Biology Questions Chapter Wise Class 12th | Bihar Board 12th Biology Question Paper 2024

Biology Questions Chapter Wise Class 12th :-  दोस्तों यदि आप Bihar Board 12th Biology Question Paper 2024 की तैयारी कर रहे हैं तो यहां पर आपको Class 12 Biology Chapter 16 Subjective दिया गया है जो आपके12th biology revision exam question paper के लिए काफी महत्वपूर्ण है |


Biology Questions Chapter Wise Class 12th

1.वैश्विक उष्णता में वृद्धि के कारणों और प्रभावों की चर्चा करें। वैश्विक उष्णता वृद्धि को नियंत्रित करने वाले उपाय क्या है ?

उत्तर ⇒ वैश्विक उष्णता में वृद्धि के निम्नलिखित कारण हैं

(1) जीवाश्म ईंधनों का प्रयोग, वृक्षोन्मूलन तथा भूमि प्रयोग में परिवर्तन के कारण CO2 के प्रतिशत में वृद्धि ।

 (2) ग्रीन हाउस गैसों के स्तर में वृद्धि के कारण पृथ्वी की सतह के ताप का बढ़ जाना ।

(3) मानव जनसंख्या में वृद्धि के कारण से वनों का कटना ।

वैश्विक उष्णता के प्रभाव :

(1) CO2 की सांद्रता में वृद्धि से प्रकाश संश्लेषण की दर में वृद्धि होगी जिससे स्टोमेटा के परिवहन क्षमता में कमी आती है।

(2) भूमंडलीय औसत तापक्रम में वृद्धि से ध्रुवीय बर्फ पिघलेगी जो बाढ़ को लाएगी। कुछ निम्न भूमि पानी में डूब जाएगी।

(3) तापक्रम में परिवर्तन से बहुत-सी जातियाँ ध्रुव की ओर स्थानांतरित हो जाएगी ताप संवेदी वृक्षों की बड़ी संख्या लुप्त हो जाएगी और उनका स्थान छोटी झाड़ियाँ ले लेंगी

(4) तापक्रम में वृद्धि अनेक पादप रोग तथा रोगवाहकों को जन्म देंगे तथा खरपतवार में वृद्धि होगी। इस प्रकार कुल उत्पादन कम हो जाएगा। वैश्विक उष्णता वृद्धि को नियंत्रित करने वाले उपाय : हम लोग विश्वव्यापी उष्णता को निम्नलिखित उपायों द्वारा नियंत्रित कर सकते है

(1) जीवाश्म ईंधन के प्रयोग को कम करके

(2) ऊर्जा दक्षता में सुधार करके

(3) वनोन्मूलन को कम करके

(4) वृक्षारोपण और मनुष्य की बढ़ती हुई जनसंख्या को कम करके तथा

अंतर्राष्ट्रीय प्रयास करके ।

(5) वायुमंडल में ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन को कम करने के लिए हम वैश्विक उष्णता वृद्धि को कुछ सीमा तक नियंत्रित कर सकते हैं।


2.निम्नलिखित पर आलोचनात्मक टिप्पणी लिखें :

(क) सुपोषण (यूट्रोफिकेशन)

(ख) जैव आवर्धन (बायो मैग्निफिकेशन)

(ग) भौमजल (भूजल) का अवक्षय और इसकी पुनर्पूर्ति के तरीके। |

उत्तर ⇒ (क) सुपोषण (यूट्रोफिकेशन) — सुपोषण झील का प्राकृतिक काल प्रभावन दर्शाता है, यानी झील अधिक उम्र की हो जाती है। यह इसके जल की जैव समृद्धि के कारण होता है। जलवायु, झील का आकार और अन्य कारकों के अनुसार झील का यह प्राकृतिक काल प्रभावन हजारों वर्षो में होता है। लेकिन मनुष्य के क्रियाकलाप, जैसे उद्योगों और घरों के बहिःसावकाल प्रभावन में मूलतः तेजी ला सकते हैं। इस प्रक्रिया को त्वरित सुपोषण कहा जाता है। गत शताब्दी में पृथ्वी के कई भागों की झील का वाहितमल और कृषि तथा औद्योगिक अवशिष्ट के कारण तीव्र सुपोषण हुआ है। इसके मुख्य संदूषक नाइट्रेट और फॉस्फोरस है जो

पौधों के लिए पोषक का कार्य करते हैं। इनके कारण शैवाल की वृद्धि अति उद्दीपित होती है जिसके कारण से अरमणीक मलफेन (स्कम) बनते हैं तथा अरुचिकर गंध निकलती है। ऐसा होने से जल में विलीन ऑक्सीजन जो अन्य जल जीवों के लिए अनिवार्य (वाइटल) है, समाप्त हो जाती है। साथ ही झील में बहकर आने वाले अन्य प्रदूषक संपूर्ण मत्स्य समष्टि को विषाक्त कर सकते है। जिनके अपघटन के अवशेष से जल में विलीन ऑक्सीजन की मात्रा और कम हो जाती है। इस प्रकार झील वास्तव में घुटकर मर सकती है।

