12th Home Science Long Question Answer 2024 | 12th class home science question paper 2024 in hindi

12th Home Science Long Question Answer 2024 :- दोस्तों यदि आप बिहार बोर्ड कक्षा 12वीं गृह विज्ञान प्रश्न की तैयारी कर रहे हैं तो यहां पर आपको 12th home science ka Long Question 2024 दिया गया है जो आपके इंटर परीक्षा होम साइंस क्वेश्चन के लिए काफी महत्वपूर्ण है | Class 12th Home Science Long Question 2024 In Hindi


1. गृह विज्ञान का स्वरोजगार के लिए क्या-क्या उपयोग है? (What are the applications of Home Science for self employment ?)

उत्तर ⇒ गृह विज्ञान का स्वरोजगार के लिए निम्नलिखित उपयोग हैं

(1) प्रिंटिंग खोलकर गृह विज्ञान में सिखाए गए सिद्धांतों, नियमों तथा विधियों का प्रयोग करने पर ब्लॉक प्रिंटिंग तथा बंधेज खोलकर आर्थिक लाभ प्राप्त किया जा सकता है

(ii) शिशु गृह (क्रेच) खोलकर – शिशु गृह खोलने की विधि, आवश्यक साज-सामान तथा कार्यक्रमों की जानकारी होने से शिशु गृह खोला जा सकता है।

(iii) साबुन तथा अपमार्जक का निर्माण कर महिलाएँ व्यवस्थित तथा बुद्धिपूर्ण ढंग से संगठित होकर यह कार्य कर धनोपार्जन कर सकती हैं।

(iv) संरक्षण संबंधी व्यवसाय करके महिलाएँ जैम, जेली, अचार, मुरब्बे आदि बनाकर तथा उसके डिब्बाबंदी कर बेचकर आर्थिक स्थिति सुधार कर धनोपार्जन कर सकती हैं इसके अतिरिक्त पापड़, बड़ियाँ आदि बनाकर उसे पैक कर बेच सकती हैं।

(v) वस्त्र सिलाई (बुटीक) करके आधुनिकतम वस्त्रों की डिजाइनिंग की जानकारी होने से विभिन्न प्रकार के वस्त्रों की सिलाई कर धनोपार्जन कर सकती हैं। साथ ही कढ़ाई कर, स्वेटर बुनाई कर, पुस्तकों में जिल्द बाँधकर कागज के फूल-पत्ती बनाकर, कपड़ों पर विभिन्न प्रकार रंगाई कर धन कमा सकती हैं।

(vi) ड्राइंग तथा ड्राइक्लीनिंग खोलकर -महिलाएँ गृह विज्ञान अध्ययन कर विभिन्न प्रकार के कपड़ों की धुलाई के साथ-साथ सूखी धुलाई करके धनोपार्जन कर सकती हैं।

(vii) प्रशिक्षण कक्षाएं चलाकर गृह विज्ञान के उपविषयों का पर्याप्त ज्ञान प्राप्त कर महिलाएँ प्रशिक्षण कक्षाएँ खोलकर तथा उसे कुशलतापूर्वक चला कर धनोपार्जन करती हैं, जैसे- कुकरी कक्षाएँ, स्टिचिंग कक्षाएँ, संरक्षण तथा डिब्बाबंदी कक्षाएँ, साथ ही सिलाई कक्षाएँ आदि ।

(viii) लघु उद्योग स्थापित कर गृह विज्ञान के अध्ययन द्वारा महिलाएँ भी लघु उद्योग स्थापित कर धनोपार्जन कर सकती हैं, जैसे कपड़े बुनाई, दरी एवं कालीन बुनाई, मोमबत्ती बनाना आदि।


2. विकास के विभिन्न क्षेत्रों में गृह विज्ञान का क्या योगदान एवं उपयोगिताएँ हैं? वर्णन करें। (What are the applications of Home Science in the different field of development ? Describe.)

