Biology Important Subjective Question Class 12th | Biology Subjective Question 2024 12th Class

Biology Important Subjective Question Class 12th :- दोस्तों यदि आप Biology Subjective Question 12th Class की तैयारी कर रहे हैं तो यहां पर आपको 12th Biology Chapter 2 Long Subjective Question दिया गया है जो आपके Biology 12th Question In Hindi pdf के लिए काफी महत्वपूर्ण है | 12th biology exam question 2024


Biology Important Subjective Question Class 12th

1.बीज से क्या समझते हैं? किसी एक बीज की निर्माण प्रक्रिया का वर्णन करें।

उत्तर ⇒ बीज एक प्रकार का परिपक्व ओव्यूल है जो पुष्पी पादपों के लैंगिक जनन का अंतिम उत्पाद है। बीज का विकास फल के अंदर होता है। प्रत्येक बीच में एक या दो बीजाकरण, एक या दो बीज पत्रक एवं एक भ्रूण अक्ष स्थित होता है।

बीजों को संचित भोजन के आधार पर दो प्रकारों में बाँटा जाता है

(क) अल्युमिनस या भ्रूणपोष रहित बीज जैसे—मटर, चना आदि के बीज ऐसे बीजों में भ्रूण के विकास हेतु भोज्य पदार्थ मोटे बीज पत्रक में संचित रहता है।

(ख) अल्युमिनस या भूणपोषी बीज जैसे—गेहूं, मक्का, रेड़ी आदि के बीज ऐसे बीजों में भ्रूणीय विकास हेतु भ्रूणपोष में ही भोजन संचित रह जाता है।

बीज निर्माण : निषेचनोपरांत युग्मनज वृद्धि कर भ्रूण का निर्माण करता है जबकि प्रारंभिक भ्रूणपोष कोशिका से भ्रूण पोष का विकास होता है। भ्रूणपोष नुसेलस को जबकि भ्रूण भ्रूणपोष को आंशिक या पूर्णरूप से खा जाता है। भ्रूण के विकास के साथ भ्रूण वृद्धि अवरोधक हो जाता है जो भ्रूण को आगे के विकास को रोक देता है फलतः भ्रूण सुसुप्तावस्था को प्राप्त कर लेता है। भ्रूण का बाह्य परत बहुकोशिका स्तरों के रूप में मोटी हो जाती है। इसकी कोशिकाएँ रिक्त एवं मृत होकर बीज का वाह्य चाल बनती है जिसे टेस्टा कहते है जबकि भीतरी स्तर बनता है तो इसे टेगमेन कहते हैं। 1 ओवयुल (बीजांड) का माइक्रो पाइल बीचोल में सूक्ष्म छिद्र के रूप में रह जाता है।


2.पक्षी परागण (Ornithophily) एवं चमगादड़ परागण से आप क्या समझते हैं ?

उत्तर ⇒पक्षी – परागण — कुछ विशेष जैसे परारा, बोतल-बुश, ठाक, सिल्क कॉटन वृक्ष आदि में पक्षी-परागण होता है। हमिंग बर्ड, कौए, बुलबुल, मैना, तोता आदि मुख्य कारक है जो मकरंद तथा छोटे-छोटे कीटों की खोज में इन पौधों के फूलों तक पहुंचते हैं। कुछ पक्षी जैसे हमिंग बर्ड अपने शरीर के वजन के बराबर एक दिन में मकरंद चूस लेते हैं।

पक्षी- परागण वाले पौधों की निम्न विशेषताएँ होती हैं—

(i) फूल साधारणतया बड़े होते हैं। उनकी कोरोला या पंखुड़ी नलीनुमा तथा कीपाकार होती है।

