Biology Question Paper 12th Bihar Board 2024 | Class 12th Biology ncert Solutions pdf Download 2024

Biology Question Paper 12th Bihar Board :-  दोस्तों यदि आप class 12th biology question answer की तैयारी कर रहे हैं तो यहां पर आपको 12th Biology Chapter 8 Long Subjective Question 2024 दिया गया है जो आपके 12th biology question paper In Hindi  के लिए काफी महत्वपूर्ण है | class 12 biology question answer in hindi


Biology Question Paper 12th Bihar Board

1.निम्नलिखित रोगों का संचरण कैसे होता है ?

(क) अमीबता

 (ख) मलेरिया

(ग) एस्केरिसता

(घ) न्युमोनिया

उत्तर ⇒ (क) अमीबता – मानव की वृहत् आंत्र में पाए जाने वाले एण्टअमीबा हिस्टोलिटिका नामक प्रोटोजोन परजीवी से अमीबता (अमीबिएसस) या अमीबी अतिसार होता है। कोष्ठबद्धता (कब्ज), उदरीय पीड़ा और ऐंठन, अत्यधिक श्लेषमल और रक्त के थक्के वाला मल इस रोग के लक्षण है। घरेलू मक्खियों इस रोग की शारीरिक वाहक हैं और परजीवी को संक्रमित व्यक्ति के मल से खाद्य और खाद्य पदार्थों तक ले जाकर उन्हें संदूषित कर देती हैं। मल पदार्थ द्वारा संदूषित पेयजल और खाद्य पदार्थ संक्रमण के प्रमुख स्रोत हैं।

(ख) मलेरिया- प्लैज्मोडियम नामक एक बहुत ही छोटा-सा प्रोटोजोअन मलेरिया के लिए उत्तरदायी है। प्लैज्मोडियम की विभिन्न जातियाँ (प्लै वाइवेक्स, प्लै मेलिरिआई और प्लै फैल्सीपेरम) विभिन्न प्रकार के मलेरिया के लिए उत्तरदायी है। इनमें से प्लैज्मोडियम फैल्सीपेरम द्वारा होने वाला दुर्दम (मेलिगनेट) सबसे गंभीर है तथा यह घातक भी हो सकता है। मादा ऐनोफेलीज मच्छर मानव में इस रोग का संचारण करती है।

(ग) एस्केरिसता- आंत्र परजीवी ऐस्कारिस से एस्केरिसता (एस्केरिएसिस) नामक रोग होता है। आंतरिक रक्तस्राव, पेशीय पीड़ा, ज्वर, अरक्तता और आंत्र का अवरोध इस रोग के लक्षण हैं। इस परजीवी के अण्डे संक्रमित व्यक्ति के मल के साथ बाहर निकल आते हैं और मिट्टी, जल, पौधों आदि को संदूषित कर देते हैं। स्वस्थ व्यक्ति में यह संक्रमण संदूषित पानी, शाक-सब्जियों, फलों आदि के सेवन से हो जाता है।

(घ) न्युमोनिया— स्ट्रेप्टोकोकस न्युमोनी और हीमोफिल्स इंफ्लुएंजी जैसे जीवाणु मानव में न्युमोनिया रोग के लिए उत्तरदायी है। इस रोग में फुफ्फुस के वायुकोष्ठ संक्रमित हो जाते हैं। संक्रमण के फलस्वरूप वायुकोष्ठों में तरल भर जाता है जिसके कारण साँस लेने में समस्या पैदा हो जाती हैं। ज्वर, ठिठुरन, खाँसी और सिरदर्द आदि न्युमोनिया के लक्षण हैं।


2.सामुदायिक स्वास्थ्य क्यों महत्वपूर्ण है ? सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्रों द्वारा किए जाने वाले किन्हीं पाँच मुख्य कार्यों की सूची बनाइए

