Sociology Subjective Question Answer 2024 Class 12th | BSEB 12th Sociology Important Question Answer

Sociology Subjective Question Answer 2024 Class 12th :- यदि आप लोग Sociology Class 12 Question and Answer 2024 in Hindi की तैयारी कर रहे हैं तो यहां पर आपको BSEB 12th Sociology Important Question Answer 2024 का महत्वपूर्ण प्रश्न दिया गया है | bihar board 12th sociology question paper 2024


Sociology Subjective Question Answer 2024 Class 12th

1. सामाजिक परिवर्तन की प्रक्रिया के रूप में पश्चिमीकरण की विश्लेषित करें। 

उत्तर पश्चिमीकरण का प्रभाव — पश्चिमीकरण के कारण पड़ने वाले प्रभावों को निम्नलिखित क्षेत्रों में देखा जा सकता है–

(i) खान-पान पर प्रभाव — भारतवर्ष की उच्च जातियों विशेषकर ब्राह्मणों में भोजन संबंधी अनेक निषेध पाये जाते हैं। भोजन करने से पूर्व पारिवारिक देवता को भोग लगाया जाता है। पुरुष से और बच्चे सूती या रेशमी धोती पहन कर भोजन करते हैं और भोजन किये हुए स्थान को गोबर से लीप दिया जाता है। लेकिन आज बड़े-बड़े शहरों में लोग मेज-कुर्सी पर भोजन करना पसन्द करते हैं। भोजन के बाद मेज को पवित्र भी नहीं किया जाता है। भोजन संबंधी परम्परागत निषेध भी शिथिल हो गये हैं।

(ii) जाति विशेषताओं का प्रभाव — पश्चिमीकरण के प्रभाव से विभिन्न जातियाँ मुक्त न रह सकी। परम्परागत रूप से प्रत्येक जाति के जो कार्य एवं स्थान निर्धारित थे उनमें कुछ परिवर्तनों का आभास मिलता है। लेकिन पश्चिमीकरण के कारण जो तीव्र गति से औद्योगिकीकरण एवं नगरीकरण की प्रक्रिया गतिशील हुई उसने सभी जातियों के लिए नौकरी खोजने एवं स्वीकार करने को बाध्य कर दिया। कारखानों में सभी जातियों के लोग कार्य करने को बाध्य हो गये । यह परिवर्तन शहरों में अधिक पाया जाता है।

(iii) हरिजनों एवं अस्पृश्यों पर प्रभाव — पम्परागत रूप से हरिजनों और निम्न जातियों पर अनेकों अक्षमताओं एवं निर्योग्यताओं को लाद दिया गया था। लेकिन अंग्रेजी काल से इसमें सुधार होना आरम्भ हुआ। इन्हें शिक्षा, वाणिज्य एवं व्यापार के नये अवसर भी प्रदान किये । इससे हरिजनों के लिए संस्कृतीकरण का मार्ग प्रशस्त हुआ। इस प्रकार जाति व्यवस्था में निम्न स्तर वालों में एक जागरूकता उत्पन्न हुई। यह जागरूकता शहरी क्षेत्रों में स्पष्ट रूप से देखी जाती है ।

(iv) स्त्रियों की स्थिति पर प्रभाव — भारतीय समाज में धर्मशास्त्रकारों एवं सूत्रकारों ने स्त्रियों को समाज में निम्नतम स्थान दिया स्त्रियों के साथ अनेकों प्रतिबंधों का उल्लेख किया गया है, लेकिन अंग्रेजी सभ्यता के प्रभाव से जो नया अभिजन उभर कर सामने आया उसने इन स्त्रियों की स्थिति सुधारने का प्रयास किया। आज स्त्रियों की स्थिति में बहुत अधिक परिवर्तन आ गया है। वह अब अपनी इच्छानुसार घर से बाहर निकलने और नौकरी करने के लिए स्वतंत्र हो गई है ।

(v) आर्थिक पक्ष पर प्रभाव— भारतीय समाज पम्परागत रूप से कुटीर उद्योग धन्य एवं कृषि पर आधारित थी। प्रत्येक गाँव आर्थिक रूप में एक आत्मनिर्भर इकाई थी। लेकिन पश्चिमीकरण के प्रभाव से दो प्रक्रियायें औद्योगिकीकरण तथा नगरीकरण क्रियाशील हुईं। इनके प्रभाव से बड़े पैमाने पर उत्पादन प्रोत्साहित किया गया। फसलों का व्यापारीकरण किया गया। बड़ी बड़ी मिलें और कारखाने लगाये गये जिससे नगरों का तीव्रगति से विकास होने लगा। वे गाँव जो अब तक पूर्णतया आत्मनिर्भर थे, मिलों और नगरों पर आश्रित हो गये ।

