NCERT Biology Subjective Question In Hindi | Bihar Board Biology Question Answer 2024

NCERT Biology Subjective Question In Hindi :- दोस्तों यदि आप Class 12th Ke Biology Question की तैयारी कर रहे हैं तो यहां पर आपको Biology Chapter 5 Long Question Answer दिया गया है जो आपके 12th Biology Question  Answer In Hindi के लिए काफी महत्वपूर्ण है | Class 12 Biology Questions and Answers


NCERT Biology Subjective Question In Hindi

1.आनुवंशिकी में टी. एच. मोरगन के योगदान का संक्षेप में उल्लेख करें

उत्तर ⇒ मोरगन ने फल-मक्खियों (फ्रूटफ्लाई- ड्रोसोफिला मेलमोगेस्टर) पर काम किया, जो ये ऐसे अध्ययनों के लिए उपयुक्त पाई गई। इन्हें प्रयोगशाला में सरल कृत्रिम माध्यमों पर रखा जा सकता था। ये अपना जीवन चक्र दो सप्ताह में पूरा कर सकती थीं और इनमें

एकल मैथुन से विशाल संख्या में संतति मक्खियों का उत्पादन संभव था। साथ ही लिंगों का विभेदन स्पष्ट था। नर और मादा की आसानी से पहचान की जा सकती थी। साथ ही इसमें आनुवंशिक। विविधताओं के अनेक प्रकार थे जो कम क्षमता वाले माइक्रोस्कोप से देखे जा सकते थे। थामट हंट मोरगन तथा उसके साथियों ने वंशागति का क्रोमोसोम-वाद या सिद्धांत के प्रयोगात्मक सत्यापन किए और यौन जनन उत्पादन विभेदन के लिए खोज के आधार की नींव डाली। लिंग सहलग्न जीनों के अध्ययन के लिए मोरगन ने ड्रोसोफिला में कई द्विसंकर क्रॉस किए। ये मेंडल द्वारा मटर में किए गए द्विसंकर क्रॉसो के समान थे।

मोरगन तथा उसके साथी जानते थे कि जीन, क्रोमोसोम में स्थित है और इन्होंने शीघ्र ही यह भी जान लिया कि जब द्विसंकर क्रॉस में दो जीन जोड़ी एक ही कोमोसोम में स्थित होती है जो जनकीय जीन संयोजनों का अनुपात अजनकीय प्रकार से काफी ऊँचा रहता है। मोरगन ने इसका कारण दो जीनों का भौतिक संयोग या जुड़ा होना बतलाया। मोरगन ने इस घटना के लिए सहलग्नता शब्द दिया जो एक ही क्रोमोसोम की जीन जोड़ियों के साथ होने का दयोतन करता है। साथ ही अजनकीय जीन संयोजनों के उत्पादन को पुनर्योजन कहा गया। मोरगन तथा उसके दल ने यह भी पता किया कि एक ही क्रोमोसोम में स्थित होने पर भी कुछ जीन जोड़ी में अधिक सहलग्नता थीं अर्थात् पुनर्योजन बहुत कम था। मोरगन के शिष्य एल्फ्रेड स्टर्टविट ने एक ही क्रोमासोम के जीन युग्मो की पुनर्योजन आवृत्ति को जीनों के बीच की दूरी का माप मानकर कोमासोम में इनकी स्थिति के चित्र ( रीकोम्बीनेशन मैप) बना दिए। आजकल पूरे जीनोम के अनुक्रम के निर्धारण के लिए आनुवंशिक नक्शे बहुत अधिक काम में लाए जाते हैं। ऐसा ही बाद में मानव जीनोम अनुक्रमण परियोजना में भी वर्णित किया गया।


2.शिशु का रुधिर वर्ग 0 है। पिता का रुधिर वर्ग A और माता का B है। जनकों के जीनोटाइप मालूम करें और अन्य संतति में प्रत्याशित जीनोटाइपों की जानकारी प्राप्त करें।

उत्तर ⇒ मानव में A, B, O रुधिर  वर्गों का निर्धारण करने वाली विभिन्न प्रकार की लाल रुधिर कोशिकाएँ हैं। A, B, O रुधिर वर्गों का नियंत्रण जीन ‘I’ करती है। लाल रुधिर कोशिकाओं की प्लाज्मा झिल्ली में सतह से बाहर निकलते हुए शर्करा बहुलक होते हैं। इस बहुलक का प्रकार क्या होगा यहाँ इस बात का नियंत्रण जीन ‘I’ से होता है। इस जीन I’ के तीन अलील IA, IB और होते हैं। अलील IAऔर अलील IB कुछ भिन्न प्रकार की शर्करा का उत्पादन करते हैं और अलील किसी भी प्रकार की शर्करा का उत्पादन नहीं करती। मानव जीन (2n) द्विगुणित होता है इसलिए प्रत्येक व्यक्ति में इन तीन में से दो प्रकार के जीन अलील होते हैं। IA, और IB तो i के ऊपर पूर्णरूप से प्रभावी होते है अर्थात् जब IA और i विद्यमान हो तो केवल IA अभिव्यक्त होता है और जब IB और i विद्यमान हों तो केवल IB अभिव्यक्त होता है, i तो शर्करा बनाता ही नहीं।

जब IA और IB दोनों उपस्थित हो तो ये दोनों अपने-अपने प्रकार की शर्करा की अभिव्यक्ति कर देते हैं। यह घटना ही सह-प्रभाविता है। इसी कारण लाल रुधिर कोशिकाओं में A और B दोनों प्रकारों की शर्करा होती है। तीन भिन्न अलील होने के कारण इनके 6 संयोजन संभव हैं। इस प्रकार A, B, O रुधिर वर्गों के 6 विभिन्न जीनोटाइप होंगे।


Class 12th Ke Biology Question

3.मेंडल का प्रभाविता नियम क्या है ?

