Inter Biology Long Question Answer :- दोस्तों यदि आप Class 12 Biology Model Question In Hindi की तैयारी कर रहे हैं तो यहां पर आपको Class 12 Biology Chapter 12 Long Question दिया गया है जो आपके NCERT Biology Class 12 book pdf in Hindi के लिए काफी महत्वपूर्ण है | Bihar Board Solutions for Class 12 Biology
Inter Exam 2024 Biology Long Question Answer
1.जैव-प्रौद्योगिकी से क्या समझते हैं ? कृषि के क्षेत्र में इसके योगदान का उल्लेख करें।
उत्तर ⇒ प्रौद्योगिकी जिसमें मानव कल्याण हेतु सूक्ष्म जीवों, पादप कोशिकाओं, जंतु कोशिकाओं या जैविक प्रक्रियाओं का उपयोग कर वैसे उत्पादों एवं सेवाओं का सृजन किया जाता हो, जैव प्रौद्योगिकी कहलाता है।
कृषि में जैव प्रौद्योगिकी की भूमिका : जैव प्रौद्योगिकी बड़ा उपयोग कर कृषि को भोजन उत्पादन को निम्नांकित रूप में बढ़ाया जा सकता है |
कृषि रसायन का उत्पादन कृषि उत्पादन बढ़ाने में कृषि रसायनों जैसे उर्वरकों नाशी नाशकों आदि की अहम भूमिका रहती है। परंतु रसायनिक उर्वरक एवं संश्लेषित रासायनिक कीटनाशियों का उपयोग पर्यावरण के लिए खतरनाक है। अतः जैव प्रौद्योगिकी का उपयोग कर जैविक खाद, कम्पोस्ट खाद कृमिखाद तैयार कर इसको प्रयोग करने से फसल लगाने में काफी वृद्धि होती है साथ ही साथ मिट्टी की उर्वरा शक्ति भी बनी रहती है। इसी प्रकार जैविक जैवनाशी एवं जैविक कीट नियंत्रक का उत्पादन रसायनिक संश्लेषित कृत्रिम नाशी जीव नाशियों की अपेक्षा काफी लाभकारी हो रहा है।
उन्नत एवं उच्च उत्पादक बीज फसल किस्मों के उत्पादन द्वारा इसके लिए पहले और आज भी जीवरोधी, कीटरोधी एवं उच्च उत्पादक फसल किस्मों के बीज (हाइब्रिड बीज) संकर जनन विधियों द्वारा तैयार किया जाता है। परंतु आज आधुनिक जैव प्रौद्योगिकी की सहायता से हासजेनिक किस्म तैयार कर और अधिक उन्नत प्रभेद प्राप्त किया जा रहा है जिसके कारण वर्तमान की खाद्य आवश्यकताएँ पूर्ण होने की संभावनाएँ हैं।
2.प्रतिजैविक क्या है ? इनका उत्पादन कैसे किया जाता है ? इनकी क्रियाविधि क्या है ?
उत्तर ⇒ प्रतिजैविक (antibiotics) वे रासायनिक पदार्थ हैं जो किसी सूक्ष्मजीवी में उपापचय के फलस्वरूप उत्पन्न होते हैं तथा दूसरे सूक्ष्मजीवी को मार डालते हैं। सन् 1928 में सर एलेक्जेंडर फ्लेमिंग ने देखा कि पैनिसिलियम (Penicillium) नामक कवक से कोई ऐसा पदार्थ निकलता है जो सटैफिलोकोक्कस ऑरियस (Staphylococcus aures) नामक जीवाणु को मार डालता है। इस पदार्थ का नाम पेनिसिलीन (Penicillin) रखा गया।
अगले दशक में इस पदार्थ को पृथक्कृत करने में सफलता मिली। सन् 1943 में वैक्समैन (Waksman ) ने स्ट्रेप्टोमाइसीन (Streptomycin) नामक प्रतिजैविक का पृथक्करण किया। तब से अनेक प्रतिजैविकों की खोज की जा चुकी है और इन्हें व्यावसायिक स्तर पर उत्पादित किया जा रहा है। इनमें से कुछ प्रतिजैविक व उनके स्रोत (सूक्ष्मजीवी) निम्नलिखित हैं
(i) बैसिट्रेसिन—बैसिलस लाइकेनिफार्मिस
(ii) क्लोरोमाइसिटिन — स्ट्रेप्टोमासीज वेनिजुएली
(iii) टेट्रासाइक्लीन — स्ट्रेप्टोमाइसीज ऑरिओफेसिएन्स
(iv) एरिथ्रोमाइसीन — स्ट्रेप्टोमासीज एरिथ्रीएस।