(ख) जैव आवर्धन (बायो मैग्निफिकेशन) – उद्योगों के अपशिष्ट जल में प्रायः विद्यमान कुछ विषैले पदार्थों में जलीय खाद्य श्रृंखला जैव आवर्धन कर सकती है। जैव आवर्धन का अर्थ है, क्रमिक पोषण स्तर पर अविषाक्त की सांद्रता में वृद्धि का होना। इसका कारण है जीव द्वारा संग्रहित आविषालु पदार्थ उपापचयित या उत्सर्जित नहीं हो सकता और इस प्रकार यह अगले उच्चतर पोषण स्तर पर पहुँच जाता है। यह परिघटना पारा एवं डीडीटी के लिए सुविदित है।

इस प्रकार क्रमिक पोषण स्तरों पर डीडीटी की सांद्रता बढ़ जाती है। यदि जल में यह सांद्रता 0.003 पीपीबी (ppb= पार्ट्स पर बिलियन) से शुरू होती है तो अंत में जैव आवर्धन के द्वारा मत्स्यभीक्षी पक्षियों में बढ़कर 25 पीपीएम हो जाती है। पक्षियों में डीडीटी की उच्च सांद्रता कैल्सियम उपापचय को नुकसान पहुँचाती है जिसके कारण अंड-कवच पतला हो जाता है और यह समय से पहले फट जाता है जिसके कारण पक्षी समष्टि की संख्या में कमी हो जाती है।

(ग) भीमजल (भूजल) का अवक्षय और इसकी पुनर्मूर्ति के तरीके—पानी नवीकरणीय स्रोत है फिर भी यह आवश्यक हो गया है कि हम इसकी पुनर्पूर्ति करें। भौमजल (भूजल) का स्तर सिंचाई के कारण दिन पर दिन गिरता जा रहा है।

एक बड़े शहर में लाखों लोग रहते हैं जो कि 100 या 200 वर्ग किमी के क्षेत्र को घेरे हुए हैं। उन लाखों लोगों तक पीने के स्वच्छ पानी की आपूर्ति करना बहुत ही मुश्किल कार्य हो गया है। इसका कारण यह है कि उस क्षेत्र में भूजल का स्तर बहुत ही नीचे गिर चुका है। भूजल के स्तर में गिरावट का कारण है तालाबों में औद्योगिक अपशिष्ट पदार्थों का जम जाना, कम वर्षा होना, वनों का समाप्त होना आदि । भूजल के अवक्षय की पुनपूर्ति निम्न उपायों द्वारा की जा सकती है— जिन क्षेत्रों में भूजल का स्तर गिर चुका है उन स्थानों पर विभिन्न प्रकार की फसलें उगानी चाहिए जिनमें कम पानी का प्रयोग होता हो, हम अपने दैनिक कार्यों के लिए कम से कम पानी का प्रयोग करें, वर्षा के पानी को एकत्रित करके उसका प्रयोग करें और वर्षा के पानी को मृदा में रिसने दें। गड्ढों के रिसाव की जाँच करे, औद्योगिक अपशिष्टों के कारण तालाबों में इकट्ठे हो चुके मलबे की सफाई करें जिनसे पानी का रिसाव मृदा में जा सके।


3. पर्यावरणीय प्रदूषण को रोकने के लिए एक व्यक्ति के रूप में आप क्या उपाय करेंगे ?

उत्तर ⇒ निम्नलिखित उपायों द्वारा हम पर्यावरणीय प्रदूषण पर नियंत्रण पा सकते है

(1) ऐसे ईंधन या कच्चे माल का चुनाव करना चाहिए जो कम प्रदूषण पैदा करता हो ।

(2) उत्पादन की ऐसी प्रक्रिया या क्रियाकलाप का चुनाव करना चाहिए, जिससे कम प्रदूषण पैदा होता है।

(3) फिल्टर, थैलियाँ तथा स्थिर विद्युतिकी अवक्षेपकों, जैसे—कार्य कुशल प्रदूषण नियंत्रण उपकरणों की स्थापना करनी चाहिए जो निलंबित कणिकीय पदार्थ को नियंत्रण में रख सकें।

(4) गैस प्रदूषण के लिए परिवर्तक के अवशोषण टॉवर का प्रयोग करना चाहिए।

(5) प्रदूषकों को पर्याप्त ऊँचाई पर छोड़ना चाहिए, जहाँ से हवा के कारण वे तनुं हो सके।

(6) औद्योगिक क्षेत्रों के चारों तरफ वनस्पति लगाई जाए।

(7) वनों का संरक्षण करना चाहिए।

(8) वृक्षों के बिना कारण काटने पर प्रतिबंध लगना चाहिए ।

(9) पुनः वृक्षारोपण करना चाहिए।

(10) पीड़क, कीटनाशकों को कम से कम प्रयोग करना चाहिए। जैव  नियंत्रण विधि अपनानी चाहिए।

