Class 12th Subjective Biology Question 2024 | Biology 12th Question Paper In Hindi

Class 12th Subjective Biology Question 2024:- दोस्तों यदि आप Class 12th Subjective Biology Question की तैयारी कर रहे हैं तो यहां पर आपको Biology Chapter 6 ( वंशागति का आण्विक आधार ) Long Subjective Question दिया गया है जो आपके Biology 12th Question Paper 2024 In Hindi के लिए काफी महत्वपूर्ण है |


Class 12th Subjective Biology Question 2024

1.वाटसन एवं क्रीक द्वारा दिए गए डी० एन० ए० के द्विकुण्डलित संरचना का चित्रांकन करें।

उत्तर ⇒ DNA का वाटसन एवं क्रिकमॉडल-इरविन चारगाफ तथा रोजालैण्ड फ्रैंकलिन व मॉरिस विल्किन्स द्वारा एकत्रित तथ्यों के आधार पर जेम्स वाटसन, फ्रांसिस क्रिक और विलकिन्स ने सन् 1953 में DNA अणु की संरचना का त्रिविम मॉडल प्रस्तुत किया। इसके लिए उन्हें सन् 1962 में नोबेल पुरस्कार प्राप्त हुआ। वाटसन एवं क्रिक द्वारा प्रस्तुत DNA की द्विकुण्डलित संरचना में अग्रलिखित विशेषताएँ थीं

 (i) DNA अणु दो पॉलीन्यूक्लिओटाइड श्रृंखलाओं का बना होता है। जो एक अक्ष के चारों ओर सर्पिलाकार क्रम में दक्षिणावर्त कुण्डलित होती है। इस प्रकार DNA अणु में दो हेलिक्स होती है।

 (ii) दोनों पॉलीन्यूक्लिओटाइड श्रृंखला विपरीत दिशा में कुण्डलित या प्रतिसमानान्तर होती है अर्थात् इन श्रृंखलाओं के शर्करा फास्फेट दंड को भ्रूवात्मक दिशाएँ प्रतिमुख होती हैं। एक पॉल-न्यूक्लिओटाइड श्रृंखला में शर्करा के कार्बन 5’3′ दिशा में तथा दूसरे के 35 दिशा में होते हैं।

 (iii) प्रत्येक कुण्डली में अनेक न्यूक्लिओटाइड श्रृंखलाबद्ध होते हैं।

 (iv) प्रत्येक न्यूक्लिओटाइड में नाइट्रोजनी क्षारक डीऑक्सीराइबोस नामक पंचकार्बनी शर्करा तथा फास्फेरिक अम्ल का एक-एक अणु होता है। इसमें नाइट्रोजनी क्षारक का डीऑकसीराइबोज  शर्करा से अन्दर की ओर C कार्बन से तथा फास्फेट अणु इसके बाहर की ओर C से संलग्न होता है।

(v) एक श्रृंखला के सभी न्यूक्लिओटाइड्स के शर्करा अणु फास्फेट अणुओं द्वारा जुड़े रहते हैं। 1 इनके बीच 53′ फास्फोडाइएस्टर बन्ध होते हैं।

(vi) दोनों कुण्डलिनियों के न्यूक्लिओटाइड्स भी आपस में जुड़े रहते हैं। इनके नाइट्रोजनी धारकों के बीच दुर्बल हाइड्रोजन बन्ध होते हैं।

(vii) DNA की दोनों नाइट्रोजनी श्रृंखलाओं में प्यूरीन तथा पिरिमिडीन की मात्रा बराबर होती है क्योंकि एक श्रृंखला के प्यूरीन क्षारक दूसरी श्रृंखला के पिरिमिडीन क्षारक से जुड़े रहते हैं । अर्थात् यदि एक श्रृंखला में एडेनीन (A) है तो दूसरी श्रृंखला में इसके सम्मुख थाइमीन (T) होगा और सायटोसीन (C) के सम्मुख ग्वानीन (G) होगा। यह चारगाफ की धारणा A = LG = C या प्यूरीन = पिरिमिडीन की पुष्टि करता है।

(viii) एडेनीन व थाइमीन के बीच दो हाइड्रोजन बन्ध तथा सायरोमीन व ग्वानीन के बीच तीन हाइड्रोजन बन्ध होते हैं। (ix) DNA की दोनों श्रृंखलाओं के बीच 20 À होता है।

 (x) एक ही श्रृंखला के किन्हीं दो न्यूक्लिओटाइड युगलों के बीच 3.4A की दूरी होती है।

 (xi) हेलियम का एक चक्कर 37Å के अन्तर पर पूर्ण होता है अतः प्रत्येक चक्कर में 10 नयूक्लिओटाइड जोड़ियाँ होती है। इसका अर्थ है कि दो न्यूक्लिओटाइड जोड़ियों के बीच की दूरी 3.4 À या 0.34 mm होती है।

 (xii) द्विकुण्डलिनी की आकृति ऐठी हुई सर्पिल सीढ़ी के समान होती है। शर्करा फास्फेट समूहों के फास्फोडाइएस्टर बन्धों के जुड़ने से बनी दोनों श्रृंखलाएँ सीढ़ी के पार्श्व दण्डों के समान होती हैं और इनके बीच हाइड्रोजन बन्धों द्वारा जुड़े दोनों क्षारकों की जोड़ियाँ सीढ़ी के पगदण्डों के समान होती है।

  (xiii) कुण्डलीकरण के कारण DNA अणु की पूरी लम्बाई में लघु खाँचें तथा दीर्घ खाँचे पायी जाती है।

  (xiv) DNA में शर्करा तथा फास्फेट अणु समान अनुपात में होते हैं।


2.डीएनए द्विकुंडली की कौन-सी विशेषता ने वाटसन क्रिक को डीएनए प्रतिकृति के सेमी-कंजर्वेटिव रूप को कल्पित करने में सहयोग किया ? इसकी व्याख्या कीजिए।

उत्तर ⇒ 1953 में जेम्स वाटसन व फ्रॉन्सिस क्रीक ने डीएनए की संरचना का द्विकुंडली नमूना प्रस्तुत किया। उनके प्रस्तावों में पॉलीन्यूक्लियोटाइड श्रृंखलाओं की दो लड़ियों के बीच क्षार युग्मन की उपस्थिति एक बहुत प्रमाणित श्रृंखला थी।

क्षार युग्मन पॉलीन्यूक्लियोटाइड श्रृंखलाओं की एक खास विशेषता है। ये श्रृंखलाएँ एक-दूसरे के पूरक हैं, इसलिए एक रज्जुक में स्थित क्षार क्रमों के बारे में जानकारी होने पर दूसरी रज्जुक के क्षार क्रमों की कल्पना कर सकते हैं। यदि डीएनए की प्रत्येक रज्जुक नए रज्जुक के संश्लेषण हेतु टेम्पलेट का कार्य करती हैं इस तरह से दो द्विरज्जुकीय डीएनए (जिसे संतति डीएनए कहते है) का निर्माण होता है, जो पैतृक डीएनए अणु के समान होती है। इस कारण आनुवंशिक डीएनए की संरचना के बारे में बहुत स्पष्ट जानकारी मिल सकी। प्रतिकृति के पूर्ण होने के बाद जो डीएनए अणु बनता है उसमें एक पैतृक व एक नई निर्मित लड़ी रज्जुक होती है। डीएनए प्रतिकृति की यह योजना अर्धसंरक्षी (सेमी कंजर्वेटिव) कहलाती है। अब सिद्ध हो चुका है कि डीएनए का अर्धसंरक्षी प्रतिकृतियन होता है।


3.डीएनए आनुवंशिक पदार्थ है, इसे सिद्ध करने हेतु अपने प्रयोग के दौरान हर्ष चेस ने डीएनए प्रोटीन के बीच कैसे अंतर स्थापित किया ?