उत्तर ⇒ सरकार अथवा स्थानीय संगठनों द्वारा लोगों का स्वास्थ्य बनाए रखने की गतिविधियाँ, सामुदायिक स्वास्थ्य कहलाती है। किसी खास क्षेत्र में कुछ रोग तेजी से फैलते हैं। कई लोग इन रोगों से ग्रस्त हो जाते हैं। यह एक वैयक्तिक समस्या नहीं है अपितु यह पूरे समुदाय की समस्या है और इसके लिए तुरंत ध्यान देना आवश्यक है। स्थानीय या सरकारी संस्थाएँ जागरुकता पैदा कर तथा पर्याप्त मात्रा में दवाईयों की उपलब्धि सुनिश्चित करके इन्हें फैलने से रोकने के लिए कदम उठा सकती है। ऐसी जागरुकता का देश भर में मलेरिया, डेंगू, एड्स, लकवा, कोढ़ और यकृतशोथ जैसी बीमारियों के फैलने के खिलाफ अभियान नियमित रूप से किया जाता है। सामुदायिक स्वास्थ्य केन्द्रों द्वारा किए जाने वाले कुछ महत्त्वपूर्ण कार्य इस प्रकार हैं

(i) बस्तियों के कचरे का निपटान व उचित स्वच्छता का प्रबंधन

(ii) स्वच्छ व रोगाणुरहित पेयजल उपलब्ध कराना ।

(iii) किसी बीमारी के फैलने का खतरा उत्पन्न होने पर विभिन्न प्रतिरक्षाकरण कार्यक्रमों तथा कई अन्य स्वास्थ्य जागरुकता कार्यक्रमों को चलाना ।

(iv) स्वास्थ्य शिक्षा प्रदान करना।

(v) नुकसानदेह कीटों के विनाश के लिए कीट-रसायनों का छिड़काव

(vi) खाद्य पदार्थों का मानक बनाए रखना, खाद्य भंडारों, माँस व दुग्ध केंद्रों का नियमित निरीक्षण करना।

(vii) मच्छरों का प्रजनन रोकने के लिए खुली नालियों का ढकाव व ठहरे हुए पानी की सतह पर मिट्टी का तेल डालना आदि ।


3.प्रतिरक्षाकरण क्या है ? राष्ट्रीय प्रतिरक्षा कार्यक्रमों के अनुसार बीमारी स्पष्ट करते हुए किन्हीं चार टीकों के नाम व उम्र बताइए जब उन्हें दिया जाना चाहिए।

उत्तर ⇒ रोगों के खिलाफ शरीर को बचाने की शारीरिक क्षमता को प्रतिरक्षा कहते हैं। माँ का दूध शैशव काल में नवजात शिशु के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है, क्योंकि यह उसे रोगों से लड़ने की प्रतिरक्षा करता है। प्रतिरक्षा दो प्रकार की होती है—

(i) सहज प्रतिरक्षा (जन्मजात )

(ii) उपार्जित प्रतिरक्षा (व्यक्ति के जीवनकाल में प्राप्त)

प्रतिरक्षा करने के तरीके :

(i) रोगग्रस्त होने पर- किसी रोग से पीड़ित व्यक्ति उस बीमारी के खिलाफ आजीवन प्रतिरक्षा प्राप्त कर लेता है, जैसे― चेचक, खसरा या गलसुआ

(ii) टीकाकरण द्वारा- पोलियो, तपेदिक, यकृतशोध इत्यादि जैसी बीमारियों के खिलाफ टीके लगवा कर । “टीके, क्षीण किए रोगाणु है जब से शरीर में प्रवेश करते हैं तो रोगों के खिलाफ शारीरिक प्रतिरोध विकसित कर लेते हैं लेकिन रोग नहीं पैदा करते।” कई संक्रामक रोगों को फैलने से रोकने के लिए टीकों द्वारा प्रतिरक्षाकरण अत्यधिक कारगर उपाय है। लकवा, चेचक, टिटनेस, पतले दस्त, काली खाँसी, तपेदिक और विभिन्न प्रकार के यकृतशोथों के खिलाफ टीके उपलब्ध हैं। आजीवन प्रतिरक्षा के लिए अधिकतर प्रतिरक्षण को कम उम्र प्रदान किया जाना चाहिए।