उत्तर ⇒ विकास के विभिन्न क्षेत्रों में गृह विज्ञान का योगदान निम्न हैं:

(i) पारिवारिक स्तर के उत्थान में — गृह विज्ञान की शिक्षा प्राप्त लड़कियाँ जिन घरों में रहती है उन्हें अपने सुझावों द्वारा लाभान्वित करती हैं। गृह विज्ञान की छात्राएँ रेडियो एवं टी०वी० कार्यक्रमों के माध्यम से पत्र-पत्रिका लिखकर जन-जीवन का पारिवारिक स्तर ऊँचा उठाने में सहायता प्रदान करती है।

(ii) स्वास्थ्य के क्षेत्र में —गृह विज्ञान शिक्षा प्राप्त लड़कियाँ स्वयं के एवं परिवार के स्वास्थ्य के प्रति सचेत रहती है। स्वच्छता बच्चों को समय पर टीका लगवाना आदि कार्य कुशलता से करती है।

(iii) पोषण के क्षेत्र में —गृह विज्ञान के अंतर्गत पोषण ज्ञान प्राप्त कर लड़कियाँ कम खर्च में प्रत्येक आयु वर्ग के लिए पोषक तत्वों से युक्त आहार आयोजन करती है।

(iv) रोजगार के क्षेत्र में —गृह विज्ञान स्नातक लड़कियाँ कृषि अनुसंधान, पशुपालन, डेयरी, प्रसार शिक्षा निदेशालय, शिक्षण संस्थानों, पाक कला, सिलाई, हस्त शिल्प एवं स्वयं प्रशिक्षण केन्द्र आरम्भ करके धन अर्जित कर सकती है एवं दूसरों को रोजगार दे सकती है।

(v) बाल शिक्षा एवं स्वी शिक्षा के क्षेत्र में —गृह विज्ञान शिक्षा प्राप्त लड़कियाँ बच्चों के पठन-पाठन में सहयोग देती है। ये लड़कियाँ स्त्रियों को शिक्षित कर एवं रोजगार के नये अवसर प्रदान कर उन्हें आत्मनिर्भर बनाता है।


3. मासिक धर्म/माहवारी चक्र किसे कहते हैं? मासिक धर्म के दौरान क्या करना चाहिए और क्या नहीं करना चाहिए? (What is menstruation cycle ? What are dos and don’ts during menstrual period ?)

उत्तर ⇒ प्रत्येक स्त्री को प्रजनन काल में प्रति 26 से 28 दिनों के बाद गर्भाशय से रक्त तथा श्लेष्मा का स्त्राव होता है। यह स्त्राव 3 या 4 दिनों तक लगातार होता है। इसे ही मासिक धर्म, ऋतुस्राव, रजोधर्म कहते हैं। यह प्रायः 13-14 वर्ष से 45-50 वर्ष की आयु तक प्रत्येक माह में होता है परन्तु गर्भावस्था में यह नहीं होता है। दो पीरियड्स के बीच का नियमित समय मासिक चक्र कहलाता है।

मासिक धर्म के समय निम्नलिखित काम करना चाहिए—योनि के आस-पास की उचित सफाई, हल्का व्यायाम, नैपकिन की नियमित/समयानुसार बदलाव, आराम करना, सही पौष्टिक भोजन करना आदि।

     मासिक धर्म के दौरान स्त्रियों को निम्नलिखित काम नहीं करने चाहिए— नैपकिन को लेकर किसी भी तरह की लापरवाही, खाना छोड़ना, अत्यधिक शारीरिक श्रम से बचना, बहुत तंग कपड़े नहीं पहनना, भारी व्यायाम, असुरक्षित यौन संबंध आदि ।


4. गृह प्रसव एवं अस्पताल प्रसव का तुलनात्मक विवरण दें।   (Give a comparative description of home delivery and hospital delivery?)