(11) मृदा अपरदन रोकने के लिए पास, छोटे पौधे तथा वृक्ष उगाने चाहिए।

(12) ठोस पदार्थों को गलाकर या चक्रीकरण द्वारा नवीन वस्तुएँ बनानी चाहिए।

(13) शोर न करने वाली मशीनों का निर्माण करना चाहिए।

(14) अपशिष्ट पदार्थ जिनका दहन नहीं हो सकता उन पदार्थों से निचली भूमि या गड्डों को भरना चाहिए।

(15) तालाबों, झीलों तथा जलधाराओं में वाहितमल न डालें तथा कपड़े आदि न धोएँ ।

(16) प्रदूषण फैलाने वाले वाहनों पर सख्त कार्यवाही हो ।

(17) पर्यावरणीय प्रदूषण को रोकने के लिए कठोर नियम बनाने चाहिए।


4.निम्नलिखित के बारे में संक्षेप में चर्चा करें:

(क) रेडियो सक्रिय अपशिष्ट

(ख) पुराने बेकार जहाज और ई-अपशिष्ट

(ग) नगरपालिका के ठोस अपशिष्ट

उत्तर ⇒ (क) रेडियो सक्रिय, अपशिष्ट-  न्यूक्लीय अपशिष्ट से निकलने वाला विकिरण जीवों के लिए बेहद नुकसानदेह होता है क्योकि इसके कारण अति उच्चदर से उत्परिवर्तन (म्यूटेशन) होते हैं। न्यूक्लीय अपशिष्ट विकिरण की ज्यादा मात्रा (डोज) घातक यानी जानलेवा (लीचल होती है लेकिन कम मात्रा के कारण कई विकार होते है। इसका सबसे अधिक होने वाला विकार कैंसर है। इसलिए न्यूक्लीय अपशिष्ट अत्यंत प्रभावकारी प्रदूषक है और इसके उपचार में अत्यधिक सावधानी की जरूरत है।

यह सिफारिश की गई है कि परवर्ती भंडारण का कार्य उचित रूप में कवचित पात्रों में चट्टानों के नीचे लगभग 500 मीटर की गहराई में पृथ्वी में गाड़कर करना चाहिए। यद्यपि, निपटान की इस विधि के बारे में भी लोगों का कड़ा विरोध है।

(ख) पुराने बेकार जहाज और ई-अपशिष्ट- ऐसे कम्प्यूटर और इलेक्ट्रॉनिक सामान जो मरम्मत के लायक नहीं रह जाते हैं, इलेक्ट्रॉनिक अपशिष्ट (ई-वेस्ट्स) कहलाते हैं। ई-अपशिष्ट को लैंडफिल्स में गाड़ दिया जाता है या जलाकर भस्म कर दिया जाता है। विकसित देशों में उत्पादित ई-अपशिष्ट का आधे से अधिक भाग विकासशील देशों, खासकर चीन, भारत तथा पाकिस्तान में निर्यात किया जाता है जबकि ताँबा, लोहा, सिलिकॉन, निकल और स्वर्ण जैसे धातु पुनश्चक्रण की सुविधाएँ तो उपलब्ध है, लेकिन विकासशील देशों में यह कार्य प्रायः हाथ से किया जाता है। इस प्रकार इस कार्य से जुड़े कर्मियों पर ई अपशिष्ट में मौजूद विषैले पदार्थों का प्रभाव पड़ता है। ई-अपशिष्ट के उपचार का एक मात्र हल पुनश्चक्रण है, यदि इसे पर्यावरण अनुकूल या हितैषी तरीके से किया जाए।

(ग) नगरपालिका के ठोस अपशिष्ट— ठोस अपशिष्ट में वे सभी चीजें शामिल है जो कूड़े-कचरे में फेंकी जाती है। नगरपालिका के ठोस अपशिष्ट में घरों, कार्यालयों, भंडारों, विद्यालयों आदि से रद्दी में फेंकी गई सभी चीजें आती है जो नगरपालिका द्वारा इकट्ठा की जाती है और उनका निपटान किया जाता है। नगरपालिका के ठोस अपशिष्ट में आमतौर पर कागज, खाद्य अपशिष्ट, काँच, धातु, रबड़, चमड़ा, वस्त्र आदि होते है। इनको जलाने से अपशिष्ट के आयतन में कमी आ जाती है लेकिन यह सामान्यतः पूरी तरह जलता नहीं है और खुले में इसे | फेंकने से यह चूहों और मक्खियों के लिए प्रजनन स्थल का कार्य करता है। सैनिटरी लैंडफिल्स खुले स्थान में जलाकर ढेर लगाने के बदले अपनाया गया था। सैनिटरी लैडिफल में अपशिष्ट के संहनन (कॉम्पैक्शन) के बाद गड्ढा या खाई में डाला जाता है और धूल मिट्टी (ड) से ढक दिया जाता है।

