में परिवार के अन्य सदस्य बच्चे की देख-रेख कर लेते हैं। परिवार में दादा-दादी तथा अन्य सदस्यों की अनुपस्थिति बच्चे के व्यक्तित्व पर अनुकूल प्रभाव डालती है। दादा-दादी या नाना-नानी बच्चे को प्यार तथा सुरक्षा प्रदान करते हैं और आवश्यकता पड़ने पर बच्चे के माता-पिता को भी मार्ग दर्शन प्रदान करते हैं। बच्चों में इससे नैतिक गुणों का विकास होता है।

(iii) पड़ोसी—पड़ोसियों के साथ चाहे कितने ही परिवर्तन आये हों फिर भी हमारे यहाँ आने जाने वाले लोगों से हम घनिष्ठ हो जाते हैं और एक-दूसरे की सहायता करने के लिए हमेशा तैयार रहते हैं। आवश्यकता पड़ने पर पड़ोसियों के संरक्षण में बच्चे को छोड़ा जा सकता है।

(iv) परिवार में आया ——अमीर शहरी घरानों में आया व्यापक रूप से पायी जाती है। आया/ नौकरानी की अच्छी तरह छानबीन करके उसकी विश्वसनीयता और योग्यता परख कर ही आया रखनी चाहिए। अपने बच्चे की सुरक्षा के लिए माता-पिता को इन पर कड़ी निगरानी रखनी चाहिए

(v) शिशु सदन – वर्तमान समय में शिशु सदन (क्रेच) बच्चों की देखभाल में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है। यह शिशु सदन सरकारस्वयंसेवी संगठनों तथा व्यवसायिक संगठनों द्वारा चलाये जाते हैं। यह एक ऐसा सुरक्षित स्थान हैं जहाँ बच्चों को सही देख-भाल में तब तक छोड़ा जा सकता है जब तक माता-पिता काम में व्यस्त हों।


6. बच्चों के सामाजिक विकास को प्रभावित करने वाले तत्त्वों के बारे में लिखें। (Write the factors affecting the social development in children.)

उत्तर ⇒  बच्चों के सामाजिक विकास को प्रभावित करने वाले कारक निम्नलिखित हैं

(i) परिवार ——परिवार ही बच्चों के सामाजिक मानकों का आदर करता है और आचरण करता है तो आगे चलकर बच्चे के सामाजिक व्यक्ति बनने की संभावनाएँ हैं

(ii) पास-पड़ोस— 2 वर्ष का बच्चा अपने पास-पड़ोस में जाने लगता है। दूसरे बच्चों के सम्पर्क में आता है। वह सबके साथ मिलकर खेलना सीखता है। अगर आस-पड़ोस में लोग उसे प्यार करते हैं तो वह उनके प्रति स्वस्थ सामाजिक मूल्यों का निर्माण करता है।

(iii) विद्यालय—— 3 वर्ष का बच्चा विद्यालय जाने लगता है और सामाजिक मूल्यों को तेजी से सीखता है। स्कूल में शिक्षकों व साथियों के सम्पर्क में आता है। गीत, संगीत, नाटक आदि खेलों में भाग लेता है।

(iv) तीज त्योहार व परम्पराएं —— हर समाज एवं धर्म की अपनी तीज त्योहार एवं परम्पराएँ होती हैं। उनको मनाने सभी लोग एकत्रित होते हैं। जैसे रक्षाबंधन, दीपावली, ईद आदि। सभी आपस में मिलते-जुलते मिठाई व बधाई देते हैं। बच्चा देखता है कि एक-दूसरे के बिना त्योहार मनाना संभव ही नहीं है। खुशी के लिए समाज में सभी लोगों का होना आवश्यक है। यही समाजिकता का पाठ हमारी संस्कृति व त्योहार सिखाते हैं।

          इस प्रकार परिवार, स्कूल, साथी, आस-पड़ोस सभी किसी-न-किसी प्रकार से बच्चे के समाजीकरण में सहायक होते हैं। माता-पिता और शिक्षक दोनों ही अपने अपने स्तर पर बच्चों का मार्ग-दर्शन करते हैं कि बच्चे को क्या करना चाहिए और क्या नहीं? शेष बच्चा दूसरों का अनुकरण करके सीख जाता है।


7. जन्म से लेकर एक वर्ष तक के बच्चों के शारीरिक विकास का वर्णन करें। (Describe the body development of children from birth to one year old.)