उत्तर ⇒ गृह प्रसव एवं अस्पताल में प्रसव के तुलनात्मक विवरण निम्न हैं

                                      गृह प्रसव                                     अस्पताल प्रसव.
1. गृह में प्रसव करना कम खर्चीला होता है।1. अस्पताल में प्रसव कराने पर अधिक खर्चीला होता है।
2. चिकित्सीय दृष्टि से घर पर प्रसव कराना असुविधाजनक होता है।2 चिकित्सीय दृष्टि से अस्पताल में प्रसव कराना उत्तम होता है।
3. अनौपचारिक वातवरण रहता है।3. औपचारिक वातावरण रहता है।
4. गृह पर प्रसव कराने से जच्चा और बच्चा के साथ अनहोनी होने की समस्या रहती है।4. अस्पताल में प्रसव कराने से जच्चा और बच्चा के साथ अनहोनी का खतरा कम हो जाता है।
5. घर पर प्रसव कराने से बाहर ले जाने के लिए यातायात की समस्या नहीं रहती है।5. अस्पताल में प्रसव कराने के लिए गर्भवती को प्रसव केन्द्र ले जाने के लिए यातायात की समस्या हो सकती है

Class 12th Home Science Long Question 2024 In Hindi


5. प्रसवोपरांत देखभाल के पहलू क्या है? (What are the aspects of postamatal curve?)

उत्तर ⇒ प्रसवोपरांत देखभाल के पहलू निम्नलिखित हैं

प्रसवोपरांत माता की देखभाल—

(1) भोजन — प्रसव के बाद प्रसूता को संतुलित आहार देना आवश्यक हो जाता है। प्रसूता के भोजन में गर्म, तरल, बलवर्द्धक, सुपाच्य होना चाहिए।

(2) विश्राम एवं नींद— प्रसव के बाद उसके गर्भ सम्बंधी अंगों में परिवर्तन आ जाता है। उसे स्वभाविक स्थिति में आने में काफी समय लगता है। इसलिए विश्राम करना जरूरी है। प्रसूता को प्रसव कष्ट एवं थकान के बाद अच्छी नींद आती है।

(3) स्वच्छता एवं स्नान — प्रसव के बाद प्रसूता के जननांग pi सेनेटरी पैड लगा देना चाहिए। तेल मालिश के बाद प्रसूता को गर्म पानी में तौलिया भिंगोकर उसके शरीर को पोंछ देना चाहिए।

(4) व्यायाम — प्रसव के बाद प्रसूता का शरीर बेडौल हो जाता है। उसे पूर्व स्थिति में लाने के लिए हल्का व्यायाम करना चाहिए।

प्रसवोपरांत नवजात की देखभाल—

(1) स्तनपान — माता का दूध बच्चों को अनेक रोगों से बचाता है इसलिए बच्चे के जन्म के बाद स्तनपान कराना चाहिए।

(2) निंद्रा — स्वस्थ बच्चा 18-22 घंटा तक सोता रहता है। वह केवल भूख लगने तथा मल-मूत्र त्याग से उठता है।

(3) अंगों की सफाई — बच्चे को प्रथम स्नान कराते समय उसके विभिन्न अंगों की सफाई पर ध्यान देना आवश्यक है। जैसे- नाक, आँख, कान, गले की सफाई इत्यादि ।

(4) टीकाकरण—– शिशु जन्म के कुछ घंटों के बाद B.C.G. का टीका लगा देना चाहिए।


6. गर्भवती महिलाओं के संतुलित आहार का आयोजन आप कैसे करेंगी ? गर्भावस्था में मुख्यतः कौन-कौन से पौष्टिक तत्त्वों की आवश्यकता होती है? वर्णन करें। (How will you planning of balance diet for pregnant women? What are the main nutrients essential during pregnancy? Explain.)

