Inter Exam Physics Subjective

Inter Exam Physics Subjective Question 2024 | 12th Class Physics Objective Question in Hindi pdf Download

Class 12th Physics

Inter Exam Physics Subjective Question 2024 :-  दोस्तों यदि आप Bihar Board Class 12th Physics Subjective 2024 की तैयारी कर रहे हैं तो यहां पर आपको 12th Physics Subjective Question दिया गया है जो आपके 12th Class Physics Objective Question in Hindi pdf Download के लिए काफी महत्वपूर्ण है |


Inter Exam 2024 Physics Subjective Question

1. एक समान चुम्बकीय क्षेत्र में धारावाही लूप या छल्ला पर कार्यकारी बल आघूर्ण का व्यंजक प्राप्त करें।

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उत्तर ⇒

माना कि एक आयताकार चालक abcd से धारा i प्रवाहित हो रही है जिसे एक समरूप चुम्बकीय क्षेत्र B में रखा गया है। धारा की दिशा घड़ी के चाल के विपरीत दिखाई गई है जबकि चुम्बकीय क्षेत्र की दिशा कागज के लम्बवत् ऊपर की ओर है।चित्र से स्पष्ट है कि छल्ला (loop) ab तथा cd पर लगने वाला बल क्रमशः F1 तथा F2 एक दूसरे के विपरीत लगेगा। स्पष्टतः ये बल  ab तथा cd चालक के मध्य बिन्दु पर लगेगे। इसी प्रकार be तथा da तार पर लगने वाला बल है और एक दूसरे के विपरीत तथा इनके मध्य बिन्दु पर लगेगा। चित्र से स्पष्ट है कि छल्ला (loop) पर लगने वाला परिणामी बल शून्य के बराबर होगा।

यानि       | F1 | = | F3 | = ibB                             ………(1)

आयताकार छल्ले के be तथा da भाग पर लगने वाला बल इसी प्रकार | F2 | = | F4 | = ibB.,l आयताकार छल्ले की लम्बाई है। चित्र  से यह भी स्पष्ट है कि F1 तथा F3 एक ही रेखा eƒ  एवं F2 तथा F4 gh रेखा पर कार्यशील है। अतः परिणामी बल आपूर्ण भी शून्य होगा। क्योंकि ये किसी प्रकार आघूर्ण उत्पन्न नहीं करेंगे।

माना कि इस आयताकार छल्ले (loop) को gh रेखा के परितः θ कोण पर घुमाया जाता है इस स्थिति में F1 तथा F3 बल आघूर्ण उत्पन्न करेगा। इस बल आघूर्ण का मान

τ = 2.1/2 F3 sin θ = l ib B sin θ

τ = ib B sin θ            τ = iA B sin θ

A = lb = (loop) लूप का क्षेत्रफल

τ = A1B sin θ यहाँ M = i A  = चुम्बकीय आघूर्ण

τ = A x B                    ……..(2)

समी (2) आवश्यक व्यंजक है।


2. प्रकाश विद्युत प्रभाव क्या है ? इसके नियमों को लिखें। आइन्स्टीन द्वारा इसकी व्याख्या कैसे की गई ?

उत्तर ⇒ उत्तर ⇒ कुछ पदार्थ ऐसे पाये जाते हैं जिनपर जब उच्च आवृत्ति की प्रकाश अर्थात् विद्युत चुम्बकीय तरंग को आपतित किया जाता है तब उससे इलेक्ट्रॉन उत्सर्जित होने लगते हैं। इस घटना को प्रकाश विद्युत प्रभाव कहा जाता है।

प्रकाश विद्युत प्रभाव के नियम- प्रकाश विद्युत प्रभाव के

निम्नलिखित नियम हैं, जो इस प्रकार है:

1. किसी सतह से फोटो इलेक्ट्रॉन का निकलना आपतित प्रकाश के आवृत्ति पर निर्भर करता है न कि उसकी तीव्रता पर

2. उत्सर्जित फोटो इलेक्ट्रॉनों की महत्तम गतिज ऊर्जा आपतित प्रकाश की आवृत्ति पर निर्भर करता है।

3. फोटो इलेक्ट्रॉन की महत्तम गतिज ऊर्जा आपतित प्रकाश की तीव्रता पर निर्भर नहीं करता है।

4. प्रति सेकेण्ड उत्सर्जित होने वाले फोटो इलेक्ट्रॉनों की संख्या प्रकाश के तीव्रता पर निर्भर करता है।

