12th Exam History Subjective Question 2024 :- दोस्तों यदि आप इंटर बोर्ड परीक्षा 2024 की तैयारी कर रहे हैं तो यहां पर आपको History 12th Class Subjective 2024 दिया गया है जो आपके Class 12 history Question in Hindi में पूछे जा सकते हैं, class 12 history important questions in hindi, Class 12th ka History Ka Subjective
12th Exam History Subjective Question 2024
1. वैदिक काल में आश्रम व्यवस्था पर प्रकाश डालें।
उत्तर ⇒ उत्तर वैदिक काल में वर्ण व्यवस्था के साथ-साथ आश्रम व्यवस्था भी भारतीय समाज का अंग बन गई थी। मनुष्य की आयु को 100 वर्ष मानकर प्रत्येक आश्रम के लिए 25 वर्ष की समान अवस्था निश्चित की गई थी । ये चार आश्रम इस प्रकार थे
(i) ब्रह्मचर्य आश्रम ( 25 वर्ष तक) – इस आश्रम में व्यक्ति अपने गुरु के आश्रम में रहकर, ब्रह्मचर्य का पालन करते हुए विद्या ग्रहण करता था ।
(ii) गृहस्थाश्रम (25-50 वर्ष) – अपनी शिक्षा समाप्त करने के बाद व्यक्ति विवाह करके गृहस्थ धर्म का पालन करता था।
(iii) वानप्रस्थ आश्रम (50-75 वर्ष) – इस आश्रम में व्यक्ति सांसारिक चिन्ताओं से मुक्त होकर तथा जंगल में रहकर एकान्त स्थान में आत्म चिन्तन तथा जीवन की गूढ़ बातों पर ध्यान करता था।
(iv) संन्यास आश्रम (75-100 वर्ष तक) – यह अन्तिम आश्रम था। इसमें व्यक्ति अपनी कुटी को छोड़कर संन्यासी बन जाता था और कठिन तप द्वारा मुक्ति मोक्ष की कामना करता था ।
2. प्राचीन भारत में महिलाओं के सम्पत्ति संबंधित अधिकार का वर्णन कीजिए।
उत्तर ⇒ऋग्वैदिक काल में परिवार की सम्पत्ति पर पिता का एकाधिकार होता था, पिता की मृत्यु के पश्चात् यह अधिकार पुत्र को मिलता था
महाभारत में स्त्री को चल सम्पत्ति पर अधिकार था और वह स्वयं भी चल सम्पत्ति समझी जाती थी और उसे किसी अन्य को उपहार स्वरूप दिया जाता था। महाभारत में युधिष्ठिर ने द्यूत क्रीड़ा के समय अपनी पत्नी द्रोपदी को दाँव पर लगाया और हार गया था। पारिवारिक सम्पत्ति पर स्त्री का कोई स्वतंत्र अधिकार नहीं था ।
3. वैदिक साहित्य पर संक्षेप में टिप्पणी लिखें। (Write Short notes on Vedic literature.)
उत्तर ⇒ वैदिक आर्यों द्वारा रचित साहित्य का अध्ययन निम्नलिखित शीर्षकों के अन्तर्गत किया जा सकता है।
(i) वेद- वेद आर्यों का प्राचीनतम ग्रंथ है। वेद चार हैं- (a) ॠग्वेद (b) सामवेद (c) यजुर्वेद (d) अथर्ववेद। इन चारों में ऋग्वेद सबसे प्राचीन ग्रंथ है।
(ii) ब्राह्मण ग्रंथ- यज्ञ के विषयों का प्रतिपादन करने वाले ग्रंथ ब्राह्मण ग्रंथ कहलाते हैं। इनमें वैदिक मंत्रों की व्याख्या के साथ यज्ञ के विषयों का प्रतिपादन किया गया है।
(iii) आरण्यक – वनों तथा अरण्यों में रहकर विभिन्न ऋषियों ने जिस साहित्य की रचना की आरण्यक कहलाये थे।
(iv) उपनिषद् – इनमें आर्यों का अध्यात्मिक और दार्शनिक चिंतन देखने को मिलता है।
4. राजतंत्र और वर्ण में संबंध स्थापित करें।
उत्तर ⇒ प्राचीन भारत में सैद्धांतिक रूप से राजतंत्र और वर्ण में गहरा संबंध था। अर्थशास्त्र ‘ और धर्मसूत्रों में राजतंत्र और वर्ण व्यवस्था का उल्लेख किया गया है। धर्मसूत्रों के अनुसार सम्राट क्षत्रिय वर्ग से ही होना चाहिए और उनके सलाहकार ब्राह्मण पुरोहित होना चाहिए। प्रशासन में ब्राह्मणों का सर्वोच्च स्थान प्राप्त था। गौतम के अनुसार, राजा तथा वेद के ज्ञानी ब्राह्मण ये दोनों संसार को नैतिक व्यवस्था के नियामक हैं। यह भी कहा गया कि राजा सभी का स्वामी होता है, किन्तु ब्राह्मण का नहीं। इस प्रकार प्राचीन भारत में सैद्धांतिक रूप से क्षत्रिय को ही आदर्श राजा के रूप में मान्यता प्राप्त था। इसी प्रकार पुरोहित व सलाहकार के रूप में ब्राह्मण स्थापित थे। वैश्यों और शूद्रों के कर्तव्य निर्धारित थे और वे राज-काज से दूर रहकर कृषि कार्य एवं सेवा का दायित्व निभाते थे।
5. प्राचीन भारत में वर्णव्यवस्था पर प्रकाश डालिये। (Throw light on Varna system in Ancient India.)