12th biology question paper In Hindi


4.लसीकाम अंगों की कार्यप्रणाली का वर्णन कीजिए।

उत्तर ⇒ लसीकाम अंग- ये ही वे अंग है जिनमें लसीकाणुओं की उत्पत्ति और / या परिपक्वन (मैयुरेसन) और प्रचुरोभवन (प्रोलिफरेसन) होता है। अस्थि मज्जा (बोन मैरो) और थाइमस ऐसे प्राथमिक लसीकाभ अंग हैं जहाँ अपरिपक्व लसीकाणु, प्रतिजन संवेदनशील लसीकाणुओं में विभेदित होते हैं। परिपक्वन के बाद लसीकाणु प्लीहा (स्प्लीन), लसीका ग्रंथियों, टांसिलों, क्षुद्रांत्र के मेयर पैचो और परिशोषिका (अपेंडिक्स) जैसे द्वितीयक अंगों में चले जाते हैं। द्वितीयक लसीकाभ ही ऐसे स्थान है जहाँ लसीकाणुओं की प्रतिजन के साथ पारस्परिक क्रिया होती है जो बाद में प्रचुर संख्या में उत्पन्न होकर प्रभावी कोशिकाएँ बन जाते हैं। मानव शरीर में विभिन्न लसीकाभ श्रेणी की स्थिति चित्र में दर्शित है।

                                    अस्थि मज्जा मुख्य लसीकाभ अंग है, जहाँ लसीकाणुओं समेत सभी रुधिर कोशिकाएँ उत्पन्न होती हैं। थाइमस एक सपालि (लोब्ड) अंग है जो हृदय के पास उरोस्थि के नीचे स्थित है। जन्म के समय थाइमस काफी बड़ा होता है, लेकिन बढ़ती उम्र के साथ आकार में घटता रहता है और यौवनावस्था आने पर यह बहुत छोटे आकार का रह जाता है। अस्थि मज्जा और थाइमस, दोनों ही टी लसीकाणुओं के परिवर्धन और परिपक्वन के लिए सूक्ष्म पर्यावरण मुहैया कराते हैं ।

प्लीहा सेम के आकार का बड़ा अंग है। इसमें मुख्य रूप से लसीकाणु और भक्षकाणु होते हैं। यह रुधिर में पैदा होने वाले सूक्ष्म जीवों को फाँसकर रुधिर निस्यंदक (फिल्टर) के रूप में काम करते हैं। प्लीहा में लाल रक्त कणिकाओं का बड़ा भंडार होता है। लसीका ग्रंथियाँ छोटी ठोस संरचनाएँ होती हैं, जो लसीका तंत्र पर भिन्न-भिन्न स्थलों पर स्थित हैं जो सूक्ष्मजीव या दूसरे प्रतिजन लसीका और ऊतक तरल में आ जाते हैं, लसीका ग्रंथियाँ उन्हें फाँस लेती हैं। लसीका ग्रंथियों में फँसे प्रतिजन वहाँ मौजूद लसीकाणुओं के संक्रियण और प्रतिरक्षा अनुक्रिया के लिए उत्तरदायी है।

प्रमुख पथों (श्वसन, पाचन और जननमूत्र पथ) के अस्तरों (लाइनिंग) के भीतर लसीकाभ ऊत्तक स्थित हैं जो श्लेष्म संबद्ध लसीकाभ ऊत्तक (एम ए एल टी– म्यूकोसल एसोसिएटेड लिम्फॉयड टिशू) कहलाते हैं। यह मानव शरीर के लसीकाभ ऊतक का लगभग 50 प्रतिशत है।