प्रतिजैविकों का उत्पादन — जिस सूक्ष्मजीवी से प्रतिजैविक प्राप्त करना हो, उसे उपयुक्त संवर्धन माध्यम में उगा लेते हैं। माध्यम में सूक्ष्मजीवी के एक समान संवर्धन के लिए माध्यम को निरन्तर हिलाते रहते हैं। बाद में सूक्ष्मजीवी को छानकर या अन्य विधियों द्वारा अलग कर देते हैं तथा शेष माध्यम में से प्रतिजैविक को रासायनिक विधियों से अलग कर लेते हैं।
प्रतिजैविकों की क्रियाविधि— सभी प्रतिजैविक सभी प्रकार के जीवाणुओं, कवकों इत्यादि को नष्ट नहीं कर सकते। कुछ प्रतिजैविक अनेक सूक्ष्मजीवों को नष्ट कर सकते हैं। इन्हें विस्तृत प्रतिजैविक (broad spectrum antibiotic) कहते है। इसके विपरीत कुछ प्रतिजैविक केवल कुछ ही सूक्ष्मजीवों को नष्ट कर सकते हैं। प्रतिजैविक जीवाणुओं पर विभिन्न प्रकार से क्रिया करके नष्ट करते हैं।
इनमें से कुछ इस प्रकार है—
(i) कोशिका भित्ति को नष्ट करके
(ii) प्रोटीन संश्लेषण में व्यवधान करके
(iii) न्यूक्लिक अम्ल संश्लेषण में व्यवधान उत्पन्न करके । प्रतिजैविक मुख्यतः कवकों, एक्टिनोमाइसिटीज व जीवाणुओं से प्राप्त होते हैं।
3.आनुवंशिक प्रौद्योगिकी में ऊतक संवर्धन की क्या भूमिका है ?
उत्तर ⇒ इंसुलिन व मानव वृद्धि हार्मोन (Insulin and Human Growth Hormones) – मानव शरीर के कुछ ऊतकों में ऐसी प्रोटीन उत्पन्न होती है जो शरीर की कुछ विशिष्ट क्रियाओं पर नियंत्रण रखती है। इन प्रोटीनों के संश्लेषण में गड़बड़ होने से शरीर रोगी हो जाता है। ऐसी दशा में इन प्रोटीनों को औषधियों के रूप में रोगी को प्रदान करना आवश्यक हो जाता है। उदाहरण के तौर पर, अग्नाशय की कुछ कोशिकाओं में इंसुलिन उत्पन्न होती है, जो रक्त में शर्करा की मात्रा को नियंत्रित रखता है। परन्तु मधुमेह के रोगियों में इंसुलिन पर्याप्त मात्रा में उत्पन्न नहीं होती, अतः उनको औषधि के रूप में इंसुलिन देनी पड़ती है। यही कारण है कि इंसुलिन को काफी अधिक मात्रा में संश्लेषित करना पड़ता है। संश्लेषण विधि जटिल होने के कारण इंसुलिन काफी महंगी
होती है। मानव शरीर में उत्पन्न कुछ अन्य प्रोटीन औषधियों जैसे—मानव वृद्धि हॉर्मोन (ह्यूमन ग्रोथ हॉर्मोन) इंटरफेरॉन, रेनिन आदि के साथ भी यही समस्या है।
प्रोटीनों के संश्लेषण के लिए विशिष्ट जीनों को प्राप्त कर लिया जाए तो क्लोनिंग द्वारा इन प्रोटीनों को कृत्रिम रूप से संश्लेषित किया जा सकता है। इस प्रकार जीन-इंजीनियरिंग विधि से तैयार कुछ बैक्टीरिया फैक्ट्री की तरह कार्य करने लगते हैं, और इनकी सहायता से बहुत कम लागत में अनेक औषधियाँ तैयार की जा सकती हैं।
सन् 1982 में जैव तकनीक द्वारा सर्वप्रथम इंसुलिन प्राप्त करने में सफलता मिली। इस प्रकार से संश्लेषित इंसुलिन को ‘ह्यूमूलिन’ नाम दिया गया। कुछ व्यक्ति बौने होते हैं, इसका कारण उनमें एक विशिष्ट हॉर्मोन की कमी है, जिसको मानव वृद्धि हॉर्मोन (Human Growth, Hormone, HGH) कहते हैं। यह शरीर में इतनी अल्प मात्रा में होता है कि इसको किसी बौने के इलाज के लिए पर्याप्त मात्रा में प्राप्त करना कठिन कार्य है परन्तु हाल ही में क्लोनिंग द्वारा इस हार्मोन को संश्लेषित करने में सफलता मिल गई है।
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4.आनुवंशिकी इंजीनियरिंग का फसलों के विकास में क्या महत्त्व रहा है ?
