Class 12th Subjective Question Political Science | Class 12 Political Science Question Paper

Class 12th Subjective Question Political Science :- दोस्तों यदि आप Class 12 Political Science Question Paper की तैयारी कर रहे हैं तो यहां पर आपको Inter Political Science Subjective Question दिया गया है जो आपके कक्षा 12 वीं पॉलिटिकल साइंस क्वेश्चन के लिए काफी महत्वपूर्ण है | class 12 political science question papers with answers


Class 12th Subjective Question Political Science

1. स्वतंत्रता के बाद भारत के समक्ष कौन-सी बड़ी चुनौतियाँ थी ? (What were the biggest challenges before India after Independence.)

उत्तर ⇒ स्वतंत्रता उपरान्त भारत के समक्ष तीन प्रमुख चुनौतियाँ (Three Major Challenges before Independent India)—अगस्त, 1947 ई० में स्वतंत्रता के समय भारत के समक्ष मुख्य तौर पर तीन अग्रलिखित चुनौतियाँ थीं :

(i) एकता के सूत्र में बाँधना (To tie India in Unity ) — मुख्य तौर पर भारत के सामने तीन तरह के चुनौतियाँ थीं। पहली और तत्कालीक चुनौती एकता के सूत्र में बँधे एक ऐसे भारत
के गढ़ने की थी जिसमें भारतीय समाज की सारी विविधताओं के लिए स्थान हो। भारत अपने आकार और विविधता में किसी महादेश के बराबर था। यहाँ अलग-अलग बोली बोलने वाले लोग थे, उनकी संस्कृति अलग थी और वे अलग-अलग धर्मों के अनुयायी थे। उस वक्त आमतौर पर यही माना जा रहा था कि इतनी विविधताओं (diversities) से भरा कोई देश ज्यादा दिनों तक एकजुट नहीं रह सकता। देश के विभाजन के साथ लोगों के मन में समायी यह आशंका एक तरह से प्रमाणित हुई थी। भारत के भविष्य को लेकर गंभीर सवाल खड़े थे : क्या भारत एक रह पाएगा? क्या ऐसा करने के लिए भारत सिर्फ राष्ट्रीय एकता की बात पर सबसे ज्यादा जोर देगा और बाकी उद्देश्य को तिलांजलि दे देगा? क्या ऐसे में हर क्षेत्रीय और उप-क्षेत्रीय पहचान को खारिज कर दिया जाएगा? उस वक्त का सबसे तीखा और चुभता हुआ एक सवाल यह भी था कि भारत की क्षेत्रीय अखंडता (Zonal Unity ) को प्राप्त किया जाए। लोकतंत्र की स्थापना करना (To establish democracy)— स्वतंत्र भारत के समक्ष दूसरी चुनौती लोकतंत्र को कायम करने की थी। आप भारत के संविधान के बारे में पहले ही पढ़ चुके हैं। आप जानते हैं कि संविधान में मौलिक अधिकारों की गारंटी (Fundamental Rights) दी गई और हर नागरिक को मतदान का अधिकार (Right to vote) दिया गया है। भारत ने संसदीय शासन पर आधारित प्रतिनिधित्वमूलक लोकतंत्र (Representative democracy) को अपनाया। इन विशेषताओं से यह बात सुनिश्चित हो गई कि लोकतांत्रिक ढाँचा के भीतर राजनीतिक मुकाबले होंगे। लोकतंत्र को स्थापित करने के लिए लोकतांत्रिक संविधान आवश्यक होता है परंतु इतना भर ही काफी नहीं होता। चुनौती यह भी थी कि संविधान से मेल खाते लोकतांत्रिक व्यवहार, बरताव चलन में आएँ । समाज मूलक विकास (Development keeping in view welfare of the society)— तीसरी चुनौती थी ऐसे विकास की जिससे समूचे समाज का भला होता हो न कि कुछ एक वर्गों (classes) का। इस मोर्चे पर भी संविधान में यह बात साफ कर दी गई थी कि सबके साथ समानता. का बरताव (Treatment of equality) किया जाए और सामाजिक रूप से वंचित वर्गों तथा अल्पसंख्यक समुदायों को विशेष सुरक्षा दी जाए। संविधान ने ‘राज्य के नीति-निर्देशक सिद्धांतों’ (Directive Principles of State Policy) के अंतर्गत लोक-कल्याण के उन लक्ष्यों को भी स्पष्ट कर दिया था जिन्हें राजनीति को जरूर पूरा करना चाहिए। अब असली चुनौती आर्थिक विकास तथा गरीबी की समाप्ति के लिए कारगार नीतियों (effective policy) को तैयार करने की थी ।


2. भारत में राष्ट्र निर्माण संबंधी समस्याओं का वर्णन करें। (Discuss the problems regarding nation building in India.)

