12th Biology Subjective Questions And Answers in Hindi :- दोस्तों यदि आप 12th Biology Question With Answers की तैयारी कर रहे हैं तो यहां पर आपको 12th Biology Chapter 14 Subjective Question दिया गया है जो आपके 12th biology ncert Subjective के लिए काफी महत्वपूर्ण है |
12th Biology Subjective Questions 2024
1.तालाब क्या है? किसी तालाब के पारिस्थिति अवयवों का वर्णन करें
उत्तर ⇒ तालाब स्वच्छ एवं स्थिर जलीय पारितंत्र है जिसमें जलीय जीवों एवं जलीय अजैविक घटकों के बीच पारम्परिक क्रियाएँ होती रहती है।
तालाब पारिस्थितिक तंत्र का निर्माण निम्नलिखित घटकों से होता है
(1) अजैव घटक : इसे निम्नांकित भागों में बाँटा जा सकता है—
(i) भौतिक घटक: जैसे, सौर प्रकाश, सौर ऊष्मा तापक्रम, वायु, की गति आदि
(ii) रासायनिक घटक: जैसे—जल में घुली गैस जैसे (O2. CO2), घुले खनिज (कैल्शियम, फॉस्फोरस) आदि । जल में घुले नेत्रजन, (अमीनो अम्ल, ह्यूमिक अम्ल आदि) ।
(2) जैविक घटक : तालाब पारिस्थितिक तंत्र के निम्नांकित जैविक घटक है
(i) उत्पादक : ये प्रकाश संलेषी स्वपोशी पादप है। जैसे-शैवाल रूपी पादप प्लाकटोन, एजोला हाइडिला पीटेमोजिटॉन, कारा, यूलोथिक्स, , पॉलवाक्स, स्पाइरोगायरा, डाइएटम, साल बिनिया, लेमला बोल्फिया, , पिस्टिया निम्फिया, टायफा आदि। ये सभी उत्पादक उपभोक्ता के लिए भोजन प्रदान करते ही हैं साथ ही साथ ये जल में 02 एवं CO2 की सान्द्रता में संतुलन बनाए भी रखती है।
(ii) उपभोक्ता: ये विषमपोषी होलोजोइक जीव है जो उत्पादक पर प्रत्यक्ष अथवा परोक्ष रूप से भोजन के लिए निर्भर करता है। इन्हें निम्नांकित समूहों में विभक्त किया जा सकता है—
(क) प्राथमिक उपभोक्ता— ये अपना भोजन सीधे उत्पादक से प्राप्त करता है। जेसे युग्लिना, कोलेप्स बान्कियानस, आदि शैवालहारी एवं कुछ शाकाहारी मछलियाँ ।
(ख) द्वितीयक उपभोक्ता— ये अपना भोजन प्राथमिक उपभोक्ता से प्राप्त करता है। ये हैं-मांसाहारी मछलियाँ, बीटल आदि।
(ग) तृतीयक उपभोक्ता— ये अपना भोजन प्रायः द्वितीयक उपभोक्ता से प्राप्त करता है। जैसे—बड़ी मछलियाँ ।
(iii) अपघटक— ये तालाब में मृत शरीर या उसमें उपस्थित जीवों के नष्ट हो रहे शरीर के अपघटन से अपना भोजन प्राप्त करता है। ये हैं— जीवाणु एवं फफूँद ।
तालाब पारिस्थितिक तंत्र में ऊर्जा का प्रवाह उत्पादक—उपभोक्ता – अपघटक की रूप में होती है जो एक-दूसरे से भोजन श्रृंखला द्वारा आपस में जुड़ा होता है।
2. किसी भौगोलिक क्षेत्र में जाति क्षति के मुख्य कारण क्या हैं
उत्तर ⇒ जातीय विलोपन की बढ़ती हुई दर जिसका विश्व सामना कर. रहा है वह मुख्य रूप से मानव क्रियाकलापों के कारण है। इसके चार. मुख्य कारण हैं
