Biology VVI Subjective Questions Class 12th | Class 12th Biology VVI Question 2024

Biology VVI Subjective Questions Class 12th :-  दोस्तों यदि आप Biology VVI Question Class 12th की तैयारी कर रहे हैं तो यहां पर आपको Biology Chapter 7  ( विकास ) Long Question दिया गया है जो आपके Biology 12th Question And Answer pdf के लिए काफी महत्वपूर्ण है | bihar board class 12th biology notes in hindi pdf


Biology VVI Subjective Questions Class 12th

1.अनुकूलन से आप क्या समझते हैं ? जलीय जीवों के अनुकूलन का वर्णन करें।

उत्तर जलीय जीवों में जीवित रहने के लिए जलीय वातावरण के अनुसार संरचनात्मक एवं क्रियात्मक परिवर्तन होता है जो उसे जल में जिंदा रखता है उसे ही जलीय अनुकूलन कहा जाता है।

 (i) पादप में जल के अंदर आधार से जुड़े अथवा जल में ही निलंबित रहने वाले पादपों (जैसे—हाइडिला, वैलिस, नेरिया आदि) या तैरने वाले (लेमना) हेलोफाइटिक पादप (लिम्नोफिला, टायफाइड आदि) के जल में डूबा भाग मुसिलेज में आवरित होता है। पादपों में यांत्रिक ऊतक नहीं होता है फलतः ये मुलायम होता है। एवं इनमें वायु धारण करने वाले एरेन कायम ऊतक पाया जाता है।

(ii) जंतुओं में जलीय जंतुओं का शरीर स्ट्रीमलाइन्ड होता है। श्वसन 04 के लिए विशेष अंग मिल जाता है। जल संतुलन के लिए विशेष कार्यिक प्रविधियाँ होती है। तैरने हेतु विशेष शरीर संरचना (पंख) पाई जाती है। जल दबाव सहने हेतु चर्म के नीचे चर्बी का मोटा स्तर पाया जाता है।


2.समजात अंग तथा असमजात अंग क्या है ? उदाहरण देकर समझाइए

उत्तर समजात अंग तथा असमजात अंग में अंतर निम्नलिखित हैं

समजात अंगअसमजात अंग
1. इन अंगों में समान उत्पत्ति और संरचना होते हैं किन्तु एक-दूसरे से कार्यों में भिन्न हो सकते हैं। जैसे—पक्षी और चमगादड़ के पंख, मेढक, घोड़े और मानव के अग्रपाद या पश्चपाद समजात अंग है।1. ये अंग समान कार्य दर्शाते हैं। किन्तु इनकी उत्पत्ति भिन्न होती है। जिसके कारण इनकी आधार रचना भी भिन्न होती है। जैसे कीटों (तितली, ग्रासहॉपर आदि) के , पंखों की रचना टेरीडकटाइल (विलुप्त उड़नेवाले रेपाई) पक्षियों या चमगादड़ से अलग होती है।

3.अनुकूली विकिरण क्या है ? उचित उदाहरण देकर समझावें

उत्तर एक विशेष भू-भौगोलिक क्षेत्र में विभिन्न प्रजातियों के विकास का प्रक्रम एक बिंदु से शुरू होकर अन्य भू-भौगोलिक क्षेत्रों तक प्रसारित होने को अनुकूली विकिरण (ऐडेप्टिव रेडिएशन) कहा गया। डार्विन की फिंच इस प्रकार की घटना का एक सर्वोत्तम उदाहरण प्रस्तुत करती है डार्विन अपनी यात्रा के दौरान गैलापैगोस द्वीप गए थे। जहाँ पर उन्होंने प्राणियों में एक आश्चर्यजनक विविधता देखी विशेष रुचिकर बात यह थी कि उन्हें एक काली छोटी चिड़िया ने विशेष रूप से आश्चर्यचकित किया। उन्होंने महसूस किया कि उसी द्वीप के अंतर्गत विभिन्न प्रकार की फिंच भी पाई जाती हैं। जितनी भी किस्मों को उन्होंने परिकल्पित किया था, वे सभी उसी द्वीप में विकसित हुई थीं। ये पक्षी