हमारे द्वारा उत्पन्न अपशिष्ट को तीन श्रेणियों में वर्गीकृत किया गया है—(क) जैव निम्नीकरण योग्य (बायोडिग्रेडेबल), (ख) पुनश्चक्रण योग्य और (ग) जैव निम्नीकरण अयोग्य यह महत्त्वपूर्ण है कि उत्पन्न सभी कचरे की छटाई की जाए जिस कचरे का प्रयोग या पुनश्चक्रण किया जा सकता है उसे अलग किया जाए। कचराबीन या गुदड़िया (रैग पिकर) पुनश्चक्रण किए जाने वाले पदार्थों को अलग कर एक बड़ा काम करता है। जैव निम्नीकरणीय पदार्थों को जमीन में गहरे गड्ढे में रखा जा सकता है और प्राकृतिक रूप में अपघटन के लिए छोड़ दिया जाता है। इसके पश्चात् केवल अजैव निम्नीकरणीय निपटान के लिए बच जाता है। हमारा मुख्य लक्ष्य होना चाहिए कि कचरा कम उत्पन्न हो लेकिन इसके स्थान पर हम लोग अजैवनिम्नीकरणीय उत्पादों का प्रयोग अधिक करते जा रहे हैं। पूरे देश में राज्य सरकारें प्रयास कर रही हैं कि प्लास्टिक का प्रयोग न हो और इनके बदले पारि-हितैषी या मैत्री पैकिंग का प्रयोग हो। हम जब सामान खरीदने जाए तो कपड़े का थैला या अन्य प्राकृतिक रेशे के बने कैरी-बेग लेकर जाए और पॉलिथीन के बने थैले को लेने से मना करें।

12th biology revision exam question paper


5.जैविक आवर्धन की परिघटना की व्याख्या करें।

उत्तर ⇒ कुछ विशेष प्रदूषकों का आहार श्रृंखला के साथ सांद्रता में बढ़ते हुए ऊतकों के जमा हो जाने की घटना जैविक आवर्धन कहलाता है। कुछ प्रदूषक जैव अनिम्नीकरण होते हैं। एक बार अवशोषित होने पर उनका जीवों द्वारा विघटित होना या मलमूत्र के द्वारा बाहर निकलना असंभव हो जाता है। ये प्रदूषक साधारणतः जीवों के वसा ऊतकों में जमा हो जाते हैं।

उदाहरण— PCB (पॉलिक्लोरीनेटेड बाईफिनाइल) एक औद्योगिक विष है जो जलाशयों को प्रदूषित करता है। USA की वृदह झीलों में PCB 0.00002ppm से मछलियों में 4.83 ppm एवं चिड़ियों में 124 ppm तक पाई गई है। इसी प्रकार DDT की मात्रा प्राणि प्लवक में पाद-प्लवकों की तुलना में 5 गुना ज्यादा पाई गई है।


6.निम्नलिखित शब्दों की व्याख्या करें:

 (I) CO2 उर्वरक प्रभाव (ii) ओजोन छिद्र

उत्तर ⇒ (i) CO2 उर्वरक प्रभाव- ऐसा अनुमान लगाया गया है कि इक्कीसवीं सदी के अंत में वायुमंडल में CO2, सांद्रता 540 से 970 (ppm) के बीच हो जाएगी। इसके कारण अधिकतर पौधों की वृद्धि, दर बढ़ जाएगी मुख्यतया (C3) पौधों की।

CO2, सांद्रता की वृद्धि के प्रति पौधों की अनुक्रिया कार्बन डाइऑक्साइड उर्वरक प्रभाव कहलाता है

इस प्रभाव के कारण—

प्रकाश-संश्लेषण दर में वृद्धि होगी।

वाष्पोत्सर्जन की दर में कमी होगी। कम पोषक तत्वों वाली भूमि में माइकोराइजल तंतुओं की अधिकता के कारण पौधे उग सकेंगे।

(ii) ओजोन छिद्र सन् 1956-1970 के दौरान अंटाकर्टिका के ऊपर ओजोन परत की मोटाई 280 से 325 डॉक्टसन इकाई थी। सन् 1979 में परत की मोटाई अचानक 225 DU तथा 1985 में 136 DU रह गई। सन् 1994 में 94 DU रह गई। इस हास को ओजोन छिद्र कहा गया जिसकी खोज 1985 में अंटाकर्टिका के ऊपर की गई थी।


7.’भूमंडलीय तापन’ के प्रभाव एवं कारणों की व्याख्या करें।

उत्तर ⇒ भूमंडलीय ताप के कारण :

(i) मीन हाउस गैसों मुख्यतः CO2 की सांद्रता में वृद्धि ।

(ii) जीवाश्म ईंधनों का प्रयोग, वृक्षोन्मूलन तथा भूमि प्रयोग में परिवर्तन के कारण CO2 के प्रतिशत में वृद्धि ।

(iii) फ्रिजों से CFCs का लीकेज तथा औद्योगिक सोलवेन्ट के वाष्पीकरण द्वारा ऐसा अनुमान लगाया गया है कि ग्रीन हाउस गैसों में—

CO2 का योगदान 60%

CFCs का योगदान 20%

NH का योगदान 14%

NO का 6% है।

 भूमंडलीय तापन के प्रभाव :

