Biology Important Question Answer Class 12th | BSEB Biology Question Answer 2024

Biology Important Question Answer Class 12th :- दोस्तों यदि आप class 12 biology board question paper 2024 की तैयारी कर रहे हैं तो यहां पर आपको 12th Biology Chapter 9 Long Question दिया गया है जो आपके class 12 biology board questions 2024 के लिए काफी महत्वपूर्ण है | class 12 biology pre board question paper 2024


Biology Important Question Answer Class 12th

1.पशु प्रजनन के लिए प्रयोग में लाई जाने वाली विधियों के नाम बताइए। आपके अनुसार कौन-सी विधि सर्वोत्तम है और क्यों ?

उत्तर ⇒ पशु प्रजनन के लिए निम्नलिखित विधियाँ आधुनिक समय में प्रयोग में लाई जा रही है

(i) अंत: प्रजनन (Inbreeding) एक ही प्रजातियों के समान, जन्तुओं में प्रजनन कराना अन्तः प्रजनन कहलाता है। इस प्रकार प्रजनन कराने से हमें शुद्ध नस्लें प्राप्त होती हैं। उदाहरण– मेरीनों भेड़ का प्रजनन । स्पेन में उत्तम ऊन उत्पन्न करने के लिए मेरीनों भेड़ में अन्तः प्रजनन 170 वर्ष तक किया गया। हिंसरडैल भेड़ की एक नई नस्ल जिसका विकास पंजाब में बीकानेरी एैवीज (भेड़) तथा मेरीनो रेम्स के बीच संगम कराने से हुआ।

(ii) संकरण (Hybridisation) यदि हमें नवीन तथा उत्तम पशुओं की आवश्यकता होती है, तो हमें क्रॉस ब्रीडिंग (cross breeding) संकरण का सहारा लेना पड़ता है। उदाहरण- खच्चर तथा हिन्दी ।

(iii) कृत्रिम निषेचन (Artificial Insemination) कृत्रिम निषेचन भारत में सर्वप्रथम 1944 में भारतीय पशु अनुसंधान संस्थान, इज्जतनगर में किया गया था। इस विधि में अच्छी नस्ल के नर पशुओं से शुक्राणु एकत्रित करके मादा के गर्भाशय में स्थानांतरित किए जाते हैं और इस प्रकार उत्तम पशु प्राप्त किए जाते हैं । इस विधि में विदेशों से भी शुक्राणु मँगाकर कृत्रिम निषेचन कराया जाता है। इनके अतिरिक्त संकरों के सफल उत्पादन में सुधार लाने के लिए अन्य विधियों का भी प्रयोग किया जाता है। मल्टीपिल औवियूलेशन, ऐम्ब्रयो ट्रांसफर (भ्रूण अंतरण) तकनीक गौ पशुओं में सुधार का एक कार्यक्रम है। यह विधि गौ पशु, भेड़, खरगोश, भैंस, घोड़ी आदि में प्रदर्शित की जा चुकी है।

                                कृत्रिम वीर्य सेचन ( Artificial Insemination) हमारे विचार में सबसे अच्छी (सर्वोत्तम) पशु प्रजनन विधि है। इस विधि द्वारा अधिकतर महत्त्वपूर्ण प्रजातियाँ पैदा होती हैं। यह विधि गाय, भैंस, कुक्कुट, भेड़, घोड़े, खच्चर तथा बकरी आदि के गुणों को सुधारने के लिए प्रयुक्त की जाती है।


2.सूक्ष्मप्रवर्धन द्वारा पादपों के उत्पादन के मुख्य लाभ क्या हैं?

उत्तर ⇒ऊतक संवर्धन द्वारा कृषि, उद्यान तथा वानिकी के लिए उपयुक्त पादप सामग्री के त्वरित गुणन को सूक्ष्म प्रवर्धन कहते हैं। सूक्ष्म प्रवर्धन द्वारा पादपों के उत्पादन के मुख्य लाभ इस प्रकार हैं

