Bihar Board Question Paper Class 12 Biology | 12th Class Biology Question In Hindi

Bihar Board Question Paper Class 12 Biology :- दोस्तों यदि आप Bihar Board 12th Model Paper Biology की तैयारी कर रहे हैं तो यहां पर आपको 12th Biology Chapter 14 Five Marks Question दिया गया है जो 12th class biology question In Hindi के लिए काफी महत्वपूर्ण है | 12th biology question answer


Bihar Board Question Paper Class 12 Biology

1.पारिस्थितिक तंत्र के घटकों की व्याख्या करें।

उत्तर पारिस्थितिक तंत्र के घटकों को हम दो भागों में बाँट सकते हैं—

(i) जैविक एवं अजैविक घटक जैविक एवं अजैविक घटक व्यक्तिगत रूप से एक-दूसरे को तथा अपने आस-पास के वातावरण को प्रभावित करते है।

जैविक एवं अजैविक घटकों की परस्पर क्रियाओं के फलस्वरूप एक भौतिक संरचना विकसित होती है, जो प्रत्येक प्रकार के पारितंत्र की विशिष्टता है। एक पारितंत्र की पादप एवं प्राणि प्रजातियों की पहचान एवं गणना इसकी प्रजातियों के संघटन (कंपोजीशन) को प्रकट करता है। विभिन्न स्तरों पर विभिन्न प्रजातियों के ऊर्ध्वाधर वितरण को स्तरविन्यास कहते हैं। उदाहरणार्थ एक जंगल में वृक्ष सर्वोपरि ऊर्ध्वाधर स्तर झाड़ियाँ द्वितीयक स्तर तथा जड़ी-बूटियों एवं घास निचले (धरातली) स्तर पर निवास करते हैं। पारिस्थितिक तंत्र में सारे घटक एक इकाई के रूप में तब क्रियाशील दिखते हैं, जब हम निम्न पहलुओं पर दृष्टि डालते हैं

(क) उत्पादकता

(ख) अपघटन

(ग) ऊर्जाप्रवाह और

(घ) पोषण चक्र

एक जलीय पारितंत्र के गुण धर्म (प्रकृति) को समझने के लिए आइए एक छोटे तालाब को उदाहरणस्वरूप लेते हैं। यह एक औचित्यपूर्ण स्वपोषी और अपेक्षित रूप से सरल उदाहरण है जो हमें एक जलीय पारितंत्र में यहाँ तक की जटिल पारस्परिकता (अन्योन्यक्रियाओं) को समझने में सहायक है। एक तालाब उथले पानी वाला एक जल-निकाय है जिसमें एक पारितंत्र के सभी मूलभूत घटक बेहतर ढंग से प्रदर्शित होते हैं। पानी एक अजैविक घटक है जिसमें कार्बनिक एवं अकार्बनिक तत्व तथा प्रचुर मृदा निक्षेप तालाब की तली में जमा होते हैं। सौर निवेश, ताप का चक्र, दिन की अवधि (लंबाई) तथा जलवायुवीय परिस्थितियाँ समूचे तालाब की क्रियाशीलता की दर को नियमित करते हैं। स्वपोषी घटक जैसे पादप लवक, कुछ काई (शैवाल) तथा प्लवक एवं निमग्न तथा किनारों पर सीमांत पादप तालाब के किनारों पर पाए जाते हैं। उपभोक्ताओं का प्रतिनिधित्व प्राणिप्लवक तथा स्वतंत्र पलवी एवं तलीय वासी जीव स्वरूपों द्वारा पारितंत्र किया जाता है। अपघटक के उदाहरण कवक एवं जीवाणु हैं जो विशेष रूप से तालाब की तली में प्रचुरता 6से पाए जाते हैं। यह तंत्र किसी भी पारितंत्र और कुल मिलाकर जीवमंडल की सभी प्रक्रियाओं को निष्पादित करते हैं अर्थात् स्वपोषियों द्वारा सूर्य की विकिरण ऊर्जा के उपभोग से अकार्बनिक तत्वों को कार्बनिक तत्वों में बदलना, विभिन्न स्तरों के परपोषितों द्वारा स्वपोषकों का भक्षण, में जीवों की सामग्रियों का अपघटन एवं खनिजीकरण कर स्वपोषकों के लिए मुक्त करना इस घटना की पुनरावृत्ति बारंबार होती रहती है। ऊर्जा की एकदिशीय गतिशीलता उच्च पोषी स्तरों की ओर तथा पर्यावरण में इसका अपव्यय और ऊष्मा के रूप में हानि होती है।


2.पारिस्थितिकी पिरामिड को परिभाषित करें तथा जैवमात्रा या जैवभार तथा संख्या के पिरामिडों की उदाहरण सहित व्याख्या करें।

उत्तर विभिन्न पोषण रीतियों पर जीवों के बीच आप एक खाद्य या ऊर्जा संबंध जोड़े तो आपको पिरामिड के समान आकार मिलेगा। इस संबंध को संख्या, जैव मात्रा या ऊर्जा के रूप में व्यक्त किया जा सकता है। प्रत्येक पिरामिड के आधार का प्रतिनिधित्व उत्पादक या पहली पोषण स्तर करता है जबकि शिखर का प्रतिनिधित्व तृतीयक पोषण स्तर या सर्वोच्य उपभोक्ता करता है। तीन प्रकार के परिस्थितिक पिरामिड का आमतौर पर अध्ययन किया जाता है, वे हैं (क) संख्या का पिरामिड (ख) जैवमात्रा का पिरामिड और (ग) ऊर्जा का पिरामिड ।

