Political Science Subjective 12th Class | Class 12th Political Science Question Answer

Political Science Subjective 12th Class :- दोस्तों यदि आप Class 12th Political Science Question Answer की तैयारी कर रहे हैं तो यहां पर आपको Bihar Board Class 12th Political Science Question दिया गया है जो आपके class 12 political science question answer in hindi के लिए काफी महत्वपूर्ण है | 


Political Science Subjective 12th Class

1. सूचना के अधिकार आंदोलन के मुख्य उद्देश्य क्या थे? (What were the main objectives of the Right to Information movement?)

उत्तर ⇒ जून, 2005 से देश के सभी नागरिकों को सूचना का अधिकार प्राप्त है। इस अधिकार के तहत देश का कोई भी नागरिक सरकार से वांछित सूचना की माँग कर सकता है और सरकार को निर्धारित सूचना देनी पड़ती है। सूचना के अधिकार का यह आंदोलन जनआंदोलन की सफलता का सुंदर आंदोलन है। सूचना के अधिकार के मुख्य उद्देश्य निम्नलिखित हैं

(i) नागरिकों को अपने कर्त्तव्य के प्रति सशक्त बनाना। एक नागरिक होने के नाते उन्हें देश के प्रति क्या कर्त्तव्य है। एक समाज के प्रति क्या कर्त्तव्य है। एक परिवार के प्रति क्या कर्त्तव्य है आदि। इन्हीं सब कार्यों के प्रति नागरिकों को शसक्त रहने के लिए सूचना अधिकार आंदोलन चला।

(ii) सरकार के कार्यों में पारदर्शिता लाना इस आंदोलन की मुख्य उद्देश्य रहा है। इस आंदोलन की मुख्य मांग थी। सरकार जो कार्य कर रही है या सरकार की जो कार्य है उसमें पारदर्शिता लाना। सरकार के कार्यों एवं उसके निष्पादन के तौर तरीके तथा उन पर आनेवाले खर्च का पूरा व्योरा सूचना पट्ट या समाचार के माध्यम से लोगों को बताया जाता है।

(iii) सरकार को जनता के प्रति जवाबदेही को यह आंदोलन मजबूत करता है। सरकार जो भी कार्य करती है या निर्णय लेती है, उसका जनता पर क्या प्रभाव पड़ेगा आदि बातों का प्रभाव इन आंदोलन का रहा है।

(iv) इस आंदोलन का मुख्य उद्देश्य रहा है—भ्रष्टाचार पर अंकुश लगाना । सूचना के अधिकार आंदोलन का मुख्य उद्देश्य था सरकारी स्तर पर व्याप्त भ्रष्टाचार को समाप्त करना। क्योंकि सूचना के अधिकार कानून बन जाने के बाद कोई भी व्यक्ति सरकार या सरकारी संस्थाओं के द्वारा किए गए कार्यों की जानकारी मांग सकता है। इसलिए सूचना के अधिकार आंदोलन का मुख्य उद्देश्य था भ्रष्टाचार को समाप्त करना ।


2. वायु प्रदूषण क्या है? (What is air pollution ?)

उत्तर ⇒ वायु प्रदूषण वायु के भौतिक, रासायनिक या जैविक गुणों में ऐसे अवांछित परिवर्तन का द्योतक है जिसके द्वारा मनुष्य एवं अन्य जीवों की जीवन दशाओं पर कुप्रभाव पड़ता है।

वायुमंडल में सभी गैसों का एक निश्चित अनुपात है—

नाइट्रोजन        –      78.09%

ऑक्सीजन       –      0.93%

आर्गन            –       20.95%

Co2                    –         0.03%

इसके अलावा जलवाष्प, हाइड्रोजन, हीलियम, ओजोन, क्रिप्टान, नियान तथा जेनान। जब मानवीय या प्राकृतिक कारणों से गैसों की इस निश्चित मात्रा में एवं अनुपात में अवांछनीय परिवर्तन हो जाता है या वायु में इन गैसों के अतिरिक्त कुछ अन्य विषाक्त गैसों या कणिकीय पदार्थ मिल जाते हैं तो उसे वायु प्रदूषण कहते हैं।

स्रोत –

(i) प्राकृतिक प्रदूषक – ये प्रदूषक प्राकृतिक कारणों से उत्पन्न होते हैं जैसे— परागण, ज्वालामुखी विस्फोट, भूकंप, जैविक पदार्थों के सड़न आदि ।