उत्तर ⇒ भारत एक संवैधानिक व्यवस्था एवं विविधताओं वाला देश है। यहाँ विविधता में एकता पाई जाती है। इसके बावजूद भारत को राष्ट्र-निर्माण में कई समस्याओं का सामना करना पड़ रहा

(i) संविधानवाद का संकट – यहाँ संवैधानिक भावना की उल्लंघन की प्रवृत्ति बढ़ती जा रही है। संविधान का दुरुपयोग किया जा रहा है।

(ii) अलगावाद एवं आतंकवाद – भारत में राजनीतिक एकीकरण के बावजूद अलगाववाद पनप रहा है। भारत में कुछ ऐसे तत्त्व जो अलगाववाद एवं आतंकवाद को बढ़ावा दे रहे हैं। आतंकवाद को विदेशों से मदद मिल रही है। जो राष्ट्रवाद के मार्ग में बाधक है।

(iii)गरीबी एवं बेरोजगारी – गरीबी एवं बेरोजगारी के कारण लोग स्वभाविक रूप से राष्ट्र निर्माण में सहयोग नहीं कर पाते हैं।

(iv) केंद्र के प्रति राज्यों के दृष्टिकोण में भिन्नता—केंद्र सरकार राज्यों के प्रति अपना दृष्टिकोण एक समान नहीं रख पाती है। राजनीति पुष्टिकरण के कारण केंद्र सरकार संघवाद की भावना के खिलाफ कार्य करती रही है। इन्हीं सब कारणों से भारत में राष्ट्र निर्माण में समस्या आती रही है।


3. किसी राज्य के मुख्यमंत्री के अधिकार एवं कार्यों की व्याख्या करें। (Explain the powers and function of the Chief Minister of a State.)

उत्तर ⇒ भारतीय शासन व्यवस्था में केंद्र में जो स्थिति प्रधानमंत्री का होता है लगभग वही स्थिति राज्य की शासन व्यवस्था में मुख्यमंत्री की भी है। मुख्यमंत्री राज्य की शासन की धुरी है। उसके कार्य एवं अधिकार काफी व्यापक है।

मुख्यमंत्री राज्य मंत्रीपरिषद् का निर्माण करता है और मंत्रियों के बीच विभागों का बँटवारा भी करता है। मुख्यमंत्री सभी विभागों के कार्यों में समन्वय बनाए रखने का काम करता है ताकि सरकार का काम सुचारु रूप से चलता रहे। मुख्यमंत्री विधानसभा का नेता होता है। वह राज्य विधानमंडल का नेता भी होता है। मुख्यमंत्री राज्यपाल को अपने कार्य दायित्वों में निपटारा हेतु परामर्श भी देता है। मुख्यमंत्री के परामर्श से हीं राज्यपाल बड़े-बड़े पदाधिकारियों की नियुक्तियाँ एवं सजायाप्ता कैदी को क्षमादान भी प्रदान करता है। नीति निर्धारण में मुख्यमंत्री का व्यक्तित्व एवं अपने दल के चुनावी घोषणा एवं सिद्धांत का प्रभाव देखा जा सकता है। राज्यपाल जिला जजों की नियुक्ति एवं अन्य न्यायिक पदाधिकारियों की नियुक्ति मुख्यमंत्री के परामर्श से ही किया जाता है। मुख्यमंत्री की इच्छानुसार संचालित होता है। वह राज्य शासन का कप्तान होता है। राज्य में आए विशिष्ट अतिथियों का राज्य की ओर से स्वागत करता है।


Class 12 Political Science Question Paper

4. भारतीय संविधान के अनुसार स्वतंत्रता के अधिकार का वर्णन करें। (Describe the right to freedom according to the Constitution of India.)

