Biology Five Marks Questions Class 12th :- दोस्तों यदि आप Bihar Board 12th Biology mcq Questions pdf की तैयारी कर रहे हैं तो यहां पर आपको Biology Chapter 12 Subjective Question दिया गया है जो आपके Class 12th Biology Subjective Question के लिए काफी महत्वपूर्ण है | Bihar Board 12th Biology Question Paper Pdf Download
Biology Five Marks Questions Class 12th
1.पर्यावरणीय कारकों की व्याख्या करें तथा पौधों तथा प्राणियों के प्रति उनका क्या महत्त्व है ?
उत्तर ⇒ पर्यावरणीय कारक जैसे तापमान, जल, प्रकाश, आर्द्रता, हवा pH मृदा आदि पौधों तथा प्राणियों की बनावट, जीवन-चक्र, शरीर क्रिया विज्ञान और उनके व्यवहार पर प्रभाव डालते हैं। उनके विकास तथा प्रजनन पर भी प्रभाव पड़ता है
(i) तापमान —जन्तुओं के कार्यात्मक तथा व्यवहारात्मक परिवर्तन हेतु तापमान अत्यंत महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है। पादपों में प्रकाश संश्लेषण तथा श्वसन में आने वाले अंतर, तापमान के उतार-चढ़ाव से आसानी से जुड़े होते हैं।
(ii) जल — जीवों की जल पर निर्भरता इस बात पर निर्भर करती है। कि उस जीव का शरीर कितना जल संरक्षित करता है। शुष्क स्थल पर रहने वाले जीव जल संरक्षण अधिक कर सकते हैं। जैसे—कैक्टस, ऊँट ।
(iii) प्रकाश— हरे पौधों तथा प्रकाश संश्लेषणी बैक्टीरिया हेतु प्रकाश अत्यंत महत्त्वपूर्ण होता है। समुचित मात्रा में प्रकाश प्राप्ति हेतु पौधों में अनेक प्रकार का अनुकूलन पाया जाता है।
(iv) आर्द्रता — जीव के शरीर की सतह से जल का वाष्पोत्सर्जन या जल -हानि की दर आर्द्रता को प्रभावित करती है। इससे सुखे के प्रति सहनशीलता प्रभावित होती है।
(v) वायु—-पादप के लिए यह अत्यंत महत्त्वपूर्ण कारक है मजबूत जड़ तथा तने वाले पौधे ही तेज वायु में खड़े रह सकते हैं। बीज तथा बीजाणुओं के परिवहन में वायु मदद करती है।
(vi) PH —यह मिट्टी तथा स्वच्छ जलयुक्त तालाबों में पादपों के वितरण को प्रभावित करता है। H में परिवर्तन के प्रति पौधे बहुत संवेदनशील होते हैं।
(vii) मृदा —मृदा पौधों के वितरण हेतु अत्यंत महत्त्वपूर्ण होती है। पौधे कुछ खास पोषक की मृदा में कमी की स्थिति में विशेष प्रकार की प्रक्रिया अपनाते हैं नाइट्रोजन स्थिरीकरण जीवाणुओं का फलीदार (दालयुक्त) पौधों की जड़ों में निवास इसका अच्छा उदाहरण है।
(viii) स्थलाकृति —स्थलाकृतियाँ जीवों के वितरण में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती है। झरने के मध्य तथा किनारे, पर्वत की चोटी तथा पर्वत के नीचे, बर्फ से ढके धुवीय भाग तथा मैदानी भाग सभी जगह जीवों की प्रजाति में विभिन्नता पाई जाती है।
2.प्राणियों में विभिन्न प्रकार का अनुकूलन क्या है ? उपयुक्त उदाहरण द्वारा व्याख्या करें ।
उत्तर ⇒ माँसाहारी तथा शाकाहारी प्राणियों में एक निश्चित प्रकार के भोजन को खाने की अनुकूलता रहती है। पर्यावरणीय परिवर्तन तथा प्रतिबल परिस्थिति में प्राणियों में ज्यादातर अनुकूलता, शरीर क्रियात्मक तथा व्यवहारात्मक होती है।
(i) प्रवास — एक क्षेत्र से दूसरे क्षेत्र में, प्राणियों द्वारा अभिगमन नए भोजन स्थल की तलाश में कई बार कम दूरी तो कई बार हजारों मील का चक्कर प्रतिवर्ष लगता है। मौसम के असह्य होने तथा भोजन की खोज में प्रवास होता है।
(ii) छद्मावरण— कुछ प्राणी परिवेश के साथ घुल-मिल जाने की क्षमता रखते हैं। इसके लिए उनके शरीर पर चिह्न होते हैं। जैसे-कीट, सर्प, कुछ स्तनधारी ।