(ii) प्राथमिक प्रदूषक – प्राकृतिक अथवा मानवीय क्रियाकलापों के द्वारा सीधे वायु में निष्कासित |

(iii) द्वितीयक प्रदूषक – सूर्य के विद्युत चुम्बकीय विकिरण के प्रभाव के अंतर्गत प्राथमि

प्रदूषकों तथा सामान्य वायुमंडलीय यौगिकों के बीच रासायनिक अभिक्रियाओं के परिणामस्वरूप .द्वितीयक प्रदूषकों का निर्माण होता है। जैसे—SO, NO, वायु प्रदूषण से मानव स्वास्थ्य ही नहीं बल्कि अन्य जीव-जंतुओं तथा पर्यावरण भी प्रभावित होती है वायु प्रदूषण के उपाय

(a) लोगों को वायु प्रदूषण से होनेवाले घातक परिणामों से अवगत कराना ।

(b) G.N.G., L.P.G. के प्रयोग को बढ़ावा देना।

(c) प्रदूषण के नियमित मानिटरिंग की व्यवस्था ।

(d) ऊर्जा के वैकल्पिक साधनों का प्रयोग |

(e) डीजल की गाड़ियों में हरित डीजल का प्रयोग।

(f) ओजोन मित्रवत पदार्थों का प्रयोग जैसे CFC के बढ़ते NCFC का प्रयोग ।

(g) निलंबित कणिकीय पदार्थों के निष्कासन के लिए ‘वेग फिल्टर’ तथा साइक्लोन सेपरेटर का प्रयोग।

(h) सार्वजनिक स्थानों पर धुम्रपान की मनाही का कड़े रूप में प्रयोग ।

(i) स्वचालित वाहनों में उत्प्रेरक संपरिवर्तक का प्रयोग।

निष्कर्षतः कहा जा सकता है कि वायु एक अनिवार्य संशाधन है जिंदा रहने के लिए। औसत वयस्क मानव प्रतिदिन जितना भोजन तथा पानी का सेवन करता है उससे छह गुना ज्यादा वह गैसों का विनिमय करता है। इसके बिना हम जिंदा नहीं रह सकते।


Class 12th Political Science Question Answer

3. भूमण्डलीकरण के प्रभावों का मूल्यांकन करें। (Evaluate the impact of Globalisation.)

उत्तर ⇒ अंगरेजी के ग्लोबलाइजेशन का हिन्दी रुपान्तरण विश्व व्यापीकरण, भूमण्डलीकरण तथा वैश्वीकरण है। साधारण शब्दों में हम कह सकते हैं कि वैश्वीकरण वह प्रक्रिया है जिसमें पृथ्वी को एक इकाई या भूमण्डलीय गाँव समझा जाता है, जहाँ लोगों के बीच सामाजिक और के साथ एक भूमंडली समाज माना जाता है जहाँ इन मुद्दों और समस्याओं को भूमण्डलीय पदार्थ आर्थिक व्यवहार परस्पर निर्भरता पर आधारित है। विश्व को भूमंडलीय मुद्दों और समस्याओं और सहयोग से समझना है। व्यापक अर्थ में भूमण्डलीकरण शब्द का प्रयोग सामाजिक और राजनीति अधिकारों की उपलब्धता के लिए स्थितियाँ पैदा करना कानून का शासन, सत्ता की जवाबदेही, बहुदलीय व्यवस्था और निष्पक्ष न्याय व्यवस्था बनाने के अर्थ में भी किया जाता है। ये स्थितियाँ सरकारी तंत्र में पारदर्शिता तथा दृष्टि बनाए रखने के रूप में देखी जाती हैं।
आज हम एक वैश्वीकरण के दोर से गुजर रहे हैं आर्थिक विकास और संचार क्रांति ने पूरे विश्व को अपने प्रभाव में लेकर वैश्वीकरण को सशक्त किया है। इसके प्रभावों को हम निम्न शीर्षकों के अंतर्गत समझ सकते हैं

(i) वैश्विक गाँव में परिवर्तित होता विश्व- वैज्ञानिक अनुसंधान एवं विकास से आज विश्व के विभिन्न भागों के लोग व्यावहारिक रूप से एक-दूसरे के इतने करीब आ गए हैं कि तकनीकी दृष्टि से विश्व को वैश्विक गाँव की संज्ञा दी जाने लगी है।