उत्तर ⇒ डीएनए आनुवंशिक पदार्थ है इसके बारे में सुस्पष्ट प्रमाण अल्फ्रेड हर्षे व मार्थो चेस (1952) के प्रयोगों से प्राप्त हुआ। इन्होंने उन विषाणुओं पर कार्य किया जो जीवाणु को संक्रमित करते है जिसे जीवाणुभोगी कहते हैं। जीवाणुभोगी जीवाणु से चिपकते हैं अपने आनुवंशिक पदार्थ को जीवाणु कोशिका में भेजते है। जीवाणु कोशिका विषाणु के आनुवंशिक पदार्थ को अपना समझने लगते हैं जिससे आगे चलकर अधिक विषाणुओं का निर्माण होता है। हर्षे व चेस ने इस बात का पता लगाने के लिए प्रयोग किया कि विषाणु से प्रोटीन या डीएनए निकल कर जीवाणु में प्रवेश करता है। उन्होंने कुछ विषाणुओं को ऐसे माध्यम पर पैदा किया जिसमे एक ने विकिरण सक्रिय फॉस्फोरस व दूसरे विषाणुओं को विकिरण सक्रिय सल्फर पर वृद्धि किया था। जिस विषाणु को विकिरण सक्रिय फॉस्फोरस की उपस्थिति में पैदा किया गया, उसमें विकिरण सक्रिय डीएनए पाया गया जबकि विकिरण सक्रिय प्रोटीन नहीं था, क्योंकि डीएनए में फॉस्फोरस होता है. प्रोटीन नहीं ठीक इसी तरह से विषाणु जिसे विकिरण सक्रिय सल्फर की उपस्थिति में पैदा किया गया उनमें विकिरण सक्रिय प्रोटीन पाई गई, डीएनए विकिरण सक्रिय नहीं था, क्योंकि डीएनए में सल्फर नहीं मिलता है।

                   विकिरण सक्रिय जीवाणु भोजी ई. कोलाई जीवाणु से चिपक जाते हैं। जैसे ही संक्रमण आगे बढ़ता है जीवाणु को सम्मिश्रक में हिलाने से विषाणु आवरण अलग हो जाता है। जीवाणुओं को अपकेंद्रक यंत्र में प्रचक्रण कराने से विषाणु कण जीवाणुओं से अलग हो जाते हैं।

       जो जीवाणु विकिरण सक्रिय डीएनए रखने वाले विषाणु से संक्रमित हुए थे, वे विकिरण सक्रिय रहे। इससे स्पष्ट है कि जो पदार्थ विषाणु से जीवाणु में प्रवेश करता है, वह डीएनए है। जो जीवाणु उन विषाणुओं से संक्रमित थे जिनमें विकिरण सक्रिय प्रोटीन था, वे विकिरण सक्रिय नहीं हुए। इससे संकेत मिलता है कि प्रोटीन विषाणु से जीवाणु में प्रवेश नहीं करता है। इस कारण से आनुवंशिक पदार्थ डीएनए ही है जो विषाणु से जीवाणु मे जाता है।

Class 12th Subjective Biology Question 2024


4.उस संवर्धन में जहाँ ई. कोलाई वृद्धि कर रहा हो लैक्टोज डालने पर लैक ओपेरान उत्प्रेरित होता है। तब कभी संवर्धन में लैक्टोज डालने पर लैक ओपेरान कार्य करना क्यों बंद कर देता है ?

उत्तर ⇒ लैक्टोज एंजाइम बीटा-गैलेक्टोसाइडेज के लिए क्रियाधार का काम करता है जो प्रचालक की सक्रियता के शुरू या निष्क्रियता समाप्ति को नियमित करता है। इसे प्रेरक कहते हैं। सबसे उपयुक्त कार्बन स्रोत ग्लूकोज की अनुपस्थिति में यदि जीवाणु के संवर्धन माध्यम से लैक्टोज डाल दिया जाता है तब परमिएड की क्रिया द्वारा लैक्टोज कोशिका के अंदर अभिगमन करता है। इसके बाद लैक्टोज प्रचालक को निम्न ढंग से प्रेरित करता है प्रचालक का दमनकारी आई (1) जीन द्वारा संश्लेषित (हमेशा उपस्थित रहता है) होता है। दमनकारी प्रोटीन प्रचालक के प्रचालक स्थल से बंधकर आरएनए पॉलीमरेज को निष्क्रिय कर देता है जिससे प्रचालक अनुलेखित नहीं हो पाता है। प्रेरक जैसे लैक्टोज (या) एलोलैक्टोज) की उपस्थिति में दमनकारी प्रेरक से क्रियाकर निष्क्रिय हो जाता है। इसके फलस्वरूप आरएनए पॉलीमरेज उन्नायक से बंधकर अनुलेखन की शुरुआत करता है। लैक प्रचालक के नियमन को इसके क्रियाधार द्वारा एंजाइम के संश्लेषण के रूप में निरूपित किया जा सकता है। दमनकारी m आर. एन. ए. द्वारा लैक-प्रचालक के नियमन को ऋणात्मक नियमन (निगेटव रेगुलेशन) कहते हैं। लैक-प्रचालक धनात्मक नियमन (पाजिटिव रेगुलेशन) के नियंत्रण में भी होता है


5.निम्न के कार्यों का वर्णन (एक या दो पंक्तियों से) करें :

(क) उन्नायक (प्रोमोटर)

(ख) अंतरण आरएनए (tRNA)

(ग) एक्जान ।

उत्तर ⇒ (क) उन्नायक (प्रोमोटर) – उन्नायक डीएनए में अनुलेखन इकाई का एक मुख्य भाग है जो जीन अनुलेखन इकाई बनाते हैं। संरचनात्मक जीन के 5-किनारे पर उन्नायक स्थित होता है। अनुलेखन इकाई में स्थित उन्नायक टेम्पलेट व कूटलेखन रज्जुक का निर्धारण करता है।

(ख) अंतरण आरएनए (tRNA)- अंतरण आरएनए (tRNA) अनुलेखन के लिए जिम्मेदार है। अंतरण आरएनए में एक प्रति प्रकूट (एंटीकोडान) फंदा होता है जिसमें कूट के पूरक क्षार मिलते हैं व इसमें एक अमीनो अम्ल स्वीकार्य छोर होता है जिससे यह अमीनो अम्ल से जुड़ जाता है। प्रत्येक अमीनो अम्ल के लिए विशिष्ट अंतरण आरएनए (IRNA) होते हैं। प्रारंभन हेतु दूसरा विशिष्ट अंतरण आरएनए होता है जिसे प्रारंभक अंतरण आरएनए कहते हैं। रोध प्रकूट के लिए कोई अंतरण आरएनए नहीं होता है। उपरोक्त चित्र में अंतरण आरएनए की द्वितीयक संरचना दर्शायी गयी है जो तिपतिया (क्लोवर) की पत्ती जैसी दिखाई देती है। वास्तविक संरचना के अनुसार अंतरण आरएनए सघन अणु है जो उल्टे एल (1) की तरह दिखाई देता है।

(ग) एक्जान— कूटलेखन अनुक्रम या अभिव्यक्ति अनुक्रमों को व्यक्तेक (एक्जान) कहते हैं। एक्जान वे अनुक्रम हैं जो परिपक्व या संसाधित आरएनए में मिलते हैं। व्यक्तेक अव्यक्तेक (इंट्रान) द्वारा अंतरापित होते हैं। अव्यक्तेक या मध्यवर्ती अनुक्रम परिपक्व या संसाधित आरएनए में नहीं मिलते हैं। 


6.मानव जीनोम परियोजना को महापरियोजना क्यों कहा गया ?