उत्तर ⇒ स्वतंत्रता मानव जीवन का सबसे महत्वपूर्ण अधिकार है। विश्व के लोकतांत्रिक देशों की तरह भारतीय संविधान में भी स्वतंत्रता के अधिकारों का वर्णन की गई है। भारतीय संविधान के मौलिक अधिकार के अन्तर्गत भाग-3 में अनुच्छेद 19 से 22 तक में स्वतंत्रता के अधिकारों का वर्णन है। स्वतंत्रता के अधिकार के अंतर्गत हर नागरिक को अपने विचार व्यक्त करने की स्वतंत्रता है। व्यक्ति अपने मित्र या सहयोगियों के साथ मिलकर सभा या बैठक कर सकता है। देश के किसी भी हिस्से में कोई भी नागरिक बेरोक-टोक आ जा सकता है और कहीं भी कोई भी उद्योग धंधा स्थापित कर सकता है।

स्वतंत्रता के अधिकार के अन्तर्गत व्यक्ति को पुलिस द्वारा तभी गिरफ्तार किया जा सकता है जब उन्होंने कोई अपराध किया हो। पुलिस द्वारा किसी व्यक्ति को बिना कारण बताये उसे गिरफ्तार भी नहीं कर सकता है। स्वतंत्रता के अधिकार के अन्तर्गत शिक्षा का अधिकार को भी शामिल किया गया है। शिक्षा के अधिकार के अनुसार देश में 6 से 14 वर्ष तक की बच्चों को निःशुल्क एवं अनिवार्य शिक्षा प्रदान किया गया है। आयु के


5. राजनीतिक न्याय क्या है? (What is Political Justice ?)

उत्तर ⇒ राजनीति न्याय का अर्थ है कि राज्य की राजनीतिक व्यवस्था और प्रक्रिया में किसी नागरिक के साथ भेदभाव नहीं हो और सबको उसमें भाग लेने की स्वतंत्रता एवं समान अवसर प्राप्त हो। इस कारण लोकतंत्र राजनीतिक न्याय के लिए सर्वाधिक उपयुक्त माना जाता है और अधिनायकवाद को राजनीतिक न्याय का विलोम कहा जाता है। राजनीतिक न्याय के प्रमुख लक्षण निम्नलिखित हैं-

(i) (ii) शासनप्रणाली का प्रतिनिधिमूलक होना सब वयस्कों को मताधिकार प्राप्त होना

(iii) नियमानुसार निष्पक्ष चुनाव होना

(iv) चुनावों में सभी नागरिकों को प्रत्याशी बनाने का अधिकार होना (v) राज्य के सर्वाधिक पदों पर सभी नागरिकों को चुने जाने, नियुक्त होने का समान अवसर प्राप्त होना। कुछ अन्य अधिकार जो राजनीतिक न्याय को स्पष्ट करते हैं इस प्रकार हैं
राजनीति दल गठित करने का अधिकार, भाषण एवं अभिव्यक्ति (प्रेस) की स्वतंत्रता, सभाएँ अथवा मीटिंग करने की स्वतंत्रता, संघ या संवाद बनाने की स्वतंत्रता, प्रचार करने की स्वतंत्रता । संक्षेपतः राजनीतिक व्यवस्था एवं प्रक्रिया में भाग लेने की समान स्वतंत्रता को ही राजनीतिक न्याय कहा जाता है।


6. सुशासन क्या है? इसकी विशेषताओं को लिखें। (What is Good Governance ? Write its characteristics.)

उत्तर ⇒ सुशासन का शाब्दिक (Good Governance) अर्थ के परंपरागत मानकों जैसे—अच्छे कानून और नीतियों के माध्यम से नागरिकों की आर्थिक-राजनीतिक स्वतंत्रता के साथ-साथ शांति और सुरक्षा उपलब्ध कराने तक सीमित नहीं है। वर्तमान में यह व्यापक विकसित व्यवस्था को प्रकट करता है। सरल शब्दों में सुशासन का अर्थ है— व्यक्ति का कल्याण तथा राज्य के विकास के लिए इनसे संबंधित हर मामलों को एक सक्षम प्रशासन द्वारा प्रभावशाली बनाना। इसकी निम्नलिखित विशेषताएँ हैं—

(i) कृषि क्षेत्र का समुचित विकास और किसानों को उनके फसल का उचित मूल्य प्रदान करना ।

(ii) शिक्षा का समुचित विकास और शिक्षा जन जन तक पहुँचे इनके लिए समुचित कदम उठाया गया। जैसे— शिक्षा मित्र एवं अन्य शिक्षकों को बड़े पैमाने पर नियुक्ति ।