(ii) प्रौद्योगिकी और संस्कृति का वैश्वीकरण – 1970 के दशक तक आधुनिक प्रौद्योगिकी के प्रयोग पर सिर्फ विकसित देशों का एकाधिकार था लेकिन वैश्वीकरण के चलते अब स्थितियाँ बदल चुकी हैं। आज विश्व की अन्याधुनिक उच्च प्रौद्योगिकी आसानी से विकासशील देशों में पहुँच रही है। बहुराष्ट्रीय कंपनियाँ तृतीय विश्व के देशों में नई प्रौद्योगिकी के साथ पैर प्रसार रही है। घरेलू कंपनियाँ भी उच्च प्रौद्योगिकी का आयात कर रही हैं।

(iii) निर्धनों पर वैश्वीकरण का प्रभाव- सामान्य तौर पर वैश्वीकरण का तात्पर्य अंतर्राष्ट्रीय व्यापार, वित्त एवं सूचना के अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार को बढ़ाकर उसे एक वैश्वीकरण बाजार के रूप में समन्वित किए जाने से लगाया जाता है। उपर्युक्त वर्णन से यह स्पष्ट है कि वैश्वीकरण एक ऐसी प्रक्रिया है जिसमें दूरियाँ समाप्त हो रही हैं और विश्व सिमटता जा रहा है। इसके चलते राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था दिनोंदिन सिकुड़कर धीरे-धीरे अंतर्राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था का अंग बन रही है।


4. रियो सम्मेलन के क्या परिणाम हुए? या, रियो सम्मेलन का आयोजन क्यों और कहाँ हुआ था? इससे जुड़ी कुछ विशेषताएँ भी लिखिए। ( What were the outcomes of the Rio summit ? Or, Where and why was the Rio Summit organised? Write some characteristics.)

उत्तर ⇒ (I) उद्देश्य एवं स्थान (Objective and Place) – 1992 में संयुक्त राष्ट्रसंघ का पर्यावरण और विकास के मुद्दे पर केंद्रित एक सम्मेलन, ब्राजील के रियो डी जनेरियो में हुआ। इसे पृथ्वी सम्मेलन (Earth Summit) कहा जाता है।

(II)  विशेषताएँ (Features )

(i)- इस सम्मेलन में 170 देश, हजारों स्वयंसेवी संगठन तथा अनेक बहुराष्ट्रीय निगमों ने भाग लिया। वैश्विक राजनीति के दायरे में पर्यावरण को लेकर बढ़ते सरोकारों का इस सम्मेलन में एक ठोस रूप मिला।

(ii) इस सम्मेलन से पाँच साल पहले (1987) ‘आवर कॉमन फ्यूचर’ शीर्षक बर्टलैंड रिपोर्ट छपी थी। रिपोर्ट में चेताया गया था कि आर्थिक विकास के चालू तौर-तरीके आगे चलकर टिकाऊ साबित नहीं होंगे।

(iii) रियो सम्मेलन में यह बात खुलकर सामने आयी कि विश्व के धनी और विकसित देश यानी उत्तरी गोलार्द्ध तथा गरीब और विकासशील देश यानी दक्षिणी गोलार्द्ध पर्यावरण के अलग-अलग एजेंडे के पैरोकार हैं।

(iv) रियो सम्मेलन में जलवायु परिवर्तन जैव-विविधता और वानिकी के संबंध में कुछ नियमाचार निर्धारित हुए। इसमें ‘एजेंडा – 21’ के रूप में विकास के कुछ तौर-तरीके भी सुझाए गए, लेकिन इसके बाद भी आपसी अंतर और कठिनाइयाँ बनी रहीं । (v) सम्मेलन में इस बात पर सहमति बनी कि आर्थिक वृद्धि से पर्यावरण को नुकसान न पहुँचे। इसे ‘टिकाऊ-विकास’ का तरीका कहा गया लेकिन समस्या यह थी कि ‘टिकाऊ – विकास’ पर अमल कैसे किया जाए ।


5.खतरे के नए स्रोत कौन-कौन से हैं? मूल्यांकन करें। (What are the new sources of threats ? Evaluate.)