 (i) बहु प्ररोहिका उत्पादन (Multiple shootlet production)— प्ररोह शिखाम को संवर्धित करके, किसी विलक्षण पौधे या संकर की अनेक प्रतिकृतियाँ प्राप्त की जा सकती है। विशिष्ट उपचारों के फलस्वरूप कैलस के बजाए अनेक कलिकाएँ बनती है, जिन्हें उगाकर प्ररोह प्राप्त किए जा सकते हैं, जिनमें हॉर्मोनों की सहायता से जड़ों के निर्माण को प्रेरित कर सकते हैं। आलू, इलायची, केला क्रिसेन्थिमम आदि के प्रवर्धन में इससे काफी सहायता मिली है।

(ii) कायिक भ्रूण विकास (Somatic embryogenesis) – कायिक भ्रूण या एम्बयोडस (embryoids) वे भ्रूण हैं जो ऊतक संवर्धन में कायिक कोशिकाओं से विकसित होते हैं। ये उन सभी प्रावस्थाओं में से गुजरते हैं, जिनमें से लैंगिक जनन के फलस्वरूप उत्पन्न भ्रूण गुजरते हैं। थोड़े-से संवर्धन माध्यम में गाजर के हजारों एम्बयोडस प्राप्त किए जा सकते हैं, जिनसे पौधे विकसित किए जा सकते हैं।

(iii) रोग–मुक्त पौधों के उत्पादन में (Production of disease-free plants)- कायिक प्रवर्धन करने वाले पौधों में रोगाणु विषाणुओं का संचरण आसानी से प्रदर्थ्यो (propagules) द्वारा होता है। ऐसा पाया गया है कि रोगग्रस्त पौधे के प्ररोह शीर्ष के विभज्योतक की कोशिकाओं में रोगाणु नहीं होते। इन कोशिकाओं के संवर्धन से आलू, गन्ना, स्ट्राबेरी इत्यादि अनेक पौधों को रोगमुक्त अवस्था में प्राप्त किया जाता है।

(iv) पुंजनिक अगुणित पौधों की प्राप्ति (Production of androgenic haploids) – अगुणित पौधों का पादप प्रजनन कार्यक्रमों में काफी महत्त्व है। आप जानते हैं कि शुद्ध (समजात) पौधों को प्राप्त करना अति कठिन काम है। कई पीढ़ियों तक स्वपरागण कराना पड़ता है । परन्तु ऊतक संवर्धन द्वारा यह काफी सरल हो गया है। प्रत्येक परागकोष में कई हजार अगुणित कोशिकाएँ (परागकण) होती है। इनको संवर्धित करके, इनसे अगुणित पौधे प्राप्त किए जाते हैं। कोलचिसिन की सहायता से इनके गुणसूत्रों को दुगुना करके समजात द्विगुणित पौधे भी प्राप्त किए जा सकते हैं। इस प्रकार समजात विभेदों की प्राप्ति के लिए लम्बे समय तक प्रतीक्षा नहीं करनी पड़ती। सर्वप्रथम गुहा एवं माहेश्वरी (Guha and Maheshwari, 1965) ने Datura inoxia के पंजनिक अगुणित पौधे प्राप्त किए थे।

(v) भ्रूण रक्षा (Embryo rescue ) — अन्तजातीय संकरण के फलस्वरूप उत्पन्न भ्रूण की प्रायः मृत्यु हो जाती है तथा बीज बेकार हो जाता है। नव उत्पन्न भ्रूण को निकालकर उसे संवर्धित होने से बचाया जा सकता है।

 (vi) उत्परिवर्तनों का प्रेरण चयन (Induction and selection of mutants)- कोशिकाओं को तरल संवर्धन माध्यम में उगाकर अच्छी तरह हिलाया जाता है ताकि कोशिकाएँ माध्यम में निलंबित हो जाए। तत्पश्चात् इन कोशिकाओं की विभिन्न पैट्रीडिशों में ऐसे संवर्धन माध्यम पर स्थानांतरित कर देते हैं, जिनमें उत्परिवर्तक प्रेरक रसायन हो। प्राप्त उत्परिवर्तक में से लाभदायक विभेदकों को चुन लिया जाता है। इसी प्रकार माध्यम में अपतॄणनाशक, लवण आदि डालने से सभी कोशिकाओं की मृत्यु हो जाएगी। केवल वे ही बच पायेगी जो इनका प्रतिरोध कर सकती हैं। उनसे पौधे की रोधी किस्में विकसित की जा सकती हैं।