(i) CO2 की सांद्रता में वृद्धि से प्रकाश संश्लेषण की दर में वृद्धि होगी जिससे स्टोमेटा के परिवहन क्षमता में कमी आती है।

(ii) भूमंडलीय औसत तापक्रम में वृद्धि से ध्रुवीय बर्फ पिघलेगी जो बाढ़ को बढ़ाएगी। कुछ निम्न भूमि पानी में डूब जाएगी ।

(iii) तापक्रम में परिवर्तन से बहुत सी जातियाँ ध्रुव की ओर स्थानांतरित हो जाएँगी । ताप संवेदी वृक्षों की बड़ी संख्या लुप्त हो जाएगी और उनका स्थान छोटी झाड़ियाँ ले लेंगी। (iv) तापक्रम में वृद्धि अनेक पादप रोग तथा रोगवाहकों को जन्म देंगे तथा खरपतवार की वृद्धि होगी। इस प्रकार कुल उत्पादन कम हो जाएगा।


 8.निम्नलिखित के बारे में चर्चा करें :

(क) ग्रीन हाउस गैसें

(ख) उत्प्रेरक परिवर्तक (कैटालिटिक कनवर्टर)

(ग) पराबैंगनी वी (अल्ट्रावायलेट बी)

उत्तर ⇒ (क) ग्रीन हाउस गैसें – कार्बन डाइऑक्साइड, मिथेन, जलवाष्प, नाइट्रस ऑक्साइड और क्लोरोफ्लोरो कार्बन आदि मीन हाउस गैसें हैं। ग्रीन हाउस गैसें पृथ्वी से दीर्घ तरंग (अवरक्त) विकिरण अवशोषित करती हैं और पुनः पृथ्वी की ओर उत्सर्जित करती हैं। यह चक्र तब तक चलता रहता है जब तक पृथ्वी की ओर उत्सर्जित करने हेतु दीर्घ तरंग विकिरण शेष नहीं रह जाता।

(ख) उत्प्रेरक परिवर्तक (कैटालिटिक कनवर्टर)—उत्प्रेरक परिवर्तक (कैटालिटिक कनवर्टर) में कीमती धातु, प्लैटिनम- पैलेडियम और रेडियम लगे होते हैं जो उत्प्रेरक (कैटेलिस्ट) का कार्य करते हैं। ये परिवर्तक स्वचालित वाहनों में लगे होते हैं जो विषैले गैसों के उत्सर्जन को कम करते हैं। जैसे ही निर्वात उत्प्रेरक परिवर्तक से होकर गुजरता है अदग्ध हाइड्रोकार्बन डाइऑक्साइड और जल में बदल जाता है और कार्बन मोनोऑक्साइड तथा नाइट्रिक क्रमश: कार्बन डाइऑक्साइड और नाइट्रोजन गैस में परिवर्तित हो जाता है। उत्प्रेरक परिवर्तक युक्त मोटर वाहनों में सीसा रहित (अनलेडेड) पेट्रोल का उपयोग करना चाहिए, क्योंकि सीसा युक्त पेट्रोल उत्प्रेरक को अक्रिय करता है।

(ग) पराबैंगनी-बी (अल्ट्रावायलेट-बी) – पराबैंगनी – बी (यूवी-बी) की अपेक्षा छोटे तरंगदैर्ध्य (वेवलेंथ) युक्त पराबैंगनी (यूवी) विकिरण पृथ्वी के वायुमंडल द्वारा लगभग पूरा का पूरा अवशोषित हो जाता है बशर्ते कि ओजोन स्तर ज्यों का त्यों रहे। लेकिन यूबी-बी डीएनए को क्षतिग्रस्त करता है और उत्परिवर्तन हो सकता है। इसके कारण त्वचा में बुढ़ापे के लक्षण दिखते हैं, इसकी कोशिकाएँ क्षतिग्रस्त हो जाती है और विविध प्रकार के त्वचा कैंसर हो सकते है। हमारे आँख का स्वच्छमंडल (कॉर्निया) युवी-बी विकिरण को अवशोषण करता है। इसकी उच्च मात्रा के कारण कॉर्निया का शोथ हो जाता है। जिसे हिम अंधता (स्नो ब्लाइंडनेस) मोतियाबिन्द आदि कहा जाता है। इसके उद्भासन से कॉर्निया स्थायी रूप से क्षतिग्रस्त हो सकता है।

Bihar Board 12th Biology Question Paper 2024


9.मृदा प्रदूषण किस प्रकार होते हैं, वर्णन करें।

उत्तर ⇒ (i) अपशिष्ट- औद्योगिक अपशिष्ट, नगरीय अपशिष्ट तथा मेडिकल एवं अस्पतालों के अपशिष्ट को फेंकने से भूमि प्रदूषित हो जाती है। औद्योगिक ठोस अपशिष्ट, औद्योगिक उत्सर्जन के गिरने तथा ताप ऊर्जा संयंत्र से निकलने वाला फ्लाई ऐश आसपास के पर्यावरण को दूषित करता है। रेडियो विकिरण पदार्थ, नाभिकीय ऊर्जा संयंत्र से निकलकर मृदा को संक्रमित करते हैं।