उत्तर ⇒ प्रभाविता का नियम (Law of Dominance)- “जब एक जोड़ा विरोधी लक्षणों को धारण करने वाले दो शुद्ध जनको में परस्पर संकरण कराया जाता है, तो उनकी सन्तानों में विरोधी लक्षणों में से केवल एक प्रभावी लक्षण परिलक्षित होता है और दूसरा अप्रभावी लक्षण व्यक्त नहीं हो पाता।”

उदाहरण- मटर के पौधे में ऊँचाई के गुण के दो विरोधी रूप, लम्बापन (tallness) और बौनापन (dwarfness) पर विचार किया जाये। शुद्ध लम्बे पौधों में लम्बाई के समयुग्मजी कारकों का जोड़ा होगा। लम्बे पौधों का जीनोटाइप TIT होगा। इसी प्रकार शुद्ध बौने पौधों का जीनोटाइप tt होगा। जब लम्बे (TT) और बौने (tt) पौधों के बीच संकरण कराया जायेगा, तो F, पीढ़ी के सभी पौधों में जीनोटाइप (TY) होगा अर्थात् एक कारक लम्बेपन का (T) और दूसरा बौनेपन का (t) होगा। चूँकि T और t में से T प्रभावी है, अतः F, पीढ़ी के सभी पौधे लम्बे होंगे।

इससे स्पष्ट होता है कि आनुवंशिक गुणों का सम्मिश्रण नहीं होता।


 4.मेंडल तथा सटन का आनुवंशिकी के क्षेत्र में दिए गए योगदान का वर्णन करें।

उत्तर ⇒ मेडल तथा सटन का आनुवंशिकी में योगदान— प्रेगर जोहान मेंडल (1822-1884) एक आस्ट्रियन मठवासी थे, जिन्होंने पहली बार देखा कि किस प्रकार जनकों के विशिष्ट लक्षण संतानों में पहुँचते हैं। उन्होंने उद्यान मटर पर प्रयोग किए थे, इस पौधे में बड़ी ही स्पष्ट परस्पर विपरीत लक्षण पाए जाते हैं, जैसे—फूलों का बैगनी अथवा सफेद होना, ऊँचे अथवा बौने पौधे होना, बीजों का रंग हरा अथवा पीला, अथवा बीजों का गोल अथवा झुर्रीदार होना। उसने मटर के पौधे में सात जोड़ी विपरीत लक्षण छाँटे और चयनात्मक प्रजनन किया। उदाहरणतः उन्होंने एक ऊँचा पौधा चुना जिसके सभी बीजों से केवल पौधे ऊँचे बने, और एक बौना पौधा चुना जिसके बीजों से केवल बौने पौधे ही बने। उन्होंने ऊँचे पौधे का पराग लेकर उससे बौने पौधे के फूल का परागण किया। इसी प्रकार उन्होंने अन्य परस्पर विपरीत लक्षणों वाले पौधे का कृत्रिम रूप में परागण किया। अनेक पीढ़ियों तक इस प्रकार के प्रयोग को करने के बाद उन्होंने कुछ ‘वंशागति नियम’ निकाले । यही था आनुवंशिकी का प्रारंभ मेंडल के एक नियम में कहा गया है कि एक लक्षण के लिए जैसे कि फूल का रंग, पौधे की ऊँचाई आदि के लिए एक जोड़ी ‘कारक’ (factors) होते है। प्रत्येक जोड़े से एक कारक युग्मक (शुक्राणु अथवा अण्डे में पहुंचता है। निषेचन होने पर ये कारक एक निश्चित प्रतिरूप में अभियक्ति होते हैं।

ग्रेगर जोहान मेंडल का जन्म 1822 में हुआ। उनका लालन-पालन उत्तर मनाविया, तब के आस्ट्रिया में एक छोटे से फार्म में हुआ और वे वहीं बड़े हुए। 1847 में वे एक प्रीस्ट (पुजारी) बन गए। 1856 में सेंट थामस की मोनेस्ट्री में मेडल ने उद्यान मटर पर अपनी ऐतिहासिक खोजें शुरू की तथा अपने कार्य को 1866 में ‘एक्सपेरिमेंट्स ऑन प्लांट हाइब्रिड्स’ (अर्थात् पादप संकरों पर प्रयोग) शीर्षक से प्रकाशित किया। दुर्भाग्यवश उनके कार्य को लोग उनकी मृत्यु के 16 वर्ष बाद ही देख पाए जब औरों ने भी इसी प्रकार के परिणाम प्राप्त किए। आनुवंशिकी के क्षेत्र में प्रथम महत्त्वपूर्ण योगदान मेंडल ने ही दिया और इसीलिए उन्हें ‘आनुवंशिकी का जन्मदाता’ कहा जाता है।

बाद में 1920 में टिड्डे के गुणसूत्रों पर कार्य कर रहे सटन (Sutton) ने पुष्टि की कि मेडली कारक गुणसूत्रों पर मौजूद होते हैं। कारकों को आगे चलकर ‘जीन’ (gene) की संज्ञा दी गयी। अब यह स्वीकार कर लिया गया कि जीन ही वंशागति के लिए उत्तरदायी है। इसका अर्थ हुआ कि जीन वंशागति की इकाइयों है। ये गुणसूत्रों पर नियत विस्थलो (loci) (स्थानों पर पाए जाते हैं।


5.द्विसंकर संकरण क्या है ? वर्णन कीजिए। [BSEB. 2010] अथवा, मेंडल द्वारा बताए गए डाइहाइब्रिड क्रॉस की विवेचना करें।