मूलतः बीजभक्षी विशिष्टताओं के साथ-साथ अन्य स्वरूप में बदलावों के साथ अनुकूलित हुई और चोंच के ऊपर उठने जैसे परिवर्तनों ने इसे कीट भक्षी एवं शाकाहारी फिंच बना दिया।

एक अन्य उदाहरण आस्ट्रेलिया मापियल (शिशुधानी प्राणियों) का है। अधिकांश मासुंपियल जो एक-दूसरे से बिल्कुल भिन्न थे। एक पूर्वज प्रभाव से विकसित हुए और वे सभी आस्ट्रेलियाई महाद्वीप के अंतर्गत हुए हैं। जब एक से अधिक अनुकूली विकिरण एक अलग-थलग भौगोलिक क्षेत्र में प्रकट होती हैं तो इसे अभिसारी विकास कहा जा सकता है। आस्ट्रेलिया के अपरास्तनी जंतु भी इस प्रकार के स्तनधारियों की किस्मों के विकास में अनुकूली विकिरण प्रदर्शित करती है, जिनमें से प्रत्येक मेल खो मासुपियल के समान दिखते हैं।


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4.जीवन की उत्पत्ति के संदर्भ में मिलर एवं यूरे ने क्या प्रयोग किये ?

उत्तर मिलर एवं यूरे का प्रयोग (Miller and Urey’s experiment)— ओपेरिन-हेल्डाने के विचारों की जाँच करने के लिए स्टैनले मिलर (Stanley Miller) तथा हेरोल्ड सी. यूरे (Harold C. Liney) ने प्रयोगशाला में उन्हीं परिस्थितियों की पुनर्रचना की कोशिश की जैसी कि ओपेरिन के अनुसार पृथ्वी पर आदि काल में रही होगी। इसके लिए उन्होंने एक विशेष उपकरण बनाया। पाँच लीटर के एक बड़े फ्लास्क में अमोनिया, मीथेन तथा हाइड्रोजन गैसों को 2:2:1 के अनुपात में मिलाया, क्योंकि यही गैसें शायद इसी अनुपात में आदि वायुमंडल में उपस्थित थीं । आधे लीटर के एक फ्लास्क को काँच की नली द्वारा बड़े फ्लास्क से जोड़ दिया तथा इसमें जल भर दिया गया, जिसको निरन्तर उबालने का भी प्रबन्ध किया गया ताकि जल वाष्प पूरे उपकरण में घूमती रहे। आदि वायुमंडल में कड़कती हुई बिजली का वातावरण पैदा करने के लिए बड़े फ्लास्क में टंगस्टन के बने दो इलेक्ट्रॉड लगाये गये। इन इलेक्ट्रॉडों के बीच 66,000 वोल्ट की विद्युतधारा को 7-8 दिन तक प्रवाहित करके तीव्र विद्युत की चिंगारियाँ पैदा की गयीं। प्रयोग के अन्त में बनी गैस जब कन्डेन्सर (संघनित्र) के कारण ठंडी हुई तो यू-नली (U-tube) में एक गहरे लाल रंग का तरल पदार्थ भर गया। इस तरल पदार्थ का रासायनिक विश्लेषण करने पर उन्होंने पाया कि इसमें ग्लाइसिन, एलानिन तथा एस्पार्टिक अम्ल जैसे कई अमीनो अम्लों सहित अनेक जटिल कार्बनिक यौगिक विद्यमान थे।

मिलर तथा यूरे के प्रयोग से इस बात की पुष्टि हुई कि कार्बन, हाइड्रोजन, ऑक्सीजन तथा नाइट्रोजन के रासायनिक संयोग से विभिन्न जटिल यौगिकों का निर्माण होता है, जो कि जैविक दृष्टि से महत्त्वपूर्ण है।