ऊर्जा, मात्रा या अर्श, जैवमात्रा या संख्याओं की किसी भी गणना में पोषण स्तर के सभी जीवों को शामिल किया जाना चाहिए। यदि हम किसी पोषण स्तर के कुछ व्यष्टियों को ही गणना में लेते हैं तो हमारे द्वारा किया गया कोई भी व्यापकीकरण सत्य नहीं होगा। अधिकतर पारिस्थितिक तंत्रों में संख्याओं, ऊर्जा तथा जैवमात्रा के सभी पिरामिड आधार से ऊपर की ओर होते हैं। अर्थात् शाकाहारियों की अपेक्षा उत्पादकों की संख्या एवं जैवमात्रा अधिक होती है और इसी प्रकार शाकाहारियों की संख्या एवं जैवमात्रा माँसाहारियों की अपेक्षा अधिक होती है। इसी प्रकार निम्न पोषण स्तर में ऊर्जा की मात्रा ऊपरी पोषण स्तर से अधिक होती है।
इस व्यापकीकरण में कुछ अपवाद हैं। यदि हम एक बड़े वृक्ष पर आहार प्राप्त करने वाले कीटों की संख्या की गणना करें तो हमको संख्या का पिरामिड प्राप्त हो सकता है। अब उसमें उन छोटे कीटों पर निर्भर पक्षियों की गणना करें, इसके साथ ही कीटभक्षी पक्षियों पर निर्भर बड़े पक्षियों की गणना करें। तब हमें जैवमात्रा का पिरामिड प्राप्त होगा। समुद्र में जैवमात्रा (भार) के पिरामिड भी प्रायः उल्टे होते हैं, क्योंकि पोष्णरीति मछलियों की जैवमात्रा पादपप्लवको की जैवमात्रा से बहुत अधिक होती है।


3.प्राथमिक उत्पादकता क्या है ? उन कारकों की संक्षेप में चर्चा करें जो प्राथमिक उत्पादकता को प्रभावित करते हैं।

उत्तर जैवमात्रा के उत्पादन की दर को उत्पादकता कहते हैं। इसे g2yr’ या (Kcal m-2 ) yr-1 (ऊर्जा) के रूप में व्यक्त किया जा सकता है, जिससे विभिन्न पारितंत्रों की उत्पादकता की तुलना की जा सकती है। इसे सकल या कुल प्राथमिक उत्पादकता तथा नेट प्राथमिक उत्पादकता में विभाजित किया जा सकता है। एक पारिस्थितिक तंत्र की सकल प्राथमिक उत्पादकता प्रकाश संश्लेषण के दौरान कार्बनिक तत्व की उत्पादन दर होती है। सकल प्राथमिक उत्पादकता की एक महत्त्वपूर्ण मात्रा पादपों में श्वसन द्वारा उपयोग की जाती है। यदि हम सकल प्राथमिक उत्पादकता से श्वसन के दौरान हुई क्षति को घटा देते हैं तो हमें नेट प्राथमिक उत्पादकता प्राप्त होती है।

जी.पी.पी. – आर = एन. पी. पी.

प्राथमिक उत्पादकता एक सुनिश्चित क्षेत्र में पादप प्रजातियों के निवास पर निर्भर करती है। ये विभिन्न प्रकार के पर्यावरणीय कारकों, पोषकों की उपलब्धता तथा पादपों की प्रकाश संलेषण क्षमता, तापमान, वर्षा, सूर्य प्रकाश आदि पर निर्भर करती है। इसलिए ये विभिन्न प्रकार के पारितंत्रों में भिन्न-भिन्न होती है। संपूर्ण जीवमंडल की वार्षिक कुल प्राथमिक

उत्पादकता का भार कार्बनिक तत्व के रूप में लगभग 170 बिलियन टन आँका गया है। यद्यपि पृथ्वी के धरातल का लगभग 70 प्रतिशत भाग समुद्रों द्वारा ढका हुआ है, इसके बावजूद भी इनकी उत्पादकता केवल 55 बिलियन टन है। शेष मात्रा भूमि पर उत्पन्न होती है ।

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4.अपघटन की परिभाषा दें तथा अपघटन की प्रक्रिया एवं उसके. उत्पादों की व्याख्या करें।

उत्तर केंचुओं को किसान के मित्र के रूप में संबोधित किया जाता है। ऐसा इसलिए है, क्योंकि ये जटिल कार्बनिक पदार्थों का खंडन करने के साथ-साथ भूमि को भुरभुरा बनाने में मदद करते हैं। उसी प्रकार अपघटक जटिल कार्बनिक सामग्री को अकार्बनिक तत्वों जैसे—कार्बन डाईऑक्साइड, जल एवं पोषकों में खंडित करने में सहायता करते हैं और इस प्रक्रिया को अपघटन कहते हैं। पादपों के मृत अवशेष जैसे पत्तियाँ, छाल, फूल तथा प्राणियों (पशुओं) के मृत अवशेष, मलादि सहित अपरद (डेट्राइटस) बनाते हैं, जोकि अपघटन के लिए कच्चे पदार्थों का काम करते हैं। अपघटन की प्रक्रिया के महत्त्वपूर्ण चरण खंडन, निक्षालन, अपचयन, ह्यूमस भवन (बचना), खनिजी भवन है। अपरदाहरी (जैसे कि केचुए) अपरदन को छोटे-छोटे कणों में खंडित कर देते हैं। इस प्रक्रिया को खंडन कहते हैं। निक्षालन प्रक्रिया के अंतर्गत जल-विलेय अकार्बनिक पोषक भूमि मृदासंस्तर में प्रविष्ट कर जाते हैं और अनुपलब्ध लवण के रूप में अवक्षेपित हो जाते हैं।