5.कैंसर रोग के विषय में अभिज्ञान और निदान पर एक संतुलित लेख लिखिए।

उत्तर ⇒ कैंसर अभिज्ञान और निदान कैंसरों का शुरू में ही पता लगाना बहुत ही आवश्यक है, क्योंकि ऐसा होने पर कई मामलों में इस रोग का सफलतापूर्वक उपचार किया जा सकता है। कैंसर अभिज्ञान ऊतकों की जीतृतिपरीक्षा (बायोप्सी) और ऊतक विकृति (हिस्टोपैथोलॉजिकल) अध्ययनों तथा बढ़ती कोशिका गणना के लिए रुधिर तथा अस्थिमज्जा परीक्षण पर आधारित है, जैसा कि अधिश्वेतरक्तता (ल्यूकीमिया) के मामले में होता है। जीवूतिपरीक्षा में जिस ऊत्तक पर शक होता है उसका एक टुकड़ा लेकर पतले अनुच्छेदों में काटकर अभिरंजित करके रोग विज्ञानी द्वारा जाँचा जाता है। आंतरिक अंगों के कैंसर का पता लगाने के लिए विकिरण-चित्रण (रेडियोग्राफी) (एक्स-किरणों का प्रयोग), अभिकलित टॉमोग्राफी (सीटी कंप्यूटेड टॉमोग्राफी) और चुंबकीय अनुनादी इमेजिंग (एम आर आई-मैगनेटिक रेजोनेंस इमेजिंग) जैसी तकनीकें बहुत उपयोगी हैं। अभिकलित टॉमोग्राफी एक्स-किरणों का उपयोग करके किसी अंग के भीतरी भागों की त्रिविम प्रतिबिंब बनाती है। जीवित ऊत्तक में वकृतिक (पैथोलॉजिकल) और कार्यिकीय (फिजियोलॉजिकल) परिवर्तनों का एकदम सही पता लगाने के लिए एम आर आई में तेज चुंबकीय क्षेत्रों और अनायनकारी विकिरणों का उपयोग किया जाता है।

कुछ कैंसरों का पता लगाने के लिए कैंसर विशिष्ट प्रतिजनों के विरुद्ध प्रतिरक्षियों का भी उपयोग किया जाता है। कुछ कैंसरों के प्रति वंशागत सुग्रहिता वाले व्यक्तियों में जीनों का पता लगाने के लिए आणविक (मॉलीकुलर) जैविकी की तकनीकों को काम में लाया जा सकता है। ऐसे जीनों की पहचान, जो किसी व्यक्ति को विशेष कैसरों के प्रति प्रवृत्त (प्रीडिस्पोज) करते हैं, कैंसर की रोकथाम के लिए बहुत उपयोगी हो सकते हैं। ऐसे व्यक्तियों को कुछ ऐसे विशेष कैंसरजनों से जिनके प्रति वे सुग्राही है, (जैसे- फुफ्फुस कैंसर में तंबाकू का धुआँ) से बचने की सलाह देनी चाहिए।


6.क्या आप सोचते हैं कि मित्रगण किसी को ऐल्कोहल / ड्रग सेवन के लिए प्रभावित कर सकते हैं? यदि हाँ, तो व्यक्ति ऐसे प्रभावों से कैसे अपने आपको बचा सकते हैं ?

उत्तर ⇒ ऐसे मामलों में माता-पिता और अध्यापकों का विशेष उत्तरदायित्व है। ऐसा लालन-पालन जिसमें पालन-पोषण का स्तर ऊँचा हो और सुसंगत अनुशासन हो, ऐल्कोहल / ड्रग / तंबाकू के कुप्रयोग का खतरा कम कर देता है। यहाँ दिए गए कुछ उपाय किशोरों में ऐल्कोहल और ड्रग के कुप्रयोग की रोकथाम तथा नियंत्रण में विशेषरूप से कारगर होंगे

(i) आवश्यक समकक्षी दबाव से बचें- प्रत्येक बच्चे की पसंद और आदतें व्यक्तिगत होती है, जिसका सम्मान और प्रोत्साहन करना चाहिए। बालक को उसकी अवसीमा (सोल्ड) से अधिक करने के लिए अनावश्यक दबाव नहीं डालना चाहिए।