5. धातु पृष्ठ पर प्रकाश के आपतित होने और फोटो इलेक्ट्रॉनों के उत्सर्जन होने के बीच लगा समय अत्यंत अल्प 10-8 sec होता है।

आइन्सटीन का प्रकाश विद्युत समीकरण :

प्रकाश के विद्युत प्रभाव की व्याख्या आइन्स्टीन के क्वांटम सिद्धांत के आधार पर किया जाता है। इसके अनुसार, प्रकाश फोटॉन से बना है जिसकी ऊर्जा

E = hυ                  ……..(1)

जहाँ h = प्लांक का नियतांक , υ = प्रकाश की आवृत्ति 

जब फोटॉन और इलेक्ट्रॉन की टक्कर होती है तो इससे उत्पन्न ऊर्जा को l

पाकर इलेक्ट्रॉन की ऊर्जा बढ़ जाता है और जब यह ऊर्जा कार्य फलन (a) से अधिक हो जाती है तो इलेक्ट्रॉन सतह से बाहर आने लगते हैं। यदि फोटो इलेक्ट्रॉन का महत्तम वेग महत्तम तथा कार्य फलन Φo हो, तो हम लिख सकते हैं कि

1/2 mV2          महत्तम = (hυ – Φo)         ………..(2)

यदि देहली आवृत्ति υo हो, तो हम लिख सकते हैं कि

Φ= hυo                   ……….(3)

समी. (2) एवं (3) से,

1/2 m V महत्तम = hυ – hυo  = h (υ -2υ0)              ………(4)

समी. (2) एवं (4) को ही आन्स्टीन का प्रकाश विद्युत समीकरण कहा जाता है।


Class 12th Physics Question Answer

3. तने हुए तार वाले विभवमापी की बनावट एवं क्रिया विधि को समझायें। इसके द्वारा दो सेलों के विद्युत वाहक बलों की तुलना आप कैसे करेंगे एवं इससे किसी सेल के आंतरिक प्रतिरोध को कैसे मापा जाता है ?

उत्तर ⇒ विभवमापी विभवमापी एक ऐसा विद्युतीय उपकरण है जिसके द्वारा किसी सेल के विद्युत वाहक बल की माप की जाती है एवं इसके द्वारा किन्हीं दो सेलों के विद्युत वाहक बलों के बीच तुलना किया जाता है।

बनावट और सिद्धांत- विभवमापी का सिद्धांत में प्रदर्शित परिपथ चित्र द्वारा स्पष्ट होता है। इसमें एकसमान अनुप्रस्थ काट के धातु का एक लंबा प्रतिरोध तार AB रहता है जिसका एक सिरा ‘A‘ विद्युतवाहक बल ξ वाले संचायक सेल के धन ध्रुव से जोड़ा जाता है, जबकि बैटरी के ऋण ध्रुव को धारा नियंत्रक rh से और एक कुंजी द्वारा तार के दूसरे सिरे B से जोड़ दिया जाता है। धारा नियंत्रक द्वारा तार AB में धारा को बढ़ाया या घटाया जा सकता है। दो अन्य सेल ξ1 तथा ξ2 के धन ध्रुव को तार के A बिंदु से जोड़ा जाता है तथा ऋण ध्रुव को गैल्वेनोमीटर के द्वारा जॉकी से संबंधित किया जाता है। जॉकी को तार पर खिसकाकर AB के बीच किसी बिंदु पर स्पर्श कराया जा सकता है।

अब सेल ξको Two ways key द्वारा उचित कुंजी से परिपथ में जोड़ा जाता है और जॉकी (J) का वह स्थान निर्धारित किया जाता है, जिसके लिए गैलवेनोमीटर में विक्षेप शून्य हो । यदि इस स्थिति में बिंदु A तथा जॉकी J के बीच को दूरी I1, हो, तो किर्कहॉफ के दूसरे नियम से,

ξ1 = Il1λ                             …….(1)

जहाँCतार के प्रति एकांक लम्बाई का प्रतिरोध । .