उत्तर ⇒  जन्म से लेकर एक वर्ष तक के बच्चों के शारीरिक विकास निम्नलिखित हैं

(1) भार या वजन——शिशु का वजन जन्म के समय लगभग 2 1/2 से 3 किलोग्राम का होता है। चार माह में दोगुना और एक वर्ष में 8.5 से 9 किलोग्राम हो जाता है।

(ii) आकार एवं लम्बाई——नवजात शिशु के जन्म के समय 270 अस्थियाँ होती है जो नर्म एवं स्पंजनुमा होती है। जन्म के समय लम्बाई 45-52 सेमी० एक वर्ष में लम्बाई लगभग 68 सेमी० एक वर्ष overline 4 लम्बाई लगभग 68 सेमी० हो जाती है।

(iii) चेहरा एवं सिर——जन्म के समय शिशु का अनुपात उसकी कुल लम्बाई का 22% होता है। जैसे-जैसे आयु बढ़ती है सिर का क्षेत्रफल शरीर के अनुपात में कम हो जाती है।

(iv) हाथ पैर और दाँत— जन्म के समय शरीर के अन्य अंगों की तुलना में हाथ पैर छोटे होते हैं। आयु के साथ पैर की लम्बाई बढ़ने लगती है। शिशु के दाँत 6 माह से । वर्ष की आयु के बीच मसूढ़ों से बाहर निकलते हैं।

(v) नाड़ी एवं पाचन संस्थान—— शिशु में नाड़ी संस्थान का विकास गर्भावस्था से ही प्रारंभ हो जाता है। जन्म के समय शिशु के पेट की क्षमता 25 ग्राम होती है। एक माह के शिशु की पेट की क्षमता 80 ग्राम हो जाती है।


8. एक नवजात शिशु की देख-रेख आप किस प्रकार करेंगी? (How will you care to a new born infant ?)

उत्तर ⇒  प्रसवोपरांत नवजात शिशु अत्यंत कोमल एवं मुलायम रहता है। इसलिए इसकी देख-रेख चिकित्सालयों में महिला चिकित्सक, मिडवाइफ, नर्सों तथा घर में माँ एवं दाइयों द्वारा संपादित की जाती है। जो इस प्रकार हैं

(i) नवजात शिशु का प्रथम स्नान—— नवजात शिशु जब जन्म लेता है तो उसके शरीर पर सफेद मोम जैसा चिकना पदार्थ चढ़ा होता है, जो गर्म में उसकी रक्षा करता है। शिशु के शरीर पर जैतुन या नारियल का तेल लगाकर निःसंक्रमित शोषक रूई से पोंछने से मोम जैसा द्रव साफ हो जाता है। फिर हल्के गुनगुने जल और बेबी साबुन द्वारा उसे स्नान कराना चाहिए। उस समय नाभी पर जल नहीं पड़ना चाहिए। स्नान कराने के बाद शिशु को मुलायम तौलिए से पोंछ देना चाहिए।

(ii) अंगों की सफाई——

(a) नाक की सफाई— जन्म के बाद शिशु की नाक द्वारा श्वसन क्रिया को सुचारू रूप से चलने के लिए नाक की सफाई आवश्यक है। निःसंक्रमित रूई की पतली बत्ती बनाकर तथा उसमें ग्लिसरीन लगाकर नाक के छिद्रों में डालकर धीरे-धीरे घुमाकर साफ करना चाहिए। इससे शिशु को छिंक आती है और नाक के अंदर भरी श्लेष्मा बाहर आ जाती है।