(III) शीत / प्रीष्म निष्क्रियता — अभिगमन में असक्षम कुछ प्राणी प्रतिकूल मौसम में शरीर क्रियात्मक सुसुप्तावस्था में चले जाते हैं। (iv) अनुहरण – दो जातियाँ एक-दूसरे जैसी दिखती हैं। अनुहारक परभक्षी के लिए स्वादिष्ट तथा प्रतिरूप परभक्षी के लिए स्वादहीन होता है।
अनुहरण दो प्रकार का होता है
बेटसी — सुरक्षाहीन अनुहारक प्रतिरूप जैसा चिह्न जो परभक्षी के विरुद्ध सुरक्षात्मक उपाय रखता है।
म्यूलरी — अनुहारक प्रतिरूप जैसा सुरक्षात्मक उपाय दर्शाता है।
(v) चेतावनी रंजन – दक्षिणी अमेरिका उष्णकटिबंधीय वर्षा प्रचुर वन के चमकीले रंग वाले तथा अत्यधिक विषैले प्रासक मेढक (फाइलॉबैट्स बाइकलर, डेंड्रबिट्स पुमीलियो) परभक्षी द्वारा आसानी से पहचाने जाते है तथा उससे बनाए जाते हैं।
(vi) जलाभाव के प्रति अनुकूलन- मरुस्थलीय प्रदेशों के प्राणी जलहास को यथासंभव निम्न करने तथा मरुस्थलीय परिस्थिति के प्रति अनुकूलता की नीति अपनाते हैं। कंगारू चूहा ठोस मूत्र उत्सर्जित कर जल संरक्षण करता है। वह जन्म से मृत्यु तक बिना पानी पिए भी जीवित रह सकता है। ऊँट मितव्ययता से जल का उपयोग करता है तथा शरीर के तापमान में अत्यधिक उतार-चढ़ाव के प्रति सहिष्णुता दिखाता है। विपरीत परिस्थिति में भी रुधिरधारा की आर्द्रता बनाए रखने में समर्थ होता है।
(vii) शीत के प्रति अनुकूलता- अत्यधिक ठंडे क्षेत्रों के कुछ प्राणी प्रतिदिन पदार्थों द्वारा शीत सहनशील प्रक्रिया अपनाते है। हिम केंद्रीय प्रोटीन बहुत ही कम अवशून्य तापमानों पर कोशिका बाह्य स्थानों में हिम-निर्माण को प्रेरित करता है। ग्लिसरॉल प्रतिहिम प्रोटीन को जमाकर शरीर के तरल को हिमांक से नीचे ले आते हैं। वे 0°C से नीचे के पर्यावरणीय तापमान को सहन कर सकते हैं।
Class 12th Biology Subjective Question
3.जैविक समुदाय में होने वाली तीन प्रकार की पारस्परिक क्रियाओं का वर्णन करें।
उत्तर ⇒ जैविक समुदाय में होने वाली तीन प्रकार की पारस्परिक क्रियाएँ निम्न है।
(i) सहोपकारिता –जैविक समुदाय की दो जातियों के बीच पारस्परिक लाभ हेतु सहजीवन होता है। यह एक क्रियात्मक साहचर्य होता है। जब पारस्परिक क्रिया करने वाली दो जातियाँ अतिनिकटता से साथ रहती हैं तो इसे सिम्बियोसिस (Symbiosis) कहते हैं। जैसे-दाल कुल के पौधों की जड़ों में रहने वाला बैक्टीरिया— राइजोबियम । सहोपकारिता को समुद्री एनीमोन तथा हर्मिट केकड़े के उदाहरण द्वारा दर्शाया जा सकता है। कम गतिशील समुद्री एनीमोन केकड़ों के कवच के ऊपर स्थित होकर विस्तृत परिक्षेषण करता है।
(ii) सहभोजिता—दो जातियों के बीच ऐसा संबंध जिसमें एक जाति लाभान्वित होती है, जबकि दूसरी जाति को न लाभ होता है न हानि। जैसे शार्क के पृष्ठ फिन के द्वारा जुड़ी चूषक मछली चूषक मछली को अच्छे भोजन की प्राप्ति तथा परभक्षी से सुरक्षा मिलती है किन्तु शार्क अप्रभावित होता है।
(iii) प्रतियोगिता – एक ही जाति के दो सदस्यों (आंतरजातीय) या दो जातियों (अंतरजातीय) के सदस्यों के बीच प्रकाश, भोजन, आवास तथा प्रजनन हेतु पारस्परिक क्रिया होती है। इसमें दोनों जातियों की वृद्धि तथा उनके बीच उत्पादन घट जाता है। सामान्यतया आंतरजातीय प्रतियोगिता, अंतरजातीय प्रतियोगिता से ज्यादा उम्र होती है।
4.निम्नलिखित पर संक्षिप्त टिप्पणी (नोट) लिखिए:
(क) मरुस्थल पादपों और प्राणियों का अनुकूलन।
