BSEB Matric Pariksha Hindi Subjective Question | Class 10th ‘नाखून क्यों बढ़ते हैं’ Subjective Question

BSEB Matric Pariksha Hindi Subjective Question :- दोस्तों यदि आप लोग इस बार Class 10th Exam 2022 Hindi Subjective की तैयारी कर रहे हैं तो यहां पर आपको  ‘नाखून क्यों बढ़ते हैं’ Subjective Question दिया गया है जो आने वाले Class 10th Hindi Subjective Question के लिए काफी महत्वपूर्ण है | Class 10th English Objective 


1. लेखक द्वारा नाखूनों को अस्त्र के रूप में देखना संगत है? अथवा, नाखून बढ़ने का प्रश्न लेखक के सामने कैसे उपस्थित हुआ?

उत्तर अस्त्र हाथ में रखकर वार किया जाता है और शस्त्र फेंककर लाखों वर्ष पहले मनुष्य जंगली था, वनमानुष जैसा नाखून द्वारा ही वह जंगली जानवरों आदि से अपनी रक्षा करता था। दाँत भी थे लेकिन उनका स्थान नाखूनों के बाद था। चूँकि नाखून हमारे शरीर का अंग है, इसलिए लेखक द्वारा नाखूनों को अस्त्र के रूप में देखना सर्वथा उचित है।


2. बढ़ते नाखूनों द्वारा प्रकृति मनुष्य को क्या याद दिलाती है?

उत्तर- नाखूनों का बढ़ना पाश्विक प्रवृत्ति मनुष्य की सहजवृत्ति है। यह मनुष्य को हमेशा याद दिलाती है कि तुम असभ्य युग से सभ्य यंग में आ गए, लेकिन तुम्हारी सोच मेरी तरह है जो लाख मन से हटाओ पनप ही जाती है। मनुष्य के ईर्ष्या, जड़ता, हिंसक प्रवृत्ति क्रोध आदि कभी खत्म होने वाला नहीं है। तभी तो शस्त्रों की होड़ लगी हुई है। नाखून बढ़ते हुए यह याद दिलाती है।

BSEB Matric Pariksha Hindi VVI Subjective 2022


3. मनुष्य का स्वधर्म क्या है?

उत्तर अपने आप पर संयम और दूसरे के मनोभावों का समादर करना मनुष्य का स्वधर्म है।


4. ‘स्वाधीनता’ शब्द की सार्थकता लेखक क्या बात है?

उत्तरआचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी के विचार से ‘स्वाधीनता’ शब्द अत्यन्त व्यापक और अर्थपूर्ण है। इसमें अपने आप ही अपने आपको नियंत्रित करने का भाव है, कोई बाह्य दबाव नहीं है। इस शब्द में हमारे देश की परंपरा और संस्कृति परिलक्षित होती है जिसका मूल तत्व है संयम और दूसरे के सुख-दुख के प्रति समवेदना, त्याग और श्रेष्ठ के प्रति श्रद्धा। यही कारण कि द्विवेदी जी ने ‘अनधीनता’ की अपेक्षा ‘स्वाधीनता’ शब्द को ‘इण्डिपेण्डेंस’ का सार्थक पर्याय माना है।


5. ‘सफलता’ और ‘चरितार्थता’ शब्दों में लेखक अर्थ की भिन्नता किस प्रकार प्रतिपादित करता है?

उत्तरलेखक के अनुसार ‘सफलता’ और ‘चरितार्थता’ में पर्याप्त अन्तर है। सफलता में बाह्य उपकरणों से इच्छित वस्तुओं के वाहुल्य का भाव है, चाहे वे वस्तुएँ मारक साधनों के प्रयोग से ही क्यों न हों, किन्तु चरितार्थता मनुष्य के प्रेम, मैत्री और त्याग में, अपने को सबके हित में निःशेष समर्पित करने के भाव में है। दोनो शब्दों में आकाश-पाताल का अंतर है।


6. मनुष्य बार-बार नाखूनों को क्यों काटता है?

उत्तर मनुष्य नहीं चाहता कि बर्बर युग की कोई निशानी उसमें रहे। इसलिए, बार-बार नाखूनों को काटता है।


7. भारतीय संस्कृति की क्या विशेषता है?

उत्तरभारतीय संस्कृति की विशेषता है अपने आप पर लगाया हुआ बंधन।


8. नख बढ़ाना और उन्हें काटना कैसे मनुष्य की सहजात वृत्तियाँ हैं? इनका अभिप्राय क्या है? अथवा, मनुष्य बार-बार नाखून क्यों कटवाता है?