उत्तर ⇒ ऋग्वेद के पुरुष सुक्त तथा महाभारत के शांति पर्व से जानकारी मिलती है कि ब्रह्मा (विराट पुरुष) के मुख से ब्राह्मण, बाहु से क्षत्रिय, जंघा से वैश्य तथा पैरों से शूद्र वर्ण की उत्पत्ति हुई। प्रारम्भ में चातुर्वण्य व्यवस्था का आधार कर्म था। ब्राह्मण का कार्य कर्मकाण्ड सम्पन्न कराना था। राजा क्षत्रिय होता था, जिसका कार्य रक्षा करना था। वैश्य का कार्य व्यापार था। इन तीनों वर्णों को सम्मिलित रूप से द्विज कहा जाता था। शूद्र वर्ण का कार्य इन तीनों वर्णों की सेवा करना था। कालान्तर में यह व्यवस्था कर्म के स्थान पर जन्म पर आधारित हो गयी।
Class 12 history Question in Hindi
6. ऋग्वैदिक काल में नारी की दशा कैसी थी? (What was the status of women during Rigvedic Age ?)
उत्तर ⇒ ऋग्वैदिक काल में नारी को बड़ा आदर और सम्मान प्राप्त था। वे अपनी योग्यता के अनुसार शिक्षा ग्रहण करती थीं। विश्वआरा, घोषा, अपाला आदि तो इतनी विदुषी स्त्रियाँ हुई हैं कि उन्होंने ऋग्वेद के मंत्रों की रचना की। स्त्रियाँ गृहस्वामिनी मानी जाती थीं और सभी धार्मिक कार्यों में अपने पति के साथ भाग लेती थीं। पर्दे की प्रथा नहीं थी । स्त्रियाँ स्वच्छन्द रूपसे घूम-फिर सकती थीं। इस काल में सती प्रथा नहीं थी । बहु विवाह का प्रचलन नहीं था। स्त्रियों को सैनिक शिक्षा भी दी जाती थी। वे अपने पतियों के साथ युद्ध भूमि में भी जाती थीं ।
7. वैदिक काल की सभा व समिति के बारे में आप क्या जानते हैं? (What do you know about Sabha and Samitee of Vedic Age ?)
उत्तर ⇒ वैदिक काल में यद्यपि राजा सर्वोच्च अधिकारी और शक्ति सम्पन्न होता था, किन्तु उत्तर— वह निरंकुश व स्वेच्छाचारी नहीं हो सकता था, उस पर जनतांत्रिक संस्थाओं ‘सभा’ और ‘समिति’ का नियंत्रण रहता था। सभा सम्पूर्ण जनता के प्रतिनिधियों की संस्था थी तथा समिति वयोवृद्ध तथा उच्च कुल व्यक्तियों की संस्था थी। जिमर के अनुसार समिति सम्पूर्ण जाति की केन्द्रीय सभा और सभा गाँवों की प्रतिनिधि संस्था थी। ऐसा प्रतीत होता है कि समिति समस्त जन या विश की संस्था थी। जिसमें राजा का चुनाव होता था। सभा समिति से छोटी होती थी जिसमें समाज के वयोवृद्ध व प्रतिष्ठित व्यक्ति होते थे। उत्तर वैदिक काल में राजाओं की शक्तियों में वृद्धि हो गई थी तथा इन संस्थाओं का महत्त्व कम होने लगा था।
8. चार्वाक दर्शन के विषय में आप क्या जानते हैं? (What do you know about Charbakya darshan.)