(vi) धर्म और संस्कृति पर प्रभाव हिन्दू धर्म और संस्कृति पर पश्चिमीकरण का प्रभाव निश्चित रूप से पड़ा, जबकि पश्चिमीकरण का यह परोक्ष प्रभाव था। राममोहन राय और गाँधीजी ने ईसामसीह के व्यक्तित्व और शिक्षाओं की बहुत अधिक सराहना की है। इन लोगों के प्रयास से भारतीय धर्म में फैली कुप्रथाओं का अन्त हुआ

Sociology Class 12 Question and Answer in Hindi


2. जाति व्यवस्था में वर्तमान परिवर्तनों का उल्लेख करें। 

उत्तर जाति व्यवस्था में वर्तमान परिवर्तन

(i) ब्राह्मणों के भुत्व में कमी— अधिकांश व्यक्ति जाति को एक अलौकिक संस्था नहीं मानते। स्वयं ब्राह्मण जातियाँ भी अब सामान्य सेवा, कृषि, व्यापार इत्यादि के द्वारा जीविका उपार्जित कर रही है।

(ii) जातिगत संस्तरण में परिवर्तन जाति व्यवस्था की परंपरागत संरचना कमजोर हो गयी है। आज कोई भी जाति किसी दूसरी जाति को अपने से अधिक श्रेष्ठ मानने के लिए तैयार नहीं है।

  (iii) खान-पान के प्रतिबन्यों में परिवर्तन खान-पान और पवित्रता और अपवित्रता से संबंधित नियम लगभग समाप्त हो चुके हैं। यात्रा के दौरान निम्न जातियों द्वारा बनाये गये पदार्थों को खाने की प्रवृत्ति बढ़ गयी है।

(iv) व्यवसाय के चुनाव में स्वतंत्रता नगरों में सभी व्यवसाय सभी जाति के लोगों द्वारा किये जाते हैं। जाति आधारित व्यवसाय समाप्त हो चुके हैं।

(v) विवाह संबंधी नियमों में परिवर्तन अब समाज में अंतर्जातीय विवाह का प्रचलन बढ़ा है। पहले अपने जाति के अंदर ही विवाह करना अनिवार्य था।


3. जातिवाद क्या है? इसको प्रोत्साहन देने वाले चार कारणों की चर्चा करें।

उत्तर ⇒  भारत में जाति एवं उपजातियों की संख्या अनगिनत है। जातिवाद हिन्दू जाति व्यवस्था का ही एक दूषित रूप है जिसने सम्पूर्ण समाज को बहुत से छोटे-छोटे और आत्मकेन्द्रित टुकड़ों में विभाजित करके स्वस्थ राष्ट्रीयता के रास्ते में भी अनेक बाधाएँ उत्पन्न की है। जातिवाद एक उग्रभावना है जो एक जाति के सदस्यों को बिना किसी कारण के अपनी जाति के लोगों का पक्ष लेने के लिए प्रेरित करती है। चाहे इससे अन्य समूहों को जो भी बाधाएँ पहुँचती हो । जातिवाद के अर्थ के संबंध में

डॉ० शर्मा का कहना है कि ” जातिवाद तथा जाति भक्ति एक जाति के व्यक्तियों की वह भावना है जो देश या समाज के हितों का ध्यान न रखते हुए व्यक्ति को केवल अपनी ही जाति के उत्थान, जातीय एकता और जाति की सामाजिक स्थिति को दृढ़ करने के लिए प्रेरित करती है।” जातिवाद को प्रोत्साहित करने वाले कारक निम्नलिखित हैं

 (i) अंतर्विवाह का प्रचलन (Rule of Endogamy)– भारत में जातिवाद के विकास का सम्भवतः सबसे बड़ा कारण पिछले हजारों वर्षों से जाति व्यवस्था द्वारा स्वीकृत अन्तर्विवाह का प्रचलन है। इसका परिणाम यह हुआ कि प्रत्येक उपजाति एक आत्म-केन्द्रित समूह के रूप में बदल गयी और वह प्रत्येक दशा में अपनी ही उपजाति के सदस्यों का पक्ष लेने लगी।