उत्तर ⇒  गर्भवती महिलाओं के संतुलित आहार का आयोजन गर्भवती एवं भावी शिशु दोनों के स्वास्थ्य के लिए पौष्टिक आहार का अधिक महत्त्व होता है। गर्भावस्था में भ्रूण निर्माण के कारण शरीर में तीव्र गति से कई परिवर्तन होते हैं उपापचय क्रियाएँ तीव्र गति से होने लगती हैं जो पोषक तत्वों की आवश्यकता को बढ़ा देती हैं।

             गर्भावस्था में प्रोटीन, कैल्सियम, फॉस्फोरस एवं लौह लवण की अधिक आवश्यकता पड़ती है। जन्म 2/90 समय शिशु का भार 3.2 किलोग्राम होने के लिए उसके शरीर में 500 ग्राम प्रोटीन, 30 ग्राम कैल्शियम, 14 ग्राम फॉस्फोरस, 0.4 ग्राम लौह लवण तथा अन्य विटामिनों की विविध मात्रा होनी चाहिए। गर्भकाल के सातवें, आठवें एवं नवें महीने में शिशु का विकास अत्यन्त तीव्र गति से होता है। वह माँ के रक्त से प्रोटीन, कैल्शियम, फॉस्फोरस, लौह-लवण, विटामिन एवं अन्य खनिज लवण अधिक मात्रा में शोषित करता है। भ्रूण उन्हीं तीन अन्तिम महीनों में अपने वजन का भाग पोषक तत्त्वों से प्राप्त करता है।

गर्भावस्था में विभिन्न पोषक तत्त्वों की आवश्यकताएँ निम्नलिखित होती हैं— ऊर्जा, प्रोटीन, कैल्शियम, लौह-लवण, आयोडीन, विटामिन A, विटामिन B विटामिन D


7. बाल्यावस्था में सामान्यतः कौन-कौन से रोग होते हैं? वर्णन करें। (What are the common diseases in childhood ? Describe.)  

उत्तर ⇒  बाल्यावस्था में सामान्यतः निम्नलिखित रोग होते हैं- हैजा, गलसुआ, अतिसार, खसरा, शीतला, पोलियों, सर्दी एवं खाँसी, कान दर्द, तथा कृमि रोग आदि।

(i) हैजा— यह बेसिलस जीवाणु द्वारा फैलता है जिसे विब्रिओं कोमा नाम से जाना जाता है यह संक्रमित जल, संक्रमित भोजन, दूध या पेय पदार्थ के कारण फैलता है। यह गर्मी तथा बरसात के दिनों में अधिक होता है। इसमें रोगी को उल्टी, पेट दर्द, प्यास अधिक लगना, निर्जलीकरण हो जाता है। इससे बचने के लिए रोगी को अधिक मात्रा में तरल पदार्थ देना चाहिए, रोगी को स्वस्थ व्यक्ति से अलग रखना चाहिए। जीवन रक्षक घोल का प्रयोग करना चाहिए, समय पर डॉक्टर से दिखाना चाहिए।

(ii) गलसुआ (mumps) — यह एक संक्रामक रोग है जो सर्दियों में अधिक होता है। इस रोग में चेहरे पर सूजन आ जाती है। संक्रमित व्यक्ति के प्रत्यक्ष सम्पर्क तथा संक्रमित व्यक्ति के छीकने से रोग के विषाणुओं का संक्रमण हो जाता है। इस रोग में मूँह सुखने लगते हैं, कान में दर्द का अनुभव होता, लार ग्रंथियाँ बढ़ जाती है, कानों व गालों पर सूजन आ जाती है। इस रोग से बचने के लिए रोगी का मुँह नमक के पानी से साफ करें गले में आराम लाने के लिए गरारे करें।