(क) आवासीय क्षति तथा विखंडन- यह जंतु व पौधे के विलुप्तीकरण इसका मुख्य कारण है। उष्ण कटिबंधीय वर्षा वनों से होने वाली आवासीय क्षति का सबसे अच्छा उदाहरण है। एक समय वर्षा वन पृथ्वी के 14 प्रतिशत क्षेत्र में फैले थे, लेकिन अब 6 प्रतिशत से अधिक क्षेत्र में नहीं है। ये बहुत तेजी से नष्ट हो रहे हैं। विशाल अमेजन वर्षा वन, (जिसे विशाल होने के कारण पृथ्वी का फेफड़ा कहा जाता है) इसमें संभवतः करोड़ों जातियाँ (स्पीशीज) निवास करती है। इस वन को सोयाबीन की खेती तथा जानवरों के चरागाहों के लिए काटकर साफ कर दिया गया है। संपूर्ण आवासीय क्षति के अलावा प्रदूषण के कारण भी आवास में खंडन (कैग्मैटेशन) हुआ है, जिससे बहुत सी जातियों के जीवन को खतरा उत्पन्न हुआ है। जब मानव क्रियाकलापों द्वारा बड़े आवासों को छोटे-छोटे खंडों में विभक्त कर दिया जाता है तब जिन स्तनधारियों और पक्षियों को अधिक आवास चाहिए तथा प्रवासी (माइग्रेटरी) स्वभाव वाले कुछ प्राणी बुरी तरह प्रभावित होते हैं जिससे समष्टि (पॉपुलेशन) में कमी होती है।
(ख) अतिदोहन — मानव हमेशा भोजन तथा आवास के लिए प्रकृति पर निर्भर रहा है, लेकिन जब ‘आवश्यकता’, ‘लालच’ में बदल जाती है। तब इस प्राकृतिक संपदा का अधिक दोहन (ओवर एक्सप्लाइटेशन) शुरू हो जाता है। मानव द्वारा अतिदोहन से पिछले 500 वर्षों में बहुत सौ जातियाँ (स्टीलर समुद्री गाय, पैसेंजर कबूतर) विलुप्त हुई है। आज बहुत सारी समुद्री मछलियों आदि की जनसंख्या शिकार के कारण कम होती जा रही है जिसके कारण व्यावसायिक महत्व की जातियाँ खतरे में हैं।
(ग) विदेशी- जातियों का आक्रमण जब बाहरी जातियों अनजाने में या जानबूझकर किसी भी उद्देश्य से एक क्षेत्र में लाई जाती है तब उनमें से कुछ आक्रामक होकर स्थानिक जातियों में कमी या उनकी विलुप्ति का कारण बन जाती है। जैसे जब नील नदी की मछली (नाइल (पर्व) को पूर्वी अफ्रीका की विक्टोरिया झील में डाला गया तब झील में रहने वाली पारिस्थितिक रूप से बेजोड़ सिचलिड मछलियों की 200 से अधिक जातियाँ विलुप्त हो गई। आप गाजर घास (पाथेनियम), लैटाना और हायसिथ (आइसकार्निया) जैसी आक्रामक खरपतवार जातियों से पर्यावरण को होने वाली क्षति और हमारी देशज जातियों के लिए पैदा हुए खतरे से अच्छी तरह से परिचित है। मत्स्य पालन के उद्देश्य से अफ्रीकन कैटफिश कलैरियस गैरीपाइनस मछली को हमारी नदियों में लाया गया, लेकिन अब ये मछली हमारी नदियों की मूल अशल्कमीन (कैटफिश जातियों) के लिए खतरा पैदा कर रही हैं।
(घ) सहविलुप्तता- जब एक जाति विलुप्त होती है तब उस पर आधारित दूसरी जंतु व पादप जातियाँ भी विलुप्त होने लगती है। जब एक परपोषी मत्स्य जाति विलुप्त होती है तब उसके विशिष्ट परजीवियों का भी वही भविष्य होता है। दूसरा उदाहरण विकसित (कोइवाल्वड) परागकारी (पॉलिनेटर) सहोपकारिता (म्यूआलिज्म) का है जहाँ एक (पादप) के विलोपन से दूसरे (कीट) का विलोपन भी निश्चित रूप से होता है।
3. पारितंत्र के कार्यों के लिए जैव विविधता कैसे उपयोगी है ?