मिलर एवं पूरे के निष्कर्षो का अन्य वैज्ञानिकों द्वारा पुष्टिकरण (Verification of Miller and Urey’s conclusion by other scientists)— स्टैनले मिलर तथा यूरे के प्रयोगों से प्रभावित होकर अन्य वैज्ञानिकों ने भी विभिन्न प्रकार की गैसों के मिश्रणों तथा ऊर्जा स्रोतों (जिनकी आदि पृथ्वी पर होने की संभावना थी) को लेकर इसी प्रकार के प्रयोग किये।


5.जैव विकास के संदर्भ में लैमार्क का मत क्या कहता है ?

उत्तर लैमार्कवाद (Lamarckism) – जैव विकास के सम्बन्ध में सर्वप्रथम अपने विचार रखनेवाले फ्रांस के प्रसिद्ध प्रकृति वैज्ञानिक जीन बैप्टिस्टे डी लैमार्क (Jean Baptiste de Lamarck, 1744-1829) थे। इनके मत को जैव विकास के सिद्धान्त के रूप में माना जाता है। लैमार्क ने 1809 में एक पुस्तक ‘फिलॉसफीक जूलोजीक’ (Philosophic Zoologique) नाम से प्रकाशित की, जिसमें उन्होंने अपने सुप्रसिद्ध सिद्धान्त की घोषणा की। लैमार्क के सिद्धान्त को उपार्जित लक्षणों की वंशागति का सिद्धान्त (Theory of Inheritance of Acquired Characters) भी कहते हैं। उन्होंने अपने इस सिद्धान्त से यह बताने का प्रयास किया है कि किस प्रकार सरल संरचना वाले जीवों से धीरे धीरे जटिल संरचना वाले जीवों का विकास हुआ है, या होता है। लैमार्क का सिद्धान्त निम्न तथ्यों पर आधारित है—

(i) वातावरण का सीधा प्रभाव (Direct influence of environment) – प्रत्येक प्राणी पर वातावरण का सीधा प्रभाव पड़ता है, जिसके कारण उसकी संरचना स्वभाव में परिवर्तन होता है। उन्होंने कहा कि पौधों पर यह प्रभाव प्रत्यक्ष रूप से पड़ता है, जबकि प्राणियों पर अप्रत्यक्ष रूप से उनके तंत्रिका तंत्र के माध्यम से पड़ता है।

(ii) अंगों के कम या अधिक प्रयोग का प्रभाव (Effect of use and disuse of organs)- किसी अंग का निरंतर उपयोग उस अंग को शक्तिशाली तथा अधिक क्रियाशील बनाता है, जबकि कम उपयोग के कारण अंगों की वृद्धि रुक जाती है तथा उनका हास (degeneration) होने लगता है। ये अंग अवशेषी अंगों (vestigial organ) के रूप में रह जाते हैं या लुप्त भी होने लगते हैं। इस धारणा के कारण लैमार्कवाद को ‘अंगों के कम या अधिक उपयोग का सिद्धान्त’ (Theory of use and disuse of organs) भी कहते हैं।

(iii) उपार्जित लक्षणों की वंशागति (Inheritance of acquired characters )- लैमार्क का अनुमान था कि कोई भी प्राणी अपने जीवनकाल में जितने भी गुण (लक्षण) अर्जित करता है, वे सभी उसकी आने वाली पीढ़ी में वंशागत हो जाते हैं। ऐसे लक्षणों को उपार्जित लक्षण (acquired characters) तथा इनके संतान में पहुँचने की क्रिया को उपार्जित लक्षणों की वंशागति (inheritance of acquired characters) कहते है यदि उपार्जित लक्षणों की वंशागति का क्रम अधिक समय तक चलता रहे तथा संतानों में भी नवीन परिवर्तन होते रहें तो अन्त में जीवों में ऐसे लक्षण विकसित हो जाते हैं, जिनसे जीव अपने पूर्वजों से सम्पूर्ण रूप से भिन्न हो जायेंगे। इस प्रकार नयी जाति का निर्माण (origin of new species) हो जाता है।