उत्तर ⇒द्विसंकर संकरण (Dihybrid cross)—मेण्डल के दिमाग में यह प्रश्न उठा कि क्या विभिन्न लक्षण, वंशागति के दौरान उसी प्रकार से एक-दूसरे से व्यवहार करते है, जैसे कि एक ही लक्षण के दो रूप एक-संकर संकरण में करते हैं।

इसके लिए उन्होंने अपने प्रयोग उसी प्रकार से दोहराए जैसे कि एक संकर संकरण में किए थे परंतु अंतर सिर्फ इतना था कि अब एक लक्षण के बजाए उन्होंने दो लक्षण लिए थे। सबसे पहले, उन्होंने मटर की ऐसी किस्मों का विकास किया जो दो (लक्षणों में तदरूप प्रजननी (true-breeding) अर्थात् शुद्ध वंशक्रमी थी। इसके बाद उन्होंने दो जोड़ी विपरीत लक्षणों वाले पौधों के बीच संकरण कराया। उदाहरण के तौर पर, उन्होंने पीले रंग के गोल बीजों (yellow: round seeds) वाले मटर का संकरण झुर्रीदार हरे बीजों (wrinkled green seeds) वाले मटर के साथ कराया। इस संकरण के फलस्वरूप सभी पौधों से प्राप्त सभी बीज (जो F1) पीढ़ी को प्रदर्शित करते है) पीले व गोल थे। ये दोनो लक्षण प्रभावी थी। स्पष्ट है कि दोनों लक्षणों (बोज के प्रकार व रंग) के प्रभावी रूप उसी प्रकार F1 पीढ़ी में प्रकट हुए जैसे कि वे अलग-अलग एक संकर संकरण में हुए थे।

F1, पीढ़ी के बीजों से उगे पौधों में स्वपरागण होने दिया गया। इस परागण के फलस्वरूप प्राप्त बीजो (जोकि F2] पीढ़ी को प्रदर्शित करते है) का अध्ययन करने पर पता चला कि ये चार प्रकार के थे—दो प्रकार तो मूल पीढ़ी के (पीले गोल व झुर्रीदार हरे) थे। इनके अतिरिक्त दो और प्रकार के बीज पाये गये पीले रौंदार व हरे गोल

निष्कर्ष-जब दो जोड़ी विपरीत लक्षणों वाले पौधों के बीच संकरण कराया जाता है तो इन लक्षणों का पृथक्करण स्वतंत्र रूप से होता है। एक लक्षण की वंशागति दूसरे को प्रभावित नहीं करती।


6.टेस्ट क्रॉस तथा बैंक क्रॉस क्या हैं? वर्णन कीजिए।

उत्तर ⇒परीक्षण संकरण या टेस्ट क्रॉस (Test Cross)- जैसा TT कि हम जानते हैं. प्रभावी फीनोटाइप (जैसे लम्बापन) दो प्रकार के जीनोटाइपों के कारण हो सकता है—समयुग्मजी (TT) अथवा विषमयुग्मजी (TV) ऐसे लम्बे पौधों का पता कैसे लगे ? इसके लिए मेण्डल ने एक परीक्षण (test) की विधि विकसित की। इसे टेस्ट क्रॉस (test cross) कहते हैं।

प्रभावी फोनोटाइप परन्तु अज्ञात जीनोटाइप वाले जीवधारी का संकरण समयुग्मजी अप्रभावी (homozygous recessive) लक्षण वाले जीवों से कराते हैं तथा इस संकरण से उत्पन्न सन्तानों के फीनोटाइप देखते हैं। उदाहरण के लिए, अज्ञात जीनोटाइप वाले लम्बे (TT/TY) पौधों का संकरण, बौने पौधे (it) से कराते है।

(i) यदि अज्ञात जीनोटाइप वाला लम्बा पौधा समयुग्मजी होता है, तो सभी सन्ताने लम्बी होगी।

(ii) यदि अज्ञात जीनोटाइप वाला लम्बा पौधा विषमयुग्मजी होता है. तो 50% सन्ताने लम्बी और 50% बौनी होंगी।

बैंक कॉस (Back Cross) या प्रतीप संकरण— यदि F, पीढ़ी की सन्तानों को किसी भी जनक से संकरित कराया जाए, चाहे वह प्रभावी लक्षणों वाला हो, या अप्रभावी लक्षणों वाला, ऐसे संकरण को प्रतीप संकरण (back cross) कहते हैं। वैज्ञानिकों द्वारा बैंक क्रॉस का उपयोग लाभदायक लक्षणों को समगुग्मजी स्थिति में लाने हेतु किया जाता है।

Class 12 Biology Questions and Answers


7.किन्हीं दो अलिंग सूची आनुवंशिक विकारों का उनके लक्षणों सहित उल्लेख करें

उत्तर ⇒ दौत्र कोशिका-अरक्तता (सिकल सेल एनिमिया) यह अलिंग क्रोमोसाम लग्न अप्रभावी लक्षण है जो जनकों से संतति में तभी प्रवेश करता है जबकि दोनों जनक जीन के वाहक होते हैं। (विषुयग्मजी)। इस रोग का नियंत्रण अलील का एकल जोड़ी HbA और HDS करता है। रोग का लक्षण (फीनोटाइप) तीन संभव जीनोटाइपों में से केवल HD” (Hb Hb”) वाले समग्मती व्यक्तियों में दर्शित होता है विषमग्मी (Hh^ HD”) व्यक्ति रोगमुक्त होते हैं लेकिन वे रोग के वाहक होते हैं।

