12th Biology Important Questions Chapter Wise :- दोस्तों यदि आप NCERT Solutions for Class 12 Biology की तैयारी कर रहे हैं तो यहां पर आपको 12th Biology Chapter 10 Subjective Question दिया गया है जो आपके Important Questions for Class 12 Biology Chapter Wise Pdf के लिए काफी महत्वपूर्ण है |
12th Biology Important Questions Chapter Wise
1.मानव कल्याण में पशुपालन की क्या भूमिका है? सोदाहरण [BSEB, 2012] व्याख्या करें।
उत्तर ⇒ पशुपालन, पशुप्रजनन तथा पशुधन वृद्धि की एक कृषि पद्धति है। पशुपालन का संबंध पशुधन जैसे—भैंस, गाय, सूअर, मोड़ा, भेड़, ऊँट, बकरी आदि के प्रजनन तथा उनकी देखभाल से होता है जो मानव के लिए लाभप्रद है। इसमें कुक्कुट तथा मत्स्य पालन भी शामिल है।
अति प्राचीन काल से मानव द्वारा जैसे—मधुमक्खी, रेशमकीट, झींगा, केकड़ा, मछलियाँ, पक्षी, सूअर, भेड़, ऊँट आदि का प्रयोग उनके उत्पादों जैसे- दूध, अंडे, माँस, ऊन, रेशम, शहद आदि प्राप्त करने के लिए किया जाता रहा है।
विश्व की बढ़ती जनसंख्या के साथ खाद्य उत्पादन की वृद्धि एक प्रमुख आवश्यकता है। पशुपालन खाद्य उत्पादन बढ़ाने के हमारे प्रयासों में मुख्य भूमिका निभाता है। शहद का उच्च पोषक मान तथा इसके औषधीय महत्व को ध्यान में रखते हुए मधुमक्खी पालन अथवा मीन पालन पद्धति में उल्लेखनीय वृद्धि है। डेयरी उद्योग से मानव खपत के लिए दुग्ध तथा इसके उत्पाद प्राप्त होते हैं। कुक्कुट का प्रयोग भोजन के लिए बहुत बड़ा आहार के रूप में मछली मछली उत्पादों तथा जलीय जन्तुओं पर आश्रित है। हमारे देश की 70 प्रतिशत जनसंख्या पशुपालन उद्योग में किसी न किसी रूप में जुड़ी हुई है। पशुपालन हमारी अर्थव्यवस्था का आधार है। अतः मानव कल्याण में पशुपालन की बहुत बड़ी भूमिका है।
2.सूक्ष्मजीवों का प्रयोग रसायन उर्वरकों तथा पीड़कनाशियों के प्रयोग को कम करने के लिए भी किया जा सकता है, यह किस प्रकार संपन्न होगा ? व्याख्या कीजिए। अथवा, सूक्ष्मजीवों का उपयोग पादप रोगों तथा पीड़कों के जैव नियंत्रक कारक के रूप में कैसे किया जाता है?
उत्तर ⇒ आज पर्यावरण प्रदूषण चिंता का एक मुख्य कारण है। कृषि उत्पादों की बढ़ती माँगों को पूरा करने के लिए रसायन उर्वरकों का प्रयोग इस प्रदूषण के लिए महत्त्वपूर्ण है। जैव उर्वरक एक प्रकार के जीव हैं, जो मृदा की पोषक गुणवत्ता को बढ़ाते हैं। जैव उर्वरकों का मुख्य स्रोत जीवाणु, कवक तथा सायनोबैक्टीरिया होते हैं। लेग्यूमिनस पादपों की जड़ों पर स्थित ग्रंथियों का निर्माण राइजोबियम के सहजीवी संबंध द्वारा होता है। यह जीवाणु वायुमंडलीय नाइट्रोजन को स्थिरीकृत कर कार्बनिक रूप में परिवर्तित कर देते हैं। पादप इसका प्रयोग पोषकों के रूप में करते हैं। अन्य जीवाणु (उदाहरण ऐजोस्पाइरिलम तथा एजेटोबैक्टर) मृदा में मुक्तावस्था में रहते हैं। यह भी वायुमंडलीय नाइट्रोजन को स्थिर कर सकते हैं। इस प्रकार मृदा में नाइट्रोजन बढ़ जाती है।
कवक पादपों के साथ सहजीवी संबंध रखते है। ऐसे संबंधों से युक्त पादप कई अन्य लाभ जैसे मूलवातोढ़ रोगजनक के प्रति प्रतिरोधकता, लवणता तथा सूखे के प्रति सहनशीलता, कुलवृद्धि तथा विकास प्रदर्शित करते हैं। सायनोबैक्टीरिया स्वपोषित सूक्ष्मजीव हैं जो जलीय तथा स्थलीय वायुमंडल में विस्तृत रूप से पाए जाते हैं। इनमें बहुत से वायुमंडलीय नाइट्रोजन को स्थिरीकृत कर सकते हैं