उत्तर ⇒ आज जहाँ विश्व के देशों द्वारा संकट एवं खतरों से निपटने के लिए तरह-तरह के संगठनों का निर्माण एवं संधियाँ किए जा रहे हैं। वहीं दुनिया में तरह-तरह के खतरे भी उत्पन्न हो रहे हैं। ये खतरे मानवता की रक्षा में चुनौतियाँ पैदा करते हैं। खतरे के ये स्रोत हैं
(i) आतंकवाद (Terriorism) — खतरे का सबसे बड़ा स्रोत या नेटवर्क आतंकवाद है। आतंकवाद ने अपने प्रभाव क्षेत्र में पूरे विश्व को ले लिया है। आतंकवाद को कई रूपों में देखा जा सकता है। जैसे व्यक्ति के रूप में, समूह के रूप में एवं संगठन के रूप में। दुनिया में आतंकवाद धार्मिक रूप में ज्यादा देखने को मिलते हैं।

(ii) मानवाधिकार हनन (Injuring Human Right)— खतरों का दूसरा स्रोत मानवाधिकार का हनन माना जाता है। मानवाधिकारों की रक्षा हेतु अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर समुचित व्यवस्था की गई है फिर भी विश्व स्तर पर मानवाधिकार का उल्लंघन जारी है। संयुक्त राष्ट्र संघ एवं एमनेस्टी इंटरनेशनल जैसी संस्थाएँ मानवाधिकार के उल्लंघन के लिए प्रतिवेदन एवं प्रस्ताव तैयार करती है एवं सदस्य देश इसे अनिवार्य रूप से लागू करती है। फिर भी मानवाधिकारों का उल्लंघन दिन-प्रतिदिन बढ़ता ही जा रहा है।

(iii) वैश्विक निर्धनता (Global Poverty ) – विश्व में खतरे का एक अन्य स्रोत वैश्विक निर्धनता है । विश्व में गरीबी एवं भूखमरी का मुख्य कारण जनसंख्या में वृद्धि एवं ग्लोवल वार्मिंग माना जा रहा है। एक अनुमान के अनुसार अगले 50 वर्षों में गरीबी देशों की संख्या में तीन गुणा की वृद्धि होगी। निर्धनता के कारण अन्य समस्याएँ भी पैदा होती हैं। जैसे— शरणार्थी की समस्या, कुपोषण की समस्या, हिंसा, चोरी, डकैती जैसी समस्या आदि।

(iv) स्वास्थ्य महामारियाँ – एच० आई० वी० एड्स, वर्ड फ्लू, सार्स, एवोला वायरस, हैटावाइरस, हेपेटाइटिस-सी जैसी घातक बीमारियाँ दुनिया के सभी देशों में देखने को मिलते हैं। इन बीमारियों का सही दवाइयाँ अभी तक बाजार में नहीं उपलब्ध हो पाया है। जिसके कारण इसे खतरे के स्रोत में देखा जा सकता है।


6. राष्ट्रपति शासन किन परिस्थितियों में लगाया जाता है? (Under what circumstances President Rule is imposed?)

उत्तर ⇒ भारतीय संविधान के अनुच्छेद 356 में राष्ट्रपति को राज्यों में राष्ट्रपति शासन लगाने का अधिकार देता है। इसे राज्यपाल शासन भी कहते हैं। यदि किसी राज्य के राज्यपाल से प्रतिवेदन मिलने पर या राष्ट्रपति को लगे कि ऐसी स्थिति पैदा हो गयी है जिसमें उस राज्य का शासन संविधान के उपबंधों के अनुसार नहीं चलाया जा सकता है तो राष्ट्रपति उस राज्य में राष्ट्रपति शासन की घोषणा कर सकता है। जब किसी राज्य में राष्ट्रपति शासन लागू होता है तो वैसे राज्य की शासन संचालन का बागडोर राष्ट्रपति स्वयं संभालते हैं या वहाँ के राज्यपाल के हाथों में सौंप दी जाती है। राष्ट्रपति शासन की अवधि एक बार में छः माह की होती है। छः माह के बाद भी यदि कोई पार्टी (दल) बहुमत साबित नहीं कर पाये तो पुनः चुनाव की सिफारिश की जा सकती है। राष्ट्रपति शासन के दौरान उस राज्य की विधानसभा को भंग कर दी जाती है या उसे निलंबित रखा जाता है। राष्ट्रपति द्वारा राष्ट्रपति शासन लागू करने की घोषणा को संसद के दोनों सदनों से स्वीकृति लेना आवश्यक होता है।


Bihar Board Inter Political Science Question

7. भारत-रूस संबंधों पर संक्षिप्त लेख लिखें। (Write a short essay on India- Russia relations.)

