Class 12th Political Science Ka Subjective | Political Science Class 12 mcq with Answers pdf

Class 12th Political Science Ka Subjective :- दोस्तों यदि आप Bihar Board 12th class Political Science important Question की तैयारी कर रहे हैं तो यहां पर आपको Political Science Class 12 mcq with Answers pdf दिया गया है जो आपके Political Science class 12th notes in Hindi  के लिए काफी महत्वपूर्ण है | 


Class 12th Political Science Ka Subjective 2024

1. राष्ट्रपति के संकटकालीन शक्तियों का वर्णन करें। (Describe the Emergency powers of the President.)

उत्तर ⇒ राष्ट्रपति संवैधानिक प्रमुख होने के कारण देश की शांति तथा सुरक्षा की जिम्मेवारी संविधान द्वारा राष्ट्रपति को प्रदान की गई है। जब देश में असाधारण स्थिति उत्पन्न हो जाती है। ऐसी स्थिति में राष्ट्रपति आपात लाग या संकटकाल लागू कर सकता है। राष्ट्रपति को तीन तरह के संकटकालीन शक्तियाँ प्रदान की गई हैं
(i) राष्ट्रीय आपातकालीन शक्तियाँ—जब देश में युद्ध अथवा बाहरी आक्रमण हो जाय तो ऐसी स्थिति में देश के किसी भाग या देश के सभी क्षेत्रों में राष्ट्रीय आपात की घोषणा कर सकता है।

(ii) राष्ट्रपति शासन—संविधान के अनुसार राष्ट्रपति को राज्यपाल द्वारा या किसी अन्य तरह से पता चल जाय कि राज्य में संविधान के अनुसार शासन नहीं चलाया जा रहा है तो राष्ट्रपति वैसे राज्य में राष्ट्रपति शासन लागू कर सकता है। • वित्तीय आपात – यदि राष्ट्रपति को यह विश्वास हो जाय कि ऐसी परिस्थितियाँ उत्पन्न हो गयी है। जिससे भारत के वित्तीय स्थायित्व या साख को खतरा है तो वह वित्तीय संकट की घोषणा कर सकता है। 2


2. आपातकाल की घोषणा के प्रभावों पर प्रकाश डालें। (Discuss the effect of proclamation of emergency.)

उत्तर ⇒ हमारे राजव्यवस्था में समय-समय पर काफी अराजकता की स्थिति पैदा हो जाती है। परिणामस्वरूप सरकार को बाध्य होकर आपातकाल की घोषणा करनी पड़ती है। आपातकाल से संबंधित तथ्य निम्नलिखित हैं

(i) नागरिक अधिकारों की दशा और नागरिकों पर इसका असर — आपातकालीन प्रावधानों के अंतर्गत नागरिकों के विभिन्न मौलिक अधिकार निष्प्रभावी हो गये। उनके पास अब यह अधिकार नहीं रह गया कि मौलिक अधिकारों की बहाली के लिए अदालत का दरवाजा खटखटाएँ । सरकार ने निवारक नजरबंदी का बड़े पैमाने पर इस्तेमाल किया ।

(ii) कार्यपालिका और न्यायपालिका के संबंध आपातकाल के दौरान कार्यपालिका के कई विवादास्पद फैसले सामने आए। गिरफ्तार लोगों अथवा उनके पक्ष से उच्च न्यायालय और सर्वोच्च न्यायालय में कई मामले दायर किये गए लेकिन सरकार का कहना था कि गिरफ्तार लोगों की गिरफ्तारी का कारण बताना जरुरी नहीं है। अनेक उच्च न्यायालयों ने फैसला दिया कि आपातकाल की घोषणा के बावजूद आदालत किसी व्यक्ति द्वारा दायर की गई ऐसी बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका को विचार के लिए स्वीकार कर सकती है। जिसमें उसने गिरफ्तारी को चुनौती दी हो।

(iii) जनसंचार माध्यमों के कामकाज— आपातकालीन प्रावधानों के अंतर्गत सरकार ने अपनी शक्तियों पर अमल करते हुए प्रेस की आजादी पर रोक लगा दी। समाचार पत्रों को यह कहा गया कि कुछ भी छापने से पहले अनुमति लेनी जरूरी है। इंडियन एक्सप्रेस और स्टेट्समैन जैसे अखबारों ने प्रेस पर लगी सेंसरशिप का विरोध किया। सेमिनार और मेनस्ट्रीम जैसी पत्रिकाओं सेंसरशिप के आगे घुटने टेकने के आगे बंद होना बेहतर समझा। सेंसर को तोड़ते हुए गुपचुप तरीके से अनेक न्यूज लेटर और लीफलेट्स निकले।