(iii) अतिसार (Diarrhoea)— इस संक्रमण के कारण पेट की आँतों की कार्य प्रणाली सामान्य नहीं रहती। यह प्रदूषित जल, संक्रमित दूध, थूक, संदूषित भोजन तथा अस्वच्छ वातावरण से फैलता है। इस रोग में शौच पतला पानी की तरह, पेट में दर्द, दस्त, निर्जलीकरण की स्थिति, माँसपेशियों में अकड़न रोगी की नाड़ी धीमी व कमजोर हो जाती है। इस रोग को रोकथाम के लिए ओ० आर०एस० का प्रयोग करे। इसमें अधिक जल तथा तरल का प्रयोग करे। खाद्य पदार्थों को मक्खियों से बचाना चाहिए तथा खाने की वस्तु को ढक कर रखना चाहिए। ताजे भोजन एवं पानी को उबालकर इस्तेमाल करना चाहिए।

(iv) खसरा (Measles)—यह विषाणु जनित रोग है। यह रोग दूषित वायु के माध्यम से फैलता है। रोगी के प्रत्यक्ष सम्पर्क में आने तथा नाक एवं गले के स्राव के सम्पर्क द्वारा होता है। इस रोग में सर्दी एवं खाँसी, तीव्र ज्वर, शरीर में छोटे-छोटे दाने निकल आते हैं। इस रोग से बचने के लिए रोगी के कमरे को साफ रखे, संक्रमित व्यक्ति से दूर रहे तथा पौष्टिक एवं संतुलित आहार दे । इसके अतिरिक्त बच्चों को शीतला, पोलियों, सर्दी एवं खाँसी, कान दर्द तथा कृमि रोग हो जाते हैं इससे बचाव के उपाय का पालन करना चाहिए।


इंटर परीक्षा होम साइंस क्वेश्चन 2024

8. किशोरावस्था के लिए आहार आयोजन किस प्रकार करेंगी? एक आहार तालिका प्रस्तुत करें। (How will you make food planning for adolescence ? Represent amenu ole.)

उत्तर ⇒ किशोरावस्था तीव्रगति से वृद्धि एवं विकास की अवस्था है। यह अवस्था 12 वर्ष से 20 वर्ष तक होती है। इस अवस्था में अधिक पोषक तत्त्वों की आवश्यकता होती है। किशोरावस्था में आहार आयोजन करते समय निम्नलिखित बातों पर ध्यान देना चाहिए

(1) ऊर्जा, प्रोटीन, लौह तत्त्व एवं कैल्सियम पोषक तत्त्व अति आवश्यक होते हैं।

(ii) अत्यधिक नहीं खाना चाहिए तथा व्यायाम आवश्यक है।

(iii) पोषक तत्त्वों की आवश्यकता कैलोरी – 2060, प्रोटीन – 63 ग्राम, वसा – 22 ग्राम, कैल्सियम 500 ग्राम तथा लौह तत्त्व- 30 मि० ग्राम, विटामिन A मि०ग्राम, थायमीन 121 मि०ग्रा० तथा विटामिन D 40 मि०ग्रा० होती है।

(iv) आहार आवश्यकता खाद्यान्न – 350 ग्राम, दाल – 70 ग्राम, हरी सब्जियाँ- 150 ग्राम, अन्य सब्जियाँ – 75 ग्राम, जड़ें या कंद-75 ग्राम, फल / दूध – 150 ग्राम / 200 ग्राम, वसा / तेल/शक्कर/गुड़-250 मि०ली० / 50 ग्राम।

                                                                  किशोरावस्था के लिए आहार तालिका

            खाद्य-पदार्थ      मात्राएँ / अदद
(i) सुबहदूध, भरा हुआ पराठा,टमाटर चटनी टिफिन टमाटर सैंडविच,सेब तथा संतरा ।1 कप  2 चम्मच
(ii) दोपहरसांभर, उबले चावल, मेथी आलू सब्जी, खीरा रायता।1 कटोरी 1 प्लेट 1\4 कटोरी 1 कटोरी
(iii) शामदूध शेक,  स्लाइस ब्रेड मक्खन सहित।1 ग्लास 4
(iv) रात्रिदाल, आलू-पालक सब्जी, रोटी,सलाद, खीर या कस्टर्ड ।1 कटोरी ½ कटोरी 4 1 प्लेट 1 कटोरी 
(v) सोने के पहलेबादाम दूध1 कप

9. आहार आयोजन के महत्त्व क्या हैं? (What is the importance of meal planning ?)