उत्तर ⇒ डेविड टिलमैन द्वारा प्रयोगशाला के बाहर के भूखंडों पर लंबे समय तक पारितंत्र पर किए गए प्रयोग इस विषय में कुछ प्रारंभिक उत्तर देते हैं। टिलमैन ने पाया कि उन भूखंडों ने जिन पर अधिक जातियाँ थीं, साल दर साल कुछ जैवभार में कम विभिन्नता पाई। उन्होंने अपने प्रयोगों द्वारा यह भी बताया कि विविधता में वृद्धि से उत्पादकता बढ़ती है। समृद्ध जैव विविधता केवल अच्छे पारितंत्र के लिए ही आवश्यक नहीं है, बल्कि इस ग्रह पर मानव जीवन को जीवित रखने के लिए भी आवश्यक है। प्रकृति द्वारा प्रदान की गई जैव विविधता की अनेक पारितंत्र सेवाओं में मुख्य भूमिका है। वन पृथ्वी के वायुमंडल को लगभग 20% ऑक्सीजन प्रकाश-संश्लेषण द्वारा प्रदान करते हैं, परागण जिसके बिना पौधे फल तथा बीज नहीं दे सकते, पारितंत्र की दूसरी सेवा है जो कि कीट-पतंगों द्वारा मुफ्त दी जाती है। प्रकृति हमें अप्रत्यक्ष सौंदर्य प्रदान करती है। पारितंत्र पर्यावरण को शुद्ध बनाता है, पीड़कों को, आधुनिक वातावरण और बाढ़ आदि को नियंत्रित करने में हमारी मदद करता है। सामान्यतः किसी क्षेत्र की जैव विविधता की हानि होने से
(1) पादप उत्पादकता घट जाती है।
(2) पर्यावरणीय समस्याओं जैसे सूखा आदि के प्रति प्रतिरोध (रेजिस्टेंस) में कमी आती है।
(3) कुछ पारितंत्र की प्रक्रियाओं जैसे—पादप उत्पादकता, जल उपयोग, पीड़क और रोग चक्कों की परिवर्तनशीलता बढ़ जाती है।
12th Biology Question With Answers
4.निम्न पर संक्षिप्त टिप्पणियाँ लिखिए:
(क) बाह्य स्थाने (ex-situ) संरक्षण
(ख) जैव विविधता के तप्त स्थल
(ग) जैव निचय
(घ) सुरक्षित क्षेत्र
(ङ) आई. यू. सी. एन. की लाल आँकड़े पुस्तिका
उत्तर ⇒ (क) बाह्य-स्थाने संरक्षण— बाह्य संरक्षण में निम्न तरीके अपनाए जाते है—
(i) बीज जीन बैंक की स्थापना द्वारा वन्य एवं खेतीय पौधों के जर्मप्लाज्म को कम तापमान तथा शीत प्रकोष्ठों में संग्रहित करने की विधि को अपनाना ।
(ii) वनस्पति उद्यानों, चिड़ियाघरों की स्थापना इनमें अति संरक्षित प्रजनन सुविधाएँ उपलब्ध हों।
(iii) फसली पौधों के वन्य संबंधियों के संरक्षण एवं फसल की किस्मों या सूक्ष्मजीवों के संवर्धन का संरक्षण करना ।
(ख) जैव विविधता के तप्त स्थल – विश्व में क्षेत्र विशेष में जीवों की अत्यधिक विविधता को तप्त स्थल कहा जाता है। तप्त स्थल का. निर्धारण करने के लिए मूल कसौटी है—
(i) विशेष क्षेत्रिकता— पादप स्थानिकता तप्त स्थल की प्राथमिक कसौटी है।
(ii) संकट की मात्रा जिसे आवास के ह्रास के परिपेक्ष में मापा जाता है। विश्व में 25 तप्त स्थलों की पहचान की गई है। इनमें से दो भारत के पश्चिमी घाट और पूर्वी हिमालय है। वैश्विक विविधता का 8% भारत में पाया जाता है। तप्त स्थल ही समृद्धतम एवं सर्वाधिक संकटग्रस्त भंडार है। विश्व भर में जैव विविधता के संरक्षण हेतु स्थलीय तप्त स्थलों की पहचान की गई है। जिनका चित्र निम्नांकित है—