बैक्टीरियल (जीवाणुवीय) एवं कवकीय एंजाइम अपरदों को सरल अकार्बनिक तत्वों में तोड़ देते हैं। इस प्रक्रिया को अपचय कहते हैं। यह समझना महत्त्वपूर्ण है कि उपर्युक्त अपघटन की समस्त प्रक्रियाएँ अपरद पर समानांतर रूप से लगातार चलती रहती हैं। ह्यूमीफिकेशन और मिनरेलाइजेशन की प्रक्रिया अपघटन के दौरान मृदा में संपन्न होती है ह्यूमीफिकेशन के द्वारा एक गहरे रंग के क्रिस्टल रहित तत्व का निर्माण होता है जिसे ह्यूमस कहते है जोकि सूक्ष्मजैविक क्रिया के लिए उच्च प्रतिरोधी होता है और इसका अपघटन बहुत ही धीमी गति से चलता है। स्वभाव (प्रकृति) में कोलाइडल होने के कारण यह पोषक के भंडार का काम करता है। ह्युमस पुनः कुछ सूक्ष्मजीवों द्वारा खंडित होता है और जो खनिजीकरण नामक प्रक्रिया द्वारा अकार्बनिक पोषक उत्पन्न होते हैं उन्हें मुक्त करता है।

अपघटन एक प्रक्रिया है जिसमें ऑक्सीजन की आवश्यकता होती है। अपघटन की दर जलवायुवीय घटकों तथा अपरद के रासायनिक संघटनों द्वारा निर्धारित होती है। एक विशिष्ट जलवायुवीय परिस्थिति में, यदि अपरद काइटिन तथा लिग्निन से भरपूर होता है तब अपघटन दर धीमी होती है, यदि अपरद नाइट्रोजन तथा जलविलेय तत्वों जैसे चीनी आदि से भरपूर होता है जब यह तेज होती है। ताप एवं मृदा की नमी बहुत ही महत्वपूर्ण जलवायुवीय घटक है जो मृदा के सूक्ष्मजीवों की क्रियाओं द्वारा अपघटन की गति को नियमित करते हैं। गरम एवं आई पर्यावरण में अपघटन की गति तेज होती है जबकि निम्न ताप एवं अवायुजीवन अपघटन की गति को धीमा करती है जिसके परिणामस्वरूप कार्बनिक पदार्थों का भंडार जमा हो जाता है।


5.एक पारिस्थितिक तंत्र में ऊर्जा प्रवाह का वर्णन करें।

उत्तर गहरे समुद्र के जलतापीय पारितंत्र को छोड़कर पृथ्वी पर सभी पारिस्थितिक तंत्रों के लिए एक मात्र ऊर्जा स्रोत सूर्य है। आपतित सौर विकिरण का 50 प्रतिशत से कम भाग प्रकाश संश्लेषणात्मक सक्रिय विकिरण में प्रयुक्त होता है। हम जानते हैं कि पादप एवं प्रकाश संश्लेषण तथा रसायनी संश्लेषण जीवाणु (स्वपोषी) सूर्य की विकरित ऊर्जा को सरल अकार्बनिक पदार्थों से आहार तैयार करने में लगाते हैं। पादप केवल 210 प्रतिशत प्रकाश संश्लेषणात्मक सक्रिय विकिरण का प्रग्रहण करते है और यही आंशिक मात्रा की ऊर्जा संपूर्ण विश्व का संपोषण करती है। अतः यह जानना अत्यंत महत्त्वपूर्ण है कि पादपों द्वारा संग्रहण की गई सौर ऊर्जा एक पारिस्थितिक तंत्र के विभिन्न जीवों के माध्यम से किस प्रकार प्रवाहित होती है। पृथ्वी के सभी जीव आहार के लिए प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से उत्पादकों पर निर्भर रहते हैं। अतः आप पायेंगे कि सूर्य से उत्पादकों की ओर और फिर उपभोक्ता की और ऊर्जा का प्रवाह एकदिशीय होता है। पारिस्थितिक तंत्र ऊष्मा गतिक के दूसरे सिद्धांत से अवमुक्त नहीं है।

उन्हें निरंतर ऊर्जा की आपूर्ति की आवश्यकता होती है ताकि वे अपेक्षित अणुओं को संश्लेषित कर बढ़ती हुई अव्यवस्थापन के प्रति सर्वव्यापी प्रवृत्ति से संघर्ष कर सकें। पारिस्थितिक तंत्र की शब्दावली में हरे पादप को उत्पादक कहा जाता है स्थलीय पारिस्थितिक तंत्र में शाकी एवं काष्ठीय पादप प्रमुख उत्पादक हैं। इसी प्रकार विभिन्न प्रजातियाँ जैसे—पादपप्लवक, काई और बड़े पादप जलीय पारिस्थितिक तंत्र के प्राथमिक उत्पादक हैं।