उत्तर ⇒ परिवार के सभी सदस्यों को स्वस्थ रखने के लिए आहार का आयोजन आवश्यक है। आहार आयोजन का महत्त्व निम्न कारणों से है

(i) श्रम, समय एवं ऊर्जा की बचत —आहार आयोजन में आहार बनाने के लिए ही इसकी योजना बना ली जाती है। आवश्यकतानुसार यह आयोजन दैनिक, साप्ताहिक, अर्द्धमासिक तथा मासिक बनाया जा सकता है। इससे समय, श्रम तथा ऊर्जा की बचत होती है।

(ii) आहार में विविधता एवं आकर्षण —आहार में सभी भोज्य वर्गों का समायोजन करने से आहार में विविधता तथा आकर्षण उत्पन्न होता है। साथ ही आहार पौष्टिक, संतुलित तथा स्वादिष्ट हो जाता है।

(iii) बच्चों में अच्छी आदतों का विकास करना—चूँकि आहार में सभी खाद्य वर्गों को शामिल किया जाता है। इससे बच्चों को सभी भोज्य पदार्थ खाने की आदत पड़ जाती है इससे ऐसा नहीं होता कि बच्चा किसी विशेष भोज्य पदार्थ को ही पसंद करे तथा अन्य को ना पसंद करे।

(iv) निर्धारित बजट में संतुलित एवं रुचिकर भोजन—आहार का आयोजन करते समय निर्धारित आय की राशि को परिवार की आहार आवश्यकताओं के लिए इस प्रकार वितरित किया जाता है। जिससे प्रत्येक व्यक्ति की रुचि तथा अरुचि का भी ध्यान रखा जाता है और प्रत्येक व्यक्ति को संतुलित आहार भी प्रदान किया जाता है। आहार आयोजन के बिना कोई भी व्यक्ति कभी भी आहार ले सकता है। परंतु व्यक्ति को पौष्टिक आवश्यकताओं को पूरा करने में समर्थ नहीं हो सकता है। आहार आयोजन के बिना परिवार की आय को आहार पर खर्च करने से बजट भी असंतुलित हो जाता है।


10. आहार आयोजन क्या है? आहार आयोजन को प्रभावित करने वाले कारकों का वर्णन करें। (What is meal planning? Describe the factors affecting meal plannig.)

उत्तर ⇒  आहार आयोजन का अर्थ आहार की ऐसी योजना बनाने से है जिससे सभी पोषक तत्त्व उचित तथा संतुलित मात्रा में प्राप्त हो सके। आहार का आयोजन इस प्रकार से करना चाहिए कि आहार लेने वाले व्यक्ति के लिए यह पौष्टिक, सुरक्षित, संतुलित हो तथा उसके सामार्थ्य में हो। आहार आयोजन को प्रभावित करने वाले कारक निम्न हैं

(i) परिवार के सदस्यों की संख्या — परिवार के सदस्यों की संख्या आहार आयोजन को प्रभावित करती हैं। गृहिणी को आहार आयोजन करते समय घर के सदस्यों की संख्या के अनुसार विभिन्न भोज्य पदार्थों की मात्रा का अनुमान लगाया जाये। कम सदस्यों में कम तथा अधिक सदस्यों में अधिक भोज्य पदार्थों की आवश्यकता होती है।

(ii) आयु — भिन्न-भिन्न आयु जैसे-बच्चे, बुढ़े, किशोर तथा प्रौढ़ के लिए पोषण संबंधी माँग भी भिन्न-भिन्न होती है। बाल्यावस्था में अधिक ऊर्जा वाले भोज्य पदार्थ तथा वृद्धावस्था  में पाचन शक्ति कमजोर होने से ऊर्जा की माँग कम हो जाती है।