(1) उष्णकटिबंधीय एंडेस, (2) मीजोअमेरिकाना (3) सेरीवियन, (4) ब्राजील अटलांटिक वन, (5) चोको डेरीयन-पश्चिमी एकुआडोर, (6) ब्राजील सिरेडो, (7) मध्य दिल्ली (8) केलीफोर्निया पुष्पोत्पादक क्षेत्र, (9) , मेडागास्कर, (10) तंजानिया केन्या की पूर्वी आर्क कटिबंधीय वन (11) पश्चिम अफ्रीकी वन (12) कैप पुष्पोत्पादक क्षेत्र, (13) सरस कारू, (14) भूमध्य कुंड, (15) कोकासस (16) सोंड क्षेत्र, (17) वालासियां, (18) फिलीपाइंस, (19) इंडो-वर्मा, (20) दक्षिण मध्य चीन (21) पश्चिम घाट, (22) दक्षिण पश्चिम ऑस्ट्रेलिया, (23) न्यू केलीडोनिया, (24) न्यूजीलैंड, (25) पोलीनेशिया – माइक्रोनेशिया ।
(ग) जैव निचय – जैवमंडल रिजर्व की संकल्पना युनेस्को द्वारा 1975 में चालू की गई। भारत में 13 जैवमंडल निंचय है। एक जैव-मंडल निचय में (i) कोड, (ii) बफर एवं (iii) पारगमन क्षेत्र होते हैं।
(i) क्रोड- आविद एवं विधिक रूप से रक्षित पारितंत्र
(ii) बफर- प्रबंधन संसाधन उपयोग की नीतियों की वृहत विभिन्नता को समाहित करने हेतु रक्षित क्षेत्र इसमें शोध तथा शैक्षणिक गतिविधियाँ होती हैं। ।
(iii) पारगमन- क्षेत्र प्रबंधन तथा स्थानीय लोगों के बीच निर्वहनीय सामाजिक आर्थिक विकास के उच्चतम के लिए सक्रिय सहयोग क्षेत्र ।
जैव निचय के प्रमुख कार्य
(i) पारितंत्रों, जातियों का संरक्षण सुनिश्चित करना,
(ii) आर्थिक विकास को प्रोत्साहन तथा
(iii) वैज्ञानिक शोधक मॉनीटरिंग एवं शिक्षा
(घ) सुरक्षित क्षेत्र स्थल एवं समुद्र के ऐसे क्षेत्र जो जैविक विविधता की तथा प्राकृतिक एवं संबंध सांस्कृतिक स्रोतों की सुरक्षा एवं निर्वहन के लिए विशेष रूप से समर्पित है। सुरक्षित क्षेत्रों में उदाहरण राष्ट्रीय उद्यान एवं वन्य जीवाश्रम स्थल है। विश्व संरक्षण बोधन केंद्र ने पूरे विश्व में 37,000 सुरक्षित क्षेत्रों की पहचान की है।
भारत में 581 क्षेत्र सुरक्षित हैं जिनमें 89 उद्यान एवं 492 वन्य जीवाश्रम स्थल है। उत्तराखंड स्थित जिम कॉर्बेट राष्ट्रीय उद्यान भारत में स्थापित पहला राष्ट्रीय उद्यान है।
(ङ) आई. यू. सी. एन. की लाल आँकड़े पुस्तिका — ऐसे वर्गों की सूची जो विलुप्त होने के कगार पर है। इन संकटग्रस्त वर्गों को निम्न श्रेणियों में बाँटा गया है—
संकटग्रस्त श्रेणी | स्पष्टता |
विलुप्त (Extinct) | जाति के अंतिम सदस्य की समाप्ति (मृत्यु) पर जब कोई शंका न रहे |
वन्यरूप में विलुप्त (Extinct in the wild ) | जाति के सभी सदस्यों का किसी निश्चित आवास से पूर्ण रूप से समाप्ति |
गंभीर रूप से संकटग्रस्त | जब जाति के सभी सदस्य किसी उच्च जोखिम की वजह से एक आवास में शीघ्र ही लुप्त होने की कगार पर हो। |
नष्ट होने योग्य (Endangered) | जाति के सदस्य किसी जोखिम की वजह से भविष्य में लुप्त होने की कगार पर हो। |
नाजुक (Vulnerable) | जाति के आने वाले समय में समाप्त होने की आशा । |