इस विकार का कारण हीमोग्लोबिन अणु की बीटा ग्लोबिन श्रृंखला की छठी स्थिति में एक अमीनो अम्ल ग्लूटैमिक अम्ल (Glu) का वैलीन द्वारा प्रतिस्थापन है। ग्लोबिन प्रोटीन में एमीनो अम्ल का यह प्रतिस्थापन बीटा ग्लोबिन जीन के छठे कोडोन में GAG का GUG द्वारा प्रतिस्थापन के कारण होता है। निम्न ऑक्सीजन तनाव में उत्परिवर्तित हीमोग्लोबिन अणु में बहुलकीकरण हो जाता है जिसके कारण RBC का आकार द्वि- अवतल बिंब से बदलकर दाँत्राकार (हांसिए के आकार का) हो जाता है।

फीनाइल कीटोनूरिया—यह जन्मजात उपापचयी दोष भी अलिंग क्रोमोसोम अप्रभावी लक्षण की भाँति ही वंशागति प्रदर्शित करती है। रोगी व्यक्ति में परनाइल ऐलेनीन अमीनो अम्ल को टाइरोसीन अमीनो अम्ल में बदलने के लिए आवश्यक एक एंजाइम की कमी हो जाती है। परिणामस्वरूप फीनाइल ऐलेनीन एकत्रित होता जाता है और फीनाइल पाइरूविक अम्ल तथा अन्य व्युत्पन्नों में बदलता जाता है। इनके एकत्रीकरण से मानसिक दुर्बलता आ जाती है। वृक्क द्वारा कम अवशोषित हो सकने के कारण ये मूत्र के साथ उत्सर्जित हो जाते हैं।


8.समयुग्मजी और विषमयुग्मजी क्या है ?

उत्तर ⇒समयुग्मजी और विषमयुग्मजी (Homozygous and Heterozygous) मेण्डल के अनुसार, प्रत्येक जनक (parent) की कायिक कोशिका में एक ही गुण को व्यक्त करने के लिए दो कारक होते हैं। जब दोनों कारक एकसमान हों (जैसे—TT, tt, RR, mr) तो ऐसी दशा समयुग्मजी (homozygous) कहलाती है। इसके विपरीत, जब दोनों कारक एक-दूसरे से भिन्न हो, तो ऐसी दशा विषयुग्मजी (heterozygous) कहलाती है।

फीनोटाइप और जीनोटाइप (Phenotype and Genotype ) — जीवधारी के दो लक्षण प्रत्यक्ष रूप से दिखाई पड़ते हैं, उसे फीनोटाइप कहते हैं। जैसे पौधे का लम्बापन (tallness) । जीवधारी के आनुवंशिक संगठन को उसका जीनोटाइप कहते हैं, जो कि कारकों का बना होता है। उदाहरणतः TT (कोशिकाओं में दो कारक—दोनों लम्बे लक्षण वाले) जीनोटाइप कहलाता है।


9.आनुवंशिक दोष क्या है ? यह कितने प्रकार के होते हैं ?

उत्तर ⇒ कभी-कभार जनकों में मौजूद कोई दोषी जीन संतान में पहुँच सकता है। जिसके कारण उत्पन्न होने वाली संतान वंशागति दोष से ग्रस्त पैदा होती है। एक बच्चे में आनुवंशिक दोष आ गया है। उसका कारण निम्न चित्र में दर्शाया गया है

वंशागत दोष अनेक प्रकार के होते है। इनमें से कुछ केवल एक ही – दोषी जीन के कारण हो सकते हैं और कभी-कभी दो दोषी जीनों के कारण होते हैं जैसा कि ऊपर Rh नेगेटिव के मामले में दिखाया गया है। आनुवंशिक दोषों का औषधियों से उपचार नहीं किया जा सकता। वैज्ञानिक ऐसे विधियों की खोज में लगे हुए हैं जिनके द्वारा किसी व्यक्ति में मौजूद दोषी जीन को हटाया जा सकेगा अथवा उसके स्थान पर एक सामान्य जीन डाला जा सके। इसे जीन प्रतिस्थापन चिकित्सा (geno replacement theraphy) कहते हैं।

सामान्य पाए जाने वाले तीन वंशागत दोष हैं— थैलेसीमिया (Thallasemia), हीमोफिलिया तथा वर्णाधता (Colour blindness) ।

(क) थैलेसीमिया (Thallasemia)—इस दोष से ग्रस्त रोगियों में सामान्य हीमोग्लोबिन बना सकने की क्षमता नहीं होती (हीमोग्लोबिन लाल रक्त कोशिकाओं का वह वर्णक है जो ऑक्सीजन को ऊतक तक पहुँचाता है)। ऐसा इसलिए होता है क्योंकि उस व्यक्ति में हीमोग्लोबिन के उत्पादन का नियंत्रण करने वाले जीन-जोड़े में दोनों ही जीन दोषी होते है थैलेसीमिया रोगियों को जीवित रखने के लिए उनमें बार-बार रक्त चढ़ाना पड़ता है।

(ख) हीमोफिलिया (Haemophilia ) – हीमोफिलिया से ग्रस्त रोगियों में यूँ तो केवल एक ही दोषी जीन होता है जो X गुणसूत्र पर होता है (नर मे) या उसमें दोनों ही दोषी जीन होते हैं जो XX गुणसूत्रों पर विद्यमान होते हैं (मादा में)। सामान्य जीन से वे पदार्थ बनते हैं जिनके द्वारा रक्त का स्कंदन नहीं होता। परिणामतः एक बार रक्त का बहना शुरू हो जाने के बाद वह रुकता ही नहीं।