(b) आँखों की सफाई——शिशु के आँखों को बोरिक एसिड लोशन में निःसंक्रमित रूई भिंगोकर अच्छी तरह साफ करना चाहिए। उसके बाद एक प्रतिशत सिल्वर नाइट्रेट लोशन की दो-दो बूँदें आँखों में डालना लाभप्रद होता है।

(c) कानों की सफाई——कान के बाहरी भाग को स्वच्छ एवं निःसंक्रमित रूई में जैतून के तेल लगाकर कानों की सफाई करनी चाहिए।

(d) गले की सफाई—नवजात शिशु के गले में एकत्र श्लेष्मा की सफाई के लिए किसी मुलायम कपड़े को उँगली में लपेटकर बोरिक एसिड लोशन vec 4 डुबोकर गले के अंदर चारों तरफ धीरे-धीरे घुमाना चाहिए।

         उपर्युक्त अंगों की सफाई के अतिरिक्त जाँघ, पैर, धड़ तथा गाल आदि को भी मुलायम कपड़े से साफ कर देना चाहिए।

(iii) शिशु का वस्त्र——शिशु का वस्त्र मुलायम, स्वच्छ और ढीला होना चाहिए।

(iv) निंद्रा ——स्वस्थ शिशु 24 घंटे में 22 घंटे सोता रहता है। केवल भूख लगने पर या मलमूत्र त्यागने पर उठता जगता है।

(v) शिशु का आहार—— माँ का दूध शिशु का सर्वोत्तम आहार होता है। सामान्यतः शिशु को जन्म के 8 घंटे के बाद से माँ का दूध देना चाहिए। उसके पहले शिशु को शहद एवं ग्लूकोज मिलाकर चम्मच या अंगुली से पिलाना चाहिए। प्रसवोपरांत माँ के स्तनों से पीला एवं गाढ़ा प्रथम दूध निकलता है, जिसे कोलोस्ट्रम कहते हैं। उसे शिशु को अवश्य पिलाना चाहिए। इससे शिशु में विभिन्न रोगों से प्रतिरक्षा प्राप्त होती है।

12th home science Long Subjective Question 2024


9. बच्चे के शारीरिक विकास को प्रभावित करने वाले तत्त्व क्या हैं? (What are the factors influencing physical development of a child?)

उत्तर ⇒  मानव शरीर के विभिन्न अंग प्रत्यंग जैसे हड्डियाँ, माँसपेशियाँ, आंतरिक अवयव आदि के बढ़ने और इनकी कार्य करने की क्षमता में लगातार विकास होना ही शारीरिक विकास कहलाता है। बच्चों के शारीरिक विकास को बहुत तत्त्व प्रभावित करते हैं, जो इस प्रकार हैं

(i) वंशानुक्रम —— बच्चे की लंबाई, भार, शारीरिक गठन आदि विकास के शीलगुण एवं सीमाएँ माता-पिता और पूर्वजों से प्राप्त होती है।

(ii) पोषण— जन्म से पहले और जन्म के बाद शिशु को जैसा पोषण मिलता है उसी पर उसका शारीरिक विकास निर्भर करता है। पौष्टिक आहार से शिशु का विकास सही हो सकता है।

(iii) टीकाकरण—— बालकों का सही टीकाकरण उन्हें कई गंभीर रोगों से बचाता हैं। जिससे वह निरंतर शारीरिक विकास कर पाता है। इसके अभाव में बीमारियों से ग्रस्त होने पर उनका शारीरिक विकास पिछड़ जाता है।