(iii) लिंग — आहार आयोजन में स्त्री तथा पुरुष की पोषण आवश्यकताओं में अन्तर होता है। एक आयु के पुरुष और महिला के एक ही व्यवसाय में होने पर भी उनकी पोषण आवश्यकताएँ भिन्न होती हैं। पुरुष की पोषण संबंधी माँग स्त्री की अपेक्षा अधिक होती है।

(iv) शारीरिक आकार — शारीरिक आकार के अनुसार पोषण माँग भी भिन्न-भिन्न होती है। लम्बे चौड़े व्यक्तियों को दुबले-पतले व्यक्तियों की अपेक्षा अधिक पौष्टिक तत्त्वों की आवश्यकता पड़ती है।

(v) रुचि — परिवार में सभी सदस्यों की रुचियों में विभिन्नता होती है। आहार आयोजन करते समय सभी सदस्यों की रुचियों को ध्यान में रखना चाहिए। बच्चों को दूध पसंद नहीं हो तो उसकी जगह हॉर्लिक्स, खीर, कस्टर्ड आदि दिया जा सकता है।

(vi) धर्म— कुछ धर्मों में माँस, मछली, अण्डा, प्याज तथा लहसून आदि खाना वर्जित है। इस बात का आहार आयोजन करते समय ध्यान रखना चाहिए।

(vii) व्यवसाय — प्रत्येक व्यक्ति का व्यवसाय अलग-अलग होता है। कोई व्यक्ति शारीरिक परिश्रम अधिक करता है तो कोई मानसिक परिश्रम अधिक करता है। शारीरिक श्रम करने वाले को कार्बोज तथा वसा देना चाहिए इसके विपरीत मानसिक श्रम करने वाले को प्रोटीन, खनिज तत्व तथा विटामिन देना चाहिए।

(viii) जलवायु तथा मौसम— जलवायु तथा मौसम भी आहार आयोजन को प्रभावित करता है। गर्मी में ठण्डे पेय पदार्थ तथा सर्दियों में गर्म चाय, कॉफी तथा सूप आदि पदार्थ दिये जाते हैं। ठण्डी जलवायु में वसा वाले भोज्य पदार्थ शामिल किये जाते हैं।

(ix) आदत — आधार आयोजन आदतों को प्रभावित करता है। किसी को चाय अधिक पीने की आदत है, किसी को दूध पीना अच्छा लगता है, किसी को हरी सब्जी सलाद पसंद है। बच्चों को मिठाई, चाकलेट, आइसक्रीम, चाट, पकौड़ा पसंद होती है। आहार आयोजन में इसका भी ध्यान रखा जाता है।

(x) विशेष अवस्था गर्भावस्था तथा धात्री अवस्था में पोषक तत्त्वों की माँग बढ़ जाती है। रोगावस्था में क्रियाशीलता कम होने के कारण ऊर्जा की माँग कम हो जाती है। मधुमेह में कार्बोज हानिकारक होता है। आहार में इसे शामिल नहीं करना चाहिए।


11. भोजन का हमारे जीवन में क्या महत्त्व है? (What is the importance of food in our lif e^ ? )

उत्तर ⇒ भोजन का हमारे जीवन में बहुत महत्त्व है जो इस प्रकार है

A. भोजन का शारीरिक महत्त्व —

(i) भोजन शरीर को ऊर्जा प्रदान करता है— शरीर में ऊष्मा बनाए रखने, शारीरिक कार्य करने के लिए मांसपेशियों की सक्रियता प्रदान करने तथा शरीर के विभिन्न अंगों को क्रियाशील बनाये रखने के लिए ऊर्जा की आवश्यकता होती है।