उत्तर सहजात वृत्तियाँ अनजान स्मृतियों को कहते हैं अर्थात् वे कार्य जो अनायास होते हैं। नाखून अपने आप बढ़ते हैं, उनके लिए मनुष्य को प्रयत्न नहीं करना पड़ता। इसी प्रकार, मनुष्य नाखूनों को काटता भी है। दरअसल, नाखूनों का बढ़ना बर्बर युग का प्रतीक चिह्न है। उन दिनों मनुष्य इससे अपनी रक्षा करता था। अब चूँकि मनुष्य बर्बर युग से बहुत आगे निकल आया है, इसमें अनेक सुकोमल भावनाएँ विकसित हो गई हैं। अतः मनुष्य उस बर्बर युग की इस निशानी को मिटाना चाहता है। नाखूनों को बढ़ाने और काटने का यही अभिप्राय है।


9. लेखक क्यों पूछता है कि मनुष्य किस ओर बढ़ रहा है? पशुता की ओर या मनुष्यता की ओर? स्पष्ट करें।

उत्तरलेखक देखता है कि मनुष्य एक ओर अपने बर्बर-काल के चिह्न नष्ट करना चाहता है और दूसरी ओर प्रतिदिन घातक शस्त्रों की वृद्धि करता है तो वह चकित रह जाता है और उसके मन में सवाल उठता है कि आज मनुष्य किस ओर जा रहा है-पशुता की ओर या मनुष्यता की ओर? वस्तुतः लेखक मनुष्य को मनुष्यता की ओर ले जाना चाहता है। वह चाहता है कि मनुष्य में मानवोचित संयम, सदाशयता और स्वाधीनता के भाव जगें, वह शस्त्रों की होड़ में न पड़े।

BSEB Matric Pariksha Hindi Question 2022


⇒ दीर्घ उत्तरीय प्रश्न ⇐


1. हजारी प्रसाद द्विवेदी की दृष्टि में हमारी संस्कृति की सबसे बड़ी विशेषता क्या है? स्पष्ट कीजिए।

उत्तर हजारी प्रसाद द्विवेदी की दृष्टि में हमारी परंपरा महिमामयी और संस्कार उज्ज्वल हैं। इस प्रकार, हमारी संस्कृति ऐसी है, जिसमें नाना प्रकार की जातियाँ और आक्रान्ता आकर समाहित हो गए। हमारे ऋषि-मुनियों ने बहुत पहले जान लिया था कि मनुष्य पशु से भिन्न इसलिए है कि इसमें संयम है, दूसरे के सुख-दुख के प्रति समवेदना, श्रद्धा, तप और त्याग के भाव हैं, वह मन, वचन और शरीर से किए गए असत्याचरण को बुरा मानता है। वस्तुतः ये सारी वस्तुएँ मनुष्य के स्वयं के उद्भावित बंधन हैं। यही कारण है कि हमारी संस्कृति ने ‘स्व’ के बंधन को सर्वोच्चता दी। द्विवेदी जी की दृष्टि में यह ‘स्व’ का बंधन ही हमारी संस्कृति की सबसे बड़ी विशेषता है।


2. लेखक ने किस प्रंसग में कहा है कि बंदरिया मनुष्य का आदर्श नहीं बन सकती? लेखक का अभिप्राय स्पष्ट करें। 

उत्तर पुराने से चिपके रहने के प्रसंग में लेखक ने उस बंदरिया का जिक्र क्रिया है जो अपने सीने से अपने मृत बच्चे को चिपकाए घूमती थी। लेखक का कहना है कि ऐसी बंदरिया मनुष्य का आदर्श नहीं बन सकती। वह मृत और जीवंत में अन्तर नहीं कर सकती जबकि मनुष्य में चिंतन-शक्ति है, वह निर्जीव और सजीव में अन्तर कर सकता है, समझ सकता है कि क्या उपयोगी है और क्या अनुपयोगी। वस्तुतः पुरातन और नवीन की अच्छी बातों को ग्रहण करना और व्यर्थ तत्त्वों का त्याग ही मनुष्य का आदर्श है।


3. ‘नाखून क्यों बढ़ते हैं’ शीर्षक पाठ का सारांश लिखें। या, ‘नाखून क्यों बढ़ते हैं’ शीर्षक पाठ में हजारी प्रसाद द्विवेदी ने क्या प्रतिपादित किया है? स्पष्ट कीजिए।

या, ‘नाखून क्यों बढ़ते हैं’ पाठ में व्यक्त हजारी प्रसाद द्विवेदी के विचारों को स्पष्ट कीजिए।

या, हजारी प्रसाद द्विवेदी ने ‘नाखून ‘क्यों बढ़ते हैं’ शीर्षक ललित निबंध में सभ्यता और संस्कृति की विकास गाथा उद्घाटित की है। समझाकर लिखिए।

या, ‘नाखून क्यों बढ़ते हैं’ शीर्षक निबंध में हजारी प्रसाद द्विवेदी का मानववादी दृष्टिकोण झलकता है। विवेचन करें।

उत्तर नाखून विचित्र हैं। काट दीजिए परन्तु फिर बढ़ जाते हैं। आदि काल में मनुष्य की आत्मरक्षा के लिए ये जरूरी थे। बाद में तो मनुष्य ने लौह युग आते-आते एक-से-एक मारक अस्त्र तैयार कर लिए, आदमी की पूँछ गिर गई, किन्तु नाखून जान ही नहीं छोड़ते।