पादप रोगों तथा पीड़कों के नियंत्रण के लिए जैव वैज्ञानिक विधि का प्रयोग ही जैव नियंत्रण है। आधुनिक समाज में यह समस्याएँ रसायनों, कीटनाशियों तथा पीड़कनाशियों के बढ़ते हुए प्रयोगों की सहायता से नियंत्रित की जाती है। ये रसायन मनुष्यों तथा जीव जंतुओं के लिए अत्यंत ही विषैले तथा हानिकारक हैं। ये पर्यावरण (मृदा, भूमिगत जल) को प्रदूषित करते हैं तथा फलों, साग-सब्जियों और फसलों पर भी हानिकारक प्रभाव डालते हैं। खरपतवार नाशियों का प्रयोग खरपतवार को हटाने में किया जाता है। यह भी हमारी मुदा को प्रदूषित करते हैं।
बैक्टीरिया वैसीलस धूरिजिऐसिस (B) का प्रयोग बटरफ्लाई केटरपिलर नियंत्रण में किया जाता है। बैक्यूलोवायरोसिस ऐसे रोगजनक हैं जो कीटो तथा सधिपादों पर हमला करते हैं। न्यूक्लिओपॉली हीड्रोसिस वायरस (NPU) प्रजाति विशेष, संकरे स्पेक्ट्रम कीटनाशीय उपचारों के लिए उत्तम माने गए हैं ।
3.जैव उर्वरक किस प्रकार से मृदा की उर्वरता को बढ़ाते हैं ?
उत्तर ⇒ जैव उर्वरक एक प्रकार के जीव हैं, जो मृदा की पोषक गुणवत्ता को बढ़ाते हैं। जैव उर्वरकों का मुख्य स्रोत कवक, जीवाणु तथा सायनोबैक्टीरिया होते हैं। यह जीवाणु वायुमंडलीय नाइट्रोजन को स्थिरीकृत कर कार्बनिक रूप में परिवर्तित कर देते हैं। दूसरे जीवाणु ऐजोस्पाइरिलम तथा ऐजोबैक्टर भी वायुमंडलीय नाइट्रोजन को स्थिर कर देते हैं। धान के खेत में सायनोबैक्टीरिया महत्वपूर्ण जैव उर्वरक की भूमिका निभाते है। नील हरित शैवाल भी मृदा में कार्बनिक पदार्थ बड़ा देते हैं, जिससे उसकी उर्वरता बढ़ जाती है।
4.किन-किन औद्योगिक उत्पादों में सूक्ष्मजीवों का उपयोग होता है? किन्हीं तीन का वर्णन करें।
उत्तर ⇒औद्योगिक उत्पादों में सूक्ष्मजीवों का इस्तेमाल करते हैं जो मनुष्य के लिए मूल्यवान होते हैं, जिनमें से तीन निम्नलिखित है।
1.किण्वित पेय- सूक्ष्मजीव विशेषकर यीस्ट का प्रयोग प्राचीन काल से वाइन, बियर, व्हिस्की, ब्रांडी या रम जैसे पेयों के उत्पादन में किया जा रहा है। इस उद्देश्य की पूर्ति के लिए वही यीस्ट सैकेरोमाइसीज सैरीबिसी, जो सामान्यतः बीवर्स यीस्ट के नाम से प्रसिद्ध है, बैड बनाने में भी प्रयोग किया जाता है।
2.कुछ विशेष प्रकार के रसायनों जैसे कार्बनिक अम्ल, एल्कोहल तथा एंजाइम आदि के व्यावसायिक तथा औद्योगिक उत्पादन में सूक्ष्मजीवों का बड़े पैमाने पर उपयोग किया जाता है। अम्लीय उत्पादकों के उदाहरण ऐस्परजिलस नाइगर (सिट्रिक अम्ल), एसीटोबैक्टर एसिटाइ (एसीटिक अम्ल), क्लोस्ट्रीडियम ब्यूटायलिकम (ब्युट्रिक अम्ल) तथा लैक्टोबैसिलम लैक्टिस (लैक्टिक अम्ल) आदि है।3.प्रतिजैविक (ऐंटीबॉयोटिक)- सूक्ष्मजीवों द्वारा प्रतिजैविकों (ऐंटीबॉयोटिक) का उत्पादन 20वीं शताब्दी की अत्यन्त ही महत्त्वपूर्ण खोज और मानव समाज के कल्याण के लिए एक बहुत बड़ी उपलब्धि मानी जाती है प्रतिजैविक (टॉयोटिक) एक प्रकार के रसायनिक पदार्थ है, जिनका निर्माण कुछ सूक्ष्मजीवों द्वारा होता है। यह रोग उत्पन्न करने वाले सूक्ष्मजीवियों की वृद्धि को मंद अथवा उन्हें मार सकते हैं। पैनीसीलिन सबसे पहला ऐटीबॉयोटिक है। जिसकी खोज अलेक्जेंडर फ्लेमिंग ने की। यह पैनीसीलियम नोटेटम नामक मोल्ड से उत्पन्न होता है।