उत्तर ⇒ मानव जीनोम योजना (एचजीपी) महायोजना (मेगा प्रोजेक्ट) कहलाती है। यदि इस योजना के उद्देश्यों पर ध्यान दें तो इसके विस्तार व आवश्यकता के बारे में कल्पना कर सकते हैं—

                     मानव जीनोम में लगभग 3 x 10 क्षार युग्म मिलते हैं, यदि अनुक्रम जानने के लिए प्रति क्षार तीन अमेरिकन डॉलर (US $ 3) खर्च होते हैं तो पुरी योजना पर खर्च होने वाली लागत लगभग 9 बिलियन अमेरिकी डॉलर होगा। प्राप्त अनुक्रमों को टंकणित रूप में किताब में संग्रहित किया जाए तो जिसके प्रत्येक पृष्ठ 1000 अक्षर हो तो इस प्रकार इस किताब में 1000 पृष्ठ होंगे। तब इस तरह से एक माँ व कोशिका के डीएनए सूचनाओं को संकलित करने हेतु 3300 किताबों की आवश्यकता होगी। इस प्रकार बड़ी संख्या में आँकड़ों की प्राप्ति के लिए उच्च गतिकीय संगणक साधन की आवश्यकता होती है, जिससे आँकड़ों के संग्रह, विश्लेषण व पुनः उपयोग में सहायता मिलती है। एचजीपी के बारे में जानकारी जीव विज्ञान के इस नए क्षेत्र का तेजी से विस्तार से संभव हो पाया जिसे जैव सूचना विज्ञान (बायोइनफार्मेटिक्स) कहते है।

एच जी पी के लक्ष्य :

(क) मानव डीएनए में मिलने वाले एचजीपी के कुछ महत्त्वपूर्ण लक्ष् निम्नलिखित हैं लगभग—20000-25000 सभी जीनों के बारे में पता लगाना ।

(ख) मानव डीएनए को बनाने वाले 3 बिलियन रासायनिक क्षार युग्मों के अनुक्रमों को निर्धारित करना।

(ग) उपरोक्त जानकारी को आँकड़ों के रूप में संग्रहित करना ।

(घ) आँकड़ों के विश्लेषण हेतु नयी तकनीक का सुधार करना।

(ङ) योजना द्वारा उठने वाले नैतिक, कानूनी व सामाजिक मुद्दों (इएल एस आई) के बारे में विचार करना ।

                       मानव जीनोम परियोजना 13 वर्ष की योजना का जिसे अमेरिका ऊर्जा विभाग (यू एस डिपार्टमेंट ऑफ एनर्जी) व राष्ट्रीय स्वास्थ्य संस्थान (नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ हेल्थ) द्वारा सहयोग प्राप्त था। प्रारंभिक वर्षो में वेलकम न्यास (यू. के.) की एचजीपी में भागीदारी थी और बाद में जापान, फ्रांस, जर्मनी, चीन व अन्य देशों द्वारा सहयोग प्रदान किया गया। यह योजना 2003 में पूर्ण हो गई। विभिन्न व्यक्तियों में मिलने वाले डीएनए की विभिन्नता के बारे में प्राप्त जानकारी से मानव में मिलने वाले हजारों अनियमितताओं को पहचानने, उपचार करने व कुछ हद तक उनको रोकने में सहायता मिली है। इसके अतिरिक्त मानव जीव विज्ञान के सुरागों को समझने, अमानवीय जीवों के डीएनए अनुक्रमों की प्राप्त जानकारी के आधार पर उनकी प्राकृतिक क्षमताओं का उपयोग कर स्वास्थ्य सुरक्षा, कृषि, ऊर्जा उत्पादन व पर्यावरण सुधार की दिशा में उठने वाली चुनौतियों को हल किया जा सकता है। कई अमानवीय प्रतिरूप — जीवों जैसे जीवाणु, यीस्ट, केएनोरहेब्डीटीस इलीगेंस (स्वतंत्र अरोगजनक सूत्रकृमि), ट्रासोफिला (फलमक्खी), पौधा (धान व एरेबीडाप्सीय) आदि के अनुक्रमों के बारे में जानकारी प्राप्त हुई है।


Class 12th Biology Question Paper 2024 In Hindi

7.निम्न का संक्षिप्त वर्णन कीजिए:

(क) अनुलेखन (ट्रांसक्रिप्शन)

 (ख) बहुरूपता

(ग) स्थानांतरण

 (ट्रांसलेशन)

(घ) जैव सूचना विज्ञान

उत्तर ⇒ (क) अनुलेखन- डीएनए की एक रज्जुक से आनुवंशिक सूचनाओं का आरएनए में प्रतिलिपीकरण करने की प्रक्रिया को अनुलेखन कहते हैं। यहाँ भी पूरकता का सिद्धांत अनुलेखन प्रक्रम को नियंत्रित करता है जिसमें एडिनोसिन थाइमिन की जगह पर यूरेसिल के साथ क्षारयुग्म बनाता है। यद्यपि प्रतिकृति प्रक्रम के विपरीत किसी जीव के कुल डीएनए द्विगुणित होकर अनुलेखन के दौरान अपना एक रज्जुक आरएनए के साथ मिलाकर उसी का रूप ले लेता है। इससे डीएनए की लड़ी व जगहों का पता चलता है जो अनुलेखन में भाग लेते हैं। अनुलेखन के दौरान दोनों रज्जुकों की प्रतिलिपीकरण क्यों नहीं होती है। इसका साधारण-सा उत्तर है। प्रथम, दोनों रज्जुक टेम्पलेट के रूप में कार्य करते हैं, तब उनसे विभिन्न अनुक्रमों वाले आरएनए अणुओं का अनुलेखन होता है। यदि प्रोटीन का कूटलेखन करते हैं तब प्रोटीन में मिलने वाले एमीनो अम्लों का अनुक्रम भिन्न होगा। यदि इसी डीएनए का एक भाग दो भिन्न प्रोटीनों का कूटलेखन करता है तब आनुवंशिक सूचना स्थानांतरण तंत्र द्वारा जटिलता उत्पन्न होती है। दूसरा, साथ-साथ दो आरएनए अणुओं जो एक-दूसरे के पूरक हैं, इनके निर्माण से द्विरज्जुक आरएनए का निर्माण होगा। इससे आरएनए के प्रोटीन में अनुलेखन नहीं हो पाता है और अनुलेखन का प्रयास व्यर्थ हो जाता है।

(ख) बहुरूपता- साधारण तौर से यदि एक वंशागति उत्परिवर्तन जनसंख्या में उच्च आवृत्ति से मिलता है तो इसे डीएनए बहुरूपता कहते हैं। उपरोक्त विभिन्नता की संभावना अव्यक्तक डीएनए अनुक्रम में ज्यादा होती है व इन अनुक्रमों में होने वाला उत्परिवर्तन व्यक्ति की प्रजनन क्षमता को प्रभावित नहीं कर पाता है। इस तरह के उत्परिवर्तन एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी में एकत्रित होते रहते हैं जिसके फलस्वरूप विभिन्नता/बहुरूपता उत्पन्न होती है। बहुरूपता विभिन्न प्रकार की होती है जिसमें एक न्यूक्लियोटाइड में या विस्तृत स्तर पर परिवर्तन होता है। विकास व जाति उद्भवन में उपरोक्त बहुरूपता की बहुत बड़ी भूमिका होती है। 1

(ग) स्थानांतरण- स्थानांतरण या रूपांतरण वह प्रक्रिया है जिसमें अमीनो अम्लों के बहुलकन से पॉलीपेप्टाइड का निर्माण होता है। अमीनो अम्लों के क्रम व अनुक्रम दूत आरएनए में पाए जाने वाले क्षारों के अनुक्रम पर निर्भर करते हैं। अमीनो अम्ल पेप्टाइड बंध द्वारा जुड़े रहते हैं। पेप्टाइड बंध के निर्माण में ऊर्जा की आवश्यकता होती है। इस कारण से प्रथम प्रावस्था में अमीनो अम्ल स्वयं एटीपी की उपस्थिति में सक्रिय हो जाते हैं व सजातीय अंतरण आरएनए से जुड़ जाते हैं। इस प्रक्रिया को अधिक स्पष्ट रूप से अंतरण आरएनए का आवेशीकरण या अंतरण आरएनए एमीनो एसिलेशन कहते हैं। इस प्रकार से आवेशित दो अंतरण आरएनए का एक-दूसरे से काफी पास में आने से उनमें पेप्टाइड बंध का निर्माण होता है।