 इसी प्रकार सेल ξ2 को उचित कुंजी द्वारा परिपथ में जोड़ा जाता है और जॉकी) का वह स्थान निर्धारित किया जाता है जिसके लिए गैल्वेनोमीटर में विक्षेप शून्य हो।

यदि इस स्थिति में तार की लम्बाई I2, हो, तो किर्कहॉफ के दूसरे नियम से,

ξ= Il2λ                              …….(2)

समी. (1) में (2) से भाग देने पर

ξ12 = Il1λ/Il2λ      ⇒  ξ1= l1/l                              .……(3)

समी. (3) की मदद से विभवमापी द्वारा दो सेलों के वि. वाहक बलों के बीच तुलना किया जा सकता है। यही विभवमापी का सिद्धांत भी है।

किसी मेल के आंतरिक प्रतिरोध का निर्धारण :

विभवमापी द्वारा किसी सेल के आंतरिक प्रतिरोध का मान ज्ञात करने के लिए विद्युत परिपथ की व्यवस्था चित्र में दिखाई गई है। इसमें A और B विभवमापी के तार के दोनों सिरे हैं जिनके बीच एक संचायक सेल ξ को कुंजी एवं धारा नियंत्रक के साथ श्रेणी क्रम में जोड़ दिया जाता है।

ξ0 एक अन्य सेल है जिसका आंतरिक प्रतिरोध ज्ञात करना है।

जबकि R0 एक ज्ञात प्रतिरोध है

अब कुंजी K1, तथा K2 को परिपथ में जोड़कर जॉकी (J) का वह स्थान निर्धारित किया जाता है जिसके लिए गैलवेनोमीटर में विशेष

शून्य हो।

यदि इस स्थिति में तार की लम्बाई l1 हो, तो किर्कहॉफ के दूसरे नियम से,

ξ0 = I l1λ                             …….(1)

जहाँ λ = तार के एकांक लम्बाई का प्रतिरोध

       I = परिपथ से प्रवाहित धारा ।

जब कुंजी K3 को परिपथ में जोड़ा जाता है तो प्रतिरोध ‘R0‘ से ” विद्युत धारा प्रवाहित होने लगता है।

अतः हम लिख सकते हैं कि

ξ0 = i (R0 + r )

⇒                 i = ξ0/(R0 + r )                                             ……..(2)

यदि इस स्थिति में तार की लम्बाई I2 हो, जिसके लिए गैल्वेनोमीटर में विक्षेप शून्य हो, तो हम लिख सकते हैं कि

सेल का टर्मिनल विभवांतर = I l1λ         

⇒                ξ – ir = I l1λ

⇒                ξ – ξ0.r/(R0 + r )  = I l2λ

⇒                ξ0R0 + ξ0r – ξ0r/(R0 + r )  = I l2λ

⇒                ξ0R0/(R0 + r )  = I l2λ

समी (1) में (3) से भाग देने पर.

⇒                R0 + r /R0 = l1/l

⇒                (1+r/R0) = l1/l2      ⇒      r/R0 = (l1/l–1)

∴                r = R0(l1/l–1)                                   ……………..(4)

समी (4) की मदद से विभवमापी द्वारा सेल का आंतरिक प्रतिरोध ज्ञात किया जा सकता है।


4. लॉजिक गेट या तार्किक परिषद से क्या समझते हैं ? OR gate, AND gate तथा NOT gate के बूलियन व्यंजक, टूथ टेबल एवं संकेत दें।

उत्तर ⇒ लॉजिक गेट-Input तथा Output के बीच तार्किक सम्बंध बताने वाले परिपथ को लॉजिक गेट कहा जाता है। यह जॉर्ज बूली द्वारा विकसित किए गए बूलियन Algebra पर आधारित है। यह तीन प्रकार का होता है

(i) OR gate, (ii) AND gate, (iii) NOT gate

(i) OR gate- यदि किसी एक Input की उपस्थिति पर Output प्राप्त हो, तो इसे OR operation कहा जाता है और इसके अनुसार कार्य करने वाला परिपथ को OR gate कहा जाता है।

OR gate के संकेत :

OR gate का जूलियन व्यंजक :

Y = A + B             …..(1)

जहाँ A तथा B = Input, Y = Output

इसे “Y equals A OR B” द्वारा पढ़ा जाता है।

समी. (1) OR gate का बूलियन व्यंजक है।

ट्य टेबल- Input तथा Output के बीच तार्किक संबंध बताने वाले सारणी को टूथ टेबल कहा जाता है।

(ii) AND gate- यदि Output के उपस्थिति के लिए प्रत्येक Input की आवश्यकता हो, तो इसे AND operation कहा जाता है तथा इसके अनुसार कार्य करने वाला परिपथ AND gate कहलाता है।

AND gate का संकेत:

AND gate] का बुलियन व्यंजक :

Y = A.B            …..(ii)

जहाँ A एवं B= Input

और Y = Output

इसे “Y equals A AND B” द्वारा पढ़ा जाता है।

समी. (ii) AND gate का मूलियन व्यंजक है।

टूथ टेबुल :

(iii) NOT gate : जब Input के अनुपस्थिति पर Output उपस्थिति हो तो इसे NOT Operation कहा जाता है तथा इसके अनुसार कार्य करने वाला परिपथ NOT gate कहलाता है।

NOT gate का संकेत :

NOT gate का बूलियन व्यंजक :

Y = A                   … (iii)

जहाँ A = Input; Y = Output.