(vii) जीवद्रव्यक संलयन (Protoplast fusion ) – इस विधि से ऐसे पौधों के संकर तैयार किए जा सकते हैं, जिनके बीच लैंगिक प्रजनन संभव नहीं है।

पौधों की कोशिकाओं से एंजाइम की सहायता से कोशिका भित्ति हटा दी जाती है तथा जीवद्रव्यक को संवर्धन माध्यम में उगाया जाता है। इससे पूर्व कि कोशिका भित्ति पुनः बने, दोनों जातियों तथा उपजातियों के जीवद्रव्यकों को पॉलिइथाइलीन ग्लाइकोल (PEG) अथवा अन्य उपयुक्त पदार्थों की सहायता से संलयन करा दिया जाता है। इन संकर जीव द्रव्यकों को संवर्धित करके उनसे संकर पौधे प्राप्त किए जाते हैं। आलू तथा टमाटर का संकर पोटोमेटो इसका अच्छा उदाहरण है।


3.निम्नलिखित की अधिकतम शब्दों में व्याख्या कीजिए:

(क) एकल कोशिका प्रोटीन

(ख) जैवपेटेंट

(ग) जैवयुद्ध

(घ) जैव नैतिकता

(ङ) जैव दस्युता

(च) आनुवंशिकता रूपांतरित खाद्य

उत्तर ⇒ (क) एकल कोशिका प्रोटीन—विभिन्न सूक्ष्मजीवों जैसे बैक्टीरिया, यीस्ट, नीलहरित शैवाल आदि की कोशिकाओं को कई प्रकार से उपयोग किया जाता है। इन्हें खाने के काम भी लाया जाता है ऐसे भोज्य पदार्थ को एकल कोशिका प्रोटीन कहते है। चूँकि यह सूक्ष्मजीव जैवभार प्रोटीन समृद्ध किंतु कम वसा वाले होते हैं, जो मानव स्वास्थ्य के लिए महत्वपूर्ण है। इसके उत्पादन के लिए औद्योगिक बहियावी का उपयोग करने से पर्यावरण के प्रदूषण में कमी होगी।

(ख) जैवपेटेंट- जैविक कारको तथा उनसे प्राप्त उत्पादों का पेटेंट जैवपेटेंट कहलाता है। जैवपेटेंट निम्नलिखित के लिए दिए जाते है

(i) सूक्ष्मजीवों के विभेद

(ii) कोशिका क्रम

(iii) पौधों एवं जंतुओं के आनुवंशिकतः रूपांतरित विभेद

(iv) DNA क्रमों

(v) DNA क्रमों द्वारा कोडित प्रोटीनों

(vi) विविध बायोटेक्नोलॉजीय प्रक्रियाएँ

(vii) उत्पादन प्रक्रियाएँ

(viii) उत्पाद एवं

(ix) उत्पादों के अनुप्रयोग

(ग) जैवयुद्ध- मानव, जंतुओं तथा फसलों के विरुद्ध जैविक शस्त्रों का उपयोग जैविक युद्ध कहलाता है। रोगजनकों को जैविक हथियार के रूप में प्रयोग किया जाता है जो ऐंथैक्स, चेचक तथा बाँचुलिनम जैसे आविष फैलाते हैं।

सितंबर 2001 के बाद पत्रों के माध्यम से अमेरिका के विश्व व्यापार  केन्द्र पर ऐथेक्स के विषाणु का हमला किया जा चुका है। इन जैव अस्त्रों का प्रयोग काफी सुविधाजनक तथा सस्ता होता है।

(घ) जैव नैतिकता- ऐसे मानकों का समूह जिनके आधार पर जैविक संसार के साथ हमारे व्यवहार का नियमन किया जा सकता है, जैव नैतिकता कहलाता है। बायोटेक्नोलॉजी को अप्राकृतिक से लेकर ‘जैविक विविधता के लिए हानिकारक’ आदि कहा गया है।

(ङ) जैव दस्युता- किसी राष्ट्र के व्यक्ति/समूह/संस्था द्वारा किसी अन्य राष्ट्र के जैविक संसाधनों तथा उससे संबंधित परंपरागत ज्ञान को बिना इस राष्ट्र की सहमति के दोहन किया जाना जैव दस्युता कहलाता है।