(ग) वर्णांधता ( Colour blindness) – मनुष्यों में अनेक प्रकार की वर्णांधताएँ पायी जाती है, परंतु इस आनुवंशिक दोष से सर्वाधिक प्रस्त लोग वे हैं जो हरे और नीले रंग में भेद हीं कर पाते। यह भी हीमोफिलिया के ही जैसा आनुवंशिक दोष है जो एक दोषी जीन (नर में) अथवा दोनों दोषी जीन (मादा में) के कारण होता है। हीमोफिलिया तथा वर्णांधता दोषों में जीन X गुणसूत्र पर होते हैं और इसलिए यह दोष माँ से पुत्र में पहुँचता है। माँ में दो X गुणसूत्र होते हैं जिसमें से हो सकता है कि एक X गुणसूत्र पर सामान्य जीन हो, इसलिए हो सकती है, क्योंकि उसमें माँ के एक दोषपूर्ण X गुणसूत्र के साथ पिता का सामान्य X गुणसूत्र आया हुआ होगा। परंतु नर में केवल एक ही X गुणसूत्र होता है और यदि उस पर दोषपूर्ण जीन मौजूद हुआ तब व्यक्ति को यह आनुवंशिक दोष हो ही जाएगा।


10.मेंडलीय विकार क्या है? एक उदाहरण देकर स्पष्ट करें।

उत्तर ⇒ मेडलीय लक्षणों का निर्धारण एकल जीन द्वारा होता है। अतः एकल जीन के रूपान्तरण या उत्परिवर्तन से जो विकार उत्पन्न होता है उसे मेन्डलीय विकार कहा जाता है। मेन्डलीय विकारों के सर्वविदित उदाहरण हीमोफीलिया, वर्णाधता एवं दात्र कोशिका अरक्तता है। ये विकार प्रभावी या अप्रभावी हो सकते है। साथ ही ये लक्षण लिंग क्रोमोसोम आधारित भी हो सकते हैं।

दात्र कोशिका अरक्तता अलिंग क्रोमोसोम लग्न अप्रभावी लक्षण है जो संतति में दोनों जनको के कम से कम विषमयुग्मजी होने पर उत्पन्न होते हैं। इस रोग का नियंत्रण HbA एवं Hb अलील करते हैं। रोग का लक्षण HbA / Hbs वाले समयुरकी व्यक्तियों में प्रकट होता है। इस रोग में बीटा ग्लोबिन श्रृंखला की छठी स्थिति में ग्लूटैनिक अम्ल (Glu) का वैलीन (Val) द्वारा प्रतिस्थापन हो जाता है। इसका कारण बीटा ग्लोबिन जीन के छटे कोडोन में GAG का GUG द्वारा प्रतिस्थापन है। इस कारण लाल रक्त कणिका का आकार बदल कर हँसिये के आकार का हो जाता है।


11.लैक प्रचालक (Lac Operon) में जीन अभिव्यक्ति के नियमन को समझाइए

उत्तर ⇒ लैक ओपेरॉन- यह एक प्रेरक तंत्र के रूप में होता है। E. coli में ऊर्जा उत्पादन हेतु लेक्टोस के विघटन के लिए तीन एन्जाइमों की आवश्यकता होती है— B-गैलैक्टोसीडेस, परमीऐस तथा ट्रांसऐसीटिलेस इन तीनों एन्जाइमों का संश्लेषण एक ही यहसिस्ट्रोनिक अणु के अनुवादन से होता है। यह mRNA तीन संरचनात्मक जीन्स के एक श्रृंखला के लिप्यन्तरण से बनता है। ये जीन्स क्रमशः लैक जैड, लैक-वाई तथा लैक-ए हैं जो अणु में समीपस्थ सिरे से एक दूसरे के समीप इसी क्रम में स्थित होते हैं। इन जीन्स के प्रकटन के नियमन हेतु DNA में समीपस्थ सिरे से क्रमशः तीन उपखण्ड लैक आई जीन, प्रोत्साहक तथा प्रचालक भी होते हैं

आई जीन के नियंत्रण में लैक निरोधक प्रोटीन का संश्लेषण होता है। इस निरोधक प्रोटीन में 36 ऐमीनो अम्ल होते हैं। जब तक जीवाणु को ग्लूकोज उपलब्ध रहता है तो लैक ओपरॉन निष्क्रिय बना रहता है क्योंकि इस दशा में निरोधक प्रोटीन, प्रचालक से जुड़ा रहकर इसे अवरुद्ध कर देता है। प्रोत्साहक से RNA पॉलीमरेज, संरचनात्मक जीन्स तक नहीं पहुँच पाता। इसके फलस्वरूप जीन्स निष्क्रिय बनी रहती हैं। जब जीवाणु लैक्टोस की अधिकता में रहते हैं दुग्धपान के बाद आँत में पर्याप्त मात्रा में लैक्टोस हो जाता है) तो लैक ओपेरॉन सक्रिय हो जाता है इस समय लैक्टोस प्रेरक का कार्य करता है। कुछ लैक्टोस अणु परमीऐस एन्जाइम द्वारा कोशिका द्रव्य में पहुँचाये जाते हैं। इस एन्जाइम की कुछ मात्रा लैक ओपेरॉन के निष्क्रिय रहने पर भी कोशिका द्रव में रहती है, लैक्टोस के कुछ अणु, निरोधक से जुड़ कर निरोधक-प्रेरक सम्मिश्र बनाते हैं। यह सम्मिश्र प्रचालक से हट जाता है। अतः अब प्रोत्साहक खण्ड से RNA पोलीमरेज प्रचालक खण्ड से होता हुआ संरचनात्मक जीन्स तक पहुँच जाता है और इनका लिप्यन्तरण उत्प्रेरित करता है। इस प्रकार लैक ओपेरॉन सक्रिय हो जाता है और लैक्टोस का ग्लूकोज व गैलेक्टोस में विघटन हो जाता है।


12. विनिमय से आप क्या समझते है ? विनिमय की क्रिया विधि का वर्णन चित्र सहित करें।

उत्तर ⇒ जीन विनिमय वह भौतिक प्रक्रिया है जिसमें दो समजात गुणसूत्रों के अर्द्ध-गुणसूत्रों के बीच उनके कुछ भाग का सहलग्न जीनों के साथ आदान-प्रदान होता है।