कम जोखिम (Lower risk) | जाति जो समाप्त होने जैसी प्रतीत होती हो । |
अपूर्ण सामग्री (Deficient data) | जाति लुप्त होने के बारे में अपूर्ण अध्ययन एवं सामग्री । |
मूल्यांकित नहीं (Not evaluated) | जाति एवं उसके लुप्त होने के बारे में कोई भी अध्ययन या सामग्री का न होना। |
5.संरक्षण से आप क्या समझते हैं? जैविक स्रोतों के संरक्षण के तरीकों का वर्णन करें। अथवा, स्वस्थाने संरक्षण युक्तियों का वर्णन करें।
उत्तर ⇒जैव विविधता का प्रबन्धन परिक्षण एवं पुनः पूर्व स्थिति को प्राप्त किया जाना ही संरक्षण है। जैव स्रोतों का संरक्षण आवश्यक है क्योंकि यह चिंताग्रस्त हो गई है। सम्बन्धित जातियों का अति दोहन, जलवायु परिवर्तन, आवासीय खण्डीभवन व प्रदूषण के कारण जीवन जोखिम में पड़ गया है।
स्वस्थाने संरक्षण युक्तियाँ – इसके अन्तर्गत सुरक्षा, परिरक्षण एवं चिंताग्रस्त जातियों के पुनः स्थापन एवं प्राकृतिक आवास की परिस्थितियों में पारितंत्रों की देखरेख की जाती है। इनमें बाह्य प्रजातियों के खतरे के प्रति, शिकारियों एवं दोहनकर्ताओं के प्रति जागरूकता बरतने का कार्य भी किया जाता है। ये दो प्रकार की होती है। तृप्त स्थल व सुरक्षित क्षेत्र ।
(i) तप्त स्थल- ये उच्च विशिष्ट क्षेत्रों व जाति समृद्धता बहुत उच्चस्तर वाले क्षेत्र होते हैं। वैश्विक रूप से कुल 34 तप्त स्थल पहचाने जा चुके हैं, यहाँ जातियों की संख्या बहुत उच्च होती है। इसमें प्रयोग से बचना ही श्रेष्ठकर युक्ति है।
(ii) सुरक्षित क्षेत्र-ये वे जैव भू-भौगोलिक क्षेत्र है जो भू-भाग या समुद्री क्षेत्र द्वारा निर्दिष्ट किये जाते है। जहाँ जैव विविधता प्राकृतिक एवं सहयोगी सांस्कृतिक सम्पदाओं की देख-रेख एवं सुरक्षा की जाती है। इनके दोहन एवं नष्ट किये जाने हेतु कानूनी एवं अन्य प्रभावी तरीके अपनाए जाते हैं। तीन प्रकार के सुरक्षित क्षेत्र पाये जाते हैं। जीवमण्डल निचय को राष्ट्रीय पार्क भी कहा जाता है।
प्राणी विहार – ये भूमि के क्षेत्र होते हैं जिनमें झील भी हो सकती है। इसमें प्राणियों को आवासीय विक्षुब्धन एवं सभी प्रकार के दोहन या शोषण से मुक्त रखा जाता है। इनमें निजी क्षेत्रों को भी अनुमति दी जाती है। लघु वन्य उत्पादों के संग्रह, लकड़ी एवं काष्ठ का प्राप्त किया जाना, भूमि की जुताई करना आदि की अनुमति भी प्रदान की जाती है किन्तु यह इस शर्त पर दी जाती है कि ये जन्तुओं के लाभकारी क्षेत्रों में दखल नहीं देंगे।
जीवमण्डल निचय- ये वृहत् भूमि क्षेत्र होते हैं जिनमें भूमि विविध प्रकार की क्रियाओं जैसे आनुवंशिक विविधता वन्य जीव सुरक्षा, पारितंत्र के प्रतिनिधि के रूप में आदिवासी जातियों के परम्परागत आवास क्षेत्र, विभिन्न प्रकार के पौधों एवं जन्तु जातियों की संपदाओं के संरक्षण हेतु उपयोग में लाई जाती है। ये यूनेस्को द्वारा 1975 में चलाये गये कार्यक्रम के अनुरूप MAB प्रोग्राम के अन्तर्गत स्थापित किये गये हैं। जैसे—नीलगिरि, सुन्दरवन मन्नार की खाड़ी एवं नन्दा देवी।