6.लैमार्कवाद के संदर्भ में दो उदाहरण दीजिए

उत्तर लैमार्कवाद के उदाहरण (Examples of Lamarckism) :

 (i) अफ्रीकी जिराफ (African Giraffe )- लैमार्क ने अपने सिद्धान्त को समझाने के लिए जिराफ (Giraffe) की लम्बी गर्दन का उदाहरण दिया। उनके अनुसार जिराफ के पूर्वजों में न तो लम्बी गर्दन ही थी

और न ही लम्बी टाँगे, क्योंकि उस समय इन प्राणियों को काफी भोजन (हरी घास, पत्ते इत्यादि) बहुत आसानी से मिल जाता था। धीरे-धीरे जिस क्षेत्र में वे रहते थे वहाँ की जलवायु बदली, जिसके फलस्वरूप मैदानों में घास सूखने लगी और हरी झाड़ियाँ समाप्त हो गई। ऊंचे पेड़-पौधे रह गये और वह भाग रेगिस्तान बनने लगा। ऐसी बदली हुई परिस्थितियों में जिराफ के पूर्वजों को अपनी गर्दन तथा अगले पैर उचकाकर पेड़ों से अपना भोजन प्राप्त करना पड़ा। लगातार इसी तरह अपनी गर्दन तथा अगली टाँगों को प्रयोग में लाने से ये दोनों अंग अधिक विकसित हो गये और आने वाली पीढ़ियों में पर्याप्त लम्बे होते गये।

(ii) सर्प (Snake ) — लैमार्क के अनुसार सर्प का विकास वातावरण के प्रभाव से हुआ। प्रारम्भ में सर्पों की टाँगें थीं। सर्पों को घास-फूस, झाड़ियों में दौड़ने, बिलों में घुसने के लिए टाँगे रुकावट डाल रही थी। टाँगों का उपयोग न होने से वह धीरे-धीरे छोटी होती गयी तथा अंत में बिल्कुल समाप्त हो गयी तथा शरीर पतला व लम्बा हो गया। इस परिवर्तन में हजारों वर्ष लगे। यही गुण वर्तमान सर्पों में स्थायी लक्षण बन गया।


 7.मानव का उद्भव एवं विकास के बारे में वर्णन करें

उत्तर मानव के उद्भव एवं विकास की विभिन्न अवस्थाओं का वर्णन निम्नलिखित है—

 

ड्रायोपिथिक्स एवं रामापिथिकस

    ↓

आस्ट्रेलोपिथिकस

    ↓

होमो हैबिलिस

  ↓

होमो इरेक्टस

  ↓

निएंडरथल मानव

  ↓

कौ-मैग्नन मानव

  ↓

आधुनिक मानव

लगभग 15 मिलियन वर्ष पूर्व Dryopithecus तथा Ramapithecus नामक वानर विद्यमान थे। उनके शरीर बालों से भरपूर थे तथा गोरिल्ला एवं विपाजी जैसे चलते थे| Ramapithecus मनुष्य जैसे थे जबकि Dryopithecus वनमानुष (Apes) जैसे थे ये संभवतः 4 फुट से अधिक नहीं थे।

                     लगभग 2 मिलियन वर्ष पूर्व Australopithecus (आदिमानव) संभवतः पूर्वी अफ्रीका के स्थलों में रहता था। साक्ष्य से यह प्रकट होता है कि वे प्रारंभ में पत्थर के हथियारों से हमला करते थे परन्तु प्रारंभ में फलों को ही भोजन के रूप में लेते थे। इस जीव को पहला प्राणी के रूप में जाना गया जिसे Homo habilis कहा गया। Neanderthal man लाख वर्ष पूर्व प्रकट हुए जिसका मस्तिष्क 1400 cc. आकार का था। Home sapiens (आधुनिक मानव) अफ्रीका में विकसित हुए तथा धीरे-धीरे विभिन्न महाद्वीपों में फैलते चले गये ।