(ख) जल की कमी के प्रति पादपों का अनुकूलन ।
(ग) प्राणियों में व्यावहारिक (बिहेवियोरल) अनुकूलन
(घ) पादपों के लिए प्रकाश का महत्व।
(ङ) तापमान और पानी की कमी का प्रभाव तथा प्राणियों का अनुकूलन ।
उत्तर ⇒ (क) मरुस्थल पादपों और प्राणियों का अनुकूलन— अनेक मरुस्थलीय पौधों की पत्तियों की सतह पर मोटी उपत्वचा (क्यूटिकल) होती है और उनके रंध (स्टोमेटा) गहरे गर्त में व्यवस्थित होते हैं, ताकि वाष्पोत्सर्जन द्वारा जल की न्यूनतम हानि हो। उनके प्रकाश संश्लेषी मार्ग भी विशेष प्रकार के होते हैं जिसके कारण वे अपने रंध्र दिन के समय बंद रख सकते हैं। कुछ मरुस्थली पादपों जैसे नागफनी, कैक्ट्स आदि में पत्तियाँ नहीं होती बल्कि वे काँटे के रूप में रूपांतरित हो जाती है और प्रकाश संश्लेषण का कार्य चपटे तनों द्वारा होता है। जल के बाह्य स्रोत न होने पर उत्तरी अमेरिका के मरुस्थल में कंगारू – चूहा अपनी जल की आवश्यकता की पूर्ति अपनी आंतरिक वसा के ऑक्सीकरण से पूरी करने में सक्षम है। इसमें अपने मूत्र को सांद्रित करने की क्षमता भी है जिससे उत्सर्जी पदार्थों को हटाने के लिए जल के न्यूनतम आयतन को काम में लगाया जाता है।
(ख) जल की कमी के प्रति पादपों का अनुकूलन— मरुस्थलीय पौधों में जल की कमी के प्रति पादपों के प्रकाश संश्लेषी (सीएएम) मार्ग भी विशेष प्रकार के होते हैं जिसके कारण वे अपने रंध दिन के समय बंद रख सकते हैं। कुछ मरुस्थलीय पादपों जैसे नागफनी (ओपशिया), कैक्टस आदि में पत्तियाँ नहीं होती बल्कि वे कॉंटे के रूप में रूपांतरित हो जाती हैं और प्रकाश-संश्लेषण का कार्य चपटे तनों द्वारा होता है।
(ग) प्राणियों में व्यावहारिक (बिहेवियोरल) अनुकूलन — कुछ जीवों के अनुकूलन कार्यिकीय होते हैं जिसकी वजह से वे दबावपूर्ण परिस्थितियों के प्रति शीघ्र अनुक्रिया करते हैं और कुछ समय के लिए अधिक अनुकूल स्थानों पर चले जाते हैं। मौसम ठीक होने पर वे फिर अपने घर लौट आते हैं।
(घ) पादपों के लिए प्रकाश का महत्त्व — सभी पौधे अपना भोजन प्रकाश-संश्लेषण किया द्वारा प्राप्त करते हैं। प्रकाश संश्लेषण क्रिया तभी संभव है जब ऊर्जा के स्रोत के रूप में सूर्य का प्रकाश उपलब्ध हो। इसलिए, पादपों के लिए प्रकाश बहुत महत्त्वपूर्ण है।
(ङ) तापमान और पानी की कमी का प्रभाव तथा प्राणियों का अनुकूलन— तापमान पारिस्थितिक रूप से सबसे ज्यादा प्रासंगिक पर्यावरणीय कारक है। पृथ्वी पर औसत तापमान ऋतु के अनुसार बदलता रहता है। भूमध्यरेखा से धुव्रों की ओर और मैदानों से पर्वत शिखरों की ओर उतरोत्तर घटता रहता है। ऊँचाई वाले क्षेत्रों में तापमान अवशून्य से लेकर ग्रीष्म में ऊष्ण कटिबंधी मरुस्थलों में 50 डिग्री सेटीग्रेड से अधिक पहुँच जाता है। आम के पेड़ कनाडा और जर्मनी जैसे शीतोष्ण देशों में नहीं होते हैं और न ही हो सकते हैं। हिम चीते केरल के जंगलों में नहीं मिलते और ट्यूना मछली महासागर में शीतोष्ण अक्षांशों से आगे कभी-कभार ही पकड़ी जाती है। तापमान एंजाइमों की बलगति को प्रभावित करता है और इसके द्वारा आधारी उपापचय, जीव के अन्य कार्यिकीय प्रकार्यों तथा उसकी गतिविधियों को प्रभावित करता है। कुछ जीव तापमानों के व्यापक चरम बिन्दु (100° सेटीग्रेड से अधिक) को सहन कर सकते हैं लेकिन अधिकांश तापमानों की कम चरण सीमा में ही रहते हैं।
12th Biology Five Marks Questions 2024
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