(iii) स्वास्थ्य की समुचित व्यवस्था। इसके तहत आशा कार्यकर्ताओं की नियुक्ति, दवाइयों का स्वास्थ्य केंद्रों पर उपलब्धता, महिला स्वास्थ्य एवं प्रसूति सुरक्षा से संबंधी अनेक योजनाएँ।

(iv) भ्रष्टाचार निरोधक कानून का सख्ती से लागू करना ।

(v) प्रशासन को सख्त तथा दक्ष बनाने के लिए विशेष कदम उठाया गया है। जैसे—विभागों को कम्प्यूटरीकृत करना तथा Right to service act लाकर हर विभाग के अधिकारी और कर्मचारी को पूर्ण जानकारी दी गयी है।


7. भ्रष्टाचार पर एक संक्षिप्त टिप्पणी लिखें। (Write a short note on corruption.)

उत्तर ⇒ भ्रष्टाचार का शाब्दिक अर्थ भ्रष्ट अथवा बिगड़ा हुआ आचरण है। सामान्य अर्थ में भ्रष्टाचार किसी अधिकारी के पद उसकी स्थिति का, उसके साधनों का व्यक्तिगत उन्नति के लिए प्रत्यक्ष अथवा अप्रत्यक्ष ढंग से इच्छानुसार और विचारपूर्वक किया गया शोषण है। भ्रष्टाचार का प्रयोग दो अर्थों में किया जाता है— संकीर्ण और व्यापक । संकीर्ण अर्थ में इसका अर्थ केवल घूस अथवा आर्थिक लाभ प्राप्त करना माना जाता है। व्यापक अर्थ में अपने निजी स्वार्थपूर्ण उद्देश्यों के लिए सार्वजनिक पद अथवा सत्ता का दुरुपयोग करते हुए नगद धन राशि अथवा भेटों और उपहारों के रूप में सभी प्रकार की बेइमानी से प्राप्त चीज का समावेश होता है। आज भ्रष्टाचार के परिपेक्ष्य में जो स्थितियाँ देश में देखने हो मिल रही हैं, वे हमारे चारित्रिक स्खलन का नतीजा है। आचरण की शुद्धता तो गुलर का फूल बन गयी है। संतरी हो या मंत्री अफसर हो या बाबू सभी भ्रष्टाचार में आखंड डूबे हुये हैं। जिसे जहाँ मौका मिल रहा है चूकना नहीं चाहता। राजनीतिक क्षेत्रों की स्थिति तो और भयावह है। राजनेताओं, नौकर, बिचौलियों, दलालों और पूँजीपतियों, पत्रकारों के गठजोड़ से भ्रष्टाचार का बोलवाला बढ़ता ही जा रहा है। आम जनता को जो हक मिलना चाहिए नहीं मिलता। देश की सुरक्षा तक भ्रष्टाचार की गिरफ्त में आ चुकी है। रक्षा सौदों तक पर भ्रष्टाचार की छाया देखी जा रही है। रोकथाम के उपायों के बावजूद भ्रष्टाचार का सघन जाल फैलता ही जा रहा है।


8. भारतीय राजनीति में साम्प्रदायिकता के दुष्परिणामों का वर्णन करें। (Describe the bad impact of communalism in Indian politics.)

उत्तर ⇒ स्वतंत्रता के 60 वर्ष बाद भी भारत में विभिन्नता पायी जाती है। इसका प्रमाण यह है कि केन्द्र और राज्यों में तनावपूर्ण स्थिति साम्प्रदायिकता, क्षेत्रीयता, भाषावाद आदि महत्त्वपूर्ण समस्याएँ रही हैं जो आज भी विद्यमान हैं।
भारत की राजनीति पर साम्प्रदायिकता का प्रभाव बहुत ज्यादा है। इसके उत्तरदायी कारण निम्नलिखित हैं

(i) सरकार की उदासीनता भी हिन्दू-मुस्लिम साम्प्रदायिकता को बढ़ावा देने के लिए उत्तरदायी है, कारण संघीय और राज्य सरकारों ने दृढ़तापूर्वक इस समस्या को हल करने का प्रयास नहीं किया।

(ii) विभिन्न धर्मों के लोगों में एक-दूसरे के प्रति अविश्वास की भावना साम्प्रदायिकता को बढ़ावा देने में सहायक है।