विनिमय की क्रिया विधि- यह किया अर्द्धसूत्री विभाजन प्रथम की पूर्वावस्था में अर्थात् युग्मों के निर्माण से पहले सम्पन्न होती है। इस क्रिया में सर्वप्रथम समजात गुणसूत्र एक-दूसरे के समीप आकर जोड़े बनाते है। समजात गुणसूत्रों के इस प्रकार जोड़ा बनाने को सूत्रसंयुग्मन कहते हैं। इस क्रिया जाइगोटीन उप-अवस्था में होती है। यह अन्तर्मन्थन केवल गुणसूत्रों के बीच न होकर उनकी संगत इकाईयों अर्थात् जीन्स के बीच भी होता है। इस प्रकार जोड़ीदार गुणसूत्रों को युग्मित गुणसूत्र या युगली कहते हैं। इसके बाद युग्मित गुणसूत्र के सभी अर्द्धगुणसूत्र स्पष्ट हो जाते हैं। फलतः एक ही स्थान पर चार अर्द्धगुणसूत्र दिखाई देने लगते हैं, इस दशा को चतुर्संयोजक कहते हैं। इसके पश्चात् दोनों समजात गुणसूत्रों के अर्द्धगुणसूत्रों के वे क्रोमोनिमेटा जो पास-पास स्थित होते हैं कुछ स्थान पर घनिष्टता से जुड़ जाते है। इन स्थानों को कियाज्मा कहते हैं। अब विभाजन के अगले चरण में जब समजात गुणसूत्रों के बीच प्रतिकर्षण बल उत्पन्न होता है तो ये सिनेप्टिक बल और आकर्षण के अभाव के कारण एक दूसरे से दूर हो जाते हैं। इसी समय कियाज्मा के स्थान से क्रोमोनिमेटा टूटकर दूसरे कोमोनिमेटा के खण्डों से क्रॉस बनाते हुए जुड़ जाते हैं। जिसके फलस्वरूप जुड़ने की इस क्रिया में समजात गुणसूत्रों की क्रोमोनीमा के बीच अदला-बदली हो जाती है। फलतः एक समजात गुणसूत्र की कुछ कोमोनीमा दूसरे गुणसूत्र के साथ संलग्न हो जाती है। गुणसूत्रों की कोमोनीमा की इसी अदला-बदली को गुणसूत्रीय विनियम कहते हैं। इस किया के फलस्वरूप समजात गुणसत्रों के बीच जीन विनियम होता है। इस प्रकार विनिमय की क्रिया पूर्वावस्था I में प्रारंभ होती है और पश्चावस्था में जब समजात गुणसूत्र विपरीत ध्रुवों पर चले जाते हैं तब पूर्ण होती है।


12th Biology Question  Answer In Hindi 2024

13.उचित उदाहरणों के साथ लिंग निर्धारण की प्रक्रिया का वर्णन

उत्तर ⇒मनुष्य में लिंग निर्धारण – मनुष्य में XX-XY गुणसूत्रों द्वारा लिंग निर्धारण होता है। मनुष्य की कि कोशिकाओं में 46 अर्थात् 23 जोड़ी गुणसूत्र होते हैं। इनमें से 22 जोड़ी गुणसूत्र ऑटोसोम्स कहलाते है। इन 22 जोड़ियों में दोनों गुणसूत्र अपने-अपने जोड़ीदार के बिल्कुल समान होते हैं, तेईसवी जोड़ी के गुणसूत्रों को हिटरोसोम्स या लिंग गुणसूत्र कहते हैं। स्त्रियों में तो ये दोनों समान होते हैं किन्तु पुरुषों में एक गुणसूत्र दूसरे की अपेक्षा बहुत छोटा होता है। इस छोटे गुणसूत्र को Y गुणसूत्र तथा इसके जोड़ीदार लम्बे व उड़नुमा गुणसूत्र को X द्वारा निरूपित करते हैं। इसका अर्थ हुआ कि पुरुषो में XY तथा स्त्रियों में XX लिंग गुणसूत्र होते हैं। नर युग्मक (शुक्राणु) निर्माण के समय दोनों लिंग गुणसूत्र शुक्राणुओं में चले जाते हैं। इस प्रकार पुरुषों में दो प्रकार के शुक्राणु बनते हैं (i) 22 + X गुणसूत्र वाले तथा (ii) 22 Y गुणसूत्र वाले इसके विपरीत स्त्रियों में सभी युग्मक समान होते हैं, अर्थात् प्रत्येक युग्मक (अण्डाणु) में 22 X गुणसूत्र ही होते हैं। यदि 22 + X गुणसूत्र वाला शुक्राणु मादा के 22 + X गुणसूत्र वाले अण्डे को निषेचित करता है तो मादा सन्तान का जन्म होता है और यदि 22 + Y गुणसूत्र वाला शुक्राणु 22 + X गुणसूत्र वाले अण्डे को निषेचित करता है तो नर सन्तान का जन्म होता है।

इससे स्पष्ट है कि मनुष्य में Y गुणसूत्र नर लिंग निर्धारण के लिए उत्तरदायी है। चूँकि नर में दोनों प्रकार के युग्मक बराबर होते हैं और मादा में सभी युग्मक समान प्रकार के। अतः उत्पन्न सन्तानों में दोनों लिंगों के उत्पन्न होने की संभावना 50% होती है।


14.सहलग्नता तथा सहलग्नता वर्ग क्या है ? सहलग्नता का प्रभाव एवं इसकी महत्ता के बारे में लिखें। 

