12th Exam Physics Subjective Question 2024 Hindi :- दोस्तों यदि आप Class 12th Physics Question in HIndi की तैयारी कर रहे हैं तो यहां पर आपको 12th Physics Subjective Question दिया गया है जो आपके 12th ka physics question answer के लिए काफी महत्वपूर्ण है | class 12 physics mcq questions and answers
12th Exam Physics Subjective Question 2024 Hindi
1. दृष्टिदोष एवं उसका निवारण के बारे में समझायें।
उत्तर ⇒ मानव नेत्र में चार प्रकार के दृष्टि दोष पाया जाता है।
(1) निकट दृष्टिदोष (Short sightedness)
(2) दीर्घ दृष्टिदोष (Long sightedness)
(3) अविदुकता (Astigmatism)
(4) जरा दृष्टिदोष (Press biopia)
निकट दृष्टिदोष (Short sightedness)- इस दोष से युक्त आखें निकट स्थित वस्तु को स्पष्ट रूप से देख पाती है। परंतु दूर कि वस्तुओं को स्पष्ट रूप से नहीं देख पाती है। यह दोष निम्नलिखित दो कारणों से होता है :
(1) नेत्र लेंस और रेटिना के बीच की दूरी बढ़ जाना ।
(2) नेत्र लेंस का फोकस दूरी सामान्य से घट जाना। इन दोनों कारणों से अनंत से चलने वाली प्रकाश किरणें रेटिना पर मिलने के बजाए रेटिना के पहले ही फोकस हो जाती है।
दोष युक्त आँख यहाँ ‘P’ बिन्दु को निकट दृष्टि का दूर बिन्दु (for point) कहा जाता है।
उपचार – इस दोष को दूर करने के अवतल लेंस (Concave lense) का प्रयोग किया जाता है।
आवश्यक लेंस की क्षमता लेंस सूत्र से, :
1/v – 1/u = 1/F
⇒ 1/-x – 1/∞ = 1/F
⇒ 1/-x = 1/F
∴ F = -x (Negative) ……… (1)
P = 1/F = 1/-x ……… (2)
समी॰ (2) की मदद से अवतल लेंस का क्षमता ज्ञात किया जा सकता है।
दीर्घ दृष्टिदोष (Long Sightedness)- इस दोष से युक्त आँखें दूर कि वस्तु स्पष्ट देख पाता है परंतु निकट की वस्तु स्पष्ट नहीं देख पाता ।
यह दोष निम्नलिखित दो कारणों से होता है:
(i) नेत्र लेंस और रेटिना के बीच की दूरी का घट जाना ।
(ii) नेत्र लेंस का फोकस दूरी सामान्य से बढ़ जाना।
इन दोनों कारणों से स्पष्ट दृष्टि की न्यूनतम दूरी से चलने वाली प्रकाश किरणें रेटिना पर मिलने के बजाय रेटिना के पीछे मिलती है। यहाँ बिन्दु को दीर्घ दृष्टिदोष का निकट बिन्दु (Near point) कहा जाता है।
उपचार – इस दोष को दूर करने के लिए उत्तल लेंस का प्रयोग किया जाता है।
लेंस सूत्र से,
1/v – 1/u = 1/F
⇒ 1/-x – 1/-D = 1/F ⇒ 1/-x + 1/D = 1/F
∴ 1/F = 1/D – 1/-x …………. (1)
अतः उत्तल लेंस की क्षमता
P = 1/F = 1/D – 1/-x ……..(2)
समी (2) की मदद से दीर्ष दृष्टिदोष को दूर करने के लिए आवश्यक
उत्तल लेंस की क्षमता ज्ञात किया जा सकता है।