(ii) पुष्प चटक रंगों के होते है। इन रंगों से ही पक्षी आकर्षित होकर आते हैं।

(iii) पुष्प अधिकतर जलीय मकरंद अधिक मात्रा में उत्पन्न करते हैं।

(iv) पुष्प सुगंधरहित होते है।

चमगादड़ – परागण — कल्प वृक्ष अण्डसोनिया, काइजीलिया, कदम आदि में परागण चमगादड़ों द्वारा संपन्न किया जाता है। चमगादड़ रात्रि-भ्रमण करने वाले स्तनधारी हैं। इनके द्वारा परागकण 30 किलोमीटर दूर तक पहुंचाए जा सकते हैं। चमगादड़ परागण वाले पौधे बदरंग लेकिन गंधयुक्त होते हैं। इनमें मकरंद पक्षी परागित पौधों से भी अधिक उत्पादित होता है। परागकण भी बहुत अधिक मात्रा में होते हैं। अण्डसोनिया के प्रत्येक पुष्प में करीब 1500-2000 स्टेमेन पाए जाते है।


3.किसी परागकण की संरचना और इसके अंकुरण की अभिक्रिया का वर्णन कीजिए।

उत्तर ⇒परागकण नर गैयिटोफाइटर को प्रदर्शित करता है। प्रत्येक परागकण में दो तथा कभी-कभी तीन कोशिकाएँ होती है—

(i) कायिक कोशिका,

(ii) जनन कोशिका ।

परागकणों का आकार अधिकतर गोल या अण्डाकार होता है। यह दो परतोयुक्त होता है।

बाह्य परत- (i) बाह्ययोल तथा अंदर की परत (ii) अंत: चोल कहलाती है । बाह्य चोल (exine) स्पोरोलीन से निर्मित होता है जो कि ऑक्सीकरण या लीचिंग से बचा रहता है।

अंतः चोल (intine) पेक्टो- सेल्यूलोज का बना होता है। बाह्य स्तर कहीं एक स्थान पर बहुत पतला या गायब होता है जिसे जनन छिद्र (aperture) कहते है। इन्हीं जनन-छिद्रों द्वारा अंकुरण उपरांत पराग नलिका बाहर निकलती है। सामान्यतः द्विबीजपत्री पौधों के परागकणों में तीन तथा एकबीजपत्री में एक जनन-छिद्र पाया जाता है।

परागकणों का अंकुरण- परागकण वर्तिकाम पर गिरने के उपरांत उस पर विद्यमान पोषक एवं नमी की उपस्थिति में अंकुरण प्रारंभ कर देते हैं। परागकण एक सूक्ष्म प्रवर्ध जनननलिका निकालता है जो आगे पराग नलिका के रूप में वृद्धि करती है। परागनलिका ऐसे एंजाइमों का उत्पादन करती है जो वर्तिका एवं वर्तिकाम के ऊतकों का पाचन करते हैं। परागनलिका कैल्शियम बोरोन-आइनोसिटाल शर्करा जटिल की एक विशिष्ट सांद्रण प्रवशता के कारण रसायन अनुवर्ती एवं अंतरकोशिकीय विधियों से वर्तिका में वृद्धि करती है।

जनन कोशिका के केन्द्रक अर्द्धसूत्री विभाजन द्वारा दो युग्मकों का निर्माण करते हैं। अंततः परागनलिका बीजांडद्वार तथा भूणकोश में एक सहायक कोशिका द्वारा प्रवेश करती है। बाद में दोनों पुयुग्मक भ्रूणकोश में विसर्जित कर दिए जाते हैं।


4.स्त्रीयुग्मकोद्भिद की आंतरिक संरचना दशति हुए परिवर्धन पर एक लेख लिखिए। अपने उत्तर को उपयुक्त चित्रों की सहायता से सज्ज्जित कीजिए।

उत्तर ⇒ स्त्रीयुग्मकोद्भिद की आंतरिक संरचना स्वीयुग्मकोद्भिद् सामान्यतः आठ केन्द्रकधारी होता है। इसमें एक अण्ड कोशिका, दो सहकोशिकाएँ अण्डद्वार की ओर स्थित होती है जबकि तीन प्रतिभुवी 1 कोशिकाएँ निमार्ग की ओर और दो ध्रुवीय अथवा द्वितीयक केन्द्रक होती हैं।