(iv) अन्तःस्त्रावी ग्रंथियाँ——बालक के शारीरिक विकास पर हार्मोन्स का बहुत प्रभाव पड़ता हैं। थाइराइड, पैराथाइराइड के स्राव से शरीर की वृद्धि एवं हड्डियों के विकास पर प्रभाव डालते हैं। पीयूषका ग्रंथि के कम स्राव करने से बालक बौने हो जाते हैं और अधिक स्राव होने से असामान्य रूप से लंबे हो जाते हैं।

(v) गर्भावस्था ——माँ के गर्भधारण के समय का स्वास्थ्य, पोषण, टीकाकरण, मानसिक स्थिति आदि बालक को गर्भ के 9 (नौ) महीने में प्रभावित करता है।

(vi) परिवार—परिवार की आर्थिक और आंतरिक वातावरण बच्चे के शारीरिक और मानसिक विकास को प्रभावित करता है जैसे—जो परिवार बच्चे के खेल-कूद को प्रोत्साहित करेगा, अवसर प्रदान करेगा उस परिवार के बच्चे का शारीरिक स्वास्थ्य अच्छा होगा।


10. क्षय रोग या तपेदिक या टी०बी० (T.B.) क्या है? इसके कारण, लक्षण तथा उपचार के बारे में बताएँ । (What is T.B. ? Describe about its reason, symptom and treatment.)

उत्तर ⇒ क्षय रोग वायु द्वारा फैलता है। यह रोग सूक्ष्म जीवाणु बैक्टीरियम ट्यूबर्किल बेसियस से फैलता है। क्षयरोग शरीर के कई भागों में हो सकता है। जैसे फेफड़े, आँत, ग्रंथियों, हड्डियों (रीढ़) तथा मस्तिष्क आदि।

रोग का कारण——

(i) रोगी के मल, बलगम तथा खाँसने से रोग फैलता हैं।

(ii) माता-पिता को यदि क्षय रोग हो तो बच्चों में इस रोग की संभावना हो जाती हैं।

(iii) इस रोग से ग्रस्त गाय, भैंस का दूध पीने से हो सकता है।

रोग के लक्षण——

(i) भूख में कमी, थकावट और कमजोरी।

(ii) वजन कम होना तथा हड्डियाँ दिखाई देना।

(iii) छाती तथा गले में दर्द, खाँसी तथा बलगम में खून आना ।

(iv) सांस फूलना तथा हृदय की धड़कन कम होना।

उपचार तथा रोकथाम——

(i) रोगी को दूसरे लोगों से अलग रखना चाहिए।

(ii) रोगी के विसर्जन को जला देना चाहिए।

(iii) बच्चों को जन्म के पश्चात एक सप्ताह के अंदर बी०सी०जी० का टीका लगा दें।

(iv) डॉक्टर की सलाह से रोगी को स्ट्रेप्टोमाइसिन के टीके 2 1/2 महीने तक लगवाना चाहिए।


11. थाइराईड ग्रंथि से आप क्या समझते हैं? मानव शरीर में इसके कार्यों का वर्णन करें। (What do you understand by thyroid gland? Describe its functions in human Body.)

उत्तर ⇒  थाइराईड ग्रंथि मानव शरीर में पाये जाने वाले अंत: स्रावी ग्रंथियों में से एक है।थाइराईड ग्रोथ गर्दन के श्वसन नली के ऊपर एवं स्वरयंत्र के दोनों ओर दो भागों में बनी होती है। इसका आकार तितली के पंख के समान फैली होती है। यह थाइरॉक्सीय नामक हार्मोन बनाती है। थाइराईड ग्रोथ शारीरिक वृद्धि और शारीरिक रासायनिक प्रक्रियाओं को नियंत्रित करता है। थाइराईड अंतःस्राव शरीर की प्रत्येक कोशिका में चयापचय के नियमन में सहायता प्रदान करता है। भिती की कोशिकाओं में ये पदार्थ बनाती है। शरीर के ऊर्जा क्षय, प्रोटीन उत्पादन एवं अन्य हार्मोन के प्रति होने वाली संवेदनशीलता करता है।

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