(घ) जैव सूचना विज्ञान- एचजीपी के विषय में जानकारी जीव विज्ञान के इस नए क्षेत्र का तेजी से विस्तार से संभव हो पाना, जिसे जैव सूचना (बायोइनफार्मेटिक्स) कहते हैं।


8.डीएनए अंगुलिछापी क्या है? इसकी उपयोगिता पर प्रकाश डालिए।

उत्तर ⇒ दो व्यक्तियों के डीएनए अनुक्रमों के बीच तुलना करने के लिए डीएनए अंगुलिछापी एक त्वरित विधि है। डीएनए अंगुलिछापी में डीएनए अनुक्रम में स्थित कुछ विशिष्ट जगहों के बीच विभिन्नता का पता लगाते हैं। किसी भी व्यक्ति के विभिन्न ऊतकों (जैसे—खून, बाल पुटक, त्वचा, हड्डी, लार, शुक्राणु आदि) से प्राप्त डीएनए में एकसमान बहुरूपता मिलती है जो न्यायालयी उपयोग में एक पहचान औजार के रूप में उपयोगी है। इसके अतिरिक्त डीएनए अंगुलिछापी मानव जीनोम के आनुवंशिक नक्शे तैयार करने में लाभदायक है।


9.डीएनए की संरचना का सचित्र वर्णन करें। अथवा, डीएनए का एक विस्तृत आरेख बनाकर उसे सही रूप में नामांकित करें।

उत्तर ⇒ डीएनए की संरचना (Structure of DNA ) – DNA की अधिकांश मात्रा केन्द्रक (nucleus ) में होती है, यद्यपि कुछ मात्रा माइटोकांड्रिया तथा हरित लवक (chloroplasts) में भी मिलती है। DNA पॉलीयूनियोटाइड होते है। इसमें उपस्थिति नाइट्रोजनी क्षारक चार प्रकार के होते हैं- एडीनीन (Adenine A), गुआनीन (Guanine = G), थायामीन = (Thymine =T) तथा साइटोसीन (Cytosine = C)। चारगाफ (Chargaff) = ने सन् 1950 में बताया कि किसी भी स्रोत से प्राप्त DNA में प्यूरीन (A, G) के अणुओं की संख्या पिरिमिडीन (pyrimidines) के अणुओं की संख्या के बराबर होती है।

उन्हीं दिनों, विल्किन्स, फ्रैन्कलिन तथा एस्टबुरी (Wilkins, Franklin and Astbury) आदि ने एक्स-रे विवर्तन चित्र (X-ray diffraction) विधि से पता लगाया कि DNA में ही पॉलीन्यूक्लियोटाइड श्रृंखलाएँ परस्पर कुंडलित दशा में होती है। सन् 1953 में जे. डी. वाटसन और एफ. एच. सी. क्रिक (J. D. Watson and F.H.C. Crick) ने DNA के अवयवों को क्रम से व्यवस्थित करके DNA के अणु का एक द्विकुंडलित प्रतिरूप (double helix model) बनाया। इसके लिए उन्हें सन् 1962 में नोबेल पुरस्कार से सम्मानित किया गया। उनके द्वारा प्रस्तुत DNA के द्विकुंडलित प्रतिरूप के मुख्य लक्षण निम्न प्रकार हैं

(i) DNA का प्रत्येक अणु दो कुंडलित (helical) पॉलीन्यूकियोटाइड श्रृंखलाओं का बना होता है। दोनों श्रृंखलाएँ एक-दूसरे पर सर्पिक्सी (spiral) क्रम में लिपटी होती है। इस डिकुंडल का व्यास लगभग 20Å होता है।

(ii) प्रत्येक पॉलीयूनियोटाइड श्रृंखला में डिऑक्सीराइबोज शर्करा और फॉस्फेट समूह एकान्तर (alternate) क्रम में जुड़कर श्रृंखला का आधार (backbone) बनाते हैं। फॉस्फेट समूह एक तरफ की शर्करा को 5′ कार्बन पर तथा दूसरी ओर 3′ कार्बन पर एस्टर बंधों द्वारा जुड़े रहते हैं। इसे फॉस्फोडाइएस्टर (phosphodiester) बंध कहते हैं।

(iii) दोनों श्रृंखलाएँ प्रतिसमानान्तर (antiparallel) दशा में कुंडलित होती है अर्थात् एक श्रृंखला में डाइएस्टर बंध 345 दिशा में तथा दूसरी श्रृंखला में 5°43′ दिशा में होते है।

(iv) दोनों श्रृंखलाओं की प्रत्येक शर्करा को 1- कार्बन पर एक नाइट्रोजनी क्षारक लगा होता है। यह चारों प्रकार के नाइट्रोजनी क्षारकों (A, T, C, G) में कोई भी हो सकता है। ये क्षारक द्विकुंड में अंदर की तरफ श्रृंखला- आधार से समकोण बनाते हुए लगे होते हैं।

 

(v) एक श्रृंखला के प्यूरीन, दूसरी श्रृंखला के पिरिमिडीन से हाइड्रोजन – आबंधों (Hydrogen bonds) द्वारा जुड़े रहते हैं। A सदैव T से तथा C सदैव G से जुड़ा रहता है। इस प्रकार  A और  T  एक-दूसरे के तथा C और G एक-दूसरे के पूरक होते हैं।

(vi) एडिनीन व थाइमिन के बीच दो हाइड्रोजन बंध तथा साइटोसीन व गुआनीन के बीच तीन हाइड्रोजन आबंध होते हैं।

(vii) एक ही श्रृंखला के किन्हीं दो न्यूक्लियोटाइड के बीच 3.4 A की दूरी होती है। कुछ विषाणुओं (viruses) में DNA के अणु में पॉलीन्यूक्लियोटाइडों की एक ही श्रृंखला होती है, जैसे  x 174.


10.डीएनए प्रतिजकृतिकरण के विभिन्न चरणों का सचित्र वर्णन कीजिए।

उत्तर ⇒ डीएनए प्रतिकृतिकरण के विभिन्न चरण (Steps in DNA replication) डीएनए प्रतिकृतिकरण की अर्थसरंक्षी प्रतिकृतिकरण की अर्धसंरक्षी प्रतिकृतिकरण की विधि अत्यन्त जटिल है, तथा इसमें अनेक प्रोटीन कारकों के अतिरिक्त अनेक एंजाइमों का भी योगदान रहता है।