(च) आनुवंशिकता रूपांरित खाद्य- आनुवंशिकता रूपांतरित फसलों के उत्पादों से बनाए गए खाद्य आनुवंशिकता रूपांतरित खाद्य कहे जाते हैं। यह खाद्य परंपरागत प्रजनन द्वारा विकसित किस्मों से बने खाद्यों से निम्नलिखित बातों में भिन्न होते है

(i) इसमें उस एंटीबायोटिक रोधिता जीन, जिनका उपयोग आनुवंशिक इंजीनियरी के दौरान किया गया था, द्वारा उत्पादित एंजाइम उपस्थित होता है।

(ii) इसमें संबंधित पारजीन जैसे कीटरोधी किस्मों में जीन cry Acry उत्पादित प्रोटीन उपस्थित होता है।

(iii) इसमें एंटीबायोटिक रोधिता जीन स्वयं उपस्थित रहता है।

class 12 biology pre board question paper


4.रोगरोधिता के लिए प्रजनन के दौरान किन बातों का ध्यान रखा जाता है तथा यह किन कारकों पर निर्भर होता है, संक्षिप्त वर्णन करें।

उत्तर ⇒पौधों में रोग बैक्टीरिया, वायरस, कवक एवं सूत्रकृमियों द्वारा उत्पन्न किया जाता है। जैसे अरहर में फ्यूजेरियम ऊडम नामक कवक, गन्ने में स्युडोमानास, ट्युबिलीनिएस नामक बैक्टीरिया, तंबाकू में तंबाकू मोजैक वायरस तथा टमाटर में मेला ऐडोगाइना इकाग्नीता नामक सूत्रकृमि द्वारा रोग उत्पन्न किए जाते हैं। इन्हें रोजगनक तथा पौधों को पोषी कहा जाता है।

किसी पौधे में रोग का विकास निम्नलिखित कारकों पर निर्भर होता है

(i) पोषी का जीन प्ररूप

(ii) रोगजनक का जीन प्ररूप एवं

(iii) वातावरण

रोगजनकों का जीन प्ररूप समय के साथ बदलता रहता है, जिससे प्रजनको को काफी समस्याएँ होती है। कुछ पोषी जीन प्ररूप दिए गए रोगजनक विभेद को रोग उत्पन्न करने से रोकते हैं ऐसे जीन प्ररूप रोधी कहे जाते हैं। इसी क्षमता को विकसित कर रोगरोधी पौधे का प्रजनन कराया जाता है। रोगरोधिता प्रजनन की सफलता मुख्यतया दो कारकों पर निर्भर करती है

 (1) रोधिता का उत्तम स्रोत एवं (2) विश्वसनीय रोग परीक्षण | परीक्षण में पौधों को उन दशाओं में उगाया जाता है जिनमें रोगरोधी क्षमता न होने पर रोग के लक्षण उत्पन्न हो जाए। इस प्रकार रोगरोधी पौधों की स्पष्ट पहचान कर उनका वरण कर लिया जाता है। रोगरोधी किस्में रोग नियंत्रण की सबसे सस्ती एवं सुरक्षित विधि है। ये कई रोगों जैसे— गेहूँ के कीट, वायरस आदि हेतु एकमात्र विश्वसनीय उपाय है। रोगरोधी किस्में रोगों के नियंत्रण के लिए डिजाइन किए गए सभी पैकेजों का एक महत्त्वपूर्ण घटक होते हैं।


5.फसलों की उन्नत किस्मों के विकास की प्रक्रिया के विभिन्न चरणों का संक्षिप्त वर्णन कीजिए।

उत्तर ⇒फसलों की उन्नत किस्मों के विकास में निम्न चरण होते

(i) आनुवंशिक विविधता का उत्पादन,

(ii) वरण,

(iii) मूल्यांकन एवं किस्म के रूप में विमोचन तथा

(iv) बीज गुणन एवं किसानों में वितरण ।

जीनी विविधता का निर्माण कई विधियों द्वारा किया जाता है

 (i) घरेलूकरण, (ii) बहुगुणित, (ii) जर्मप्लाज्म एकत्रीकरण, (iv) उत्परिवर्तन, (v) पादप पुनःस्थापन, (vi) संकरण तथा (vii) जीन प्रौद्योगिकी ।