(iv) पुलिस और नौकरशाही की कार्यवाइयाँ- आपातकाल के दौरान पुलिस ज्यादतियाँ काफी बढ़ गई। पुलिस हिरासत में कई लोगों की मौत हुई। नौकरशाही की तानाशाही काफी बढ़ गयी। पुलिस और नौकरशाही ने जबरन परिवार नियोजन को थोपा । अनाधिकृत ढाँचे गिराये गए । लोगों को जबरन झुग्गी-झोपड़ी से हटाया गया। नौकरशाही में भ्रष्टाचार फैला।

(v) दलीय प्रणाली पर प्रभाव आपातकाल के दौरान भारत की दलीय व्यवस्था में कुछ आमूल-चूल परिवर्तन देखने को मिला। कांग्रेस के विरोध में सभी विपक्षी खेमों का ध्रुवीकरण हुआ और कुछ समय के लिए ऐसा लगा कि राष्ट्रीय स्तर पर दो दलीय प्रणाली स्थापित हो जाएगी। लेकिन 18 महिनों में ही जनता पार्टी में फूट पड़ गई। उसके स्थान पर जनता यू, जनता सेक्यूलर, भारतीय लोकदल, भारतीय जनता पार्टी, जनता उड़ीसा और कांग्रेस फोर डेमोक्रेसी जैसी अनक पार्टियाँ सामने आईं। इंदिरा गाँधी के नेतृत्व में कांग्रेस पार्टी ने 1980 में चुनाव में भारी बहुमत सफलता हासिल की। से


3. लोकसभा के गठन का वर्णन करें। + (Describe the composition of Lok Sabha.)

उत्तर ⇒ लोकसभा संसद का लोकप्रिय सदन है। इसे प्रथम सदन और निम्न सदन भी कहा जाता है। लोकसभा के सदस्यों का चुनाव 5 वर्षों के लिए होता है। लोकसभा के सदस्य भारत का कोई भी नागरिक बन सकता है । वशर्ते उसकी उम्र 25 वर्ष से अधिक हो। किसी लाभ के पद पर न हो। लोकसभा में एक अध्यक्ष एवं एक उपाध्यक्ष होते हैं जिनका चुनाव लोकसभा के सदस्यों के बीच से होता है। लोकसभा का कार्य काफी व्यापक है। लोकसभा विधि निर्माण एवं सरकार पर नियंत्रण रखने के कार्य के साथ संविधान संशोधन एवं राष्ट्रपति के निर्वाचन, उपराष्ट्रपति का निर्वाचन आदि का कार्य करती है। इसे राष्ट्रपति उच्च न्यायालय एवं सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीशों पर महाभियोग लगाने का भी अधिकार प्राप्त यह देश के लिए विभिन्न समितियों का भी गठन करती है।


4. भारत के निर्वाचन आयोग के कार्यों का वर्णन करें। (Describe the functions of Election Commission of India.)

उत्तर — निर्वाचन आयोग एक स्थायी संवैधानिक निकाय है। संविधान के अनुसार निर्वाचन आयोग की स्थापना 25 जनवरी, 1950 को की गई थी। यह भारत में स्वतंत्र और निष्पक्ष निर्वाचनों की व्यवस्था सुनिश्चित करता है। देश की संसद, राज्य विधानमंडल, राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति के निर्वाचनों का कार्य निर्वाचन आयोग करता है। निर्वाचन आयोग के निम्नलिखित कार्य हैं

1. चुनाव सम्पन्न कराना

2.चुनाव क्षेत्रों के परिसीमन करना

3. मतदाता सूची तैयार करना

4. राजनीतिक दलों को मान्यता प्रदान करना

5. राजनीतिक दलों को चुनाव चिन्ह प्रदान करना

6. चुनावों में नामांकन पत्र की जाँच करना

7. राजनीतिक दलों के विवादों का न्याय निर्णयन

8. चुनाव प्रक्रिया के संबंध में सरकार को सुझाव देना

9.मतदाता को राजनीतिक शिक्षा प्रदान करना

10. अर्द्ध न्यायिक कार्य करना ।

Political Science class 12th notes in Hindi


5. कश्मीर की समस्या पर एक निबंध लिखें। (Write an essay on Kashmir Problem.)