उत्तर ⇒ आनुवंशिकी इंजीनियरिंग का फसलों के विकास में बहुत महत्व है। इस तकनीक से किसी जीवधारी में ऐसे जीन को प्रविष्ट कराना संभव हो गया है, जो उसमें नहीं पाया जाता। यह तीन प्रकार से किया जा सकता है—
(i) एग्रोबैक्टीरियम टुमिफेसियन्स (Agrobacterium tumefaciens) (या अन्य कोई उपयुक्त जीवाणु) के प्लाज्मिड पर किसी विशेष लक्षण के जीन संलयन करा देते हैं। प्लाज्मिड को पुनः जीवाणु में डाल देते हैं। यह जीवाणु जब पौधे पर संक्रमण करता है, तो इन विशिष्ट जीनों को वह पौधे की कोशिकाओं में पहुंचा देता है। जिन कोशिकाओं में यह जीन होता है उन्हें ट्रांसजिनिक कोशिकाएँ (transgenic) कहते हैं।
(ii) दो कोशिकाओं के बीच में कुछ क्षणों के लिए उच्च ऊर्जा विभव कायम करते हैं, जिससे DNA जीवद्रव्यक के अन्दर पहुँच जाता है।
(iii) कोशिकाओं में सूक्ष्म क्षेपकों (injectors) की सहायता से वांछित DNA का अंतःक्षेपण (injection) दिया जा सकता है। अब ऊतक को ऐसे माध्यम पर संवर्धित करते हैं, जिसपर केवल ट्रांसजेनिक कोशिकाएँ ही वृद्धि कर सकती हैं।
5.परजीवी जंतुओं का उत्पादन क्यों किया जाता है ? इस तरह के परिवर्तन से मानव को क्या लाभ है ?
उत्तर ⇒ मानव के लिए पारजीवी जन्तु निम्न कारणों से महत्त्वपूर्ण है
(क) सामान्य शरीर क्रिया व विकास— पारजीवी जन्तुओं का निर्माण विशेषरूप से इस प्रकार किया जाता है जिनमें जीनों के नियंत्रण व इनका शरीर के विकास व सामान्य कार्यों पर पड़ने वाले प्रभावों का अध्ययन किया जा सके, उदाहरणार्थ-विकास में भागीदार जटिल कारकों जैसे—इंसुलिन की तरह विकास कारक का अध्ययन। दूसरी जाति (स्पीशीज) के जींस को प्रवेश कराने के उपरांत उपरोक्त कारकों के निर्माण में होने वाले परिवर्तनों से होने वाले जैविक प्रभाव का अध्ययन तथा कारकों की शरीर में जैविक भूमिका के बारे में सूचना ।
(ख) रोगों का अध्ययन–अनेकों परजीवी जंतु इस प्रकार निर्मित किए जाते हैं जिनसे रोग के विकास में जीन की भूमिका का पता चलता है। यह विशिष्ट रूप से निर्मित है जो मानव रोगों के लिए नमूने के रूप में प्रयोग किए जाते हैं ताकि रोगों के नए उपचारों का अध्ययन हो सके। वर्तमान समय में मानव रोगों जैसे- कैसर, पुटीय रेशामयता (सिस्टीक फाइब्रोसिस), रूमेटवाएड संधिशोथ व एल्जिमर हेतु पारजीवी नमूने उपलब्ध है।
(ग) जैविक उत्पाद— कुछ मानव रोगों के उपचार के लिए औषधि की आवश्यकता होती है जो जैविक उत्पाद से बनी होती है। ऐसे उत्पादों को बनाना अक्सर बहुत महँगा होता है। पारजीवी जंतु जो उपयोगी जैविक उत्पाद का निर्माण करते हैं उनमें डीएनए के भाग (जीनों) को प्रवेश कराते हैं जो विशेष उत्पाद के निर्माण में भाग लेते हैं। उदाहरण- मानव प्रोटीन (अल्फा-1 एंटीट्रिप्सीन) का उपयोग इंफासीमा के निदान में होता है ठीक उसी तरह का प्रयास फिनाइल कीटोरिया (पीकेयू) व पुटीय रेशामयता के निदान हेतु किया गया है। वर्ष 1977 में सर्वप्रथम पारजीवी गाय ‘रोजी’ द्वारा मानव प्रोटीन संपन्न दुग्ध (2.4 ग्राम प्रति लीटर) प्राप्त किया गया। इस दूध में मानव अल्फा लेक्टरएल्बुमिन मिलता है जो मानव शिशु हेतु अत्यधिक संतुलित पोषक तत्व है जो साधारण गाय के दूध में नहीं मिलता है।