 (ii) जातिगत संगठन (Caste organisation) जाति के आधार पर बनने वाले विभिन्न संगठन अपनी जाति के सदस्यों को संगठित करते हैं, विभिन्न अवसरों पर उन्हें निर्देश देते हैं। दूसरे जातियों के विरुद्ध अपने सदस्यों को भड़काते हैं। जिसके फलस्वरूप जातिवाद में वृद्धि होती है।

(iii) भ्रष्ट राजनीति (Corrupt politics) — अनेक स्वार्थी नेता जातिवाद को प्रोत्साहन देकर अपने राजनीतिक हितों को पूरा करने का प्रयत्न करते हैं। चुनाव के समय बहुत से प्रत्याशी और उनके समर्थक जाति के आधार पर वोट मांगते हैं तथा व्यक्ति की जातीय भावना को उभारने का प्रयत्न करते हैं।

(iv) स्थानीय गतिशीलता (Spatial Mobility)– वर्तमान युग में स्थानीय गतिशीलता के एक ही क्षेत्र अथवा कालोनी में रहने वाले व्यक्ति एक दूसरे से परिचित नहीं होते। इस स्थिति में उनके बीच पारस्परिक सद्भाव और त्याग की भावना नहीं होती है। ऐसे स्थानों पर केवल जातिगत भावना ही लोगों को एक दूसरे के निकट लाती है। इससे जातिवाद को प्रोत्साहन मिलता है।

Bihar Board 12th Sociology Question Paper 2024


4. भारतीय जाति व्यवस्था की प्रमुख विशेषताओं की चर्चा करें। 

उत्तर भारतीय जाति व्यवस्था की प्रमुख विशेषताएँ निम्न हैं —

(i) समाज का खण्डनात्मक विभाजन — प्रत्येक वर्ण के अन्दर अनेक जाति समूहों का समावेश होता है। इनके सदस्यों की सामाजिक स्थिति, कर्तव्य और व्यवहार के नियम पूर्व निर्धारित होते हैं।

(ii) संस्तरण जाति व्यवस्था के अंतर्गत विभिन्न जातियों के बीच ऊँच-नीच का एक स्पष्ट संस्तरण होता है।

(iii) आनुवंशिक सदस्यता — व्यक्ति को एक विशेष जाति की सदस्यता जन्म या आनुवंशिक रूप से प्राप्त होती है।

(iv) अन्तर्विवाह– प्रत्येक व्यक्ति को अपनी ही जाति के अंदर विवाह करना आवश्यक होता है।

(v) व्यवसायिक विभाजन जाति व्यवस्था में प्रत्येक जाति के द्वारा किये जाने वाले व्यवसाय का रूप पूर्व निर्धारित है।


5. धर्म के प्रकारों की विवेचना करें।

उत्तर धर्म छः प्रकार के होते हैं—

(i) वर्ण-धर्म —  वर्ण-धर्म का तात्पर्य वर्ण द्वारा निर्धारित नियमों एवं कर्तव्यों का निष्ठा पूर्वक पालन करना है। वर्ण चार प्रकार के होते हैं। जैसे ब्राह्माण वर्ण, क्षत्रिय वर्ण, वैश्य वर्ण तथा शूद्र वर्ण इस चारों वर्णों द्वारा अपने-अपने कार्यों को संपन्न करना ही वर्ण धर्म कहलाता है।

(ii) आश्रम धर्म — आश्रम चार प्रकार के होते हैं- ब्रह्मचर्य आश्रम, गृहस्थाश्रम, वानप्रस्थाश्रम, संन्यास आश्रम चारों आश्रमों के कार्यों को सुनिश्चत कर दिया गया था तथा प्रत्येक आश्रम के द्वारा अपने-अपने कार्यों को करना ही आश्रम धर्म कहलाता है।

(iii) कुल धर्म इसे दो प्रमुख्य भागों में बाँटा जा सकता है- (i) परिवार के विभिन्न सदस्यों से संबंधित और दूसरा परिवार से संबंधित धार्मिक संस्कार माता-पिता के प्रति श्रद्धा-भाव रखना, इसी तरह पत्नी द्वारा अपने पत्नी धर्म का पालन करना कुल धर्म का उदाहरण है। इसी तरह कुल का प्रतिष्ठा और रक्षा के लिए प्रत्येक गृहस्थ का यह प्रमुख कर्तव्य है कि वह पंच महायज्ञों को निश्चित रूप से करें।