जरा दृष्टिदोष (Press Biopia)— इस दोष से युक्त आँखें निकट के वस्तु के साथ दूर के वस्तु को भी स्पष्ट रूप से नहीं देख पाती। यह दोष उम्र बढ़ने के साथ साथ वृद्धा अवस्था में नेत्र लेंस की समंजन क्षमता कमजोर हो जाने के कारण उत्पन्न होता है। इससे आँख के निकट बिन्दु के साथ साथ दूर बिन्दु भी प्रभावित होता है। उपचार- इस दोष को दूर करने के लिए बायोफोकल (Bifocal lens) का व्यवहार किया जाता है।
अविंदुकता (Astigmatism) — इस दोष से युक्त आँख एक ही दूरी पर स्थित परस्पर लंबवत् रेखाओं को एक साथ स्पष्ट नहीं देख सकती है अर्थात् यदि क्षैतिज रेखाओं स्पष्ट दिखाई देती है तो ऊर्ध्वाधर रेखायें अस्पष्ट हो जाती है। यह दोष कार्निया की क्षैतिज एवं ऊर्ध्वाधर वक्रता के असमान हो जाने के कारण उत्पन्न होती है।’ उपचार – इस दोष को दूर करने के लिए बेलनाकार लेंस का प्रयोग किया जाता है।
2. वर्ण विक्षेपण रहित विचलन क्या है ? दो पतले प्रिज्मों द्वारा इसे प्राप्त करने की शर्त प्रदान करें एवं उत्पन्न कुल विचलन का व्यंजन प्राप्त करें ।
उत्तर ⇒ वर्ण विक्षेपण रहित विचलन- जब दो प्रिज्म इस प्रकार रखे जाते है कि उनसे होकर बाहर निकलने वाला श्वेत प्रकाश भिन्न भिन्न रंगों में बिना बँटे हुए अर्थात् बिना वर्ण विक्षेपित हुए विचलित हो जाता है, तब इस क्रिया को वर्ण विक्षेपण रहित विचलन कहा जाता है और प्रिज्मों के इस संयोग को अवर्णक संयोग कहा जाता है।
आवश्यक शर्त :
माना कि पहले प्रिज्म के लिए प्रिज्म का कोण, अपवर्तनांक एवं वर्ण विक्षेपण क्षमता क्रमशः A1 μ1 एवं ω1 जबकि ये सभी राशियाँ दूसरे प्रिज्म के लिए क्रमश: A2 μ2 एवं ω2 है। हमें वर्ण विक्षेण रहित विचलन के लिए आवश्यक शर्त एवं उत्पन्न कुल विचलन का व्यंजक प्राप्त करना है।
वर्ण विक्षेपण रहित होने के लिए,
Q1 + Q2 = 0
⇒ A1ω1 (μ1 – 1) + A2ω2 (μ2 – 1) = 0
⇒ A1ω1 (μ1 – 1) = –A2ω2 (μ2 – 1) = 0
A1/A2 = –ω2 (μ2 – 1)/ω1 (μ1 – 1)
समी. (i) वर्ण विक्षेषण रहित विचलन के लिए आवश्यक शर्त है। ऋणात्मक चिह्न स्पष्ट करता है कि प्रिज्मों के संयोजन में उनके आधार एक-दूसरे के विपरीत होंगे।
प्रिज्यों के संयोजन से उत्पन्न कुल विचलन :
अब, दोनों प्रिज्मों के संयोजन से उत्पन्न कुल विचलन
δ = δ1 +δ1 =A, (H, -1)+ A₂ (2-1)
= A1(μ1 – 1) + A2 (μ2 – 1)
δ = A1(μ1 – 1) [ 1 + A2/A1·A2 (μ2 – 1)/A1(μ1 – 1) ……..(2)
समी. (1) एवं (2) सें,
δ = A1 (μ1 – 1) [ 1 + (–) ω1/ω2·(μ1 – 1)/(μ2 – 1) × (μ1 – 1)/(μ2 – 1) ]
δ = A1 (μ1 – 1) [ 1 – ω1/ω2 ] ……………(3)
समीकरण (3) वर्ण विक्षेपण रहित विचलन के लिए उत्पन्न कुल विचलन का व्यंजक है।