उत्तर ⇒ भारत और रूस एक-दूसरे के पड़ोसी देश अवश्य हैं, परंतु विचारधारा, राजनीतिक आर्थिक व्यवस्था आदि की दृष्टि से भिन्न हैं। प्रारंभ में भारत व सोवियत संघ के संबंध मित्रतापूर्ण नहीं थे। सन् 1954 में स्टालिन की मृत्यु के पश्चात् रूस की आंतरिक राजनीति में एक बहुत बड़ा मोड़ आया और दोनों देशों के बीच नजदीकियाँ काफी आयी। कश्मीर के मसले पर सोवियत संघ द्वारा भारत का समर्थन करने के पश्चात् दोनों देशों के संबंधों में और प्रगाढ़ता आई । शीत युद्ध के दौरान भारत व सोवियत संबंधों की प्रगाढ़ता को देखते हुए आलोचकों ने कहना प्रारंभ कर दिया था कि भारत सोवियत खेमे का ही एक हिस्सा था। इस काल के भारत व सोवियत संघ के संबंधों का विस्तार निम्न है –

(i) भारत- सोवियत आर्थिक संबंध — इस संबंध में सबसे महत्त्वपूर्ण बात यह रही कि 1977 तक भारत सोवियत आर्थिक संबंधों का ताना-बाना बहुत लाभप्रद ढंग से इतना बुना जा चुका था कि व्यापक नीति परिवर्तन की गुंजाइश ही नहीं बची थी।
(ii) भारत- सोवियत सैन्य संबंध-सैनिक साजो सामान के आयात व उत्पादन के मामले में भारत की निर्भरता और भी नाजुक रही। आरंभ में ही मिग लड़ाकू विमानों की असेंबलीग लाइसेंसशुदा ढंग से हिन्दुस्तान ऐरोनोटिक्स के कारखाने में सोवियत मदद पर ही निर्भर रही। रूस भले ही परमाणु प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में भारत की अपेक्षाओं को पूरा न किया हो किन्तु भारत के मन में यह आशा बची रही कि कुछ नहीं तो भारी पानी हासिल करने में सोवियत संघ भारत का मददगार साबित होगा। भारत को रूस ने ऐसे समय पर सैनिक सहायता की थी जब कोई भी दूसरा देश भारत को सैनिक सहायता देने के लिए तैयार नहीं था।

(iii) भारत-रूस सांस्कृतिक संबंध-प्रारंभ से ही भारत व रूस का यह प्रत्यन रहा है कि आर्थिक व सामरिक परिप्रेक्ष्य में समय को सांस्कृतिक आदान-प्रदान का जामा पहनाया जाए। रूसु की यह कोशिश रही कि सांस्कृतिक संपर्क सरकार व दल के स्तर पर अलग-अलग चलाए जाएँ और जनाभिमुखराजनय को लोकप्रिय ढंग से संपादित किया जाए। राजकपूर की आवारा जैसी फिल्में रूस में बेहद लोकप्रिय हुई जिसका प्रभाव अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर दिखाई देने लगा। जितने बड़े पैमाने पर रूस में भारतीय महोत्सव का आयोजन किया गया, उससे यही पता चलता है कि दोनों के सांस्कृतिक पक्ष को कम महत्वपूर्ण नहीं समझा जाना चाहिए।


8. भारत अमेरिका संबंधों पर आज के संदर्भ में प्रकाश डालें । (Explain the relations between U.S.A and India in the present context.)

उत्तर ⇒ वर्तमान समय में भारत और अमेरिका के संबंधों के मध्य दो नई बातें सामने आई हैं। इन दोनों बातों में प्रमुख प्रौद्योगिकी व अमेरिका में रहे अनिवासी भारतीय हैं। वास्तव में, इन दोनों बातों का आपस में गहरा संबंध है, जिनका वर्णन निम्नलिखित है

(i) बोइंग के 35 प्रतिशत तकनीकी कर्मचारी भारतीय मूल के हैं। :

(ii) सॉफ्टवेयर के क्षेत्र में भारत के कुल निर्यात का 65 प्रतिशत अमेरिका को जाता है।