6.जैव-विविधता से आप क्या समझते हैं? इसका पारितंत्र में क्या महत्त्व है? जैव विविधता की क्षति के मुख्य कारणों पर प्रकाश डालें ।
उत्तर ⇒ जैव विविधता का शाब्दिक अर्थ है जैविक संगठन के प्रत्येक स्तर पर पाई जाने वाली विविधता दूसरे शब्दों में विभिन्न प्रकार के जीवों जैसे पादपों, जन्तुओं एवं सूक्ष्मजीवों में पाई जाने वाली विविधता एवं उनके जीन में पाई जाने वाली विविधता को हम जैव विविधता कहते हैं। जैव विविधता के तीन घटक होते हैं आनुवंशिक विविधता, जातीय विविधता एवं परिस्थितिकीय विविधता। एक जाति आनुवंशिक स्तर पर उतने वितरण क्षेत्र में विविधता दर्शा सकती है। भारतवर्ष में 50 हजार से अधिक आनुवंशिक रूप से भिन्न धान होते हैं। जाति स्तर की भिन्नता जातीय विविधता कहलाती है जबकि पारितंत्र स्तर पर भिन्नता पारिस्थितिकीय विविधता कहलाती है।
पृथ्वी की समृद्ध जैव विविधता मानव जीवन के लिए प्राणाधार है। जिस समुदाय में अधिक जातियाँ होती है, वह पारितंत्र कम जाति वाले ‘समुदाय से अधिक स्थिर रहता है। एक स्थिर जैव समुदाय की उत्पादकता में साल दर साल अधिक अंतर नहीं होना चाहिए। पॉल एहर लिक के विरोट पोपर परिकल्पना से यह साबित हो चुका है कि किसी भी पारितंत्र की मुख्य जातियों के विलुप्त होने से उस पारितंत्र की स्थिरता प्रभावित होती है।
जैव विविधता की क्षति के मुख्य कारण निम्न है
(i) आवासीय क्षति तथा विखण्डन- मानव क्रियाकलापों के कारण उष्ण कटिबन्धीय वर्षा वनों में तेजी से कमी आ रही है जिससे उनमें वास करने वाली असंख्य जातियाँ विलुप्त हो रही है। प्रदूषण के बढ़ते प्रभाव से जैव आवास खण्डित हो रहा है जिससे जातियाँ नष्ट हो रही है।
(ii) अतिदोहन – मानव के लालच का प्रतिफल अतिदोहन है। अपनी आकांक्षाओं की पूर्ति हेतु मनुष्य प्राकृतिक सम्पदाओं का अति दोहन कर रहा है जिससे व्यावसायिक महत्त्व की कई प्रजातियाँ लुप्त हो गई है अथवा विलुप्त होने के कगार पर है।
(iii) विदेशी जातियों का आक्रमण– किसी भी पारितंत्र में अनजाने में अथवा जानबूझ कर किसी विदेशी जाति के समायोजन से, स्थानिक जातियाँ बुरी तरह प्रभावित होनी है तथा विदेशी जातियों का आक्रमण उनमें विलुप्त होने का मुख्य कारण है ।
(iv) सह विलुप्तता— जब एक जाति विलुप्त होती है तब उस पर आधारित दूसरी जन्तु एवं पादप जातियाँ भी विलुप्त होने लगती है। सहोपभारिता द्वारा जीवनयापन करने वाले एक पादप के विलोपन से दूसरे कीट का विलोपन भी निश्चित रूप से होता है।
12th biology ncert Subjective 2024
7.जैव विविधता के संरक्षण की आवश्यकता क्यों है? विस्तारपूर्वक लिखें।