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3. बीयो सावर्त नियम लिखें। सीधे तार से बहती हुई धारा के कारण किसी बिंदु पर चुम्बकीय क्षेत्र का व्यंजक प्राप्त करें । अथवा, बायो- सावर्त नियम लिखें और इसका उपयोग करके एक धाराप्रवाही वृत्ताकार लूप के अक्ष के किसी बिन्दु पर चुम्बकीय क्षेत्र का व्यंजक प्राप्त करें।
उत्तर ⇒ बीयो सावर्त का नियम — इस नियम के अनुसार किसी धारावाही चालक के एक अल्पांश (ll) द्वारा किसी बिंदु ‘P’ पर उत्पन्न चुम्बकीय क्षेत्र
dB α l
α dl
α sin θ
α 1/r2
∴ dB α Idl sinθ/r2
db = μ0/4π·Idl sinθ/r2 … (i)
समी. (i) को ही बीयो सावर्त का नियम कहा जाता है।
सीबी तार से बहती हुई धारा के कारण किसी बिंदु पर चुम्बकीय क्षेत्र :
माना कि AB एक सीधा धारावाही चालक है जिससे I मान की विद्युत धारा प्रवाहित की जाती है। इसके मध्य बिंदु O से ‘a‘ दूरी पर एक बिंदु P स्थित है जहाँ चुम्बकीय क्षेत्र का व्यंजक प्राप्त करना है। इसके लिए O बिंदु से x दूरी पर चालक का एक छोटा सा भाग MN लिया गया जिसकी लम्बाई dx है। अतः dx लम्बाई चाले चालक के कारण P बिंदु पर चुम्बकीय क्षेत्र
dB = μ0/4π·Idx sin(90+Φ)/r2
dB = μ0/4π·Idx sinΦ/r2 …….. (1)
चित्र से, ΔMOP में,
cos Φ = a/r ⇒ r = cos Φ
r = a sec Φ ………. (2)
एवं tan Φ = x/a ⇒ x = a tanΦ ……. (3)
समी. (3) को आंशिक अवकलन करने पर,
dx = a sec2 Φ.dΦ …… (4)
समी. (1), (2) एवं (4) से,
dB = μ0/4π·I a sec2 Φ·dΦ·cosΦ)/a2 sec2 Φ
dB = μ0/4π·I/a·cosΦ dΦ ……….(5)
अतः पूरे धारावाही चालक के कारण P बिंदु पर चुम्बकीय क्षेत्र
यदि चालक की लम्बाई अनंत हो, तो
Φ1 → π/2 , Φ2 → π/2
समी. (6).
dB = μ0/4π·I/a [ sin π / 2 + sin π / 2 ] …..(7)
समी. (7) अनंत लम्बाई वाले धारावाही चालक के कारण किसी बिंदु पर चुम्बकीय क्षेत्र का व्यंजक है।
4. बायो सावर्त नियम के मदद से धारावाही वृताकार लूप के अक्ष के किसी बिंदु पर एवं उसके केन्द्र पर चुम्बकीय क्षेत्र का व्यंजक प्राप्त करें।
उत्तर ⇒ माना कि ‘a’ त्रिज्या के किसी धारावाही लूप से I प्रबलता की धारा MN dB प्रवाहित हो रही है। इस धारावाही लूप के केन्द्र ‘O‘ से दूरी पर एक बिंदु P” है, जहाँ चुम्बकीय प्रेरण का व्यंजक प्राप्त करना है। इसके लिए धारावाही लूप का एक छोटा सा भाग MN लिया गया जिसकी लम्बाई ‘dl‘ है।
अतः बीयो सावर्त नियम से अल्पांशील धारावाही चालक के कारण P बिंदु पर चुम्बकीय प्रेरण
dB = μ0/4π·Idl sin 90º / ( a2 + r2 )
dB = μ0/4π·Idl / ( a2 + r2 ) ………….(1)
चित्र से स्पष्ट है कि dB cos 6 एवं dB cos ó का परिमाण बराबर एवं दिशा विपरित है अतः ये एक दूसरे को उदासीन कर देंगे । .