(iv) राज धर्म — धर्म द्वारा राजा के या शासक के कार्यों को निर्धारित करना राज धर्म कहलाता है। विष्णु स्मृति के अनुसार राजा को अपनी शासन व्यवस्था को इस तरह आयोजित करना चाहिए कि उसके राज्य में रहने वाली जनता को अधिकाधिक सुख, शांति और समृद्धि प्राप्त हो सके। प्रजा के धर्म की रक्षा करना और धर्म को उचित ढंग से निभाने के लिए आवश्यक सुविधाएँ जुटना ही राज-धर्म का एक अंग है।

(v) काल एवं देश धर्म — धर्म काल एवं देश से भी संबंधित है। नैतिक कर्तव्यों को ही धर्म करते हैं। और नैतिकता का घनिष्ठ संबंध सामाजिक आदर्शों तथा मूल्यों से है। प्रत्येक युग एवं समाज में ये आदर्श एवं मूल्य परिवर्तित होते रहते हैं। काल एवं देश इस परिवर्तन को स्वीकार करता है और उसी के अनुसार व्यवहार करता है।

(vi) स्वधर्म सामाजिक जीवन में या एक समाज के सदस्य के रूप में प्रत्येक व्यक्ति की विभिन्न स्थितियाँ हैं, जैसे वह पिता, पुत्र, पति, राजा, एक वर्ण विशेष का सदस्य या एक आश्रम विशेष का सदस्य। इनमें से प्रत्येक स्थिति से संबंधित कुछ कार्य या नैतिक कर्तव्य है। इन नैतिक कर्तव्यों से संबंधित कार्य कलायों को निष्ठा के साथ सु-संपन्न करना ही स्वधर्म कहलाता है। 

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6. सामाजिक परिवर्तन में जनसंचार की भूमिका का उल्लेख करें।

उत्तर ⇒  जन संचार के साधनों में रेडियो, टेलीविजन, मुद्रित सामग्री एवं फिल्म आदि है जिसका काम अधिक-से-अधिक लोगों तक सूचना पहुँचाना है। इस माध्यमों द्वारा जनता के लिए एक साथ सूचनाएँ प्रसारित होती है इसलिए इसे जनसंचार कहा जाता है।

जनसंचार का वर्तमान समाज पर गहरा प्रभाव पड़ा है। यह प्रभाव सकारात्मक और रात्मक दोनों प्रकार के होते हैं। इसके द्वारा समाज की मनोदशा, विचार, संस्कृति एवं जीवन दशाएँ नियंत्रित एवं निर्देशित हो रही है। जन संचार के द्वारा व्यक्तियों के समाजीकरण की प्रक्रिया समाज में चलती है। लेबिस अनथोनी ने कहा कि जन-संचार माध्यम लोगों का मनोरंजन करने के साथ ही साथ जन-व्यवहार को भी नियंत्रित एवं निर्देशित करते हैं। इससे ज्ञान की वृद्धि होती है। राजनीतिक प्रोपगण्डा अथवा अफवाह भी जन संचार के द्वारा संचालित की जाती है। अब व्यक्ति अपने विचारों, मनोवृत्तियों आदि को मीडिया के अनुरूप ढालने का प्रयत्न करता है।

विकास और परिवर्तन में सूचना एक महत्त्वपूर्ण कारक है। जन-संचार द्वारा नए विचारों का प्रसारण परिवर्तन के लिए उपयुक्त वातावरण तैयार करता है। मनोवृत्ति और मूल्यों में परिवर्तन लाने के अतिरिक्त सूचना, नवीन कौशल और तकनीकी का ज्ञान भी प्रदान करती है। जिसका समाज में व्यक्तियों पर सीधा प्रभाव पड़ता है। व्यक्ति इस नवीन ज्ञान और कौशल को अपने विकास कार्यों में नवीनता आती है। नवीन ज्ञान के आधार पर व्यक्ति अपने जीवन शैली में परिवर्तन लाने का प्रयत्न करता है। लोगों के बीच स्वास्थ्य के प्रति जागरूकता बढ़ती है। अनेक जानलेवा बीमारियों से बचने के लिए संचार द्वारा बताये गए उपायों को अपनाता है।