(घ) टीका सुरक्षा- टीकों का मानव पर प्रयोग करने से पहले टीके की सुरक्षा जाँच के लिए पारजीवी चूहों को विकसित किया गया है। पोलियो टीका की सुरक्षा जाँच के लिए पारजीवी चूहों का उपयोग किया जा चुका है। यदि उपरोक्त प्रयोग सफल व विश्वसनीय पाए गए तो टीका सुरक्षा जाँच के लिए बंदर के स्थान पर पारजीवी चूहों का प्रयोग किया जा सकेगा।
(ङ) रासायनिक सुरक्षा परीक्षण- यह आविषालुता सुरक्षा परीक्षण कहलाता है। यह वही विधि है जो औषधि आविषालुता परीक्षण हेतु प्रयोग में लाई जाती है। पारजीवी जंतुओं में मिलने वाले कुछ जीन इसे आविषालु पदार्थों के प्रति अतिसंवेदनशील बनाते हैं जबकि अपारजीवी जंतुओं में ऐसा नहीं है। पारजीवी जंतुओं को आविषाल पदार्थों के संपर्क में लाने के बाद पड़ने वाले प्रभावों का अध्ययन किया जाता है। उपरोक्त जंतुओं में आविषालुता परीक्षण करने से कम समय में परिणाम प्राप्त हो जाता है।
6.आनुवंशिक रूपांतरित फसलों के उत्पादन के लाभ व हानि का तुलनात्मक विभेद कीजिए।
उत्तर ⇒ आनुवंशिक रूपांतरित फसलों का उत्पादन कई प्रकार से लाभदायक है
(i) अजैव प्रतिबलों (ठंडा, सूखा, लवण, ताप) के प्रति अधिक सहिष्णु फसलों का निर्माण ।
(ii) रासायनिक पीड़कनाशकों पर कम निर्भरता करना (पीड़कनाशी प्रतिरोधी फसल)
(iii) कटाई पश्चात् होने वाले नुकसानों को कम करने में सहायक ।
(iv) पौधों द्वारा खनिज उपयोग क्षमता में वृद्धि (यह शीघ्र मृदा उर्वरता समापन को रोकता है) ।
(v) खाद्य फसलों के पौषणिक स्तर में वृद्धि, उदाहरणार्थं विटामिन ए समृद्ध धान ।
(vi) तदनुकूल पौधों के निर्माण में सहायक है, जिनसे वैकल्पिक संसाधनों के रूप में उद्योगों में वसा, ईंधन व भोजनीय पदार्थों की आपूर्ति की जाती है।
आनुवंशिक रूपांतरित फसलों के उत्पादन से होनेवाली हानि इस प्रकार है
(i) इस प्रकार की फसलों के उत्पादन से यह संभावना है कि कीट एवं पीड़क इस प्रकार की फसलों के प्रति प्रतिरोधी हो जायेंगे। फिर उपयोग के लिए नये पीड़कनाशी एवं कीटनाशियों की जरूरत पड़ेगी ।
(ii) इस प्रकार की फसलें लोगों में एलर्जी उत्पन्न कर सकती है।
(iii) आनुवंशिक रूपांतरित फसलें बहुत महंगी पड़ती हैं और इनकी प्रक्रिया बहुत लम्बी है, इसलिए छोटे किसान हर बार रूपांतरित फसलों के बीज नहीं खरीद सकते।
(iv) इस विधि द्वारा उत्पादित कुछ फसलें बीज पैदा नहीं कर सकती । इसलिए किसानों को प्रत्येक बार नए बीज खरीदने होगे।
7.उत्तक संवर्द्धन क्या है? उत्तक संवर्द्धन के विभिन्न प्रकार कौन कौन हैं ? संक्षिप्त विवरण दीजिए।