∴ वृतीय धारावाही लूप के कारण Pबिंदु पर परिणामी चुम्बकीय प्रेरण
B = ΣdB sin Φ
= Σμ0/4π·Idl / ( a2 + r2 ) × a / √ a2 + r2
= μ0/4π·Ia / ( a2 + r2 )3/2⋅Σdl
B = μ0/4π·Ia × 2πa/ ( a2 + r2 )3/2
B = μ0/2·Ia2 / ( a2 + r2 )3/2 …….(ii)
यदि लूप या कुंडली में फेरों की संख्या N हो, तो
B = μ0/2· NIa2 / ( a2 + r2 )3/2 ……………(iii)
कुंडली के केन्द्र पर r = 0
B = μ0/2· NIa2 / a3
B = μ0/2· NI/a ……………(iv)
अतः समी. (iii) तथा (iv) आवश्यक व्यंजक है।
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5. किर्कहॉफ के नियम को लिखें और समझावें। इस नियम का उपयोग कर Wheat Stone Bridge के संतुलन की आवश्यक शर्त प्राप्त करें।
उत्तर ⇒ किर्कहॉफ का नियम विद्युत परिपथ में धारा एवं विभवांतर के वितरण को ज्ञात करने के लिए किर्कहॉफ ने दो नियम दिए जो इस प्रकार है
पहला नियम —
इस नियम के अनुसार, किसी बिंदु पर मिलने वाली विद्युत धाराओं का बीजीय योग शून्य होता है।
बिंदु की ओर जाने वाली धारा धनात्मक एवं बिंदु से दूर जाने वाली धारा ऋणात्मक होता है।
चित्र से,
I1 + I2 – I3 –I4 = 0
(I1 + I2) = (I3 + I4 ) ……..(i)
दूसरा नियम — इस नियम के अनुसार, “किसी बंद विद्युतीय परिपथ के प्रत्येक भाग में प्रवाहित होने वाली विद्युतधारा तथा उसके प्रतिरोध के गुणनफल का बीजीय योग परिपथ में लगे कुल विद्युत वाहक बल के बराबर होता है।”
चित्र से, बंद परिपथ में विद्युत धारा एवं प्रतिरोध के गुणनफल का बीजीय योग = I1R1 + I2R2 – I3R3
एवं परिपथ में लगा वि. वा. बल = ξ
किर्कहॉफ के अनुसार,
ξ = I1R1 + I2R2 – I3R3 …….(ii)
समी. (ii) किर्कहॉफ के दूसरा नियम का गणितीय रूप है।
किर्कहाफ का दूसरा नियम ऊर्जा संरक्षण सिद्धांत पर आधारित है।
Wheat Stone Bridge – यदि चार प्रतिरोधों को एक चतुर्भुज की चारों भुजाओं के रूप में जोड़ा जाए तथा दो परस्पर सम्मुख बिंदुओं के एक जोड़े के बीच एक गैलवेनोमीटर और शेष दो सम्मुख बिंदुओं के बीच एक सेल लगा दिया जाए, तो इस प्रबंध को Wheat Stone Bridge कहा जाता है।
चित्र में ह्रीट स्टोन ब्रिज का परिपथ दिखाया गया है। इसमें चार प्रतिरोध P, Q, R तथा S एक चतुर्भुज की चार भुजाओं के रूप में जुड़े हैं। संतुलन का शर्त हीट स्टोन ब्रिज को संतुलन की अवस्था में कहा जाता है जब गैल्वेनोमीटर से होकर कोई धारा प्रवाहित न हो।
अब अर्थात् I2 = 0 …….. (1)
चित्र से बंद परिपथ ΔBDA में किर्कहॉफ के दूसरे नियम से,
I1P + I2G – (I – I1) Q = 0
⇒ I1P + I2G – IQ + I1Q = 0
⇒ I1(P + Q ) + I2G = IQ
∴ I2 = 0
∴ I1(P + Q) = IQ ….(2)
इसी प्रकार बंद परिपथ BCDB में,
किर्कहॉफ के दूसरे नियम से,
⇒ (I1 – I2) R – ( I –I1 + I2) S – I2G = 0
⇒ I1R – I2R – IS + I1S + I2S – I2G = 0