जनसंचार का नकारात्मक प्रभाव भी समाज पर बहुत अधिक पड़ रहा है। बाजार के द्वारा नियंत्रित मीडिया उपभोक्तावाद को जन्म देने के लिए मजबूर होता है। यही कारण है कि आज हमारे सामने केवल संस्कृति तक का बाजारीकरण नहीं हो गया है बल्कि बाजार का ही संस्कृतिकरण हो गया है। आर्थिक उदारीकरण ने मीडिया में जो उदारीकरण की संस्कृति को जन्म दिया है, वह विश्व संस्कृति के नाम पर पश्चिमी संस्कृति है। इसके परिणामस्वरूप जीवन मूल्य टूट रहे हैं। जिससे लोगों के सृजनात्मक क्षमताएँ कमजोर होती है। साथ ही जनसंचार सामग्रियों को बेचने के लिए विज्ञापनों में महिलाओं का इस्तेमाल करता है। यह वास्तविकता की गलत तस्वीर भी प्रस्तुत करता है।


7. ग्रामीण-नगरीय विभाजन के प्रमुख आधारों की विवेचना करें। 

उत्तर प्रो० ए० आर० देसाई तथा रिचार्ड डेवी ने अनेक ऐसे आधारों का उल्लेख किया है जिसकी सहायता से ग्रामीण एवं नगरीय समुदाय के बीच अंतर को समझा जा सकता है। दोनों समुदायों की विशेषताओं को संक्षेप में निम्नलिखित रूप में प्रस्तुत किया जा सकता है—

(i) व्यवसाय (Occupation)— गाँव में व्यक्ति अधिकतर कृषि व्यवसाय पर आश्रित है। नगरीय समुदाय में व्यवसायों में भिन्नता होती है। नगरों में एक ही परिवार के सदस्य भी भिन्न भिन्न तरह के व्यवसाय करते हैं।

(ii) प्रकृति के साथ संबंध (Relation to nature)– ग्रामवासियों का प्रकृति से प्रत्यक्ष संबंध होता है तथा वे अपने व्यवसायों के लिए भी प्राकृतिक साधनों पर आश्रित हैं। नगर में प्रकृति से पृथकरण पाया जाता है, एवं कृत्रिम वातावरण की प्रधानता पाई जाती है।

(iii) समुदाय का आकार (Size of community)— गाँव में सदस्यों की संख्या सीमित होती है। लघुता के कारण संबंध प्रत्यक्ष तथा व्यक्तिगत होते हैं। नगर का आकार बड़ा होता है तथा सभी सदस्यों में प्रत्यक्ष संबंध संवाद नहीं है।

(iv) जनसंख्या का घनत्व (Density of population)— गाँव में जनसंख्या कम होती है। विस्तृत खेतों के कारण जनसंख्या का घनत्व भी बहुत कम पाया जाता है। नगर में जनसंख्या का घनत्व अधिक पाया जाता है। इसलिए बड़े नगरों में स्थान कम होने के कारण जनसंख्या के आवास की समस्या अधिक पाई जाती है।

(v) सामाजिक स्तरीकरण तथा विभिन्नीकरण — गाँव में आयु तथा लिंग के आधार पर विभिन्नीकरण बहुत ही कम होता है। इसमें जातिगत स्तरीकरण की प्रधानता होती है। नगर में विभिन्नीकरण अधिक पाया जाता है। इसमें स्तरीकरण का आधार केवल जाति न होकर वर्ग भी होता है।

(vi) सामाजिक नियंत्रण (Social control)— गाँव में परम्पराओं, प्रथाओं, जनरीतियों तथा लोकाचारों को प्रधानता पाई जाती है। सामाजिक नियंत्रण भी इन्हीं अनौपचारिक साधनों द्वारा रखा जाता है। नगर में प्रथाओं, परम्पराओं व लोकाचारों से नियंत्रण करना संभव नहीं है। नगरों में औपचारिक नियंत्रण के साधन जैसे राज्य, कानून, शिक्षा आदि अधिक महत्त्वपूर्ण हो जाते हैं।


8. ग्रामीण समुदाय की प्रमुख समस्याएँ क्या हैं?