स्त्रीयुग्मकोद्भिद का परिवर्धन— एक प्रारूपिक स्त्रीकेसर में एक फूला हुआ भाग, अण्डाशय, एक वर्तिका एवं एक शीर्ष संग्राही चक्रिका वर्तिका विद्यमान होती है। अण्डाशय के अंदर एक या कई अण्डप अथवा गुरुबीजाणुधानियाँ होती है। अण्डप का मुख्य भाग मृदुतक का बना बीजांडकाय होता है, जो अध्यावरणों से ढका होता है, सिर्फ बीजांडद्वार को छोड़कर।

अण्डप का प्रारंभ एक आद्यक के रूप में अण्डाशय गुहिका में बीजांडासन पर होता है। अण्डप आद्यको की कोशिकाओं की विभाज्यतकी प्रक्रिया के कारण प्रोदवर्ध सुस्पष्ट हो जाते हैं और बीजांडकाय की संरचना करते हैं

Biology Subjective Question 12th Class


5.धूणपोष के परिवर्धन पर टिप्पणी लिखिए। इसके विभिन्न प्रकारों का वर्णन, उदाहरण सहित कीजिए।

उत्तर ⇒ त्रिसंलयन द्वारा द्विनिषेचन के दौरान, भूणपोष मातृकोशिका का निर्माण होता है। यह बहुकोशिकीय पोषक ऊतक है जिसमें पोषक तत्व संचित होते हैं।

                     भ्रूणपोष का परिवर्धन प्राथमिक भूणपोष कोशिका (30) के वारंवार सूत्री विभाजन द्वारा होता है। इसका परिवर्धन भ्रूण के परिवर्धन से ठीक पहले प्रारंभ होता है परिवर्धन के तरीके के अनुसार भूणपोष निम्न प्रकार के होते है

(क) केन्द्रीय भूणपोष – यह सर्वाधिक पाया जाने वाला भूणपोष है। त्रिगुणित केन्द्रक में मुक्त केन्द्रक विभाजन होता है। बीच में एक बड़ी रिक्तिका उत्पन्न होती है, जो क्रमशः आकार में घटती जाती है और अन्ततः लुप्त हो जाती है तथा अधिक मात्रा में कोशिका द्रव्य बनाती है। परिधीय भाग से कोशिका भित्ति बनना प्रारंभ होता है और केन्द्र की तरफ बढ़ता है और इस प्रकार केन्द्र का भ्रूणपोष निर्मित होता है । उदाहरण – नारियल में भ्रूणपोष बाहर की ओर बहुकेन्द्रक तथा केन्द्र की ओर मुक्त केन्द्रक होते हैं।

(ख) कोशिकीय भ्रूणपोष – इस प्रकार के भ्रूणपोष में प्रत्येक केन्द्रक विभाजन के बाद कोशिका भित्ति बनती है। अतः प्रारंभ से ही कोशिकाएँ एक केन्द्रकी होती है। उदाहरण- पीटुनिया, धतुरा, बालसम आदि ।

(ग) माध्यमिक भ्रूणपोष – प्राथमिक भूणपोष  केन्द्रक निमार्ग की ओर चला जाता है। प्रथम केन्द्रक विभाजन के उपरांत छोटा निमार्ग कोशिका तथा बड़ी बीजांड द्वार कोशिका बनती है। बीजांड कोशिका मुक्त रूप से विभाजित हो कोशिका भित्ति बनाती है। इस प्रकार इसमें कोशकीय तथा केन्द्रकी दोनों के गुण विद्यमान होते हैं। यह एक बीजपत्री में नहीं होता।


6.त्रि-संलयन क्या है ? यह कहाँ और कैसे संपन्न होता है ? त्रि संलयन में सम्मिलित युक्वीआई का नाम बताएँ