(iii) 3 लाख भारतीय सिलीकन वैली में रहते हैं।

(iv) उच्च प्रौद्योगिकी के क्षेत्र की 15 प्रतिशत कंपनियों की शुरुआत उन भारतीयों ने की है, जो अमेरिका में रह रहे हैं। चूँकि आज विश्वभर में अमेरिकी वर्चस्व का दौर है, ऐसे समय में भारत को भी सोच-समझ लेना चाहिए कि उसे अमेरिका के साथ किस प्रकार के संबंध कायम करने हैं। भारत या किसी अन्य देश के लिये यह तय कर पाना कोई आसान काम नहीं है। फिर भी भारत को ऐसी रणनीति अपनानी होगी, जिससे भारत अमेरिकी वर्चस्व का लाभ उठा सके। कुछ विद्वानों का मानना है कि भारत अमेरिका से अपना अलगाव बनाए रखे तथा अपना ध्यान अपनी राष्ट्रीय शक्ति को बढ़ाने में केन्द्रित करे। निष्कर्ष के रूप में कहा जा सकता है कि भारत व अमेरिकी संबंध अधिक जटिल है । इनको किसी रणनीति पर निर्भर नहीं किया जा सकता है। अतः भारत को अमेरिका के साथ संबंधों के लिए रणनीतियों का एक मिश्रित रूप तैयार करना होगा।


9. क्या अमेरिकी वर्चस्व समकालीन विश्व राजनीति में स्थायी है ? (Is American dominance in contemporary world politics is permanent?)

उत्तर ⇒ पिछली शताब्दी के अंतिम दशक में सोवियत संघ की व्यवस्था में राष्ट्रपति गोर्वाचोव ‘की ‘ग्लासनोस्त तथा पेरेस्त्रोइका’ की नीतियों के कारण क्रांतिकारी परिवर्तन आया। सोवियत संघ 1 का इसके परिणामस्वरूप पतन हो गया। अब सम्पूर्ण विश्व पर अमेरिकी वर्चस्व हावी हो गया । विश्व एकध्रुवीय स्थिति में पहुँच गया। अमेरिका को चुनौती किये जाने की स्थिति नहीं रही । आज अमेरिका अफगानिस्तान, ईराक, इरान, कुवैत, लीबिया आदि कई देशों के मामले में खुलेआम हस्तक्षेप कर रहा है। अमेरिकी हस्तक्षेप योजना का विरोध प्रत्यक्ष रूप में किसी देश के द्वारा नहीं किया जा रहा है। लीबिया में बाह्य हस्तक्षेप के निर्णय के प्रस्ताव पर सुरक्षा परिषद में रूस तथा चीन जैसे देश अनुपस्थित रहते हैं किन्तु अपने निषेधाधिकार की शक्ति का प्रयोग नहीं करते हैं। औपचारिक रूप में इन राष्ट्रों द्वारा विरोध जताया जाता है, किन्तु अमेरिकी हस्तक्षेप
के विरुद्ध प्रत्यक्ष कार्रवाई के निर्णय से हर राष्ट्र अपने को दूर रखना चाहता है। अमेरिकी वर्चस्व के कारण संयुक्त राष्ट्रसंघ, विश्व बैंक, अन्तर्राष्ट्रीय मुद्राकोष आदि जैसे संगठन भी पूरी प्रभावित हैं। अमेरिका मानवाधिकार, लोकतंत्र, आतंकवाद आदि के नाम पर दूसरे राष्ट्र के मामले में हस्तक्षेप करता है, किन्तु उसके हस्तक्षेप ईमानदारी की नीति पर आधारित नहीं होते हैं। इन हस्तक्षेपों के माध्यम से वह उन राष्ट्रों पर लम्बे समय तक अपना नियंत्रण कायम रखना चाहता है। उपर्युक्त पृष्ठभूमि के आधार पर यह माना जा सकता है कि समकालीन विश्व राजनीति में अमेरिकी वर्चस्व लम्बे समय तक कायम रहेगा। क्योंकि अमेरिका को चुनौती देने की स्थिति में कोई भी राष्ट्र दिख नहीं पड़ता है। सोवियत व्यवस्था के पतन के बाद विश्व समुदाय की आँखें चीन और भारत की ओर है। विश्व स्तर पर साम्यवादी व्यवस्था में आये बदलाव के कारण चीन अपनी क्षमता का उपयोग विकल्प के रूप में कर सकता है, किन्तु नीतिगत आधार पर कई राष्ट्रों के समूह द्वारा सामूहिक प्रतिरोध को नेतृत्व देने की स्थिति में चीन नहीं है। भारत के विकास दर बढ़ने के कारण यहाँ भी अमेरिका को चुनौती देने की संभावना खोजी जाती है, किन्तु अभी भारत अपनी पहचान के लिए खासकर विकसित देश के रूप में, परमाणु सदस्य राष्ट्रों के क्लब की सदस्यता के संदर्भ में, संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की स्थायी सदस्यता के संदर्भ में संघर्षरत है तथा इस संघर्ष में इसे अमेरिकी समर्थन की आवश्यकता है। इसलिए अमेरिकी वर्चस्व के बने रहने के ही संकेत उभरते हैं। किन्तु, यह कोई आवश्यक नहीं कि ऐसा स्थायी रूप में हो। हाल के विश्व मंदी के समय अमेरिका ने जिस परेशानी का सामना किया वह संकेत देता है कि छोटे से झटके पर भी अमेरिकी व्यवस्था तिलमिला सकती है जबकि भारत ने इसे काफी सामान्य ढंग से झेल लिया। संभव है। ऐसे देश एकल या सामूहिक सांगठनिक आधार पर अमेरिकी वर्चस्व को चुनौती दें। अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा कई अवसरों पर भारत और चीन की शिक्षा में आये क्रांतिकारी परिवर्तन के समक्ष अमेरिकी कमजोर स्थिति का उल्लेख कर चुके हैं। अतः वे भी समझते हैं कि अमेरिकी वर्चस्व की स्थिति कोई स्थायी नहीं है। तृतीय विश्व के देश जो पहले गुटनिरपेक्ष आंदोलन के माध्यम से प्रभावी भूमिका में थे, वे संभव है कि नये रूप में प्रभावी होकर अमेरिकी वर्चस्व को चुनौती दें। हर हालत में कहा जा सकता है कि इसे विश्व राजनीति में स्थायी नहीं माना जा सकता है।