(i) द्विकुंडलित DNA का विकुण्डलन (Uncolling of DNA helix )- प्रतिकृतिकरण के लिए सबसे पहले DNA अणु का विकुंडलन होना चाहिए। दोनों श्रृंखलाएँ जिस स्थल से पृथक होना प्रारंभ करती हैं, उसे प्रतिकृतिकरण का आरम्भ स्थान कहते हैं। बैक्टीरिया या विषाणु में केवल एक ही ऐसा स्थान होता है, परन्तु यूकैरियोटी जीवधारियों में जिनमें DNA , के काफी बड़े अणु होते हैं, कई ऐसे स्थान होते हैं। एक बात और है, लंबे कुंडलित DNA की दो श्रृंखलाओं को अलग करना आसान काम नहीं है। आपको ही अगर दो अत्यधिक कुंडलित रस्सियाँ दे दी जाए और आप उन्हें अलग-अलग करने लगें, तो आप अनुभव करेंगे कि ज्यों ही आप उन्हें बलपूर्वक खींचना बंद कर देते है, वे पुनः आपस में लिपट जाती है। यह कठिन काम अनेक प्रोटीनों की सहायता से होता है। इसमें से तीन मुख्य हैं—विकुण्डलन प्रोटीने (unwinding proteins), कुण्डल अस्थाईकारक प्रोटीनें (helix destabilisng proteins– HDP) तथा DNA गाइरेज विकुण्डलन प्रोटीने जगह-जगह पर कुण्डल का विकृतिकरण (denaturation) करती है जिससे जगह-जगह पर विकुण्डलन शुरू हो जाता है। HDP प्रोटीनें विकुण्डलित एकल-श्रृंखलाओं का स्थायीकरण कर देती हैं। विकुण्डलन के फलस्वरूप दोनों ओर उत्पन्न अतिकुंडलनों (supercoils) को कम करने के लिए DNA गाइरेज नामक एंजाइम दोनों ओर से द्विकुंडल को खंडित कर देता है तथा फलस्वरूप उत्पन्न खाली स्थान (gap) को भी कर देता है । 

(ii) श्रृंखलाओं का संश्लेषण (Synthesis of Strands ) –  खुली हुई DNA श्रृंखला के सांचे पर सबसे पहले RNA के एक छोटे से खंड का संश्लेषण होता है, जो DNA का पूरक होता है। RNA का यह संश्लेषण एक विशेष एंजाइम RNA पॉलीमरेज द्वारा उत्प्रेरित होता है जिसे प्राइमेज (primase) भी कहते हैं। यह RNA का खण्ड DNA के संश्लेषण के लिए आरम्भिक (primer) का कार्य करता है।

DNA के संश्लेषण में एंजाइम DNA पॉलीमरेज (DNA polymerase) की महत्वपूर्ण भूमिका होती है। इसकी सहायता से खुली श्रृंखलाओं पर आबंधित होने वाले पूरक नाइट्रोजनी क्षार एक-एक करके जुड़ते रहते हैं।

                          जब द्विकुण्डलित DNA का विकुण्डलन एक बिंदु तक होता है, तो यह देखने में Y के आकार की रचना लगती है, इसे प्रतिकृतिकरण द्विभुज (Replication fork) कहते है ज्यों-ज्यों प्रतिकृतिकरण की किया आगे बढ़ती है, त्यों-त्यों द्विभुज की दोनों भुजाओं को जोड़ने वाला बिन्दु (forking point) आगे बढ़ता जाता है। अब, DNA पॉलीमरेज केवल 5′-3′ दिशा में ही न्यूक्लियोटाइडों को जोड़ सकता है। चूँकि जनक DNA की एक श्रृंखला 5 3′ तथा दूसरी 31-5′ दिशाओं में होता है। DNA पॉलमरेज 5-3′ दिशा में नई श्रृंखला का निरन्तर संश्लेषण करता है। इस श्रृंखला को अग्रज श्रृंखला (leading strand) कहते हैं। परन्तु 31-5′ दिशा में बनने वाली श्रृंखला के लिए बार-बार RNA प्राइमर की मदद से पूरक DNA के छोटे-छोटे खंड बनाता है। इन खंडों को ऑकाजाकी खंड (Okazaki fragments) कहते हैं । चूंकि यह वाली पूरक श्रृंखला, छोटे-छोटे खंडों में बनती है जो आपस में जुड़ जाते हैं, इसे पश्चगामी श्रृंखला (lagging strand) कहते हैं। ये सभी खंड बाद में एक एंजाइम DNA लाइगेज (DNA ligase) द्वारा जोड़ दिये जाते है।


11.डीएनए से आरएनए में सूचना के प्रवाह अनुलेखन का सचित्र वर्णन कीजिए।

उत्तर ⇒ सूचना का DNA से RNA को प्रवाह अनुलेखन (Flow of information from DNA to RNA Transcription)-DNA पॉलीपेप्टाइड श्रृंखला तक सूचना के वाहक का कार्य RNA करता है जिसे दूत RNA (messenger RNA – mRNA) कहते हैं। इसका निर्माण DNA की एक श्रृंखला से उसी प्रकार होता है, जैसे कि DNA की एक श्रृंखला से नई श्रृंखला का निर्माण होता है। जनक DNA की एक श्रृंखला साँचे की तरह कार्य करती है और इस प्रकार RNA की श्रृंखला का निर्माण होता है। इस चरण को अनुलेखन (transcription) कहते हैं। यह प्रक्रिया एक एंजाइम RNA पॉलीमरेज (RNA polymerase) द्वारा उत्प्रेरित होती है। अतः DNA श्रृंखला में विद्यमान धारकों के अनुक्रम के आधार पर ही RNA के धारकों का अनुक्रम निर्भर करता है— DNA का A के साथ RNA का यूरेसिल (U); T के साथ A; G के साथ C: C के साथ G आ लगे हैं। इस प्रकार देखा जाए तो DNA के अन्दर निहित सूचना (क्षारकों के अनुक्रमों के रूप में), RNA को (अनुक्रम के रूप में) दे दी जाती है। DNA के एक अणु से m-RNA के कई अणु बन सकते हैं जो कि DNA साँचे से विमुक्त होते रहते हैं। यूकैरियोटी कोशिकाओं में तीन विभिन्न RNA पॉलीमरेज I, II, III होते हैं जो क्रमशः राइबोसोमल RNA (r-RNA), m-RNA तथा ट्रांसफर RNA (transfer RNA-1-RNA) के संश्लेषण को उत्प्रेरित करते है। प्रोकैरियोटी कोशिकाओं में, एक ही RNA पॉलीमरेज एंजाइम के विभिन्न भाग इन कार्यों को करते हैं।

अनुलेखन की क्रिया निम्न चरणों में पूरी होती है

(i) RNA पॉलमरेज एंजाइम DNA के प्रोमोटर स्थल (promoter site) पर आबंधित हो जाता है।

(ii) ज्यों-ज्यों RNA पॉलीमरेज आगे बढ़ता है, DNA का विकुण्डलन होता जाता है और इसकी एक श्रृंखला  m- RNA के संश्लेषण के लिए साँचे का कार्य करती है।

 (iii) एक समापक स्थल (terminator point ) पर पहुँचकर RNA पॉलीमरेज अलग हो जाता है। यहीं पर m-RNA का संश्लेषण रुक जाता है। ई. कोलाई में कहीं-कहीं एक कारक जिसे रहो (rho) कारक कहते हैं, RNA के संश्लेषण को समाप्त  कराता है।