(i) भोजन शारीरिक वृद्धि एवं विकास करता है— जब शिशु जन्म लेता है तो वह 2 किलोग्राम से 3.5 किलोग्राम तथा लंबाई 40-50 सेमी० होती है। युवावस्था तक आते-आते 50-70 किग्रा० तथा 5-6 फीट की लंबाई तक पहुँच जाता है।

(iii) भोजन शरीर के रोगों से रक्षा प्रदान करता है— भोजन में सभी पोषक तत्त्व होते हैं जो शरीर के लिए सुरक्षात्मक कार्य करते हैं। ये पोषक तत्त्व सभी प्रकार के विटामिनों तथा खनिज लवण में होते हैं। शरीर को रोगों से संघर्ष करने की शक्ति इन्हीं पोषक तत्त्वों के भोजन में रहने से प्राप्त होती है।

(iv) भोजन शारीरिक क्रियाओं का संचालन, नियंत्रण एवं नियमन करता है-— शरीर में रक्त का थक्का बनना, शारीरिक तापक्रम पर नियंत्रण, जल संतुलन पर नियंत्रण, श्वसन गति का नियमन, हृदय की धड़कन, उत्सर्जन आदि क्रियाओं का भोजन द्वारा नियमन एवं नियंत्रण होता है।

(B) सामाजिक महत्त्व

(i) भोजन आर्थिक स्तर का प्रतीक है— उच्च आर्थिक स्तर के लोग महँगे फल, मेवे, बड़े होटलों में खाना खाते हैं। मध्यमवर्गीय लोग मौसम के फल, सब्जियों का प्रयोग करते हैं। जन्मदिन, विवाह, त्योहार पर भोजन का आयोजन कर अपनी आर्थिक स्तर को दिखाते हैं।

(ii) भोजन आतिथ्य का प्रतीक है—भोजन द्वारा अतिथि सत्कार भी किया जाता है। विशेष तीज त्योहार पर विशिष्ट एवं स्वादिष्ट भोजन बनाया जाता है और भोज का आयोजन कर अपनी खुशी प्रकट करते हैं।

(C) भोजन का मनोवैज्ञानिक महत्त्व

(i) भोजन द्वारा संवेगों को प्रकट करना — भोजन द्वारा संवेगों को प्रकट किया जाता है । जैसे— दुःखी मन से कम भोजन खाया जाता है तथा मन खुश होने पर अधिक भोजन खाया जाता है।

(ii) सुरक्षा की भावना के रूप — में भोजन सुरक्षा की भावना का प्रतीक है। घर का बना भोजन न केवल पौष्टिक और स्वच्छ होता है बल्कि एक सुरक्षा की भावना प्रदान करता है।

(ii) भोजन का प्रयोग बल के रूप में — कई बार लोग विद्रोह दर्शाने के लिए भूख हड़ताल करते हैं। यदि प्रशंसनीय कार्य करता है तो उसे इनाम के रूप में उसका प्रिय भोजन बनाकर दिया जाता है।

12th Home Science Long Question Bihar Board


Class 12th Home Science Objective
UNIT – I 12th Home Science Objective
UNIT – II12th Home Science Objective
UNIT – III 12th Home Science Objective 
UNIT – IV 12th Home Science Objective
UNIT – V 12th Home Science Objective
UNIT – VI 12th Home Science Objective
 BSEB Intermediate Exam 2024
 1Hindi 100 MarksClick Here
 2English 100 MarksClick Here
 3Physics Click Here
 4ChemistryClick Here
 5BiologyClick Here
 6MathClick Here
 Class 12th Arts Question  Paper
 1इतिहास   Click Here
 2भूगोल  Click Here
 3राजनीतिक शास्त्र Click Here
 4अर्थशास्त्र Click Here
 5समाज शास्त्र Click Here
 6मनोविज्ञान Click Here
 7गृह विज्ञान Click Here
 812th All Subject Online Test Click Here

Leave a Comment