(ii) शिक्षा और परामर्श- समस्याओं और दबावों का सामना करने और निराशाओं तथा असफलताओं को जीवन का एक हिस्सा समझकर स्वीकार करने की शिक्षा एवं परामर्श उन्हें देना चाहिए। यह भी उचित होगा कि बालक की ऊर्जा को खेल-कूद, पढ़ाई, संगीत, योग और पाठयक्रम के अलावा दूसरी स्वस्थ गतिविधियों की दिशा में लगाया जाय ।

(iii) माता-पिता और समकक्षियों से सहायता लेना- माता-पिता और समकक्षियों से फौरन मदद लेना चाहिए, ताकि वे उचित मार्गदर्शन कर सकें। निकट और विश्वसनीय मित्रों से भी सलाह लेनी चाहिए। युवाओं की समस्याओं को सुलझाने के लिए समुचित सलाह से उन्हें अपनी चिंता और अपराध भावना को अभिव्यक्त करने में सहायता मिलेगी।

(iv) संकट के संकेतों को देखना सावधान – माता-पिता और अध्यापकों को चाहिए कि ऊपर बताए गए खतरे के संकेतों पर ध्यान दें और उन्हें पहचाने मित्रों को भी चाहिए कि अगर वे परिचित को ड्रग या ऐल्कोहल लेते हुए देखें तो वे उस व्यक्ति के भले के लिए माता-पिता या अध्यापक को बताने में हिचकिचाएँ नहीं। इसके बाद बीमारी को पहचानने और उसके पीछे छुपे कारणों का पता लगाने के लिए उचित उपाय करने होगे। इससे समुचित चिकित्सीय उपाय आरंभ करने में सहायता मिलेगी।

(v) व्यावसायिक और चिकित्सा सहायता लेना- जो व्यक्ति दुर्भाग्यवश ड्रग / ऐल्कोहल के कुप्रयोग में फँस गया है उसकी सहायता के लिए उच्च योग्यता प्राप्त मनोवैज्ञानिकों, मनोरोगविज्ञानियों आदि से व्यवसन छुड़ाने तथा पुनः स्थापना कार्यक्रमों हेतु सहायता ली जानी चाहिए। ऐसी सहायता से प्रभावित व्यक्ति पर्याप्त प्रयासों और इच्छाशक्ति द्वारा इस समस्या से पूरी तरह छुटकारा पा सकता है और पूर्णरूपेण सामान्य और स्वस्थ जीवन जी सकता है।

12th Biology Chapter 8 Long Subjective Question


7.HIV वाइरस का सचित्र उदाहरण देते हुए AIDS के संचरण की विधि, कारक, लक्षण, बचाव और उपचार का वर्णन करें।

उत्तर ⇒ एड्स (AIDS-Acquired Immuno Deficiency Syndrome) अर्थात् अर्जित प्रति रक्षान्यूनता संलक्षण उत्पन्नकारी जीव – एड्स एक विषाणु (virus) से होता है जिसे HIV (Human Immunodeficiency Virus) अथवा मानव प्रतिरक्षान्यूनता विषाणु’ कहते हैं। एक बार शरीर में प्रवेश कर जाने के बाद यह विषाणु संक्रमिक व्यक्ति के देह तरलों तथा रक्त कोशिकाओं में पनपता है।

संचरण विधि – एड्स का संचरण निम्न में से किसी एक प्रकार से हो सकता है—

(i) प्रभावित व्यक्ति से यौन सम्पर्क होने पर ।

(ii) उन्हीं सुइयों का प्रयोग करना जो प्रभावित व्यक्ति द्वारा प्रयोग की गई हैं।

(iii) ऐसे रक्त का शरीर में चढ़ाना जिसमें एड्स के वाइरस मौजूद हो।

(iv) किसी प्रभावित व्यक्ति से लिए गए अंगों का प्रत्यारोपण ।

(v) कृत्रिम वीर्य सेचन । (vi) प्रसव के समय माँ से बच्चे में पहुँचना ।

प्रगटन काल – औसत समय 28 महीने का है हालाँकि यह 15 से 57 महीनों तक कम या अधिक हो सकता है।