आपने खाद्य श्रृंखलाओं तथा जालो (वेब्स) के बारे में पढ़ा है जो कि प्रकृति में विद्यमान हैं। पादप (या उत्पादक) से प्रारंभ होकर खाद्य श्रृंखला या जाल इस प्रकार से बने होते हैं कि प्रत्येक प्राणी जो एक पादप से आहार ग्रहण करता है या अन्य प्राणी पर निर्भर करता है। और बदले में वह किसी अन्य के लिए आहार बनाता है। इस परस्पर अंतर निर्भरता के कारण श्रृंखला जाल (वेब) की रचना होती है। किसी भी जीव द्वारा आबद्ध (ग्रहण) की गई ऊर्जा सदैव के लिए संचित नहीं रहती है। उत्पादक द्वारा आबद्ध की गई ऊर्जा या तो उपभोक्ता को भेज दी जाती है या वह जीव मृत हो जाती है। एक जीव की मृत्यु अपरद खाद्य श्रृंखला / जाल की शुरुआत होती है। एक साधारण खाद्य श्रृंखला

   घास  …………….     बकरी  ……………             मनुष्य…………..

(उत्पादक)                (प्राथमिक उपभोक्ता)             (द्वितीयक उपभोक्ता)

चारण खाद्य श्रृंखला में पोषण स्तरों की संख्या प्रतिबंधित होती है इस प्रकार से ऊर्जा प्रवाह का स्थानांतरण 10 प्रतिशत कम होता है और प्रत्येक निम्न पोषण स्तर से ऊपर का पोषण स्तर पर केवल 10 प्रतिशत ऊर्जा प्रवाहित होती है। प्रकृति में यह संभव है कि कई स्तर हो जैसे कि चारण खाद्य श्रृंखला में उत्पादक, शाकभक्षी प्राथमिक मांसभक्षी, द्वितीयक मांसभक्षी आदि ।


6.एक पारिस्थितिक तंत्र में एक अवसादीय चक्र की महत्त्वपूर्ण विशिष्टताओं का वर्णन करें।

उत्तर जीवों को लगातार वृद्धि, प्रजनन एवं विभिन्न कायिक क्रियाओं को संपन्न करने के लिए लगातार पोषकों के संभरण की आवश्यकता होती है। मृदा में विद्यमान पोषकों की मात्रा जैसे कि कार्बन, नाइट्रोजन, फॉस्फोरस, कैल्सियम आदि को स्थायी अवस्था के रूप में संदर्भित किया जाता है। फॉस्फोरस को अवसादीय चक्र (Imperfect cycles) कहा जाता है क्योंकि यह स्थानीय कारकों से बिगड़ जाते है। फॉस्फोरस चक्र की कुछ विशिष्टताएँ—फॉस्फोरस एक बहुत ही महत्त्वपूर्ण अवयव है क्योंकि यह ऊर्जा संचित करने वाले यौगिकों एडीनोसिन ट्राइफॉस्फेट (Adenosine Triphosphate) न्यूक्लिक अम्ल (nucleic acids) तथा कोशिकीय कलाओं के निर्माण में भाग लेता है। जंतुओं के दाँत तथा अस्थि निर्माण में भी फॉस्फोरस का उपयोग होता है। फॉस्फोरस चक्र निम्नलिखित चरणों में पूर्ण होता है

(1) फॉस्फोरस के मुख्य स्रोत हैं— चट्टानों में जमे फॉस्फेट्स, खनिज फॉस्फेट्स तथा अस्थियाँ ।

(2) जल तथा हवा द्वारा चट्टानों का विघटन होता है और इनमें उपस्थित फॉस्फेट्स जल के साथ बहकर मृदा में पहुँच जाते हैं। जहाँ ये जल में घुले रहते हैं।

(3) पृथ्वी की मृदा से जल में घुले हुए फॉस्फोरस को पौधे उपापचयी क्रियाओं के लिए अपने उपयोग में ले लेते हैं। यह फॉस्फोरस पौधे से जंतुओं में भोजन के रूप में पहुँचता है।

(4) फॉस्फोरस की काफी मात्रा नदियाँ, झरनों, जल धाराओं द्वारा समुद्र में पहुँच जाती है।

(5) समुद्री पौधे, समुद्र में उपस्थित फॉस्फेट्स का उपयोग करते हैं ।

(6) समुद्री जंतु कार्बनिक फॉस्फेट्स को भोजन के रूप में पौधों से ग्रहण करते हैं तथा अकार्बनिक फॉस्फेट्स को जल से।

(7) वे फॉस्फेट्स जो जंतुओं के अंगों का निर्माण करते हैं, वे प्राकृतिक फॉस्फोरस चक्र से उस समय तक बाहर रहते हैं जब तक उनकी मृत्यु न हो जाए और अपघटकों द्वारा उनके शरीर से फॉस्फेट्स वातावरण में न छोड़ दिए जाएँ।

 (8) सभी जंतु अपच भोजन का बहिःक्षेषन सदैव करते हैं। इनके मल का सूक्ष्मजीवों द्वारा विघटन कर दिया जाता है और फॉस्फेट्स को वायुमंडल तथा जलमंडल में छोड़ दिया जाता है।