उत्तर ⇒लिन्केज—– एक ही गुणसूत्र पर उपस्थित एक से अधिक जीन जो साथ-साथ वंशानुगत होता है, लिंकड जीन कहलाते हैं और यह घटना लिंकेज (सहलग्नता) कहलाती है।

लिंकेज समूह- लिकेज ग्रुप रेखीय रूप से व्यवस्थित जीनों का समूह होता है जो गुणसूत्रों पर उपस्थित होते हैं। लिंकेज समूह एक प्रकार के गुणसूत्र पर होता है। दो समजात गुणसूत्र जीन स्थिति की संख्या व्यवस्था में समान होते हैं। इसलिए ये समान प्रकार के लिंकेज समूह रखते हैं। यह लिन्केज समूहों की सीमाओं के रूप में जाना जाता है। एक जीवधारी में उपस्थित लिन्केज समूहों की कुल संख्या एक जीनोम में उपस्थित गुणसूत्रों की संख्या के दो या द्विगुणित जीवधारियों में समजात युग्मों की संख्या के बराबर होती है। यह मनुष्य में 23 गुणसूत्रों के 23 जोड़े), खाने योग्य भर 7 (गुणसूत्रों के 7 जोड़े), मक्के में 10 (गुणसूत्रों में 10 जोड़े), ड्रोसोफिला मिलेनोगेस्टर में 4 गुणसूत्रों में 4 जोड़े होते है लिन्केज समूह का आकार गुणसूत्र के आकार पर निर्भर करता है। अर्थात् छोटे गुणसूत्र छोटे लिकेज समूह वाले होते हैं जबकि लम्बे गुणसूत्र लम्बे लिन्केज समूह वाले होते हैं।

लिन्केज समूह की महत्ता :

(i) लिन्केज समूह में विनिमय को घटना दर्शाती है कि जीन गुणसूत्र पर स्थित हैं।

(ii) ये जीवधारी की विशिष्ट प्रजातीय व परिवर्तन विश्लेषकों को बनाये रखते हैं।

 (iii) लिन्केज, सुधरी हुई प्रजातियों के कारण उनके लक्षण लम्बे तक बने रहते हैं।

(iv) एक लिन्केज समूह विभिन्न प्रकार के विशेषकों कुछ लाभदायक व कुछ हानिकारक को रखता है। दोनों को अलग करना कठिन होता है। इसलिए कुछ सुधरी हुई प्रजातियों में भी हानिकारक विशेषक बने रहते है।


15.आनुवंशिकता के गुणसूत्रीय सिद्धांत को स्पष्ट करें।

उत्तर ⇒ इस आनुवांशिकता के गुणसूत्रीय सिद्धान्त को सन् 1902 ई. में Sattan और Boveri ने दिया था। इस सिद्धान्त की व्याख्या इस प्रकार है

(i) एक पीढ़ी तथा अगली पीढ़ी के बीच शुक्राणु और अंडाणु पुल का कार्य करते हैं।

(ii) दोनों शुक्राणु और अंडाणु आनुवांशिकता के समान भूमिका निभाते हैं।

(iii) निषेचन के समय दोनों गैमीट (युग्मक) के केन्द्रक मिल जाते हैं।

 (iv) केन्द्रक में गुणसूत्र होता है इसलिए केन्द्रक आनुवांशिक गुणों का परिवहन करता है।

(v) जीवो के निर्माण में सुभी गुणसूत्रों की भूमिका होती है।

 (vi) आनुवांशिक लक्षणों की तरह जीवों में गुणसूत्र की संख्या निश्चित होती है।

(vii) दैहिक कोशिका में गुणसूत्र की संख्या द्विगुणित (2n) जबकि गैमीट में इसकी संख्या आधी (n) होती है।

 (viii) कई जीवों में लिंग का निर्धारण भी लिंगी गुणसूत्र के द्वारा होता है।

 (ix) समजात गुणसूत्र अर्द्धसूत्री विभाजन के दौरान जोड़ा बनाते हैं, और कुछ भाग का अदला-बदला कर अलग हो जाता है।


 16.लिंग सहलग्न वंशागति का उदाहरण के साथ वर्णन करें।

उत्तर ⇒जिन लक्षणों के जीन लिंग गुणसूत्र पर पाए जाते हैं उनकी वंशागति को लिंग सहलग्न वंशागति या आनुवांशिकता कहते हैं। हिसोफिलसा एवं मनुष्य में लिंग क्रोमोसोम का एक जोड़ा पाया जाता है। मादा में लिंग क्रोमोसोम (XX) एक समान होते हैं और युग्म को Homomorphic कहते हैं। जबकि नर में लिंग क्रोमोसोम XY एक समान नहीं होते है। सामान्यतः मादा में क्रोमोसोम दंडाकार तथा पुरुष में Y क्रोमोसोम हुके के आकार का होता है, इसलिए उन्हें (Heteromorphic) कहते हैं। चूँकि नर में सिर्फ एक X क्रोमोसोम होता है, अतः इस पर Sex linked inheritance के जीन पाए जाते है। हालांकि कुछ जीन Y क्रोमोसोम पर भी पाए जाते है, अतः इसे Halandric gene कहते है जिसके Hypertichosis होता है। हीमोफिलिया एवं रंगवर्णांधता sex-linked रोग के दो प्रमुख उदाहरण मनुष्य में हैं।

 

हीमोफिलिया — यह एक लिंग-सहलग्न अप्रभावी लक्षण है जिस रोग से मनुष्यों में रुधिर जमने की क्षमता नहीं के बराबर होती है। इस रोग के चलते शरीर के किसी भाग के कटने से रक्त का प्रवाह अविरल होता रहता है। अगर किसी सामान्य पुरुष की शादी हीमोफिलिया रोग वाहक स्त्री से होती है तो इन दोनों से उत्पन्न मादा संतानों में 50% सामान्य एवं 50 हीमोफिलिया रोग से ग्रस्त होंगे।