उत्तर ⇒ एक सहाय कोशिका में प्रवेश करने के पश्चात् पराग नलिका द्वारा सहाय कोशिका के जीवद्रव्य में दो नर युग्मक अवमुक्त किए जाते हैं। इनमें से एक नर युग्मक अण्ड कोशिका की ओर गति करता है और केन्द्रक के साथ संगलित होता है, जिससे युग्मक संलयन पूर्ण होता है। जिसके परिणाम में एक द्विगुणित कोशिका युग्मनज (जाइगोट) की रचना होती है। दूसरी ओर वह संगलित होकर त्रिगुणित (प्राइमरी इंडोस्पर्म न्युक्लियस PEN) प्राथमिक भूणपोष केंद्रक बनाता है। जैसाकि इसके अंतर्गत तीन अगुणितक न्युक्ली (केंद्रिकी) सम्मिलित होते हैं। अतः इसे त्रिसंलयन कहते हैं।

दोनों अध्यावरणों के आरंभिक बीजांडकाय के आधार पर उत्पन्न होते है तथा शीर्ष को छोड़कर चारों ओर से आसादित कर लेते हैं। प्रसू कोशिका विभाजित होकर बाह्य प्राथमिक कोशिका भित्ति एवं आंतरिक प्राथमिक बीजागोदभिद् कोशिका का निर्माण करती है, जो गुरुबीजाणु मातृकोशिका के रूप में कार्य कर अर्द्धसूत्रीविभाजन द्वारा 4 सामान्य गुरुबीजाणु बनाती है। ये एक रेखीय चतुष्टक में व्यवस्थित हो जाते हैं। 4 में से सिर्फ एक क्रियाशील होता है, बाकी क्रियाशील गुरुबीजाणु को पोषण प्रदान करते हैं।

प्रकार्यशील गुरुबीजाणु स्त्रीयुग्मकोमिद् की प्रथम कोशिका होती है। तीन क्रमिक विभाजनों से आठ केन्द्रकी स्वीयुग्मकोद्भिद अपना भूणपोष का निर्माण करती है।


7.पर परागण को परिभाषित करें। पर परागण के विभिन्न अभिकर्मकों को लिखें।

उत्तर ⇒ पर परागण—– जब एक पुष्प के परागकण, दूसरे पौधे पर अवस्थित पुष्प के वर्तिकाम पर पहुँचते हैं तब उसे पर परागण कहते हैं। पर परागण दो प्रकार का होता है— सजातपुष्पी परागण तथा पर निषेचन । जब एक पादप के एक पुष्प के परागकणों का उसी पादप के दूसरे पुष्प के वर्तिकाम्रों तक स्थानांतरण होता है तब वह सजातपुष्पी परागण कहलाता है। सजातपुष्पी परागण लगभग स्व-युग्मन जैसा ही है, क्योंकि इस परागण के परागकण उसी पादप में आते हैं। क्रियात्मक रूप से सजातपुष्पी पर परागण है, क्योंकि परागकणों के स्थानांतरण के लिए एक कारक की आवश्यकता पड़ती है। पर निषेचन में भिन्न पादपों के परागकण भिन्न पादपों के वर्तिकाग्र पर स्थानांतरित होते हैं। इस प्रकार के परागण में हवा, कीट, पानी आदि एजेंट भूमिका निभाते है।