उत्तर ⇒ जब किसी ऊतक को माध्यम में रखकर उसकी वृद्धि कराई जाए तो वह पूरे अंग का जीव का रूप ले लेता है इस प्रक्रिया को ऊतक संवर्धन कहते है।
ऊतक संवर्धन के प्रकार— ऊतक संवर्धन निम्न प्रकार का होता है—
1.कैलस संवर्धन- इसमें किसी भी पादप अंग का संवर्धन करते है।
2.भ्रूण का संवर्धन- पृथक्ककृत भ्रूण का संवर्धन
3.ऊतक या कोशिका निलम्बन संवर्धन- कोशिकाओं या ऊतकों से तैयार संवर्धन
4.अंग संवर्धन- पृथक्कृत अंगों जैसे मूलाम, प्ररोह अंगों, पुष्पों आदि का संवर्धन
5.जीवद्रव्य संवर्धन— पृथक्कृत जीवद्रव्यों का संवर्धन
6.परागकण संवर्धन- पृथक्कृत परागणकणों के संवर्धन से अगुणित भ्रूण बनाये जाते हैं।
Class 12 Biology Five Mark Questions
8.जैवप्रौद्योगिकी के औद्योगिक उपयोग पर प्रकाश डालें।
उत्तर ⇒ जीव-जंतुओं एवं उनके उत्पादों के व्यापारिक प्रयोगों का अध्ययन जैव प्रौद्योगिकी के अंतर्गत किया जाता है। जैव प्रौद्योगिकी के द्वारा विभिन्न प्रकार के उत्पाद उद्योगों के द्वारा बनाए जाते है जैसे- (i) एण्टीबायोटिक्स औषधि, (ii) विभिन्न प्रकार के टीके, (iii) शराब उद्योग, (iv) चमड़ा उद्योग, (v) तम्बाकू उद्योग, (vi) सिरका उद्योग, (vii) दुग्ध उद्योग, (viii) माँस उद्योग, (ix) मत्स्य उद्योग, (x) सिल्क उद्योग आदि।
जैव प्रौद्योगिकी के द्वारा अनेक विटामिनों का निर्माण भी किया गया है जैसे बी कॉम्पलेक्स। इस विधि द्वारा इन्सुलिन हार्मोन का उत्पादन किया जाता है। जैव प्रौद्योगिकी के द्वारा विभिन्न प्रकार के भोज्य पदार्थ बनाए जाते हैं। किण्वन विधि का प्रयोग कर बायोगैस का निर्माण किया जाता है। जैव किटनाशी जैव उर्वरक कृषि क्षेत्र में प्रयुक्त होती है। जैव प्रौद्योगिकी का क्षेत्र व्यापक होता जा रहा है। आने वाले समय में यह उद्योग काफी उपयोगी साबित होगा।
9.जैव-प्रौद्योगिकी में सूक्ष्म जीवों के महत्व का वर्णन करें।
उत्तर ⇒ औद्योगिकी दृष्टिकोण से जीवाणु की मदद से विभिन्न प्रकार के मानवोपयोगी उत्पादों को बड़े पैमाने पर तैयार किया जाता है। सूक्ष्मजीवियों से तैयार विभिन्न औद्योगिक उत्पादों को निम्नलिखित वर्गों में बाँटा जा सकता है :
(a) किण्वित पेय (Fermented beverage ) — यीष्ट के प्रयोग से किण्वन क्रिया द्वारा इथेनॉल का निर्माण होता है जिसके फलस्वरूप ब्रांडी, हिस्की, रम आदि का उत्पादन होता है।
(b) प्रतिजैविक (Antibiotics) – प्रतिजैविक एक प्रकार का रासायनिक पदार्थ है जिसका निर्माण सूक्ष्मजीवों के उपापचयी क्रियाओं द्वारा होता है। एलैग्जेंडर फ्लेमिंग ने सबसे पहले पैनीसीलिन नाम प्रतिजैविक को खोजा।
(c) रसायन, एंजाइम तथा अन्य जैव-सक्रिय अणु सूक्ष्मजीव का उपयोग विभिन्न प्रकार के उत्पादन में किया जाता है :
(i) अल्कोहल एवं एसिटोन का निर्माण clostridium acetobutylicum नामक जीवाणु द्वारा।
(ii) विभिन्न कार्बनिक अम्लों का निर्माण जीवाणुओं द्वारा जैसे—सिट्रिक अम्ल का उत्पादन Aspergillus niger नामक कवक द्वारा।