इसे “Y is NOT A” द्वारा पढ़ा जाता है।

समी. (iii) NOT gate का बूलियन व्यंजक है।

टूब टेबल :


5. P-N संधि क्या है ? इसके बनावट एवं क्रिया विधि को समझावें एवं इसका उपयोग दिष्टकारी के रूप में कैसे किया जाता है ?

उत्तर ⇒ P-N संधि— जब p-type अर्धचालक तथा n-type अर्धचालक को मिलाया जाता है तो इससे बनने वाले युक्ति को P-N संधि कहा जाता है।

P-N संधि का का संकेत——

जैसे ही संधि बनता है N-type वाले भाग से इलेक्ट्रॉन P-type वाले भाग की ओर तथा P-type वाले भाग से पूरा, n-type की ओर जाने लगते हैं जिसके फलस्वरूप n-type वाला भाग धनावेशित तथा p-type वाला भाग ऋणावेशित हो जाता है जिसके कारण संधि स्थल पर एक विभवांतर उत्पन्न हो जाता है जिसे विभव प्राचीर कहा जाता है जो संधि स्थल से इलेक्ट्रॉनों को गुजरने नहीं देता है।

P-N संधि का वैद्युत अभिलक्षण :

(a) अग्र अभिनत संयोजन (Forward Baised Connection) :

जब P-type वाले भाग को बैटरी के positive से तथा N-type वाले भाग को बैटरी के Negative से जोड़ा जाता है तो आरोपित विभवांतर की दिशा विभव प्राचीर के

विपरीत होती है जिसके कारण विभव प्राचीर यंग हो जाता है और संधि स्थल से इलेक्ट्रॉन गुजरने लगते हैं एवं धारा प्रवाहित होने लगती है। इस प्रकार परिपथ व्यवस्था को अग्र अभिनत संयोजन कहा जाता है ।

 

(b) उत्क्रम अभिनत संयोजन—  जब P-type वाले अर्ध-चालक को बैटरी के Negative से तथा n-type वाले अर्ध चालक को बैटरी के positive से जोड़ा जाता है तो बाहरी विभवांतर विभव प्राचीर की दिशा में होता है जिसके कारण P विभव प्राचीर बढ़ जाता है और संधि स्थल से इलेक्ट्रॉन या धारा प्रवाहित नहीं होता है। इस प्रकार के परिपथ व्यवस्था को उत्क्रम अभिनत संयोजन कहा जाता है। इस प्रकार हम देखते हैं कि P-N संधि डायोड बल्ब की तरह धारा को एक ही दिशा में गुजरने देता है। इसी गुण के कारण इसका उपयोग प्रत्यावर्ती धारा को दिष्ट धारा में बदलने में किया जाता है।

P-N संधि अर्थात् डायोड का दिष्टकारी के रूप में उपयोग : प्रत्यावर्ती धारा को दिष्ट धारा में बदलना दिष्टीकरण कहा जाता है। अपने दिष्ट गुण के कारण P-N संधि का उपयोग दिष्टकारी के रूप में किया जाता है।

इसके लिए परिपथ व्यवस्था को ऊपर चित्र में दिखाया गया है। जब Input Signal AC होता है इसके अर्धचक्र के लिए P-N संधि को अग्र अभिनत संयोजन तथा दूसरे अर्धचक्र के लिए यह उत्क्रम अभिनत संयोजन में जुड़ जाता है। जिसके फलस्वरूप अर्धचक्र के लिए धारा परिपथ से प्रवाहित होता है P तथा प्रतिरोध R के परितः प्राप्त होने वाला धारा दिष्ट होता है।

Physics Subjective Question Bihar Board


6. जेनर डायोड क्या है ? वोल्टता नियंत्रक के रूप में इसके उपयोग की व्याख्या करें ।

