Class 12 Biology Question Answer In Hindi :- दोस्तों यदि आप Class 12th Biology Subjective Question 2024 की तैयारी कर रहे हैं तो यहां पर आपको Biology Chapter 4 ( जनन स्वास्थ्य ) Subjective Question दिया गया है जो आपके Biology 12th Question Answer 2024 के लिए काफी महत्वपूर्ण है |
Class 12 Biology Question Answer In Hindi
1.बंध्य दंपत्तियों को संतान पाने हेतु सहायता देने वाली कुछ विधियाँ बताएँ ।
उत्तर—विशिष्ट स्वास्थ्य सेवा इकाइयाँ (बंध्यता क्लीनिक आदि) नैदानिक जाँच में सहायक हो सकती है और इनमें से कुछ विकारों का उपचार करके दंपत्तियों को बच्चे पैदा करने में मदद दे सकती है। ये तकनीके सहायक जनन प्रौद्योगिकियों (ए आर टी) कहलाती हैं। पात्रे निषेचन (आई वी एफ-इन-विट्रो फर्टिलाइजेशन अर्थात् शरीर से बाहर लगभग शरीर के भीतर जैसी स्थितियों में निषेचन) के द्वारा भ्रूण स्थानांतरण (ईटी) ऐसा एक उपाए हो सकता है। इस विधि में जिसे लोकप्रिय रूप से टेस्ट ट्यूब बेबी कार्यक्रम के नाम से जाना जाता है। इसमें प्रयोगशाला में पत्नी का या दाता स्वी के अण्डे से पति अथवा दाता पुरुष से प्राप्त किए गए शुक्राणुओं को एकत्रित करके प्रयोगशाला में अनुरूपी परिस्थितियों में युग्मनज बनने के लिए प्रेरित किया जाता है। इस युग्मनज या प्रारंभिक भ्रूण (8 ब्लास्टेमियर तक) को फैलोपी नलिकाओं में स्थानांतरित किया जाता है जिसे युग्मनज अंतः डिंब वाहिनी (फैलोपी) स्थानांतरण अर्थात् जॉइगोट इंट्रा फैलोपियन ट्रांसफर (जेड आई एफ टी) कहते है और जो भ्रूण 8 ब्लास्टोमियर से अधिक का होता है तो उसे परिवर्धन हेतु गर्भाशय में स्थानांतरित कर दिया जाता है। इसे इंट्रा यूटेराइन ट्रांसफर (आई यू टी) कहते हैं। जिन स्त्रियों में गर्भधारण की समस्या रहती है, उनकी सहायता के लिए जीव निषेचन (इन- विवो फर्टीलाइजेशन – स्वी के भीतर ही युग्मकों का संलयन) से बनने वाले भ्रूणों को भी स्थानांतरण के लिए प्रयोग में लाया जा सकता है। ऐसे मामले में जहाँ स्त्रियाँ अण्डाणु उत्पन्न नहीं कर सकती लेकिन जो निषेचन और भ्रूण के परिवर्धन के लिए उपयुक्त वातावरण प्रदान कर सकती है, उनके लिए एक अन्य तरीका अपनाया जा सकता है। इसमें दाता से अण्डाणु लेकर उन स्त्रियों की फैलोपी नलिका में स्थानांतरित (जी आई एफ टी) कर दिया जाता है। बंध्यता के ऐसे मामलों में जिनमें पुरुष साथी स्त्री को वीर्य सेचित कर सकने के योग्य नहीं है अथवा जिसके स्खलित वीर्य में शुक्राणुओं की संख्या बहुत ही कम है, ऐसे दोष का निवारण कृत्रिम वीर्य सेचन (एआई) तकनीक से किया जा सकता है। इस तकनीक में पति या स्वस्थ दाता से शुक्र लेकर कृत्रिम रूप से या तो स्त्री की योनि में अथवा उसके गर्भाशय में प्रविष्ट किया जाता है। इसे अंतगर्भाशय वीर्य सेचन (आई यू आई) कहते हैं।