∴ I1 (R + S) – I2 (R + S + G) =
∴ I1 (R + S) = IS ……..(3)
समी (2) में (3) से भाग देने पर,
I1 (P + Q)/I1 (R + S) = IQ
⇒ PS +QS = PS + QS
⇒ PS + QR ∴ P/Q = R/S ……………..(4)
समी (4) आवश्यक शर्त है।
6. साइक्लोट्रॉन के बनावट, सिद्धांत और कार्य विधि का सचित्र वर्णन करें।
उत्तर ⇒ साइक्लोट्रॉन- साइक्लोट्रॉन एक ऐसा यंत्र है, जिसके द्वारा प्रोट्रॉन ड्यूट्रॉन या आयनों को उच्च गतिज ऊर्जा प्रदान करने के लिए त्वरित किया जाता है।
बनावट – साइक्लोट्रॉन की बनावट चित्र में प्रदर्शित है। इसमें ताँबे की प्लेट से बने अर्धवृत्ताकार दो परत होते हैं। ये परत अंग्रेजी वर्णमाला के अक्षर D जैसे दिखाई देते हैं। अतः इन्हें ‘डीज’ कहा जाता है। दोनों ‘डीज’ के बीच की दरार अर्थात् खाली स्थान में प्रबल विद्युतीय क्षेत्र उत्पन्न होता है। जो परिमाण एवं दिशा में दोलित्र के प्रत्यावर्तन के अनुसार बदलता रहता है। डीज को एक समान चुम्बकीय क्षेत्र में रखा जाता हैं। इस क्षेत्र की प्रबलता बहुत अधिक होती है तथा विद्युत एवं चुम्बकीय क्षेत्र एक-दूसरे के लंबवत् होते है। संपूर्ण व्यवस्था एक निर्वार्तित कोष्ठ में रखी जाती है।
क्रियाविधि— डीज के केन्द्र पर स्थित आयन स्रोत S से उत्सर्जित आवेशित कण डीज के अंदर अर्थवृत्तीय गति करते हैं। उन पर विद्युतीय क्षेत्र का प्रभाव नहीं पड़ता है। लेकिन चुंबकीय क्षेत्र द्वारा वे वृत्तीय पथ पर गतिशील होते हैं। जब आवेशित कण एक से दूसरे डीज में जाता है, तो उसका वेग बढ़ता है जिसके फलस्वरूप उसकी त्रिज्या भी बढ़ जाती है। जब वृत्तीय पथ की त्रिज्या लगभग R होती है, तब आयन की महत्तम चाल प्राप्त होती है और उस महत्तम चाल से विक्षेयक प्लेट द्वारा स्लिट से बाहर निकाल लिया जाता है।
साइक्लोट्रॉन आवृत्ति (Cyclotron Frequency)- चुंबकीय क्षेत्र B के अधीन वृत्तीय गति के लिए आवश्यक अभिकेंद्र बल, चुंबकीय बल (q. V x B) से प्राप्त होता है।
अतः F = mv2/r = qVB
∴ V तथा B परस्पर लंबवत् है ।
या, V = qBr/m ………. (1)
या, 2πr/T = qBr/m
T = 2πm/qB आवृत्ति, f = 1/T = qB/2πm ……………(2)
समी॰ (2) द्वारा व्यक्त आवृत्ति को साइक्लोट्रॉन आवृत्ति कहा जाता है।
साइक्लोट्रॉन के उपयोग—इसका उपयोग इसमें त्वरित ऊर्जायुक्त आयनों द्वारा निम्नलिखित कार्यों में होता है—
(i) नाभिक पर बमबारी करके नाभिकीय अभिक्रियाओं के अध्ययन में ।
(ii) ठोस पदार्थों में आयनों को रोपित करके उनके गुणों में सुधार करने तथा नए पदार्थों को संश्लेषित करने में ।
(iii) रोग उपचार के लिए रेडियोएक्टिव पदार्थों को उत्पन्न करने में ।
12th Exam Physics Subjective
Class 12th – Physics Objective | ||
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