उत्तर ⇒ 1947 में भारत आजाद हुआ। आजादी के समय भारत में कई देशी रियासतें थी। जिसे ब्रिटिश सरकार द्वारा स्वतंत्र निर्णय की शक्ति प्रदान किया गया। इन्हीं स्वतंत्र रियासत में एक रियासत कश्मीर था। कश्मीर की सीमायें भारत एवं पाकिस्तान दोनों के साथ संयुक्त था एवं कश्मीर मुसलमान बहुल क्षेत्र एवं यहाँ के राजा हरिसिंह थे इन स्वतंत्र रियासत कश्मीर पर मौका पाकर पाकिस्तान ने आक्रमण कर दिया तो कश्मीर नरेश ने भारत से सहायता मांगा और भारत संघ में शामिल होने का निर्णय लिया। इस तरह कश्मीर की रक्षा करना भारत का कर्तव्य हो गया और कश्मीर भारत का अंग । राष्ट्र संघ के निर्देशानुसार दोनों के देशों ने युद्ध विराम रेखा के आधार पर संधि कर समस्या के निराकरण की बात उठाई। परन्तु अंतर्राष्ट्रीय गुटबंदी के कारण अधूरी रह गई और दोनों राष्ट्र के बीच आज भी विवाद के कारण बना हुआ है। 2019 में संविध अनुच्छेद 370 का दिया गया और जम्मू कश्मीर के दो क्षेत्र कश्मीर एवं लद्दाख को केन्द्रशासित प्रदेश बना दिया गया।


6. राष्ट्रीय विकास परिषद के क्या कार्य हैं? (What are the functions of National Development Council?)

उत्तर ⇒ भारत में आर्थिक नियोजन हेतु राज्य सरकारों तथा योजना आयोग (नीति आयोग ) के बीच तालमेल तथा सहयोग का वातावरण बनाने के लिए राष्ट्रीय विकास परिषद का गठन किया गया। भारत में राष्ट्रीय विकास परिषद् की स्थापना 6 अगस्त, 1952 को किया गया। प्रत्ये पंचवर्षीय योजना बनाने का कार्य नीति आयोग (योजना आयोग) का है और अंत में यह राष्ट्रीय विकास परिषद् द्वारा अनुमोदित होती है। इन्हीं सब कारणों से यह सर्वोपरि कैबिनेट ( Super Cabined) की ख्याती प्राप्त कर ली है। राष्ट्रीय विकास परिषद् में प्रधानमंत्री, नीति आयोग (योजना प्रमुख आयोग) के सभी सदस्य, सभी राज्यों के मुख्यमंत्री संघशासित क्षेत्रों के प्रतिनिधि तथा भारत सरकार के प्रमुख विभागों के कुछ मंत्री भी इसके सदस्य होते हैं। राष्ट्रीय विकासपरिषद् के कार्य निम्नलिखित हैं

(i) राष्ट्रीय योजनाओं की प्रगति पर समय-समय पर विचार करना ।

(ii) राष्ट्रीय विकास को प्रभावित करने की आर्थिक एवं सामाजिक तथा सामाजिक नीतियों संबंधी विषयों पर विचार करना ।

(iii) राष्ट्रीय योजनाओं के निर्धारण एवं उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए सुझाव देना ।

(iv) राष्ट्रीय योजनाओं के निर्माण के लिए तथा इसके साधनों के निर्धारण के लिए पथ प्रदर्शक सूत्र निश्चित करना ।

(v) नीति आयोग (योजना आयोग) द्वारा तैयार की गई राष्ट्रीय योजना पर विचार करना।

(vi) समय-समय पर योजना के कार्य की समीक्षा करना तथा राष्ट्रीय योजना में प्रतिपादित उद्देश्यों तथा कार्यक्रमों, लक्ष्यों की प्राप्ति के लिए आवश्यक उपायों की सिफारिश करना ।


7.भारत में क्षेत्रवाद के उदय के कारणों का उल्लेख करें। (Mention the main causes of the rise of Regionalism in India.)