Class 12th biology 2024 ka subjective question 


12.आनुवंशिक कोड क्या है ? इसके गुण का वर्णन कीजिए।

उत्तर ⇒ आनुवंशिक कोड (Genetic code)-m-RNA # आनुवंशिक सूचना किस प्रकार से निहित होती है और इसके प्रोटीन के अनुवाद का ज्ञान, इस शताब्दी की विशेष उपलब्धि है। न्यूक्लिक अम्ल में केवल चार प्रकार के क्षारक होते हैं और प्रोटीनों में 20 विभिन्न प्रकार के अनिवार्य अमीनो अम्ल होते हैं। दूसरे शब्दों में हम यह भी कह सकते हैं कि प्रोटीन की भाषा की वर्णमाला में 20 शब्द होते हैं, जबकि न्यूक्लिक अम्लों की भाषा में चार क्षारक रूपी अक्षर होते हैं। ऐसा संभव नहीं है कि एक क्षार एक अमीनो अम्ल के समतुल्य हो सके। यदि ऐसा हो, तो चार क्षारक केवल चार ही अमीनो अम्लों का प्रतिनिधित्व कर पायेंगे। यदि दो क्षारकों का एक अनुक्रम एक अमीनो अम्ल के लिए प्रयुक्त होता हो, तो भी केवल 4 x 4 = 16 विभिन्न अनुक्रम बन पायेंगे, जो केवल 16 अमीनो अम्लों के लिए पर्याप्त होंगे। मार्शल नीरेनवर्ग, ओकोआ, हरगोविन्द खुराना, फ्रैन्किस क्रिक एवं अनेक वैज्ञानिकों के अथक प्रयासों के फलस्वरूप अब स्पष्ट हो गया है कि प्रत्येक अमीनो अम्ल के लिए तीन क्षारकों का एक विशिष्ट अनुक्रम होता है जिसे त्रिक (triplet) कहते हैं या कोडोन (codon) भी कहते हैं। उदाहरण के लिए m-RNA में तीन क्षारकों AUG की त्रिक अमीनो अम्ल मिथिओनीन (methionine) का प्रतिनिधित्व करती है। क्षारक अनुक्रम UUU अमीनो अम्ल फिनाइल अलानिन का प्रतिनिधित्व करती है। किसी भी m-RNA के अणु में क्षारकों का अनुक्रम (तीन-तीन के समूहों मे) अमीनो अम्लों के अनुक्रम का निर्धारण करता है। के उदाहरण के लिए यदि m-RNA के अणु में CGU GGG CUU …. अनुक्रम में क्षारक लगे है तो CGU आर्जिनीन का, GGG ग्लाइसीन का तथा CUU ल्यूसीन का प्रतिनिधित्व करते हैं। इस प्रकार इस m RNA के अनुवाद के फलस्वरूप बनने वाली प्रोटीन में आर्जिनीन ग्लाइसीन ल्यूसीन अमीनो अम्ल होंगे।

                                 CGU                             GGG                        CUU        

                               आर्जिनीन                        ग्लाइसीन                   ल्यूसीन             

4 धारकों को 3-3 समूहों में विभिन्न अनुक्रमों में लगाने से 4×4 x 4 = 64 प्रकार के त्रिक मिलते हैं, इनमें से 3 कोडोन निरर्थक (non sense) होते हैं, इन्हें समापन (terminator) संकेत भी माना जा सकता है। एक कोडोन AUG आरम्भक ( initiating) कोडोन होता है। कई अमीनो अम्लो के एक से अधिक कोडोन होते हैं प्रोटीन में अमीनो अम्लों के अनुक्रम को निर्धारित करने के लिए त्रिक कोडोनों के रूप में न्यूक्लिक अम्लों में निहित शब्दावली को ही आनुवंशिक कोड (genetic code) कहते हैं चित्र में आनुवंशिक कूट शब्दकोष में विभिन्न अमीनो अम्लों के लिए त्रिक कोडोन दर्शाए गए हैं।


13.ओपेरॉन मॉडल से आप क्या समझते हैं ? वर्णन कीजिए।

उत्तर ⇒ ओपेरॉन मॉडल (Operaon Model) – सन् 1961 में पेरिस की पाश्चर इंस्टीट्यूट के वैज्ञानिक एफ जैकोब (F. Jacob) तथा जे. मोनाड (J. Monad ) ने सुझाव दिया कि उपापचयी पथ (metabolic pathway) का नियमन पूरी इकाई के रूप में होता है। उदाहरण के लिए, जब ई कोलाई के संवर्धन माध्यम में लैक्टोज शर्करा मिला दी जाती है, तो इससे तीन एंजाइम प्रेरित होते हैं—पर्मिएज, B- गैलेक्टोसाइडेज तथा ट्रांसएसिटाइलेज । पर्मिएज लैक्टोज को कोशिका के भीतर पहुँचने में मदद करता है। B गैलेक्टोसाइडेज लैक्टोज के विघटन को उत्प्रेरित करता है ट्रांसएसिटाइलेज का कार्य नहीं मालूम। इन तीनों एंजाइमों के संश्लेषण के लिए उत्तरदायी जीन बिल्कुल आस-पास होते हैं, अतः सहलग्न (linked ) होते हैं। इनको संरचनात्मक जीन (structural gene) कहते हैं। इन्हें ऐसा इसलिए कहते हैं। क्योंकि उपर्युक्त एंजाइमों व अमीनो अम्लों के अनुक्रम के लिए सूचना इनमें ही निहित होती है तथा इस प्रकार उपापचयी पथ की प्रोटीनों की संरचना का प्रत्यक्ष निर्धारण ये ही करते हैं। ये तीनों जीन (सामूहिक रूप से) एक जीन के नियंत्रण में रहते हैं, जिसे ऑपरेटर जीन (operator gene) कहते हैं। रचनात्मक एवं ऑपरेटर सहित पूरी इकाई को ओपेरॉन (operon) कहते हैं। संरचनात्मक जीनों की अभिव्यक्ति होना या न होना इस बात पर निर्भर करता है कि ऑपरेटर क्रियाशील है या नहीं। यदि ऑपरेटर क्रियाशील है, तो तीनों जीनों का अनुलेखन एक ही mRNA के रूप में होता है जिसमें तीनों जीनों की आनुवंशिक सूचना अभिलेखित होती है। प्रत्येक जीन खंड को सिस्ट्रॉन (cistron) कहते हैं तथा वह m-RNA जिसमें तीनों सिस्ट्रॉनों की सूचना अभिलेखित रहती है, बहुसिस्ट्रॉनिक (polycistronic) कहलाता है।

रेगुलेटर जीन तथा दमनकारी (Regulator gene and repressor)— प्रश्न यह उठता है कि आखिर ऑपरेटर का सक्रियण या निष्क्रियण कैसे होता है? कोशिकाओं में कुछ प्रोटीन अणु भी पाए जाते हैं, जो जीन की क्रियाशीलता पर नियंत्रण रखते हैं। इन अणुओं को दमनकारी (repressor) कहते हैं। जब यह प्रोटीन, ऑपरेटर के साथ संलग्न हो जाती है, तो ऑपरेटर निष्क्रिय हो जाता है और तीनों जीनों की अभिव्यक्ति नहीं हो पाती।

इस  दमनकारी के संश्लेषण के लिए एक और जीन उत्तरदायी होता है। चूंकि ‘जीन के उत्पाद, ऑपरेटर की क्रियाशीलता पर नियंत्रण करते हैं और इस प्रकार यह जीन तीनों सिस्ट्रोनों की अभिव्यक्ति पर अप्रत्यक्ष रूप से नियंत्रण रखता है, इसे रेगुलेटर जीन (regulator gene) कहते है। इसके द्वारा निर्मित प्रोटीनों को रेगुलेटर प्रोटीन कहते हैं। जब लैक्टोज शर्करा को संवर्धन माध्यम में मिलाया जाता है, तो लैक्टोज के कुछ अणु कोशिका के अंदर पहुँचकर दमनकारी (repressor) के साथ संलग्न हो जाते हैं। अतः दमनकारी अब ऑपरेटर के साथ संलग्न नहीं हो पाता। परिणामस्वरूप, ऑपरेटर सक्रिय रहता है, तीनों संरचनात्मक जीनों का अनुलेखन होता है। इस प्रकार लैक्टोज से तीनों जीनों के अनुलेखन का प्रेरण (induction) होता है।

पुनर्भरण दमन (Feedback repression) – पुनर्भरण दमन में भी जीन की क्रियाशीलता पर नियंत्रण उसी प्रकार से होता है, जैसे लैक्टोज ओपेरॉन में बताया गया है। इसके लिए, हम ट्रिप्टोफॉन ओपेरॉन प्रतिरूप का उदाहरण लेते है। अमीनो अम्ल, ट्रिप्टोफॉन का संश्लेषण 5 जीनो की क्रमिक अनुक्रिया के फलस्वरूप होता है। ये पाँचों संरचनात्मक जीन एक ऑपरेटर के नियंत्रण में होते हैं। परंतु, यहाँ पर ऑपरेटर पर नियंत्रण रेगुलेटर जीन द्वारा निर्मित रेगुलेटर प्रोटीन स्वयं नहीं करती, बल्कि स्वयं ट्रिप्टोफॉन ही दमनकारी के साथ संलग्न हो जाता है और इस प्रकार, सह-दमनकारी (corepressor) का कार्य करता है।