उत्तर ⇒ कुछ लोगों का तर्क है कि सर्वश्रेष्ठ और अस्तित्व के लिए सबसे अधिक उपयुक्त होने के कारण, अन्य प्राणियों पर प्रभुत्व बनाए रखना तथा अपने कल्याण के लिए प्रकृति का दोहन करना मनुष्य जाति का प्राकृतिक अधिकार है। ऐसा विचार प्रकृति और वन्य जीवन के लिए ही नहीं, वरन् स्वयं मनुष्य के लिए भी घोर अनर्थकारी है। जैव विविधता के खतरे एवं संरक्षण की आवश्यकता को निम्न भागों में समझाया जा सकता है-
1.प्रकृति और जीवमण्डल का स्थायित्व- अपनी विविध जीवात् और अजीवात् पारिस्थितिक पुनर्निवेशन नियंत्रण प्रक्रियाओं के कारण, प्रकृति स्वयं में एक बहुत ही संतुलित जीवन आधी तंत्र है और मनुष्य इसी तंत्र का एक अंश है। अतः इसका संरक्षण और इसे प्रदूषणमुक्त रखना स्वयं मनुष्य के अस्तित्व के लिए नितान्त आवश्यक है। एक छोटे से दृष्टांत से इस तथ्य को समझा जा सकता है— यदि हम सर्पों का व्यापक विनाश कर दें तो चूहों की आबादी इतनी बढ़ जाएगी कि ये हमारी सारी फसलों को खाकर नष्ट कर देंगे
2.नैतिक महत्त्व — पृथ्वी की वर्तमान वन्य जीवन सम्पदा लगभग 3.7 अरब वर्ष के जैव उद्विवास का परिणाम है। इसमें एक बार विकसित जाति का दुबारा विकास असम्भव है। अतः एक बार नष्ट हो जाने वाली जीव जाति सदा के लिए समाप्त या विलुप्त हो जाती है। अतः मनुष्य के लिए किसी जाति को नष्ट करना घोर अनैतिकता तथा समस्त जीव-जातियों का संरक्षण करना मौलिक कर्त्तव्य है ।
3.ऐतिहासिक और शैक्षिक महत्त्व देश- विदेश में पुरातन चित्रों, मूर्तियों, प्रतिमाओं, बरतनों, सिक्कों, पुस्तकों, परिधानों, शस्त्रों, औजारों आदि को बड़े जतन से एकत्रित करके संग्रहालयों में संरक्षित रखा जाता है। ऐसे संग्रहालय निःसंदेह ज्ञानवर्द्धक होते हैं। इसी प्रकार, प्रकृति भी जीव जातियों का एक संग्रहालय ही है जो जैव उद्विवास की कहानी को सँजाए हुए है। इसीलिए, प्रकृति की संरक्षण भी ऐतिहासिक और शैक्षिक दृष्टि से महत्त्वपूर्ण है।
4.जीनी बैंक- खेतिहर पादपों और पालतू पशुओं की नई-नई उन्नत प्रजातियों के जीनी संवर्धन के लिए लाभदायक जौन वैज्ञानिकों को बहुधा इन पादपों और पशुओं से मिलती-जुलती जंगली जातियों से प्राप्त होते हैं। उदाहरणार्थ- कुछ वर्ष पूर्व, एक हानिकारक कीट—निलापर्वत लूगेंस ने हमारी चावल की खेती को संकटग्रस्त कर दिया, क्योंकि चावल की लगभग सभी प्रजातियाँ इस कीट से प्रभावित होने लगीं। अंतर्राष्ट्रीय छानबीन से फिर पता चला कि केरला की कुछ पुरानी प्रजातियाँ, एक प्रतिरोधक जीन की उपस्थिति के कारण इस कोट से प्रभावित नहीं होती। इस जीन को फिर चावल की आधुनिक प्रजातियों में प्रवष्टि किया गया।
5.वैज्ञानिक महत्त्व- जीव विज्ञान और चिकित्सा विज्ञान की प्रगति के लिए मेढकों, चूहों, सफेद चूहों (गिनी पिग), शशकों, बन्दरों, सर्पों आदि कई प्रकार के वन्य प्राणियों पर प्रायोगिक परीक्षण करना आवश्यक होता है।
6.सौन्दर्यबोधी एवं सांस्कृतिक महत्त्व वन्य- जीवन मनमोहक होता है। इसका सौन्दर्य और गौरव देखने योग्य और प्रशंसनीय होते है, न कि बाधित और नष्ट करने योग्य। इसके अवलोकन से हमें शान्ति और उल्लास की अनुभूति होती है। चित्रकारों, कवियों, मूर्तिकारों, लेखकों आदि के लिए इसका गौरव प्रेरणादायक होता है।