17.क्रोमोसोमीय (गुणसूत्रीय) विकार से आप क्या समझते हैं ? निम्नांकित गुणसूत्रीय विकार के कारणों एवं संबंधित असमानता के लक्षणों को लिखें:

(i) डाउन सिंड्रोम (ii) क्लाइन फेल्टर सिंड्रोम (iii) टर्नर सिंड्रोम ।

अथवा, गुणसूत्रीय विकार से आप क्या समझते है ? ऐसे तीन गुणसूत्रीय विकारों के नाम लिखें।

उत्तर ⇒क्रोमोसोमीय (गुणसूत्रीय) विकार मानव शरीर में पाए जानेवाले 23 जोड़े क्रोमोसोम की संख्या या संरचना में किसी प्रकार के परिवर्तन से यह विकार उत्पन्न होता है। कोशिका विभाजन के समय क्रोमेटिड के विसंयोजन में होनेवाली गड़बड़ी से संतति कोशिका में एक क्रोमोसोम की कमी या वृद्धि हो जाती है। इसके फलस्वरूप मनुष्य में जन्मजात रोग उत्पन्न हो जाते हैं।

(i) डाउन्स सिंड्रोम- इसे ‘मंगोलिज्म’ भी कहते हैं। यह सिंड्रोम 21वें गुणसूत्र के Trisomy के विकसित होने से होता है। यह Meiosis के दरम्यान गुणसूत्र के non-disjunction द्वारा होता है। ऐसे व्यक्ति में छोटा कद (Short stature) छोटे गोल सिरवाला, छोटा कान, खुला मुँह बाहर की ओर निकला हुआ Lower lip जीभ बाहर निकला हुआ, गर्दन छोटा, जैसे प्रमुख लक्षण वाले होते हैं।

(ii) क्लाइनफेल्टर्स सिंड्रोम- ऐसे आनुवंशिक विकास वाले मनुष्यों में एक अतिरिक्त X क्रोमोसोम की संख्या होती है, अर्थात् 47 (XXY) कोमोसोम हो जाते हैं। ऐसे व्यक्ति में मादा-लक्षण भी प्रकट होते हैं। ऐसे व्यक्ति बाँझ हो जाते हैं।

(iii) टर्नर सिंड्रोम- इस विकार का कारण एक X क्रोमोसोम का अभाव होता है, अर्थात् 45 क्रोमोसोम की (XO) स्थिति होती है। ऐसी नारी बाँझ होती है, क्योंकि अंडाशय अल्पविकसित रह जाती है। इनमें द्वितीयक लैगिक लक्षणों का अभाव होता है।


18.लिंग क्या है ? लिंग निर्धारण के विभिन्न प्रकारों का संक्षिप्त वर्णन करें ।

उत्तर ⇒लिंग (Sex) — हर पुरुष और स्त्री के अंदर एक गुप्तांग होता है जिसे सामान्यतः हम लिंग के नाम से जानते है। स्वी के अंदर मौजूद गुप्तांग को योनि और पुरुष के अंदर मौजूद गुप्तांग को लिंग कहते हैं।

लिंग निर्धारण के प्रकार :

1.जीनी (गुणसूत्री) लिंग निर्धारण अधिकांश जन्तुओं में जीनी लिंग निर्धारण होता है जिसमें 50 प्रतिशत नर तथा 50 प्रतिशत मादा बनते हैं। निम्नलिखित 5 मुख्य जीनी लिंग निर्धारण की क्रिया विधियों है

(i) XX-XY गुणसूत्रों द्वारा लिंग निर्धारण

(ii) XX-XO गुणसूत्रों द्वारा लिंग निर्धारण

(iii) ZWZZ गुणसूत्रों द्वारा लिंग निर्धारण

(iv) ZO-ZZ गुणसूत्रों द्वारा लिंग निर्धारण

(v) लिंग निर्धारण की अगुणित-द्विगुणित क्रियाविधि

2.वातावरण द्वारा लिंग निर्धारण यह निम्नलिखित प्रकार से होती है :

(i) हॉर्मोनों का प्रभाव

(ii) फ्री मार्टिन

(iii) ताप का प्रभाव मानवों में मुख्य रूप से XXXY गुणसूत्रों द्वारा लिंग निर्धारण होता है। जब X का X से मिलन होता है तो संतान मादा पैदा होती है और जब X का X से मिलन होता है तो संतान नर पैदा होता है।

NCERT Biology Subjective Question 12th


Class 12th Biology – Objective 
1जीवधारियों में जननClick Here
2पुष्पी पादपों में लैंगिक प्रजननClick Here
3मानव प्रजननClick Here
4जनन स्वास्थ्यClick Here
5वंशागति और विभिन्नता के सिद्धांतClick Here
6वंशागति का आणविक आधारClick Here
7विकासClick Here
8मानव स्वास्थ्य एवं रोगClick Here
9खाद उत्पादन बढ़ाने के लिए उपायClick Here
10मानव कल्याण में सूक्ष्मजीवClick Here
11जैव प्रौद्योगिकी के सिद्धांत एवं प्रक्रिया हैClick Here
12जैव प्रौद्योगिकी एवं इसके अनुप्रयोगClick Here
13जीव एवं समष्टियाClick Here
14परिस्थितिक तंत्रClick Here
15जैव विविधता एवं संरक्षणClick Here
16पर्यावरण मुद्देClick Here
 BSEB Intermediate Exam 2024
 1Hindi 100 MarksClick Here
 2English 100 MarksClick Here
 3Physics Click Here
 4ChemistryClick Here
 5BiologyClick Here
 6MathClick Here

Leave a Comment