दमनकारी— सहदमनकारी सम्मिश्रण (repressor-corepressor complex) ऑपरेटर के साथ संलग्न होकर ओपेरॉन की अभिव्यक्ति का दमन करता है।

प्रेरण द्वारा नियंत्रण उन परिस्थितियों में होता है जब किसी पदार्थ का अपचय (catabolism) होना हो। पुनर्भरण दमन द्वारा नियंत्रण तब होता है, जब उपचय की कोई आवश्यकता न हो। फिर भी ऐसे जीनों को उसी तरह नियंत्रित किया जाता है, जैसे जीवाणु के ओपेरॉन में प्रेरण तथा दमन की प्रक्रियाएँ मूलतः वैसी ही होती है, जैसे कि प्रोकैरियोटी जीवों में, यद्यपि रेगुलेटर जोनों का व्यूहन काफी जटिल होता है।

कोशिका में निरन्तर बदलते पर्यावरण से भी जीन का नियमन होता रहता है। जीवधारी की वृद्धि व परिवर्धन के दौरान अनेक अणु, जैसे हॉर्मोन, विटामिन, अनेक रसायन, रोगजनक जीव इत्यादि किसी जीन का प्रेरण या दमन कर सकते हैं, जिसके परिणामस्वरूप अनेक प्रकार की प्रोटीने उत्पन्न हो सकती हैं, या किसी प्रोटीन का निर्माण रुक सकता है। अन्ततः इससे कोशिका की सामान्य कार्यप्रणाली में सुचारुता आ सकती है, किन्तु व्यवधान भी उत्पन्न हो सकते हैं।


12th biology 2024 questions and answers in hindi

14.पुनर्योगज डीएनए (रिकॉम्बिनेन्ट डी.एन.ए.) तकनीक क्या है ? वर्णन कीजिए। अथवा, पुनर्योगज डीएनए तकनीक से आप क्या समझते हैं ? इसके लिए आवश्यक विभिन्न तकनीकी साधनों की विवरणी प्रस्तुत करें

उत्तर ⇒ पुनर्योगज डीएनए तकनीक (Recombinant DNA Technology) पुनर्योगज DNA प्राप्त करने के लिए तीन विधियों प्रयुक्त की गई है—

(अ) DNA की दो श्रृंखलाओं के अंतिम छोर पर नई DNA श्रृंखलाएँ जोड़कर – यदि हम एक DNA के सिरे पर कुछ क्षारक (जैसे TTTTT) जोड़ दें, तथा दूसरे DNA के सिरे पर इसके संयुग्मी क्षारक (AAAAAA) जोड़ दें और फिर इन दोनों प्रकार के DNA को मिलायें, तो नई लड़ियाँ आपस में H-bond बनाकर दो भिन्न DNA अणुओं को संयुक्त कर देगी। इस कार्य के लिए विशेष एंजाइम का उपयोग किया जाता है जिसे टर्मिनल ट्रांसफरेज (terminal transferase) कहते हैं। अन्य जुड़े स्थानों को डीएनए लाइगेज (DNA ligase) नामक एंजाइम द्वारा भर देते हैं।

(ब) नियंत्रण एंजाइमों की सहायता से (With the help of restriction enzymes ) — इस विधि में संयुग्मी क्षारकों के बीच हाइड्रोजन बंध बनाकर संकरित DNA का निर्माण करते हैं। परन्तु इस विधि में एक विशेष एंजाइम, नियंत्रण एंजाइम (restriction enzyme) का उपयोग करते हैं। इस प्रकार के लगभग 100 एंजाइम अब उपलब्ध है। ये एंजाइम चाकू की तरह कार्य करते हैं तथा DNA श्रृंखला को विशिष्ट स्थानों पर इस प्रकार से काट देते है कि वांछित जीनों वाले खंड प्राप्त हो सकते हैं


15.टेंपलेट (डीएनए या आरएनए) के रासायनिक प्रकृति इससे (डीएनए या आरएनए) संश्लेपित न्यूक्लिक अम्लों की प्रकृति के आधार पर न्यूक्लिक अम्ल पॉलीमरेज के विभिन्न प्रकारों की सूची बनाइए

उत्तर ⇒ 1. डीएनए पॉलीमरेज- मुख्य एंजाइम जो डीएनए पर निर्भर है, वह डीएनए पॉलीमरेज है। यह डीएनए टेम्पलेट का उपयोग डीऑक्सीन्यूक्लियोराइड के बहुलीकरण को उत्प्रेरित करता है। यह एंजाइम काफी प्रभावी है। डीएनए पर निर्भर डीएनए पॉलीमरेज केवल एक दिशा 5 से 3 (5→3) की ओर उत्प्रेरित होता है। वह प्रतिकृति द्विशाखा पर कुछ जटिलता पैदा करती है, फलस्वरूप (3′ से 5′ भुक्ता वाली टेम्पलेट) की लड़ी पर प्रतिकृत संतत् होता रहता है जबकि दूसरी लड़ी (3′ से 5′ ध्रुवता वाली टेम्पलेट) पर यह संतत् होता है। तत्पश्चात् यह असंतत् रूप से संश्लेषित खण्ड एंजाइम डीएनए लाइपेज द्वारा आपस में जुड़ जाते हैं। डीएनए पॉलीमरेज स्वयं प्रतिकृत प्रक्रम की शुरूआत नहीं कर सकते हैं।

2.आरएनए पॉलीमरेज- जीवाणु में मुख्यतया तीन प्रकार के आरएनए होते है-दूत आरएनए (आरआरएनए, मेसेजर आरएनए), अंतरण आरएनए (टी आरएनए ट्रांसफर आरएनए) व राइबोसोमल आरएनए (आरआरएनए) ये सभी तीन आरएनए कोशिका में प्रोटीन संश्लेषण के लिए आवश्यक हैं। एमआरएनए टेम्पलेट प्रदान करता है, टी आरएनए एमीनो अम्लों को लाने व आनुवंशिक कूट को पढ़ने का काम व आरआरएनए स्थानांतरण के दौरान संरचनात्मक व उत्प्रेरक भूमिका निभाता है। जीवाणु में डीएनए पर निर्भर केवल एक आरएनए पॉलीमरेज होता है जो सभी प्रकार के आरएनए के अनुलेखन को उत्प्रेरित करता है। आरएनए पॉलीमरेज उन्नायक से जुड़कर अनुलेखन की शुरुआत (प्रारंभन) करते हैं। यह ट्राइफॉस्फेट को क्रियाधार के रूप में प्रयोग कर पूरकता के नियम का अनुपालन करते हुए टेम्पलेट में बहुलीकृत हो जाता है। यह कुंडली को आगे खुलने व उसकी दीर्घीकरण में सहायता करता है । जब आरएनए पॉलीमरेज समापक किनारे पर पहुँच जाता है तब नवनिर्मित आरएनए व आरएनए पॉलीमरेज अलग हो जाते हैं। इसके परिणामस्वरूप अनुलेखन का समापन हो जाता है ।

                केन्द्रक (अंगकों में मिलने वाले पॉलीमरेज के अतिरिक्त) में कम से कम तीन प्रकार के आरएनए पॉलीमरेज मिलते हैं। इनमें कार्यों का स्पष्ट विभाजन होता है। आरएनए पॉलीमरेज I राइबोसोमल और आरएनए (rRNA) (28s, 18s व 5.8s) को अनुलेखित करता है, जबकि आरएनए पॉलीमरेज III अंतरण आरएनए (tRNA), 5 एस आर आरएनए (5srRNA) व एस एन आरएनए (snRNs) (छोटा केन्द्रकी आरएनए) के अनुलेखन के लिए जिम्मेदार है। आरएनए पॉलीमरेज II दूत आरएनए (mRNA) के पूर्ववर्ती रूप विषमांगी केन्द्रकीय आरएनए (hnRNA) का अनुलेखन करते हैं।