8.डार्विन के विकासवाद के सिद्धान्त का वर्णन करें।

उत्तर वर्ष 1859 में चार्ल्स डार्विन ने प्राकृतिक वरण के सिद्धान्त पर आधारित जीवों के विकास की क्रिया विधि का वर्णन किया। अपनी समुद्र यात्रा के दौरान डार्विन ने गैलोपैगोस द्वीप समूह में जीवों के बीच विविधताओं को देखा। यात्रा से लौटकर डार्विन ने अपनी पुस्तक ‘ऑरिजीन ऑफ स्पीशीज’ लिखा जिसमें विकास की प्रक्रिया की व्याख्या की गई है। डार्विन का विकासवाद निम्नलिखित प्रेक्षणों पर आधारित है तो तथ्यात्मक है-

1.जीवों में प्रजनन की प्रचुर क्षमता होती है परन्तु सीमित प्राकृतिक संसाधनों के कारण उनमें आपसी प्रतियोगिता या संघर्ष होता है।

2.एक जीव संख्या के सदस्य विशिष्टताओं में भिन्न होते हैं जिसमें अधिकतर विविधताएँ वंशागत होती है। कुछ जीव जिनमें विविधताएँ पर्यावरण के प्रति बेहतर अनुकूलन उत्पन्न करती है— वे संसाधनों का बेहतर उपयोग कर पाते हैं। ऐसे विविधता वाले जीवों के जीवित रहने की संभावना अधिक होती है, फलतः वे अगली पीढ़ी के लिए संतति छोड़ जाते है। दूसरे शब्दों में, वैसे जीव जिनमें उपयोगी विविधताएँ नहीं होती हैं, उनके जीवित रहने एवं प्रजनन करने की संभावना कम रहती है और जीव-संख्या से उनका अस्तित्व समाप्त हो जाता है

3.अतः जीवों में प्रजनन का भिन्न स्तर उस प्रक्रिया का परिणाम है जि2से डार्विन ने प्राकृतिक वरण का नाम दिया स्पेन्शर ने इसे ‘योग्य | जीवों की उत्तरजीवित कहा जिस प्रक्रम में कम योग्यता वाले जीव विलुप्त हो जाते हैं।

4.एक समयाविधि के उपरांत उत्तरजीवी अधिकाधिक संतति छोड़ जाते है तथा बदलते पर्यावरण के साथ विशिष्टताओं में पीढ़ी-दर-पीढ़ी बदलाव के कारण एक नई प्रजाति की उत्पत्ति हो जाती है।

12th Biology VVI Subjective Questions 2024


Class 12th Biology – Objective 
1जीवधारियों में जननClick Here
2पुष्पी पादपों में लैंगिक प्रजननClick Here
3मानव प्रजननClick Here
4जनन स्वास्थ्यClick Here
5वंशागति और विभिन्नता के सिद्धांतClick Here
6वंशागति का आणविक आधारClick Here
7विकासClick Here
8मानव स्वास्थ्य एवं रोगClick Here
9खाद उत्पादन बढ़ाने के लिए उपायClick Here
10मानव कल्याण में सूक्ष्मजीवClick Here
11जैव प्रौद्योगिकी के सिद्धांत एवं प्रक्रिया हैClick Here
12जैव प्रौद्योगिकी एवं इसके अनुप्रयोगClick Here
13जीव एवं समष्टियाClick Here
14परिस्थितिक तंत्रClick Here
15जैव विविधता एवं संरक्षणClick Here
16पर्यावरण मुद्देClick Here
 BSEB Intermediate Exam 2024
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