(9) समुद्री चिड़ियाँ जैसे, पेंग्विन (Penguin), समुद्री किनारे पर ग्वैनों (guano) जमा करती है जिसमें फॉस्फेट्स की मात्रा बहुत अधिक होती है। इस प्रकार फॉस्फेट्स की कुछ मात्रा वातावरण में मिल जाती है। जब कभी लोहे, ताँबा, कैल्शियम, ऐल्यूमीनियम से संयुक्त होकर फॉस्फेट्स यौगिक बनाते हैं तब इन्हें पौधे प्रयोग में नहीं ले सकते और इस प्रकार ये चक्र के बाहर ही रहते हैं।

 इसी प्रकार जंतुओं के दाँत तथा अस्थियों का बैक्टीरिया द्वारा विघटन नहीं हो पाता, इसलिए इनमें उपस्थित फॉस्फेट्स भी चक्र के बाहर रहते हैं।

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7.प्राथमिक उत्पादकता क्या है ? विश्व के विभिन्न पारिस्थितिक में प्राथमिक उत्पादकता की सीमा बताएँ।

उत्तर उत्पाद जिस दर से सूर्य का प्रकाश अवशोषित कर प्रकाश संश्लेषण द्वारा कार्बनिक पदार्थों का निर्माण करते हैं, वह प्राथमिक उत्पादकता कहलाती है। इसे प्रति इकाई समय में प्रति इकाई क्षेत्र में संचित ऊर्जा के रूप में व्यक्त किया जाता है।

प्राथमिक उत्पादकता                         = प्रा/मी2/वर्ष

या                                                  = कि. कैलोरी/मी2/वर्ष

प्राथमिक उत्पादकता के दो प्रकार होते हैं— सकल उत्पाद तथा,वास्तविक उत्पाद ।

ऊर्जा के पूर्ण अवशोषण की दर को या कार्बनिक पदार्थ के कुल उत्पादन दर को एकल उत्पादकता कहते हैं। उत्पादकों के श्वसनीय क्रिया के उपरांत बची हुई ऊर्जा या भार को वास्तविक प्राथमिक उत्पादकता कहते है।

परिपक्व उष्णकटिबंधीय वर्षा प्रचुर वनों में उच्च स्तरीय वास्तविक प्राथमिक उत्पादकता (20 ट. हे-1 वर्ष-1 ) पाई गई है तथा मरुस्थल में निम्न उत्पादकता (> 1. ट.हे-1वर्ष-1) पाया जाता है।

निम्न सारणी में विश्व के प्रमुख पारिस्थितिक तंत्रों में जीवभार एवं वास्तविक उत्पादकता को दर्शाया गया है।

इस सारण में ट. = टन = 1000 किग्रा हे. = हेक्टेयर = 10,000 मी2

सारणी : भौगोलिक क्षेत्र, माध्य पौधा जीवभार एवं विश्व के प्रमुख पारिस्थितिक तंत्रों में वास्तविक उत्पादकता

 

पारिस्थितिक तंत्र

क्षेत्रफल

(106 किमी-2)

 

माध्य माध्य

पौधा

जीवभार

 कुल प्राथमिक उत्पादकता(ट. प्रति हे. प्रतिवर्ष)
उष्णकटिबंधीय वर्षा प्रचुर वन1744020
उष्णकटिबंधीय पर्णपाती वन836015
शीतोष्ण पर्णपाती वन730012
शीतोष्ण शंकुवृक्षी वन122008
सवाना154009
शीतोष्ण घासस्थल9205
मरुस्थल झाड़ी18100.7

8.पारिस्थितिक तंत्र में पोषकों के निवेश तथा निर्गम के तरीकों का वर्णन करें।

उत्तर पोषकों का निवेश— पारितंत्र में पोषकों का आगमन निम्न बाह्य स्रोतों द्वारा होता है

(क) वर्षा— पोषक तत्त्व मुली अवस्था में वर्षा से प्राप्त होते हैं (आर्द्र जमाव)

(ख) वायु— कणों के रूप में धूल से प्राप्त होते हैं। (शुष्क जमाव ) इस प्रकार आए पोषकों का जैव क्रिया द्वारा उपयोग किया जाता है।

पोपकों का निर्णय- पारिस्थितिक तंत्र से पोषक तत्व बाहर लाए जाते हैं तथा उनमें से बहुत सारे तत्व दूसरे पारितंत्र के निवेश बन जाते हैं। उदाहरण- कैल्शियम तथा मैग्नेशियम के पर्याप्त मात्रा में बहाव द्वारा मृदा अपरदन हो जाता है विनाइट्रीकरण द्वारा नाइट्रोजन गैसीय रूप में निगमित हो सकती है। फसल कटाई या वनों से लकड़ियों की ढुलाई के काम से भी पोषक तत्वों की हानि हो जाती है। छेड़छाड़ रहित पारिस्थितिक तंत्र में निवेशित पोषक तत्व तथा निर्गत पोषक तत्व लगभग बराबर होते हैं जिससे पोषक चक्र संतुलित रहता है।


9.एक स्वस्थ पारितंत्र से हमें क्या-क्या सेवाएँ प्राप्त होती हैं तथा ये कितनी महत्त्वपूर्ण हैं ?