7.आर्थिक महत्त्व वन्य- जीवन का मनुष्य के लिए व्यापक आर्थिक महत्त्व होता है। चमड़ा, ऊन, फर, हाथीदाँत, मांस, अण्डे, चर्बी, तेल, हड्डियाँ, सुगंधित द्रव्य, कामोत्तेजक तथा अन्य औषधियाँ, जलाऊ और इमारती काष्ठ, जंगली फूल और फल, जड़ी-बूटियाँ, शहद, मोम, चपड़ा राल आदि अनेक लाभदायक वस्तुएँ हमें वन्य जीवों से प्राप्त होती हैं क्योंकि वन्य जीवों में इन वस्तुओं के स्रोतों का प्राकृतिक नवीनीकरण होता रहता है, हम इन वस्तुओं के लिए प्रकृति का लगातार दोहन कर सकते हैं, बशर्ते कि यह दोहन नवीनीकरण की दर से अधिक न हो।
उपरोक्त प्रत्यक्ष लाभों के अतिरिक्त, वन्य जीवों से हमें कुछ अप्रत्यक्ष लाभ भी होते है। उदाहरणार्थ — अनेक कीट और पक्षी खेतिहर और उद्यान पौधों में परागण करते हैं, कुछ पक्षी और स्तनी बीजों का दूर-दूर छितराव करते हैं, और कुछ सर्कसों तथा चिड़ियाघरों में हमारा मनोरंजन करते हैं। सभी हरे पादप वायु में CO2 ग्रहण करके बदले में वायु में O, मुक्त करके वायुमण्डल की शुद्धि करते हैं। जंगलों के पादप वर्षा के जल को बह जाने से रोकते हैं। इससे मुद्रा की उर्वरता बनी रहती है तथा भूमिगत जल संचित होता रहता है।
8.अज्ञात महत्त्व – हम कभी भी पूर्णतया नहीं जान सकते कि बीहड़ अर्थात् अरण्य में कितना मानव-कल्याण छिपा है। उदाहरणार्थ- पेरू देश के सिनकोना वृक्ष की छाल में क्विनीन की उपस्थिति का या पेनिसिलियम के प्रतिजैविक गुणों का पता न चलता तो गम्भीर संक्रामक रोग मनुष्य कर व्यापक विनाश करते।
12th Biology Subjective Questions 2024
Class 12th Biology – Objective | ||
1 | जीवधारियों में जनन | Click Here |
2 | पुष्पी पादपों में लैंगिक प्रजनन | Click Here |
3 | मानव प्रजनन | Click Here |
4 | जनन स्वास्थ्य | Click Here |
5 | वंशागति और विभिन्नता के सिद्धांत | Click Here |
6 | वंशागति का आणविक आधार | Click Here |
7 | विकास | Click Here |
8 | मानव स्वास्थ्य एवं रोग | Click Here |
9 | खाद उत्पादन बढ़ाने के लिए उपाय | Click Here |
10 | मानव कल्याण में सूक्ष्मजीव | Click Here |
11 | जैव प्रौद्योगिकी के सिद्धांत एवं प्रक्रिया है | Click Here |
12 | जैव प्रौद्योगिकी एवं इसके अनुप्रयोग | Click Here |
13 | जीव एवं समष्टिया | Click Here |
14 | परिस्थितिक तंत्र | Click Here |
15 | जैव विविधता एवं संरक्षण | Click Here |
16 | पर्यावरण मुद्दे | Click Here |
BSEB Intermediate Exam 2024 | ||
1 | Hindi 100 Marks | Click Here |
2 | English 100 Marks | Click Here |
3 | Physics | Click Here |
4 | Chemistry | Click Here |
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6 | Math | Click Here |