उत्तर ⇒ 1990 के बाद देश में क्षेत्रीय पार्टी की भूमिका अत्यन्त महत्त्वपूर्ण हो गई जिसने बड़ी पार्टी, यथा— कांग्रेस, बी० जे० पी० तथा जनता दल को विवश किया कि वे छोटी पार्टियों के साथ तालमेल बढ़ाएँ । यद्यपि 1990 से पूर्व कई राज्यों, यथा— तमिलनाडु, आसाम, आन्धप्रदेश तथा जम्मू-कश्मीर में क्षेत्रीय दल सत्ता संभाल चुकी थी। 1996 में उन्हें केन्द्रीय स्तर पर भी सत्ता में भागीदारी मिली। देवगौड़ा, गुजराल, वाजपेयी व मनमोहन सिंह के मंत्रिमण्डल में इन सभी छोटे दलों को स्थान मिला, जिन्होंने इससे पूर्व केन्द्रीय स्तर पर सत्ता का मुँह नहीं देखा था। सभी घटकों की सहमति से न्यूनतम साझा कार्यक्रम बना और सरकार का संचालन होने लगा। जो दल या गुट बिलकुल महत्त्वहीन थे वे अपनी प्रभावशाली निर्णायक भूमिका निभाने लगे। वर्तमान समय गठबंधन सरकारों का आ गया है, जिसमें क्षेत्रीय दलों का महत्त्व बढ़ना एक स्वाभाविक घटना है।

कारण –

(i) राष्ट्रीय छवि के नेताओं का अभाव है जिसके कारण स्थानीय स्तर के चतुर क्षेत्रीय नेताओं ने अपनी स्थिति को शक्तिशाली बनाने हेतु जातिवाद, क्षेत्रवाद, सम्प्रदायवाद जैसे तत्त्वों का सहारा लिया।

(ii) देश में चुनाव संबंधी ऐसा कोई कानून नहीं है, जो न्यूनतम सीमा के नीचे मत पाने वाले दलों के प्रतिनिधित्व को अमान्य कर सके।

(iii) सभी दलों ने अपने विचारधारा को त्याग पूर्णरूप से अवसरवादी राजनीतिक सह लिया है, जिससे ऐसी अवांछनीय स्थिति पैदा हुई है।

(iv) वर्तमान समय में कोई ऐसी पार्टी नहीं है जो सारे देश में अपना प्रभाव दिखा सके ताकि क्षेत्रीय दलों की महत्ता घटे । के बिना भारतीय राजनीति अतः यह निश्चित हो गया है कि क्षेत्रीय दलों की भूमिका का व्यवहार परक अध्ययन नहीं किया जा सकता है।


कक्षा 12 राजनीति विज्ञान दीर्घ उत्तरीय प्रश्न

8. भारत में राज्यों के पुनर्गठन का विवेचना कीजिए । (Describe re-organisation of states in India. )

उत्तर ⇒ भारत के सामने राज्यों का पुनर्गठन सबसे बड़ी चुनौती थी। उस समय भारतवर्ष छोटे-छोटे नरेशों के राज्यों में बँटा हुआ था। 567 देशी राज्य भारतीय एकता के लिए बहुत बड़ी समस्या थी। 3 जून की घोषणा ने यह निश्चित किया कि अगस्त 15, 1947 को सभी स्थानीय राज्य

भी स्वतंत्र हो जाएँगे। इन राज्यों को यह अधिकार था कि वे अपनी मर्जी से भारत या पाकिस्तान में सम्मिलित हो जाएँ या उन्हें स्वतंत्र रहने का भी अधिकार था। यह पसंद भारतीय अखण्ड और एकता के लिए बड़ी समस्या थी, क्योंकि यह अनेक राज्य भारतीय भू-क्षेत्र में बिखरे हुए थे और अगर वे स्वतंत्र रह जाने के लिए ठान लेते तो अवश्य ही भारत की एकता व अख नष्ट हो गई होती। सरदार पटेल तथा उनके विश्वसनीय मित्र, विदेश विभाग के सचिव वी० पी० मेनन ने बड़ी सूझ-बूझ के साथ स्थिति को सँभाला। उन्होंने अनेक राजाओं के साथ वार्तालाप करने हेतु सामाजिक बैठक और अनौपचारिक पास-पड़ोस को चुना, भोजन तथा चाय पर दिल्ली अपने आवास पर आमंत्रित किया। पटेल राजाओं को यह विश्वास दिलाते थे कि कांग्रेस तथा राजसी व्यवस्था में कोई टकराव नहीं है। पटेल ने राजाओं के विचारों को भी सुना और उनकी जो धारणाएँ थीं उनकी तरफ भी ध्यान दिया। पटेल ने भारतीय नरेशों का देश भक्ति के लिए आह्वान किया और चाहा कि वे उनके राष्ट्र की स्वतंत्रता में शामिल हों और ऐसे उत्तरदायी शासकों के रूप में व्यवहार करें जिन्हें अपने लोगों के भविष्य के बारे में चिन्ता है।


9. अंतर्राष्ट्रीय राजनीति में शक्ति संतुलन क्या है? (What is Balance of power in International politics?)