16.दो उदाहरण से सिद्ध कीजिए कि DNA एक जेनेटिक पदार्थ है।

उत्तर ⇒ DNA एक जेनेटिक पदार्थ है। इसके दो उदाहरण निम्न है— (i) ग्रिफिन ने फुफ्फसदाह अर्थात् न्यूमोनिया रोग के जनक जीवाणुओं न्यूमोकोकाई को गरम करके निर्जीव किया जिससे इनमें न्यूक्लिक अम्ल के अतिरिक्त सभी अन्य पदार्थ निष्क्रिय हो गए। फिर उन्होंने इन निर्जीव जीवाणुओं तथा न्यूमोकोकाई की ही एक अरोगजनक किस्म के जीवित जीवाणुओं को साथ-साथ चूहों में प्रवेशित करा दिया। शीघ्र ही चूहे न्यूमोनिया रोग के कारण मर गए क्योंकि निर्जीव रोगजनक जीवाणुओं के न्यूक्लिक अम्ल ने सजीव अरोगजनक के आनुवंशिक लक्षणों में परिवर्तन करके इन्हें रोगजनक जीवाणुओं में बदल दिया। (ii) हर्शे तथा वेज ने रेडियोधर्मी अनुरंजक तकनीक द्वारा पता लगाया कि E कोलाई (E. Coli) नामक जीवाणु को संक्रमित करने वाले बैक्टेरियोफेज वाइरस का केवल सूत्र ही जीवाणु में घुसकर वाइरस का प्रचुरोद्भवन करवाता है, वाइरस का प्रोटीन खोल जीवाणु के बाहर ही रह जाता है। इससे सिद्ध हो गया कि प्रोटीस नहीं वरन् DNA ही आनुवांशिक पदार्थ है।


17.DNA फिंगरप्रिंटिंग के सिद्धांत और तकनीक की विवेचना करें।

उत्तर ⇒ DNA फिंगरप्रिंटिंग- मनुष्यों के DNA में पाए जानेवाले चार अनुक्रम लगभग समान होते हैं। मनुष्य के जीनोम में 3 x 10 क्षार के जोड़े पाए जाते हैं। किसी जनसंख्या के विभिन्न लोगों के बीच आनुवांशिक विभिन्नता को पता लगाने के लिए DNA अनुक्रम की जानकारी आवश्यक है। इतनी बड़ी संख्या में क्षार अनुक्रमों का पता लगाना बहुत महँगा एवं कठिन कार्य है। दो मनुष्यों के DNA अनुक्रमों का तुलनात्मक अध्ययन करने के लिए DNA फिंगरप्रिंटिंग एक त्वरित एवं अच्छी विधि है। इसमें DNA अनुक्रम में अवस्थित पुनरावृत्ति DNA का उपयोग किया जाता है। ये DNA के छोटे खंड कई बार पुनरावृत्त होते है। ये सामान्यतः उच्च श्रेणी की बहुरूपता प्रदर्शित करते है जो DNA फिंगरप्रिंटिंग का आधार है। किसी भी व्यक्ति के विभिन्न ऊतकों, जैसे त्वचा, बाल, शुक्राणु, लार, रक्त, हड्डी आदि से प्राप्त DNA में एक जैसी बहुरूपता मिलती है। बहुरूपता उत्परिवर्तन के चलते उत्पन्न होती है। जनन कोशिकाओं में उत्परिवर्तन होने से यह लैंगिक जनन द्वारा जनकों से संतति में चला जाता है। धीरे-धीरे एकत्रित होकर विभिन्नता या बहुरूपता उत्पन्न होती है। DNA फिंगरप्रिंटिंग तकनीक का प्रारंभिक विकास एलेक जेफरीज ने किया।

DNA फिंगरप्रिंटिंग के लिए थोड़ी-सी रुधिर कोशिकाएँ अथवा त्वचा कोशिकाएँ अथवा वीर्य अथवा किसी भी प्रकार की शारीरिक कोशिकाओं का नमूना लिया जा सकता है। प्रायः 1,00,000 कोशिकाओं या लगभग एक माइक्रोग्राम अच्छे नतीजे के लिए उपयुक्त माना जाता है। इसके लिए निम्नलिखित विधि आजकल अपनायी गई है—

(i) एक उच्च गतिवाले रेफ्रीजेरेटेड सेंट्रीफ्यूज की सहायता से DNA की आवश्यक मात्रा रूधिर कोशिका या किसी भी अन्य प्रकार की शारीरिक कोशिकाओं से प्राप्त की जाती है।

(ii) आवश्यकता पड़ने पर निकाले गए DNA की अनेक प्रतिलिपि विधि द्वारा तैयार कर ली जाती है।

(iii) DNA को सीमाबद्ध लम्बा रखने हेतु इसे रेस्ट्रिक्शन एंजाइम से काट कर छोटे-छोटे खंडों में विभक्त किया जाता है।

(iv) DNA के टुकड़े को इलेक्ट्रोफोरेसिस में जेल (gel) से निकाला जाता है।

(v) छोटे लंबाईवाला DNA अपने बड़े लंबाईवाले की तुलना में आगे निकल पाता है। इस अवस्था में धारियाँ अदृश्य होती हैं। (vi) अब दोहरे स्टैंडवाले DNA क्षारीय रासायनिक पदार्थ की सहायता से एकधागीय DNA में अलग किया जाता है।


18.RNA (टी.आर.एन.ए.) की संरचना का सचित्र वर्णन करें।

उत्तर ⇒ अंतरण आरएनए (trna) अंतरण आरएनए (tRNA) अनुलेखन के लिए जिम्मेदार है। अंतरण आरएनए में एक प्रति प्रकूट (एंटीकोडान) फंदा होता है जिसमें कूट के पूरक क्षार मिलते है व इसमें एक अमीनो अम्ल स्वीकार्य छोर होता है जिससे यह अमीनो अम्ल से जुड़ जाता है। प्रत्येक अमीनो अम्ल के लिए विशिष्ट अंतरण आरएनए (IRNA) होते है। प्रारंभन हेतु दूसरा विशिष्ट अंतरण आरएनए होता है जिसे प्रारंभक अंतरण आरएनए कहते हैं। रोध प्रकूट के लिए कोई अंतरण आरएनए नहीं होता है। उपरोक्त चित्र में अंतरण आरएनए) द्वितीयक संरचना दर्शायी गयी है जो तिपतिया (क्लोवर) की पत्नी जैसे की दिखाई देती है। वास्तविक संरचना के अनुसार अंतरण आरएनए सघन अणु है जो उल्टे एल की तरह दिखाई देता है।

Class 12th Subjective Biology


Class 12th Biology – Objective 
1जीवधारियों में जननClick Here
2पुष्पी पादपों में लैंगिक प्रजननClick Here
3मानव प्रजननClick Here
4जनन स्वास्थ्यClick Here
5वंशागति और विभिन्नता के सिद्धांतClick Here
6वंशागति का आणविक आधारClick Here
7विकासClick Here
8मानव स्वास्थ्य एवं रोगClick Here
9खाद उत्पादन बढ़ाने के लिए उपायClick Here
10मानव कल्याण में सूक्ष्मजीवClick Here
11जैव प्रौद्योगिकी के सिद्धांत एवं प्रक्रिया हैClick Here
12जैव प्रौद्योगिकी एवं इसके अनुप्रयोगClick Here
13जीव एवं समष्टियाClick Here
14परिस्थितिक तंत्रClick Here
15जैव विविधता एवं संरक्षणClick Here
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 BSEB Intermediate Exam 2024
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