उत्तर ⇒  ग्रामीण समुदाय के निम्नलिखित समस्याएँ हैं

(i) आर्थिक समस्याएँ कृषि — आज भी भारत की करीब सत्तर से अस्सी प्रतिशत आबादी कृषि पर निर्भर है। कृषि में सुधार के लिए अनेक कदम उठाए गए हैं। फिर भी, कृषि आज पिछड़ी हुई है। एक ओर तो हमारे खेत छोटे-छोटे टुकड़ों में बँटे हुए हैं और दूसरी ओर सभी क्षेत्रों में सिंचाई के समुचित साधनों को भी पर्याप्त रूप में विकसित नहीं किया जा सका है। प्रतिवर्ष कुछ निश्चित क्षेत्रों में बाढ़ के प्रकोप से भी कृषि को भारी नुकसान पहुँचता है। उत्तम बीज तथा उपयोगी खाद भी प्रचुर मात्रा में अभी सुलभ नहीं हो पाया है।

ॠणग्रस्तता —  ॠणग्रस्तता  भारतीय ग्रामीण समुदाय की एक परंपरागत समस्या आज भी बनी हुई है। पीढ़ी-दर-पीढ़ी से हस्तांतरित होता आ रहा कर्ज भारतीय किसानों की एक समस्या है।

(ii) सामाजिक समस्याएँ — ग्रामीण समुदाय की सर्वप्रमुख समस्या है भारतीय स्त्रियों की वर्तमान स्थिति आज भी भारतीय गाँवों की स्त्रियों में शिक्षा का व्यापक प्रचार नहीं होने के कारण वे अशिक्षित हैं। परिणामस्वरूप वे अपना पूरा समय घर गृहस्थी में देती हैं और खेतों में जाकर कृषिकार्य में अपेक्षित सहायता करती हैं। अशिक्षा के कारण उनमें नए विचारों के प्रति न तो जिज्ञासा है और न तो जागरूकता।

(iii) स्वास्थ्य संबंधी समस्याएँ शहरों की अपेक्षा भारतीय गाँवों की गंदगी उनकी एक विशेष समस्या है। उपयुक्त नालियों के अभाव में गंदा पानी जहाँ तहाँ जमा रहता है। कूड़ा-करकट भी निश्चित स्थान पर नहीं फेका जाता। पीने के शुद्ध जल के लिए भी पर्याप्त मात्रा में नलकूप अथवा चापाकल आदि की व्यवस्था नहीं हो पायी है। इस तरह, भारतीय गाँवों में व्याप्त गंदगी के कारण अनेक प्रकार के संक्रामक रोगों का फैलना एक विकट समस्या है। भारतीय ग्रामीण समुदाय पर्याप्त चिकित्सा व्यवस्था से प्रायः वंचित हैं।

(iv) आवागमन की असुविधा — आज भी सभी भारतीय गाँवों तक सड़कों का निर्माण नहीं किया जा सका है। फलस्वरूप, ग्रामीण जनता को आवागमन की असुविधा है।

 (v) बेरोजगारी की समस्या — गाँवों में कृषि के अलावा अन्य प्रकार के रोजगार नहीं उपलब्ध रहने के कारण बेरोजगारी की समस्या उत्पन्न हो गई है। शिक्षित एवं अशिक्षित दोनों कोटियों के बेरोजगार युवक-युवतियाँ ग्रामीण समुदाय के लिए समस्या है।

(vi) शिक्षा एवं मनोरंजन के पर्याप्त साधनों का अभाव — यद्यपि स्वतंत्रताप्राप्ति के बाद नई तालीम (बेसिक शिक्षा), अनिवार्य प्राथमिक शिक्षा, माध्यमिक शिक्षा, वयस्क शिक्षा आदि योजनाओं को लागू कर ग्रामीण क्षेत्रों में शिक्षा के प्रसार के प्रयास किए जा रहे हैं, फिर भी अभी शिक्षा की वैसी जागरूकता का पर्याप्त अभाव है।

12th Sociology Subjective Question Paper 2024


9. ग्रामीण समुदाय क्या है? ग्रामीण समुदाय की विशेषताओं का वर्णन करें। 

उत्तर ग्रामीण समुदाय ग्रामीण पर्यावरण में स्थित व्यक्तियों का कोई भी छोटा अथवा बड़ा समूह है जो प्रत्यक्ष रूप से प्रकृति पर निर्भर होता हैं, प्रकृति की सहायता से आजीविका उपार्जित करता है, प्राथमिक संबंधों को अपने लिए आवश्यक मानता है एवं साधारणतया एक दृढ सामुदायिकता की भावना के द्वारा बँधा रहता है।

ग्रामीण समुदाय की विशेषताएँ — ग्रामीण समुदाय की विशेषताएँ निम्नलिखित है

(i) छोटा आकार (Small size)– ग्रामीण समुदाय का आकार छोटा होता है। प्रकृति पर प्रत्यक्ष रूप से निर्भर होने के कारण समुदाय का आकार छोटा होता है।