(iii) एंजाइम का निर्माण— जैसे—फल-रस को साफ करने में पेक्टीनेज का प्रयोग तथा कपड़ों की धुलाई में लाइपेज का प्रयोग (d) अन्य जैव सक्रिय अणु-जैसे साइक्लोस्पोरिन A का निर्माण ट्राइकोडर्मा पॉलीस्पोरम नामक कवक द्वारा जो किडनी प्रत्यारोपण के दौरान Immunosuppressive drug के रूप में किया जाता है।
10.जैव-प्रोद्यौगिकी क्या है ? चिकित्सा के क्षेत्र में इसकी उपयोगिता पर प्रकाश डालें ।
उत्तर ⇒ जैव प्रौद्योगिकी- जैव प्रौद्योगिकी में उन तकनीकों का वर्णन मिलता है जिसमें जीवधारियों या उनसे प्राप्त एंजाइमों का उपयोग करते हुए मनुष्य के लिए उपयोगी उत्पाद या प्रक्रमों (Process) का विकास किया जाता है ।
चिकित्सा एवं मानव स्वास्थ्य में जैव प्रौद्योगिकी का उपयोग
(i) आनुवंशिकी द्वारा तैयार इंसुलिन (Genetically enginered Insulin) – इंसुलिन का उपयोग मधुमेह (diabetes) के उपचार के लिए किया जाता है। प्रयोगशाला में इंसुलिन के जीन का कृत्रिम संश्लेषण किया गया है। इस संश्लेषित जीन को Escherichia coli जीवाणु के प्लाज्मिड में जोड़कर ह्यूमन इंसुलिन (human insulin) का निर्माण किया जा रहा है। सूक्ष्मजीवों से प्राप्त इंसुलिन से मनुष्य में ऐलर्जी-संबंधी प्रतिक्रियाएँ (allergic reactions) नहीं होती है।
(ii) इंटरफेरॉन (Interferon ) – ये ग्लाइको प्रोटीन होते हैं जिनका आण्विक भार लगभग 20,000 होता है। इसका उपयोग कैंसर विशेषकर हेयरी सेल ल्युकेमिया (hairy cell leukaemia) के उपचार के लिए किया जाता है। जैव प्रौद्योगिकी का इस्तेमाल कर इंटरफेरॉन का उत्पादन किया जा रहा है।
(iii) मानव वृद्धि हॉरमोन-इस हॉरमोन का उपयोग मनुष्य में बौनापन दूर करने के लिए किया जाता है। औद्योगिक स्तर पर इस हॉरमोन का उत्पादन बैक्टीरिया Escherichia Coli में जीन क्लोनिंग द्वारा किया जा रहा है।
(iv) टीका या वैक्सीन निर्माण (Vaccine preparation) – जैव प्रौद्योगिकी के माध्यम से कई प्रकार के वैक्सीन बनाए गए हैं, जैसे हेपेटाइटिस B. मलेरिया, इंफ्लूएंजा, छोटी माता (small pox), HIV (AIDS virus), हरपीज आदि के लिए। ऐसे खतरनाक बैक्टीरिया तथा वाइरस से आनुवंशिक अभियांत्रिकी द्वारा टीका बनाना आसान, सस्ता तथा निरापद होता है।
(v) आण्विक निदान- किसी रोग के प्रभावी उपचार के लिए, इसकी पहचान के लिए Test कराया जाता है। DNA प्रौद्योगिकी, Polymer chain Reaction, Enzyme linked Immuno sorbant (ELISA) तकनीक से विभिन्न प्रकार के रोग की पहचान की जाती है।
(vi) एंटीबायोटिक्स- ये ऐसे रायायनिक पदार्थ है जो सूक्ष्मजीवियों द्वारा बनाए जाते है। Antibiotics का प्रयोग जीवाणुओं की वृद्धि को रोकने या उन्हें मारने के लिए किया जाता है। जैसे—पेनीसीलीन, इरिथ्रोमाइसिन
Inter Biology Long Question Answer 2024
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