उत्तर ⇒ वैदिक कर्मकांड से जब जनता त्रस्त होने लगी, इंसान आगामी जन्म के फेर में पड़कर वर्तमान जन्म में चिन्तित रहने लगा, ऐसे में चार्वाक मुनि ने अपना दर्शन लोगों को दिया कि “जब तक जियो, सुख से जियो और कर्ज लेकर घी पियो”। इस प्रकार भौतिक वादी चार्वाक ने मानव को परलोक की चिन्ता छोड़ इहलोक में आनंदपूर्वक जीवन जीने का मार्ग बताया। उनका कहना था न आत्मा है, न पूनर्जन्म है और न ही कोई परलोक परलोक की चिन्ता छोड़कर सामने जो भी सुख है उनका उपभोग करो।
9. गोत्र से आप क्या समझते हैं? (What do you know about Gotra ?)
उत्तर ⇒ लगभग 1000 ई०पू० में गोत्र प्रथा अस्तित्व में आया। प्रत्येक गोत्र किसी ऋषि के नाम पर होता था। उस गोत्र के सदस्य उसी ऋषि के वंशज माने जाते थे। एक ही गोत्र के सदस्य आपस में विवाह नहीं कर सकते थे। विवाह के पश्चात् स्त्रियों का गोत्र पिता के स्थान पर पति का गोत्र माना जाता था । परंतु सातवाहन इसके अपवाद कहे जा सकते हैं। पुत्र के नाम के आगे माता का गोत्र होता था। उदाहरण के लिए गौतमी पुत्र शातकर्णी । अर्थात् विवाह के पश्चात् भी सातवाहन रानियों ने अपने पति के स्थान पर पिता का गोत्र ही अपनाया ।
10. शैवमत के बारे में आप क्या जानते हैं? (What do you know about Shaivism?)
उत्तर ⇒ भगवान शिव से संबंधित धर्म को ” शैव” कहा जाता है। ऋग्वेद में शिव को रुद्र कहा जाता था। हड़प्पा सभ्यता में भी शिव के प्रतीक मिले हैं। अतः यह एक प्राचीन धर्म था। कौटिल्य के अर्थशास्त्र से पता चलता है कि मौर्यकाल में शिव पूजा प्रचलित थी । गुप्त शासक चन्द्रगुप्त द्वितीय का प्रधानमंत्री वीरसेन शैव उपासक था। उसने उदयगिरि पहाड़ी पर शैव गुफा का निर्माण कराया था। गुप्तकाल में ही भूमरा का शिव मंदिर एवं नचना कुठार का पार्वती मंदिर निर्मित किया गया। इस काल के पुराणों में लिंग पूजा का उल्लेख मिलता है। सम्भवत: लिंग रूप में शिव पूजा का आरंभ गुप्तकाल में ही हुआ। हर्षवर्द्धन के काल में आया चीनी यात्री ह्वेनसांग वाराणसी को शैवधर्म का प्रमुख केन्द्र बताता है। राजपूत काल में भी शैवधर्म उन्नति पर था। चन्देल शासकों ने खजुराहो में कंदरिया महादेव मंदिर का निर्माण कराया । कालिदास, भवभूति, सुबंधु एवं वाणभट्ट जैसे विद्वान शैवधर्म के ही उपासक थे।
History 12th Class Subjective 2024
11. शैव मत के मुख्य संप्रदाय कौन-कौन से थे? (What were the main Sampradaya of Shaiv ?)