उत्तर एक स्वस्थ पारितंत्र आर्थिक, पर्यावरणीय तथा सौंदर्यात्मक वस्तुएँ एवं सेवाओं के विस्तृत परिसर का आधार है। पारितंत्र प्रक्रिया के उत्पादों को पारितंत्र सेवाएँ के नाम से जाना जाता है, उदाहरण के लिए, एक स्वस्थ वन पारितंत्र की भूमिका वायु एवं जल को शुद्ध बनाना, सूखा एवं बादों को घटाना, पोषकों को चकित करना, भूमि को उर्वर बनाना, जंगली जीवों को आवास उपलब्ध कराना, जैव विविधता को बनाए रखना, फसलों का परागण करने में सहायता करना, कार्बन के लिए भंडारण स्थल उपलब्ध कराना और साथ ही सौंदर्यात्मक, सांस्कृतिक एवं आध्यात्मिक मूल्य प्रदान करना आदि है। यद्यपि जैव विविधता की इन सेवाओं का मूल्यांकन करना एक कठिन कार्य है, परंतु यह मानना उपयुक्त है कि जैव विविधता को एक ऊँची कीमत में पर्ची प्रदान की जानी चाहिए।

रॉबर्ट कोंसटैंजा एवं उनके साथियों ने हाल ही में, प्रकृति के जीवन समर्थक (आधारीय) हवाओं की एक कीमत निर्धारित करने का प्रयास किया है। शोधकर्ताओं ने इस मूलभूत परिस्थितिक तंत्र की सेवाओं की एक वर्ष की कीमत औसतन 33 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर तय की है, जिसे व्यापक तौर पर अनुदत्त भाव लापरवाही से लिया जाता है क्योंकि वह मुफ्त प्राप्त है। यह मूल्य वैश्विक सकल उत्पाद (जी. एन. पी.) की कीमत का लगभग तीन गुना ज्यादा है जो कि 18 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर है। विभिन्न पारितंत्र सेवाओं की कुल लागत में से 50 प्रतिशत केवल मृदा संरचना (भूमि गठन) के लिए हैं जबकि शेष सेवाएँ जैसे कि पोषक, चक्रण तथा मनोरंजन आदि प्रत्येक 10 प्रतिशत से कम भागीदारी रखती है। वन्य जीवन के लिए जलवायु नियमन तथा वास की लागत लगभग प्रत्येक के लिए 6 प्रतिशत है।


 10.निम्नलिखित में अंतर स्पष्ट करें :

(क) खाद्य श्रृंखला तथा खाद्य जाल (वेब)

(ख) लिटर (कर्कट) एवं अपरद ।

(ग) प्राथमिक एवं द्वितीयक उत्पादकता ।

उत्तर (क) खाद्य श्रृंखला तथा खाद्य जाल (वेब) में अंतर – एक पोषण रीति के कारण ऊर्जा का स्थानांतरण, दूसरी पोषण रीति के भोजन के रूप में उपयोग होना खाद्य श्रृंखला कहलाता है। यह सरल होता है। एक खाद्य श्रृंखला का एक विशेष शाकभक्षी जब कई खाद्य श्रृंखलाओं के माँसाहारियों का भोजन होता है तब इस प्रकार एक-दूसरे से जुड़ी खाद्य श्रृंखलाओं के आव्यूह को आहार या खाद्य जाल (food web) कहते हैं। यह जटिल होता है। (ख) लिटर (कर्कट) एवं अपरद में अंतर पादपों और प्राणियों के मृत अवशेषों को अपरद कहते हैं। ये दो प्रकार के होते हैं— (i) पृथ्वी की सतह के ऊपर के अपरद, (ii) मृदा के नीचे के अपरद। पादपों के मृत अवशेष पत्तियाँ, छाल, फूल तथा प्राणियों के मूत्र अवशेष, मलादि सहित लिटर कर्कट कहलाते हैं, जो कि अपघटन के लिए कच्चे पदार्थों का काम करते हैं।

(ग) प्राथमिक एवं द्वितीयक उत्पादकता में अंतर- जैव मात्रा के उत्पादन की दर को उत्पादकता कहते हैं इसे g2 yr’ या (K cal m2 ) yr-1 के रूप में व्यक्त किया जा सकता है। इसे सकल या कुल प्राथमिक उत्पादकता तथा नेट प्राथमिक उत्पादकता में विभाजित किया जा सकता है । एक पारिस्थितिक तंत्र की सकल प्राथमिक उत्पादकता प्रकाश संश्लेषण के दौरान कार्बनिक तत्व की उत्पादन दर होती है। सकल प्राथमिक उत्पादकता की एक महत्त्वपूर्ण मात्रा पादपों में श्वसन द्वारा उपयोग की जाती है। यदि हम सकल प्राथमिक उत्पादकता से श्वसन के दौरान हुई क्षति को घटा देते हैं तो हमें नेट प्राथमिक उत्पादकता प्राप्त होती है।

जी. पी. पी. आर = = एन. पी. पी.