(ii) जनसंख्या का कप घनत्व (Low population density)— ग्रामीण समुदाय का आकार ही छोटा नहीं होता बल्कि इसकी जनसंख्या का घनत्व भी कम होता है। कहने का तात्पर्य यह है कि गाँव में प्रति वर्ग मील जनसंख्या का अनुपात शहरों की अपेक्षा कम होता है।

(iii) मुख्य व्यवसाय कृषि Agriculture main occupation)– ग्रामीण समुदाय के लोगों का मुख्य व्यवसाय कृषि होता है। गाँव में अन्य व्यवसाय से भी लोग जुड़े होते हैं, फिर भी यह लोग अपने लिए कृषि व्यवसाय को ही महत्त्वपूर्ण समझते हैं। ग्रामीण समुदाय आहार व्यवहार की दृष्टि से प्रकृति के अधिक निकट रहते हैं।

(iv) श्रम विभाजन और विशेषीकरण का अभाव — ग्रामीण समुदाय में श्रम विभाजन कम होता है। वे अपने जीवन संबंधित सभी कार्यों का ज्ञान रखते हैं। वे किसी भी चीज में विशिष्ट ज्ञान हासिल नहीं कर पाते हैं। कहने का अभिप्राय यह है कि ग्रामीण समुदाय में व्यक्ति किसी भी कार्य में विशेष रूप से प्रशिक्षित नहीं होते हैं। परिणामस्वरूप उनमें विशेषीकरण का आज भी अभाव पाया जाता है।

(v) सादा जीवन (Simple living) — ग्रामीण समुदाय के लोगों का जीवन सादा होता है, इनका वेश-भूषा सादा होता है। कृषि उनका मुख्य व्यवसाय होता है। अतः उनकी आर्थिक स्थिति भी अच्छी नहीं रहती है। कृषि प्रकृति पर निर्भर रहने के कारण निश्चित रूप से उनके उपज के विषय में अनुमान करना कठिन होता है।

(vi) ग्राम पंचायत (Village Panchayat) — ग्राम पंचायत भारतीय ग्रामीण समुदाय की अति प्राचीन विशेषता रही है। स्वशासन की इकाई के रूप में ग्राम पंचायत का वहाँ विशेष महत्त्व है। ग्रामीण क्षेत्रों में शासन प्रबंध, शक्ति और सुरक्षा की एक मात्र संस्था के रूप में ग्राम पंचायत काम करती है। लेकिन स्वतंत्रता के बाद इसे फिर से स्थापित किये गये हैं। ग्राम पंचायत का मुख्य कार्य गाँव की उन्नति के लिए योजना बनाना तथा उसे क्रियान्वित करना है।


10. भारत में अनुसूचित जातियों की वर्तमान समस्याओं का वर्णन करें।

उत्तर ⇒  अनुसूचित जातियों की अनेक समस्याएँ है–

(i) व्यवहारिक रूप से आज भी ऊँची जातियों के लोग अनुसूचित जातियों से सामाजिक सम्पर्क और खान-पान के क्षेत्र में संबंध रखने में संकोच महसूस करते हैं। विभिन्न प्रतिष्ठानों में तो उन्हें रोजगार की सुविधाएँ प्राप्त नहीं हो पाती। कानूनों द्वारा अनुसूचित जातियों को हिन्दुओं के धार्मिक स्थानों में प्रवेश करने का पूरा अधिकार है, लेकिन अनुसूचित जातियाँ आज भी इस या अधिकार का स्वतंत्रतापूर्वक उपयोग नहीं कर पाती।

 (ii)  अनुसूचित जातियों का लगभग 80 प्रतिशत भाग गाँवों में निवास करता है। गाँवों में उच्च जातियों के महाजन, बड़े भू स्वामी और प्रभु जाति के लोग आज भी अनुसूचित जातियों का किसी न किसी रूप में सामाजिक आर्थिक शोषण कर रहे हैं। अनुसूचित जातियों के अधि कांश ग्रामीण आज भी अत्यधिक अशिक्षित और निर्धन हैं। उन्हें अज्ञानता के कारण विकास योजनाओं का लाभ नहीं मिल पाता है।