लक्षण – पीड़ित व्यक्ति में निम्न में से एक या अधिक लक्षण होते दिखाई देते हैं—

(i) एक प्रकार का फेफड़ों का रोग हो जाता है।

(ii) त्वचा का कैंसर हो सकता है।

(iii) तंत्रिका तंत्र प्रभावित हो सकता है।

 (iv) मस्तिष्क में बहुत क्षति हो सकती है, जिससे याद्दाश्त खत्म हो सकती है। बोलने की क्षमता जाती रहती है और सोचने की शक्ति भी नहीं रहती।

(v) प्लेटलेट्स (थाम्बोसाइटों) की संख्या घट जाती है जिससे रक्तस्राव हो सकता है।

(vi) गंभीर मामलों में लसीका ग्रंथियाँ (lymp nodes) सूज जाती है तथा बुखार होता है और वजन गिर जाता है। रोग के अपनी पूर्ण चरम दशा में पहुँच जाने पर रोगी की तीन वर्ष के अंदर मृत्यु हो सकती है।

बचाव और उपचार – HIV के संक्रमण के प्रति अभी तक कोई औषधि अथवा वैक्सीन उपलब्ध नहीं है। अतः निम्नलिखित उपायों के द्वारा सावधानी बरतनी चाहिए :

 (i) HIV संक्रमण से युक्त व्यक्ति के साथ यौन सम्पर्क नहीं होना चाहिए।

(ii) डिस्पोजेबल सुइयों का उपयोग किया जाना चाहिए।

(iii) जरूरतमंद व्यक्ति के लिए चढ़ाया जानेवाला रक्त HIV रोगाणु से मुक्त होना चाहिए।

(iv) वेश्यागमन तथा समलैंगिकता से बचना चाहिए।

(v) कंडोम का प्रयोग करना चाहिए।

एड्स का एलिसा (ELISA) परीक्षण से पता लगाया जा सकता है।


8.संक्रामक रोग से आप क्या समझते हैं? संक्रामक रोगों के फैलने की विभिन्न विधियों का उल्लेख करें। संक्रामक रोगों के विरोध एवं नियंत्रण हेतु जन स्वास्थ्य उपाय क्या है?

उत्तर ⇒ संक्रामक रोगों का संचरण – संक्रामक रोगों का संचरण अनेक विधियों तथा मार्गों से होता है। शरीर मे प्रवेश करने के बाद रोगाणु लक्ष्य ऊतकों में पहुँचकर प्रचुरोद्भवन द्वारा संख्या में वृद्धि करते हैं और ऊतकों में पहुँचकर प्रचुरोद्भवन द्वारा संख्या में वृद्धि करते हैं और ऊतकों को नष्ट करते हैं। ये रोगाणु फिर या एक अधिक मार्गों से निकलकर दूसरे पोषदों में जाते हैं। आबादी में एक संक्रमित व्यक्ति से रोग के सीधे दूसरे व्यक्ति में जाने को क्षैतिज संचरण तथा माता-पिता से शुक्राणु, अण्ड, अविल व दूध आदि के माध्यम से रोग के शिशुओं में जाने का उदय संचरण कहते हैं। विभिन्न संचरण मार्गों को दो श्रेणियों में बाँटा जा सकता है—

(1) प्रत्यक्ष संचरण एवं      (2) अप्रत्यक्ष संचरण ।

(1) प्रत्यक्ष संचरण – प्रत्यक्ष संचरण में सबसे प्रमुख एक व्यक्ति का दूसरे से सम्पर्क है। यह सम्पर्क हाथ मिलाने, चुम्बन, शरीर द्रव्यों का आदान प्रदान जैसे रुधिर आधान, लैंगिक संसर्ग आदि से होता है। कुछ रोग जैसे संक्रामक एक केन्द्रकाणुता चुम्बन द्वारा, गोनोरिया व जननिक हर्षित लैंगिक संसर्ग से तथा हिपेटाइटिस-बी रुधिर आधान से फैलते हैं। कुछ रोग माता से अजन्मे शिशु में आंवला द्वारा अथवा जन्म के समय योनि मार्ग से संचारित होते हैं। एड्स इसका ज्वलन्त उदाहरण है। रेबीज रोग पालतू जानवरों जैसे – कुत्ता, बिल्ली, बन्दर आदि के काटे जाने से होते हैं। टोक्सोप्लाज्मोसिस  जिसे लिटर बॉक्स बीमारी भी कहते हैं बिल्लियों के मल में पाये जाने वाले प्रोटोजोन्स के कारण होती है। बिल्लियाँ इस रोग से अप्रभावित रहती हैं परन्तु इस बीमारी के प्रभाव से महिलाओं में गर्भपात या असामयिक प्रसव होता है। अतः गर्भित महिलाओं को इससे बचना चाहिए।