उत्तर ⇒ जेनर डायोड जेनर— डायोड विशेष रूप से निर्मित ऐसे PN संधि डायोड जो बिना खराब हुए उत्क्रम भंजक वोल्टेज पर निरंतर कार्य कर सके। नीचे चित्र में जेनर डायोड के संकेत को दिखाया गया है: जब P क्षेत्र में ग्राही तथा क्षेत्र में दाता अशुद्धियों का अधिक मात्रा में अपमिश्रण किया जाता है, तो अशुद्धि के उच्च घनत्व के कारण अवक्षय परत की चौड़ाई कम हो जाती है तथा संधि में विद्युत क्षेत्र अधिक हो जाता है। चूंकि संधि की चौड़ाई बहुत कम होती है। अतः कम उत्क्रम वोल्टता से ही संधि पर अत्यंत प्रबल विद्युत क्षेत्र उत्पन्न हो जाता है। यह प्रबल विद्युत क्षेत्र संयोजी बैंड से इलेक्ट्रॉन को बाहर निकाल सकता है। एक निश्चित उत्क्रम वोल्टता vz, के पश्चात् इलेक्ट्रॉनों के उत्सर्जन की इस क्रिया विधि को आंतरिक क्षेत्र उत्सर्जन कहते हैं जिसके कारण एक उच्च विपरित धारा मिलती है, जिसे जेनर में जन कहते हैं एवं ऐसा डायोड जेनर डायोड कहलाता है।

वोल्टता नियंत्रक के रूप में जेनर डायोड :

जेनर डायोड का उपयोग करके बनाए गए वोल्टता नियंत्रक का विद्युत परिपथ दिखाया गया है। किसी अनियंत्रित वोल्टता को श्रेणीक्रम में संयोजित प्रतिरोध Rs से होते हुए जेनर डायोड से इस प्रकार संयोजित करते हैं कि जेनर डायोड उत्क्रम अभिनत में हो। यदि निवेशी वोल्टता में वृद्धि होती है तो Rs तथा जेनर डायोड से प्रवाहित विद्युत धारा में वृद्धि हो जाती है। इससे जेनर डायोड के सिरों पर वोल्टता में कोई भी परिवर्तन हुए बिना ही Rs के सिरों पर वोल्टता में वृद्धि हो जाती है। इस प्रकार जेनर डायोड एक वोल्टता नियंत्रक के तरह कार्य करता है।


7. NP-N तथा P-N-P ट्रान्जिस्टर की कार्यविधि का वर्णन करें एवं परिपथ आरेख द्वारा P-N-P ट्रान्जिस्टर के प्रवर्धक की तरह कार्य करने की क्रियाविधि की व्याख्या करें ।

उत्तर ⇒ N-P-N ट्रान्जिस्टर की कार्यविधि— चित्रानुसार परिपथ आरेख द्वारा NP-N ट्रान्जिस्टर की कार्यविधि प्रदर्शित है। चित्र (a) तथा (b) द्वारा N-प्रकार के उत्सर्जक, उत्सर्जक आधार बैटरी Ecb के ऋणात्मक ध्रुव से जुड़कर अग्र अभिनति (फोरवर्ड बायस्ड) होता है तथा इसके संग्राहक आधार बैटरी (Ecb) के धनात्मक ध्रुव से जुड़कर पश्च अभिनति (रिवर्स बायस्ड) होता है।

N-P-N ट्रान्जिस्टर उत्सर्जक E (N-प्रकार) के बहुसंख्यक धारावाहक इलेक्ट्रॉन ऋणात्मक सिरे से प्रतिकर्षित होकर आधार की तरफ जाते हैं तथा संग्राहक C (N-प्रकार) के बहुसंख्यक धारावाहक इलेक्ट्रॉन धनात्मक सिरे से आकर्षित होकर इस सिरे पर पहुँचते है तथा इसका स्थान उत्सर्जक आधार संधि होकर आने वाले इलेक्ट्रॉन आधार को पार कर ले लेते हैं। अतः संग्राहक परिपथ में उच्चधारा Ic प्रवाहित होने लगती है। कुछ इलेक्ट्रॉन, P आधार में उपस्थित विवर से संयोग कर लेते हैं। अतः बहुत अल्प धारा IB आधार परिपथ में प्रवाहित होने लगती है। माना कि उत्सर्जक धारा IE है, जो किरचॉफ के नियमानुसार हम पाते हैं कि IE = IC + IB है।