(ii) नगरीय अपशिष्ट — इसके अंतर्गत घरेलू तथा रसोई के अपशिष्ट, बाजार के अपशिष्ट, अस्पताल, पशुओं एवं पोल्ट्री के अपशिष्ट, कसाईखानों के अपशिष्ट आते हैं। पोलिथीन बैग, प्लास्टिक शीट, प्लास्टिक तथा शीशे की बोतलें, धातु , की सुईयाँ आदि नगरीय अपशिष्ट के उदाहरण हैं।

(iii) कृषि रसायन-कीटनाशक, खरपतवार नाशक, अत्यधिक अकार्बनिक उर्वरक आदि मृदा के रासायनिक गुणों को बदल देते हैं।

(iv) खनन ऑपरेशन — विकृत खनन से ऊपरी भूमि का पूरी तरह नुकसान होता है तथा पूरा क्षेत्र जहरीली धातु एवं रसायन से संक्रमित हो जाता है ।


10.वायु प्रदूषण क्या है ? इसके हानिकारक प्रभावों का उल्लेख करें।

उत्तर ⇒ वायु प्रदूषण वायु के संघटन में यदि अवांछित या यौगिक उपस्थित हो जाए जो मनुष्य, जानवरों, पादपों तथा भवनों को नुकसान पहुँचाए तो वैसे पदार्थों को वायु प्रदूषक तथा प्रक्रिया वायु प्रदूषण कहलाता है।

वायु प्रदूषण के हानिकारक प्रभाव : (i) मनुष्य तथा दूसरे जानवरों के श्वसन हेतु हवा आवश्यक है, इनके प्रदूषित हो जाने से मनुष्य तथा दूसरे जानवरों को श्वसन के कई रोग हो जाने की संभावना है। (ii) वायु प्रदूषण में मौजूद SO, गैस जैसे वायु प्रदूषक के कारण अम्लीय वर्षा होती है जिसके कारण भवनों एवं इमारतों की खुबसुरती समाप्त हो रही है।


11.वन संरक्षण क्या है ? इसकी प्रक्रिया एवं महत्त्व का वर्णन करें

उत्तर ⇒ वन सम्पदा जैसे पेड़-पौधे, जीव-जन्तु आदि को सुरक्षा एवं सरक्षण प्रदान करना ही वन संरक्षण कहलाता है। संरक्षण का उद्देश्य :

(i) पारिस्थितिक तंत्र के जैविक एवं अजैविक भागों का आपस में संतुलन बनाए रखना ।

(ii) संकटग्रस्त तथा दुर्लभ जातियों की रक्षा करना

(iii) सभी जातियों के पूर्ण जीन पूल का संरक्षण करना । रूप से उपयोग किया

(iv) जीवधारियों का मानवहित के लिए संतुलित जाना।

(v) प्राकृतिक संतुलन बनाए रखना।

वन संरक्षण की प्रक्रिया या उपाय— जैव मंडल के व्यापक विनाश के कारण वन्य जीवों के विलुप्त होने का संकट अत्यधिक गहरा हो गया है। जीवों के संरक्षण के निम्नलिखित उपाय सुझाए गए हैं

(i) वन्य जीवों को उनके प्राकृतिक वासस्थानों में सरंक्षित किया जाय। प्राणी उद्यान तथा वानस्पतिक उद्यान बनाकर वन्य जीवों को लुप्त होने से बचाया जा सकता है।

(ii) आपत्तिग्रस्त स्पीशीज के संरक्षण का विशेष उपाय किया जाना चाहिए। उन जीव जंतुओं के लिए विशेष उपाय किए जाने चाहिए जो अपनी जाति के अकेले सदस्य हो

(iii) उपयोगी पौधों तथा जानवरों के जंगली संबंधियों का पता लगाकर उनका संरक्षण आवश्यक है, क्योंकि वे बाद में जीन बैंक का कार्य करते है।

(iv) प्रवासी पशुपक्षियों के घोसलों तथा वास स्थानों की सुरक्षा पर विशेष ध्यान दिया जाना चाहिए। ये पशु-पक्षी आश्रय तथा प्रजनन के लिए अलग-अलग प्रकार के वास स्थानों का उपयोग करते हैं

(v) प्रवासी पशु-पक्षी अगर एक देश से दूसरे में जाते हैं तो उन देशों के बीच पशु-पक्षियों की रक्षा का उपाय किया जाना आवश्यक है। (vi) वन्य जीवों तथा पौधों के अंतराष्ट्रीय कानून से नियंत्रित किया जाना चाहिए। अवैध व्यापार करनेवालों पर कानूनी सजा का प्रावधान सख्ती से लागू किया जाना चाहिए।