द्वितीयक उत्पादकता को उपभोक्ताओं ने नए कार्बनिक तत्वों के निर्माण की दर के रूप में परिभाषित किया है।


11.एक पारिस्थितिक तंत्र में कार्बन चक्रण की महत्त्वपूर्ण विशिष्टताओं की रूपरेखा प्रस्तुत करें।

उत्तर वातावरण में कार्बन, कार्बन डाईऑक्साइड गैस के रूप में विद्यमान रहता है। ये सभी जीवों के लिए नितान्त आवश्यक तत्व है, क्योंकि कोई भी जीव बिना कार्बन के नहीं होता। वातावरण में कार्बन की अनुकूलतम मात्रा लगभग 0.03-0.04% होती है। कार्बन डाईऑक्साइड जलाशयों (तालाब, झील, समुद्र आदि) में भी विद्यमान रहती है। जब तक इनकी मात्रा अनुकूलतम होती है, सभी क्रियाएँ सुगमतापूर्वक होती रहती हैं। इनकी मात्रा अनुकूलतम से अधिक होने पर जीवों को श्वसन में कठिनाई होने लगती है।

यदि वातावरण में इनकी मात्रा अनुकूलतम से कम हो जाती है, तो पौधों की प्रकाश संश्लेषण (Photosynthesis) क्रिया पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। इसीलिए प्रकृति द्वारा कार्बन चक्र से वातावरण में अनुकूलतम कार्बन डाईऑक्साइड निम्न चरणों में पूर्ण होता है |

(i) हरे पौधे, वातावरण से कार्बन डाइऑक्साइड लेकर प्रकाश संश्लेषण क्रिया द्वारा कार्बोहाइड्रेट्स का निर्माण करते हैं। इस प्रकार कार्बन खाद्य में पहुँच जाती है।

(ii) सभी जीव (पौधे तथा जंतु) श्वसन द्वारा कार्बन डाईऑक्साइड वातावरण में छोड़ते है।

(iii) जीवों की मृत्यु के पश्चात् उनमें विघटन होता है और उसके फलस्वरूप कार्बन डाईऑक्साइड फिर से वातावरण में चली जाती है। इसी प्रकार जीवों के उत्सर्जी पदार्थों से भी कार्बन डाईऑक्साइड वातावरण में पहुँचती है।

(iv) हमें पौधों से लाखों वर्षों से कोयला, गैस, तेल आदि प्राप्त होते है। इन्हें जीवाश्मी ईंधन (fossil fuel) कहते हैं। इस ईंधन से मनुष्य परिवहन गाड़ियाँ चलाता है, भोजन पकाता है और इस प्रकार CO2 को वातावरण में छोड़ता है। जीवाश्मी ईंधन में ऊर्जा होती है जो पौधों द्वारा सूर्य से ग्रहण की जाती है और असंख्य वर्षों में यह जीवाश्मी ईंधन के रूप में उपलब्ध होती है।

(v) बड़े-बड़े जलाशयों की ऊपरी सतह के जल में कार्बन डाई ऑक्साइड घुली रहती है, जो कार्बोनिट्स का निर्माण करती है।

(vi) इन कार्बोनिट्स से जलीय पौधे प्रकाश संश्लेषण क्रिया के लिए CO2 प्राप्त करते है, क्योंकि वायु की उपलब्धता नहीं होती।

(vii) जलीय पौधों से कार्बन डाईऑक्साइड जलीय खाद्य श्रृंखला में स्थानांतरित हो जाती है। उदाहरण, शाकाहारी मछलियाँ पौधों को खाती हैं और उनको माँसाहारी जीव खाते हैं, आदि ।

(viii) जलीय पौधे तथा जंतु श्वसन क्रिया में CO2 जल में घोल देत है, जो प्रायः फिर से जलीय पौधे प्रकाश संश्लेषण के लिए उपयोग में ले लेते हैं।

(ix) घोंघे, सीपी तथा अन्य मोलस्क जल से CO2 को अवशोषित करते है। CO2 को कैल्शियम से संयुक्त करा कर कैल्शियम कार्बोनिट (CaCO3) का खोल बनाते हैं। मृत मोलस्क के कवच (shell) समुद्र की तली में जमा होते रहते हैं।

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12.मृदु जलीय तालाब पारिस्थितिक तंत्र का संक्षिप्त विवरण दें।

उत्तर यह एक तरल का छोटा परंतु self sustained जलीय पारितंत्र है जो सभी घटक को प्रदर्शित करता है। इसमें अजैविक तथा जैविक दोनों तरह के अवयव होते हैं।

अजैविक अवयव- इसका माध्यम छिछला जल निकाय है। इसमें अकार्बनिक तथा कार्बनिक दोनों ही तरह के पदार्थ जल में घुलित होते हैं। अकार्बनिक तथा कार्बनिक पदार्थ मुलित मृदा जल की पैदी पर प्रचुर मात्रा में होते हैं। जल प्रवाह द्वारा ऐसे पदार्थ बहकर तालाब में आते चले जाते हैं।

जैविक अवयव- इसके अंतर्गत उत्पादक, उपभोक्ता तथा decomposers आते है। उत्पादक के तौर पर फायटोप्लांकटन आते हैं। उपभोक्ता के रूप में Zooplankton, स्वतंत्र तैरने वाला तथा पेंदी में रहने वाले जीव आते हैं। कुछ पक्षी भी तालाब में मछली खाने के लिए आते है। Decomposers प्राय: तालाब की पेंदी में रहते हैं। इसमें मुख्य रूप से बैक्टीरिया तथा कवक आते हैं।