5.किस भोजन (आहार) में लैक्टिक एसिड बैक्टीरिया मिलते हैं? इनके कुछ लाभप्रद उपयोगों का वर्णन करें।
उत्तर ⇒ सूक्ष्मजीव घरेलू खाद्य उत्पादों, जैसे-दही, मक्खन, पनीर, घी, ब्रेड आदि उत्पादित करने में विशिष्ट योगदान देते हैं, जिसे निम्न प्रकार से समझा जा सकता है
1.डेयरी में- दूध में स्ट्रेप्टोकोकस लैक्टिस एवं लैक्टोबैसिलस सैक्टिस -दूध नामक जीवाणु पाए जाते हैं। ये जीवाणु दूध में पाई जाने वाली लैक्टोस शर्करा का किण्वन कर लैक्टिक अम्ल बनाते हैं जिसके कारण दूध खट्टा हो जाता है। दूध को 15 सेकण्ड तक 71°C पर (अथवा 62.8°C पर 30 मिनट) गर्भ करके शीघ्रता से ठण्डा करने पर लैक्टिक अम्ल जीवाणुओं की संख्या कम हो जाती है परन्तु इन जीवाणुओं के सभी बीजाणु और कोशिकाएँ नष्ट नहीं होती और रोगजनक बीजाणुओं की मृत्यु हो जाती है। इस क्रिया को पाश्चुरीकरण कहते हैं। पाश्चुरीकृत दूध रखने पर खट्टा तो हो जाता हे, परन्तु उसके खट्टा होने में साधारण दूध से अधिक समय लगता है लैक्टिक अम्ल जीवाणु दूध में पाए जाने वाले केसीन नामक प्रोटीन की छोटी-छोटी बूँदों को एकत्रित करके दही जमाने में सहायता करते हैं। दही को मथने से मक्खन वसा की गोल बूंदों के रूप में निकलता है। मक्खन को गर्म करके घी तैयार किया जाता है।
दूध में पाए जाने वाले प्रोटीन केसीन के जमने पर उसे जीवाणुओं द्वारा किण्व किया जाता है जिससे झागदार, मुलायम व भिन्न स्वाद वाला पदार्थ पनीर बनता है। इस क्रिया में लैक्टोबैसिलस लैक्टिस तथा ल्यूकोनोस्टोक सिट्रोवोरम भाग लेते हैं। दूध को स्ट्रेप्टोकोकस थर्मोफिलस तथा लैक्टोबैसिलस वुल्गेरिकस के द्वारा 40-46 °C पर जमाकर बीस्ट द्वारा , आंशिक किण्वन कराया जाता है, पोषक पदार्थ योगर्ट (दही) प्राप्त होता है।
डेरी उद्योग में जीवाणु के अत्यधिक उपयोग के कारण इनके अध्ययन के लिए एक नई शाखा डेयरी जीवाणु-विज्ञान बनाई गई है। कुछ डेयरी पदार्थ एवं उनके बनने में भाग लेने वाले जीवाणु निम्नलिखित है
दही : स्ट्रोप्टोकोकस लैक्टिस, पनीर-लैक्टोबैसिलस लैक्टिस, मक्खन — स्ट्रेप्टोकोकस लैक्टिस तथा दही- लैक्टोबैसिलस वुल्गेरिकस ।
पनीर: कुछ कवक, जैसे— पेनिसिलयम रौकफोटी तथा पेनिसिलयम रौकफोटी, इत्यादि पनीर बनाने के काम आते हैं।2.डबलरोटी उद्योग में – कुछ यीस्ट, जैसे सैकेरामाइसीज सेरेविसी – डबलरोटी बनाने में काम आते हैं।
यीस्ट का उपयोग डबलरोटी बनाने में किया जाता है। गीले मैदे में यीस्ट कोशिकाएँ मिलाकर किण्वीकरण की क्रिया करायी जाती है। यीस्ट, स्टार्च को शर्करा में तथा शर्करा को जाइमेस विकर की सहायता से कार्बन डाई ऑक्साइड (CO2) व एथिल ऐल्कोहॉल (CH, OH) में परिवर्तित कर देती है। कार्बन डाइ ऑक्साइड छोटे-छोटे उभारों के रूप में बाहर निकलती है। इस मैदे को डबलरोटी के साँचों में भरकर गरम भट्टी में रख देते हैं जिससे डबलरोटी फूल जाती है तथा सरन्ध हो जाती है।
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6.सूक्ष्मजीव मानव कल्याण के लिए आवश्यक है। कैसे ? अथवा, मानव कल्याण में सूक्ष्मजीवों की भूमिका का वर्णन करें।