हजारी प्रसाद द्विवेदी मानते हैं कि मनुष्य नहीं चाहता कि बर्बर युग की कोई निशानी उससे जुड़ी रहे। इसलिए वह नाखूनों को काटता है। लेकिन मनुष्य की पशुता अभी गई नहीं है। घृणा, द्वेष और अहं को अभी भी नहीं छोड़ा है। सच यह है कि वह हथियार बना तो रहा है लेकिन अनुभव कर रहा है कि पशुता के सहारे वह तरक्की नहीं कर सकता। तभी तो पशुता की निशानी नाखूनों को काटता है।

भारत के ऋषि-मुनियों ने बहुत पहले ही जान लिया था कि पशुता प्रगति विरोधी है, मानव-विरोधी है क्योंकि मनुष्य ने कभी भी अन्तमन से झगड़ा-झंझट को अच्छा नहीं माना, सराहना नहीं की। मनुष्य की मनुष्यता है सबके सुख-दुख में सहभागिता, समवेदना, त्याग, श्रद्धा और तप प्रेम हमारे अन्तर में विराजमान है। प्रेम बाँटकर मनुष्य जितना आनन्दित होता है उतना किसी अन्य विजय से नहीं। यही कारण है कि यहाँ अनेक जातियाँ आई, आक्रान्ता आए किन्तु प्रेम से भारत के विशाल समूह में समा गए।

भारत की यह विशेषता ‘स्व’ के बंधन में है। स्वाधीनता, स्वराज्य, स्वतंत्रता और स्वशासन इसी ‘स्व’ के बंधन के विस्तार हैं। अपने आप पर नियंत्रण, दूसरे की स्वाधीनता, स्वतंत्रता का सम्मान।

द्विवेदीजी की मान्यता है कि सफलता से बड़ी वस्तु है चरितार्थता। सफलता वाह्यडंबरों के विशाल भंडार का नाम है जबकि चरितार्थता प्रेम, त्याग, मैत्री और सबके निमित्त मंगल भाव में है। इस प्रकार, द्विवेदी जी सभ्यता और संस्कृति तथा इतिहास को खंगालते हुए इस निष्कर्ष पर पहुँचते हैं कि चाहे जो हो, मनुष्य पशुता को बढ़ने नहीं देगा-नाखून बढ़ते हैं तो बढ़ें।

BSEB Matric Pariksha Hindi Ka Subjective 


4. कमबख्त नाखून बढ़ते हैं तो बढ़ें, मनुष्य उन्हें बढ़ने नहीं देगा-सप्रसंग व्याख्या करें ।

उत्तर प्रस्तुत पंक्ति हमारी पाठ्य पुस्तक ‘गोधूलि’ भाग-2 में संकलित हजारी प्रसाद द्विवेदी जी के निबंध ‘नाखून क्यों बढ़ते हैं से उद्धृत है। द्विवेदी सुधी सहित्यकार हैं। मनुष्यता में उनका विश्वास है। यही कारण

है कि नाखूनों के माध्यम से आदि मानव से लेकर आधुनिक मानव के इतिहास, संस्कृति और प्रवृत्ति पर विचार कर निबंध के अंत में इस निष्कर्ष पर पहुँचते हैं कि मनुष्य के भीतर की पशुता, चाहे जिस रूप में, नाखूनों की तरह बढ़ रही है, किन्तु एक दिन ऐसा आएगा जब मनुष्य अपनी पाशविक वृत्ति पर विजय हासिल करे लेगा, वह नाखूनों को बढ़ने नहीं देगा।

प्रस्तुत पंक्ति में द्विवेदी की मानवीय दृष्टि झलकती है।


5. काट दीजिए, वे चुपचाप दंड स्वीकार कर लेंगे, पर निर्लज्ज अपराधी की भाँति फिर छूटते ही सेंध पर हाजिर-सप्रसंग व्याख्या करें।

उत्तर प्रस्तुत पंक्ति हमारी पाठ्य पुस्तक ‘गोधूलि’ -भाग-2 में संकलित, मनीषी रचनाकार हजारी प्रसाद द्विवेदी के निबंध ‘नाखून क्यों बढ़ते हैं’ से उद्धृत है।

लेखक कहता है कि नाखून बढ़ते हैं, मनुष्य उन्हें काट देता है। वे जरा भी चीं-चुपड़ नहीं करते, चुपचाप कट जाते हैं। किन्तु हैं निर्लज्ज, फिर उग आते हैं, ठीक उस निर्लज्ज अपराधी की भाँति जो दंड पाकर सजा भुगतते हैं किन्तु छुटते ही अपराध शुरू कर देते हैं।

वस्तुतः द्विवेदी यह बताना चाहते हैं कि मनुष्य अपने बढ़ते नाखूनों को काट कर अपनी बर्बर प्रवृत्ति को दूर करना चाहता है किन्तु अभी तक उसकी बर्बर वृत्ति समाप्त नहीं हुई, वह अहर्निश मारक अस्त्र-शस्त्रों के निर्माण में लगा है। लेखक इस पाशविक प्रवृत्ति को खत्म करना चाहता है। नाखून में अपराधी की उद्भावना नयी है।

BSEB Matric Pariksha Hindi Question 


Leave a Comment