P-N-P ट्रान्जिस्टर की कार्यविधि – चित्रानुसार P-N-P ट्रान्जिस्टर की कार्यविधि प्रदर्शित है। उत्सर्जक को आधार के सापेक्ष अग्र अभिनति दशा में रखा जाता है। अर्थात् P सिरे को धनात्मक विभव पर तथा N- सिरे को ऋणात्मक विभव पर जबकि संग्राहक को आधार के सापेक्ष उत्कम अभिनति दशा में रखा जाता है (अर्थात् P- सिरे को ऋणात्मक विभव पर तथा N- सिरे को धनात्मक विभव पर) उत्सर्जक (p-प्रकार) के बहुसंख्यक घात वाहक विवर धनात्मक सिरे से प्रतिकर्षित होकर आधार की ओर जाते हैं तथा संग्राहक (P-प्रकार)

के बहुसंख्यक धारावाहक विवर ऋणात्मक विवर ऋणात्मक सिरे से आकर्षित होकर उस सिरे पर पहुँचते हैं तथा इनका स्थान उत्सर्जक आधार सन्धि से होकर आने वाले विवर आधार को पार कर ले लेते हैं। अतः संग्राहक परिपथ में उच्च धारा IC प्रवाहित होने लगती है। कुछ विवर N प्रकार के आधार में उपस्थित बहुसंख्यक इलेक्ट्रॉनों से संयोग कर लेते हैं, अतः बहुत अल्प धारा IB धारा परिषद में प्रवाहित होने लगती है। यदि उत्सर्जक धारा IE है तो किरचॉफ के नियम से, I= IC + IB होगी।

कॉमन आधार पर P-N P ट्रान्जिस्टर प्रवर्धक — चित्रानुसार P-N P ट्रान्जिस्टर के कॉमन आधार प्रवर्धक का परिपथ आरेख प्रदर्शित है P-N-P ट्रान्जिस्टर से उत्सर्जक आधार बैटरी Eceb तथा संग्राहक आधार बैटरी Ecb के पोलारीटीज N-P-N ट्रान्जिस्टर के विपरीत है। इसलिए उत्सर्जक फॉरवर्ड बायस्ड तथा संग्राहक रिवर्स बायस्ड होता है। इस परिपथ के आधारित सिद्धांत भी N – P – N ट्रान्जिस्टर परिपथ के समान ही है।

प्रथम धनात्मक आधार चक्र उत्सर्जक के फॉरवर्ड बायस को बढ़ाता है जिससे उत्सर्जक धारा बढ़ जाता है इसलिए संग्राहक धारा भी बढ़ जाता है। संग्राहक धारा में वृद्धि होने से R1 के विभव बूँद मेंबढ़ जाते हैं इसीलिए समीकरण के अनुसार संग्राहक वोल्टता कम जाता है। संग्राहक में बैटरी Ecb के ऋणात्मक ध्रुव से जुड़े होने के कारण संग्राहक वोल्टता में कमी का मतलब है कि वह कम ऋणात्मक हो जाता है अर्थात् धनात्मक आउटपुट सिग्नल उत्पन्न हो जाता है। इस प्रकार, a.c. इनपुट के धनात्मक आउटपुट आधा चक्र के संगत धनात्मक आउटपुट तथा चक्र उत्पन्न करता है।

 

उसी प्रकार, a.c. इनपुट के ऋणात्मक आधा चक्र संगत के ऋणात्मक आउटपुट आधा चक्र उत्पन्न हो जाता है। इसलिए चित्रानुसार इनपुट तथा आउटपुट वोल्टता सिग्नल एक-दूसरे के साथ कला में होते हैं। धारा लाभ, वोल्टता तथा शक्ति लाभ के व्यंजक N-P-N ट्रान्जिस्टर परिपथ के समान ही प्राप्त होते हैं।

Inter Exam 2024 Physics Subjective


 BSEB Intermediate Exam 2024
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Class 12th – Physics Objective 
 1विद्युत क्षेत्र तथा विद्युत आवेशClick Here
 2विद्युत विभव एवं धारिताClick Here
 3विद्युत धारा एवं परिपथClick Here
 4विद्युत धारा का चुंबकीय प्रभावClick Here
 5चुंबकत्वClick Here
 6विद्युत चुंबकीय प्रेरणClick Here
 7प्रत्यावर्ती धाराClick Here
 8विद्युत चुंबकीय तरंगेClick Here
 9किरण प्रकाशिकीClick Here
 10तरंग प्रकाशिकीClick Here
 11प्रकाश विद्युत प्रभावClick Here
 12परमाणु एवं नाभिकClick Here
 13अर्द्ध – चालक युक्तियां : लॉजिक गेटClick Here
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Abhi Kumar

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