उत्तर ⇒ सूक्ष्म जीव मानव कल्याण के लिए आवश्यक है क्योंकि इसके द्वारा मानव जीवन के अनेक क्षेत्रों में उपयोगी व लाभकारी क्रियाकलाप द्वारा मानव कल्याण संभव होता है। अतः सूक्ष्मजीव मानव कल्याण के लिए आवश्यक है। ये क्षेत्र हैं—
(1) घरेलू उत्पादों में सूक्ष्मजीव की भूमिका- दूध से दही निर्माण लैक्टोबैसिलस जीवाणु द्वारा, दूध से योगर्ट निर्माण स्ट्रेप्टोकोकस सैक्टिस तथा पनीर निर्माण में स्ट्रेप्टोकोकस लैक्टिस का उपयोग होता है। इसके अलावे पावरोटी निर्माण, इडली, ताड़ी, सिरका आदि का निर्माण सूक्ष्मजीवों की सहायता से ही होता है।\
(ii) औद्योगिक क्षेत्र — इस क्षेत्र में अल्कोहलीय पेय निर्माण फफूँद की सहायता से, एंटीबायोटिक का निर्माण फफूँद एवं जीवाणु द्वारा कार्बनिक अम्ल, एंजाइम, विटामिन (B). B12) डेक्सटिंग, स्टीरॉइड एवं अमीनो अम्लों तथा स्टैरिन व साइक्लोस्पोरिन ए के निर्माण में भी कवक एवं जीवाणु की सहायता ली जाती है।
(iii) वाहित मलोपचार सूक्ष्मजीवों की सहायता से ही संभव है।
(iv) बायोगैस उत्पादन मीथैनोजेन जीवाणु की सहायता से संभव है।
(v) कृषि क्षेत्र में – कृषि उपज बढ़ाने के लिए खर-पतवारनाशी, नाशक जीवनाशी एवं रोगजनक नाशी का उपयोग जैविक कारक के रूप में जीवाणु, कीट एवं अन्य सूक्ष्म जंतुओं का उपयोग किया जा रहा है जिसके कारण मृदा प्रदूषण, भू-जल प्रदूषण एवं वायु प्रदूषण का नियंत्रण हो जाता है।
इसके अलावे रासायनिक उर्वरक की हानियों से मुक्ति के लिए आजकल जैव उर्वरक के रूप में सूक्ष्मजीवों जैसे राइजोबियम, एजोटोबैक्टर, क्लोस्ट्रिडियम, आदि जीवाणु, एजोस्पाइरिलम माइकोराइजा जैसे सहजीवी, नीलहरित शैवाल जैसे ऐनाबीना, साइटोनीमा आदि का उपयोग कर मृदा में नाइट्रोजनसहित अन्य पोषकों की आपूर्ति की जाती है। इस प्रकार हम देखते हैं कि मानव कल्याण में सूक्ष्म जीव अनेक तरीकों से मानव को लाभ पहुँच रहे हैं। अतः सूक्ष्मजीव मानव कल्याण के लिए आवश्यक है।
7.वाहित मल क्या है ? इनके उपचार की किसी एक विधि का संक्षेप में वर्णन करें।
उत्तर ⇒ वाहित मल जल द्वारा वाहित अपशिष्ट वाहित मल या जलमल कहा जाता है। इसमें मल विलयन या निलंबन रूप में हो सकता है । वाहित मल में 99% से अधिक जल होता है। मल के अन्तर्गत मानव विष्टा मूत्र, रसोईघर का गन्दा पानी तथा स्नान और धुलाई का गन्दा जल आदि शामिल है। प्रायः सभी बड़े शहरों की गंदगी बड़े-बड़े बंद नालों के सहारे नदियों में गिराई जाती है। वाहित मलजल के गिरने से जल में ऑक्सीजन की मात्रा कम हो जाती है और बायोकेमिकल ऑक्सीजन डिमांड (BOD) बहुत अधिक हो जाती है।
वाहित मल का उपचार— वाहित मल का उपचार बहुत खर्चीला होता है। इसके उपचार के कई सोपान है। पहले सोपान में बड़े तथा लंबित कणों को अलग कर लिया जाता है जिसके लिए भौतिक क्रियाओं जैसे—अवसादन, प्लवन, छानना आदि का सहारा लिया जाता है। दूसरे सोपान में सूक्ष्मजीवों का उपयोग कर कार्बनिक प्रदूषकों का अपघटन करवाया जाता है।
12th Biology Important Questions 2024
BSEB Intermediate Exam 2023 | ||
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Class 12th Biology – Objective | ||
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