2.जनसंख्या नियंत्रण हेतु गर्भ निरोधन की विभिन्न विधियों की विवेचना करें।
उत्तर—परिवार मे संतानों की एक निश्चित संख्या बनाये रखने के लिए एक विशेष योजना है जिसे परिवार नियोजन की संज्ञा दी गई है। गर्भ निरोधन की कुछ संभावित उपाय निम्नांकित है—
(i) प्राकृतिक विधि – इसके अन्तर्गत मानसिक संयम तथा मासिक चक्र की एक निश्चित अवधि (10-19वें दिन ) में संयोग वर्जित रखा जाता है। मैथुन क्रिया में अवरोध उत्पन्न करना भी एक प्राचीन प्राकृतिक विधि है ।
(ii) यांत्रिक विधियाँ- यांत्रिक संसाधनों द्वारा स्त्रियों में अप्रत्याशित गर्भ धारण को रोका जा सकता है। पुरुषों एवं स्त्रियों में परिवार नियोजन के लिए सशक्त संसाधन उपलब्ध हैं। पुरुषों के लिए लैटेक्स का बना कन्डोम निम्न लागत का सबसे सरल तथा सशक्त माध्यम है। स्त्रियों के विभिन्न प्रकार के डायफ्राम तथा सर्वाइकल कैप उपलब्ध है। इसके अतिरिक्त अनेक इंट्रायूटेराइन उपायों जैसे कॉपर टी लूप फेमीडोम आदि स्त्रियों के गर्भाशय की ग्रीवा पर लगा दिया जाता है।
(iii) रसायनिक विधियाँ- शुक्राणुनाशक क्रीम, जेली पेस्ट तथा,टैबलेट को संभोग के पूर्व मादा की योनि में लगा दिया जाता है जिससे शुक्राणु स्खलित होते ही नष्ट हो जाते हैं। इसके अतिरिक्त कई प्रकार की गर्भ निरोधक गोलियाँ जैसे माला डी, सहेली, अन वांटेड 72 आदि स्त्रियों में अंडोत्सर्ग की प्रक्रिया को रोकते हैं तथा मासिक चक्र को बाधित करते हैं।
(iv) सर्जिकल विधि- इसके द्वारा परिवार नियोजन का स्थायी प्रबन्ध किया जाता है। नर में शल्य क्रिया द्वारा शुक्रवाहिका को काटकर धागे से बाँध दिया जाता है जिसे पुरुष नसबन्दी कहते हैं। शल्य क्रिया द्वारा स्त्री में नसबन्दी किया जाता है। इसमें स्त्रियों में या तो अंडाशय को ही हटा दिया जाता है अथवा फैलोपिअन नलिका को काट कर या गांठ लगा दिया जाता है जिससे मार्ग अवरुद्ध हो जाता है। इसके द्वारा गर्भ का चिकित्सीय समापन (MTP) किया जाता है।
(v) सामाजिक जागरूकता— परिवार नियोजन तथा जनसंख्या नियंत्रण हेतु समाचार पत्रों, पत्रिकाओं, विज्ञापनों, दूरदर्शन, पोस्टरों आदि के माध्यम से सामाजिक जागरूकता परियोजनाओं द्वारा ग्रामीण अशिक्षित महिलाओं एवं पुरुषों में जनसंख्या नियंत्रण हेतु गर्भ निरोधक की विभिन्न उपायों एवं जरूरतों को उजागर करना भी एक सार्थक कदम होगा ।
3.क्या गर्भ निरोधकों का उपयोग न्यायोचित है ? कारण बताएँ ।