नए विकसित शुद्धवंशक्रमों, उन्नत समष्टियों एवं संकरों की उपज, गुणवत्ता, रोग एवं कीट-रोधिता आदि के लिए विस्तृत मूल्यांकन किया जाता है। इसके बाद ही उनका नई किस्मों के रूप में विमोचन किया जाता है।

प्रत्येक नए शुद्धवंशक्रमों आदि का मूल्यांकन किसी एक कृषि जलवायु क्षेत्र में भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद् (ICAR), नई दिल्ली के तत्वाधान में किया जाता है।

अंत में ब्रीडर इसके विमोचन हेतु प्रस्ताव रखता है जो एक सक्षम समिति के पास विचार हेतु प्रेषित की जाती है। इसे एक नाम दिया जाता है और नई किस्म के रूप में विमोचित कर दिया जाता है।

नई किस्म के बीज का उत्पादन अब वितरण हेतु किया जाता है। ऐसे बीज के पैकेटों को प्रमाणित बीज कहा जाता है तथा उन पर परीक्षण तिथि बीज की शुद्धता तथा मूल्य अंकित होता है।


6.पशु प्रजनन क्या है ? पशु प्रजनन की हमें क्यों आवश्यकता है ? कृत्रिम वीर्यसेचन द्वारा प्राप्त पशु प्रजनन की विभिन्न नस्लों का वर्णन कीजिए।

उत्तर ⇒पशु प्रजनन- प्रजनन का अर्थ है पुनरुत्पाद। वांछित गुणों वाले | पशुओं को पाने के लिए, पशुओं के मामले में प्रजनन किया जाता है। वांछित गुणों वाले दो प्राणियों को जनकों के तौर पर चुना जाता है। फिर पशुओं की नई प्रजातियाँ पाने के लिए इनका संकर किया जाता है। उदाहरण के लिए कम दूध देने वाली गाय की प्रजाति का संकरण कर हमें अधिक दूध देने वाली गाय की प्रजातियाँ मिल सकती है।

कृत्रिम वीर्यसेचन, प्रजनन का एक महत्वपूर्ण और प्रभावी तरीका है। इस प्रक्रम में अधिक दूध देने वाली प्रजाति के वांछित नर के शुक्र का मादा के जननक्षेत्र में अंतःक्षेपण किया जाता है। यह ज्यादातर महत्त्वपूर्ण प्रजातियाँ पैदा करता है और गाय, भैंस, कुक्कुट, घोड़े और बकरी के गुणों को सुधारने के लिए काफी प्रयुक्त होता है।

गाय की महत्वपूर्ण प्रजातियाँ – भारत में राष्ट्रीय डेयरी अनुसंधान संस्थान, करनाल, हरियाणा में गायों की उन्नत प्रजातियाँ विकसित की गई हैं। कुछ उदाहरण हैं करन स्विस (भूरी स्विस और सहिवाल का संकरण) करन फ्राइज (थापरकर और होल्सटीन फ्रीसियन का संकरण)

फ्रीसवाल—  होल्सटीन—फ्रीसियन और सहिवाल का संकरण) पिछले दो दशकों में पशुपालन की उन्नत पद्धति के फलस्वरूप डेयरी पशुओं, कुक्कुटों और सुअरों की नई प्रजातियों का विकास हुआ है। इससे हमारे देश में दूध, अंडे और माँस का उत्पादन काफी हद तक बढ़ा है।

दूध एक संपूर्ण आहार है। दूध का हमारे देश में कोई अभाव नहीं है वर्धित दुग्ध उत्पादन का श्रेय डॉ. वी. कुरियन को जाता है। राष्ट्रीय डेयरी विकास बोर्ड, संस्था ने ‘ऑपरेशन फ्लड’ अर्थात् वह कार्यक्रम जिसने ‘श्वेत क्रांति’ या देश में डेयरी उत्पादों की आत्मनिर्भरता को बढ़ाने की परिकल्पना और कार्यान्वयन का कार्य किया है। डॉ. कुरियन इसके संस्थापक अध्यक्ष थे।

class 12 biology board questions 2024


7.विभिन्न प्रकार के जंतु रोगों तथा उनकी नियंत्रण विधियों का संक्षिप्त वर्णन कीजिए।