             अनेक बीमारियों के रोगाणु खाँसने तथा छींकने द्वारा संचरित होते हैं जैसे जुकाम तथा फ्लू आदि। इनके रोगाणु श्लेष्मा तथा लार के छोटे-छोटे विन्दुक केन्द्रकों में निलम्बित रहते हैं। यद्यपि ये 3 फुट की दूरी तक ही ठहर सकते हैं परन्तु यदि नाक, आँख या मुख सम्पर्क में आ जाये तो संचरण हो जाता है। अधिक भीड़ वाले स्थानों जैसे कक्षाकक्ष, एयरपोर्ट, वायुयान या सर्दियों में व्यक्तियों के पास-पास सटे होने से संचरण की सम्भावना अधिक होती है।

(2) अप्रत्यक्ष संचरण- अप्रत्यक्ष संचरण व्यक्ति के किसी रोगाणुयुक्त निर्जीव या अचेतन वस्तुओं जैसे रूमाल, दरवाजों के हैण्डल, फर्नीचर आदि के सम्पर्क में आने पर होता है, इसके अतिरिक्त दूषित भोजन व जल द्वारा, कुछ आर्थोपोड कीटों जैसे मक्खी मच्छर, पिस्सू द्वारा भी रोगों का संचरण होता है। त्वचा भेदन से भी टिटेनस जीवाणु का संचरण होता है। वायु में उपस्थित ऐरोसोल कर्णो द्वारा TB, SARS (Severe Acute Respiratory Syndrome) आदि रोग फैलते है।

नोसोकोमिअल संक्रमण- अस्पतालो मे भी रोगों का संचरण होता है यद्यपि यह दर बहुत कम 0.1% तथा अधिक से अधिक 20% तक होती है दूसरे रोगी, रोगियों से मिलने वाले व्यक्ति तथा परिचायक भी कभी कभी चिकित्सीय उपकरणों, दरवाजों के हैण्डल, जल तथा वायु द्वारा रोगग्रस्त हो जाते हैं। इसे नोसोकोमिअल संक्रमण होते हैं। इनमें अधिकतर संक्रमण मूत्र सम्बन्धी, श्वसन सम्बन्धी व सर्जरी सम्बन्धी होते है।


9.क्षय रोग क्या है? यह किस जीवाणु द्वारा होता है? इसके रोकथाम के बारे में लिखें

उत्तर ⇒ क्षय रोग–क्षय रोग जीवाणु जन्य वायु संचरित संक्रामक रोग है। यह रोग मुख्य रूप से मानव फेफड़ा को प्रभावित करता है। इसके अतिरिक्त अस्थियाँ, आत, मस्तिष्क भी इस रोग से ग्रसित होता है। क्षय रोग माइक्रोबैक्टीरियम ट्यूबरकुलोसिस नामक जीवाणु के कारण होता है। क्षय रोग का रोकथाम निम्नांकित उपायों द्वारा क्षय रोग की रोकथाम की जा सकती है

(i) स्वस्थ व्यक्तियों को रोगी द्वारा उपयोग में लाए जा रहे बर्तनों, कपड़ों, चादरों, बिछावनों का उपयोग नहीं करना चाहिए। यदि आवश्यक हो तो उसे अच्छी तरह असंक्रमित कर ही उपयोग में लाना चाहिए।