उत्तर- विकासशील देशों में अनियंत्रित तरीके से बढ़ रही जनसंख्या के कारण अन्न, आवास तथा कपड़े जैसी मूलभूत आवश्यकताओं का नितांत अभाव हो सकता है। इसलिए सरकार पर यह दबाव था कि इस प्रकार की जनसंख्या वृद्धि दर को काबू रखने के लिए गंभीर उपाय अपनाए जाए। इस प्रकार की समस्या से निपटने के लिए एक महत्वपूर्ण उपाय यह था कि लघु परिवार को बढ़ावा देने हेतु गर्भ निरोधक उपाय अपनाने के लिए प्रेरित किया जाए। सरकार ने एक खुशहाल जोड़े के साथ दो बच्चों का परिवार ‘हम दो हमारे दो’ के नारे के साथ प्रदर्शित किया। बहुत से जोड़ों ने विशेषकर शहरों के काम-काजी युवा दंपत्तियों ने ‘हम दो हमारा एक’ का नारा अपनाया है। विवाह की वैधानिक आयु स्वी के लिए 18 वर्ष तथा पुरुष के लिए 21 वर्ष सुनिश्चित है और समस्या से निपटने के लिए लघु परिवार के लिए जोड़ों को प्रोत्साहित किया जाता है।
आजकल व्यापक परिधि के गर्भ निरोधक समान आसानी से उपलब्ध हैं, उन्हें मोटे तौर पर निम्न श्रेणियों में बाँटा जा सकता है, जैसे— प्राकृतिक / परंपरागत, रोध (बैरियर), आई इंडीज (कॉपर टी), मुँह से लेने योग्य गर्भनिरोधक, टीका रूप में, अंतर्राप तथा शल्य क्रियात्मक विधियाँ। इनमें से कोई भी एक विधि अपनी आवश्यकता और उपयोगिता के अनुसार हम चुन सकते हैं।
kaksha 12th Biology question answer
4.यौन संचारित रोग क्या है ? मनुष्य में होने वाले विभिन्न प्रकार के यौन जनित संचारित रोगों के कारणों, लक्षणों एवं इसके संभावित उपचारों का वर्णन करें।
उत्तर- यौन संचारित रोग व रोकथाम जो रोग लैंगिक से या प्रजनन मार्ग से संक्रमित होते हैं उन्हें लैंगिक संचारित रोग कहते हैं। इन रोगों से बचने का सबसे सुरक्षित उपाय सुरक्षित संसर्ग है ये रोग किसी भी प्रकार के लैंगिक संसर्ग (योनि, गुदा अथवा मुख मैथुन) द्वारा फैलते हैं। ये रोग निम्न है—
1.उपदंश – बाह्य जननांगों के घावों, रोम पुटिकाओं, खरोंच आदि के माध्यम से एक प्रकार के जीवाणु (ट्रेपोनीमा) के संक्रमण से यह रोग होता है। पहले संक्रमण स्थान पर एक बैजनी-सा वृत्ताकार घाव बन जाता है। फिर कुछ सप्ताह बाद ज्वर, लसिका गाँठों में सूजन तथा त्वचा पर चेचक जैसे ददोरे या पित्तिकाएँ बनने लगती हैं। कुछ सप्ताह बाद त्वचा पर तथा रुधिर परिसंचरण एवं तंत्रित तंत्रों के अंगों में लसदार पदार्थ से भरी गिल्टियाँ बनने लगती हैं। इससे व्यापक रुधिरस्राव, अंगघात, पागलपन आदि हो जाते हैं। गर्भवती स्त्रियों में यह रोग भ्रूण के लिए भी घातक होता है। इससे उपचार हेतु प्रायः टेट्रासाक्लिन एवं पेनिसिलिन का उपयोग करते हैं।
2.सूजाक – इस रोग को उत्पन्न करने वाला जीवाणु नायसीरिया गोनोरी शरीर के बाहर नहीं पाया जाता है। यह स्त्रियों और पुरुषों के मूत्रमार्ग में रहता है। इससे संक्रमिक व्यक्तियों को मूत्र त्याग में जलन तथा उदरशूल होता है। रानों की लसिका गांठे फूल सकती है तथा फोतों में भी पीड़ा होने लगती है। एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति में जीवाणु का संक्रमण सम्भोग के द्वारा ही फैलता है। रोग के उपचार हेतू पेनिसिलिन का ही उपयोग अधिक होता है। यदि समय पर उपचार न किया जाये तो यह रोग प्रोस्टेट ग्रन्थि तथा एपिडिडाइमिस तक फैल जाता है। ऐसी दशा में उपचार कठिन हो जाता है।