उत्तर ⇒ जंतुओं में विभिन्न रोगाणुजनकों द्वारा रोग उत्पन्न किए जाते हैं, जैसे-बैक्टीरिया, कवक, प्रोटोजोआ, सूत्रकृमि, वायरस आदि । (क) बैक्टीरियाई रोग— ऐथेक्स, थनैला, निमोनिया आदि। ऐथेक्स, वैसिलस ऐथेसिस के कारण उत्पन्न होता है। संसर्ग रोग गायों, घोड़ों, भेड़ों एवं बकरियों को होता है। मानव को भी हो सकता है।

लक्षण— अति तीव्र मामलों में निम्न लक्षण प्रकट होते हैं—

 (i) उच्च श्वसन दर

(ii) मुँह, नाक और गुदा द्वारा रक्त-मिश्रित झाग जैसा स्राव कम एवं धीमे संक्रमणों में निम्न लक्षण प्रकट होते हैं

(a) उच्च ज्वर 41.1°C तक

(b) श्वसन दर में वृद्धि

(c) काले चमकदार, झागदार नाव। नियंत्रण— (i) स्वस्थ पशुओं का टीकाकरण |

(ii) रोगी पशु के संपर्क में आने पर प्रतिसीरम देना चाहिए।

(ख) वायरसी रोग— रिडरपेस्ट, खुरपका, चेचक आदि  प्रमुख हैं।

 रिडरपेस्ट में निम्न लक्षण प्रकट होते है

(i) भूख में कमी, (ii) 40°C से 42.2°C तक बुखार, (iii) कब्ज (iv)कड़ा तथा रक्तयुक्त मल ।

नियंत्रण संक्रामक रोगों के रोकथाम के सभी उपायों को अपनाना (ग) परजीवी जंतुओं द्वारा उत्पन्न रोग परजीवी दो प्रकार के होते है

(i) वाह्य परजीवी- किलनी

(ii) अंतः परजीवी— गोल कृमि, फीता कृमि आदि ।

एस्केरिस अंतःपरजीवी सूत्रकृमि है जिसके लार्वा मुँह द्वारा संदूषित खाने के साथ शरीर में प्रवेश करता है और फिर आंतों से यकृत, फेफड़े, तिल्ली आदि में प्रवेश करता है अब तक लार्वा व्यस्क नर एवं मादा में परिवर्धित हो चुका होता है। वयस्क आंतों में घाव कर रक्त चूसते हैं और रक्ताल्यता, दस्त, कब्ज आदि लक्षण प्रकट करते हैं।

नियंत्रण — पिपरैक्स, पिपराजीन एडिपेट, वमैक्स आदि प्रभावशाली दवाओं से उपचार किया जाता है।

(घ) प्रोटोजोआ द्वारा उत्पन्न रोग- किलनी ज्वर कॉक्सिडियता आदि प्रमुख रोग है। किलनी जवर बैवीसिया की कई जातियों द्वारा उत्पन्न किया जाता है। भारत में बैबीमिना बाइजेमिना इसका प्रमुख रोजगनक है।

 लक्षण:

(i) तीव्र बुखार 41.1 से 41.7°C तक

(ii) कम भूख,

(iii) कब्ज और फिर दस्त ।

 उपचार-

 (i) ट्राइपैन ब्लू एकैप्रिन या बेरेनिल का इंजेक्शन रोगी को दिया जाता है।

(ii) कीटनाशियों का उपयोग।


8.प्रजनन प्रयोग से आप क्या समझते है ? इसकी मदद से रोग प्रतिरोधक किस्म का विकास हम कैसे कर सकते है?

उत्तर ⇒वह कार्यक्रम जिसमें रोग कारक एवं नाशीजीव रोधक, उच्च उत्पादक एवं खेती के लिए अत्यंत ही उपयुक्त फसल किस्मों की पादप जातियों के मैनुपुलेशन द्वारा प्राप्त किया जाता हो, पादप जनन कार्यक्रम (प्रजनन प्रयोग) कहलाता है। इस कार्यक्रम द्वारा रोगरोधी किस्मों का विकास निम्न चरणों में किया जाता है—

(i) प्रतिरोधी पोषक लाइन का चुनाव इसके लिए किसी फसल के उपलब्ध सभी किस्में पुराने व स्थानीय किस्मे वन्य किस्में एवं शुद्ध किस्मों में बाँटा गया है एवं इन्हीं में से विभिन्न रोगों के लिए प्रतिरोधी पादपों को अलग कर लिया जाता है।