 (iii) अनुसूचित जातियों का बहुत कम प्रतिशत साक्षर है। सरकार ने शिक्षा के क्षेत्र में अनेक सुविधाएँ दी हैं। इन जातियों की परम्परागत स्थिति और पेशों को देखते हुए यह कुछ असाधारण नहीं है। ये अत्यधिक निर्धन लोग हैं यहाँ थोड़ा बड़ा होता हुआ बच्चा रोजी कमाने के काम में लगा दिया जाता है। वह परिवार की आमदनी का एक स्रोत बन जाता है।

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(iv) अनुसूचित जातियों के बीच अनेक समानताएँ पाई जाती है। अनुसूचित जातियों के जिन लोगों ने शिक्षा प्राप्त कर लिया तथा प्रशासन या राजनीति के क्षेत्र में उच्च पद प्राप्त कर वे अभिजन (Harijan Elite) बन गये। जिसके कारण ऐसे लोग अपने आपको अनुसूचित जातियों से भिन्न एक अलग वर्ग मानने लगे। सरकार इनकी शिक्षा तथा विकास की जो योजना आरंभ किये है, उसका अधिकांश लाभ पहले से शिक्षित लोगों को मिल जाता है जिससे इस जाति में संस्तरण की स्थिति पैदा हो गई है।

 (v) अनुसूचित जाति की समस्याओं का एक नया रूप अंतर्जातीय संघर्ष के रूप में आया है। ग्रामीण जीवन में अनुसूचित जातियों ने जब सामाजिक, धार्मिक और आर्थिक अधिकार पाने के लिए अपने आप को संगठित किया तो उच्च जातियों द्वारा उनका अमानवीय दमन किया जाने लगा। अनुसूचित जातियों के लोगों को सामूहिक हत्या, आगजनी, महिलाओं के साथ अभद्र व्यवहार तथा जमीन से बेदखली आदि इसी दशा का परिणाम है।


11. जनजातियों के कल्याण हेतु सरकार द्वारा चलाये गये उपायों की समीक्षा करें।

उत्तर   (i)  जनजातियाँ समुदायों के कल्याण हेतु विशेष केन्द्रीय सहायता (Special Central Help) का प्रावधान किया गया जिसके द्वारा जनजाति बहुल राज्यों और केन्द्रशासित प्रदेशों को वित्तीय सहायता का निर्धारण किया गया।

(ii) अति दुर्गम व पहाड़ी क्षेत्रों में रहने वाली 75 आदिम जनजाति समूहों को अनुसूचित जनजाति के अन्तर्गत सम्मिलित कर उनके खेती-बाड़ी के तौर-तरीकों और अज्ञानता को दूर करने हेतु साक्षरता संबंधी कार्यक्रम विशेष रूप से आयोजित किये गये।

 (iii) भारत सरकार द्वारा अनुसूचित जनजातियों के कल्याण हेतु विभिन्न शिक्षण प्रशिक्षण और पथ-प्रदर्शन केन्द्र स्थापित किये गये।

(iv) जनजातीय छात्र-छात्राओं को अनेक स्तर पर छात्रवृत्ति ( Scholarships) देने का भी प्रावधान है। केन्द्र व राज्य सरकारों द्वारा एक निश्चित धनराशि जोकि शुल्क के रूप में दी जाती है।

(v) जनजातीय समाज के समुचित विकास हेतु जनजातिय अनुसन्धान केन्द्रों (Tribal Research Institutions) की स्थापना की गयी।


12. महिला आंदोलन पर एक समाजशास्त्रीय निबंध लिखें। 

उत्तर भारत में महिला आंदोलन का संबंध पुनर्जागरण से उत्पन्न होने वाली उस चेतना से है जिसने महिलाओं को अपनी सामाजिक स्थिति में सुधार करने की प्रेरणा दी। 19 वीं शताब्दी के अंत और 20 वीं शताब्दी के आरंभ में आर्य समाज तथा ब्रह्म समाज ने भी अपने सुधार आन्दोलनों के द्वारा स्त्रियों के दशा में सुधार लाने का व्यापक प्रयत्न किये थे। इसके बाद भी स्वतंत्रता आंदोलन के समय महात्मा गाँधी के नेतृत्व में स्त्रियों को पहली बार सामूहिक रूप से घर से बाहर निकलकर धरने, प्रदर्शन और सत्याग्रह में भाग लेने का अवसर मिला। इसके साथ ही ब्रिटिश राज्य के दौरान समतावादी मूल्यों की विचारधारा को प्रोत्साहन मिलने से भारतीय महिलाओं में सामाजिक चेतना बढ़ने लगी।

12th Sociology subjective question Answer in Hindi


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