(iii) भारतीय राजनीति में वोट की राजनीति साम्प्रदायिकता को बढ़ावा देते हैं। वे सत्ता हथियाने और इस उद्देश्य को पूरा करने के लिए धर्म का राजनीति में प्रयोग करते हैं।

(iv) मुस्लिम साम्प्रदायिक संगठनों की तरह हिन्दू साम्प्रदायिक संगठन भी भारत में विद्यमान हैं। इनमें हिन्दू महासभा, विश्व हिन्दू परिषद, शिवसेना, राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ आदि हैं। इन संगठनों के हिन्दू नेता अपने भाषणों द्वारा साम्प्रदायिकता की आग में घी डालते हैं। वर्तमान समय में देश साम्प्रदायिकता की गंभीर समस्या से जूझ रहा है। राजनीतिक दृढ़ता से ही इस समस्या का समाधान हो सकता है।

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9. ग्राम पंचायत के कार्यों का वर्णन करें। (Describe the functions of Village Panchayat.)

उत्तर ⇒ बिहार में ग्रामीण क्षेत्रों की स्थानीय स्वशासन में ग्राम पंचायत सबसे महत्त्वपूर्ण संस्था है। राज्य सरकार लगभग 7800 की ग्रामीण आबादी पर एक ग्राम पंचायत की स्थापना कर सकती है। एक ग्राम पंचायत में एक गाँव या कई गाँव हो सकते हैं। ग्राम पंचायत का प्रधान मुखिया होता है। प्रत्येक ग्राम पंचायत का कार्यकाल 5 वर्षों का होता है। ग्राम पंचायत ग्रामीण क्षेत्र की सबसे नीचला एवं महत्त्वपूर्ण स्तर है। स्थानीय समस्याओं के समाधान एवं जनता के कल्याण में ग्राम पंचायत की महत्त्वपूर्ण भूमिका होती है। ग्राम पंचायत के अधीन 29 महत्त्वपूर्ण विषय रखे गए हैं जिससे संबंधित कार्य ग्राम पंचायत को करने पड़ते हैं। ग्राम पंचायत के कुछ महत्त्वपूर्ण कार्य निम्नलिखित हैं- ग्राम पंचायत को पंचायत क्षेत्र के विकास के लिए वार्षिक योजना तैयार करना और वार्षिक वजट, सार्वजनिक सम्पति पर से अवैध कब्जा हटाना एवं सामुदायिक कार्यों में सहयोग करना आदि ग्राम पंचायत के कार्यों के अन्तर्गत आते हैं। ग्राम पंचायत को उपयुक्त कार्यों के अलावे भी कार्य करने पड़ते हैं जैसे— कृषि एवं बागवानी का विकास करना, पेयजल की व्यवस्था करना, सड़क, भवन, पुलिया और नाली आदि का निर्माण करना, गलियों एवं सार्वजनिक स्थानों पर प्रकाश की व्यवस्था करना आदि। प्राथमिक, माध्यमिक, वयस्क एवं अनौपचारिक शिक्षा का विकास करना, बाजार, मेले, शौचालय आदि की व्यवस्था करना, धर्मशाला, छात्रावास एवं कसाईखाना आदि का निर्माण करना तथा जनवितरण प्रणाली परनियंत्रण रखना आदि प्रमुख कार्य ग्राम पंचायत को करने पड़ते हैं।


10. पंचायती राज व्यवस्था के आय के स्रोतों का वर्णन करें। (Describe the sources of income of Panchayati Raj System.)

उत्तर ⇒ गाँव एवं जिला स्तर की वैसी शासन व्यवस्था जिसमें आम आदमी अपनी भागीदारी एवं उत्तरदायित्व सुनिश्चि करता है पंचायती राज शासन या स्थानीय शासन कहलाता है। पंचायती राज व्यवस्था के आय का स्रोत है—भवन निर्माण कर, बिजली, पानी कनेक्शन पर जारी एन ओसी पर कर, मनोरंजन कर, मेला पर कर, विवाह पंजीयन शुल्क, खनन पर कर, आबादी क्षेत्र में भूखण्ड में की बिक्री, ठेला वाहन कर, पशुपालन कर, पुराने भवनों के पट्टे से आय, घास की निलामी, उद्योग कर, मुर्गी पालन कर, मत्स्य पालन कर, दुकान किराया कर आदि ।

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