(ii) अनवमनचाहे रोग प्रतिरोधी पादपों के बीच आपस में संकरण द्वारा सभी रोगों के प्रतिरोधी पादपों का विकास किया जाता है। इसके अलावे परिवर्तन द्वारा बीज तैयार कर उसे लगाकर उनमें रोग प्रतिरोधी की पहचान कर उसे छोड़कर उससे रोगरोधी बीज प्राप्त कर लिया जाता है। सोमाक्लोनल विभिन्नता, आनुवांशिकता, इंजीनियरिंग, गुणसूत्री उत्परिवर्तन द्वारा भी रोगरोधी किस्म प्राप्त किया जाता है। इस विधि से प्राप्त बीजों को लगातार तीन जेनेरेशनों तक जाँच करने के बाद किसानों के लिए मुक्त कर दिया जाता है।


class 12 bio question answer 2024

9.डेयरी फार्म में दुध उत्पादन में मात्रा बढ़ाने तथा उसके गुणवत्ता सुधारने के क्या-क्या उपाए है

उत्तर ⇒दुग्धशाला व्यवस्था डेयरी, दुग्ध व दुग्ध उत्पादों से सम्बन्धित होती है। दुधाला वाले जन्तुओं में मुख्यतः गाय, भैंस आती है जो दूध प्राप्त करने के लिए पाली जाती है। दुग्धशाला ऐसा स्थान है जो दूध उत्पादन के लिए दुधारू जंतुओं को पालने व जनन कराने के लिए होता है। दुग्ध उद्योग दुग्धशाला की व्यवस्था दूध वाले जंतुओं को रखकर, दूध को निकाल कर व विभिन्न दुग्ध उत्पादों को बना कर की जाती है। दुग्धशाला तकनीक में दुग्धशाला जन्तुओं को पालने, व्यवस्थित करने व जनन कराने के लिए, दूध के संचय एवं बढ़ोत्तरी के लिए तथा विभिन्न दूध के उत्पादों को बनाने के लिए वैज्ञानिक यंत्र व विधियों का प्रयोग किया जाता है। दूध उत्पादन बढ़ाने के लिए पशु प्रजनन प्रक्रिया अपनाई जाती है। इसमें निम्नांकित चरण सम्मिलित है-

जाति का चयन- दूध की प्राप्ति मुख्यतः जाति के चयन पर आधारित होती है। यह उच्च उत्पादन वाली, रोग से प्रतिरोधी व क्षेत्र की जलवायु दशाओं से अनुकूलित होती है।

चौपाया का रहने का स्थान- यह विस्तृत फैला हुआ छतदार होना चाहिए लेकिन बालू सीमेन्ट युक्त फर्श के साथ वायुदार होना चाहिए जिससे सूत्र वह सके व गोवर को निकाला जा सके।

ग्रूमिंग- चौपाया को नियमित रूप से दाँत की सफाई, मालिश व साफ  रखना चाहिए। नियमित रूप से ग्रूमिंग चौपाया को स्वस्थ्य रखती है।

स्वस्थ्य आयोग्यकर – पशुओं के रहने के स्थल दृढ़ता से स्वास्थ्य विधियों की देखभाल की आवश्यकता होती है। पशुओं व उसकी देखरेख करने वाले की स्वस्थता मुख्य रूप में दूध दुहने, दूध व दूध के उत्पादों के भण्डारण व संवहन के दौरान महत्त्वपूर्ण होती है। यंत्रीकरण ने स्वस्थता को बनाये रखने में सुधार किया है।

स्वास्थ्य सुरक्षा— पशुओं वाले डॉक्टर को समय-समय पर पशुओं के रहने के स्थान की जाँच करनी चाहिए। बीमार एवं दुर्बल जन्तुओं को पृथक् करने उनकी देखभाल करनी चाहिए। टीकाकरण व उचित चिकित्सीय उपचार करना चाहिए।