(ii) रोगी को सामुदायिक / सार्वजनिक या भीड़-भाड़ वाले जगहों से दूर रखना चाहिए।

(iii) रोगी से मिलते समय मास्क का प्रयोग करना चाहिए।

(iv) रोगी का उचित उपचार प्रदान कर उसके रहने की जगह को साफ करते जाना चाहिए ।

(v) रोगी को पौष्टिक आहार देना चाहिए। एवं


10.जैव प्रतिरक्षण को परिभाषित करें। समुचित संकरण उदाहरणों की मदद से इसका वर्णन करें। अथवा, जैव-प्रतिरक्षण के मुख्य सिद्धांतों का सोदाहरण वर्णन करें। इसका उपयोग बतावें

उत्तर ⇒ हमारा शरीर हर समय वातावरण के संपर्क में रहता है। वातावरण में अनेक रोगाणु उपस्थित होते है, लेकिन हर समय हम बीमारी से ग्रसित नहीं होते हैं। क्योंकि हमारा शरीर स्वयं रोगाणुओं से अपनी रक्षा करता है।

किसी व्यक्ति के खुद रोगाणुओं से अपना रक्षा स्वयं करने की प्रतिरक्षा कहते हैं।

प्रतिरक्षा के अध्ययन को Immunology कहते हैं।

 Immunology के मुख्य दो आधार हैं:


11.मलेरिया ज्वर के कारण, लक्षण, नियंत्रण तथा इसके रोकथाम के बारे में लिखें।

उत्तर ⇒ मलेरिया ज्वर मलेरिया परजीवी प्लाज्मोडियम की चार प्रजाति के स्पारोज्वाइट जो मादा एनोफलीज मच्छर के लार में स्थित होता है, इस मच्छर द्वारा स्वस्थ मनुष्य को काटने से मानव शरीर में पहुँचने के कारण होता है।

मलेरिया ज्वर के लक्षण – नियमित अंतराल पर जाड़ा के साथ बुखार आना, कंपकपाहट के साथ शरीर के तापक्रम करीब 106°F तब बढ़ जाना जिसके कारण शरीर में थरथराहट भी होता है। उच्च ज्वर के बाद अत्यधिक पसीना आना। अधिक समय के बाद यकृत प्लीहा का बढ़ जाना, भूख में कमी।

मलेरिया ज्वर का नियंत्रण- मलेरिया का नियंत्रण एवं रोकथाम सम्मिलित प्रयास है जो निम्नांकित क्रिया विधि से संभव है—

(क) एनोफलीज मच्छर के जनन को नियंत्रित करके इसके लिए जनन स्थल पर इसके लार्वा को ही मार दिया जा सकता है। इस कार्य के लिए जल सतह पर किरोसीन तेल का छिड़काव किया जाता है एवं स्थिर जलस्रोत में लार्वा खानेवाली मछली को डाला जाता है।

(ख) मच्छर के काटने से बचाव के लिए मच्छरदानी का प्रयोग करके, शरीर पर सरसों तेल या क्रीम लगाकर ।

(ग) कीटनाशी का छिड़काव, घर की साफ-सफाई, जमा जल को हटाना आदि।

12th Class Biology Question Paper 2024


Class 12th Biology – Objective 
1जीवधारियों में जननClick Here
2पुष्पी पादपों में लैंगिक प्रजननClick Here
3मानव प्रजननClick Here
4जनन स्वास्थ्यClick Here
5वंशागति और विभिन्नता के सिद्धांतClick Here
6वंशागति का आणविक आधारClick Here
7विकासClick Here
8मानव स्वास्थ्य एवं रोगClick Here
9खाद उत्पादन बढ़ाने के लिए उपायClick Here
10मानव कल्याण में सूक्ष्मजीवClick Here
11जैव प्रौद्योगिकी के सिद्धांत एवं प्रक्रिया हैClick Here
12जैव प्रौद्योगिकी एवं इसके अनुप्रयोगClick Here
13जीव एवं समष्टियाClick Here
14परिस्थितिक तंत्रClick Here
15जैव विविधता एवं संरक्षणClick Here
16पर्यावरण मुद्देClick Here
 BSEB Intermediate Exam 2024
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