(vii) एक ऐसा तंत्र विकसित किया जाना चाहिए जिसमें आम जनता को संरक्षण की महत्ता तथा उसके उपायों की जानकारी दी जा सके। जैव विविधता के संरक्षण के लिए विभिन्न क्षेत्रों एवं पारितंत्रों का सर्वेक्षण कर रेड डाटा बुक का प्रकाशन कर उनमें सम्मिलित पौधों के बारे में आम जनता को जानकारी प्रदान करना आवश्यक है। वन संरक्षण का महत्त्व वनों का हमारे जीवन में महत्त्वपूर्ण स्थान है। वनों से हमें लकड़ी, फूल आदि प्राप्त होते हैं तथा प्राणदायिनी ऑक्सीजन गैस भी अगर पृथ्वी पर वन न रहे तो जीवन संभव न होगा। अतः हमें वन एवं वन्य प्राणियों के संरक्षण पर ध्यान देना चाहिए ताकि हम अपने अगले पीढ़ी को सुरक्षित रख पाए ।


12. ठोस अपशिष्टों का वर्गीकरण तथा इसके निपटारे का प्रबन्धन सविस्तार लिखें।

उत्तर ⇒ ठोस अपशिष्टों को उनके स्रोत के आधार पर वर्गीकृत किया जाता है। इसे मुख्य रूप से तीन वर्गों में बाँटा जाता है, ये वर्ग हैं

 (क) नागरीय अपशिष्ट-ये घरों में उत्पन्न अपशिष्ट है जिसमें शाक, सब्जी, फलों आदि के अवयवकृत भाग, मल एवं अन्य अवयवकृत घरेलु ठोस अवशेष आदि आते है।

(ख) औद्योगिक अपशिष्ट- ये वे ठोस अपशिष्ट है जिसका उत्पादन उद्योग से होता है

(ग) बायोमेडिकल अपशिष्ट- ये वे ठोस अपशिष्ट है जिनका उत्पादन अस्पतालों, नर्सिंग होम, दवा कंपनी, चिकित्सकीय उपकरण निर्माण स्थलों आदि जगहों पर होता है। इसमें सिरिंज, डिस्टिल वाटर पॉट, दवा का बर्तन, प्लास्टर, रक्त चढ़ानेवाले उपकरण आदि जिसका उपयोग हो चुका है। उपरोक्त अपशिष्ट हमारे वातावरण को प्रदूषित करते हैं। अतः इनका उचित प्रबंधन आवश्यक है।

ठोस अपशिष्ट प्रबंधन-ठोस कचरे का उत्पादन, संग्रहण, परिवहन, स्रोत पृथक्करण, संसाधन, उपचार, पुनः प्राप्ति एवं डिस्पोजल के क्रमिक नियंत्रण को ही ठोस अपशिष्ट प्रबंधन कहते हैं। ठोस कचरे / अपशिष्ट का प्रबंधन निम्नांकित प्रक्रियाओं द्वारा किया जा सकता है—

(i) Sanitary land filling – इस प्रक्रिया में कूड़ा-करकट को भूमि पर पतला आवरण के रूप में फैलाकर क्ले मिट्टी या प्लास्टिक फोम से ढक दिए – जाते हैं। इन दिनों जहाँ पर कूड़ा का निपटान करना होता है, उसके आधार को अपारगम्य अस्तर जिसमें क्ले की अनेक परते जो प्लास्टिक रूप बालू से अस्तारित किया जाता है। यह अस्तर भूजल को कूड़े के रिसने से बचाता है |

(ii) भस्मीकरण— ठोस अपशिष्ट को नष्ट करने की वह प्रक्रिया जिसके द्वारा ठोस कार्बनिक अपशिष्ट को दहन क्रिया द्वारा गैसीय उत्पादों एवं अन्य अहानिकारक अवशेषों में बदला जाता हो भस्मीकरण कहा जाता है। यह विधि ठोस अपशिष्ट एवं जलीय अपशिष्ट प्रबंधन से प्राप्त ठोस अपशिष्ट के डिस्पोजल में लाभकारी होता है। इस क्रिया में ठोस अपशिष्ट को तब तक जलाया जाता है जब तक कि वह राख में न बदल जाए, यह कार्य भस्मीकरण से सम्पन्न होता है जिससे ठोस अपशिष्ट का अवकरण राख के रूप में होता है।

(iii) कम्पोस्टिंग — यह एक जैविक प्रक्रिया है जिससे कार्बनिक अपशिष्ट जो जैव निम्नीकरणीय होता है का सुक्ष्मजीवों जैसे कवक एवं जीवाणु आदि की क्रियाकलाप द्वारा ह्यूमस के सदृश पदार्थ जो जैविक खाद का कार्य करता है, में निम्नीकरण होता है जैसे वर्मीकम्पोस्ट का निर्माण। 1 प्रक्रिया – इस प्रक्रिया में रसोई से प्राप्त जैव निम्नीकरणीय ठोस अपशिष्ट का उपयोग किया जाता है।