8.पुष्पीय पौधों में निषेचन की क्रिया की जानकारी दें।

उत्तर ⇒ पुष्पीय पौधों में नर गैमिट, ट्यूब की मदद से अंडे तक पहुँचता है तथा इस विधि को Siphonogamy कहा जाता है। Ovary तक Pollen ट्यूब के पहुँचने के बाद वह Ovule में या तो micropylerend, chalazalend या तो Laterally के द्वारा प्रवेश करता हैं। Progamy में Pollen ट्यूब का शीर्ष भाग nuclear tissue को धक्का देकर micropyte में प्रवेश करता है तथा अंततः egg apparatus को छेदकर emboryosac तक पहुँचता है। Mature embryosac तीन एंटिपोडल cells, एक Secondary nucleus, दो Synergids तथा एक अंडा रखता है। एक अंडा तथा दो Synerigids एक दूसरे के साथ मिलकर egg apparatus बनता है जो कि micro Pyler छोर पर अवस्थित होता है। synergids अपने में कुछ रासायनिक पदार्थ को प्रावित कर Pollen ट्यूब के वृद्धि को बढ़ावा देता है। Poollen ट्यूब का शीर्ष Synergids के अंदर प्रवेश करता है छेदित Synergids धीरे-धीरे समाप्त होने लगता है। छेद करने के बाद Pollen tube अपने सारे Contents जिसमें दो नर युग्मक तथा Vegatative nucleus होता है, को synergids में मुक्त कर देता है।

Biology 12th Question In Hindi pdf


9.निषेचन क्या है ? आवृतबीजी पौधों में इस प्रक्रिया का वर्णन करें

उत्तर ⇒नर युग्मक (शुक्राणु) तथा मादा युग्मक (अंडाणु) का संयोजन या संयुग्मन को निवेचन कहते हैं।

आवृतबीजी पौधों में द्विनिषेचन पाया जाता है। निषेचन में क्रमवार क्रियाएँ निम्नवत् है

(i) परागकणों का वर्तिकार पर अंकुरण- वर्तिका पर गिरने के बाद परागकणों द्वारा पानी शोषित किया जाता है जिससे परागकण फूल जाते हैं। इनके अंतश्चोल पराग नलिका के रूप में जनन छिद्र से बाहर निकलती है। पराग नलिका को सर्वप्रथम इटैलियन वैज्ञानिक एमिसी ने पोरचुलाका ओलीरेशिया में देखा था। सामान्यतया एक परागकण से केवल एक पराग नलिका निकलती है। इस प्रकार की पराग नलिका को एकनलिकीय कहते हैं। कभी कभी एक परागकण से एक से ज्यादा पराग नलिकाएँ निकलती हैं। इसे बहुतलिकीय कहते हैं। इस प्रकार की अवस्था मालवेसी या कुकुरबिटेसी कुल में पाई जाती है। पराग नलिका में एक कायिक केंद्रक तथा दो नरयुग्मक होते हैं। पराग नलिका वर्तिक्रम से वर्तिका में आती है तथा यहाँ से बीजांडद्वार में प्रवेश कर जाती है।

(ii) पराग नलिका का बीजांड प्रवेश- पराग नलिका भूणकोष में तीन प्रकार से प्रवेश कर सकती है—

(क) बीजांडद्वार द्वारा इस प्रकार में पराग नलिका बीजांडद्वार से प्रवेश करती है। इसे पोरोगैमी कहते हैं। अधिकांश आवृतबीजी पौधों में पराग नलिका बीजांडद्वार से ही प्रवेश करती है।

(ख) चैलाजा द्वारा इसमें पराग नलिका चैलाजा से होती हुई प्रवेश करती है। इस प्रकार को चैलेजोगैमी कहते हैं।  यह प्रकार कुजुएराइना या बड़ा झाऊ में पाया जाता है।

(ग) बीजांडवंत या अध्यावरण द्वारा पराग नलिका बीजांड में बीजांडवृंत द्वारा या अध्यावरण से होती हुई प्रवेश करती है। इसे मीजोगैमी कहते हैं। यह कटू या कुकुरबिटा, पिस्टेसिया में पाया जाता है।