उत्तर ⇒ प्रमुख थे शैव मत के संप्रदायों में लिंगायत संप्रदाय, कपालिक संप्रदाय और पाशुपत संप्रदाय
(i) लिंगायत संप्रदाय — लिंगायत संप्रदाय का संस्थापक वासव एवं उनका भतीजा चन्नावासव था । ये निष्काम कर्म में विश्वास करते थे एवं शिव को परम तत्त्व मानते थे।
(ii) कपालिक संप्रदाय — ये भैरव को शिव का अवतार मानते थे और उनकी उपासना करते थे।
(iii) पाशुपत संप्रदाय – यह शैवों का प्राचीनतम संप्रदाय है। इसके संस्थापक लकुलीश थे। इस सम्प्रदाय का प्रमुख मंदिर नेपाल में काठमाण्डु स्थित पशुपतिनाथ का मंदिर है।
12. लिंगायत सम्प्रदाय की दो विशेषताओं का वर्णन करें।
उत्तर ⇒ लिंगायत समुदाय की दो विशेषताएँ निम्न हैं:
(i) लिंगायत भारतवर्ष के प्राचीनतम् सनातन हिन्दू धर्म का एक हिस्सा है। यह मत भगवान शिव की स्तुति अराधना पर आधारित है।
(ii) लिंगायत के ज्यादातर अनुयायी दक्षिण भारत में हैं। इस संप्रदाय की स्थापना 12वीं शताब्दी में बसवण्णां ने की थी ।
13. महात्मा बुद्ध की शिक्षायें क्या थीं? (What were the preachings of Mahatma Buddha?)
उत्तर ⇒ महात्मा बुद्ध बौद्ध धर्म के संस्थापक थे। इनकी मुख्य शिक्षायें निम्न थीं : (i) चार आर्य सत्य है—-दु:ख, दुरः समुदाय, दुखनिरोध, दुख निषेध गामिनी क्रिया (ii) अष्टांगिक मार्ग—– सम्यक दृष्टि, सम्यक संकल्प, सम्यक वाणी, सम्यक कर्मांत, |
सम्यक आजीव, सम्यक व्यायाम, सम्यक स्मृति, सम्यक समाधि (iii) मनुष्य को मध्यम मार्गी होना चाहिए।
(iv) मनुष्य को अहिंसा का पालन करना चाहिए ।
(v) जातिवाद, यज्ञ परंपरा आदि में अविश्वास रखना चाहिए।
14. महावीर के उपदेशों का वर्णन करें। (Discuss the teachings of Mahavir.)
उत्तर ⇒ महावीर जैन की शिक्षायें बड़ी सरल तथा सादा हैं। यह कर्म, उच्च आदर्शों तथा अवागमन के सिद्धांतों पर आधारित है। इनमें अहिंसा, तपस्या, त्रिरत्न पर विशेष बल दिया है। संक्षेप में इनके मुख्य सिद्धांत इस प्रकार हैं
(i) त्रिरत्न- जैन धर्म में तीन रत्नों के पालन पर जोर दिया गया है— (i) सम्यक विश्वास, (ii) सम्यक ज्ञान, (iii) सम्यक आचरण ।
(ii) पाँच महाव्रत — महावीर स्वामी ने गृहस्थों के जीवन को पवित्र बनाने के लिए पाँच महाव्रत बताये हैं- (i) सत्य, (ii) अहिंसा, (iii) असत्येय, (iv) अपरिग्रह एवं (v) ब्रह्मचर्य ।
(iii) चौबीस तीर्थंकरों की पूजा – जैन धर्म में 24 तीर्थंकरों की पूजा का विधान है। जैन धर्म के अनुयायी इनमें अटूट विश्वास तथा अखंड श्रद्धा भक्ति रखते हैं।
(iv) मोक्ष प्राप्ति तथा निर्वाण – हिन्दू एवं बौद्ध धर्म की भाँति जैन धर्म में भी मोक्ष प्राप्ति
अथवा निर्वाण को जीवन का चरम लक्ष्य माना जाता है।
15. बौद्ध धर्म के महायान और हीनयान के सिद्धांत में क्या अंतर है?
उत्तर ⇒ हीनयान सम्प्रदाय महात्मा बुद्ध की शिक्षाओं पर आधारित है, यह सम्प्रदाय महात्मा बुद्ध को एक महापुरुष के रूप में स्वीकारता है। हीनयान में ज्ञान को प्रमुख स्थान दिया गया है। तथा व्यक्ति को निर्वाण की प्राप्ति करना उद्देश्य बताया गया है।
महायान सम्प्रदाय में महात्मा बुद्ध के अतिरिक्त बोधिसत्वों की शिक्षाओं को शामिल किया गया तथा महात्मा बुद्ध को एक सर्वशक्तिमान देवता माना गया है। महायान सम्प्रदाय में ज्ञान के स्थान पर करुणा को अधिक महत्त्व दिया गया है। महायान सम्प्रदाय के अनुयायी बोधिसत्व को आदर्श मानते हुए गृहस्थ जीवन को अधिक महत्त्व दिया है।
Class 12th ka History Ka Subjective
16. बुद्ध के चार आर्य सत्यों का उल्लेख करें। (Write four Arya truth of Buddhism.)