 (iv) पायरोलाइसिस- यह एक प्रकार का भस्मीकरण की क्रिया है। जिसमें O2 की अनुपस्थिति में जैविक अपशिष्टों का रासायनिक विघटन किया जाता है। यह कार्य नियत दाब एवं 430°C से अधिक के तापमान पर किया जाता है। इस क्रिया द्वारा कार्बनिक अपशिष्ट का रूपांतरण गैस, में द्रव एवं कार्बन व राखयुक्त ठोस अवशेष में हो जाता है। सूक्ष्म मात्रा इस प्रकार ठोस कचरा का प्रबन्धन उसके प्रकार के आधार पर करने से उपयोगी पदार्थ प्राप्त होता है और पर्यावरण भी प्रदूषण मुक्त रहता है।


13.हरितगृह प्रभाव क्या है ? इसके कारण एवं प्रभाव का वर्णन करें। अथवा, हरितगृह प्रभाव क्या है ? इसके लक्षण एवं प्रभाव का वर्णन करें।

उत्तर ⇒ हरितघर प्रभाव प्राकृतिक स्तर पर कार्बन डाइऑक्साइड की एक निश्चित मात्रा (0.03%) वायुमंडल में रहती है जिसके स्तर को बनाए रखने में पौधों की अहम भूमिका होती है, क्योंकि पौधे ही सिर्फ ऐसे जीव है जो प्रकाशसंश्लेषण द्वारा CO2, को ग्रहण कर ऑक्सीजन गैस को मुक्त करते हैं जिससे इन दोनों गैसों के बीच एक निश्चित अनुपात बना रहता है। जीवाश्म ईंधनों (लकड़ी, कोयला, पेट्रोल, डीजल आदि) के जलने से एवं जंगलों के लगातार कटने से CO2, गैस की मात्रा वायु में बढ़ती जाती है। CO2, गैस में सूर्य की इनफ्रारेड किरणों को सोखने की क्षमता रहती है जिससे

पृथ्वी का तापक्रम नियंत्रित रहता है। वायुमंडल में उपलब्ध CO, कवच के कारण पृथ्वी को जो ऊष्मा प्राप्त होती है, उसे हरितघर प्रभाव या ग्रीनहाउस इफेक्ट कहते हैं। CO2, गैस वस्तुतः प्रीनहाउस की तरह कार्य करता है। यह ग्रीनहाउस के शीशे की तरह सूर्य प्रकाश को अंदर (वायुमंडल में) आने देती है, परंतु उनके द्वारा अवशोषित ऊष्मा को बाहर जाने नहीं देती है, जिससे पृथ्वी का तापमान बढ़ जाता है। पृथ्वी का तापमान सीमा से अधिक बढ़ने पर ध्रुवीय हिमटोप के पिघलने से समुद्र का स्तर बढ़ने तथा बाद आने की संभावना बढ़ जाती है। गत शताब्दी में पृथ्वी के तापमान में 0.6°C की वृद्धि हुई है। ऐसा अनुमान लगाया गया है कि 2050 तक पृथ्वी का औसत तापमान 1.5°C से 4.5°C तक बढ़ जाएगा। यह माना जा रहा है कि औद्योगिक विकास, जनसंख्या वृद्धि एवं वृक्षों की निरंतर हो रही कमी से अब वायुमंडल में CO, की मात्रा 0.03% से बढ़कर 0.04% हो गई है, जिसके फलस्वरूप पृथ्वी के औसत तापक्रम में पिछले दशक में वृद्धि हुई है। अगर यही क्रम जारी रहा तो बहुत सारे द्वीप एवं समुद्री तटों पर बसे शहर समुद्र में समा जाएँगे। भारतवर्ष में अंडमान एवं निकोबार द्वीप, मुंबई, कोलकाता, कोचीन, त्रिवेंद्रम आदि एवं विश्व स्तर पर न्यूयार्क, बोस्टन, मीयामी, मालदीव, बाँग्लादेश आदि जलमग्न हो जाएँगे।

12th Biology Questions Chapter Wise


Class 12th Biology – Objective 
1जीवधारियों में जननClick Here
2पुष्पी पादपों में लैंगिक प्रजननClick Here
3मानव प्रजननClick Here
4जनन स्वास्थ्यClick Here
5वंशागति और विभिन्नता के सिद्धांतClick Here
6वंशागति का आणविक आधारClick Here
7विकासClick Here
8मानव स्वास्थ्य एवं रोगClick Here
9खाद उत्पादन बढ़ाने के लिए उपायClick Here
10मानव कल्याण में सूक्ष्मजीवClick Here
11जैव प्रौद्योगिकी के सिद्धांत एवं प्रक्रिया हैClick Here
12जैव प्रौद्योगिकी एवं इसके अनुप्रयोगClick Here
13जीव एवं समष्टियाClick Here
14परिस्थितिक तंत्रClick Here
15जैव विविधता एवं संरक्षणClick Here
16पर्यावरण मुद्देClick Here
 BSEB Intermediate Exam 2023
 1Hindi 100 MarksClick Here
 2English 100 MarksClick Here
 3Physics Click Here
 4ChemistryClick Here
 5BiologyClick Here
 6MathClick Here

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