तालाब में पाये जाने वाले सभी हरे पौधे जैसे— हाइड्रिला, पोटोमेजीटॉन, मार्सीलिया, रेननकुलस तथा विभिन्न प्रकार के प्लवक शैवाल जैसे स्पाइरोगाइरा वॉलवॉक्स, यूलोथिक्स, नॉस्टोक आदि उत्पादकों के उदाहरण हैं। ये सभी उत्पादक हरित लवक, CO, तथा जल की सहायता से और ऊर्जा की उपस्थिति में प्रकाश संश्लेषण द्वारा भोज्य पदार्थ बनाते हैं।


13.तीनों पारिस्थितिक पिरामिडों के बारे में सोदाहरण वर्णन करें।

उत्तर पारिस्थितिक पिरामिड निम्नलिखित प्रकार के होते हैं

(i) संख्या का पिरामिड- यह उत्पादक एवं प्रथम, द्वितीय तथा तृतीय श्रेणी के उपभोक्ताओं की संख्याओं के आधार पर होता है, यह सीधा होता है।

(ii) जीवभार का पिरामिड-  वन पारिस्थितिक तंत्र में उत्पादक का जीव भार सबसे अधिक होता है और सर्वोच्च श्रेणी के उपभोक्ता का जैव भार सबसे कम होता है। अतः इसमें पिरामिड सीधा होता है। जबकि तालाब पारिस्थितिक तंत्र में जीवभार का पिरामिड उल्टा होता है, क्योंकि सर्वोच्च उपभोक्ता जैवभार सबसे अधिक जबकि उत्पादकों का जैवभार सबसे कम होता है।

(iii) ऊर्जा का पिरामिड- यह हमेशा सीधा होता है क्योंकि उत्पादक में सबसे अधिक सौर ऊर्जा संचित रहता है जो क्रमशः घटते क्रम में सर्वोच्च उपभोक्ता में संचित होता है।


14.खाद्य जाल क्या है ? वन क्षेत्रों में खाद्य जालों को रेखा चित्रों से दर्शाए

उत्तर आहार (खाद्य) जाल पारिस्थितिक तंत्र में सामान्यतः एक, साथ कई आहार श्रृंखलाएँ हमेशा सीधी न होकर एक-दूसरे से आड़े-तिरछे जुड़कर एक जाल-सा बनाती है। आहार श्रृंखलाओं के इस जाल को आहार जाल कहते हैं। ऐसा इसलिए होता है कि पारिस्थितिक तंत्र का एक उपभोक्ता एक से अधिक भोजन स्रोत का उपयोग करता है, जैसे एक घास के मैदान के पारिस्थितिक तंत्र में पाए जानेवाले जीवों की कड़ियाँ घास और अन्य पौधे, मेढक, कीट, सर्प, गिरगिट, बाज, पक्षी तथा खरगोश है। बाज पक्षी घास खानेवाले कीटों को भी खा सकता है और साथ-साथ कीटों की खानेवाले मेढक या गिरगिट को भी खाता है। इसका परिणाम यह होता है कि ऐसी सारी श्रृंखलाएँ एक-दूसरे से जाल की तरह जुड़ी हुई रहती हैं। आपस में जुड़ी हुई ऐसी आहार श्रृंखलाएँ आहार जाल का निर्माण करती है।

 


 15.पवित्र उपवन या निकुज क्या है ? ये कहाँ पाए जाते हैं ?

उत्तर भारत में सांस्कृतिक व धार्मिक परम्परा का इतिहास प्रकृति की रक्षा करने पर जोर देता है। बहुत-सी संस्कृतियों में वनों के लिए अलग भू-भाग छोड़े जाते थे और उनमें सभी पौधों एवं वन जीवों की पूजा की जाती थी। अलौकिक या पवित्र उपवन पूजा स्थलों के चारों ओर पाये जाने वाले क्षेत्र वनखण्ड है। ये जातीय समुदायों, राज्य या केन्द्र सरकार द्वारा स्थापित किये गये हैं। ये पवित्र उपवन या आश्रय मेघालय की खाँसी तथा जयंतियाँ पहाड़ी, राजस्थान की अरावली, कर्नाटक तथा महाराष्ट्र के पश्चिम घाट व मध्य प्रदेश की सरगुजा, बंदा व बस्तर क्षेत्र है राजस्थान में विश्नोई समुदाय के लोगों ने प्रोस्पिस को धार्मिक रूप से बचाया है। मेघालय के पवित्र उपवन अनेक दुर्लभ व संकटाग्रस्त पौधों की अंतिम शरणस्थली है। पवित्र उपवन में किसी को पौधों को तोड़ने की अनुमति नहीं होती थी।

Bihar Board 2024 Question Paper Biology 


Class 12th Biology ( दीर्घ उत्तरीय प्रश्न )
1जीवधारियों में जननClick Here
2पुष्पी पादपों में लैंगिक प्रजननClick Here
3मानव प्रजननClick Here
4जनन स्वास्थ्यClick Here
5वंशागति और विभिन्नता के सिद्धांतClick Here
6वंशागति का आणविक आधारClick Here
7विकासClick Here 
8मानव स्वास्थ्य एवं रोगClick Here
9खाद उत्पादन बढ़ाने के लिए उपायClick Here
10मानव कल्याण में सूक्ष्मजीवClick Here
11जैव प्रौद्योगिकी के सिद्धांत एवं प्रक्रिया हैClick Here
12जैव प्रौद्योगिकी एवं इसके अनुप्रयोगClick Here
13जीव एवं समष्टियाClick Here 
 BSEB Intermediate Exam 2024
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