उत्तर ⇒ शक्तिसंतुलन परम्परागत सुरक्षा नीति का एक महत्त्वपूर्ण अंग है। शक्ति संतुलन की व्याख्या एवं परिभाषा विभिन्न प्रकार से की गई है। व्याख्याकारों या विचारकों ने परस्पर विरोधी अर्थ देकर इसकी अस्पष्टता को बढ़ाकर उलझन पैदा किया है। फिर भी समकालीन विश्व राजनीति में इसकी प्रासंगिकता को नकारा नहीं जा सकता है। विश्व के सभी छोटे-बड़े राष्ट्र अपनी शक्ति एवं प्रभाव को बढ़ाने का प्रयास करते हैं। ऐसा होने से समस्त अन्तर्राष्ट्रीय राजव्यवस्था में राष्ट्रों के बीच संतुलन बना रहता है। इसके अन्तर्गत विभिन्न राष्ट्र स्वयं को गुटों में इस प्रकार बाँटे रहते हैं कि कोई एक राष्ट्र अथवा राष्ट्रों के समूह को इतना शक्तिशाली नहीं होने दिया जाता जिससे कि वह दूसरों पर हावी हो जाय अथवा उन्हें समाप्त कर दें। ऐसे किसी भी शक्तिशाली राष्ट्र अथवा राष्ट्रों के समूह को तुरंत ही उसे ही शक्तिशाली वर्ग के विरोध का सामना करना पड़ सकता है, और जब तक वह संतुलन बना रहता है तब तक शांति कायम रहती है, और राष्ट्रों की स्वतंत्रता की सुरक्षा की आशा और विश्वास बना रहता है। शक्तिसंतुलन शक्तिविभाजन की एक ऐसी व्यवस्था है जिसमें कोई एक राष्ट्र अधिक शक्तिशाली होकर अन्य पर हावी नहीं हो पाता। लार्डकास्लरे ने ठीक ही लिखा है कि राष्ट्रों के परिवार के सदस्यों के बीच ऐसी न्यायपूर्ण साम्यावस्था बनाये रखना जिससे उनमें से कोई भी इतना शक्तिशाली न हो सके कि वह अपनी इच्छा दूसरों पर लाद सके।


10. मिश्रित अर्थव्यवस्था क्या है? भारत के संदर्भ में वर्णन करें। (What is mixed economy ? Discuss it in context of India.)

उत्तर ⇒ स्वतंत्र भारत ने विकास सम्बंधी पूँजीवादी और समाजवादी मॉडलों में किसी को नहीं अपनाया। यह सर्वविदित है कि पूँजीवादी मॉडल में विकास सम्बंधी कार्य पूर्णरूपेण निजी क्षेत्र के भरोसे होता है। भारत ने इसमें विश्वास नहीं किया और समाजवादी मॉडल को भी नकार दिया जिसमें निजी सम्पत्ति को समाप्त कर दिया जाता है तथा हर तरह के उत्पादन पर राज्य का नियंत्रण स्थापित होता है। भारत ने दोनों तथाकथित मॉडलों में से कुछ बातों को ले लिया और इन्हें भारत में मिले जुले रूप से लागू किया गया। इसी कारण से भारतीय अर्थव्यवस्था को मिश्रित अर्थव्यवस्था कहा जाता है। यहाँ वस्तुओं के मूल्य, माँग और आपूर्ति के अनुसार निर्धारित होते हैं। भारतीय अर्थव्यवस्था के संदर्भ में उत्पादन के निजी स्वामित्व का अर्थ उद्योग तथा लाभ प्रेरित उत्पादन होता है।

Class 12th Political Science Ka Subjective 


भाग – A  स्वतंत्रता के समय से भारतीय राजनीति  OBJECTIVE 
 UNIT – IPolitical Science Chapter – 1
 UNIT – IIPolitical Science Chapter – 2
UNIT – IIIPolitical Science Chapter – 3
 UNIT – IVPolitical Science Chapter – 4
 UNIT – V Political Science Chapter – 5
 UNIT – VIPolitical Science Chapter – 6
 UNIT – VIIPolitical Science Chapter – 7
 UNIT – VIIIPolitical Science Chapter – 8
 UNIT – IXPolitical Science Chapter – 9
 UNIT – XPolitical Science Chapter – 10
 Class 12th Arts Question  Paper
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