10. वर्तमान समय के संदर्भ में भारत और चीन के संबंधों की विवेचना करें। (Explain the relation between China and India in the context of present day.)

उत्तर ⇒ भारत और चीन दोनों ही एशिया के महान देश हैं, जिनकी सभ्यताएँ पुरानी हैं। दोनों एक दूसरे के करीब हैं। पिछली शताब्दी में दोनों ने एक ही साथ राजनीतिक परिवर्तन को देखा । 1947 में भारत स्वतंत्र हुआ तो चीन 1949 में साम्यवादी व्यवस्था के रूप में उदित हुआ। भारत को चीन के इस परिवर्तन से काफी उम्मीद थी । पंडित जवाहरलाल नेहरू ने ‘हिन्दी चीनी भाई-भाई’ एवं पंचशील समझौते के साथ दोनों देशों के बीच संबंधों की नींव रखी, किन्तु कुछ ही दिनों के बाद चीन ने भारत के साथ विश्वासघात किया । अपनी प्रसारवादी नीति के आधार पर तिब्बत पर नियंत्रण स्थापित किया तथा भारत के भूखण्ड पर अपना दावा किया । अन्ततः 1962 में चीन ने भारत पर आक्रमण कर दिया। इसमें भारत को शर्मनाक हार का सामना करना पड़ा तथा भारत का एक बड़ा भू-भाग चीन के कब्जे में हो गया। उस समय से दोनों के बीच संबंध तनावपूर्ण हैं। वार्तायें होती हैं किन्तु समाधान की उम्मीद नहीं की जाती। वर्तमान विश्व राजनीति की ऐसी स्थिति के बावजूद यह कहा जा सकता है कि चीन की भारत के प्रति नीति में कोई परिवर्तन नहीं आया है। सीमा विवाद के हल हेतु कई दौर की वार्ता के बावजूद प्रगति के नाम पर उपलब्धि शून्य है। अरुणाचलप्रदेश पर वह अपना अधिकार बतलाता तथा इस प्रदेश के किसी सदस्य को भारतीय प्रतिनिधि के रूप में चीन जाने की अनुमति नहीं देता है। तिब्बत चुका है। नेपाल में वह माओवादियों के नाम पर भारत विरोधी वातावरण का निर्माण कर रहा

Political Science Subjective 12th 2024


12th Political Science ( लघु उत्तरीय प्रश्न )
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