3.क्लैमाइडिया- ये लैंगिक रूप से संचारित रोग है जो क्लैमाइडिआ ट्राइकोमेटिस नामक जीवाणु से होता है। इसके संक्रमण से मूत्रमार्ग शोध, अधिवृषण शोध नामक रोग नर में व गर्भाशय ग्रीवा शोध नामक रोग स्त्रियों में उत्पन्न होता है। इस रोग में मूत्र त्याग व जननांगों से अन्य पदार्थों के स्राव में जलन होती है।
5.उल्वबंधन तकनीक (Amino-centesis Technique) क्या है? हमारे देश में यह निषेधित क्यों है? क्या इसे जनन स्वास्थ्य के महत्त्वपूर्ण तकनीक के रूप में उपयुक्त होना चाहिए? टिप्पणी करें।
उत्तर- एम्निओसैन्टेसिस – यह जन्म पूर्व भ्रूण रोग लक्षण ज्ञात करने सम्बन्धी तकनीक है। इस तकनीक के द्वारा गर्भधारण की प्रारंभिक अवस्था में गर्भधारण करने वाली माता के गर्भ में भ्रूण के चारों ओर पाई जाने वाली द्रव से भरी गुहा जिसे एम्निओटिका कोष कहते हैं, में से एम्निओटिक द्रव की कुछ मात्रा (लगभग 10-20 मिली) सूई द्वारा निकाल लेते हैं। द्रव निकालने से पहले पराध्वनि तकनीक से सुरक्षित क्षेत्र ज्ञात किया जाता है। इस क्षेत्र से ही सूई को भ्रूण, आँवल तथा नाभि रज्जु को हानि से बचाते हुए अन्दर प्रविष्ट कराया जाता है। एम्निओटिक द्रव में भ्रूण, ऑवल तथा एम्निओटिक कोष से पृथक हुई कोशिकाएं होती है। ये सभी कोशिकाएँ एक ही निषेचित अण्ड के व्युत्पन्न हैं अतः इन सभी का आनुवंशिक संरचना समान होती है। एम्निओटिक द्रव से उन कोशिकाओं का प्रयोगशाला में एक या दो सप्ताह तक संवर्धन किया जाता है। इन कोशिकाओं का गुणसूत्र अध्ययन तथा अनेक जैव रासायनिक परीक्षण किए जाते हैं। गुणसूत्रों के अध्ययन से डाऊन सिन्ड्रोम तथा अन्य सिन्ड्रेम्स का पता लगाया जा सकता है। जैव-रासायनिक परीक्षण द्वारा विभिन्न समस्याओं को उत्पन्न करने वाले रसायनों का पता लगाया जा सकता है जैसे ऐल्फा-फोटो प्रोटीन की अधिक मात्रा न्यूरल नाल विकार को इंगित करती है, इसी प्रकार एक दोषपूर्ण विकार जिसके द्वारा टे-साख्स रोग (जिसमें माइलिन आवरण विनष्ट होता है) ज्ञात किया जा सकता है। यदि विषमताएँ जन्मजात न ठीक हो सकने वाला रोग हो तो गर्भ धारण की प्रारंभिक अवस्था में ही भ्रूण का चिकित्सीय सगर्भता समापन करा देते हैं क्योंकि इस अवस्था में भ्रूण का समापन न्यायिक अनुमति से हो सकता है।
ऐमीनोसेंटेसिस प्रायः गर्भावस्था के प्रारंभिक 15-20 सप्ताह में किया जाता है, इस समय एम्निओटिक गुहा में लगभग 250 मिली द्रव होता है और भ्रूण को हानि की न्यूनतम संभावना होती है। एमीनोसेंटेसिस प्रायः भ्रूण व माता के लिए सुरक्षित तकनीक है, परन्तु कभी-कभी असावधानी से संक्रमण, रक्तस्राव अथवा गर्भपात का जोखिम भी रहता है।
Class 12 Biology Question 2024
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