उत्तर ⇒ महात्मा बुद्ध ने चार आर्य सत्यों पर बल दिया। ये निम्नलिखित हैं
(i) संसार दुःखमय – महात्मा बुद्ध के अनुसार मानव जीवन दुःखों का घर है। बीमारी, बुढ़ापा, मृत्यु आदि मानव जीवन के भीषण दुःख हैं।
(ii) दुःख समुदाय — बुद्ध के अनुसार दुःखों का मूल कारण मानव जीवन ही है। दुःखों का मूल कारण तृष्णा है।
(iii) दु:ख निरोध – यदि मानव की तृष्णा समाप्त हो जाय तो दुःखों का निवारण हो सकता है।
(iv) दुःख निरोध का मार्ग- महात्मा बुद्ध के अनुसार इन सांसारिक दुःखों से छुटकारा पाने के लिए अष्टांगिक मार्ग का अनुसरण करना चाहिये ।
17. बौद्ध संगीतियाँ क्यों बुलाई गई? चतुर्थ बौद्ध संगीति का क्या महत्त्व है ?
उत्तर ⇒ महात्मा बुद्ध के मृत्यु के पश्चात् बौद्ध धर्म के अनुयायियों में मतभेद एवं आन्तरिक संघर्ष शुरू हो गया था। इस संघर्ष को समाप्त करने के लिए समय-समय पर बौद्ध समितियों अथवा सभाओं का आयोजन किया गया। इस प्रकार चार संगीतियाँ अथवा सभायें बुलाई गई थीं । इसमें चतुर्थ बौद्ध संगीति जिसका आयोजन कनिष्क के शासनकाल में कश्मीर के कुण्डलवन विहार में बुलाया गया था, सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण है। इस संगीति के सभापति महान बौद्ध विद्वान अश्वघोष थे। इस संगीति के अवसर पर बौद्ध धर्म दो सम्प्रदाय हीनयान और महायान में विभाजित हो गया। इस संगीति के अवसर पर त्रिपिटक पर भाष्य लिखे गये।
18. सांची के स्तूप पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखें। (Write short notes on the Stupa of Sanchi.)
उत्तर ⇒ सांची का स्तूप विश्व के प्रमुख सांस्कृतिक धरोहरों में से एक है। यह स्तूप मध्यप्रदेश के ऐतिहासिक नगरी विदिशा के समीप सांची की पहाड़ी पर स्थित है। यह स्तूप आज भी अच्छी हालत में है, जबकि अन्य करीब-करीब नष्ट हो गये हैं। इस महास्तूप का निर्माण सम्राट अशोक ने कराया था। महास्तूप में भगवान बुद्ध के, द्वितीय स्तूप में अशोककालीन धर्म प्रचारकों के एवं तृतीय स्तूप में बुद्ध के शिष्यों सारिपुत्र एवं महामोद्ग्ल्यायन के अवशेष रखे हुए हैं।
के सांची के स्तूप का वर्णन श्रीलंका की बौद्ध पुस्तकें दीपवंश एवं महावंश में मिलता है। सांची स्तूप पर खुदे हुये लेख में बड़े-बड़े अमीर एवं व्यापारियों द्वारा दिये गये दान का वर्णन मिलता है । इसी दान से सांची का स्तूप निर्मित किये गये थे।
19. ‘त्रिरत्न’ से आप क्या समझते हैं? (What do you mean by “Triratan”)
उत्तर ⇒ महावीर जैन के अनुसार संचित कर्मों से छुटकारा पाने के लिए तथा नए कर्मों को संचित होने से रोकने के लिए मनुष्य को निम्नलिखित तीन रत्नों का पालन करना चाहिए—
(i) सम्यक विश्वास — जैन धर्म के अनुसार मनुष्य को असत्य अंश का परित्याग करना तथा सत्य अंश को ग्रहण करना चाहिए। इसके अतिरिक्त उन्हें 24 तीर्थंकरों में दृढ़ विश्वास रखना चाहिए तथा बड़ी श्रद्धा भक्ति से उनकी पूजा करनी चाहिए ।
(ii) सम्यक ज्ञान — जैनियों का विश्वास है कि संपूर्ण विश्व भौतिक एवं आध्यात्मिक अंशों से मिलकर बना है। भौतिक अंश असत्य, अनित्य तथा अन्धकारमय है जबकि आध्यात्मिक अंश सत्य, नित्य तथा प्रकाशमय है।
(iii) सम्यक आचरण – सम्यक आचरण से अभिप्रायः यह है कि मनुष्य को इन्द्रियों का दास न बनकर सदाचार का जीवन व्यतीत करना चाहिए और इसके लिए उसे अहिंसा, सत्य तथा ब्रह्मचर्य का पालन करना चाहिए।
NCERT Solutions for Class 12 History
20. निर्वाण से आप क्या समझते हैं? (What do you know about Nirvana?)