10.सूक्ष्म प्रजनन से आप क्या समझते हैं ? सूक्ष्म प्रजनन के विधियों को लिखें।

उत्तर ⇒सूक्ष्म परिवर्द्धन एक प्रकार का उत्तक संवर्धन तकनीक है। इसका उपयोग ओरनामेटल पादप एवं फल वृक्षों के तीव्र कायिक गुणन के लिए किया जाता है। इसके लिए उस पादप का छोटा भाग जिसे एक्सप्लांट कहा जाता है, का उपयोग किया जाता है। इस विधि से एक पादप से अनेक पादप प्राप्त किया जाता है। सभी प्राप्त पादप अपने जनक से आनुवांशिक रूप से समान होता है। ऐसे पादप को सोमाक्लोन कहते हैं। यह निम्नांकित चरणों में पूर्ण होता है

(i) संवर्धन का प्रारंभ इसमें पादप के घर (प्ररोह) भाग से प्राप्त एक्सप्लॉट के एक रिजर्व भाग को अनुकूल पोषक माध्यम में रखा जाता है।

(ii) प्ररोह निर्माण अब इस एक्सप्लांट से अनेक प्ररोह उत्पन्न होते हैं।

(iii) प्ररोह का रूटिंग प्ररोह को अब रूटिंग करने के बाद उसे खेत में स्थानांतरित किया जाता है।

लाभ- यह पादपों की तीव्र गुणन में मदद करता है एवं इस विधि द्वारा आनुवांशिक रूप से अल्प समय में व्यस्क पादप प्राप्त किया जा सकता है। इससे असमय में भी पादप उगाए जा सकते हैं। यह नपुंसक पादपों के जनन की एक सर्वोत्तम विधि है। यह एक आसान एवं कम खर्चीली विधि है।


11.मत्स्य पालन क्या है ? भोजन की गुणवत्ता सुधार में इसकी भूमिका बतायें।

उत्तर ⇒ मत्स्यपालन (Pisciculture) मत्स्यपालन या मछलीपालन का अर्थ है मछलियों, शैल मछलियों एवं अन्य जलीय जन्तुओं का वैज्ञानिक ढंग से तालाबों, टैंकों आदि में पालन करना तथा उनमें जनन कराना क्योंकि इसमें अनेक जलीय जन्तुओं का एक साथ ही पालन किया जाता है। अतः इसे जल संवर्धन भी कहते है। अन्य जलीय जीव जैसे—झींगा केकड़ा, लोवस्टर खाद्य शक्ति आदि का भी संवर्धन किया जाता है।

भोजन की गुणवत्ता सुधार में मत्स्यपालन की भूमिका—मछली जन्तु प्रोटीन का उत्तम एवं सस्ता स्रोत है। अन्य प्रकार के माँस की तुलना में मछली का माँस अधिक लाभकारी है, क्योंकि इसमें अधिक प्रोटीन (13-20%) तथा कम वसा होती है। मछली में विटामिन A एवं D होता है और आयोडीन की उपयुक्त मात्रा होती है। ये पदार्थ हमारे मानसिक, शारीरिक एवं लैंगिक विकास के लिए आवश्यक है। इसके अतिरिक्त यह आसानी से पचने वाला होता है।

Biology Important Question Answer 2024


 BSEB Intermediate Exam 2024
 1Hindi 100 MarksClick Here
 2English 100 MarksClick Here
 3Physics Click Here
 4ChemistryClick Here
 5BiologyClick Here
 6MathClick Here
Class 12th Biology – Objective 
1जीवधारियों में जननClick Here
2पुष्पी पादपों में लैंगिक प्रजननClick Here
3मानव प्रजननClick Here
4जनन स्वास्थ्यClick Here
5वंशागति और विभिन्नता के सिद्धांतClick Here
6वंशागति का आणविक आधारClick Here
7विकासClick Here
8मानव स्वास्थ्य एवं रोगClick Here
9खाद उत्पादन बढ़ाने के लिए उपायClick Here
10मानव कल्याण में सूक्ष्मजीवClick Here
11जैव प्रौद्योगिकी के सिद्धांत एवं प्रक्रिया हैClick Here
12जैव प्रौद्योगिकी एवं इसके अनुप्रयोगClick Here
13जीव एवं समष्टियाClick Here
14परिस्थितिक तंत्रClick Here
15जैव विविधता एवं संरक्षणClick Here
16पर्यावरण मुद्देClick Here

Leave a Comment