10.विभिन्न प्रकार के बीजों का सचित्र वर्णन करें।

उत्तर ⇒जिन बीजों में भ्रूणपोषी (endosperm ) पाया जाता है, उन्हें भ्रूणपोषी या एल्ब्यूमिनस (endospermic or albuminous) बीज कहते हैं। भ्रूणपोषी एक विशेष प्रकार का ऊतक है, जिसमें भ्रूण के लिए भोज्य पदार्थ संग्रहित रहता है। जिन बीजों में भ्रूणपोष नहीं होता है, उन्हें अभूणपोषी या एक्स-एल्ब्यूमिनस बीज कहते हैं। एकबीजपत्री बीज साधारण भूणपोषी तथा द्वि-बीजपत्री बीज साधारणतः अभ्रूणपोषी बीज होते हैं।

बीजपत्रों या भूणपोष में जो भोज्य पदार्थ रहता है वह अंकुरण के समय बढ़ते हुए मूलांकुर तथा प्रांकुर को अवशोषण के द्वारा तबतक प्राप्त होता रहता है जब तक शिशु पौधा (seeding) अपना भोजन स्वयं नहीं तैयार करना शुरू कर देता है। कुछ भूणपोषी बीज का उदाहरण है-रेड़ी, चावल, गेहूं, मक्का, बाजरा, बाँस, ताड़ आदि। अभ्रूणपोषी बीज का उदाहरण- आर्किड्स, चना, मटर, सेम, इमली, आम, कपास, अमरूद, सूर्यमुखी इत्यादि ।


11.द्विनिषेचन से क्या समझते हैं ? आरेखित चित्रों के सहित इसका वर्णन करें।.अथवा, दोहरा निषेचन से आप क्या समझते है ? आरेखित चित्रों की मदद से समझावें |

उत्तर ⇒ दोहरा निषेचन निषेचन की क्रिया में नरयुग्मक का अंड से मिलकर द्विगुणित युग्मनज बनाना तथा द्वितीयक केंद्रक का नरयुग्मक से संलयन द्विनिषेचन कहलाता है। द्विनिषेचन की खोज नावाशिन ने 1898 में किया था। उन्होंने फ्रिटिलेरिया तथा लिलियम में सर्वप्रथम द्विनिषेचन का पता लगाया था।

द्विनिषेचन केवल आवृतबीजी पौधों में पाया जाता है। नरयुग्मक के अंड से संलयन के फलस्वरूप जाइगोट बनाता है। इस प्रकार के निषेचन को युग्मक संलयन या सत्य निषेचन कहते हैं। दूसरे नरयुग्मक का केंद्रक द्वितीयक केंद्रक से संलयन करता है तथा प्राइमरी भ्रूणपोष केंद्रक बनाता है। चूँकि इसमें तीन केंद्रकों का संलयन होता है (दो पोलर केंद्रक तथा तीसरा नरयुग्मक), इसमें त्रिगुणित केंद्रक बनता है। इस प्रकार के संलयन को त्रिसंलयन कहते हैं।

Biology Important Subjective Question 2024


Class 12th Biology ( लघु उत्तरीय प्रश्न )
1जीवधारियों में जननClick Here
2पुष्पी पादपों में लैंगिक प्रजननClick Here
3मानव प्रजननClick Here
4जनन स्वास्थ्यClick Here
5वंशागति और विभिन्नता के सिद्धांतClick Here
6वंशागति का आणविक आधारClick Here
7विकासClick Here
8मानव स्वास्थ्य एवं रोगClick Here
9खाद उत्पादन बढ़ाने के लिए उपायClick Here
10मानव कल्याण में सूक्ष्मजीवClick Here
11जैव प्रौद्योगिकी के सिद्धांत एवं प्रक्रिया हैClick Here
12जैव प्रौद्योगिकी एवं इसके अनुप्रयोगClick Here
13जीव एवं समष्टियाClick Here
14परिस्थितिक तंत्रClick Here
15जैव विविधता एवं संरक्षणClick Here
16पर्यावरण मुद्देClick Here
 BSEB Intermediate Exam 2024
 1Hindi 100 MarksClick Here
 2English 100 MarksClick Here
 3Physics Click Here
 4ChemistryClick Here
 5BiologyClick Here
 6MathClick Here

Leave a Comment