उत्तर ⇒ बौद्ध धर्म में जीवन का परम लक्ष्य निर्वाण प्राप्ति माना है। जीवन-मरण चक्र से मुक्ति ही निर्वाण है। बौद्ध धर्म के निर्वाण का सिद्धांत वैदिक धर्म के निर्वाण के सिद्धांत से पूर्णतः भिन्न
है। वैदिक धर्मानुसार सत्कर्मों से व्यक्ति में निहित आत्मा परमात्मा में विलीन हो जाती है और पूर्वजन्म के चक्र से मुक्ति मिलती है। अर्थात् मृत्यु पर ही निर्वाण संभव है। जबकि बौद्ध धर्म के अनुसार निर्वाण इसी जन्म में प्राप्त किया जा सकता है जबकि महापरिनिर्वाण मृत्यु के बाद ही संभव है।
21. गांधार शैली पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
उत्तर ⇒ – कुषाण काल में गांधार क्षेत्र में मूर्ति कला की नयी शैली का विकास हुआ। इसलिए इसे गांधार कला के नाम से जाना जाता है। गांधार कला के अंतर्गत बुद्ध और बौधिसत्वों की मूर्तियों का व्यापक पैमाने पर निर्माण किया गया था। इन मूर्तियों के निर्माण में सलेटी पत्थर का प्रयोग किया गया है। इस कला में निर्मित बुद्ध की मूर्तियाँ मुद्रा की दृष्टि से भारतीय है किन्तु निर्माण शैली यूनानी है। इन मूर्तियों में बुद्ध यूनानी देवता अपोलो की भांति बनाया गया है। मुखों और वस्त्रों का निर्माण यूनानी शैली में किया गया है। गांधार शैली में बनी मूर्तियों में बौद्ध धर्म की भावना प्रदर्शित नहीं होती है। संक्षेप में गांधार कला की विशेषताओं में मूर्तियों का विषय बौद्ध धर्म से संबंधित है, लेकिन निर्माण शैली यूनानी है ।
22. गोपूरम से आप क्या समझते हैं? (What do you understand by Gopuram ?)
उत्तर ⇒ गोपूरम मंदिरों के प्रवेश द्वार को कहा जाता है। विजयनगर शासकों ने मंदिरों में गोपूरम का निर्माण कराया। ये अत्यधिक विशाल एवं ऊँचे होते थे। ये संभवतः सम्राट की ताकत की याद दिलाते थे जो ऊँची मीनार बनाने में सक्षम थे।
12th Exam History Subjective Question
S.N | भाग – B आधुनिक भारत |
UNIT – X | Class 12th History Objective Chapter 10 |
UNIT – XI | Class 12th History Objective Chapter 11 |
UNIT – XII | Class 12th History Objective Chapter 12 |
UNIT – XIII | Class 12th History Objective Chapter 13 |
UNIT – XIV | Class 12th History Objective Chapter 14 |
UNIT – XV | Class 12th History Objective Chapter 15 |
UNIT – XVI | 12th All Subject Online Test |
UNIT – XVII | 12th All Subjective PDF Download |
S.N | भाग – B मध्यकालीन भारत |
UNIT – V | Class 12th History Objective Chapter 5 |
UNIT – VI | Class 12th History Objective Chapter 6 |
UNIT – VII | Class 12th History Objective Chapter 7 |
UNIT – VIII | Class 12th History Objective Chapter 8 |
UNIT – IX | Class 12th History Objective Chapter 9 |
S.N | भाग – A पुरातत्व एवं प्राचीन भारत |
UNIT – I | Class 12th History Objective Chapter 1 |
UNIT – II | Class 12th History Objective Chapter 2 |
UNIT – III | Class 12th History Objective Chapter 3 |
UNIT – IV | Class 12th History Objective Chapter 4 |